मां का दूध क्यों सूख जाता है? - maan ka doodh kyon sookh jaata hai?

मां बनना अपने आप में एक नई जिंदगी जैसा होता है। आपके जीवन में बहुत सारे बदलाव आते हैं, और आप उनके अनुसार ढलती चली जाती हैं। यह एक बहुत खूबसूरत एहसास है जिसे बयां नही किया जा सकता, सिर्फ जिया जाता है।

ब्रेस्टफीडिंग आपके इन्हीं बदलावों का एक हिस्सा है। लेकिन शुरुआती दिनों में ब्रेस्टफीडिंग में कुछ समस्याएं आती हैं, जैसे दूध न निकलना या पर्याप्त दूध न होना। यह समस्या आपको परेशान करती हैं, लेकिन परेशान होना कोई सॉल्यूशन नहीं है।

इस समस्या का समाधान इसकी वजह में ही छुपा है। इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि क्यों आप पर्याप्त ब्रेस्ट मिल्क प्रोड्यूस नहीं कर पा रही हैं। इसके लिए हमने बात की पुणे के मदरहुड हॉस्पिटल की लैक्टेशन एक्सपर्ट अर्चना वाडकर से।

अर्चना बताती हैं, “आजकल सभी माएं प्रेगनेंसी के समय ही सारी रिसर्च कर लेती हैं। लेकिन इससे मदद मिलने के बजाय स्ट्रेस बढ़ता है। और स्ट्रेस मिल्क प्रोडक्शन में रूकावट डाल सकता है। इसके अलावा भी कई कारण है पर्याप्त दूध न बनने के।

कई कारण हो सकते हैं ब्रेस्‍टमिल्‍क कम बनने के लिए जिम्‍मेदार। चित्र: शटरस्‍टॉक

1. ग्लैंड्यूलर टिश्यू की कमी

यह समस्या पहली बार मां बनने वाली महिलाओं में ज्यादा आती हैं। क्योंकि मिल्क डक्ट पूरी तरह बने नहीं होते हैं, जिससे दूध कम बनता है। अगली बार में यह समस्या नहीं होती। इस समस्या के समाधान के लिए बेबी को सक करने दें, यह आपके डक्ट को एक्टिव करेगा। अर्चना बताती हैं, “ज्यादा सक करने से ज्यादा दूध बनेगा, यह नियम है। सक करने से मैमरी ग्लैंड एक्टिवेट होते हैं।”

2. हॉर्मोन्स

दूध बनने के लिए हॉर्मोन्स ही आपके ब्रेन को सिग्नल पहुंचाते हैं। अगर आपके हॉर्मोन्स ठीक ढंग से काम नहीं कर रहे, तो मिल्क प्रोडक्शन भी नहीं होगा। अर्चना सुझाव देती हैं, “PCOS, थायराइड या डायबिटीज के कारण अक्सर हॉर्मोन्स नहीं बनते और दूध कम होता है। इसके लिए आप अपने डॉक्ट र से सलाह लें।”

3. ब्रेस्ट सर्जरी

ब्रेस्ट सर्जरी या इम्प्लांट के कारण ब्रेस्ट में फाइब्रॉइड बन जाते हैं, जो मिल्क प्रोडक्शन को घटाते हैं। दूध कितना कम बनता है, यह सर्जरी पर ही निर्भर करेगा। यहां तक कि निपल में पियरसिंग भी ब्रेस्ट मिल्क को कम करती है।

4. कॉन्ट्रासेप्टिव खाने से

अगर आप ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स ले रही हैं, तो भी आपके मिल्क प्रोडक्शन पर असर पड़ेगा। ये पिल्स आपके हॉर्मोनल संतुलन को बिगाड़ देती हैं, जिससे दूध कम बनता है। हालांकि हर महिला पर यह असर अलग होता है।

दवाएं भी मिल्‍क प्रोडक्‍शन को प्रभावित करती हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक

5. लेबर के दौरान दी गई दवाएं

कई बार कुछ महिलाओं को लेबर के वक्त दवा दी जाती हैं। यह दवा लेबर पेन बढ़ाने से लेकर सी-सेक्शन के लिए हो सकती हैं। हायपरटेंशन के लिए भी दवा दी जाती है। “ऐसे कई कारण हैं जिनके लिए महिलाओं को दवा दी जाती हैं, लेकिन यह मिल्क प्रोडक्शन को कुछ ही देर के लिए कम करती हैं। दवा का असर खत्म होते ही मिल्क प्रोडक्शपन नॉर्मल हो जाता है।”

अर्चना यही समझाती हैं कि धैर्य रखें। कुछ समस्याएं आएंगी, लेकिन ईश्वर ने आपको पूरी तरह तैयार करके भेजा है। बस तनाव न लें। मां बनने का आनंद उठाएं।

दुग्धपान या दुग्धस्रवन या लैक्टेशन, स्तन ग्रंथि से दूध निकलने, उस दूध को बच्चे को पिलाने की प्रक्रिया तथा एक माँ द्वारा अपने बच्चे को दूध पिलाने में लगने वाले समय को वर्णित करता है। यह प्रक्रिया सभी मादा स्तनपायी प्राणियों में होती है और मनुष्यों में इसे आम तौर पर स्तनपान या नर्सिंग कहा जाता है। अधिकांश प्रजातियों में माँ के निपल्स से दूध निकलता है; हालाँकि, प्लैटिपस (एक गैर-गर्भनालीय स्तनपायी प्राणी) के पेट की नलिकाओं से दूध निकलता है। स्तनपायी प्राणियों की केवल एक प्रजाति दयाक फ्रूट चमगादड़ में दूध उत्पन्न करना नर का एक सामान्य कार्य है। कुछ अन्य स्तनपायी प्राणियों में हार्मोन के असंतुलन की वजह से नर दूध उत्पन्न कर सकते हैं। इस घटना को नवजात शिशुओं में भी देखा जा सकता है (उदाहरण के लिए डायन का दूध (विचेज मिल्क))।

गैलक्टोपोइएसिस दूध उत्पादन को बनाये रखने को कहते हैं। इस चरण में प्रोलैक्टिन (पीआरएल) और ऑक्सीटोसिन की जरूरत पड़ती है।

लैक्टेशन का मुख्य कार्य जन्म के बाद बच्चों को पोषण और प्रतिरक्षा संरक्षण देना है। लगभग सभी स्तनधारियों में, लैक्टेशन बाँझपन की एक अवधि को जन्म देता है जो संतान के जीवित रहने के लिए इष्टतम जन्म अंतराल प्रदान करने का काम करता है।[1]

चित्र:Breastfeeding(milkfinal).png

जब बच्चा अपनी माँ के स्तनों को चूसता है, ऑक्सीटोसिन नामक एक हार्मोन दुग्ध को डक्ट्स (दुग्ध नलिकाएं) के माध्यम से एल्वियोली के रास्ते एरिओला के पीछे स्थित सैक्स (दुग्ध संग्रहण स्थान) में भेजता है, जहां से यह बच्चे के मुंह में जाता है।

गर्भावस्था के चौथे महीने (दूसरी और तीसरी तिमाही) से मादा या महिला का शारीर हार्मोन उत्पन्न करने लगता है जो स्तनों में दुग्ध नलिका तंत्र के विकास को उत्तेजित कर देता है:

  • प्रोजेस्टेरोन — यह वायुद्वार और पालि के आकार में होने वाली वृद्धि को प्रभावित करता है। जन्म के बाद प्रोजेस्टेरोन का स्तर गिरने लगता है। यह प्रचुर परिमाण में दूध उत्पादन की शुरुआत में तेजी लाता है।[2]
  • ओएस्ट्रोजेन — यह दूध नलिका तंत्र को बढ़ने और विशिष्ट रूप धारण करने में मदद करती है। प्रसव के समय ओएस्ट्रोजेन का स्तर भी गिर जाता है और स्तनपान के पहले कई महीनों तक इसका स्तर नीचे ही रहता है।[2] ऐसा सुझाव दिया जाता है कि स्तनपान कराने वाली माताओं को ओएस्ट्रोजेन आधारित जन्म नियंत्रण विधियों से बचना चाहिए क्योंकि एस्ट्रोजेन के स्तर में क्षणिक परिवर्तन से भी माता की दूध आपूर्ति में गिरावट आ सकती है।
  • फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन अर्थात् कूप प्रेरक हार्मोन (एफएसएच)
  • ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (एलएच)
  • प्रोलैक्टिन — यह गर्भावस्था के दौरान वायुद्वारों की वृद्धि में योगदान करता है।
  • ऑक्सीटोसिन — यह जन्म के दौरान और उसके बाद और सम्भोग सुख के दौरान गर्भाशय की कोमल मांसपेशियों को सिकोड़ देता है। जन्म के बाद ऑक्सीटोसिन नलिका तंत्र में नवनिर्मित दूध को निचोड़ने के लिए वायुद्वार के चारों तरफ बैंड जैसी कोशिकाओं की कोमल मांसपेशियों की परत को सिकोड़ देता है। ऑक्सीटोसिन दूध निष्कासन प्रतिक्रिया या त्याग के लिए जरूरी है।
  • मानव गर्भनालीय लैक्टोजेन (एचपीएल) — गर्भावस्था के दूसरे महीने से गर्भनाल से काफी मात्रा में एचपीएल निकलने लगता है। यह हार्मोन जन्म से पहले स्तन, निपल और एरिओला अर्थात् चूसनी या निपल के आसपास गोल घेरे के विकास में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

गर्भावस्था के पांचवें या छठवें महीने तक स्तन दूध उत्पन्न करने के लिए तैयार हो जाते हैं। गर्भावस्था के बिना भी लैक्टेशन को प्रेरित किया जा सकता है।

लैक्टोजेनेसिस प्रथम चरण[संपादित करें]

गर्भावस्था के उत्तरार्ध में महिला या मादा के स्तन लैक्टोजेनेसिस के प्रथम चरण में प्रवेश करते हैं। ऐसा तब होता है जब स्तन में कोलोस्ट्रम (नीचे देखें) बनता है जो कि एक गाढ़ा और कभी-कभी पीले रंग का तरल पदार्थ है। इस चरण में प्रोजेस्टेरोन की अत्यधिक मात्रा की वजह से दूध उत्पादन में काफी रूकावट आती है। यह किसी चिकित्सीय चिंता का विषय नहीं है अगर अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ही किसी गर्भवती महिला के स्तन से कोलोस्ट्रम निकलने लगे और यह भावी दूध उत्पादन का कोई संकेत भी नहीं है।

लैक्टोजेनेसिस द्वितीय चरण[संपादित करें]

जन्म के समय प्रोलैक्टिन का स्तर ऊंचा रहता है जबकि गर्भनाल के प्रसव के परिणामस्वरूप प्रोजेस्टेरोन, एस्ट्रोजेन और एचपीएल के स्तरों में अचानक गिरावट आ जाती है। उच्च प्रोलैक्टिन स्तर की मौजूदगी में प्रोजेस्टेरोन में अचानक गिरावट आने से लैक्टोजेनेसिस के द्वितीय चरण में काफी प्रचुर परिमाण में दूध उत्पन्न होने लगता है।

स्तन के उत्तेजित होने पर रक्त में मौजूद प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने लगता है और लगभग 45 मिनट में काफी ऊपर चला जाता है और लगभग तीन घंटे बाद दूध पिलाने की अवस्था में आने से पहले इसका स्तर वापस नीचे गिर जाता है। प्रोलैक्टिन के निकलने से वायुद्वार की कोशिकाएं उत्तेजित हो जाती हैं जिससे दूध का निर्माण होने लगता है। प्रोलैक्टिन स्तन के दूध में भी चला जाता है। कुछ शोधों से पता चला है कि बहुत ज्यादा दूध उत्पादन के समय दूध में प्रोलैक्टिन का परिमाण बहुत अधिक होता है और जब स्तन दूध से भरा रहता है तब इसका परिमाण कम होता है और दो बजे से छः बजे सुबह तक इसके काफी ऊंचे स्तर में होने की सम्भावना रहती है।[3]

मुख्य रूप से इंसुलिन, थायरोक्सिन और कोर्टिसोल जैसे अन्य हार्मोन शामिल होते हैं लेकिन अभी तक उनकी भूमिकाओं के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिली है। हालाँकि जैव रासायनिक मार्करों से यह संकेत मिलता है कि लैक्टोजेनेसिस के द्वितीय चरण की शुरुआत बच्चे को जन्म देने के लगभग 30 से 40 घंटे के बाद होती है लेकिन माताओं को आम तौर पर अपने बच्चे को जन्म देने के 50 से 73 घंटे (2 से 3 दिन) तक स्तन के दूध से पूरी तरह भरे होने का एहसास ("स्तन में दूध आने की अनुभूति") नहीं होता है।

अपनी माँ के स्तन से दूध पीने वाले बच्चे को सबसे पहले दूध के रूप में कोलोस्ट्रम प्राप्त होता है। इसमें परिपक्व दूध की तुलना में काफी परिमाण में सफ़ेद रक्त कोशिकाएं और एंटीबॉडी होते हैं और विशेष रूप से इसमें इम्यूनोग्लोबुलिन ए (IgA) का स्तर ऊंचा रहता है जो बच्चे के अपरिपक्व आँतों की परत को ढंकने का काम करता है और बच्चे के तंत्र पर हमला करने से रोगाणुओं को रोकने में मदद करता है। स्रावी IgA से खाद्य एलर्जी को रोकने में भी मदद मिलती है।[4] जन्म के बाद पहले दो सप्ताह तक कोलोस्ट्रम के उत्पादन से धीरे-धीरे स्तन के दूध को परिपक्व होने का अवसर मिलता है।[2]

लैक्टोजेनेसिस तृतीय चरण[संपादित करें]

हार्मोनल एंडोक्राइन नियंत्रण तंत्र, गर्भावस्था और जन्म देने के बाद पहले कुछ दिनों के दौरान दूध उत्पादन को प्रेरित करती है। जब दूध की आपूर्ति अधिक मजबूत स्थिति में पहुँच जाती है तो ऑटोक्राइन (या स्थानीय) नियंत्रण तंत्र का कार्य शुरू होता है। इस चरण को लैक्टोजेनेसिस का तृतीय चरण कहते हैं।

इस चरण के दौरान स्तनों से जितना ज्यादा दूध निकलता है उन स्तनों में उतना ज्यादा दूध उत्पन्न होता है।[5][6] शोध से यह भी पता चला है कि पूरी तरह से स्तनों से जितना ज्यादा दूध निकलता है, दूध उत्पन्न होने की दर उतनी ही अधिक हो जाती है।[7] इस प्रकार दूध आपूर्ति पर इस बात का बहुत ज्यादा असर पड़ता है कि बच्चा कितनी बार दूध पीता है और स्तन से कितनी अच्छी तरह से दूध निकल पाता है। कम आपूर्ति की पहचान अक्सर निम्न बातों से की जा सकती है:

  • अगर पर्याप्त रूप से दूध पिलाया या निकाला नहीं गया हो
  • अगर शिशु प्रभावी ढंग से दूध नहीं पी सकता हो जिसके निम्न कारण हो सकते हैं:
    • जबड़े या मुँह के ढांचे में कोई कमी
    • दूध पिलाने का अनुचित तरीका
  • दुर्लभ मातृ एंडोक्राइन विकार
  • हाइपोप्लास्टिक स्तन ऊतक
  • शिशु में चयापचय या पाचन संबंधी अक्षमता जिससे वह पीए गए दूध को पचाने में असमर्थ हो
  • अपर्याप्त कैलोरी सेवन या मां का कुपोषण

दूध निष्कासन प्रतिक्रिया[संपादित करें]

ऑक्सीटोसिन हार्मोन के निकलने की वजह से दूध निष्कासन या त्याग प्रतिक्रिया का परिणाम देखने को मिलता है। ऑक्सीटोसिन स्तन के आसपास की मांसपेशियों को उत्तेजित कर देता है जिससे स्तन से दूध निकलने लगता है। दूध पिलाने वाली माताओं ने दूध पिलाते समय होने वाली अनुभूति का अलग-अलग वर्णन किया है। कुछ माताओं को मामूली झुनझुनी का एहसास होता है जबकि अन्य माताओं को खूब ज्यादा दबाव या हल्का दर्द/बेचैनी का एहसास होता है और ऐसी भी कुछ माताएं हैं जिन्हें कुछ अलग महसूस ही नहीं होता।

त्याग प्रतिक्रिया हमेशा खास तौर पर शुरू में संगत नहीं होती है। दूध पिलाने का विचार आने पर या किसी बच्चे की आवाज़ सुनाई देने पर यह रिफ्लेक्स अर्थात् प्रतिक्रिया उत्तेजित हो सकती है जिसकी वजह से न चाहते हुए भी दूध का रिसाव होने लगता है या उस वक्त भी दोनों स्तनों से दूध निकल सकता है जब शिशु किसी एक स्तन से दूध पी रहा होता है। हालाँकि, इस तरह की और अन्य प्रकार की समस्याएं अक्सर दूध पिलाना शुरू करने के दो सप्ताह के बाद दूर हो जाती हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें] तनाव या चिंता की वजह से दूध पिलाने में कठिनाई हो सकती है।

खराब दूध निष्कासन प्रतिक्रिया के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे - घाव या दरारयुक्त निपल्स, शिशु से जुदाई, स्तन शल्य चिकित्सा का इतिहास, या पूर्व स्तन आघात से ऊतक क्षति. अगर किसी माता को दूध पिलाने में परेशानी होती हो तो उन्हें दूध निष्कासन प्रतिक्रिया में सहायक साबित होने वाले कई विभिन्न तरीकों से मदद मिल सकती है। इन तरीकों में शामिल हैं: किसी परिचित या आरामदायक स्थान में दूध पिलाना, स्तन या पीठ की मालिश, या किसी कपड़े या स्नान आदि के माध्यम से स्तन को गर्म करना।

आफ्टरपेन्स (बाद का कष्ट)[संपादित करें]

ऑक्सीटोसिन की वृद्धि से संभावित रूप से दूध निष्कासन प्रतिक्रिया के उत्तेजित होने के अलावा इसकी वजह से गर्भाशय में संकुचन भी हो सकता है। दूध पिलाते समय माताओं को इस तरह के संकुचन का एहसास हो सकता है जिसे आफ्टरपेन्स कहते हैं। इसमें ऐंठन जैसी छोटी-मोटी तकलीफ से लेकर संकुचन जैसी बहुत ज्यादा तकलीफ का भी एहसास हो सकता है और दूसरे एवं परवर्ती बच्चों के साथ हालत और गंभीर हो सकती है। कुछ महिलाओं के स्तन सूख और चटक जाते हैं और उनमें खुली दरारें भी पड़ जाती हैं और दूध पिलाने के दौरान उनसे खून भी निकल सकता है। निपल्स (चूचुक) और एरिओला (चूचुक के इर्दगिर्द गोल घेरा) पर लानोलिन मलने से इन समस्याओं से राहत मिल सकती है।[8]

गर्भावस्था के बिना दूध का निकलना, उत्तेजित करके दूध निकालना, फिर से दूध का निकलना[संपादित करें]

जो महिला गर्भवती नहीं है उस महिला में "कृत्रिम रूप से" और जानबूझकर दूध उत्पन्न किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी नहीं है कि महिला गर्भवती हो और वह रजोनिवृत्ति के बाद की अवधि में भी यह काम अच्छी तरह कर सकती है। जो महिला कभी गर्भवती नहीं हुई है वह भी कभी-कभी दूध पिलाने लायक काफी परिमाण में दूध उत्पन्न करने में सक्षम होती है। इसे "प्रेरित लैक्टेशन" अर्थात् "उत्तेजित होने पर दूध का निकलना" कहते हैं। जिन महिलाओं ने पहले भी स्तनपान कराया है उनमें फिर से दूध का निकलना शुरू हो सकता है। इसे "रिलैक्टेशन" अर्थात् "फिर से दूध का निकलना" कहते हैं। इसी तरह से आम तौर पर एक पूरक नर्सिंग सिस्टम या कुछ अन्य प्रकार की पूरकता से शुरू करने वाली कुछ दत्तकग्राही माताएं स्तनपान करा सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि दूध की संरचना में बहुत कम या कोई अंतर नहीं होता है चाहे दूध का निकलना कृत्रिम रूप से प्रेरित होने पर या गर्भावस्था के परिणामस्वरूप होता हो। [9][10]

शारीरिक उत्तेजना और दवाओं द्वारा भी दूध निकल सकता है। सिद्धांततः, काफी धैर्य और दृढ़ता के साथ केवल निपल्स को चूस कर भी दूध निकाला जा सकता है। इसके लिए निपल्स को लगातार उत्तेजित करना पड़ सकता है और इन्हें उत्तेजित करने के लिए स्तन को दबाना या वास्तव में चूसने (एक दिन में कई बार) की जरूरत पड़ती है और दूध के बहाव को बढ़ाने के लिए स्तनों की मालिश करनी पड़ती है और उन्हें निचोड़ना ("दूहना") पड़ता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] गैलेक्टागोग (दूध-प्रेरण) दवाओं का अस्थायी उपयोग भी प्रभावकारी होता है; गैलेक्टागोग जड़ी-बूटियाँ भी उपयोगी साबित हो सकती हैं। एक बार स्थापित हो जाने पर जरूरत के मुताबिक़ दूध निकलना शुरू हो जाता है।

मां का दूध सूख जाए तो क्या करें?

दूध कम करने का नुस्खा है विटामिन बी एक अध्‍ययन में पाया गया कि स्‍तनों में दूध सुखाने के इस उपाय के कोई दुष्‍प्रभाव नहीं हैं। वर्ष 2017 में हुई एक स्‍टडी में प्रतिभागियों को पांच से सात दिनों तक 450 से 600 मि. ग्रा विटामिन बी6 दिया गया। विटामिन बी1, बी6 और बी12 की अधिक खुराक लेने का कोई दुष्‍प्रभाव नहीं देखा गया।

क्या खाने से माँ का दूध बढ़ता है?

खजूर से शरीर में प्रोलैक्टिन नामक हार्मोन बढ़ता है। यह हार्मोन ब्रेस्‍ट मिल्‍क बनाने में मदद करता है। खजूर में कैल्शियम, फाइबर भी उच्‍च मात्रा में होते हैं और यह नैचुरल स्‍वीटनर का काम करते हैं। मेथीदाना, क्‍यूनोआ और ओट्स आदि खाने से भी स्‍तनों में दूध की मात्रा बढ़ती है।

दूध पिलाने वाली माँ को क्या नहीं खाना चाहिए?

शिशु को दूध पिलाने वाली मांओं को जंक और मसालेदार चीजें नहीं खानी चाहिए। ये चीजें दूध के जरिए शिशु के शरीर में पहुंचकर, उसकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकती हैं। आप ज्‍यादा मीठी चीजें और गैस पैदा करने वाली चीजें जैसे कि गोभी भी न खाएं। कच्‍ची चीजें जैसे कि अंडा और सीफूड न खाएं।

दूध बढ़ाने के लिए क्या करें?

ब्रैस्ट मिल्क बढ़ाने के लिए क्या करे और क्या न करे?.
बच्चे को स्तन पान कम से कम 12 बार कराइये.
बच्चे को दूध पिलाते समय अपने स्तनों को हल्का दबाये.
दोनों स्तनों से बच्चे को बराबर दूध पिलाये.
अपने स्तनों की मालिश करे.
बच्चे को दूध पिलाना न भूले.
किसी अन्य रोग की यदि दवा चल रही हो तो उसे एक समय पर ही ले.