AP State Board Syllabus AP SSC 10th Class Hindi Textbook Solutions Chapter 4 कण-कण का अधिकारी Textbook Questions and Answers. Show 10th Class Hindi Chapter 4 कण-कण का अधिकारी Textbook Questions and AnswersInText Questions (Textbook Page No. 19) प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. InText Questions (Textbook Page No. 20) प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6.
अर्थव्राह्यता-प्रतिक्रिया अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. आ) कविता पढकर नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. इ) निम्नलिखित भाव से संबंधित कविता की पंक्तियाँ चुनकर लिखिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. ई) नीचे दिया गया पद्यांश पढ़िए । प्रश्नों के उत्तर दीजिए। क़दम – क़दम बढ़ाए जा, सफलता तू पाये जा, प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता अ) इन प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में लिखिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. आ) कवि ने मजदूरों के अधिकारों का वर्णन कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए। 1) कवि कहते हैं कि मेहनत और भुज बल ही मानव समाज के एक मात्र अधार हैं। मेहनत ही सफलता की कुंजी है। मेहनत करनेवाले व्यक्ति कभी नहीं हारते। वे हमेशा सफल होते
हैं। सारा संसार उनका आदर करता है। उनके सम्मुख पृथ्वी और आकाश भी झुक जाते हैं। प्रकृति के कण – कण पर मानव का ही अधिकार है। खासकर श्रम करनेवाले व्यक्तियों द्वारा ही संपत्ति संचित होती है। श्रम से बढ़कर कोई मूल्यवान धन नहीं है। अतः श्रम करनेवाले मज़दूरों को कोई अभाव नहीं रहनी है। उनको कभी पीछे छोड़ना नहीं चाहिए। सारी संपत्ति पर सबसे पहले उनको ही सुख पाने का अधिकार है। यह अक्षरशः सत्य है। तभी मानवजाति सुख समृद्धियों से अक्षुण्ण रह सकती है। विशेषता : इस कविता शक्ति के बारे में बताया गया है। इ) नीचे दिये गये प्रश्नों के आधार पर सृजनात्मक कार्य कीजिए। | 1. कविता में समान अधिकारों की बात की गयी है। ‘समानता” से संबंधित कोई घटना या कहानी अपने शब्दों में
लिखिए। उसके दोनों लडके बडे हो गये। उन दोनों लडकों की शादी दो खूबसूरत लडकियों से धूम-धाम से की। कुछ सालों के बाद लडकी की शादी भी एक बड़ी होटेल के मेनेजर से करवाया। जब वह बूढ़ा हो गया तब अपने नौ एकड भूमि को अपने तीनों बच्चों को समान रूप से तीन – तीन . – तीन एकड देकर बाँट दिया। उसके दोनों बेटों को यह अच्छा नहीं लगा। उनकी राय में स्त्री को पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। इसलिए वे अपनी बहिन और बाप को खूब कष्ट देने लगे। विवश होकर लडकी ने अदालत में न्याय के लिए मुकद्दमा पेश किया तो अदालत में उसकी जीत हुई। भारत संविधान के अनुसार स्त्री – पुरुष बिना भेद – भाव पिता की संपत्ति के समान अधिकारी हैं। स्त्रियों को भी पुरुषों के साथ समान अधिकार प्राप्त हुए हैं। शासन की दृष्टि में स्त्री – पुरुषों को समान अधिकार हैं। पिता और बहिन दोनों को कष्ट देने के कारण दोनों लडकों को पाँच – पाँच साल कारावास की सज़ा दी गयी। नीति : अपने पिता की संपत्ति पर जितना अधिकार बेटों का है उतना ही अधिकार बेटियों का भी हैं। 2. कहानी के मुख्यांश
3. मूल शब्द 4. चयनित शब्द 5. संदेश या सार स्त्री को भी पुरुषों के साथ ही पिता की संपत्ति में (पर) समान अधिकार है। नारे
ई) ‘नर समाज का भाग्य एक है, वह श्रम, वह भुजबल है।’ जीवन की
सफलता का मार्ग श्रम है। अपने विचार व्यक्त कीजिए।
भाषा की बात अ) कोष्टक में दी गयी सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए। प्रश्न 1. पर्याय शब्द प्रश्न 2. वाक्य प्रयोग प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. आ) सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए। प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. इ) इन्हें समझिए। सूचना के अनुसार कीजिए। प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. ई) नीचे दिया गया उदाहरण समझिए। उसके अनुसार दिये गये वाक्य बदलिए। जैसे – जिसने श्रम – जल दिया उसे पीछे मत रह जाने दो। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. परियोजना कार्य विश्व श्रम दिवस (मई दिवस) के बारे में जानकारी इकट्ठा कीजिए। कक्षा में उसका प्रदर्शन कीजिए। मई दिवस के आयोजन के पीछे मज़दूरों के लम्बे संघर्ष व आंदोलन और सफलता की लम्बी दास्तान है। यह कहानी 19 वीं सदी की है जब अमेरिका में मजदूरों पर गोलियाँ बरसाई गई थीं। तथा बड़ी संख्या में निर्दोष मज़दूर मारे गये थे और जब मज़दूरों की काम के निश्चित घंटों की मांग पूरी हुई थी तब से उसी संघर्ष और उन्हीं मजदूरों की शहादत की याद में पूरे विश्व में मई दिवस मनाया जाने लगा। इस संघर्ष की शुरुआत 1838 में हुई थी । उन दिनों अमेरिका सहित तमाम यूरोपीय देशों में कारखानों में मज़दूरों के लिए काम का निश्चित समय निर्धारित नहीं था। मज़दूरों से इतना काम लिया जाता था कि अक्सर मजदूर बेहोश होकर गिर पड़ते थे। यदा – कदा उसके विरुद्ध आवाज़ भी उठी पर लगभग दो दशक तक कारखानों के मालिकों का यही रवैया रहा। इस कारण मज़दूरों का धैर्य धीरे – धीरे चुकने लगा तथा उन्होंने संगठित होकर शोषण के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू कर दी। अमेरिका की नैशनल लेबर यूनियन ने अगस्त 1866 में अपना अधिवेशन में पहली बार यह माँग रखी कि मज़दूरों के लिए दिन में सिर्फ आठ घंटे काम के रखे जाएँ। यूनियन की इस घोषणा से मज़दूरों के संघर्ष को बल मिला। धीरे – धीरे अमेरिका सहित अन्य देशों में भी यह माँग जोर पकड़ने लगी। 1886 को 3 मई के दिन शिकागो शहर में लगभग 45000 मज़दूर एक साथ सड़कों पर निकल आए। पुलिस ने हल्की झड़प के फौरन बाद मज़दूरों पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी जिससे तत्काल 8 मज़दूर मारे गये और अनेक घायल हो गए। भीड़ में से किसी ने पुलिस पर बम फेंक दिया जिससे एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई तथा कुछ घायल हो गए। इससे पुलिस वालों का आक्रोश बढ़ गया और उन्होंने प्रदर्शनकारियों को गोलियों से छलनी कर दी। आंदोलनकारी नेताओं को उम्र भर की सज़ा दी गई और कुछ को फाँसी पर लटका दिया गया। लेकिन इतना कुछ होने पर भी यह आंदोलन और तेज़ होता गया। 14 जुलाई 1889 को अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी मज़दूर कांग्रेस की स्थापना हुई। इसी दिन इसने काम के 8 घंटे की माँग को दोहरा दिया। अपनी माँग जारी रखने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी मज़दूर कांग्रेस ने मई 1890 को विश्वभर में ‘मज़दूर दिवस’ मनाने का आह्वान दिया। कण-कण का अधिकारी Summary in EnglishIf one earns money and accumulates it by immoral and vicious ways, the other enjoys it on the name of fortune by deceiving him. The fortune of the human society is nothing but toil i.e, hard work. This earth, the sky, and the abyss all of these will be modest to the hard work and salute it. He who works hard should not be lagged behind. He alone should be allowed to have comforts in this triumphant nature. What is available in this nature is nothing but the human being’s money. O Dharmaraja! The people are the masters of every particle of it. They who work hard alone have the right to enjoy it. कण-कण का अधिकारी Summary in Teluguఒక మనిషి పాపము చేసి ధనమును సంపాదించి ప్రోగుచేస్తే దాన్ని మరొకడు అదృష్టము (భాగ్యవాదము) అనే ముసుగులో అనుభవిస్తున్నాడు. శ్రమ, భుజబలమే మానవ సమాజ భాగ్యము (అదృష్టము). దాని ముందు భూమి, ఆకాశము కూడా తలవంచుతాయి. చెమటోడ్చి శ్రమపడేవారిని ఎన్నడూ నిరాశపరచకూడదు. (వెనకబడి ఉండనివ్వకూడదు) జయించబడిన ప్రకృతి నుండి ముందుగా వారినే సుఖాన్ని అనుభవించనివ్వాలి. ఆ ప్రకృతిలో లభించే సంపద అంతా మానవునిదే. దాని అణువణువు మీద మానవునికే అధికారము ఉన్నది. अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता 2 Marks Questions and Answers निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो या तीन वाक्यों में लिखिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. रचनाएँ : उर्वशी, रेणुका,
कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, रसवंती आदि। अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता 4 Marks Questions and Answers निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह पंक्तियों में लिखिए। प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
प्रश्न 5.
प्रश्न 6.
प्रश्न 7.
प्रश्न 8.
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता 8 Marks Questions and Answers निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर आठ या दस पंक्तियों में लिखिए। प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3. सदैव आत्म विश्वास के साथ निरंतर श्रम करते हुए (सर्वोच्च) सर्वश्रेष्ठ स्थान को प्राप्त करता है। श्रम करने वाला ही काल्पनिक जगत को साकार रूप देने में सक्षम होता है। इसलिए जो श्रम करता है वही प्रकृति के हर एक कण का अधिकारी है। मनुष्य का महान गुण है श्रम करना। श्रम करने से यश, संपत्ति, जीवन यापन के लिए आवश्यक सुख – सुविधाएँ, इज्जत (आदर), गौरव, मान – सम्मान आदि प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति कार्य को पूर्ण करने के लिए श्रम करता है वही सुख पाने का सच्चा अधिकारी है। श्रम करनेवाला आस्था के साथ प्रगति पथ पर बढ़ता ही चला जाता है। यह भाग्य पर विश्वास न करके कर्म पर श्रम पर विश्वास करता है। श्रम करनेवाला हर कठिनाई को अपने परिश्रम से अपने अनुकूल बना लेता है। इसलिए श्रम का बड़ा महत्व है। श्रम ही सफलता की कुंजी है। जिसके सम्मुख पृथ्वी भी झुक जाती है। प्रश्न 4. प्रश्न 5. कवि कहते हैं कि नर समाज का भाग्य श्रम ही है । वह भुजबल है | श्रमिक के सम्मुख पृथ्वी और आकाश झुक जाते हैं । नतमस्तक हो जाते हैं। कवि श्रम – जल देनेवाले को पीछे मत रहजाने को कहते हैं । वे कहते हैं कि विजीत प्रकृति से पहले श्रमिक को ही सुख पाने देना चाहिए | आखिर कवि बताते हैं कि इस प्रकृति में जो कुछ न्यस्त है वह मनुजमात्र का धन है । हे धर्मराज उस के कण – कण का अधिकार जन – जन हैं | मतलब यह है कि जो श्रम करेगा वही कण – कण का अधिकारी है। संदेश : जो श्रम करेगा वही कण – कण का अधिकारी है। प्रश्न 6.
प्रश्न 7.
प्रश्न 8. एक मनुष्य के श्रम का फल दूसरा व्यक्ति अनुचित रूप से अर्जित करता है। भाग्यवाद के नाम पर पूँजीवादी उस श्रम धन को भोगता है। छल, कपट से पाप के बल से धन संचित करता है। शारीरिक श्रम न करना पूँजीवाद वाद की पहचान माना जाता है। वास्तव में प्राकृतिक संपदा सब की है न कि कुछ ही लोगों की। श्रमिक ही प्राकृतिक संपदा का सर्व प्रथम अधिकारी है। लेकिन भाग्यवाद के बल पर पूँजीवादी श्रमिकों के श्रम का फल भोग रहे हैं। उनकी नजर में ये श्रमिक सिर्फ मेहनत करने के लिए पैदा हुए हैं। इसलिए यथा शक्ति श्रमिकों के अधिकार दूर करके उनको पीछे पड़े रहने की हालत पैदा करते हैं। नादान श्रमिक अपना भाग्य इतना ही समझकर उनके करतूतों की शिकार बन रहे हैं। अविद्या, ज्ञान की कमी से श्रमिक कष्ट झेल रहे हैं। इसी कारण से अपने अधिकार और सुख प्राप्त करने में वे पीछे रह जाते हैं। परिश्रम करनेवाले का स्तर हमारे मानव समाज में निम्न ही रह जाता है। श्रम करनेवाला कभी सुख सुविधाओं की ओर ध्यान देता ही कम है। प्रश्न 9.
प्रश्न 10. कवि कहते हैं कि एक मनुष्य अर्थ पाप के बल पर संचित करता है तो दूसरा भाग्यवाद के छल पर उसे भोगता है। कवि कहते हैं कि नर समाज का भाग्य श्रम ही है । वह भुजबल है | श्रमिक के सम्मुख पृथ्वी और आकाश झुक जाते हैं । नतमस्तक हो जाते हैं । कवि श्रम – जल देनेवाले को पीछे मत रहजाने को कहते हैं । वे कहते हैं कि विजीत प्रकृति से पहले श्रमिक को ही सुख पाने देना चाहिए | आखिर कवि बताते हैं कि इस प्रकृति में जो कुछ न्यस्त है वह मनुजमात्र का धन है । हे धर्मराज उस के कण – कण का अधिकार जन – जन हैं । मतलब यह है कि जो श्रम करेगा वही कण – कण का अधिकारी है। |