सुदामा की दयनीय दशा देख कृष्ण ने क्या कहा - sudaama kee dayaneey dasha dekh krshn ne kya kaha

सुदामा के मन की दुविधा यह थी कि खूब मान-सम्मान तथा आदर-सत्कार करने वाले श्रीकृष्ण ने उन्हें कुछ दिया क्यों नहींइसके अलावा द्वारका आकर अपने चावल खोकर भी न कुछ पाने की दुविधा सता रही थी

प्रश्न 5. अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए
उत्तर :
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी को न खोज पाए तो तब उनके मन में विचार आया कि कहीं वे अपना रास्ता भूलकर द्वारका वापस तो नहीं आ गए हैं या उनके मन-मस्तिष्क पर द्वारका के राजभवनों का भ्रम तो नहीं छा गया है जो टने का नाम नहीं ले रहा है

प्रश्न 6. निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित हैउसे अपने शब्दों में लिखिए
उत्तर :
प्रभु की कृपा से सुदामा की विपन्नता, इस तरह संपन्नता में बदली कि स्वयं
सुदामा भी इससे चकित रह गएजिस जगह पर उनकी झोंपड़ी थी, वहाँ तथा आस-पास द्वारका के समान राजमहल नजर आ रहे थेजिस सुदामा के पैर में कभी जूते नहीं होते थे, उनके आने-जाने के लिए महावत, गजराज (उत्तम कोटि का हाथी) लिए खड़ा था घोर गरीबी में सुदामा को कठोर जमीन पर रात बितानी पड़ती थी पर अब कोमल और मखमली बिस्तरों पर भी नींद नहीं आती थीगरीबी के दिनों में सुदामा को कोदो-सवाँ जैसे घटिया अनाज भी नहीं मिल पाता था, उन्हीं सुदामा को प्रभु की कृपा से अत्यंत स्वादिष्ट व्यंजन तथा अंगूर (सूखे मेवे) भी अच्छे नहीं लगते थेइस तरह उनकी जिंदगी में
विपन्नता के लिए कोई स्थान न बचा था

कविता से आगे

प्रश्न 1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए
उत्तर :
श्री कृष्ण और सुदामा बचपन में ऋषि संदीपनि के गुरुकुल में साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करते थेये दोनों ही घनिष्ठ मित्र थेइसी तरह द्रुपद और द्रोण भी महर्षि भारद्वाज के आश्रम में साथ-साथ शिक्षा करते थेद्रुपद राजा के पुत्र थे तो द्रोण महर्षि भारद्वाज केये दोनों भी घनिष्ठ मित्र थेद्रुपद द्रोण से अकसर कहा करते थे कि जब मैं राजा बन जाऊँगा तो तुम्हें अपना आधा राज्य दे दूंगा और हम दोनों ही सुखी रहेंगेसमय बीतने के साथ द्रुपद राजा बने और द्रोण अत्यधिक गरीब हो गएवे द्रुपद के पास कुछ सहायता पाने के उद्देश्य से गएद्रुपद ने द्रोण को अपनी मित्रता के लायक भी न समझा और उन्हें अपमानित कर भगा दियाद्रोण ने पांडवों तथा कौरवों को धनुर्विद्या सिखानी शुरू कीउन्होंने अर्जुन से गुरु-दक्षिणा में द्रुपद को बंदी बनाकर लाने को कहाअर्जुन ने ऐसा ही कियाद्रोण ने उनके द्वारा किए गए अपमान की याद दिलाते हुए द्रुपद को मुक्त तो कर दिया पर अपमानित द्रुपद द्रोण की जान के प्यासे बन गएद्रुपद स्वयं यह काम नहीं कर सकते थेउन्होंने तपस्या करके एक वीर पुत्र तथा एक पुत्री की कामना कीद्रुपद की इसी पुत्री द्रौपदी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ जिन्होंने महाभारत के युद्ध में द्रोण का वध किया।

सुदामा कथानक से तुलना-कृष्ण और सुदामा की मित्रता सच्चे अर्थों में आदर्श थीवहीं द्रोण तथा द्रुपद की मित्रता एकदम ही इसके विपरीत थीकृष्ण ने सुदामा की परोक्ष मदद करके अपने जैसा ही बना दिया, वहीं द्रुपद और द्रोण ने मित्रता को कलंकित किया तथा एक-दूसरे की जान के प्यासे बन
गएवे एक-दूसरे को अपमानित करते रहे और जान लेकर ही शांति पा सके

प्रश्न 2. उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता पिता-भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए?
उत्तर :
इसमें कोई संदेह नहीं कि समाज में लोगों की मानसिकता में काफी बदलाव आया हैआजकल उच्च पद पर पहुँचकर या समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बंधुओं से नजर फेर लेता हैऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चरित’ बहुत बड़ी चुनौती खड़ा करता हैकिसी व्यक्ति को धनदौलत, पद-प्रतिष्ठा आदि के मद में अपने निर्धन माता-पिता को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही हमें जन्म दिया हैअनेक दुख-सुख सहकर हमारा पालन-पोषण किया हैउन्होंने हमारी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध कर उच्च पद पर पहुँचने लायक बनाया हैवे समय-समय पर मदद एवं अच्छी राय देकर हमारी सहायता करते हैंयदि उच्च पद पर पहुँचकर हम उन्हें भूलने जैसी कोई बात करते हैं तो यह व्यक्ति की कृतघ्नता कही जाएगीहमें तो ऐसे में (उच्च पद प्राप्त करके) निर्धन माता-पिता तथा अपने बंधुओं की मदद उसी प्रकार करनी चाहिए जैसे कृष्ण ने सुदामा की थीउनकी मदद कर हमें अपनी पारिवारिक तथा सामाजिक जिम्मेदारियों का पूर्ण रूप से निर्वहन करना चाहिए।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1. अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
उत्तर :
यदि मेरा कोई मित्र बहुत दिनों बाद मुझसे मिलने आए तो मैं आत्मीयतापूर्वक
उससे मिलूंगामुझे उससे मिलकर बड़ी खुशी होगीवह जब तक मेरे पास रहेगा, मैं उसका खूब आदर-सत्कार करूंगायदि उसे मेरी मदद की जरूरत है तो मैं उसे पूरा करने का हर संभव प्रयास करूंगा तथा उसे प्रेमपूर्वक विदा कर भविष्य में आते रहने के लिए कहूँगा

प्रश्न 2. केहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई हैइस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए
उत्तर :
इस दोहे के माध्यम से कवि रहीम कहते हैं कि जब तक किसी भी व्यक्ति के पास संपत्ति होती है, धन-दौलते रहती है, तब तक अनेक लोग अनेक तरीके से उसके अपने बन जाते हैं; जैसे-मैं तुम्हारे उन दूर के रिश्तेदार का रिश्तेदार हूँ यो तुम्हारे परिवार से मेरा संबंध तो बहुत पुराना है आदि-आदिऐसे लोग सच्चे मित्र नहीं होते हैंविपत्ति अर्थात धन न रहने पर जो व्यक्ति मेरा साथ देता है वही मेरा सच्चा मित्र होता है

इस दोहे की तुलना यदि हम ‘सुदामा चरित’ से करते हैं तो इन दोनों में काफी समानता मिलती है‘सुदामा चरित’ के अनुसार द्वारकाधीश कृष्ण अपने विपन्न मित्र को देखकर हर्षित हो जाते हैंवे उनका खूब आदर-सत्कार करते हैं तथा बिदाई के समय प्रत्यक्ष रूप में कुछ नहीं देते है किंतु परोक्ष में इतना दे देते हैं कि उन्हें भी अपने समान बना देते हैंइस प्रकार सुदामा चरित’ में भी विपत्ति के समय मित्र की सहायता करने का संदेश दिया गया हैइसमें भी निहित मूलभाव भी उक्त दोहे जैसा ही है कि मुसीबत के समय जो सच्ची भावना से सहायता करे वही हमारा सच्चा मित्र हैश्रीकृष्ण ने सुदामा की अप्रत्यक्ष सहायता कर सुदामा में हीनता की भावना या छोटे होने का भाव पैदा होने ही नहीं दिया।

सुदामा की दीन दशा देखकर श्री कृष्ण ने क्या कहा?

उत्तर : सुदामा की दीनदशा को देखकर श्रीकृष्ण को अत्यन्त दुख हुआ। दुख के कारण श्री कृष्ण की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। उन्होंने सुदामा के पैरों को धोने के लिए पानी मँगवाया। परन्तु उनकी आँखों से इतने आँसू निकले की उन्ही आँसुओं से सुदामा के पैर धुल गए।

सुदामा की दीन दशा देखकर कौन से पढ़े थे?

Solution : सुदामा की दीन दशा देखकर श्रीकृष्ण रो पड़े थे

सुदामा को श्रीकृष्ण की कौन कौन सी बातें याद आ रही थीं?

सुदामा को श्री कृष्ण की कौन-कौन सी बातें याद आ रही थी? Answer: सुदामा को देखते ही कृष्ण का खुशी से भर उठना, गले लगाना, सिंहासन तक ले जाना और सिंहासन पर बिठाना, पैर धोना, आदर, सम्मान देना आदि बातें याद आ रही थीं