सतयुग में कौन से भगवान रहते हैं? - satayug mein kaun se bhagavaan rahate hain?

सनातन धर्म और वेदों में चार युगों की मान्यता है। माना जाता है कि सतयुग में स्वयं देवता, किन्नर और गंधर्व पृथ्वी पर निवास करते थे। हमारे धर्म ग्रंथों में किन्नरों और गंधर्वों के बारे में विस्तार से बताया गया है। सतयुग के बाद आया त्रेता युग। इस युग में भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और वह स्वयं श्रीहरि विष्णु का अवतार थे। फिर द्वापर युग की शुरुआत हुई और इस युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने जिस तरह की लीलाएं रची, उनके बारे में प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि भगवन इन लीलाओं के जरिए मानव मात्र को कलयुग में जीवन-यापन का पाठ पढ़ा रहे थे।

सतयुग में कौन से भगवान रहते हैं? - satayug mein kaun se bhagavaan rahate hain?

कलयुग का कालखंड सबसे छोटा माना गया है और माना जाता है कि कलयुग में भगवान विष्णु का दसवां अवतार होगा, जिसका नाम होगा कल्कि। वर्तमान समय में कलयुग ही चल रहा है। विष्णु पुराण कलियुग के वर्णन करते हुए कहा गया है कि कलियुग पाप इतना अधिक होता कि सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा। कन्याएं 12 साल में ही गर्भवती होने लगेंगी, मनुष्य की आयु औसतन 20 वर्ष हो जाएगी। लोग जीवन भर की कमाई एक घर बनाने में लगा देंगे। इन सबके बावजूद जब पराशर ऋषि से सभी देवताओं ने पूछा कि सभी युगों में कौन सबसे बढ़िया है तो ऋषि ने वेदव्यासजी के कथनों का जिक्र करते हुे समझाया कि सबसे उत्तम कलियुग है। आइए जानें व्यासजी ने विष्णु पुराण में क्यों कहा है कलियुग को धन्य और सबसे उत्तम।

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श्री वेदव्यासजी ने वेदों का वाचन किया और भगवान गणपति ने उनके अनुग्रह पर उन वचनों को लिखित रूप में प्रस्तुत किया। श्रीवेदव्यास जी को ही वेदों का रचनाकार माना जाता है। वेदव्यास जी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, वेदव्यास जी ने सभी युगों में कलयुग को श्रेष्ठ युग कहा है। यह चौंकाने वाली बात जरूर है क्योंकि कलयुग में तो सबसे अधिक पाप और अत्याचार होगा, वेदों और धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है। अगर ऐसा हो तो कलयुग सबसे श्रेष्ठ कैसे हुआ?

विष्णुपुराण में वर्णित एक घटना के अनुसार, मुनिजनों और ऋषियों के साथ चर्चा करते हुए वेदव्यास जी कहते हैं, हे मुनिजन सभी युगों में कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ युग है। क्योंकि दस वर्ष में जितना व्रत और तप करके कोई मनुष्य सतयुग में पुण्य प्राप्त करता है, त्रेतायुग में वही पुण्य एक साल के तप द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार उतना ही पुण्य द्वापर युग में एक महीने के तप से प्राप्त किया जा सकता है तो कलयुग में इतना ही बड़ा पुण्य मात्र एक दिन के तप से प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह व्रत और तप के फल की प्राप्ति के लिए कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ समय है।

जैसा कि हम सभी जानते कि सनातन धर्म के अनुसार चार युग होते हैं जैसे कि सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग और अभी का जो युग चल रहा है वह कलयुग। युग का अर्थ होता है कालचक्र या काल अवधि। हिंदू धर्म के अनुसार 3 युग बीत चुके हैं और अभी चौथा युग यानी कि कल युग चल रहा है और समय चक्र के अनुसार जब कलयुग समाप्त हो जाएगा तब फिर सतयुग का आरंभ होगा इसी तरह चारों युग अपने कालचक्र के अनुसार चलते रहते हैं। किसी भी युग का अर्थ होता है कि उस युग में किस प्रकार व्यक्तिगत जीवन, आयु, और उसमे होने वाले मनुष्यों की ऊंचाई, और उस में होने वाले भगवान के अवतारों के बारे में जानना जो युग परिवर्तन के बाद बदल जाते हैं तो चलिए जानते हैं?

सतयुग – प्रथम युग

सनातन धर्म का सबसे प्रथम युग सतयुग है इस युग की बहुत सी विशेषताएं हैं इस युग में पाप की मात्रा 0% होती है यानि की सीधे शब्दों में कहे तो इस युग में पाप की मात्रा ना के बराबर होता है। इस युग यानि कि सतयुग में पुण्य की मात्रा धर्म का 4 भाग यानी कि 100% होती है। मतलब कि इस युग में पुण्य को अधिक महत्व दिया गया है। इस युग में भगवान विष्णु ने मत्स्य, वराह, नर्सिंग, कुर्म जैसे अवतार लिए है यह सभी अवतारों अमानवीय अवतार है। यह सभी अवतार धर्म की रक्षा के लिए राक्षसों का वध करने, वेदों का उद्धार करने और पृथ्वी की रक्षा करने के लिए किया है। इस युग की मुद्रा रत्न की होती थी जैसे- हीरे, मोती, पन्ना,नीलम,पुखराज। इस युग यानी कि सतयुग के बर्तन स्वर्ण धातु के बने होते थे और यह भी माना जाता है कि इस युग में मनुष्य की आयु 100000 वर्ष होती थी और उसकी लंबाई 40 से 45 फीट होते थे। इस युग की आयु 1728000 साल होती है इस युग में सत्य के चारों स्तंभ थे। जब सतयुग की आयु पूर्ण हुई तब आया त्रेता युग चलिए इस युग के बारे में जानते है।

 त्रेता युग – दूसरा युग

 जब सतयुग समाप्त हो गया तब त्रेता युग का आरंभ हुआ और यह युग सनातन धर्म का दूसरा युग माना जाता है। इस युग में धर्म की मात्रा 75% और पाप की मात्रा 25% होती है जो कि कालचक्र के अनुसार धर्म का 4 में से एक अस्थभ नष्ट हो जाता है इस युग में। इस युग में यानी कि त्रेता युग में भगवान विष्णु ने वामन, परशुराम, और अंतिम में श्री राम के अवतार लिए है। इन अवतारों को लेने का कारण था कि वामन के रूप में राजा बलि का उद्धार करना, परशुराम के रूप में धर्मपथ से भटके हुए दुष्ट क्षत्रियों का नाश करके सबको धर्म पथ पर लाना , श्री राम के रूप में रावण का संहार करके इस समस्त पृथ्वी पर से रावण का आतंक मुक्त करना। इस युग में मनुष्य की आयु 10000 वर्ष रह गई थी और मनुष्यों की लंबाई घटकर 21 फीट तक रह गई थी क्योंकि इस युग से पाप की मात्रा बढ़ने लगी थी। इस युग की मुद्रा स्वर्ण की होती थी और पात्र यानी कि बर्तन चांदी की होती थी और इस युग की आयु 1296000 वर्ष होती है जो समय अनुपात के अनुसार घट जाती है। इसके बाद आता है द्वापर युग

 द्वापर युग – तीसरा युग

 त्रेता युग की आयु पूर्ण होने पर द्वापर युग की शुरुआत होती है। द्वापर युग को सनातन धर्म का तीसरा युग माना गया है इस युग का तीर्थ स्थल कुरुक्षेत्र है। इस युग में पाप की मात्रा बढ़कर 50 प्रतिशत और पुण्य की मात्रा घटकर 50 प्रतिशत हो जाती है इस युग में धर्म का आधा भाग यानी कि 2 स्तंभ खत्म हो जाता है। इस युग में मनुष्य की आयु घटकर 1000 वर्ष रह गई थी और मनुष्य की लंबाई 10 से 11 फीट रह गई थी। इस युग की मुद्रा चांदी की होती थी और इसके पात्र तांबे के होते थे। इस युग की आयु 864000 वर्ष होती है। इस युग के अंत में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप ने अवतार लिया था और इस पृथ्वी पर से अधर्म का साम्राज्य मिटाया था और फिर पुनः धर्म का साम्राज्य स्थापित किया। उसके कुछ वर्षों बाद कलयुग की शुरुआत हुई।

 कलयुग – चौथा युग

 द्वापर युग के समाप्त होने के बाद अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के शासनकाल में कलयुग की शुरुआत हुई। कलयुग सनातन धर्म का चौथा और अंतिम युग कहा गया है। कलयुग को मानव जाति के लिए सबसे श्रापित युग भी कहा गया है। इस युग में पाप की मात्रा 75% और पुण्य की मात्रा 25% ही रह जाएगा, इस युग में धर्म का 4  स्तंभ में से 3 स्तंभ खत्म हो जाएगा और धर्म का एक भाग ही रह जाएगा। इस युग यानि कि कलयुग की आयु 432000 साल है। इस युग में मनुष्य की आयु 100 वर्ष  और उसकी लंबाई 5 से 6 फीट तक बताई गई है जो कि कलयुग के अंत आते -आते मनुष्य की आयु 10 से 12 वर्ष और इसकी लंबाई 5 से 7 इंच तक ही रह जाएगी, जो कि अभी कलयुग का प्रथम चरण ही चल रहा है।

इस युग के तीर्थ स्थल गंगा नदी है और इस युग की मुद्रा लोहे और कागज की बनी होंगी और इस युग के पात्र मिट्टी का होगा। इस युग अंत में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का जन्म होगा जो कि इस संसार सा अधर्म का विनाश करके पुनः सतयुग की स्थापना करेगा। जैसा कि इस युग का अभी प्रथम चरण ही चल रहा है और कलयुग की शुरुआत द्वापर युग के बाद हुई है तो पुराणों और विशेषज्ञों की गणना के अनुसार कलयुग अभी 5000 वर्ष ही बीते है जो कि अभी कलयुग का अंत आने में 427000 वर्ष और बचे हुए है जो कि कलयुग का अंत आने में भी बहुत समय है तब भगवान विष्णु इस धरा पर अवतरित होंगे। आज के लिए इतना ही अगर आपको पोस्ट अच्छा लगे हो तो शेयर जरूर करें…..।

सतयुग में लोग किसकी पूजा करते थे?

सतयुग में लोग सत्य अर्थात् प्रकृति की पूजा करते थे

सतयुग में कौन से भगवान आते हैं?

सतयुग में भगवान विष्णु के जो अवतार हुए हैं उनमें मत्सय अवतार, कूर्म अवतार, वाराह अवतार और नृसिंह अवतार शामिल हैंभगवान विष्णु ने जो ये अवतार लिये वे शंखासुर के वध और वेदों के उद्धार सहित, पृथ्वी का भार हरण, हिरण्यकश्यपु के वध और भक्त प्रहलाद को मुश्किलों से बचाने के लिए थे।

सतयुग में कौन सा धर्म था?

स्वयं परमात्मा द्वारा स्थापित आदि सनातन देवी-देवता धर्म जो सतयुग त्रेता बीत जाने के उपरांत कालांतर में स्वयं को देवी देवता ना कहकर हिंदू कहने लगे और आदि सनातन देवी-देवता धर्म का नाम कालांतर में सनातन धर्म रह गया इसीलिए हिंदू अपने पूर्वजों को देवी देवता मानते हैं अर्थात सनातन धर्म के सभी followers देवी-देवताओं के ही ...

सतयुग में इंसान कैसे होते थे?

सतयुग 17,28,000 वर्ष तक रहा, ये युग चार पैरों पर खड़ा था और इस युग में मनुष्य की लंबाई 32 फिट होती थी, इसके साथ ही इस युग में व्यक्ति की उम्र एक लाख वर्ष थी। इस युग में कोई पापी नहीं था यानि पाप का प्रतिशत 0 था वहीं पुण्य का ग्राफ 100 प्रतिशत था। इस युग में मुद्रा के रूप में रत्न चलते थे और पात्र स्वर्ण था।