भारतीय संविधान की मूल संरचना (या सिद्धांत), केवल संवैधानिक संशोधनों पर लागू होती है जो यह बताती है कि संसद, भारतीय संविधानके बुनियादी ढांचे को नष्ट या बदल नहीं सकती है। संविधान की मूल संरचना (सिद्धांत) के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय के कई महत्वपूर्ण निर्णय रहे हैं। संविधान, संसद और राज्य विधान मंडलों या विधानसभाओं को उनके संबंधित क्षेत्राधिकार के भीतर कानून बनाने का अधिकार देता है। Show
संविधान, संसद और राज्य विधान मंडलों या विधानसभाओं को उनके संबंधित क्षेत्राधिकार के भीतर कानून बनाने का अधिकार देता है। संविधान में संशोधन करने के लिए बिल संसद में ही पेश किया जा सकता है, लेकिन यह शक्ति पूर्ण नहीं है। यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून संविधान के साथ न्यायसंगत नहीं है तो उसके पास (सुप्रीम कोर्ट) इसे अमान्य घोषित करने की शक्ति है। इस प्रकार, मूल संविधान के आदर्शों और दर्शनों की रक्षा करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना सिद्धांत को निर्धारित किया है। सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान के बुनियादी ढांचे में परिवर्तन या उसे नष्ट नहीं कर सकती है। Image source: Google, see: Content Credit
प्रस्तावना के मुख्य शब्द – 1. संप्रभुतासंप्रभु शब्द का आशय है कि न तो भारत किसी अन्य देश पर निर्भर है, न किसी देश का डोमिनियन है, इसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं है, और वह अपने मामलों (आंतरिक व बाहरी) का निवारण करने के लिए स्वतंत्र है। 2. समाजवादवर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए इस शब्द का आशय भारतीय समाजवाद लोकतांत्रिक समाजवाद है जो मिश्रित अर्थव्यवस्था में आस्था रखता है। भारतीय समाजवाद मार्क्सवाद और गांधीवाद का मिला जुला रूप है, जिसमें गांधीवादी समाजवाद की तरफ ज्यादा झुकाव है। 3. धर्मनिरपेक्षधर्मनिरपेक्ष शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया। धर्मनिरपेक्ष शब्द का आशय है कि राज्य सभी धर्मों का समान रूप से रक्षा करेेगा व स्वयं किसी धर्म को राज्य का धर्म नहीं मानेगा। 4. लोकतांत्रिकभारतीय संविधान में प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था है। प्रस्तावना में लोकतांत्रिक शब्द का वृहद अर्थों मेंं प्रयोग हुआ है जिसमें न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है। भारतीय लोकतंत्र में सर्वोच्च शक्ति यहां की जनता में निहित है। 5. गणतंत्रइसका आशय है कि देश का प्रमुख अर्थात राष्ट्रपति चुनाव के जरिए आता है और निश्चित समय के लिए चुना जाता है। राजनीतिक संप्रभुता लोगों के हाथों में होती है और कोई विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होता है। 6. न्यायप्रस्तावना में न्याय तीन भिन्न रूपों मेंं शामिल है- सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक। इनकी सुरक्षा मौलिक अधिकार और नीति निदेशक सिद्धांतों के उपबंधों के जरिए की जाती है। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के इन तत्वों को रूसी क्रांति (1917) से लिया गया है। 7. स्वतंत्रतास्वतंत्रता का अर्थ है – लोगों की गतिविधियों पर किसी प्रकार की रोकटोक की अनुपस्थिति तथा साथ ही व्यक्ति के विकास के लिए समान अवसर प्रदान करना। हमारी प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति (1789 – 1799) से लिया गया है। 8. समतासमता का अर्थ समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकार की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करना है। बुनियादी संरचना के विकास"बेसिक स्ट्रक्चर (बुनियादी ढांचा)" शब्द का उल्लेख भारत के संविधान में नहीं किया गया है। लोगों के बुनियादी अधिकारों और संविधान के आदर्शों और दर्शन की रक्षा के लिए समय-समय पर न्यायपालिका के हस्तक्षेप के साथ यह अवधारणा धीरे-धीरे विकसित हुयी।
1973 में, केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार के मामले मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने गोलकनाथ मामले में अपने निर्णय की समीक्षा द्वारा 24 वें संविधान संशोधन अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट कहा कि संसद को संविधान के किसी भी प्रावधान में संशोधन करने की शक्ति है लेकिन ऐसा करते समय संविधान का मूल ढांचा बना रहना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना की कोई भी स्पष्ट परिभाषा नहीं दी। यह कहा कि "संविधान के मूल ढांचे को एक संवैधानिक संशोधन द्वारा भी निरस्त नहीं किया जा सकता है"। फैसले में न्यायाधीशों द्वारा सूचीबद्ध की गयी संविधान की कुछ बुनियादी विशेषताएं निम्नवत् हैं: संविधान की बुनियादी विशेषताएं इस प्रकार हैं:
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा है. मात्र प्रस्तावना के अवलोकन से ही स्पष्ट हो जाता है कि स्वतंत्र भारत के नागरिकों द्वारा किस तरह के संविधान का निर्माण किया गया है. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य सिद्धांत क्या है?प्रस्तावना में उन उद्देश्यों का उल्लेख किया जाता है जिनकी प्राप्ति के लिए कोई अधिनियम पारित किया जाता है । न्यायाधिपति श्री सुब्बाराव के शब्दों में "प्रस्तावना किसी अधिनियम के मुख्य आदर्शों एवं आकांक्षाओं का उल्लेख करती है" । (देखिए गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य ए. आई.
संविधान के मूलभूत सिद्धांत कौन कौन से हैं?इसके बाद से मूलभूत संरचना सिद्धांत की व्याख्या इस तरह से की गई जिसमें संविधान की सर्वोच्चता, कानून का शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य, सरकार की संसदीय प्रणाली को शामिल माना गया.
भारतीय संविधान के आधारभूत ढाँचे से आप क्या समझते हैं?संविधान की आधारभूत संरचना का तात्पर्य संविधान में निहित उन प्रावधानों से है, जो संविधान और भारतीय राजनीतिक और लोकतांत्रिक आदर्शों को प्रस्तुत करता है। इन प्रावधानों को संविधान में संशोधन के द्वारा भी नहीं हटाया जा सकता है।
भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्य कौन से हैं?भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्य कौन-से हैं? Solution : भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्य या दर्शन में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, स्वतन्त्रता, समानता, व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता को बढ़ावा दिया गया है।
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