आज सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता राजा राम मोहन राय की जयंती है. सर्च इंजन गूगल ने भी आज डूडल तैयार कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है. गूगल ने उनकी 246वीं जयंती पर एक एनिमेटेड फोटो के जरिए डूडल बनाया है. भारत के विचारों में सुधार लाने वाले राजा राम मोहन' का जन्म 22 मई 1772 को हुआ था और उन्हें आधुनिक भारत का जनक भी कहा जाता है. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कई अहम बातें... Show
- उनकी जन्म बंगाल में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वे ब्रह्म समाज के संस्थापक थे. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़ खुद को राष्ट्र समाज में झोंक दिया. उन्होंने आजादी से पहले भारतीय समाज को सती प्रथा, बाल विवाह से निजात दिलाया. - अपने करियर के शुरुआती दौर में उन्होंने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्जीन', 'संवाद कौमुदी' में भी काम किया था. उनका सारा जीवन महिलाओं के हक के लिए संघर्ष करते हुए बीता. राजीव गांधी नहीं आना चाहते थे राजनीति में, जानें कैसे बने देश के सबसे युवा PM - राजा राम मोहन राय को महिलाओं के प्रति दर्द उस वक्त एहसास हुआ, जब उनकी भाभी को सती होना पड़ा. राजा राम मोहन राय किसी काम के लिए विदेश गए थे और इसी बीच उनके भाई की मृत्यु हो गई. उसके बाद समाज के ठेकेदारों ने सती प्रथा के नाम पर उनकी भाभी को जिंदा जला दिया. - इसके बाद मोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज कर दिया. उन्होंने समाज की कुरीतियों के खिलाफ गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक की मदद से साल 1929 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनवाया. - मोहन राय मूर्ति पूजा के विरोधी भी थे, लेकिन एक बार उन्होंने साधु बनने पर विचार किया था. - दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक अकबर द्वितीय ने उन्हें 'राजा' की उपाधि दी थी. गूगल डूडल: जिसने 400 साल पहले बनाया था दुनिया का मॉडर्न नक्शा - राम मोहन रॉय ने तीन बार शादी की थी जिसके कारण उन्हें समाज में बहुविवाही कहने लगा. - उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की. - मोहन स्वतंत्रता चाहते थे. वो चाहते थे कि इस देश के नागरिक भी उसकी कीमत पहचानें. - कहा जाता है कि उन्होंने 1816 में पहली बार अंग्रेजी भाषा में HINDUISM(हिंदुत्व) शब्द का इस्तेमाल किया. - उन्होंने ब्रह्म समाज आंदोलन की शुरुआत की, जिसने सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. -शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने बड़े काम किए और कलकत्ता का हिंदू कॉलेज. एंग्लो-हिंदू स्कूल और वेदांत कॉलेज खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है. - साल 1830 में मुगल साम्राज्य का दूत बनकर ब्रिटेन भी गए, ताकि सती प्रथा पर रोक लगाने वाला कानून पलटा जाए. - 27 सितम्बर 1833 को राजा राममोहन रॉय का निधन इंग्लैंड में हुआ. 1803 में रॉय ने हिन्दू धर्म और इसमें शामिल विभिन्न मतों में अंध-विश्वासों पर अपनी राय रखी। राजा राम मोहन राय को मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने राजा की उपाधि दी थी। राजा राम मोहन राय को अनेक भाषा जैसे कि अरबी, फारसी, अंग्रेजी और हिब्रू भाषाओं का ज्ञान था। राजा राम मोहन राय का प्रभाव लोक प्रशासन, राजनीति, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में स्पष्ट था। राजा राम मोहन राय को सती और बाल विवाह की प्रथाओं को खत्म करने के लिए जाना जाता है। राजा राम मोहन राय को कई इतिहासकारों द्वारा “बंगाल पुनर्जागरण का पिता” माना जाता है। महज 15 साल की उम्र में राजा राम मोहन राय ने बंगाल में पुस्तक लिखकर मूर्तिपूता का विरोध शुरू किया था। तो आइए Raja Ram Mohan Roy in Hindi के बारे में विस्तार से जानते हैं।
This Blog Includes:
Indian Freedom Fighters (महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी) जीवन परिचयराम मोहन का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हूगली जिले के में राधानगर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम रामकंतो रॉय और माता का नाम तैरिनी था। राम मोहन का परिवार वैष्णव था, जो कि धर्म सम्बन्धित मामलो में बहुत कट्टर था। उनकी शादी 9 वर्ष की उम्र में ही कर दी गई। लेकिन उनकी प्रथम पत्नी का जल्द ही देहांत हो गया। इसके बाद 10 वर्ष की उम्र में उनकी दूसरी शादी की गयी जिसे उनके 2 पुत्र हुए लेकिन 1826 में उस पत्नी का भी देहांत हो गया और इसके बाद उसकी तीसरी पत्नी भी ज्यादा समय जीवित नहीं रह सकी।1803 में रॉय ने हिन्दू धर्म और इसमें शामिल विभिन्न मतों में अंध-विश्वासों पर अपनी राय रखी।राजा राम मोहन रॉय को मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने राजा की उपाधि दी थी।राजा राम मोहन रॉय को अनेक भाषा जैसे कि अरबी, फारसी, अंग्रेजी और हिब्रू भाषाओं का ज्ञान था। राजा राम मोहन रॉय का प्रभाव लोक प्रशासन, राजनीति, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में स्पष्ट था।राजा राम मोहन रॉय को सती और बाल विवाह की प्रथाओं को खत्म करने के लिए जाना जाता है। राजा राम मोहन राय को कई इतिहासकारों द्वारा “बंगाल पुनर्जागरण का पिता” माना जाता है। महज 15 साल की उम्र में राजा राम मोहन राय ने बंगाल में पुस्तक लिखकर मूर्तिपूता का विरोध शुरू किया था। राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त कर मैथ्स, फिजिक्स, बॉटनी और फिलॉसफी जैसे विषयों को पढ़ने के साथ साथ वेदों और उपनिषदों को भी जीवन के लिए अनिवार्य बताया था। यह भी पढ़ें : Indian National Movement(भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन राजा राम मोहन राय की विचारधारा
यह भी पढ़ें : Revolt of 1857 (1857 की क्रांति) राजा राममोहन राय का योगदानराजा राम मोहन राय के धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक योगदान के बारे में विस्तार से बताया गया है: धार्मिक सुधार
समाज सुधार
शैक्षणिक सुधार
राजा राम मोहन राय को राय की उपाधि किसने दी20 अगस्त, 1828 में उन्होंने ब्रह्मसमाज की स्थापना की। 1831 में एक विशेष कार्य के सम्बंध में दिल्ली के मुग़ल सम्राट के पक्ष का समर्थन करने के लिए इंग्लैंड गये। वे उसी कार्य में व्यस्त थे कि ब्रिस्टल में 27 सितंबर, 1833 को उनका देहान्त हो गया। उन्हें मुग़ल सम्राट कबर द्वितीय की ओर से राजा की उपाधि दी गयी। Indira Gandhi Biography in Hindi पत्रकारिताराजा राममोहन राय ने ‘ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन’, ‘संवाद कौमुदी’, मिरात-उल-अखबार ,(एकेश्वरवाद का उपहार) बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया। बंगदूत एक अनोखा पत्र था। इसमें बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था। उनके जुझारू और सशक्त व्यक्तित्व का इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि सन् 1821 में अँग्रेज जज द्वारा एक भारतीय प्रतापनारायण दास को कोड़े लगाने की सजा दी गई। फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। इस बर्बरता के खिलाफ राय ने एक लेख लिखा। महान समाज सुधारक और ब्रह्म समाज की स्थापना
Maurya Samrajya का परिचय (Introduction to Maurya Dynasty) राजा राम मोहन राय ने मतभेद हुआ तो घर त्यागा
Mahatma Gandhi Essay in Hindi सती प्रथा के खिलाफ आंदोलन
हरिवंश राय बच्चन: जीवन शैली, साहित्यिक योगदान, प्रमुख रचनाएँ राजा राम मोहन राय के साहित्यिक कार्य
साहस और शौर्य की मिसाल छत्रपति शिवाजी महाराज राजा राम मोहन राय की मृत्युवर्ष 1830 में राजा राम मोहन राय अपनी पेंशन और भत्ते के लिए मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के राजदूत बनकर यूनाइटेड किंग्डम गए थे। 27 सितंबर 1833 को ब्रिस्टल के पास सटापलेटोन में मैनिजाइटिस के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। जानिए साइना नेहवाल की सफलता के पीछे का संघर्ष राजा राम मोहन राय के बारे में कुछ रोचक तथ्य
राजा राम मोहन राय पर निबंधप्रस्तावनाराजाराममोहन राय आधुनिक भारत के जनक ही नहीं थे, वरन् वे नये युग के निर्माता थे । वे आधुनिक सचेत मानव थे और नये भारत के ऐसे महान् व्यक्तित्व थे, जिन्होंने पूर्व एवं पश्चिम की विचारधारा का समन्वय कर सौ वर्षों से सोये हुए भारत को जागृत किया। वे इस समाज एवं शताब्दी के ऐसे निर्माता थे, जिन्होंने उन सब बाधाओं को दूर किया, जो हमारी प्रगति के मार्ग में बाधक थीं । वे मानवतावाद के सच्चे पुजारी थे । उन्हें पुनर्जागरण व सुधारवाद का प्रथम प्रर्वतक कहा जाता है । प्रारम्भिक जीवनराजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों के काम तथा प्लेटो और अरस्तू के कार्यों के अरबी अनुवाद का अध्ययन किया था। उनके तीन विवाह हुए थे; क्योंकि दुर्भाग्यवश उनकी पूर्व पत्नियों का देहावसान हो गया था । 16 वर्ष की अवस्था में उन्होंने प्रचलित अन्धविश्वासों पर एक निबन्ध लिखा था । राजाराममोहन राय बहुविवाह एवं बालविवाह के कट्टर विरोधी थे । वे ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजस्व विभाग में नौकरी करते थे । सन् 1809 में कलेक्टर के दीवान बन गये । जब वे रंगपुर में नियुक्त थे, तो वहां उन्हें अनेक धर्मावलम्बी मिले, जिनके बीच विचार गोष्ठियों के आधार पर ब्रह्मसमाज की नींव पड़ी । 1812 में उन्होंने सती प्रथा को समाप्त करने का संकल्प लिया । 1814 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया । राजाराममोहन राय हिन्दू धर्म में मूर्तिपूजा, बहुविवाह, बाल विवाह, सती प्रथा, अनमेल विवाह के बोलबाले से काफी दुखी थे । इस बीच उन्होंने वेदान्त-सूत्र उपनिषद का बंगला अनुवाद किया । 1823 में हिन्दू नारी के अधिकारों का हनन नामक पुस्तक लिखी, जिसमें यह मांग की गयी कि हिन्दू नारी को अपने पति की सम्पत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए । 1827 में वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध वजसूचि नामक पुस्तक लिखी । राजाराममोहन राय ने हिन्दू कॉलेज की स्थापना की । इस कार्य में उन्हें सर एडवर्ड व डेविड हाल तथा हरिहरानन्द का साथ भी मिला । यद्यपि हरिहरानन्द संन्यासी थे, तथापि उन्होंने हिन्दू समाज के लिए बहुत कुछ किया । राजाराममोहन राय के धार्मिक विचारों को चुनौती देने के विचार से मद्रास के राजकीय कॉलेज के प्रधानाध्यापक शंकरशास्त्री ने राजाराममोहन को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा । शास्त्रार्थ में मोहनराय की जीत हुई । अपने शास्त्रार्थ सम्बन्धी विचारों को उन्होंने अंग्रेजी, हिन्दी, बंगला तथा संस्कृत भाषाओं में प्रकाशित किया । ईसाई धर्म व उनकी मिशनरियों के कार्यों की आलोचना करने के फलस्वरूप उन्हें बाइबिल का अध्ययन कर उनसे शास्त्रार्थ करना पड़ा । इसके लिए उन्होंने यूनानी, हिब्रू, लेटिन भाषाएं भी सीखीं। सन् 1821 में उन्होंने बाइबिल के न्यू टेस्टा में वर्णित धार्मिक चमत्कारों को मानने से इनकार कर दिया । इसके लिए उन्हें काफी अपशब्द सुनने को मिले, किन्तु उन्होंने अपना मानसिक सन्तुलन नहीं खोया । राजाराममोहन राय के विचारों से पादरी विलियम काफी प्रभावित थे । उनके सद्प्रयत्नों से ही उन्होंने सती प्रथा का अन्त किया । यद्यपि इस मार्ग में उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा । बैंटिंग ने 4 दिसम्बर 1829 को कानून बनाकर सती प्रथा पर रोक लगा दी । इस कानून से कट्टरपन्धियों में हलचल-सी मच गयी । कोर्ट में मुकदमे दायर हुए, पक्ष-विपक्ष की दलीलों के बीच मोहनराय को अपमान के कड़वे घूंट भी पीने पड़े । राजाराममोहन राय ने प्रगतिशील ब्रह्मसमाज की स्थापना की । इस कार्य में उनके प्रमुख साथी थे, केशवचन्द्रसेन । राजाराममोहन राय के धार्मिक, सामाजिक, शैक्षिक सुधार कार्यराजाराममोहन राय के धार्मिक सुधार कार्यों में मूर्तिपूजा तथा कर्मकाण्ड का विरोध रहा है । हिन्दू धर्म की धार्मिक कुप्रथाओं एवं अन्धविश्वासों का उन्होंने जमकर विरोध किया । वे एक समाजसुधारक थे, अत: उन्होंने उन सब कुरीतियों का विरोध किया, जो मानवता के विरुद्ध थीं । इनमें सती प्रथा, अनमेल विवाह, बहुविवाह, जातिप्रथा का विरोध था । उनके राजनैतिक सुधार कार्यों में प्रेस व विचार सम्बन्धी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, प्रशासन सम्बन्धी सुधार हैं, जिनमें जमींदारों से लगान की दरें कम कराया जाना, कृषिसुधार, भारत सरकार का प्रशासनिक व्यय कम करना है । एक शिक्षाविद की तरह मोहनराय ने ग्रीक, हिब्रू, अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत, अरबी, फारसी व गुरुमुखी का ज्ञान भी प्राप्त किया । उन्होंने 1816-17 में अंग्रेजी स्कूल की भी स्थापना की । उपसंहारराजाराममोहन राय को आधुनिक युग का निर्माता, आधुनिक भारत का जनक इसलिए कहा जाना उचित है; क्योंकि उन्होंने देश व जाति-उत्थान के लिए महान कार्य किये । मानवता के लिए किये गये उनके कार्यों के लिए भारत उनका ऋणी रहेगा । टैगोर ने ठीक ही कहा है- ”राजाराममोहन राय इस शताब्दी के महान् पथ निर्माता हैं । उन्होंने भारी बाधाओं को हटाया है, जो हमारी प्रगति को रोकती हैं । उन्होंने हमको मानवता के विश्वव्यापी सहयोग के वर्तमान युग में प्रवेश कराया है । आशा करते हैं कि आपको Ram Mohan Roy in Hindi का ब्लॉग अच्छा लगा होगा। यदि आप विदेश में पढ़ाई करने का अपना सपना पूरा करना चाहते हैं, तो आज ही 1800 572 000 पर कॉल करके हमारे Leverage Edu के विशेषज्ञों के साथ 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें। वे आपको उचित मार्गदर्शन के साथ आवेदन प्रक्रिया में भी आपकी मदद करेंगे। राजा राममोहन राय कौन से समाज के थे?ब्रह्म समाज भारत का एक सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन था जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। इसके प्रवर्तक, राजा राममोहन राय, अपने समय के विशिष्ट समाज सुधारक थे। 20 अगस्त,1828 में ब्रह्म समाज को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था।
राजा राम मोहन राय का समाज सुधार में क्या योगदान था?राजा राममोहन राय द्वारा सामाजिक योगदान
राजा राम मोहन राय ने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीले पदार्थों के इस्तेमाल के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने बाल विवाह, बहुविवाह, महिलाओं की निरक्षरता और विधवाओं की निम्न स्थिति पर प्रहार किया। उन्होंने उस समय हिंदू समाज की कथित बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
1 राजा राममोहन राय कौन थे?राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। राजा राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषाओं में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों की रचनाओं तथा प्लेटो एवं अरस्तू की पुस्तकों के अरबी संस्करण का अध्ययन किया।
राजा राममोहन राय कौन थे उन्हें समाज सुधारक क्यों कहा जाता है?राजा राम मोहन राय एक भारतीय सामाजिक-शिक्षा सुधारक थे, जिन्हें “आधुनिक भारत के निर्माता” और “आधुनिक भारत के पिता” और “बंगाल पुनर्जागरण के पिता” के नाम से भी जाना जाता था। जिन्होंने 18 वीं शताब्दी के दौरान समाज में प्रचलित सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में बहुत योगदान दिया।
|