संस्कृत छंद लक्षण

संस्कृत छंद लक्षण

         छन्दो का परिचय

 -Chhando ka parichay

वेदरूपी पुरुष के अङ्गों के रूप में वेदाङ्ग की कल्पना करते हुए पाणिनीय शिक्षा श्लोक ४१-४२ में वेदाङ्गों का महत्व बताते हुए कहा है -

छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ कथ्यते ।

ज्यतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते ।।

शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम् ।

तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्रङ्मलोके महीयते ।।

अर्थात छन्दो की गणना वेद पुरुष के पैरो के रूप में की जाती है । कल्प को हस्त के रूप में ज्योतिष को नेत्र एवं निरुक्त को कान के रूप में तथा शिक्षा को नासिका के रूप में । एवं व्याकरण को वेदरूपी पुरुष का मुख कहा गया है ।

छंद शास्त्र के प्रणेता  -  पिंगलाचार्य जी हैं

छन्द शब्द की व्यत्पत्ति क्या है -

1 -छन्दः, [स्] क्ली, (चन्दयति आह्लादयति चन्द्यतेऽनेन वा । चदि आह्लादे + “चन्देरा- देश्च छः ।” उणां । ४ । २१८ । इति असुन् चस्य छश्च ।

2- छन्दः, पुं, (छन्द्यते इति । छन्द + भावे घञ् ।) 

अतः इस छन्द शब्द के दो अर्थ है

1 - आह्लादन - लोगो को आह्लादित करने वाला ।

2 - आच्छादन - इसके द्वारा रस एवं भाव को आच्छादित किया जाता है ।।

छन्द की परिभाषा - पद्ये यत्र अक्षराणां मात्राणां वा प्रतिपादं गणना भवति तत्र छन्दः इत्युच्यते 

छन्दः आह्लादकरं रसानुकूलं नाम

वैदिक साहित्य तथा गद्य पद्य संस्कृत साहित्य में पद्य का पडला आज भी भारी है साहित्य की अभिवृद्धि के साथ-साथ छंदों की भी वृद्धि हुई है जिस का क्रमिक विकास इस प्रकार हुआ है ।

वेदों में कुल 21 छंद पाए जाते हैं

इनमें भी प्रमुख सात छंद है।

तदनंतर वाल्मीकि रामायण में 13 छन्दो का प्रयोग हुआ है ।

महाभारत का साहित्य 18 छंदों द्वारा आबद्ध है ।

महाभारत में यह क्रम 25 तक पहुंचा है।

इनके पश्चात वर्ती काव्यो में इन छंदों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है ।

इस शास्त्र के अन्तर्गत 

तीन प्रकार के ग्रन्थ हैं - (१) वैदिक छन्दों के निरूपक 

(२) वैदिक और  लौकिक दोनों प्रकार के छन्दों के निरूपक

(३) केवल लौकिक छन्दों के निरूपक ग्रन्थ। वैदिक ग्रन्थों से ही लौकिक का निर्माण हुआ है। छन्दों का  निरूपण करने वाले ग्रन्थों में सबसे प्राचीन ग्रन्थ आचार्य पिंगल कृत 'छन्दःसूत्र- - ' तथा जयदेव कृत 'छन्दःसूत्र' माने जाते हैं। इसके अनन्तर कालिदास 

कृत श्रुतबोध, क्षेमेन्द्र कृत सुवृत्ततिलक, हेमचन्द्र कृत छन्दोऽनुशासन केदार भट्ट कृत वृत्तरत्नाकर, गेंगादास कृत छन्दोमंजरी, दामोदर मिश्र वाणीभूषण कृत बाग्वल्भ प्रमुख ग्रन्थ हैं। 

छन्दः को वृत्तम् भी कहा जाता है। कुछ लोग छन्द को जाति भी कहते हैं। 

छंद के भेद( chhnd ke bhed in Sanskrit)

छंद वर्णो एवं मात्राओ की गणना भेद से दो प्रकार का हो जाता है ।

1 - इस प्रकार जहाँ पर अक्षरों की गणना होती है उसे वर्णवृत्त अर्थात् वर्णिक छन्द -अनुष्टुप ,इन्द्रवज्रा इत्यादि 

2 - और जहाँ पर मात्राओं की गणना होती है, उसे मात्रिक छन्द कहते हैं। - आर्या 

प्रत्येक श्लोक में ४ पाद या चरण होते हैं। श्लोक के चतुर्थाश को पाद या चरण कहते हैं। 

वृत्त छन्द के भेद-इसके तीन भेद होते हैं 

१. समवृत्त-इसमें चारों पादों में वर्गों की संख्या बराबर होती है। जैसे-इन्द्रवज्रा वंशस्त आदि। 

२. अर्धसमवृत्त-इसमें प्रथम - तृतीय, और द्वितीय - चतुर्थ में वर्ण समान होते हैं। जैसे - वियोगिनी, पष्णुताग्रा। 

३. विषमवृत्त-उसमें प्रत्येक चरण में वर्गों की संख्या विषम होती है। जैसे- गाथा छन्द। 

मात्रिक छन्द-मात्रिक छन्दों में प्रत्येक पाद की मात्राएँ गिनी जाती हैं। प्रत्येक मात्रिक गण में ४ मात्राएँ होती है। 

कुछ प्रमुख नियम - (वर्णमात्रादि विचार) 

छन्द शास्त्र में हस्व स्वर को लघुकहते हैं। लघु स्वर ये हैं - अ, इ, उ, ऋ, लु। दीर्घ स्वर को गुरू कहते हैं। गुरू स्वर ये हैं - आ, ई, ऊ, ऋ ए, ऐ, ओ, औ। इसके अतिरिक्त यदि लघु स्वर के बाद कोई अनुस्वार, । विसर्ग या संयुक्त व्यंजन होगा तो वह लघु स्वर भी गुरु माना जाता है। 

पाद के अन्त का लघु स्वर भी आवश्यकता के अनुसार गुरु माना जा सकता है। जैसा कि कहा भी गया है -

लघुगुरू लक्षण -

सानुस्वारो विसर्गान्तो दीर्घो युक्तपरश्च यः ।

वा पदान्ते गुरुर्ज्ञेयो$न्यो मात्रिको लघुः ।।

अनुस्वार से युक्त (अंकं खम् इत्यादि), विसर्गान्त (अ: क:ख: इत्यादि), दीर्घ (आई ऊ का की इत्यादि), जिसके पर में संयोग हो (कृष्ण, विष्णु इत्यादि) ऐसे वर्ण गुरु हैं। पदान्त में स्थित वर्ण (चाहे वह हस्व या दीर्घ कैसा भी हो) विकल्पसे गुरु माना जाता है। इससे अन्य जो भी है ऐसा १ मात्रा वाला लघु माना जाता है। 

गुरु = S (2 मात्रा), लघु = I (१ मात्रा) 

गण विचार करने वाला सूत्र

-यमाताराज भा नस लगा।

१- यगण: यमाता ।ऽऽ 

२- मगण: मातारा -ऽऽऽ 

३- तगण: ताराज ऽऽ। 

४- रगण: राजभा ऽ।ऽ 

५-जगण: जभान || ।$। 

६-भगण: भानस || $।।

७- नगण: नसल - ।।।

८-सगण: सलगा || ।।$

आदिमध्यावसानेषु भजसा यान्ति गौरवम्। 

यरता लाघवं यान्ति मनौतुगुरुलाघवम् ॥

यति -पद्यगाने विरामो यतिः 

अर्थात श्लोक के 1 पाद के पढ़ने में जितने अक्षरों के बाद अल्पविराम होता है उसे यति कहते हैं ।

मात्रिक छन्द 

आर्या 

यस्याः पादे प्रथमेद्वादशमात्रास्तथा तृतीयेऽपि। 

अष्टादश द्वितीयेचतुर्थके पञ्चदशसाऽर्या || 

प्रथमपाद -१२ मात्रा द्वितीयपाद- १८ मात्रा,

तृतीयपाद - १२ मात्रा , चतुर्थपाद 

१५ मात्रा वाला छन्द आर्या कहा जाता है। 

उदाहरण 

S I I S S I I   S,  I S I  S S I  S । S S S

आपरितोषाद्विदुषां, नसाधु मन्ये प्रयोगविज्ञानम् ।

-18 मात्राएॅ ।

बलवदपि शिक्षितानाम् , आत्मन्यप्रत्ययं चेतः ।।

वर्णिक -

1 -अनुष्टुप्            How many words in anustup chhand?         -8

लक्षण - श्लोकेषष्ठं गुरुज्ञेयं, सर्वत्र लघुपञ्चमम्। 

द्विचतुष्पादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥

अनुष्टुप्छन्द में प्रत्येक चरण में ८ वर्ण होते हैं। जिनमें केवल ५,६,७ इन तीनों वर्गों पर ही नियम लगता है। 5 वा वर्ण चारों चरणों में लघु तथा ६ठा वर्ण गुरु होता है। सातवां वर्ण द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों में हस्व(लघु) तथा अन्य (प्रथम और तृतीय) चरणों में दीर्घ (गुरु) होता है। 

॥ उदाहरण॥

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समाः। 

यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम॥ 

2 - इन्द्रवज्रा  

How many words in indravajra chhand?     -11 

(११) 

लक्षण- स्यादिन्द्रवज्रायदितौ जगौग: 

त         त      ज        ग ग 

SS।    SS।  ।S।        S S 

विशेष - इसके प्रत्येक अब बाद में 11 वर्ण होते हैं ।

क्रमशः दो तगण , एक जगण , और दो गुरु होते हैं ।

अर्थात त त ज ग ग।

|| उदाहरण॥ 

$   $ ।     $$    । । $। $$

अर्थो हि कन्या परकीय एव ।

तामद्य सम्प्रेष्य परिग्रहीतुः। ।।

जातो ममायं विशदः प्रकामं ।

प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा  ।।

3 - उपेन्द्रवज्रा (११) 

How many words in upendravajra chhand?      -11

उपेंन्द्रवज्रा के प्रत्येक पाद में 11 वर्ण होते हैं ।

क्रमशः एक जगण एक तगण एक जगण तथा अंत में दो गुरु होते हैं ।

लक्षण - उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ 

ज          त      ज ग ग 

IS।       SS। ।S। S S 

॥ उदाहरण॥ 

।   S। SS     । ।  S     ।SS

त्वमेव माता च पिता त्वमेव 

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । 

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव 

त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥ 

4 - उपजाति (११) 

How many words in upjati chhand?       -11

-------------- लक्षण अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौपादौ यदीयावुपजातयस्ताः। 

इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु,स्मरन्ति जातिष्विदमेव नाम ।।

नोट - उपजाति के प्रत्येक पाद में 11 वर्ण होते हैं

यह इंद्रवज्रा और उपेंद्र वज्रा दोनों छंदों के योग से बनता है

उदाहरण - 

।   S I SSI     I S  ISS

गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति ।

तेनिर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।।

आस्वाद्यतोयाः प्रभवन्ति नद्यः ।

समुद्रमासाद्य भवन्यपेयाः ।।

5 - शालिनी (११) 

How many words in shalini chhand?     -  11

लक्षण 

- शालिन्युक्ता म्तौ तगौगोऽब्धिलोकै: 

इसमें क्रमशः एक मगण दो तगण तथा अंत में दो गुरु होते हैं ।

म         त      त      ग ग 

ऽऽऽ ऽ ऽ I   ऽ ऽ I     S S

उदाहरण - 

S S S S S I S S I SS

क: कं शक्तो रक्षितुं मृत्युकाले

रज्जुच्छेदे के घटं धारयन्ति।

एवं लोकस्तुल्यर्ध्मो वनानां

काल काले छिद्यते रुह्यते च।।

यति- शालिनी छन्द में अब्धि(४) और लोक (७) वर्गों पर यति होती है। 

6 - वंशस्थ (१२) 

How many words in vanshasth chhand?       -12 

लक्षण - जतौतुवंशस्थमुदीरितंजरौ 

इस प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं ।एवम् क्रमशः ज त ज र होते है ।

ज त ज र

ISI SS I ISI SIS 

॥ उदाहरण॥ 

I S I S   S I IS   I SI S 

गजाननं भूतगणाधिसेवितं,

कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।

उमासुतं शोकविनाशकारकम्

नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्  ।।

7 - द्रुतविलम्बित(१२) How many words in drutvilambit  chhand?       -12

लक्षण - द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ 

न भ भ र

I II  SII SII SIS

॥ उदाहरण॥ 

I I   I  SI    I SI   I SIS

‘नव पलाश पलाश वनं पुर:

स्फुट पराग परागत पंकजम्

मृदु लतान्त लतान्त मलोकयत्

स सुरभिं सुरभिं सुमनो भरै:।’

इस छंद में 12 वर्ण होते हैं क्रमशः एक नगण 2 भगण तथा एक रगण होता है ।

8 - वसन्ततिलका (१४) How many words in vasanttilka chhand?       -14

... 

लक्षण - उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौग: 

त भ ज ज ग ग 

ऽऽI SII Iऽ I IऽI S S

। उदाहरण॥ 

ऽ ऽ    I S I I I ऽ I I ऽ   I S S

पापान्निवारयति योजयते हिताय 

गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति। 

आपादतं च न जहाति ददाति काले 

सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः।

इसके प्रत्येक पाद में 14 वर्ण होते हैं तथा चारों चरणों में क्रमशः तगण भगण जगण जगण तथा अंत में दो गुरु होते हैं ।

9 - मालिनी       How many words in malini chhand?       15 

लक्षण- ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकै: 

न न म य य

III III SSS |SS |SS 

॥ उदाहरण॥ 

I I I I    II SS    S | S    S |SS 

वयमिह परितुष्टा: वल्कलैस्त्वं दुकूलैः 

सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः ।

स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला 

मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् कोदरिद्रः॥ 

यति- मालिनी में भोगी(८) और लोक(७) वर्गों पर यति होती है। 

मालिनी छन्द के प्रत्येक पद मे 15 वर्ण होते है ।

क्रमशः नगण ,नगण ,मगण , यगण , यगण होते है ।

8 - 7 पर यति होती है ।

10-  शिखरिणी     

      How many words in shikharini chhand?    -17

लक्षण-रसै रुद्रैश्छिन्ना यमनसभला ग: शिखरिणी 

य म न स भ ल ग

ISS SSS III IIS SII | S

उदाहरण 

I S   S    S    S   S I   I I I IS    S   I I I S

यदा किञ्चिज्ज्ञोऽहं द्विप इव मदान्धः समभवं 

तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः।

यदा किञ्चित् किञ्चित् बुधजनसकाशादवगतं 

तदा मूर्खोऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः।।

यति- शिखरिणी में रस(६) और रुद्र(११) वर्गों पर यति होती है। 

शिखरिणी के प्रत्येक पद में 17 वर्ण होते हैं । क्रमशः एक यगण एक मगण नगण , एक सगण , एक भगण एक लघु एक गुरु होता है ।

मन्दाक्रान्ता (१७) 

How many words in mandakranta chhand?       17

लक्षण - मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम् 

म भ न त त ग ग 

SSS SII III SSI SSI S S 

॥ उदाहरण॥

S  S           S S I I I I I S            S I S S         I S S 

कश्चित्कान्ताविरहगुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत्तः शापेनास्तंगमितमहिमा              वर्षभोग्येण      भर्तुः । 

यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नान                     पुण्योदकेषु 

स्निग्धच्छाया तरुषु वसतिं            रामगिर्याश्रमेषु॥ 

यति- अम्बुधि (४) , रस(६), नग(७) पर यतियां होती हैं।

मंदाक्रांता में प्रत्येक पात्र में 17 वर्ण होते हैं ।

क्रमशः 1 मगण , 2 भगण , 1 नगण , 2 तगण 

दो गुरू होते है । 

हरिणी (१७) 

How many words in harini chhand? -      17

लक्षण - रसयुगहयैर्न्सौ म्रौ स्लौ गो यदा हरिणी तदा

न स म र स ल ग

।।। ।।ऽ ऽऽऽऽ ऽ।ऽ ।।ऽ । ऽ

॥ उदाहरण॥ 

।। । । ।ऽ ऽ ऽ ऽऽ । ऽ । । ऽ । ऽ

कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि जुगुप्सितं 

निरुपमरसं प्रीत्या खादन्नरास्थि निरामिषम्। 

सुरपतिमपि श्वा पार्श्वस्थं विलोक्य न शङ्कते 

न हि गणयति क्षुद्रो जन्तुः परिग्रहफल्गुताम् ॥

यति-रस(६), युग(४) और हय(7) पर यतियां होती हैं। 

प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं । इसमे क्रमशः

नगण , सगण , मगण, रगण, सगण, लघु और गुरू होता है ।


शार्दूलविक्रीडित(११) 

How many words in shardulvikridit chhand?       11

लक्षण-

सूर्याश्वैर्यदिम: सजौ सततगा: शार्दूलविक्रीडितम् 

म स ज स त त ग

SSS IIS ISI IIS SSI SSI S 

॥ उदाहरण॥ 

S    S SI  I   S ISI    II S SSI     SS I S 

शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक्छत्रेण सूर्यातपो, 

नागेन्द्रो निशिताङ्कुशेन समदो दण्डेन गोगर्दभौ। 

व्याधिर्भेषजसङ्ग्रहैश्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विषं सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम् ।

यति- सूर्य (१२) और अश्व(७) वर्गों पर शार्दूलविक्रीडित में यति होती ।

शार्दुल विक्रीडित छंद के प्रत्येक पद में 19 वर्ण होते हैं

क्रमशः एक मगण एक सगण एक जगण एक जगण दो तगण तथा एक गुरु होता है ।

स्रग्धरा (२१) 

म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम। 

म र भ न य य य

SSS SIS SII III ISS ISS ISS 

॥ उदाहरण॥

S S S S I S S I I I II I S S IS S I SS 

जन्मध्वंसं ह्यतीतः प्रकृतिमथ निजामास्थितः सम्भवामि, 

ग्लानो धर्मोऽप्यधर्मो भवति यदि बली स्वीयमायाबलेन। 

साधुत्राणाय तद्वत्खलजनहतये धर्मसंस्थापनाय, 

एवं मे दिव्यकर्म जननमपि च यो वेत्ति मुक्तः स पार्थ|| 

यति- इस छन्द में त्रिमुनि (७,७,७) वर्णों पर तीन यतियां तथा कुल २१ वर्ण होते हैं।

   छन्द परिचय -  Chhand parichay

छन्द का परिचय  - Chhand ka parichay

संस्कृत में छंद क्या होते हैं?

संस्कृत वाङ्मय में सामान्यतः लय को बताने के लिये छन्द शब्द का प्रयोग किया गया है। विशिष्ट अर्थों या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को छ्न्द कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है।

संस्कृत में छंद कितने प्रकार के होते हैं?

वैदिक साहित्य तथा गद्य पद्य संस्कृत साहित्य में पद्य का पडला आज भी भारी है साहित्य की अभिवृद्धि के साथ-साथ छंदों की भी वृद्धि हुई है जिस का क्रमिक विकास इस प्रकार हुआ है । वेदों में कुल 21 छंद पाए जाते हैं । इनमें भी प्रमुख सात छंद है। तदनंतर वाल्मीकि रामायण में 13 छन्दो का प्रयोग हुआ है ।

छंद का दूसरा नाम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंइससे वह जल्दी ही याद हो जाता था। इस प्रकार पद्य को रचने के लिए जिन-जिन बंधनों या नियमों की आवश्यकता है उनका जिस अनुशासन में वर्णन होता है-उसे छंद-शास्त्र कहा जाता है। इस अनुशासन के रचयिता ऋषि के नाम पर इसे पिंगल शास्त्र भी कहा जाता है।

चाँद कितने प्रकार के होते हैं?

मात्रिक छंद.
वर्णिक छंद.
वर्णिक वृत छंद.
उभय छंद.
मुक्त या स्वच्छन्द छंद.