रामवृक्ष बेनीपुरी को कलम का जादूगर क्यों कहा जाता है? - raamavrksh beneepuree ko kalam ka jaadoogar kyon kaha jaata hai?

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कलम का जादूगर किसे कहा जाता है?

 कलम का जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी को कहा जाता था। रामवृक्ष जी एक  स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी नेता, संपादक और हिंदी लेखक थे। ऐसे में कहा जा सकता है की ये काफी महान विद्वान थे अभी हाल ही में परीक्षा के दौरान भी ये सवाल पूछा गया था की कलम के जादूगर के रूप में कौन जाने जाते है तो बेशक वे रामवृक्ष बेनीपुरी ही थे। हमारे भारत वर्ष में काफी सारे लोकप्रिय और सदाबहार लेखक हुए है इनमें से एक का नाम और में लेना चाहूँगा और वो थे मुंशी प्रेमचंद मैंने उनके बारे में और उनकी पुस्तक श्रंखला तैयार कर रखी है आप चाहे तो उसे भी देख सकते है। 

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हजारीबाग : जंजीरे फौलाद की होती हैं, दीवारें प्त्थर की..। किंतु अच्छा हुआ कि भोर की सुनहली सुबह ने हजारीबाग सेंट्रल जेल की दीवारों का दीदार किया। कलम के जादूगर के नाम से विख्यात साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने संस्मरण में उपरोक्त कथन का जिक्र किया है। 23 दिसंबर 1899 को उनका जन्म हुआ था, तथा स्वंतत्रता आंदोलन के दरम्यान लंबे समय तक उन्होंने अपना जीवन सेंट्रल जेल में बिताया। बेनीपुरी ने अपनी कारागार अवधि में ही हस्त लिखित पत्रिका, कैदी का संपादन 1930 किया था। 1944 में इसी स्थल पर रूसी क्रांति की रचना की। वहीं एक अन्य दूसरी हस्त लिखित पत्रिका तूफान 1942 में शुरू किया। पतितों के देश में पुस्तक लिखने के बाद उन्होंने अंबपाली की रचना की जो साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है। बेनीपुरी के बारे में कहा जाता है कि उनकी रचनाओं के कौमा तथा फुलस्टॉप तक बोलते हैं। भारत छोड़ो आंदोलन के समय जयप्रकाश नारायण के सेंट्रल जेल से फरारी के सूत्रधार रामवृक्ष बेनीपुरी ही थे। उन्होंने 9 नवंबर 1942 को जेल में लगभग तीन घंटे तक कार्यक्रम का आयोजन कर जेल प्रशासन का ध्यान दूसरी ओर लगा दिया था। जिसका लाभ उठाकर जेपी सहित अन्य क्रांतिकारी जेल से भागे थे। 42 सालों से जल रहे 42 दीप की परिकल्पना बेनीपुरी ने ही की थी। वर्ष 2000 में सेंट्रल जेल में एक बड़ा कार्यक्रम का आयोजन हुआ था जिसमें बेनीपुरी के पुत्र अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट जितेंद्र बेनीपुरी सपत्‍‌नीक पधार कर उनके चित्र पर माल्यार्पण किया था। हिंदी के प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह जब 2008 में विभावि के हिंदी कार्यक्रम में शिरकत करने आए थे तो वे सेंट्रल जेल बेनीपुरी सहित अन्य रचनाकारों के कारावास कक्ष देखने पहुंचे थे। हिंदी साहित्य के कई शोधार्थी छात्र बेनीपुरी पर पीएचडी करने के दौरान यहां आते रहते हैं। वही साहित्य प्रेमी यहां आकर उनका प्रत्यक्ष अहसास करते हैं।

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कलम का जादूगर किसे कहा जाता हैं ? – Kalam Ka Jadugar Kise Kaha Jata Hai: क्या दोस्तों आप भी जानना चाहते है की Kalam Ka Jadugar Kon Hai. तो आपको अगर जानना है तो इस पोस्ट आखिर तक जरुर पढना क्यूकी इस पोस्ट में हम आपके साथ कलम का जादूगर कौन हैं के बारे में जानकारी शेयर करने वाले है.

Q. कलम का जादूगर किसे कहा जाता हैं ? – Kalam Ka Jadugar Kise Kaha Jata Hai

Ans: रामवृक्ष बेनीपुरी को ।

रामवृक्ष बेनीपुरी एक बोहत बड़े लेखक थे उन्हे कलम का बोहत ज्ञान था. उनकी लेखनी और भाषा जरुरत के अनुसार रंग बदलती ती थी इसलिए उन्हें कलम का जादूगर कहा जाता हैं.

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दोस्तों इस आर्टिकल में कलम का जादूगर किसे कहा जाता हैं, Kalam Ka Jadugar Kise Kaha Jata Hai के बारे में जानकारी आपके साथ शेयर किया है इस आर्टिकल को लिखने का हमारा उद्देश्य सिर्फ यह है कि आज तक अधिकतम और अच्छी जानकारी आप तक पहुंचा पाए अगर आपको इस तरह और भी जानकारी चाहिए तो आप हमें कमेंट में बता सकते हैं हम आपके लिए ऐसी अधिकतम जानकारी लाते रहेंगे.

भारत देश में कई साहित्यकार, रचनाकार, लेखक, कवि और सम्माननीय हस्तियां ऐसी हुई हैं जिनकी अमिट छाप मरणोपरांत भी ज्यों की त्यों ही है। आज के इस लेख में हम ऐसे ही महान लेखक की बात करने जा रहे हैं साथ ही आपके सवाल कलम का जादूगर किसे कहा जाता है? का भी उत्तर आपको इसमें प्राप्त होगा।

कलम का जादूगर किसे कहा जाता है?

रामवृक्ष बेनीपुरी को कलम का जादूगर कहा जाता है।

आखिर कौन हैं ये महान व्यक्ति? चलिए हम आपको बताते हैं।

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कलम का जादूगर

संक्षिप्त परिचय : रामवृक्ष बेनीपुरी

श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में बेनीपुर गाँव में हुआ था। वे एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखते थे। उन्होंने अपने पैतृक गाँव यानि बेनीपुर के आधार पर ही अपना उपनाम बेनीपुरी रखा था। बचपन में माता-पिता के गुजर जाने के बाद उनका लालन-पोषण व प्राथमिक शिक्षण ननिहाल में हुआ। बेनीपुरी आज भी एक सफल सम्पादक के रूप में याद किये जाते हैं। वे एक प्रभावशाली भाषा-वाणी के धनी थे एवं उनका व्यक्तित्व आकर्षण व शौर्य की आभा से भरा हुआ था।

मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही वे सन 1920 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन चुके थे और इसी वजह से उन्होंने लगभग 8-9 वर्ष जेल में बिताए थे। बेनीपुरी ने 1931 में बिहार सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की और 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की। इसके अलावा वे 1935 से 1937 तक पटना जिले की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे। 1957 में उन्हें कटरा उत्तर से विधानसभा के सदस्य के रूप में चुना गया था एवं 1958 में वे बिहार विश्वविद्यालय (अब बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय), मुजफ्फरपुर के सिंडिकेट सदस्य के रूप में चुना गए। 7 सितंबर 1968 को इनका देहांत हुआ।

उनकी रचनाओं में नेत्रदान, जय प्रकाश, विजेता, सीता की माँ, मील के पत्थर, गेहूँ और गुलाब इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा “नींव की ईंट, शेक्सपियर के गाँव में” उनके लेख हैं। इन्होने ‘तरुण भारत’, ‘किसान मित्र’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘कैदी’, ‘कर्मवीर’, ‘जनता’, ‘तूफान’, ‘हिमालय’ और ‘नई धारा’ नामक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया।