भारत के मिट्टी संसाधन पर निबंध लिखिए - bhaarat ke mittee sansaadhan par nibandh likhie

असंगठित पदार्थों से बनी पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत को मृदा या मिट्टी (Soil) कहते हैं। यह अनेक प्रकार के खनिजों, पौधों और जीव-जन्तुओं के अवशेषों से बनी है। यह जलवायु, पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं और भूमि की ऊँचाई के बीच लगातार परस्पर क्रिया के परिणामस्वरूप विकसित हुई है। इनमें से प्रत्येक घटक क्षेत्र विशेष के अनुरूप बदलता रहता है। अतः मृदाओं में भी एक स्थान से दूसरे स्थान के बीच भिन्नता पाई जाती है। मृदा पारितंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि यह पेड़-पौधों का आश्रय स्थल होने के साथ उन्हें पोषक तत्व प्रदान करने का मुख्य स्रोत है। 

Table of Contents

  • मृदाओं के प्रमुख प्रकार (Major Types of Soils)
    • 1. जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil)
    • 2. काली मृदा (रेगड़ मृदा) [Black Soil (Ragd Soil)]
    • 3. लाल मृदा (Red Soil)
    • 4. लैटराइट मृदा (Laterite Soil)
    • 5. मरूस्थलीय मृदा (Desert Soil)
    • 6. पर्वतीय मृदा (Mountain Soil)

मृदाओं के प्रमुख प्रकार (Major Types of Soils)

भारत की मृदाओं को निम्नलिखित छ: प्रकारों में बाँटा जाता है : –

भारत के मिट्टी संसाधन पर निबंध लिखिए - bhaarat ke mittee sansaadhan par nibandh likhie
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Image Source – NCERT

1. जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil)

  • जलोढ़ मृदाएँ भारत के सतलुज, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के विस्तृत घाटी क्षेत्रों और दक्षिणी प्रायद्वीप के सीमावर्ती भागों में पाई जाती हैं।
  • भारत की सबसे उपजाऊ भूमि के 6.4 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र में जलोढ़ मृदाएँ फैली हुई हैं।
  • जलोढ़ मृदाओं का गठन बलुई-दोमट से मृत्तिका-दोमट तक होता है। इसमें पोटाश की अधिकता होती है, लेकिन नाइट्रोजन एवं जैव पदार्थों की कमी होती है।
  • सामान्यतया ये मृदाएँ धुंधले से लालामी भूरे रंग तक की होती हैं। इन मृदाओं का निर्माण हिमालय पर्वत और विशाल भारतीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाई गई गाद और बालू के लगातार जमाव से हुआ है।
  • अत्यधिक उत्पादक होने के नाते इन मृदाओं को दो उप-विभागों में बाँटा गया है:
    • नवीन जलोढ़क (खादर) और
    • प्राचीन जलोढ़क (बांगर)।
  • दोनों प्रकार की मृदाएँ संरचना, रासायनिक संघटन, जलविकास क्षमता एवं उर्वरता में एक दूसरे से भिन्न हैं।
  • नवीन जलोढ़क हल्का भुरभुरा दोमट है। जिसमें बालू और मृत्तिका का मिश्रण पाया जाता है। यह मृदा नदियों की घाटियों, बाढ़ मैदानों और डेल्टा प्रदेशों में पाई जाती है।
  • प्राचीन जलोढ़क दोआबा (दो नदियों के बीच की ऊँची भूमि) क्षेत्र में पाया जाता है। मृत्तिका का अनुपात अधिक होने के कारण यह मृदा चिपचिपी है और जलनिकास कमजोर है।
  • इन दोनों प्रकार की मृदाओं में लगभग सभी प्रकार की फसलें पैदा की जाती हैं।

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2. काली मृदा (रेगड़ मृदा) [Black Soil (Ragd Soil)]

  • काली मृदा दक्कन के लावा प्रदेश में पाई जाती है।
  • यह मृदा महाराष्ट्र के बहुत बड़े भाग, गुजरात, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भागों में पाई जाती है।
  • इस मृदा का निर्माण ज्वालामुखी के बेसाल्ट लावा के विघटन के परिणामस्वरूप हुआ है। इस मृदा का रंग सामान्यतया काला है जो इसमें उपस्थित अलुमीनियम और लोहे के यौगिकों के कारण है।
  • इस मृदा का स्थानीय नाम रेगड़ मिट्टी है और यह लगभग 6.4 करोड़ हैक्टेयर भूमि पर फैली है।
  • यह सामान्यतया गहरी मृत्तिका (चिकनी मिट्टी) से बनी है और यह अपारगम्य है या इसकी पारगम्यता बहुत कम है।
  • मृदा की गहराई भिन्न-भिन्न स्थानों में अलग-अलग है। निम्न भूमियों में इस मृदा की गहराई अधिक है जबकि उच्चभूमियों में यह कम है।
  • इस मृदा की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि शुष्क ऋतु में भी यह मृदा अपने में नमी बनाये रखती है।
  • ग्रीष्म ऋतु में इसमें से नमी निकलने से मृदा में चौड़ी-चौड़ी दरारें पड़ जाती है और जल से संतृप्त होने पर यह फूल जाती है और चिपचिपी हो जाती है, इस प्रकार मृदा पर्याप्त गहराई तक हवा से युक्त और आक्सीकृत होती है जो इसकी उर्वरता बनाये रखने में मदद देते हैं।
  • मृदा की इस प्रकार लगातार उर्वरता बनी रहने के कारण यह कम वर्षा के क्षेत्रों में भी बिना सिंचाई के कपास की खेती करने के लिये अनुकूल है।
  • कपास के अतिरिक्त यह मृदा गन्ना, गेहूँ, प्याज और फलों की खेती करने के लिये अनुकूल है।

3. लाल मृदा (Red Soil)

  • प्रायद्वीपीय पठार के बहुत बड़े भाग पर लाल मृदा पाई जाती हैं, इसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, दक्षिण-पूर्व महाराष्ट्र, आँध्र प्रदेश, उड़ीसा, छोटानागपुर पठार और मेघालय पठार के भाग सम्मिलित हैं।
  • यह मृदा ग्रेनाइट और नींस जैसी रवेदार चट्टानों पर विकसित हुई है और यह कृषि भूमि के 7.2 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र पर फैली है।
  • इस मृदा में लोहे के यौगिकों की अधिकता के कारण इसका रंग लाल है, परन्तु इसमें जैव पदार्थों की कमी है।
  • यह मृदा सामान्यतया कम उपजाऊ है और काली मृदा अथवा जलोढ़ मृदा की तुलना में लाल मृदा का कृषि के लिये कम महत्त्व है।
  • इसकी उत्पादकता सिंचाई और उर्वरकों के प्रयोग द्वारा बढ़ाई जा सकती है।
  • यह मृदा चावल, ज्वार-बाजरा, मक्का, मूंगफली, तम्बाकू और फलों की पैदावार के लिये उपयुक्त है।

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4. लैटराइट मृदा (Laterite Soil)

  • लैटराइट मृदा कर्नाटक, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, उड़ीसा, असम और मेघालय के ऊँचे एवं भारी वर्षा वाले भूभागों में पाई जाती है।
  • इस मृदा का विस्तार 1.3 करोड़ हैक्टेयर से भी अधिक क्षेत्रफल पर है।
  • इस मृदा का निर्माण उष्ण एवं आर्द्र जलवायु दशाओं में होता है।
  • लैटराइट मृदा विशेषतया ऋतुवत भारी वर्षा वाले ऊँचे सपाट अपरदित सतहों पर पाई जाती है।
  • इस मृदा का पृष्ठ गिट्टीदार होता है। जो आर्द्र और शुष्क अवधियों के प्रत्यावर्तन के परिणामस्वरूप बनता है।
  • अपक्षय के कारण लैटराइट मृदा अत्यन्त कठोर हो जाती है, इस प्रकार लैटराइट मृदा की प्रमुख विशेषतायें है:
    • जनक शैल का पूर्णतया रासायनिक विघटन,
    • सिलिका का सम्पूर्ण निक्षालन,
    • अलुमीनियम और लोहे के ऑक्साइडों द्वारा मिला लाल-भूरा रंग और ह्यूमस की कमी।
  • इस मृदा में पैदा की जाने वाले सामान्य फसलें चावल, ज्वार-बाजरा और गन्ना निम्न भूमियों में और रबर, कहवा तथा चाय जैसी रोपण फसलें उच्च भूमियों में है।

5. मरूस्थलीय मृदा (Desert Soil)

  • मरूस्थलीय मृदाएं पश्चिमी राजस्थान, सौराष्ट्र, कच्छ, पश्चिमी हरियाणा और दक्षिणी पंजाब में पाई जाती है।
  • इन क्षेत्रों में इस मृदा के पाये जाने का सीधा संबन्ध वहाँ पर विद्यमान मरुस्थलों एवं अर्ध-मरुस्थलों की दशाओं का होना तथा छः महीनों तक पानी की अनुपलब्धता है।
  • जैव पदार्थों की कमी सहित बलुई एवं पथरीली मृदा, ह्यूमस का कम होना, वर्षा का कभी-कभी होना, आर्द्रता की कमी और लम्बी शुष्क ऋतु मरुस्थलीय मृदा की विशेषतायें हैं।
  • इस मृदा के क्षेत्र में पौधे एक दूसरे से बहुत दूरी पर मिलते हैं।
  • मृदा का रंग लाल या हल्का भूरा हैं।
  • सामान्यतया इस मृदा में कृषि के लिये आधारभूत आवश्यकताओं की कमी है। परन्तु जब पानी उपलब्ध होता है तो इससे विविध प्रकार की फसलें जैसे कपास, चावल, गेहूं आदि उर्वरकों की उपयुक्त मात्रा देकर पैदा की जा सकती है।

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6. पर्वतीय मृदा (Mountain Soil)

  • पर्वतीय मृदाएँ जटिल है और इनमें अत्यधिक विविधता मिलती है।
  • यह नदी द्रोणियों और निम्न ढलानों पर जलोढ़ मृदा के रूप में पायी जाती है।
  • ऊँचे भागों पर अपरिपक्व मृदा या पथरीली है।
  • पर्वतीय भागों में भू आकृतिक, भूवैज्ञानिक, वानस्पतिक एवं जलवायु दशाओं की विविधता तथा जटिलता के कारण यहाँ एक ही तरह की मृदा के बड़े-बड़े क्षेत्र नहीं मिलते ।
  • इस मृदा के विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाई जाती है, जैसे चावल नदी घाटियों में, फलों के बाग ढलानों पर और आलू लगभग सभी क्षेत्रों में पैदा किया जाता है।

    मिट्टी पर निबंध कैसे लिखें?

    मिट्टी या मृदा अनेक प्राणियों के जीवन के लिए आवश्यक है। मिट्टी से ही पेड़ पौधे पोषित होते हैं और हमें फल, फूल, ऑक्सीजन, लकड़ी आदि दे पाते हैं। यह सभी वस्तुएं मानव और अन्य जीवों के लिए अत्यंत आवश्यक है। मिट्टी की सहायता से ही कृषि हो सकती है, जो हमारे जीवन संचालन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

    मिट्टी एक संसाधन है कैसे?

    मृदा संसाधन (Mrida Sansadhan) सबसे महत्वपूर्ण नवीकरण योग्य प्रकृतिक संसाधन है। यह पौधो का विकास करती है और लाखो जीवो का पोषण करती है। मृदा बनने की प्रक्रिया मे उच्चावच, जनक शैल अथवा संस्तर शैल, जलवायु, वनस्पति, अन्य जैव पदार्थ और समय मुख्य कारक है।

    भारत में कितने प्रकार की मिट्टी है?

    भारत में पाई जाने वाली प्रमुख प्रकार की मिट्टी- जलोढ़ मिट्टी, लाल मिट्टी, काली मिट्टी, पहाड़ी मिट्टी, रेगिस्तानी मिट्टी, लवणीय और क्षारीय मिट्टी, लेटराइट मिट्टी और पीट मिट्टी।

    मिट्टी क्या है मिट्टी के प्रकार?

    भारत की मिट्टी के प्रकार.
    पर्वतीय मृदा.
    जलोढ़ मृदा.
    काली मृदा.
    लाल मृदा.
    लैटेराइट मृदा.
    पीट एवं दलदली मृदा.
    लवणीय एवं क्षारीय मृदा.