Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers. प्रेमचंद के फटे जूते
प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 1. (1) वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे। किसी से कोई वस्तु माँगना उनको स्वीकार नहीं था। प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2. प्रेमचंद के फटे जूते HBSE 9th Class प्रश्न 3. प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 4. प्रेमचंद के फटे जूते Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 5. प्रेमचंद
के फटे जूते के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 6. रचना और अभिव्यक्ति प्रेमचंद के फटे जूते Summary HBSE 9th Class प्रश्न 7. Class 9 Kshitij Chapter 6 HBSE प्रश्न 8. भाषा-अध्ययन Class
9 Hindi Chapter 6 Solutions HBSE प्रश्न 9. 2. दृष्टि अटकना-आकृष्ट होना। 3. जूते घिसना-चक्कर काटना। 4. ठोकर मारना-चोट मारना। 5. टीला खड़ा होना-बाधाएँ आना। Class 9 Hindi Chapter 6 HBSE प्रश्न 10. पाठेतर सक्रियता
उत्तर- यह भी जानें कुंभनदास-ये भक्तिकाल की कृष्ण भक्ति शाखा के कवि थे तथा आचार्य वल्लभाचार्य के शिष्य और अष्टछाप के कवियों में से एक थे। एक बार बादशाह अकबर के आमंत्रण पर उनसे मिलने वे फतेहपुर सीकरी गए थे। इसी संदर्भ में कही गई पंक्तियों का उल्लेख लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है। HBSE 9th Class Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and AnswersKshitij Chapter 6 HBSE 9th Class प्रश्न 1. Hindi Class 9 Chapter 6 Kshitij HBSE प्रश्न ,2. Class 9th Kshitij Chapter 6 HBSE प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. (D) पत्नी के प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न
22. प्रश्न 23. प्रेमचंद के फटे जूते प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण 1. प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूंछे चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं। पाँवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। [पृष्ठ 61] शब्दार्थ चित्र = फोटो। कनपटी = कान के साथ वाला भाग। केनवस = मोटा कपड़ा। बेतरतीब = बेढंगे। लापरवाही = उपेक्षापूर्ण। परेशानी = दुःख। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इसमें उन्होंने लेखकों की दुर्दशा और दिखावा करने वाले लोगों पर एक साथ व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद की वेशभूषा एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है। व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने कहा है कि प्रेमचंद का एक चित्र उनके सामने है। उस चित्र में वे पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। उन्होंने अपने सिर पर मोटे कपड़े की टोपी पहन रखी है। कुरता और धोती पहनी हुई है। कानों के साथ का भाग चिपटा हुआ है। गालों की हड्डियाँ कुछ उभरी हुई हैं। किंतु उनकी मूंछे घनी हैं, जिससे उनका चेहरा कुछ भरा-भरा सा लगता है। प्रेमचंद जी ने पाँवों में केनवस के जूते पहन रखे हैं, जिनके बंद (फीते) गलत ढंग से बाँधे हुए हैं। उनकी लापरवाही के कारण बंदों के सिरे पर लोहे की पतरी निकल गई है। इसलिए उन्हें बंदों को जूतों के सुराखों में डालने में कठिनाई होती है। इसलिए वे बंदों को जैसे-तैसे कस ही लेते हैं। उनके दाहिने पाँव का जूता ठीक है, किंतु बाएँ पाँव का जूता फटा हुआ है। उसमें आगे की ओर एक बहुत बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि इतने बड़े साहित्यकार का व्यक्तित्व उनकी दयनीय दशा को दर्शा रहा है। विशेष-
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (1) लेखक के सामने किसकी फोटो है ? 2. फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते, या न खिंचाते। फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होगे। मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’ है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है। [पृष्ठ 62] शब्दार्थ-आग्रह = जोर देकर कहा गया कथन। ट्रेजडी = हादसा (दुःख की बात)। क्लेश = दुःख। महसूस = अनुभव। दर्द = पीड़ा। व्यंग्य = ताना। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस पाठ में उन्होंने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद के सहज स्वभाव का उल्लेख किया है। . व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने जब प्रेमचंद की फोटो को ध्यान से देखा तो उन्हें पता चला कि उनका जूता फटा हुआ था और उसमें से उसकी एक अँगुली बाहर निकली हुई थी। जो बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। इस पर लेखक को थोड़ा-सा क्रोध . आया और उसने कहा फोटो ही खिंचवाना था, तो ठीक जूते पहन लेते या न खिंचवाते। फोटो न खिंचवाने से क्या बिगड़ जाता। लेखक के कहने का भाव यह है कि बुरी फोटो खिंचवाने से न खिंचवाना ही ठीक रहता। किंतु लेखक पुनः सोचता है कि शायद फोटो खिंचवाने का आग्रह पत्नी का रहा हो और प्रेमचंद जी पत्नी की बात भला कैसे टाल सकते थे। इसलिए यह कहते हुए ‘अच्छा चल भई’ कहकर फोटो खिंचवाने बैठ गए होंगे। किंतु यह कितने दुःख की बात है कि आदमी के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी कोई अच्छा जूता न हो। शायद प्रेमचंद के पास भी दूसरा जूता न हो। इसीलिए वे फटा हुआ जूता पहनकर फोटो खिंचवाने बैठ गए हों। लेखक प्रेमचंद की विवशता पर विचार व्यक्त करता हुआ कहता है कि मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते तुम्हारे दुःख को अपने में अनुभव करके रो देना चाहता हूँ अर्थात लेखक को प्रेमचंद की फटा हुआ जूता पहनने की मजबूरी के प्रति पूर्ण सहानुभूति है, किंतु प्रेमचंद की आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य उसे एकदम रोने से रोक देता है। विशेष-
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (1) लेखक ने प्रेमचंद को क्या सलाह दी है? 3. तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। गंदे-से-गदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है![पृष्ठ 62] शब्दार्थ-वर = दूल्हा। इत्र चुपड़ना = खुशबूदार तेल लगाना। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से लिया गया है। इस निबंध में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी व गरीबी का वर्णन किया है। साथ ही दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लोगों की माँगकर पहनी हुई वस्तुओं से अच्छा दिखने की प्रवृत्ति पर तीखा प्रहार किया गया है। व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने फोटो में प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर कहा है कि तुम फोटो के महत्त्व को नहीं समझते, क्योंकि लोग फोटो देखकर ही व्यक्ति के महत्त्व का आकलन करते हैं। यदि तुम फोटो के महत्त्व को समझते तो फोटो खिंचवाने के लिए किसी से अच्छे से जूते माँग लेते। लेखक ने दूसरों से वस्तुएँ माँगकर फोटो खिंचवाने वालों पर कटाक्ष करते हुए पुनः कहा है कि लोग तो माँगा हुआ कोट पहनकर दूल्हा बन जाते हैं। लोग तो माँगी हुई कार से बारात भी निकालते हैं जिससे लोगों की नजरों में उनकी शान-शौकत बढ़े। यहाँ तक कि लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए दूसरों की बीवी भी माँग लेते हैं अर्थात दूसरों की बीवी के साथ फोटो खिंचा लेते हैं। दूसरी ओर तुम हो कि तुमसे जूते भी माँगते न बना। निश्चय ही तुम फोटो के महत्त्व को नहीं समझते। लोग तो खुशबूदार तेल लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में से भी खुशबू आए। गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है अर्थात गंदे-से-गंदे आदमी भी बन-सँवरकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि वे फोटो में सुंदर लगें। विशेष-
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर । (1) कौन फोटो का महत्त्व नहीं समझता? लेखक ने ऐसा क्यों कहा? । 4. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। वह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। [पृष्ठ 62] शब्दार्थ-जमाने = समय। कीमती = महँगा। न्योछावर = कुर्बान। आनुपातिक = अनुपात। विडंबना = दुर्भाग्य। तीव्रता = तेज़ी। युग-प्रवर्तक = युग बदलने वाले। प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में इतने बड़े साहित्यकार कहलवाने वाले प्रेमचंद की आर्थिक दुर्दशा पर व्यंग्य किया गया है। इतने बड़े साहित्यकार होने पर उनका सम्मान सबसे अधिक होना चाहिए था और उनके पास पर्याप्त सुख-सुविधाएँ भी होनी चाहिए थीं जो कभी नहीं हुईं। उन्हें आजीवन गरीबी में ही जीना व मरना पड़ा। व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने टोपी व जूते की कीमत को लेकर समाज में उनके प्रति दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए कहा है कि टोपी आठ आने की मिल जाती है और जूते उस समय में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि टोपी उस समय जूतों से बहुत सस्ती थी। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है और अब तो जूते की कीमत और भी बढ़ गई है। एक जूते के बदले पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं अर्थात एक जूते की कीमत में पच्चीस टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं। जबकि जूतों की अपेक्षा टोपी का स्थान अधिक सम्माननीय है। इसलिए टोपी की कीमत अधिक होनी चाहिए थी। लेखक ने प्रेमचंद जी को संबोधित करते हुए कहा है कि तुम जूते और टोपी के मूल्य के अनुपात अधिक होने के कारण जूता नहीं खरीद सके, टोपी खरीद ली और जूता फटा हुआ ही पहन लिया क्योंकि जूता अधिक महँगा था और तुम्हारे पास जूता खरीदने के लिए धन नहीं था। प्रेमचंद का प्रसंग सामने आने से पूर्व लेखक को इस विडंबना की तीव्रता कभी अनुभव नहीं हुई थी जितनी आज हो रही है, वह भी उस समय जब प्रेमचंद का फटा हुआ जूता देख रहा था। कहने का भाव है कि जो वस्तु अधिक सम्मानजनक है, वह सस्ती है और जो वस्तु सम्मानजनक नहीं है, वह महँगी है। वास्तव में यह एक विडंबना ही है। इसके अतिरिक्त प्रेमचंद कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। वे महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट और युग को बदलने वाले थे और भी न जाने क्या-क्या कहलाते थे। किंतु फोटो में जूता फटा हुआ है अर्थात इतना बड़ा साहित्यकार होने पर भी उनकी आर्थिक दशा इतनी कमज़ोर है कि वे एक अच्छा जूता भी नहीं खरीद सकते। विशेष-
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (1) लेखक के अनुसार किसका मूल्य ज्यादा रहा और क्यों? 5. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा,
पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अंगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं! शब्दार्थ-तला = नीचे का भाग। जमीन = धरती। कुर्बान = न्योछावर । ठाठ से = बिना झिझक के। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक निबंध से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस निबंध में प्रेमचंद के जीवन की सादगी और आर्थिक अभाव को दर्शाते हुए दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य कसा गया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि लेखक की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है किंतु उसने उस पर पर्दा डाला हुआ है। प्रेमचंद अपनी स्थिति के प्रति चिंता नहीं करते थे। वे फटे जूते को भी मजे में पहने फिरते थे। व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक कहता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है अर्थात मेरी आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है। दिखने में मेरा जूता ऊपर से अच्छा लगता है किंतु जैसा दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं अर्थात मेरी आर्थिक दशा देखने भर के लिए अच्छी लगती है क्योंकि मैंने अपनी हीन आर्थिक दशा पर पर्दा डाला हुआ है। जैसे मेरा जूता ऊपर से ठीक लगता है परंतु उसका नीचे का भाग टूट चुका है। अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी या सख्त मिट्टी पर तो कभी रगड़ खाने पर खून भी बहने लगता है। इस प्रकार एक दिन पूरा तला गिर जाएगा और पूरा पँजा जख्मी हो जाएगा, किंतु अँगुली बाहर नहीं दिखाई देगी। कहने का भाव है कि लेखक अपनी आर्थिक दुर्दशा को छिपाए रखना चाहता है। किंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति को छिपाते। उनके फटे जूते में से उनकी अंगुली दिखती रही किंतु उन्होंने इसकी कभी चिंता नहीं की। वे फटे जूते को भी बिना किसी झिझक के पहनते रहे। परंतु उनका पाँव सुरक्षित रहा। वे फटे-हाल में रहकर भी मौज-मस्ती और बेपरवाही से जीवित रहे। प्रेमचंद परदे के महत्त्व को नहीं जानते थे। जबकि लेखक परदे पर जीवन छिड़कते थे अर्थात दिखावा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेखक पुनः कहता है कि तुम फटा जूता बड़ी शान और बेपरवाही से पहनते रहे, किंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं फटे जूते में फोटो तो कभी नहीं खिंचवाऊँगा चाहे कोई मेरी जीवनी बिना फोटो के ही क्यों न छाप दे। विशेष-
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (1) लेखक के अनुसार किसका मूल्य ज्यादा रहा और क्यों? 6. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अंगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल
जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं! शब्दार्थ-तला = नीचे का भाग। जमीन = धरती। कुर्बान = न्योछावर। ठाठ से = बिना झिझक के। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक निबंध से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस निबंध में प्रेमचंद के जीवन की सादगी और आर्थिक अभाव को दर्शाते हुए दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य कसा गया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि लेखक की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है किंतु उसने उस पर पर्दा डाला हुआ है। प्रेमचंद अपनी स्थिति के प्रति चिंता नहीं करते थे। वे फटे जूते को भी मजे में पहने फिरते थे। व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक कहता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है अर्थात मेरी आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है। दिखने में मेरा जूता ऊपर से अच्छा लगता है किंतु जैसा दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं अर्थात मेरी आर्थिक दशा देखने भर के लिए अच्छी लगती है क्योंकि मैंने अपनी हीन आर्थिक दशा पर पर्दा डाला हुआ है। जैसे मेरा जूता ऊपर से ठीक लगता है परंतु उसका नीचे का भाग टूट चुका है। अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी या सख्त मिट्टी पर तो कभी रगड़ खाने पर खून भी बहने लगता है। इस प्रकार एक दिन पूरा तला गिर जाएगा और पूरा पँजा जख्मी हो जाएगा, किंतु अँगुली बाहर नहीं दिखाई देगी। कहने का भाव है कि लेखक अपनी आर्थिक दुर्दशा को छिपाए रखना चाहता है। किंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति को छिपाते। उनके फटे जूते में से उनकी अँगुली दिखती रही किंतु उन्होंने इसकी कभी चिंता नहीं की। वे फटे जूते को भी बिना किसी झिझक के पहनते रहे। परंतु उनका पाँव सुरक्षित रहा। वे फटे-हाल में रहकर भी मौज-मस्ती और बेपरवाही से जीवित रहे। प्रेमचंद परदे के महत्त्व को नहीं जानते थे। जबकि लेखक परदे पर जीवन छिड़कते थे अर्थात दिखावा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेखक पुनः कहता है कि तुम फटा जूता बड़ी शान और बेपरवाही से पहनते रहे, किंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं फटे जूते में फोटो तो कभी नहीं खिंचवाऊँगा चाहे कोई मेरी जीवनी बिना फोटो के ही क्यों न छाप दे। विशेष-
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (1) लेखक का अपना जूता कैसा है? (2) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अपने जैसे उन लोगों पर व्यंग्य किया है जिनकी आर्थिक स्थिति वास्तव में अच्छी नहीं होती, किंतु वे उन पर परदा डालकर अच्छी आर्थिक स्थिति वाले दिखाई देना चाहते हैं। ऐसे लोग अपनी दयनीय स्थिति को प्रकट नहीं होने देना चाहते किंतु दूसरी ओर प्रेमचंद जैसे लोग भी हैं जो अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति पर परदा नहीं डालते। दिखावा करने वाले लोग कभी मौज-मस्ती में नहीं जी सकते। वे सदा चिंतामुक्त जीवन जीने के लिए विवश रहते हैं। (3) लेखक ने अपने बारे में बताया है कि वह परदे में विश्वास रखता है। वह फटा जूता नहीं पहन सकता और इस स्थिति में फोटो तो कतई नहीं खिंचवा सकता। प्रेमचंद के जीवन की दयनीय स्थिति के विषय में बेपरवाही से वह सहमत नहीं है। (4) परदे के प्रश्न को लेकर लेखक और प्रेमचंद दोनों के विचार विपरीत हैं। लेखक परदे को अनिवार्य मानता है, जबकि प्रेमचंद परदे के बिल्कुल पक्ष में नहीं हैं। उनका जीवन तो खुली पुस्तक की भाँति रहा है, जबकि लेखक जीवन की कमियों को छुपाकर जीने में विश्वास रखते हैं। प्रेमचंद अपनी छवि को बनाने के फेर में नहीं पड़े। 6. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमज़ोरी? ‘नेम-थरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुसकरा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी! शब्दार्थ-कमजोरी = कमी। नेम-धरम = कर्त्तव्य पालन करना । जंजीर = बंधन। घृणित = घृणा करने योग्य। इशारा = संकेत। प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित, श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित सुप्रसिद्ध निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से अवतरित है। इस निबंध में लेखक ने प्रेमचंद जी के सादगी युक्त एवं अंदर-बाहर से एक दिखाई देने वाले जीवन का उल्लेख किया है। साथ ही जीवन में दिखावा करने वाले लोगों के जीवन पर व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद के जीवन की कर्त्तव्यनिष्ठता की ओर संकेत किया है। व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने बताया है कि प्रेमचंद जीवन भर परिस्थितियों से समझौता नहीं कर सके। यह उनके जीवन में बहुत बड़ी कमी थी, क्योंकि समझौता करने वाले लोग सुखी जीवन व्यतीत करते हैं और जो समझौता नहीं कर सकते, उन्हें जीवन में कष्ट उठाने पड़ते हैं इसलिए लेखक ने समझौता न कर सकने को जीवन की कमजोरी बताया है। यही कमजोरी प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास ‘गोदान’ के नायक होरी की भी रही है। वह समझौता नहीं कर सका तथा ‘नेम-धरम’ की पालना उसके जीवन की कमजोरी बनी रही। ‘नेम-धरम’ उसके लिए बहुत बड़ा बंधन सिद्ध हुआ, किंतु फोटो में प्रेमचंद जिस अंदाज से मुस्करा रहे थे, उससे लगता है कि उनके लिए, शायद यह ‘नेम-धरम’, बंधन नहीं अपितु मुक्ति थी। … लेखक ने फोटो में उनके फटे जूते से बाहर निकली हुई अँगुली को देखकर कहा है कि तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती हुई-सी लगती है कि जिस वस्तु या विचार से तुम घृणा करते हो उसकी तरफ तुम हाथ से नहीं पाँव की इस अंगुली से संकेत करते हो। विशेष-
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर (1) प्रेमचंद की कमजोरी क्या थी? (2) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख भाव प्रेमचंद के सादगी युक्त जीवन पर प्रकाश डालना है। प्रेमचंद ने जीवन में गलत बातों के लिए या जीवन में सुख पाने के लिए कभी भी समझौता नहीं किया था। उनके जीवन की यही सबसे बड़ी कमजोरी भी थी। उनके उपन्यास ‘गोदान’ के नायक होरी की भी यही कमजोरी थी। वह भी ‘नेम-धरम’ को आजीवन नहीं छोड़ सका। वह नैतिकता शायद होरी के लिए बंधन थी। उसे वह मानसिक रूप से अपना चुका था। किंतु प्रेमचंद फोटो में जिस प्रकार मुस्करा रहे थे उससे लगता है कि उनके लिए ‘नेम-धरम’ बंधन नहीं, अपितु मुक्ति का कारण था क्योंकि वे ‘नेम-धरम’ का पालन करना अपना कर्त्तव्य समझते थे। यह उनकी मजबूरी नहीं थी। उन्होंने इसका पालन करके आनंद का अनुभव किया था, न कि उसे बोझ या बंधन समझा था। (3) वे ‘नेम-धरम’ का पालन किसी दबाव में आकर नहीं अपितु अपनी इच्छा से अपने आनंद या सुख-चैन के लिए करते थे। ‘नेम-धरम’ या नैतिकता का पालन करने में उन्हें मुक्ति का सुख अनुभव होता है। इसलिए ‘नेम-धरम’ उनके लिए बंधन नहीं मुक्ति थी। (4) जंजीर होने का अभिप्राय है-बंधन या बाधा होना। वस्तुतः होरी ‘नेम-धरम’ का पालन इसलिए करता है ताकि कोई उसको अनैतिक न कहे। इसलिए ‘नेम-धरम’ उसके लिए जंजीर के समान था। प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindiप्रेमचंद के फटे जूते लेखक-परिचय प्रश्न- 2. प्रमुख रचनाएँ श्री हरिशंकर परसाई जी ने बीस से अधिक रचनाएँ
लिखीं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं- 3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री परसाई जी व्यंग्य लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में व्यंग्य केवल व्यंग्य के लिए नहीं होते, अपितु व्यंग्य के माध्यम से वे समाज में फैली हुई बुराइयों, भ्रष्टाचार व अन्य समस्याओं पर करारी चोट करते हैं। इसी प्रकार वे अपनी व्यंग्य रचनाओं में केवल मनोरंजन ही नहीं करते, अपितु सामाजिक जीवन के विविध पक्षों पर गंभीर चिंतन भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की कमजोरियों और विसंगतियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उनका व्यंग्य साहित्य हिंदी में बेजोड़ है। उनका शिष्ट एवं सधा हुआ व्यंग्य आलोचनात्मक एवं कटु सत्य से भरपूर होने के कारण पाठकों के लिए ग्राह्य होता है। परसाई जी ने उच्च स्तर के व्यंग्य लिखकर व्यंग्य को हिंदी में एक प्रमुख विधा के रूप में स्थापित किया है। इनकी व्यंग्य रचनाओं की अन्य प्रमुख विशेषता है कि वे पाठक के मन में कटुता या कड़वाहट उत्पन्न न करके समाज की समस्याओं पर चिंतन-मनन करने व उनके समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं। 4. भाषा-शैली निश्चय ही श्री परसाई जी ने व्यंग्य विधा के अनुकूल सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। वे व्यंग्य-भाषा के प्रयोग में अत्यंत कुशल हैं। वे शब्द-प्रयोग के भी महान मर्मज्ञ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में भाषा का भाव एवं प्रसंग के अनुकूल प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लोकप्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया गया है। उन्होंने तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया है। तत्सम, तद्भव शब्दों के साथ-साथ अरबी-फारसी व अंग्रेजी शब्दावली का सार्थक एवं सटीक प्रयोग भी देखने को मिलता है। . प्रेमचंद के फटे जूते पाठ-सार/गद्य-परिचय प्रश्न- प्रेमचंद के फटे जूतों वाली फोटो को देखकर लेखक चिंता में पड़ गया। यदि फोटो खिंचवाते समय पोशाक का यह हाल है तो वास्तविक जीवन में क्या रहा होगा। किंतु फिर ख्याल आया कि प्रेमचंद जी बाहर-भीतर की पोशाक रखने वाले आदमी नहीं थे। लेखक सोच में डूब गया कि प्रेमचंद तो हमारे साहित्यिक पुरखे हैं, फिर भी उन्हें अपने फटे जूतों का जरा भी अहसास नहीं है। उनके चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास है। किंतु आश्चर्य की बात तो यह है कि उस समय प्रेमचंद के चेहरे पर व्यंग्य भरी हँसी थी। लेखक सोचता है कि प्रेमचंद ने फोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं कर दिया। फिर लगा कि पत्नी का आग्रह होगा। लेखक प्रेमचंद के दुःख को देखकर बहुत दुःखी हुआ। वह रोना चाहता है किंतु उसे प्रेमचंद की आँखों का दर्द भरा व्यंग्य रोक देता है। लेखक सोचता है कि लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए कपड़े, जूते तो क्या बीवी तक माँग लेते हैं। फिर प्रेमचंद ने ऐसा क्यों नहीं किया। आजकल तो लोग इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में से सुगंध आए। गंदे व्यक्तियों की फोटो खुशबूदार होती है। लेखक को प्रेमचंद का फटा जूता देखकर बड़ी ग्लानि होती है। लेखक अपने जूते के विषय में सोचता है कि उसका जूता भी कोई अच्छी दशा में नहीं था। उसके जूते का तला घिसा हुआ था। वह ऊपरी पर्दे का ध्यान अवश्य रखता है। इसलिए अँगुली बाहर नहीं निकलने देता। वह फटा जूता पहनकर फोटो तो कभी न खिंचवाएगा। लेखक का ध्यान फिर प्रेमचंद की व्यंग्य भरी हँसी की ओर चला जाता है। वह सोचता है कि उनकी इस रहस्यमयी हँसी का भला क्या रहस्य हो सकता है? क्या कोई हादसा हो गया या फिर कोई होरी मर गया अथवा हल्कू का खेत नीलगाय चर गई या फिर घीसू का बेटा माधो अपनी पत्नी का कफन बेचकर शराब पी गया। लेखक को फिर याद आ गया कि कुंभनदास का जूता भी तो फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिस गया था। लेखक को फिर बोध हुआ कि शायद प्रेमचंद जीवन-भर किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। वे रास्ते में खड़े टीले से बचने की अपेक्षा उस पर जूते की ठोकर मारते रहे होंगे। वे समझौता नहीं कर सकते थे। जैसे गोदान का होरी ‘नेम-धरम’ नहीं छोड़ सका; वैसे ही प्रेमचंद भी आजीवन नेम-धर्म नहीं छोड़ सके। यह उनके लिए मुक्ति का साधन था। प्रेमचंद की जूते से बाहर निकली अंगुली उसी वस्तु की ओर संकेत कर रही है जिस पर ठोकर मारकर उन्होंने अपने जूते फाड़ लिए थे। वे अब भी उन लोगों पर हँस रहे हैं जो अपनी अँगुली को ढकने की चिंता में तलवे घिसाए जा रहे हैं। लेखक ने कम-से-कम अपना पाँव तो बचा लिया। परंतु लोग तो दिखावे के कारण अपने तलवे का नाश कर रहे हैं। कठिन शब्दों के अर्थ – [पृष्ठ-61] : कनपटी = कानों के पास का भाग। केनवस = एक प्रकार का मोटा कपड़ा। बेतरतीब = बेढंगे। दृष्टि = नज़र । लज्जा = शर्म। क्लिक = फोटो खींचने की आवाज। विचित्र = अनोखा। उपहास = मजाक। व्यंग्य = तीखी बातों की चोट। [पृष्ठ-62] : आग्रह = जोरदार शब्दों में कहना। क्लेश = दुःख। वर = दुल्हा। आनुपातिक मूल्य = अनुपात के हिसाब से मूल्य तय करना। तीव्रता = तेजी। युग-प्रवर्तक = युग को आरंभ करने वाला। कुर्बान = न्योछावर। [पृष्ठ-63] : ठाठ = शान-शौकत। तगादा = जल्दी लौटाने के लिए संदेश भेजना। पन्हैया = जूती। बिसर गयो = भूल गया। हरि नाम = भगवान का नाम। [पृष्ठ-64] : नेम-धरम = कर्त्तव्य। जंजीर = बंधन। मुक्ति = स्वतंत्रता। घृणित = घृणा करने योग्य। बरकाकर = बचाकर। लेखक को प्रेमचंद का फोटो खींचने का क्या कारण प्रतीत होता है और क्यों?लेखक ने प्रेमचंद की सादगी का वर्णन करते हुए समाज में फैली दिखावे की परंपरा पर व्यंग किया है। प्रेमचंद के बारे में लेखक का विचार इसलिए बदल गया क्योंकि उसे लगा कि प्रेमचंद एक सीधे-साधे व्यक्ति थे वह फोटो खिंचवाने के लिए साधारण पोशाक में आए थे। वे अपनी वेशभूषा के बारे में अधिक ध्यान नहीं देते थे।
प्रेमचंद द्वारा फोटो खिंचवाने का क्या कारण बताया गया है?उत्तर. आशय - प्रेमचंद बनावटीपन को महत्त्व नहीं देते हैं इसीलिए वे माँगकर जूते पहनकर फोटो खिंचवाने के स्थान पर फटे जूतों के साथ फोटो खिंचाते हैं। वह बनावटी जीवन शैली से दूर रहते हैं।
लेखक के अनुसार लोग फोटो खिंचवाने के लिए क्या क्या करते है?Answer: लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
लेखक ने प्रेमचंद को ऐसा क्यों कहा की तुम फोटो का महत्व नहीं समझते?उत्तरः प्रेमचंद एक सादे, सरल तथा आडम्बरहीन व्यक्ति थे, उनके इसी व्यक्तित्व के कारण लेखक को लगा कि वे फोटो का महत्व नहीं समझते हैं। ..
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