मीरा श्री कृष्ण का साथ पाने के लिए क्या क्या करने को तैयार है? - meera shree krshn ka saath paane ke lie kya kya karane ko taiyaar hai?

मीरा (जीवन परिचय)

मीरा श्री कृष्ण का साथ पाने के लिए क्या क्या करने को तैयार है? - meera shree krshn ka saath paane ke lie kya kya karane ko taiyaar hai?
मीराबाई (चित्र साभार गूगल)

मीराबाई या संत मीरा सोलहवीं शताब्दी की महान कवयित्री और कृष्ण भक्त मानी जाती हैं। मीराबाई का जन्म जोधपुर के चौकड़ी (कुड़की )गाँव में 1503 में एक राजपरिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम रतन सिंह और माता का नाम वीर कुमारी था। बचपन से ही मीराबाई का कृष्ण भक्ति की ओर विशेष झुकाव था । अल्पावस्था में ही मीरा की माताजी का देहांत हो गया। 13 वर्ष की अवस्था में मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राजा सांगा के बेटे कुँवर भोजराज से विवाह हो गया । किंतु मीरा का वैवाहिक जीवन अधिक नहीं चला । विवाह के कुछ समय बाद ही मीरा के पति का देहांत हो गया । इसके बाद उनके पिता और बाद में पिता तुल्य श्वसुर का भी देहांत हो गया । दुःख संतप्त मीरा पूरी तरह कृष्ण भक्ति को समर्पित हो गई ।

कवि परिचय :

भक्ति में डूबी मीराबाई राज परिवार के नियमों का पालन करने में असमर्थ थीं । वे कभी भजन करते -करते भाव-विभोर हो उठती और संत समाज के बीच में ही उठ कर नृत्य करने लगती । राज परिवार केलिए यह सब असहनीय था। परिवार के निरंतर रोक-टोक से आहत मीरा ने राजमहल त्याग दिया और अपनी आध्यात्मिक यात्रा के लिए वृंदावन प्रस्थान किया। वृंदावन में साधना करने बाद मीराबाई गुजरात के द्वारका मंदिर गई। वहीं भक्ति करते हुए 1546 को परम पद को प्राप्त हो गई।

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन में मीरा का विशेष स्थान है । इनके पद उत्तर भारत, गुजरात , बिहार और बंगाल सहित लगभग पूरे भारत में गाए जाते हैं । मीरा के भक्तिकाव्य में दैन्यता और माधुर्य भाव प्रकट होता है। इनकी भाषा में राजस्थानी , ब्रज और गुजराती भाषाओं का मिश्रण है। साथ ही पंजाबी , खड़ी बोली, और पूर्वी भाषाओं का असर भी दिखता है।संतों , विशेषकर वैष्णव भक्ति का पूर्ण प्रभाव उनके काव्य पर दृष्टिगोचर होता है ।

मीरा ने कृष्ण को पति मान कर और स्वयं को उनकी सेविका मानकर भक्ति की ।उनके पद मीरा ग्रंथावली में संकलित हैं ।मीरा के पद गेय और तुकांत हैं। मीरा के काव्य में रहस्यवाद और दास्यभाव है। मीरा की गणना भक्तिकाल की सगुण भक्ति मार्ग की कॄष्ण भक्ति शाखा के मुख्य कवियों में की जाती है ।

पद 1.

हरि आप हरो जन री भीर।

द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।

भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर ।

बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।

दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर ॥

प्रसंग:-

प्रस्तुत पद हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इस पद की कवयित्री मीरा है। इसमें कवयित्री भगवान श्री कृष्ण के भक्त – प्रेम को दर्शा रही हैं और स्वयं की रक्षा की गुहार लगा रही है ।

व्याख्या –

इस पद में कवयित्री मीराबाई भगवान श्री कृष्ण के भक्त – प्रेम का वर्णन करते हुए कहती हैं कि आप अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं अर्थात दुखों का नाश करने वाले हैं।  मीरा बाई उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जिस तरह आपने द्रोपदी की इज्जत को बचाया और साडी के कपडे को बढ़ाते चले गए ,जिस तरह आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण कर लिया और जिस तरह आपने ऐरावत हाथी भगवान इंद्र के वाहन को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था ,हे ! श्री कृष्ण उसी तरह अपनी इस दासी अर्थात भक्त के भी सारे दुःख हर लो अर्थात सभी दुखों का नाश कर दो।   

काव्य सौंदर्य:​-

1. मीरा ने राजस्थानी तथा ब्रज दोनों भाषाओं का प्रयोग किया है।

​2. इस पद से मीरा की कृष्ण भक्ति उद्घाटित होती है।

​3. अनेक लोगों का उदाहरण देकर मीरा ने अपनी बात  को स्पष्ट किया है।

​4. काटी कुण्जर पीर में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

5.भाषा सरल सहज प्रवाह मयी है| शैली तुकान्त है|

6.रस शांत भक्ति है| पद छंद का प्रयोग है|

पद 2

स्याम म्हाने चाकर राखो जी,

गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी

चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ ,नित उठ दरसण पास्यूँ ।

बिन्दरावन री कुंज गली में, गोविन्द लीला गास्यूँ ।

चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची ।

भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी ।

मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला ।

बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।

ऊँचा ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।

साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।

आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रे तीरा।

मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ।

प्रसंग:-

प्रस्तुत पद हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इस पद की कवयित्री मीराबाई है। इस पद में कवयित्री मीराबाई श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन कर रही है और श्री कृष्ण के दर्शन के लिए वह कितनी व्याकुल है यह दर्शा रही है।

व्याख्या –

इस पद में कवयित्री मीराबाई श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भावना को उजागर करते हुए कहती हैं कि हे !श्री कृष्ण मुझे अपना नौकर बना कर रखो अर्थात मीरा किसी भी तरह श्री कृष्ण के नजदीक रहना चाहती है फिर चाहे नौकर बन कर ही क्यों न रहना पड़े।  मीराबाई कहती हैं कि नौकर बनकर मैं बागीचा लगाउंगी ताकि सुबह उठ कर रोज आपके दर्शन पा सकूँ। मीरा कहती हैं कि वृन्दावन की संकरी गलियों और बगीचों    में मैं अपने स्वामी की लीलाओं का बखान करुँगी।  मीरा का मानना है कि नौकर बनकर उन्हें तीन फायदे होंगे पहला – उन्हें हमेशा कृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे , दूसरा- उन्हें अपने प्रिय की याद नहीं सताएगी और तीसरा- उनकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता ही जायेगा।    

मीराबाई श्री कृष्ण के रूप का बखान करते हुए कहती हैं कि उन्होंने पीले वस्त्र धारण किये हुए हैं , सिर पर मोर के पंखों का मुकुट विराजमान है और गले में वैजन्ती फूल की माला को धारण किया हुआ है। वृन्दावन में गाय चराते हुए जब वह मोहन मुरली बजाता है तो सबका मन मोह लेता है। मीरा कहती है कि मैं वृन्दावन में ऊँचे- ऊँचे महल बनाउंगी और उसकी दीवारों के बीच-बीच में खिड्कियाँ बनवाउँगी।मैं कुसुम्बी साड़ी पहन कर अपने प्रिय के दर्शन करुँगी अर्थात श्री कृष्ण के दर्शन के लिए साज श्रृंगार करुँगी। मीराबाई कहती हैं कि हे !मेरे प्रभु गिरधर स्वामी, मेरा मन आपके दर्शन के लिए इतना बेचैन है कि वह सुबह का इन्तजार नहीं कर सकता। मीराबाई चाहती है कि श्री कृष्ण आधी रात को ही जमुना नदी के किनारे उसे दर्शन दे दें।

काव्य सौंदर्य–

1. इस पद में राजस्थानी भाषा का प्रयोग किया गया है।

2. मीरा की कृष्ण भक्ति इस पद से प्रकट होती है।

​3. मोर मुगुट, मोहन मुरली में अनुप्रास अलंकार है।

4. ऊँचा-ऊँचा तथा बिच-बिच में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया।

5. भाषा सरल सहज प्रवाह मयी है, शैली तुकान्त है|

6.रस शांत भक्ति है |पद छंद का प्रयोग है|

कठिन शब्द–

लाज- इज्जत , मान बूढ़तो- डूबता हुआ दरसण –दर्शन(visiting)

पास्यूँ- पाना , प्राप्त करना चाकर –नौकर (servent) चाकरी- नौकरी (service)

मुगट- मुकुट , ताज़(Crown) धेनु- गाय (cow) महल – प्रासाद (Palace)

पीताम्बर – पीला कपड़ा (yellow dress/cloth) बारी- खिड़की (window)

भाव भगती – भक्ति की भावना (devotion) राखूँ- – रखना

कुसुम्बी -लाल रंग की(कुसुम्बी- A kind of red colour flower )

गोविन्द लीला– भगवान के भजन (devotional songs) हिवड़ो-हृदय, दिल (heart)

अधीरा -बेचैन (restless)

प्रश्नअभ्यास

प्रश्न1 -:पहलेपदमें मीरानेहरिसेअपनीपीड़ाहरनेकीविनतीकिसप्रकारकीहै ?

उत्तर: पहले पद में मीरा कहती हैं कि जिस प्रकार हे ! प्रभु आप अपने सभी भक्तों के दुखों को हरते हो ,जैसे – द्रोपदी की लाज बचाने के लिए साड़ी का कपड़ा बढ़ाते चले गए ,प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप धारण कर लिया और ऐरावत हाथी को बचाने के लिए मगरमच्छ को मार दिया उसी प्रकार मेरे भी सारे दुखों को हर लो अर्थात सभी दुखों को समाप्त कर दो।

प्रश्न2 -: दूसरेपदमेंमीराबाईश्यामकीचाकरीक्योंकरनाचाहतीहै? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -: दूसरे पद में मीरा श्री कृष्ण से नौकर बनाने की विनती इसलिए करती है, क्योंकि वह श्री कृष्ण के दर्शन का एक भी मौका खोना नहीं चाहती है। वह कहती है कि मैं बगीचा लगाऊँगी ताकि रोज सुबह उठते ही मुझे श्री कृष्ण के दर्शन हो सकें।वे  वृंदावन की गलियों और बगीचों  में कृष्ण का गुणगान गाना चाहती हैं।

प्रश्न3 -: मीरा नेश्रीकृष्णकेरूपसौंदर्यकावर्णनकैसेकियाहै?

उत्तर -: मीरा श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि उन्होंने सिर पर मोर पंख का मुकुट धारण किया हुआ है ,पीले वस्त्र पहने हुए हैं और गले में वैजंती फूलों की माला को धारण किया हुआ है। मीरा कहती हैं कि जब श्री कृष्ण वृन्दावन में गाय चराते हुए बांसुरी बजाते है तो सब का मन मोह लेते हैं।

प्रश्न4 -: मीराकीभाषाशैलीपर प्रकाशडालिए।

उत्तर -: मीरा को हिंदी और गुजराती दोनों की कवयित्री माना जाता है। इनकी कुल सात -आठ कृतियाँ ही उपलब्ध हैं। मीरा की भाषा सरल ,सहज और आम बोलचाल की भाषा है, इसमें राजस्तानी ,ब्रज, गुजराती ,पंजाबी और खड़ी बोली का मिश्रण है।पदों में भक्तिरस है तथा अनुप्रास ,पुनरुक्ति ,रूपक आदि अलंकारों का भी प्रयोग किया गया है।

प्रश्न5 -: वे श्रीकृष्णकोपानेकेलियाक्याक्याकार्यकरनेकोतैयारहैं ?

उत्तर -: मीरा श्री कृष्ण को पाने के लिए अनेक कार्य करने के लिए तैयार हैं – वे कृष्ण की सेविका बन कर रहने को तैयार हैं ,वे उनके विचरण अर्थात घूमने के लिए बाग़ बगीचे लगाने के लिए तैयार हैं ,ऊँचे ऊँचे महलों में खिड़कियां बनाना चाहती हैं ताकि श्री कृष्ण के दर्शन कर सके और यहाँ तक की आधी रात को जमुना नदी के किनारे कुसुम्बी रंग की साडी पहन कर दर्शन करने के लिए तैयार हैं।

( ) निम्नलिखित पंक्तिओंकाकाव्यसौन्दर्यस्पष्टकीजिए -:

1 ) हरि आप हरो जन री भीर।

     द्रोपदी री लाज राखी ,आप बढ़ायो चीर।

     भगत कारण रूप नरहरि ,धरयो आप सरीर।

काव्य सौन्दर्य :-

भावसौन्दर्य – इन पंक्तिओं में मीरा श्री कृष्ण के भक्ति -भाव को प्रकट कर रही है। इन पंक्तिओं में शांत रस प्रधान है। मीरा कहती है कि हे !श्री कृष्ण आप अपने भक्तों के कष्टों को हरने वाले हो। आपने द्रोपदी की लाज बचाई और साड़ी के कपडे को बढ़ाते चले गए। आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप भी धारण किया।

शिल्प सौन्दर्य :-  १)भाषा राजस्ठानी ,ब्रज, और गुजराती का मिश्रित स्वरुप है

२)छंद- पद

३)रस – शांत (भक्ति) रस 

४)भक्ति भाव से परिपूर्ण काव्य।

५) भीर, चीर, सरीर आदि  में तुकान्त शैली  का सुंदर प्रयोग किया गया है ।

2 ) बूढ़तो गजराज राख्यो ,काटी कुञ्जर पीर।

     दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।।

काव्य सौन्दर्य

भावसौन्दर्य – इन पंक्तिओं में मीरा श्री कृष्ण से उनके दुःख दूर करने की विनती करती हैं। इन पंक्तिओं में तत्सम और तद्भव शब्दों का सुन्दर मिश्रण है। मीरा कहती हैं कि जिस तरह हे !श्री कृष्ण आपने हाथिओं के राजा ऐरावत को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था मुझे भी हर दुःख से बचाओ।

शिल्पसौन्दर्य:   १) भाषा में राजस्ठानी, गुजरातीऔर ब्रज भाषा का मिलाजुला प्रभाव है।

२)छंद –पद

 ३)शांत  रस है।

४) “काटी कुण्जर पीर” में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

५).पीर, भीर में शैली तुकान्त है|

६). भाषा सरल ,सहज, प्रवाह मयी है,

3 )चाकरी में दरसन पास्यूँ ,सुमरन पास्यूँ खरची।

    भाव भगती जागीरी पास्यूँ ,तिन्नू बाताँ सरसी।।

काव्यसौन्दर्य

भावसौन्दर्य – इन पंक्तिओं में मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपनी भाव भक्ति दर्शा रही है। यहाँ शांत रस प्रधान है। यहाँ मीरा श्री कृष्ण के पास रहने के तीन फायदे बताती है।  पहला -उसे हमेशा दर्शन प्राप्त होंगे ,दूसरा -उसे श्री कृष्ण को याद करने की जरूरत नहीं होगी और तीसरा -उसकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता ही जायेगा।

 शिल्पसौन्दर्य: १ ) भाषा में राजस्ठानी, गुजरातीऔर ब्रज भाषा का मिलाजुला प्रभाव है।

२) पद छंद है।

३)शांत  रस है।

४) भाव भगती में ’ भ “ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है, भाव भगती जागीरी में रुपक अलंकार है।

५) खरची , सरसी में शैली तुकान्त होने से नाद सौंदर्य प्रकट होता है।

६). भाषा सरल, सहज, प्रवाह मयी है।

भाषा अध्ययन-

  1. उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्‍नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए-

उदाहरण – भीर- पीड़ा/कष्ट/ दुख; री= की

चीर = कपड़ा/वस्त्र, बूढ़ता = डूबता

धरयो = धरना/धारण करना , लगास्यूँ = लगाना

कुण्जर = हाथी , घणा = बहुत

बिन्दरावन = वृन्दावन, सरसी = रसयुक्त / अच्छी /भली

रहस्यूँ = रहना, हिवड़ा = हृदय

राखो = रख लो या रखना,

कुसुम्बी = लाल रंग की(कुसुम्बी- लाल रंग का एक प्रकार फूल )

मीरा श्री कृष्ण को पाने के लिए क्या क्या करना चाहती है?

Answer: मीरा कृष्ण को पाने के लिए अनेकों कार्य करने को तैयार हैं। वह सेवक बन कर उनकी सेवा कर उनके साथ रहना चाहती हैं, उनके विहार करने के लिए बाग बगीचे लगाना चाहती है। वृंदावन की गलियों में उनकी लीलाओं का गुणगान करना चाहती हैं, ऊँचे-ऊँचे महलों में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि आसानी से कृष्ण के दर्शन कर सकें।

मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण की क्या मानती है?

मीरा बाई का जन्म राजपूत जाति में हुआ था। उस समय महिलाओं को घर से बाहर जाने पर प्रतिबंध था। मीरा राठौर बचपन से ही लोकवेद के आधार पर कृष्ण भक्ति में रुचि लेने लगी थीं तथा श्रीकृष्ण को अपना दुल्हा मानती थीं।

कृष्ण की चाकरी करने से मीरा को कौन कौन से तीन लाभ प्राप्त होंगे 20 से 30 शब्दों में?

कृष्ण की चाकरी करने से मीरा को कृष्ण के दर्शन प्राप्त हो सकेंगे। मीरा बाई श्याम की चाकरी इसलिए करना चाहती है क्योंकि मीराबाई श्री कृष्ण की सेविका बनकर उनके आसपास रहना चाहती है और उनके बार-बार दर्शन करना चाहती हैं। सेवक सदा अपने स्वामी के आसपास रहता है मीराबाई श्री कृष्ण के आसपास रहकर उनकी लीला का गुणगान करना चाहती हैं।

मीरा यमुना तट पर आधी रात में श्रीकृष्ण के दर्शन क्यों करना चाहती हैं?

कहा जाता है कि कृष्ण आधी रात के समय यमुना किनारे राधा और गोपियों के साथ रासलीला करने आते हैं। अतः मीरा भी इसी आस में आधी रात में कृष्ण के दर्शन पाना चाहती है। वह कृष्ण के दर्शन की लालसा को समाप्त नहीं करना चाहती है। यही कारण है कि आधी रात में साड़ी पहनकर यमुना किनारे जाना चाहती है।