Show छंद और इसकी मात्राएँ | छंद के प्रकार - मात्रिक छंद, वर्णिक छंद और अतुकांत (मुक्त) छंद
कविता के शाब्दिक अनुशासन का नाम छंद है। मात्रा- किसी स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है उसकी अवधि को मात्रा कहते हैं। मात्राएँ हृस्व और दीर्घ होती है। मात्रा लगाने के सामान्य नियम निम्नलिखित हैं- इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें। मात्राओं से संबंधित अन्य नियम निम्नलिखित हैं- गण- इसका महत्व वर्णिक छंदों में होता है। तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। वर्णित छंदों में वर्ण की गणना की जाती है। उन वर्णों की लघुता एवं गुरुता के विचार से गणों के आठ रूप होते हैं। उन गणों के नाम तथा लक्षण इस सूत्र से
याद रखे जा सकते हैं। यति- छंद को पढ़ते समय जहाँ रुका जाता है, उसे यति कहा जाता है। लय- छंद को पढ़ने की शैली को लय करते हैं। गति- गति का अर्थ है प्रवाह अर्थात् छंद को पढ़ते समय प्रवाह एक-सा हो। मात्रिक छंदों के लिए इसका विशेष महत्व है। तुक- पद के चरणों के अंत में जो समान स्वर आते हैं तथा साम्य में बैठाने के लिए लिये जाते हैं, उन्हें तुक कहते हैं। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। छंद के भेद- छंद दो प्रकार के होते हैं- मात्रिक छंद- जिन काव्य रचनाओं में मात्राओं की गणना की जाती है तथा इसके आधार पर छंद का गठन किया जाता है, तो इसे मात्रिक छंद कहते हैं। हिंदी के प्रमुख मात्रिक छंद निम्नलिखित हैं- दोहा छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इस छंद के विषम चरणों में (प्रथम और तृतीय) 13-13
मात्राएँ तथा सम चरणों (द्वितीय व चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। तुक सम चरणों में होती है। चरण के अंत में लघु होना आवश्यक है। चौपाई- यह मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। तुक पहले चरण की दूसरे चरण से और तीसरे चरण की चौथे चरण से मिलती है। इसका अंत गुरु लघु (SI) से होता है। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए। रोला छंद- यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। एक पंक्ति में दो चरण होते हैं। जिसकी प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 11-11 व द्वितीय चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति में कुल 24 मात्राएँ होती हैं। अंत में दो गुरु होते हैं। इसे रोला छंद कहते हैं। सोरठा छंद- यह एक मात्रिक छंद है। दोहा का उल्टा होता है। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। उल्लाला छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इसकी प्रत्येक पंक्ति में कुल 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 15 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। इसे उल्लाला छंद कहते हैं। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। गीतिका
छंद- यह एक मात्रिक सम छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 14 व 12 कि यति से 26 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण के अंत में लघु, गुरु होता है। हरिगीतिका छंद- यह सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-12 की गति के साथ 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण का अंत लघु-गुरु से होता है। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। कुण्डली छंद- यह एक मात्रिक छंद है।
इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। यह छंद दोहा और रोला छंद का मिश्रण होता है। जिस शब्द से इस छंद का आरंभ होता है, उसी शब्द से अंत होता है। दूसरी पंक्ति का उत्तरार्ध तीसरी पंक्ति का पूर्वार्ध्द होता है। इस प्रकार के छंद को कुण्डली छंद कहते हैं। इसमें दोहा तथा रोला कुण्डली के समान गुँथे हुए होते हैं। इसमें 6 चरण होते हैं। टीप- दोहा छंद + रोला छंद = कुंडली छंद छप्पय छंद- यह एक विषम मात्रिक छंद है। इसमें 6 चरण
होते हैं। यह छंद रोला और उल्लाला छंद का मिश्रण होता है। इसके प्रथम चार चरण रोला और दो चरण उल्लाला के होते हैं। रोला के प्रत्येक चरण में 11-13 की यति पर 24 मात्राएँ और उल्लाला के हर चरण में 15-13 की यति पर 28 मात्राएँ होती हैं। टीप- रोला छंद + उल्लाला छंद = छप्पय छंद इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। वर्णिक छंद- जिन छंदों में केवल वर्णों की गणना की जाती है तथा वर्णों की संख्या के आधार पर छंद का निर्धारण किया जाता है, उसे वर्णिक छंद कहते हैं। इसमें गण का महत्व होता है। हिंदी के प्रमुख वर्णिक छंद निम्नलिखित हैं- घनाक्षरी छंद- य एक वर्णिक छंद है। इस छंद में एक चरण में कुल 32 वर्ण होते
हैं। इसमें 8-8 पर यति से 32 वर्ण होते हैं। इस छंद को घनाक्षरी छंद कहते हैं। टीप- कतिपय विद्वानों ने घनाक्षरी छंद को कवित्त भी स्वीकारा है। मंदाक्रांता छंद- यह एक वर्णिक छंद है। यह छंद मगण, भगण, नगण, दो तगण तथा दो गुरुओं की योग से बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। चौथे, छठे और सातवें वर्ण पर यति होती है। इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी
जानें। कवित्त छंद- यह एक वर्णिक छंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 16 और 15 के विराम (यति) से 31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है। सवैया- 22 से लेकर 26 वर्ण तक के छंद को सवैया कहते हैं। मत्तगयंद (मालती) सवैया- यह एक वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु के क्रम में 23 वर्ण होते हैं। इसे मालती सवैया भी कहते हैं। दुर्मिल (चंद्रकला) सवैया- यह एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण तथा आठ सगण होते हैं। इसे चंद्रकला सवैया भी कहते हैं। अतुकांत (मुक्त) छंद- कुछ पद्यांश गद्यात्मक होते हैं। उनमें
संगीतात्मकता का अभाव है। इस प्रकार के पद्यांश अतुकांत अथवा मुक्त छंद कहलाते हैं। गेय पद- कुछ पद्यांश लययुक्त होते हैं। उनमें संगीतात्मकता होती है। ऐसे पद गेय पद के लाते हैं। आशा है, छंदों से संबंधित यह जानकारी परीक्षापयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी। I hope the above information will be useful and important. Watch related information below छंद में मात्रा कैसे गिनते हैं?संक्षेप में मात्रा गणना के सूत्र:
मात्रा केवल स्वर की गिनी जाती है। बिना स्वर के कोई उच्चारण नहीं होता अतः जो भी अक्षर देखें उसमेँ लगे हुए स्वर पर दृष्टि डालें। स्वर यदि लघु है तो मात्रा लघु होगी अर्थात् 1 और यदि दीर्घ है तो 2। हिन्दी में प्लुत (3) नहीं है।
छंद में मात्राएं कैसे बनते हैं?(1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे - अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है। लघु को 1 या । या ल से व्यक्त किया जाता है। (2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं, जैसे-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा 2 है।
छंद में कितनी मात्राएँ होती हैं?इसके प्रत्येक चरण में 16 व 12 के विराम से 28 मात्रायें होती हैं तथा अंत में लघु गुरु आना अनिवार्य है। हरिगीतिका में 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है। प्रत्येक चरण के अन्त में रगण आना आवश्यक है।
स्वर की मात्रा कितनी होती है?मात्रा स्वर का ही एक रूप होता है। जो स्वर का ही प्रतिनिधित्व करता है मात्राओं की संख्या ग्यारह होती है।
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