कॉल मास की पुस्तक का नाम क्या है? - kol maas kee pustak ka naam kya hai?

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मार्क्स के चार विचार, जो आज भी ज़िंदा हैं

  • मैक्स सीत्ज़
  • बीबीसी मुंडो

7 नवंबर 2017

कॉल मास की पुस्तक का नाम क्या है? - kol maas kee pustak ka naam kya hai?

इमेज स्रोत, Getty Images

2017 रूसी क्रांति का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है, लेकिन जिनके विचारों पर ये क्रांति हुई, क्या वो आज भी प्रासंगिक हैं?

हालांकि जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने उन्नीसवीं शताब्दी में काफ़ी कुछ लिखा, लेकिन आज भी इसमें कोई विवाद नहीं है कि उनकी दो कृतियां 'कम्युनिस्ट घोषणा पत्र' और 'दास कैपिटल' ने एक समय दुनिया के कई देशों और करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला था.

रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का उदय इस बात का उदाहरण था. कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि बीसवीं शताब्दी के इतिहास पर समाजवादी खेमे का बहुत असर रहा है. हालांकि, जैसा मार्क्स और एंगेल्स ने लिखा था, उस तरह साम्यवाद ज़मीन पर नहीं उतर पाया.

अंततः समाजवादी खेमा ढह गया और पूंजीवाद लगभग इस पूरे ग्रह पर छा गया. आईए जानते हैं, मार्क्स के वे चार विचार कौन से हैं जो साम्यवाद की असफलता के बावजूद आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं.

1- राजनीतिक कार्यक्रम

'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' और अपने अन्य लेखों में मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में 'वर्ग संघर्ष' की बात की है और बताया है कि कैसे अंततः संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेगा.

अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति 'दास कैपिटल' में उन्होंने अपने इन विचारों को बहुत तथ्यात्मक और वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषित किया है.

उनके प्रतिष्ठित जीवनी लेखक ब्रिटेन के फ़्रांसिस व्हीन कहते हैं, "मार्क्स ने उस सर्वग्राही पूंजीवाद के ख़िलाफ़ दार्शनिक तरीक़े तर्क रखे, जिसने पूरी मानव सभ्यता को ग़ुलाम बना लिया."

20वीं शताब्दी में मज़दूरों ने रूस, चीन, क्यूबा और अन्य देशों में शासन करने वालों को उखाड़ फेंका और निज़ी संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लिया.

ब्रिटेन के स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में जर्मन इतिहासकार अलब्रेख़्त रिसल कहते हैं कि 'भूमंडलीकरण के पहले आलोचक थे मार्क्स. उन्होंने दुनिया में बढ़ती ग़ैरबराबरी के प्रति चेतावनी दी थी.'

2007-08 में आई वैश्विक मंदी ने एक बार फिर उनके विचारों को प्रासंगिक बना दिया.

2-मंदी का बार बार आना

पूंजीवाद के 'पिता' एडम स्मिथ के 'वेल्थ ऑफ़ नेशन' से उलट मार्क्स का मानना था कि बाज़ार को चलाने में किसी अदृश्य शक्ति की भूमिका नहीं होती.

बल्कि वो कहते हैं कि मंदी का बार बार आना तय है और इसका कारण पूंजीवाद में ही निहित है.

अलब्रेख़्त के अनुसार, "उनका विचार था कि पूंजीवाद के पूरी तरह ख़त्म होने तक ऐसा होता रहेगा."

1929 में शेयर बाज़ार औंधे मुंह गिर गया और इसके बाद आने वाले झटके 2007-08 के चरम तक पहुंच गए, जब दुनिया का वित्त बाज़ार अभूतपूर्व रूप से संकट में आ गया था.

विशेषज्ञ कहते हैं कि हालांकि इन संकटों का असर भारी उद्योगों की जगह वित्तीय क्षेत्र पर अधिक पड़ा.

3-अकूत मुनाफ़ा और एकाधिकार

मार्क्स के सिद्धांत का एक अहम पहलू है- 'अतिरिक्त मूल्य.' ये वो मूल्य है जो एक मज़दूर अपनी मज़दूरी के अलावा पैदा करता है.

मार्क्स के मुताबिक़, समस्या ये है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की क़ीमत पर अपने मुनाफ़े को अधिक से अधिक बढ़ाने में जुट जाते हैं.

इस तरह पूंजी एक जगह और कुछ चंद हाथों में केंद्रित होती जाती है और इसकी वजह से बेरोज़गारी बढ़ती है और मज़दूरी में गिरावट आती जाती है.

इसे आज भी देखा जा सकता है.

ब्रिटिश मैग्जीन 'द इकोनॉमिस्ट' के एक हालिया विश्लेषण के अनुसार, पिछले दो दशकों में अमरीका जैसे देशों में मज़दूरों का वेतन स्थिर हो गया है, जबकि अधिकारियों के वेतन में 40 से 110 गुने की वृद्धि हुई है.

4-भूमंडलीकरण और ग़ैरबराबरी

हालांकि मार्क्स के जीवनी लेखक फ़्रांसिस व्हीन कहते हैं कि पूंजीवाद अपनी कब्र खुद खोदता है, मार्क्स की ये बात ग़लत है, बल्कि इससे उलट ही हुआ है, साम्यवाद ख़त्म हुआ तो दूसरी तरफ़ पूंजीवाद सर्वव्यापी हुआ है.

लेकिन पेरिस विश्वविद्यालय में दर्शन के प्रोफ़ेसर और मार्क्सवादी विचारक जैक्स रैंसियर का कहना है कि, "चीनी क्रांति की वजह से आज़ाद हुए शोषित और ग़रीब मज़दूरों को आत्महत्या की कगार पर ला खड़ा किया गया है ताकि पश्चिम सुख सुविधा में रह सके, जबकि चीन के पैसे से अमरीका ज़िंदा है, वरना वो दिवालिया हो जाएगा."

भले ही मार्क्स अपनी भविष्यवाणी में असफल हो गए हों, पूंजीवाद के वैश्विकरण की आलोचना करने में उन्होंने ज़रा भी ग़लती नहीं की.

'कम्युनिस्ट घोषणा' पत्र में उन्होंने तर्क किया है कि पूंजीवाद के वैश्विकरण ही अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता का मुख्य कारण बनेगा. और 20वीं और 21वीं शताब्दी के वित्तीय संकटों ने ऐसा ही दिखाया है.

यही कारण है कि भूमंडलीकरण की समस्याओं पर मौजूदा बहस में मार्क्सवाद का बार बार ज़िक्र आता है.

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प्रश्न 16. कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।

अथवा '' मार्क्स के इतिहास की आर्थिक व्याख्या के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।

अथवा '' कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।

उत्तर- कार्ल मार्क्स द्वारा प्रस्तुत समाज तथा इतिहास का सिद्धान्त  'ऐतिहासिक भौतिकवाद'के नाम से प्रसिद्ध है। इस सिद्धान्त का आधार काल्पनिक या दार्शनिक नहीं है, बल्कि उस नियम की व्याख्या है जो मानव इतिहास की गतिविधि को निर्धारित करती है। इसके द्वारा मार्क्स ने न केवल हीगल के द्वन्द्ववाद सम्बन्धी विचारों को ही उलट दिया, अपितु हीगल द्वारा प्रस्तुत इतिहास की आदर्शात्मक व्याख्या के स्थान पर अपनी भौतिकवादी व्याख्या प्रस्तुत की।

 ऐंजिल्स ने अपने ग्रन्थ 'Seclected Works'में लिखा है कि जिस प्रकार डार्विन ने भौतिक प्रकृति के नियम की खोज की है, उसी प्रकार मार्क्स ने मानव इतिहास के विकास के नियम की खोज की है। मार्क्स से पूर्व के विद्वानों ने इतिहास की व्याख्या आध्यात्मिक, भौगोलिक तथा जनसंख्यात्मक आधार पर की थी, परन्तु उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों का भौतिक आधार खोजकर इतिहास को एक विज्ञान का रूप प्रदान किया। इसलिए मार्क्स के इस सिद्धान्त को 'ऐतिहासिक भौतिकवाद'का नाम दिया गया है।

कॉल मास की पुस्तक का नाम क्या है? - kol maas kee pustak ka naam kya hai?

मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धान्त की रूपरेखा अपनी पुस्तक 'German Ideology'में प्रस्तुत की है। उनके अनुसार भौतिक अस्तित्व ही मानव इतिहास का आधार है। भौतिक उत्पादन की प्रणाली ही ऐतिहासिक घटनाओं का सृजन करती है। मार्क्स की दृष्टि में मानव समाज का इतिहास राजाओं और सेनापतियों के क्रियाकलापों से सम्बन्धित नहीं है। यह उन लोगों से सम्बन्धित है जो भौतिक उत्पादन के सक्रिय साधन हैं। मार्क्स के इस सिद्धान्त ने विश्व इतिहास के दृष्टिकोण में एक क्रान्ति ला दी तथा एक नया मोड़ प्रदान किया। इस सिद्धान्त ने इतिहास को एक विज्ञान के रूप में बदल दिया।

ऐतिहासिक भौतिकवाद की अवधारणा

मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धान्त में उन शक्तियों को स्पष्ट किया है जो वास्तव में इतिहास की घटनाओं का संचालन करती हैं। मार्क्स के अनुसार समाज के भौतिक जीवन की अवस्थाएँ ही अन्तिम रूप से सामाजिक संरचना, राजनीतिक व्यवस्थासमाज के ऐतिहासिक विकास-क्रम को निर्धारित करती हैं। -

मार्क्स के अनुसार इतिहास केवल राजा-रानी, सेनापति आदि के कारनामों, युद्ध कौशल, शासन सत्ता व तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण ही नहीं है, बल्कि समस्त ऐतिहासिक घटनाओं का विकास मानव-जीवन के लिए आवश्यक भौतिक मूल्यों की उत्पादन प्रणाली के आधार पर होता है। सही मायने में इतिहास विज्ञान तभी हो सकता है जब इसमें केवल राजा, शासक, सेनापति आदि के शासन सत्ता से जुड़ी घटनाओं, रणनीति व कारनामों का ही अध्ययन न करके बल्कि उस मेहनतकश जनता का भी अध्ययन किया जाए जो वास्तव में मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करती है। इसीलिए मार्क्स के इस सिद्धान्त को इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या कहा है।

मार्क्स का मत है कि इतिहास के निर्माण के लिए आवश्यक है कि मनुष्य जीवित रहे। मनुष्य तभी जीवित रह सकता है जब उसकी भौतिक आवश्यकताओंभोजन, वस्त्र और मकान की पूर्ति होती रहे। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य विभिन्न भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करता है। उत्पादन कार्य एक निश्चित तरीका होता है, जिसे 'उत्पादन प्रणाली'कहा जाता है। उत्पादन प्रणाली के दो पक्ष होते हैं -

एक, उत्पादन के साधन जिसमें उपकरण, यन्त्र, मशीनें,मानवीय श्रम कौशल आदि सम्मिलित होते हैं।

दूसरा, उत्पादन सम्बन्ध जो उत्पादन कार्य में सहयोग करने वाले सभी लोगों के मध्य बनते हैं।

उत्पादन प्रणाली कभी भी अधिक समय तक स्थिर नहीं रहती। इसमें परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। मार्क्स के अनुसार उत्पादन प्रणाली के आधार पर सामाजिक संस्थाएँ, राजनीतिक व्यवस्था, विचार, नियम-कानून आदि का स्वरूप निश्चित होता है। इसलिए जब उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन होता है, तो उस पर निर्भर सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था, आदर्श नियम, सामाजिक मूल्य, धर्म, कलासाहित्य आदि में परिवर्तन हो जाता है। इसी प्रकार इतिहास के विकास का आधार भौतिक मूल्यों की उत्पादन प्रणाली है। भौतिक वस्तुओं का उत्पादन ही सर्वप्रथम ऐतिहासिक कार्य है, जो हजारों वर्षों से मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिए आवश्यक है और समस्त मानव इतिहासकी अनिवार्य शर्त भी।

इस कारण इतिहास के निर्माण में गिने-चुने दो-चार असाधारण व्यक्तियों का ही योगदान नहीं होता, वरन् उन असंख्य लोगों का योगदान होता है जो मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक भौतिक वस्तुओं का उत्पादन एक निश्चित तरीके से करते हैं। इस प्रकार मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद का बुनियादी विचार यह है कि इतिहास का वास्तविक निर्माता साधारण जनता (मेहनतकश व्यक्ति) ही होती है।

ऐतिहासिक भौतिकवाद के लक्षण (विशेषताएँ)अथवा मान्यताएँ

मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) अथवा मान्यताएँ निम्न प्रकार हैं

(1) मानव समाज का वर्गों में विभाजन

 मार्क्स के अनुसार मानव समाज सदैव दो वर्गों में विभाजित रहा है-शोषक वर्ग एवं शोषित वर्ग। ये दोनों वर्ग परस्पर विरोधी होते हैं तथा इनमें परस्पर संघर्ष होता रहता है। एक वर्ग के पास उत्पादन के साधन होते हैं और दूसरे वर्ग के पास श्रम के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

(2) वर्ग-संघर्ष-

मार्क्स के अनुसार मानव समाज का सम्पूर्ण इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास है। सामन्ती समाज में किसान खेती करते थे और सामन्त उनसे कर वसूल कर जीवनयापन करते थे। पूँजीवादी समाज में श्रमिक उत्पादन करते हैं और पूँजीपति अतिरिक्त मूल्य द्वारा उनके शोषण पर जीवित रहते हैं।

(3) आर्थिक तत्त्वों द्वारा इतिहास का संचालन—

मार्क्स के अनुसार उत्पादन की शक्तियाँ मानव इतिहास का संचालन करती हैं। उत्पादन की शक्तियों का रूप जैसा होता है, उसी प्रकार की समाज व्यवस्था का विकास होता है। मनुष्य के विचार, सिद्धान्त और दर्शन आर्थिक संरचना के प्रतिबिम्ब होते हैं और वर्ग विशेष से सम्बन्ध रखते हैं।

(4) भौतिक तत्त्वों पर आधारित

मार्क्स के अनुसार मानव इतिहास भौतिक तत्त्वों पर आधारित है। राजनीति, धर्म, दर्शन और कला आदि सब उत्पादन की भौतिक परिस्थितियों की देन हैं। भौतिक परिस्थितियाँ उत्पादन प्रणालियों पर निर्भर करती हैं।

(5) वस्तुगत नियमों द्वारा परिवर्तन

मार्क्स के अनुसार सामाजिक और आर्थिक संरचना में परिवर्तन वस्तुगत नियम के अनुसार होते हैं। इस परिवर्तन में एक व्यवस्था दूसरी व्यवस्था का स्थान ले लेती है। इसे सिद्ध करने के लिए उन्होंने यह बताया कि इतिहास के दौर में किस प्रकार आदिम, सामन्ती और पूँजीवादी साम्पत्तिक सम्बन्ध एक-दूसरे के स्थान पर आते रहते हैं।

(6) उत्पादन प्रणाली के साथ सामाजिक परिवर्तन-

मार्क्स के अनुसार सामाजिक वर्गों की प्रकृति, पद, विश्वास, नैतिक आदर्श, कला, साहित्य, सामाजिक व राजनीतिक संस्थाएँ आदि सभी उत्पादन प्रणाली के साथ-साथ बदलते हैं।

ऐतिहासिक युगों का विभाजन  

कार्ल मार्क्स ने भौतिक उत्पादन शक्ति के आधार पर मानव इतिहास को निम्नलिखित छह युगों में विभाजित किया है

(1) आदिम साम्यवादी युग–

यह मानव इतिहास का आरम्भिक युग था। इस युग में उत्पादन के साधनों पर किसी व्यक्ति विशेष का नहीं, अपितु पूरे समुदाय का अधिकार होता था। संयुक्त श्रम के कारण ही उत्पादन के साधनों तथा उनके मिलने वाली वस्तुओं पर सबका अधिकार होता है। इसलिए वर्ग प्रथा नहीं थी और न ही किसी प्रकार का शोषण था।

(2) दास युग

इसके उपरान्त दास युग की शुरुआत हुई, जिसमें उत्पादन के साधनों तथा दासों पर मालिकों का अधिकार होता था। दासों को खरीदा तथा बेचा जा सकता था। सम्पत्ति कुछ लोगों के हाथों में थी अर्थात् अल्पसंख्यकों ने बहुसंख्यकों को दास बनाकर रखा। इस प्रकार समाज दो वर्गों मालिक तथा उनके दास में बँट गया, फलस्वरूप शोषक और शोषित में संघर्ष हुआ।

(3) सामन्तवादी युग-

इस युग में उत्पादन के साधनों पर. सामन्तों का अधिकार होता था, जो कि मूलत: भूमि के स्वामी होते थे। भूमिहीन किसान इनके अधीन रहकर खेती करते थे। निजी सम्पत्ति की धारणा इस युग में भी प्रबल हुई, जिसके फलस्वरूप किसानों और सामन्तों में वर्ग-संघर्ष प्रारम्भ हुआ।

(4) पूँजीवादी युग-

इस युग में बड़े-बड़े उद्योग-धन्धों के फलस्वरूप उत्पादन के साधनों पर पूँजीपतियों का अधिकार होता है। उत्पादन कार्य करने वाला दूसरा वर्ग वेतनभोगी श्रमिक होता है। श्रमिक पूँजीपतियों को अपना श्रम बेचकर नाममात्र का वेतन पाते हैं। इस रूप में श्रमिकों की दशा दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जाएगी। अन्त में मार्क्स की मान्यता है कि श्रमिक वर्ग बाध्य होकर पूँजीपतियों को उखाड़ फेंकेगा और पूँजी. समाज तथा राज्य की बागडोर श्रमिकों के हाथ में होगी।

(5) सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व-

पूँजीपतियों द्वारा श्रमिक वर्ग का निरन्तर शोषण करने से श्रमिक वर्ग संगठित होकर क्रान्ति द्वारा पूँजीपतियों को समाप्त कर देगा और श्रमिक अर्थात् सर्वहारा वर्ग की तानाशाही स्थापित हो जाएगी।

(6) साम्यवादी युग-

मार्क्स के अनुसार यह युग वर्ग विहीन, राज्य विहीन और शोषण रहित होगा। उत्पादन के साधनों पर सभी का अधिकार होगा तथा वितरण लोगों की योग्यता अथवा परिश्रम के अनुसार न होकर उनका आवश्यकतानुसार होगा। इस प्रकार की व्यवस्था में न कोई शोषण करेगा आरन कोई शोषित होगा। मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन

मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की गई है -

(1) मानव इतिहास की व्याख्या में मार्क्स ने आर्थिक तत्त्वों को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। डॉ. राधाकृष्णन् के अनुसार, "मार्क्स ने आर्थिक दशाओं के ऊपर जो बल दिया है, वह ठीक है, परन्तु यह सुझाव कि एकमात्र वे ही इतिहास का निर्धारण करती हैं, गलत है।"

(2) मार्क्स ने सम्पूर्ण मानव इतिहास को वर्ग-संघर्ष का इतिहास माना है। किन्तु मानव इतिहास के निर्माण में केवल संघर्ष ही नहीं, अपितु सहयोग और शान्ति का विशेष महत्त्व रहा है।

(3) मार्क्स ने मानव इतिहास में पाए जाने वाली समस्त संघर्ष को आर्थिक स्वरूप दिया है। किन्तु धर्म, जाति, प्रजाति और संस्कृति भी संघर्ष के कारक रहे हैं।

(4) मार्क्स का यह कहना है कि आर्थिक शक्ति द्वारा ही राजनीतिक शक्ति प्राप्त होती है, तार्किक नहीं है।

(5) मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद का अन्तिम चरण वर्ग विहीन समाज . बताया है, जो काल्पनिक एवं दार्शनिक है।

यद्यपि मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद की विभिन्न विद्वानों द्वारा आलोचना की गई है, लेकिन फिर भी ऐतिहासिक भौतिकवाद का विचार मार्क्स की एक महत्त्वपर्ण देन है। मार्क्स सर्वप्रथम विचारक है जिसने सामान्य जनता को मानव इतिहास का निर्माता माना है। मार्क्स के अनुसार इतिहास के निर्माण में गिने-चुने व्यक्तियों का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मेहनतकश जनता का हाथ होता है। मार्क्स का उद्देश्य इतिहास की भौतिक व्याख्या करने से है, जो जनजीवन से सम्बन्धित वास्तविक तथ्यों पर आधारित है तथा जिसके द्वारा भावी सामाजिक क्रिया की ओर संकेत किया जा सकता है।

कार्ल मार्क्स कौन था उसकी प्रसिद्ध पुस्तक कौन सी थी?

राजनीति, अर्थशास्त्र, दर्शन, समाजशास्त्र, इतिहास, वर्ग संघर्ष। कार्ल मार्क्स को अपनी किताब 'द कम्युनिस्ट मनिफेस्तो' (1848) और 'दास कैपिटल' के लिए मुख्य रूप से प्रसिद्धि प्राप्त है। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए थे।

कार्ल मार्क्स के जनक कौन हैं?

मार्क्सवाद के जनक जर्मनी के कालजयी महान विचारक कार्ल मार्क्स का 200वां जन्मदिन जर्मनी के महान विचारक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक सिद्धांतकार, समाजशास्त्री, पत्रकार और क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स का आज यानी पांच मई को 200वां जन्मदिन है।

दास कैपिटल के लेखक कौन हैं?

कार्ल मार्क्स

कार्ल मार्क्स ने धर्म को क्या कहा है?

धर्म हृदयहीन संसार का हृदय है ऐसे हृदयहीन पूंजीवादी संसार के लिए धर्म एक हृदय की भूमिका निभाता है। इस धर्म के नाते ही बहुत से हृदयहीन पूंजीपति लोग भी दान, चंदा, चढ़ावा के रूप में कभी कभार गरीबों की मदद कर देते हैं इसलिए कार्ल मार्क्स ने धर्म को हृदयहीन संसार का ह्रदय भी कहा था ।