पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम में क्या अंतर है? Show पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम में अंतर जानने से पहले हमलोग यह जानते हैं कि पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम क्या होता है, इसकी परिभाषा क्या है एवं इसकी उपियोगिता एवं महत्त्व क्या है? तो चलिए हमलोग एक-एक करके पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम के बारे में जानते हैं। पाठ्यचर्या (Curriculum) :-पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम में क्या अंतर है?Curriculum(पाठ्यचर्या) का संबंध सीखने वाले से होता है, इसका मतलब का पाठ्यचर्या का संबंध सिखाने वाले से ही होता है। यह दोनों (सीखने वाले और सिखाने वाले )को जोड़ने वाले एक कड़ी है।पाठ्यचर्या की सहायता से एक शिक्षक यह पता लगाता है कि क्या पढ़ना- पढ़ाना है, किन क्रियाओं में भाग लेना है? इन सब जानकारी के लिए छात्र और अध्यापक दोनों के लिए पाठ्यचर्या की आवश्यकता होती है। यदि आप CTET या TET EXAMS की तैयारी कर रहें हैं तो RKRSTUDY.NET पर TET का बेहतरीन NOTES उपलब्ध है।NOTES का Link नीचे दिया गया है :-
पाठ्यक्रम(Syllabus):-पाठ्यक्रम द्वारा शिक्षण और उससे संबंधित सभी कार्य सुनिश्चित एवं पूर्व निर्धारित हो जाते हैं।पाठ्यक्रम से शिक्षक का कार्य सरल हो जाता है। उन्हें ज्ञात हो जाता है कि छात्रों को क्या पढ़ाना है। तथा कितने समय में पढ़ाना है और किन-किन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रयत्न करना है। पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम में अंतर
Curriculum Syllabus 1 पाठ्यक्रम शिक्षा का व्यापक प्रत्यय है। पाठ्यक्रम का विकास सतत् प्रक्रिया है।1 पाठ्यवस्तु संकुचित शिक्षण की रूप रेखा है। परन्तु पाठ्यक्रम का विशिष्ट रूप हैं। 2 पाठ्यक्रम का विकास सामाजिक आवश्यकता, मानवीय गुणों तथा सामाजिक दर्शन पर आधारित होता है तथा इसमें राष्ट्रीय विकास को भी महत्व दिया जाता है। 2 पाठ्यवस्तु का प्रारूप छात्रों के स्तर रुचियों और विकासक्रम पर आधारित होता है। पाठ्यवस्तु को चढ़ावक्रम तथा पूर्व ज्ञान को महत्व दिया जाता है। 3 पाठ्यक्रम की प्रकृति सैद्धान्तिक अधिक तथा व्यवहारिकता कम होती है। इसका तार्किक आकलन किया जाता हैं। 3 पाठ्यवस्तु स पाठ्यक्रम व्यवहारिक तथा उपयोगी बनाया जाता है। परीक्षा प्रश्न पत्र बनाने का आधार विषयवस्तु होती है। 4 पाठ्यक्रम के विकास में शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों तथा लक्ष्यों को महत्व दिया जाता है। इनकी प्राप्ति की अवधि सम्पूर्ण सत्र होती है तथा शिक्षण प्रक्रिया भी पूर्ण सत्र की है। 4 पाठ्यवस्तु के शिक्षण, उद्देश्य विशिष्ट तथा व्यवहारिक होते हैं। इनकी शिक्षण कालांश में प्राप्ति कर ली जाती है। 5 पाठ्यक्रम में विद्यालय प्रबन्धन की प्रणाली पर विचार करके व्यवस्था की जाती है। विद्यालय परिसर पाठ्यक्रमों के अनुरूप होते हैं। 5 पाठ्यवस्तु के विशिष्ट प्रकरण से कक्षा शिक्षण विधियों, प्रविधियों तथा सूत्रों का निर्धारण करके क्रियान्वयन, प्रस्तुतीकरण तथा प्रदर्शन किया जाता है। 6 पाठ्यक्रम में छात्रों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावात्मक गुणों के विकास को महत्व दिया जाता है। 6 पाठ्यवस्तु में प्रकरण सम्बन्धी ज्ञान, कौशल एवं रूचियों को महत्व दिया जाता है। यह पाठ्यक्रम विकास में सहायक होते हैं। 7 पाठ्यक्रम विकास का सम्बन्ध शिक्षा के विकास तथा शिक्षाशास्त्र से अधिक सम्बन्धित होता है। 7 पाठ्यवस्तु का निर्धारण तथा क्रियान्वयन शिक्षाशास्त्र से अधिक सम्बन्धित होता है, परन्तु पाठ्यक्रम का व्यवहारिक रूप ही है। 8 पाठ्यक्रम के चार तत्व-शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण आयाम, विधियाँ, परीक्षण की प्रणाली तथा पृष्ठपोषण होते हैं। इसमें प्रबन्धक, प्रशासक, प्राचार्य, शिक्षकों तथा छात्रों आदि सभी का योगदान होता है। 8 पाठ्यवस्तु के प्रकरणों के अनुसार विशिष्ट ज्ञानात्मक, क्रियात्मक तथा भावात्मक शिक्षणध विधियाँ, प्रविधियाँ, सूत्र, मौखिक, प्रयोगात्मक व लिखित परीक्षणों तथा उपचारात्मक प्रविधियाँ को सम्मिलित किया जाता है। 9 पाठ्यक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कक्षागत क्रियाओं तथा कक्षा से बाहर की क्रियाओं का मूल्यांकन तथा आकलन किया जाता है। नैतिक गुणों के विकास को महत्व दिया जाता है। इसमें पाठ्यक्रम की उपयोगिता व सार्थकता का आकलन तार्किक ढंग से किया जाता है। 9 पाठ्यवस्तु के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कक्षागत क्रियाओं को ही महत्व दिया जाता है। निबन्धात्मक, वस्तुनिष्ठ, मौखिक तथा प्रयोगात्मक परीक्षाओं को प्रयुक्त किया जाता है। निदानात्मक परीक्षाओं तथा उपचारी व्यक्तिगत शिक्षण का भी उपयोग किया जाता है। 10 पाठ्यक्रम के विकास की प्रक्रिया समाज के भावी नागरिक तैयार करने के लिए की जाती है। सामाजिक परिवर्तन के अनुरूप पाठ्यक्रम का विकास भी सतत् होता रहता है। 10 पाठ्यवस्तु की रूपरेखा पाठ्यक्रम के अनुरूप तैयार की जाती है। परन्तु पाठ्यवस्तु के क्रियान्वयन से तात्कालिक गुणों का विकास होता है। परन्तु इनका सम्बन्ध छात्र के भावी जीवन के विकास से होता है। 11 पाठ्यक्रम के विकास को शिक्षा व्यवस्था, परीक्षा प्रणाली, सामाजिक परिवर्तन, शासन प्रणाली, अध्ययन समितियाँ (Board of Studies) प्रभावित करती है। 11 पाठ्यवस्तु का विषय विशेषज्ञ, अध्ययन समिति, विद्यालय प्रबन्धन, शिक्षकों की योग्यता तथा छात्रों की आवश्यकता तथा उपयोगिता प्रभावित करती है। 12 पाठ्यक्रम की प्रकृति शिक्षक केन्द्रित छात्र केन्द्रित, अनुभव केन्द्रित, कार्य-केन्द्रित तथा मूल केन्द्रित आदि होती है। 12 पाठ्यवस्तु की प्रकृति का निर्धारण पाठ्यक्रम करता है। पाठ्यक्रम की प्रकृति इसे भी प्रभावित करती है उसी के अनुरूप शिक्षण उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, प्रविधियों तथा सूत्रों का उपयोग किया जाता है। पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु में क्या अंतर है?पाठ्यक्रम शब्द का प्रयोग व्यापक रूप में किया जाता हैं जबकि पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु शब्द का प्रयोग संकुचित रूप में किया जाता हैं। जहाँ पाठ्यक्रम का आधार समाज और विद्यालय प्रशासन होता हैं वही पाठ्यवस्तु या पाठ्यचर्या का आधार शिक्षण के दौरान पढ़ाई जाने वाली विषय-वस्तु होती हैं।
पाठ्यवस्तु का अर्थ क्या है?शर्मा के अनुसार -''पाठ्यवस्तु किसी विद्यालयी या शैक्षिक विषय की उस विस्तृत रूपरेखा से है जिसमें विद्यालय शिक्षक, शिक्षार्थी एवं समुदाय के उत्तरदायित्वों के निर्वहन के साथ-साथ छात्र के सर्वागीण विकास के अध्ययन तत्व समाहित होते हैं।''
पाठ्यवस्तु कैसे होती है?पाठ्यवस्तु का अर्थ एवं परिभाषा
इस तरह पाठ्यवस्तु के अंतर्गत किसी विषय-वस्तु का विवरण शिक्षण हेतु तैयार किया जाता है जिसे शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है। एक विद्वान के अनुसार पाठ्यवस्तु पूरे शैक्षिक सत्र विभिन्न विषयों मे शिक्षक द्वारा छात्रों को दिये जाने वाले ज्ञान की मात्रा के विषय मे निश्चित जानकारी पेश करता है।
पाठ्यक्रम तथा पाठ्यचर्या से क्या तात्पर्य है?पाठ्य का अर्थ है 'पढ़ने योग्य' अथवा 'पढ़ाने योग्य' और चर्या का अर्थ है नियमपूर्वक अनुसरण'। इस प्रकार पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ-- पढ़ने योग्य (सीखने योग्य) अथवा पढ़ाने योग्य (सिखाने योग्य) विषयवस्तु और क्रियाओं का नियमपूर्वक अनुसरण। पाठ्यचर्या को अंग्रेजी मे 'करीक्यूलम' (Curriculum) कहा जाता है।
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