शिक्षण अधिगम की मूल प्रक्रियाएँ Show
शिक्षण अधिगम की मूल प्रक्रियाएँ शिक्षण अधिगम की मूल प्रक्रियाएँBasic Processes of Teaching Learning CTET परीक्षा के पूर्व वर्षों के प्रश्न-पत्रों का अध्ययन करने के पश्चात् यह पता चलता है इस अध्याय से वर्ष 2011 में 3 प्रश्न, 2012 में 8 प्रश्न, 2013 में 2 प्रश्न, 2014 में 8 प्रश्न, 2015 में 6 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 4 प्रश्न पूछे गए हैं, जो परीक्षा के दृष्टिकोण से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। 17.1 शिक्षण शिक्षण (Teaching) एक बहुआयामी संकल्पना है, जिसका उद्देश्य होता है- शिक्षार्थियों को ज्ञान उपलब्ध कराना। शिक्षण की प्रक्रिया एक त्रिस्तरीय पद्धति है, जिसके अन्तर्गत अध्यापक, छात्र एवं पाठ्यक्रम आता है। शिक्षण के द्वारा बालकों के ज्ञानात्मक स्तर को बढ़ाने पर बल दिया जाता है जो बालकों के मानसिक, सामाजिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक स्तर को समृद्ध करता है। बेहतर शिक्षण हेतु यह अनिवार्य है कि शिक्षक ज्ञानवान हो तथा पढ़ाने की विधि उसे पता हो। हफ तथा डंकन के अनुसार, “शिक्षण चार चरणों वाली प्रक्रिया है― योजना, निर्देशन, मापन तथा मूल्यांकन।” बर्टन के अनुसार, “शिक्षण अधिगम हेतु प्रेरणा, पथ प्रदर्शन व प्रोत्साहन है।” 17.1.1 शिक्षा तथा स्कूलन, अधिगम, प्रशिक्षण, अध्यापन तथा अनुदेशन में संकल्पनात्मक भेद सामान्यतः लोग शिक्षा की अवधारणा को स्कूलन, अधिगम, अध्यापन अथवा अनुदेशन के रूप में समझने की भूल कर बैठते हैं। यद्यपि इन शब्दों तथा शिक्षा की प्रक्रिया के मध्य गहरा सम्बन्ध है, तथापि इन सभी के अर्थों में भिन्नता है। शिक्षा व्यापक अर्थ में शिक्षा (Education) एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जीवनभर चलती रहती है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत ज्ञान, अनुभव, कौशल तथा अभिवृत्तियाँ (Attitudes) सभी कुछ आते हैं। इस प्रकार जीवन के सभी अनुभव सम्भवतः शैक्षिक बन जाते हैं तथा शिक्षा की प्रक्रिया वैयक्तिक तथा सामाजिक दोनों प्रकार की अवस्थाओं में चलती रहती है। शिक्षा के इस अर्थ में उन सभी मूल्यों, अभिवृत्तियों तथा कौशलो, जिन्हें समाज बच्चो में डालना चाहता है, को विकसित करने सम्बन्धी सभी प्रयत्न सम्मिलित है। स्कूलन स्कूलन (Schooling) वह क्रिया है, जिसमें चेतन रूप में मूल्य (Value), ज्ञान तथा कौशलों को बच्चों में एक औपचारिक स्थिति की रूपरेखा के अन्तर्गत प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है। विद्यालयों द्वारा कुछ ऐसे विशेष विषय क्षेत्रों में सुविचारित व क्रमबद्ध प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, जो अन्य लोगों को जीवन प्रक्रिया या अनुभवों द्वारा प्राप्त न किया जा सके। इस तरह स्कूलन एक ऐसा शैक्षिक कार्य है, जिसमें दिए जाने वाले अनुभवों की एक निश्चित सीमा है तथा जो मानव जीवन की एक विशिष्ट अवधि तक सीमित है। स्कूलन हमारी शिक्षा का एक अंग मात्र है। अधिगम अधिगम (Learning) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अभ्यास अथवा अनुभव के आधार पर व्यवहार में परिवर्तन सम्भव होता है। शारीरिक परिवर्तन को अधिगम के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जाता। शिक्षा के द्वारा अधिगम प्रक्रियाओं को सुसंगत व्यक्तित्व विकास जैसे अपने व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। प्रशिक्षण प्रशिक्षण (Training) ऐसी क्रियाओं की एक क्रमबद्ध शृंखला है, जिसमें अनुदेशन, अभ्यास आदि सम्मिलित होते हैं तथा जिनका उद्देश्य जीवन अथवा व्यवसाय के किसी विशेष पक्ष से सम्बन्धित वांछनीय आदतों को उत्पन्न करना या व्यवहार प्रकट करना होता है। उदाहरण के लिए शिक्षण में पारंगत होने के लिए व्यक्ति अध्यापक प्रशिक्षण का सहारा लेता है, जबकि तकनीकी कौशलों के विकास के लिए वह तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त करता है। प्रशिक्षण के द्वारा विशिष्ट कौशलों का विकास तथा संवर्धन होता है ताकि प्रशिक्षण पाने वाले को सम्बन्धित क्षेत्र अथवा कार्य में विशेषज्ञ बनाया जा सके। शिक्षण तथा अनुदेशन यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिनका उपयोग मानव व्यवहार में अभीष्ट परिवर्तन लाने के लिए किया जाता है। शिक्षण तथा अनुदेशन (Teaching and Instruction) में अध्येता को विचारों, मूल्यो, कौशलो, सूचनाओं तथा ज्ञान का सम्प्रेषण कराना सम्मिलित होता है। अध्ययन तथा अनुदेशन का उद्देश्य विद्यार्थियों अथवा अध्येताओं को शिक्षित करने की दृष्टि से उनके अधिगम को प्रभावी बनाना होता है। इस प्रकार अध्यापन तथा अनुदेशन व्यक्तियों को शिक्षित करने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला एक साधन मात्र है। 17.1.2 शिक्षण अधिगम प्रक्रिया • अध्यापन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी के व्यवहार को उचित दिशा में प्रभावित करना अर्थात् उसके अधिगम को उचित दिशा में प्रभावी बनाना होता है। • अधिगम को प्रभावी बनाने तथा व्यवहार को परिवर्तन करने की उचित दिशा क्या हो, इसका निर्णय विद्यालय और अध्यापक मिलकर शैक्षिक उद्देश्य निर्धारित करते समय करते है। इसके लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक को शिक्षा के लक्ष्य और उसके उद्देश्यों के बारे में पता हो। साथ ही अध्यापक को इस योग्य होना चाहिए कि वह विद्यार्थी के सीखने के लिए प्रभावशाली साधनों का निर्माण कर सके और अन्त में वह यह निर्धारित कर सके कि इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किस सीमा तक जाना है? • शैक्षिक प्रक्रिया के तीन मुख्य बिन्दु है―उदेश्य, अधिगम अनुभव क्रियाएँ एवं विद्यार्थी का मूल्य निर्धारण। • शैक्षिक प्रक्रिया को सामान्य रूप में इस प्रकार समझा जा सकता है ph शैक्षिक प्रक्रिया का त्रिस्तरीय सोपान उपरोक्त चित्रण गतिमय है। इसमें तीनों मुख्य अंगों की पारस्परिक अन्त:क्रिया दिशा-तीरों के द्वारा बताई गई है। उद्देश्य यह निर्धारित करते है कि विद्यार्थी को कौन-से वांछित व्यवहार को प्राप्त करने की दिशा में चलना चाहिए? अधिगम अनुभव वे क्रियाएँ और अनुभव है जो वांछित व्यवहार प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी को करने चाहिए। • अध्यापन अनुभव प्रदान करने में अध्यापक का योगदान महत्त्पूर्ण होता है। अध्यापन अनुभवों में विद्यार्थी और विषय सामग्री के बीच अन्तःसम्बन्ध स्थापित करना निहित है। • अध्यापक विद्यार्थियों को अधिगम अनुभव प्रदान करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाता है। इन अनुभवों से विद्यार्थियों में व्यवहारगत परिवर्तन होते हैं। अत: अधिगम में विद्यार्थियों के व्यवहार में आया परिवर्तन शामिल है। विद्यार्थियों में उल्लेखनीय अधिगम होने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षण प्रभावी हो। • विद्यार्थियों में विषय सामग्री के अधिक आदान-प्रदान के लिए अध्यापक को उचित विधियों और माध्यम को अपनाना चाहिए। इस प्रकार प्रभावशाली अध्यापन वही है, जो उचित और सफल अधिगम अनुभवों की ओर ले जाए। • अध्यापन के अतिरिक्त शैक्षिक अनुभव प्राप्त करने के लिए और भी साधन अपनाए जा सकते हैं, जैसे लाइब्रेरी, प्रयोगशाला, रेडियो, फिल्मे, विज्ञान क्लब और भ्रमण जैसे या अन्य वास्तविक जीवन से सम्बन्धित सीखने की परिस्थितियाँ। • विद्यार्थी जाँच का प्रयोजन यह जानना है कि उद्देश्यों को किस सीमा तक प्राप्त कर लिया गया है? शैक्षिक प्रक्रिया यह बताती है कि प्रत्येक शिक्षण बिन्दु दूसरे के साथ कैसे जुड़ा है? • शैक्षिक प्रक्रिया के तीनों बिन्दुओं का आपसी सम्बन्ध अच्छी तरह जान लेना चाहिए। उद्देश्यों से आरम्भ करे, तो जो तीर अधिगम बिन्दुओं की ओर इशारा करते है वे बताते है कि शैक्षिक अनुभवों को चुनने अथवा बनाने में वे किस प्रकार सहायक होते हैं? • चित्र में जो तीर उददेश्यों से विद्यार्थी की जांच की ओर इशारा करता है वह बताता है कि मुख्य संकेत इस बात का सबूत है कि कार्यक्रम के उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त कर लिए गए हैं? जिस प्रकार शैक्षित उद्देश्य अधिगम के अनुभवों की सीमा रेखा निर्धारित करते हैं उसी प्रकार, वे विद्यार्थी की जाँच की सीमा भी निर्धारित करते हैं। • त्रिभुज में, जो तीर विद्यार्थी की जाँच से उद्देश्यों की ओर और फिर अधिगम अनुभवों की ओर संकेत करते हैं वे विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। पहली दशा के तीर यह बताते है कि जाँच के तरीको से उद्देश्य किस सीमा तक पूरा किया गया है? साथ ही जाँच यह संकेत देती है कि कुछ उद्देश्यों को ठीक प्रकार से निर्धारित करने की आवश्यकता है और कुछ को बिल्कुल निकाल देने की। विद्यार्थी की जाँच से निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर का पता लगाने में सहायता मिलती है (i) उद्देश्यों में संशोधन करना चाहिए या उन्हें हटा देना चाहिए। (ii) क्या ये उद्देश्य किसी वर्ग विशेष के लिए उपयुक्त है? (iii) क्या उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक सन्दर्भ प्राप्त है? • चित्र में जो तीर शिक्षार्थी की जाँच से अधिगम अनुभवों की ओर इशारा करता है, उससे पता लगता है कि अधिगम अनुभव किस सीमा तक सफलतापूर्वक कार्य कर रहे है? अत: इससे हमें शैक्षिक अनुभवों को सुधारने या बिल्कुल हटाने में सहायता मिल सकती है। जो तीर जाँच से अधिगम अनुभव की ओर संकेत करता है वह बताता है कि मूल्यांकन विशेषज्ञ द्वारा छांटी गई क्रियाएँ और समस्याएँ कौन-कौन से अधिगम अनुभवों की ओर संकेत करती है? • त्रिकोण का अन्तिम तीर जो अधिगम अनुभवों से उद्देश्यों की ओर इशारा करता है. यह बताता है कि अधिगम अनुभवों के प्रभाव से शिक्षक, विद्यार्थी और शिक्षण-सामग्री कैसे प्रभावित होते हैं और कैसे नए उद्देश्यो के लिए सुझाव मिलते है? 17.1.3 शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के सिद्धान्त शिक्षण प्रक्रिया के सिद्धान्त के सन्दर्भ में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों द्वारा कुछ सिद्धान्त दिए गए हैं, जो इस प्रकार है 1. निश्चित उद्देश्य का सिद्धान्त (Principle of Definite Aim) अध्यापन का कार्य करने से पूर्व शिक्षकों को पढ़ाने का उद्देश्य निर्धारित करना चाहिए। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के सन्दर्भ में प्रत्येक विषय-वस्तु का अपना एक महत्त्व होता है, जो शिक्षक एवं छात्र दोने को एक लक्ष्य प्रदान करता है। ये लक्ष्य दो प्रकार के होते हैं- प्रथम सामान्य उद्देश्य तथा द्वितीय विशिष्ट उद्देश्या सामान्य उद्देश्य विषय-वस्तु से सम्बन्धित अध्याय से होता है, जबकि विशिष्ट उद्देश्य का सम्बन्ध किसी अध्याय (topic) से होता है। उदाहरणस्वरूप यदि कोई सामाजिक विज्ञान का अध्यापक लोकतन्त्र’ नामक अध्याय अपने वर्ग में पढ़ाने की योजना बनाता है तो यह उस विषय से सम्बन्धित सामान्य उद्देश्य को दशांता है, यदि वह नागरिकशास्त्र पढ़ाने की बात करता है, तो यह विशिष्ट उद्देश्य को दर्शाता है, जिनके अन्तर्गत लोकतन्त्र भी आता है। परस्पर सम्बन्ध का सिद्धान्त (Principle of Corelation) यह सिद्धान्त परस्पर सम्बन्ध के आधार पर शिक्षण प्रणाली को मजबूत बनाने पर जोर डालता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि यह सिद्धान्त आगमनात्मक (Inductive) से निगमनात्मक (Deductive) शिक्षण नियमों का अनुसरण (Follow) करता है। यदि कोई अध्यापक अपने वर्ग में संज्ञा (Noun) के विषय में पढ़ाता है, तो उस अध्याय को वर्तमान उपस्थित उदाहरणों से जोड़कर पढ़ाना चाहिए, जैसे―कुर्सी, टेबल, कलम एवं आम इत्यादि। इस प्रकार, यह विधि केवल शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली ही नहीं बनाती, बल्कि विद्यार्थियों को सम्बन्धित अध्याय से जोड़ती भी है। 3. अभिप्रेरणा का सिद्धान्त (Principle of Motivation) शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में अभिप्रेरणा असाधारण भूमिका निभाती है। यह अभिप्रेरणा आन्तरिक एवं बाह्य दो रूपों में होती है। आन्तरिक अभिप्रेरणा व्यक्तिगत रूप से स्वयं द्वारा संचालित होती है तथा यह किसी कार्य को करने के लिए व्यक्ति को स्वयं अभिप्रेरित करती है। दूसरे शब्दों में बाह्य अभिप्रेरणा शिक्षको के द्वारा विद्यार्थियों को उपलब्ध करायी जाती है। उपरोक्त दोनों प्रकार की अभिप्रेरणा न केवल विद्यार्थियों के लिए, बल्कि शिक्षकों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योकि दोनों शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के स्तम्भ है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक एवं छात्र दोनों अभिप्रेरित नहीं हों, तो शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया की दर में हास हो सकता है। 4. पुनरीक्षण एवं अभ्यास का सिद्धान्त (Principle of Revision and Practice) यह प्रसिद्ध लोकोक्ति (proverb) है कि “अभ्यास मनुष्य को पूर्ण (perfect) बनाता है”। यह लोकोक्ति शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षण के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण पहलू होता है, क्योकि शिक्षक विद्यार्थियो को विषय-वस्तु से सम्बन्धित अभ्यास एवं गृह कार्य प्रदान करता है, जो छात्रों की मूल्यांकन की एक विधि भी है यह मूल्यांकन प्रक्रिया छात्रों को रचनात्मक मूल्यांकन (formative- assessment) में मदद करती है। 5. पुनर्बलन का सिद्धान्त (Principle of Reinforcement) यह सिद्धान्त प्रसिद्ध व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक बी एफ स्किनर (B.F. Skinner) द्वारा दिया गया है । इस सिद्धान्त के अनुसार पुनर्बलन दो प्रकार के होते हैं- प्रथम, सकारात्मक पुनर्बलन, जो शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया की दर को बढ़ाता है तथा द्वितीय नकारात्मक पुनर्बलन जो शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की दर को घटाता है। सकारात्मक पुनर्बलन पुरस्कार से सम्बन्धित होता है, जो व्यक्तिगत रूप से कठोर परिश्रम पर आधारित होता है। कभी-कभी नकारात्मक पुनर्बलन भी सकारात्मक पुनर्बलन का कार्य करता है, जब व्यक्ति को दण्डित किया जाता है, तथा इसके माध्यम से वह स्वयं में सुधार लाता है। इस प्रकार की परिस्थितियाँ, नकारात्मक पुनर्बलन के द्वारा एक ही तरीके से सकारात्मक पुनर्बलन में कार्य करती है। 6. उद्दीपन का सिद्धान्त (Principle of stimulation) उत्तेजना पद (term) किसी कार्य को व्यक्तिगत रूप से करने की अवस्था को दर्शाती है। इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि कोई विद्यार्थी व्यक्तिगत रूप से कार्य के प्रति उत्तेजित रहता है, तो वह शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के दौरान अधिक सक्रिय एवं सृजनशील होगा। किसी व्यक्ति को उत्तेजित करने के लिए विभिन्न कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो वातावरण, व्यक्तिगत अभिरुचि, शिक्षण तकनीक तथा शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में होता है। 17.1.4 शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के विभिन्न आयाम शिक्षक अपने शिक्षण कार्य को प्रभावशाली सरल एवं नियमानुसार बनाने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग करते हैं। शिक्षण नियम विद्यार्थी एवं शिक्षक दोनो के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से सम्बन्धित कुछ नियम इस प्रकार दिए गए है― 1. सरल से जटिल (Simple to Complex) शिक्षक को शिक्षण के दौरान विद्यार्थियों को पहले सरल (Easy) बाते बतानी चाहिए, जो एक क्रम में हो अर्थात् पहले गिनती (Counting), पहाड़ा (Table) तब जोड़, घटाव ……….. इत्यादि। इसके बाद जटिल बाते बतानी चहिए। 2. ज्ञात से अज्ञात की ओर (Known to Unknown) शिक्षक को शिक्षण के समय सबसे पहले विद्यार्थियों को पढ़ाई जाने वाली विषय-वस्तु से सम्बन्धित जानकारी देनी चाहिए। तत्पश्चात् विषय-वस्तु को आधार बनाते हुए नवीन जानकारी देनी चाहिए। 3. विश्लेषण से संश्लेषण (Analysis to Synthesis) शिक्षक स्वयं पढ़ाई जाने वाली विषय-वस्तु के तथ्यों का विश्लेषण कर व्यापक जानकारी एकत्र करें तथा तत्पश्चात् उन विश्लेषित विषय वस्तुओं को संयोजित कर संश्लेषित करना चाहिए, ताकि अध्यापन के दौरान उन्हें सुविधा हो। 4. आगमनात्मक से निगमनात्मक (Inductive to Deductive) इस विधि के अन्तर्गत शिक्षकों को विषय-वस्तु से सम्बन्धित नियम से पहले उदाहरण देना चाहिए, ताकि बच्चे आसानी से विषय को समझ सके। 5. निगमनात्मक से आगमनात्मक (Deductive to Inductive) इसके अनुसार, शिक्षकों को विषय-वस्तु से सम्बन्धित नियमों को पहले बताना चाहिए, तत्पश्चात् उदाहरण (Example) को ताकि विद्यार्थी नियम एवं उदाहरणों के मध्य समन्वय बना सकें। 6. यथार्थपूर्ण से भावनात्मक (Concrete to Abstract) यह अवधारणा इस बात पर बल देती है कि शिक्षण के समय शिक्षक को भौतिक सामग्रियों के आधार पर बालकों को पढ़ाना चाहिए; जैसे-पेड़-पौधे, जानवर तथा पानी इत्यादि। इसके पूर्व वैसी सामग्रियों के विषय में शिक्षण देना चाहिए। जिसे हम प्रत्यक्ष रूप से नहीं समझ सकते, परन्तु महसूस करते हैं, जैसे–हवा, प्रकाश तरंग तथा तापमान इत्यादि। 17.1.5 शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षण रणनीति का उपयोग शिक्षण रणनीति एक ऐसा पद है, जिसका उपयोग शिक्षक, शिक्षण के समय करके यह पता लगाते हैं कि विद्यार्थी शिक्षा की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से कक्षा में शामिल है या नहीं। शिक्षको के पास कुछ ऐसी रणनीतियाँ होती है, जो उन्हें यह जाँच करने में सक्षम बनाती है। शिक्षार्थी पढ़ाई के प्रति रुचि लेते हैं या नहीं। शिक्षक विद्यार्थियों से कुछ प्रश्न पूछकर शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया की जांच करते हैं, जो इस प्रकार है • सम्बन्धित अध्याय के विषय में सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं के बारे में बताना। लेखक द्वारा लिखे गए अध्याय का क्या उद्देश्य है? इसकी चर्चा करना पड़ी हुई विषय-वस्तु हमारे दैनिक जीवन में किस प्रकार उपयोगी है यह बताना। • आप क्या करते यदि आप कविता तथा कहानी के किरदार होते? अध्याय को समझने के लिए कुछ अलग उदाहरण देना। विषय को सक्षेप में प्रस्तुत करें तथा इसे अपने शब्दों में लिखें अध्याय को समझाएं तथा इसके लिए कोई दूसरा उदाहरण प्रस्तुत करे। 17.1.6 शिक्षण की रणनीतियाँ शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के सिद्धान्तों का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि छात्रों को किसी विषय-वस्तु के विषय में कैसे सिखाया जाए? शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में छात्रों की उपस्थिति होना सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। अत: इन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया को समझा जा सकता है, जो छात्रों एवं शिक्षको दोनों के लिए उपयोगी होता है। शिक्षण के क्षेत्र में 6 Es (एस) एवं एक S (एस) मॉडल को अपनाया जाता है। जो बताता है कि एक शिक्षक अपने छात्रों को कक्षा में किस प्रकार से शिक्षण-प्रक्रिया को उपयोगी बना सकते है, साथ ही छात्रों को भी सीखने की प्रवृत्ति के विषय में उपयोगी होता है, ये 6 Es एवं एक S (एस) है― संलग्न होना (Engage), अन्वेषण (Explore), व्याख्या (Explain), विस्तृत (Elaborate), मूल्यांकन (Evaluate), विस्तार (Extend) एवं मानक (Standards) इत्यादि। विस्तृत एवं मानक हॉल ही में जोड़े गए है। इन मॉडलों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है 1. संलग्न (Engage) इस प्रक्रम में छात्रों को सीखने के क्रम में उत्सुक बने रहना अनिवार्य होता है, शिक्षक को भी चाहिए कि वे छात्रों में किसी पाठ आदि के प्रति उत्सुकता उत्पन्न करते रहे। सारांशत: यह कहा जा सकता है कि उत्सुकता उद्दीपन की एक प्रक्रिया है, जो छात्रों के ज्ञान को बढ़ाती है तथा उन्हें विषय-वस्तु के साथ संलग्न करती है। 2. अन्वेषण की क्षमता (Explore/Freedom to Investigation) अन्वेषण का अर्थ छात्रों द्वारा किसी विषय-वस्तु की गहराई का अवलोकन करना होता है। यह छात्रों में जागरूकता की भावना को उत्पन्न करता है, इस प्रक्रम में शिक्षक भी छात्रों को किसी विषय-वस्तु की गम्भीरता को बताते हैं, जो अन्ततः छात्रों द्वारा उस उपयुक्त विषय के बारे में अधिक-से-अधिक जानकारी प्राप्त कर ली जाती है। 3. समझना (Explain/Analysis of Explore Stagge) शिक्षण प्रक्रम की यह वैसी अवस्था है, जिसके अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि छात्रों उक्त विषय के बारे में कितनी अधिक जानकारियाँ प्राप्त की है। इस प्रक्रिया में किसी विषय वस्तु की तथ्यात्मक तथा विश्लेषणात्मक आयामो की छात्रों से जानकारी ली जाती है। 4. ज्ञान का विस्तृत उपयोग (Elaborate Application of Knowledge) ज्ञान के अनुप्रयोग का अर्थ अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करना होता है। इसके अन्तर्गत प्राप्त की गई जानकारी को वास्तविक जीवन में अनुप्रयोग करना होता है अर्थात् छात्र अपने ज्ञान की तथ्यात्मक, विश्लेषणात्मक एवं अन्य बिन्दुओं का प्रयोग करते हैं। 5. मूल्यांकन (Evaluation) मूल्यांकन के प्रक्रम में शिक्षक एवं छात्र दोनों को शामिल किया जाता है, यह एक सतत प्रक्रिया होती है, जिसमें समय-समय पर छात्रों का मूल्यांकन होता है यह मूल्यांकन मुख्यत: दो प्रकार का होता है। प्रथम रचनात्मक मूल्यांकन एवं द्वितीय योगात्मक मूल्यांकन। 6. विस्तार (Extend) शिक्षण- अधिगम प्रक्रम में विस्तार का अर्थ अपने दिए गए पाठ्यक्रम के अलावा ज्ञान का प्राप्ति करना होता है। इस प्रक्रम में शिक्षक छात्रों को नए-नए तथ्यों से अवगत कराते रहते हैं। 7. मानक (Standards) शैक्षणिक संस्थानों के द्वारा निर्धारित मानदण्डो (Norms) को इस प्रक्रम के अन्तर्गत रखा जाता है। शैक्षणिक क्षेत्र के प्रमुख प्राधिकरण हैं राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद-एन सी ई आर टी (NCERT) National Council of Education Research and Training. एन सी टी ई (NCTE) राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (National Council For Teacher Education), एन.पी.ई (NPE) (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) (National Policy of Education), सी.सी.ई. मैन्यूअल (CCE, Manual) सतत और व्यापक मूल्यांकन निर्देश (Continuous and Comprehensive Evaluation), एवं राज्य बोर्ड (State Board) इत्यादि। इन मानदण्डों का शिक्षक एवं छात्र दोनों के द्वारा अनुसरण किया जाता है, जो शैक्षणिक स्तर को गति प्रदान करते है। 17.1.7 सीखना एक सामाजिक गतिविधि सीखना एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, संसार में प्रत्येक व्यक्ति की सीखने की कला व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग होती है महान् दार्शनिक अरस्तु के अनुसार, “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।” प्रत्येक व्यक्ति समाज के माध्यम से सीखता है, जो उसके दिन-प्रतिदिन क्रियाओं में देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए जब कोई बालक जन्म लेता है, तो उसका परिवार प्रथम पाठशाला की भूमिका निभाता है। परिवार के माध्यम से वह कई चीजो को सीखता है। इस अवस्था में बालक अनुसरण के माध्यम से सीखता है, वह मुख्य रूप से माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन तथा पड़ोसियों का अनुसरण करता है। कुछ वर्षों के बाद जब वह विद्यालय में प्रवेश करता है, तो उसका सामाजिक विस्तार बढ़ जाता है तथा इस रूप में वह मित्रों एवं शिक्षकों के सम्पर्क में आ जाता है। मित्र एवं शिक्षक दोनो बालकों के सीखने की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। दूसरे शब्दों में विद्यालय की अवस्था में बालक मित्रों का समूह बनाता है। इस प्रक्रिया से बालकों में भावनात्मक विकास होता है तथा वह धीरे-धीरे सामाजिक मूल्य, संस्कृति, परम्परा रीति-रिवाज, धर्म तथा समुदाय के विषय में जानने लगता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि बालक समाज के माध्यम से अधिकतम आचार एवं व्यवहार को सीखता है, जो उसके व्यावहारिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। 17.1.8 अधिगम के सामाजिक सन्दर्भ सीखने के सामाजिक सन्दर्भ (Social Contexts of Learning), शिक्षार्थियो को अधिगम प्रक्रिया में बहुत मदद करते हैं तथा ये सभी माध्यम सीखने वालों के लिए सूचना के स्रोत के रूप में कार्य करते है। नीचे दी गई भनलिखित विधियाँ विद्यार्थियों को अधिगम प्रक्रिया में लाभ पहुँचाती है,जो इस प्रकार हैं 1. स्वयं अध्ययन (Self-Study) स्वयं अध्ययन तकनीक सीखने की प्रारम्भिक प्रक्रिया है, जो सामाजिक सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। यह सामाजिक सन्दर्भ के विषय में विचार करता है, क्योंकि यह व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार से अभिप्रेरित होता है, अभिप्रेरणा स्वयं अध्ययन मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कोई भी बालक दो ही स्थितियों में पढ़ सकता है, प्रथम जब वह पढ़ाई के प्रति स्वयं जागरूक हो तथा उसके पढ़ने का उद्देश्य लक्ष्य केन्द्रित हो तथा द्वितीय अवस्था परिस्थिति जन्य अवस्था होती है, जो उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। विद्यालय का बल भी स्वयं अध्ययन पर रहता है, ताकि बच्चे विषय-वस्तु के सन्दर्भ में एक स्वतन्त्र मौलिक दृष्टिकोण का विकास कर सके। विद्यार्थी किसी महापुरुष की जीवनी, उनसे सम्बन्धित कहानियाँ तथा उनका जीवन संघर्ष इत्यादि के माध्यम से पढ़ाई के प्रति स्वयं को समर्पित कर सकता है। 2 समूह परिचर्चा (Group Discussion) समूह परिचर्चा सामाजिक संदर्भ में सीखने का अभिन्न अंग है। यह दो-या-दो से अधिक व्यक्तियों का औपचारिक या अनौपचारिक समूह होता है, जिसके द्वारा विभिन्न समस्याओं के समाधान पर परिचर्चा, नवीन विचारों का सृजन, तथा ज्ञान का क्षेत्र इत्यादि के सन्दर्भ में एक दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। समूह परिचर्चा के माध्यम से किसी विषय एवं अध्याय के विषय में अधिक सूचनाओं का संग्रह होता है। इसके माध्यम से एक-दूसरे का (विद्यार्थियो) विषय-वस्तु से सम्बन्धित समस्या का समाधान हो जाता है। 3. एक-से-एक अधिगम (One-to-One Learning) इसका अभिप्राय होता है अधिगम की प्रक्रिया केवल एक व्यक्ति की भूमिका जो प्रशिक्षक के रूप में होता है, यह प्रशिक्षक कोच, विषय विशेषज्ञ एवं गुरु कोई भी हो सकता है, जो अधिगम प्रक्रिया में विद्यार्थियों की मदद करता है। विचारों एवं अवधारणाओं का स्थानान्तरण शिक्षक एवं शिक्षार्थियों की आपसी परस्पर क्रियाओं के द्वारा होता है। यदि आपका प्रशिक्षक, अनुशिक्षक (Tutor) हो, तो अधिगम प्रक्रिया अधिक महंगी हो जाएगी तथा यह भी हो सकता है कि अनुशिक्षक विषय-वस्तु को संभालने में सक्षम ना हो। इस स्थिति में अधिगम प्रक्रिया अपना महत्त्व खोने लगती है। इस स्थिति में अनुशिक्षक बदलने के अलावा विद्यार्थियों के पास कोई विकल्प नहीं होता। मित्र, परिवार के सदस्य तथा कोई सम्बन्धी भी एक-से-एक अधिगम प्रक्रिया में प्रशिक्षक की भूमिका निभा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि शैक्षिक-तकनीक, अधिगम की विधियों एवं प्रविधियों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की सहायक सामग्री के प्रयोग द्वारा शिक्षा के आधुनिकीकरण में शिक्षकों के लिए सहायक की भूमिका अदा करती है। अध्यापन में शैक्षिक तकनीक की उपयोगिता शैक्षिक – तकनीक की निम्नलिखित विशेषताओं से इसकी उपयोगिता का पता चलता है • यह वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित होती है। • यह शिक्षण को वैज्ञानिक, रुचिकर, वस्तुनिष्ठ, सरल एवं उद्देश्यपरक बनाने में सहायक होती है। • यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली एवं सार्थक बनाती है। • इसमें प्रभावशाली अधिगम के लिए विधियों एवं तकनीकों के विकास पर बल दिया जाता है। • यह छात्रों एवं शिक्षकों के व्यवहारों में अपेक्षित परिवर्तन लाती है एवं शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सीखने की परिस्थितियों को प्यवस्थित या संगठित करती है। 17.2 सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक व्यवहार में सुधार के लिए अपनाई जाने वाली प्रविधियों में से सूक्ष्म शिक्षण भी है। यह एक प्रशिक्षण प्रणाली है जिसका प्रयोग अध्यापकों को कक्षा अध्यापन प्रक्रियाओं की शिक्षा देने हेतु किया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण (Micro Touching) वास्तविक शिक्षण है, परन्तु इस प्रणाली में साधारण कक्षा अध्यापन को जटिलताओं को कम कर दिया जाता है तथा एक समय में किसी भी एक विशेष कार्य एवं कौशल के प्रशिक्षण पर हो ओर दिया जाता है। इसमें प्रतिपुष्टि द्वारा अभ्यास को नियन्त्रित किया जा सकता है। डी. एलन की परिभाषा के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओ मे बाटना है।” सूक्ष्म शिक्षण चक्र को निम्नलिखित चित्र को सहायता से समझा जा सकता है ph सूक्ष्म शिक्षा चक्र 17.2.1 सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त Principles of Micro Teaching • यह वास्तविक अध्यापन है। • इसमें एक समय में एक ही कौशल के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता है। • अभ्यास की प्रक्रिया पर नियन्त्रण रखा जा सकता है। • पृष्ठपोषण के प्रभाव की परिधि विकसित होती है। 17.2.2 शिक्षण कौशल • सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग शिक्षण कौशलों के (Teaching Skills) विकास के लिए किया जाता है। • शिक्षण कौशलों से तात्पर्य उन शिक्षक-व्यवहार स्वरूपों से होता है, जो छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के लिए प्रभावशाली होते है। • एन.एल. गेज ने शिक्षण कौशल को इस तरह परिभाषित किया है, “शिक्षण कौशल वह विशिष्ट अनुदेशन प्रक्रिया है जिसे अध्यापक अपनी कक्षा-शिक्षण में प्रयोग करता है एवं जो शिक्षण-क्रम की उन क्रियाओं से सम्बन्धित होता है, जिन्हें शिक्षक अपनी कक्षा अन्त:क्रिया में लगातार उपयोग करता है।” • अध्यापक अपने शिक्षण में अनेक प्रकार के कौशलो का उपयोग करता है। इनमें से कुछ प्रमुख कौशल निम्न प्रकार है – उद्दीपन – विन्यास प्रेरणा – समीपता – मौन एवं अशाब्दिक अन्त:प्रक्रिया – पुनर्बलन – प्रश्न पूछना – खोजपूर्ण प्रश्न – विकेन्द्री प्रश्न – छात्र व्यवहार का ज्ञान – दृष्टान्त देना – व्याख्यान – उच्चस्तरीय प्रश्न करना – नियोजित पुनरावृत्ति एवं सम्प्रेषण 17.2.3 शिक्षण विधियाँ एवं शिक्षण व्यूह रचनाएँ • शिक्षण व्यूह रचना शिक्षण विधि से भिन्न होती है। शिक्षण व्यूह रचना का अर्थ है शिक्षण की रणनीति का निर्माण एवं उसका प्रयोग, जबकि शिक्षण विधि का अर्थ होता है- शिक्षण का तरीका। यद्यपि कुछ शिक्षण व्यूह रचनाओं को आव्यूहों की संज्ञा भी दी जा सकती है, परन्तु जब उन्हें आव्यूह कहा जाता है, तब उनका उद्देश्य बदल जाता है। • शिक्षण विधियों में कार्य तथा प्रस्तुतीकरण को महत्त्व दिया जाता है, जबकि शिक्षण आव्यूहों में उद्देश्यों को महत्त्व दिया जाता है। शिक्षण विधियाँ तीन प्रकार की होती है―कधन विधियाँ, प्रदर्शन विधियाँ एवं कार्य विधियाँ। स्टोन्स एवं मौरिस के अनुसार, “शिक्षण व्यूह रचना पाठ की एक सामान्य योजना है, जिसमें उसकी संरचना, शैक्षणिक लक्ष्यों के रूप में छात्रों का अपेक्षित व्यवहार और व्यूह रचना को प्रयोग करने के लिए आवश्यक नियोजित युक्तियों की रूपरेखा शामिल है।” • शिक्षण व्यूह रचनाओं को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है―प्रभुत्ववादी व्यूह रचनाएँ तथा प्रजातान्त्रिक व्यूह रचनाएँ। • व्याख्यान, प्रदर्शन, ट्यूटोरियल समूह एवं अभिक्रमित अनुदेशन प्रभुत्ववादी व्यूह रचना के प्रकार हैं। प्रजातान्त्रिक व्यूह रचना के अन्तर्गत कई व्यूह रचनाएँ आती है। • जिनमें से कुछ प्रमुख व्यूह रचनाएँ इस प्रकार है― प्रश्नोत्तर व्यूह रचना, खोज अथवा अन्वेषण व्यूह रचना, प्रोजेक्ट व्यूह रचना, सामूहिक वाद-विवाद व्यूह रचना, गृहकार्य व्यूह रचना, कम्प्यूटर द्वारा प्रशिक्षण इत्यादि। 17.2.4 शिक्षण विधियों के प्रकार • शिक्षक, शिक्षण विधियों के उपयोग से छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाता है और छात्र शिक्षकों की सहायता से सीखने के अनुभव प्राप्त करते है, परन्तु अनेक शिक्षण विधियों को छात्रों की समस्त क्षमताओं के विकास के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। शिक्षक एवं छात्रों की भूमिका के आधार पर शिक्षण विधियों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है 1. शिक्षक-नियन्त्रित अनुदेशन (Teacher Controlled Instruction) यह शिक्षण की सर्वाधिक प्राचीन विधि है। इसमें शिक्षक की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है। शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है। इस प्रकार शिक्षण विधियों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है; व्याख्यान विधि, पाठ-प्रदर्शन विधि तथा अनुवर्ग-शिक्षण विधि। 2. छात्र-नियन्त्रित अनुदेशन (Student Controlled Instruction) 19वीं शताब्दी में मनोविज्ञान ने शिक्षा एवं शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावित किया और छात्र के विकास को प्राथमिकता दी जाने लगी। प्रकृतिवादी, दर्शन ने भी छात्र की प्रकृति के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था को महत्त्व दिया। इस प्रकार की शिक्षा छात्र केन्द्रित होने लगी और छात्र का स्थान मुख्य एवं शिक्षक का स्थान गौण होता गया। छात्र-नियन्त्रित अनुदेशन में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि छात्र का विकास स्वाभाविक रूप से हो, जिससे उसकी क्षमताओं तथा योग्यताओं का सम्पूर्ण विकास हो सके। छात्र-नियन्त्रित अनुदेशन के उदाहरण―कैलर-योजना, अभिक्रमित अनुदेशन, कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन, स्वामित्व अधिगम, गृहकार्य विधि, खेल-विधि, कहानी विधि इत्यादि छात्र-नियन्त्रित अनुदेशन के उदाहरण हैं। 3. समूह-नियन्त्रित अनुदेशन (Group Controlled Instruction) समूह नियन्त्रित अनुदेशन में छात्रों को विभिन्न समूहों में बाँटकर शिक्षा दी जाती है। यह एक प्रकार का छात्र-नियन्त्रित अनुदेशन ही है, अन्तर केवल इतना है कि इसमें शिक्षक छात्रों की पूरी निगरानी करते हैं। अनुकरणीय विधि, शैक्षिक यात्रा विधि, योजना विधि, ऐतिहासिक खोज विधि इत्यादि समूह नियन्त्रित विधि के उदाहरण है। 4. शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन (Teacher and Student Controlled Instruction) शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन में शिक्षक एवं छात्र दोनों की भूमिका होती है। प्रश्नोत्तर विधि, अन्वेषण विधि, सामूहिक वाद-विवाद विधि, संवेदनशील प्रशिक्षण विधि इत्यादि शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन के उदाहरण है। 17.2.5 शिक्षण विधि की विभिन्न तकनीक 1. किण्डर गार्टन प्रणाली किण्डर गार्टन प्रणाली (Kinder Garten Process) के जन्मदाता जर्मन मनोवैज्ञानिक फ्रोबेल हैं। इसके अनुसार, विद्यालय बालको का बगीचा है, जिससे बालक स्वच्छन्दता के परिवेश में खेल सके। • इस प्रणाली के तहत बच्चों को खेल के माध्यम से सिखाया जाता है। • इस प्रणाली के कई लाभ हैं; जैसे― शिशु शिक्षा पर बल, खेल द्वारा शिक्षा, बालकों की स्वतन्त्रता, सामाजिक भावना का विकसित होना, प्राकृतिक वातावरण के साथ अध्ययन इत्यादि। 2. प्रोजेक्ट या परियोजना विधि प्रोजेक्ट शिक्षा प्रणाली का जनक किल पैट्रिक को माना जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न विधियों का प्रयोग होता है • अध्यापक वाद-विवाद के माध्यम से बालकों के समक्ष समस्या उत्पन्न करता है तथा उसके समाधान के लिए कहा जाता है कि वह प्रोजेक्ट के माध्यम से समस्या का समाधान करें। • प्रोजेक्ट बालकों को इच्छा के अनुरूप दिया जाता है। • प्रोजेक्ट की समाप्ति पर उसका मूल्यांकन होता है। 3. डाल्टन विधि यह शिक्षा पद्धति 1920 ई. में कुमारी हेलेन पार्क हर्ट द्वारा विकसित की गई। अमेरिका के डाल्टन नगर में वह 50 बच्चों की प्रमुख थी, जो आयु तथा योग्यता में एक-दूसरे से अलग थे। इन बच्चों की शिक्षा के लिए जो विधि अपनाई गई उसे डाल्टन विधि (Dalton Method) कहा गया। इस विधि की विशेषताएँ निम्न है― • शिक्षा का स्वरूप व्यक्तिगत भिन्नता पर आधारित था। • स्वयं करके एवं अनुभव के माध्यम से सीखने पर बल। • एक निश्चित समय में निश्चित कार्य करने पर बला • बालकों में उत्तरदायित्व तथा आत्म निर्भर बनने की भावना का विकास करना। • अध्यापक एवं छात्रों के बीच गहरा सम्बन्ध विकसित करने पर बल। 4. पेस्तालॉजी विधि इस विधि के प्रणेता जॉन हेनरी पेस्तालॉजी थे। इन्होंने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक रूप दिया तथा इनका बल शिक्षा शास्त्र (pedagogy) पर था। • अध्यापक को यह पता होना चाहिए कि बच्चे को कैसे पढ़ाना है, बच्चे किस आयु में सीखते हैं तथा बच्चे किस विधि से अधिक सीखते है? शिक्षण विधि की अन्य विधियों मे– व्याख्यान विधि, परिचर्चा विधि, निरूपण विधि तथा यूरिस्टिक विधि (अन्वेषण विधि) आती है। 17.3 शिक्षण सहायक सामग्री अध्यापन-अधिगम की प्रक्रिया को सरल, प्रभावकारी एवं रुचिकर बनाने वाले उपकरणों को शिक्षण सहायक सामग्री कहा जाता है। इन्द्रियों के प्रयोग के आधार पर शिक्षण सहायक सामग्री (Teaching Aids) को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है 1. श्रव्य सामग्री 2. दृश्य सामग्री एवं 3. दृश्य-श्रव्य सामग्री। शिक्षण सहायक सामग्री ↓_______________|↓____________↓ दृश्य सामग्री श्रव्य सामग्री दृश्य-श्रव्य सामग्री (चित्र, पुस्तक, नमूने, (रेडियो, फोन, (सिनेमा, टेलीविजन, चार्ट इत्यादि) टेपरिकॉर्डर इत्यादि) नाटक इत्यादि) 17.3.1 दृश्य सहायक सामग्री दृश्य सहायक सामग्री (Visual Aids) का तात्पर्य उन साधनों से है जिनमें केवल देखने वाली इन्द्रियों (आँखो) का प्रयोग होता है। इसके अन्तर्गत पुस्तक, चित्र, मानचित्र, ग्राफ, चार्ट, पोस्टर, श्यामपट्ट, बुलेटिन बोर्ड, संग्रहालय, स्लाइड इत्यादि आते हैं। 1. वास्तविक पदार्थ वास्तविक पदार्थो (Real Matter) का तात्पर्य उन वस्तुओं से है, जिन्हें बालक देखकर, छूकर अनुभव कर सकता है। ये बालकों की इन्द्रियों को प्रेरणा देते हैं तथा उन्हें निरीक्षण एवं परीक्षण के अवसर प्रदान करके उनकी अवलोकन शक्ति का विकास करते हैं। 2. नमूने नमूने (Model) वास्तविक पदार्थों अथवा मूल वस्तुओं के छोटे रूप होते हैं। इनका प्रयोग उस समय किया जाता है, जब वास्तविक पदार्थ या तो उपलब्ध न हो अथवा इतने बड़े हों कि उन्हें कक्षा में दिखाना सम्भव न हो। उदाहरण के तौर पर रेल, हवाई जहाज इत्यादि के नमूनों का प्रयोग इनके बारे में बताने के लिए किया जाता है। 3.चित्र चित्र (Figure) बच्चों को सीखाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चित्र के माध्यम से सिखाई गई बाते अधिक समय तक याद रहती हैं। चित्रों को आसानी से कक्षा में दिखाया जा सकता है। चित्र के चयन में शिक्षकों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए • चित्र इतने स्पष्ट, रंगीन तथा आकर्षक होने चाहिए कि प्रत्येक बालक उन्हें देखकर वास्तविक पदार्थों के आकार तथा रंग-रूप से परिचित हो जाए। चित्रों में पाठ से सम्बन्धित मुख्य-मुख्य बातें ही दिखानी चाहिए। • चित्रों का आकार बड़ा होना चाहिए जिससे कक्षा का प्रत्येक बालक उन्हें बिना किसी कठिनाई के स्पष्ट रूप से देखकर आवश्यक लाभ उठा सके। 4. मानचित्र मानचित्र (Map) का प्रयोग प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओ तथा भौगोलिक तथ्यो अथवा स्थानो के अध्ययन करने के लिए अति आवश्यक है। मानचित्रों के प्रयोग के समय शिक्षकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि इनके ऊपर इनका नाम, शीर्षक, दिशा तथा संकेत आदि अवश्य लिखा हो। 5. रेखाचित्र वास्तविक पदार्थ, नमूने एवं मानचित्र (Map) तीनों के अभाव की स्थिति में किसी वस्तु या स्थान के बारे में अध्यापन के लिए उसके रेखाचित्र (Sketches) का प्रयोग किया जाता है। ph इन्दिरा गाँधी सुभाष चन्द्र बोस 6.ग्राफ ग्राफ (Graph) के प्रयोग से बालको को भूगोल, इतिहास, गणित तथा विज्ञान आदि अनेक विषयों का ज्ञान सरलतापूर्वक दिया जा सकता है। भूगोल विषय के अध्यापन में जलवायु, उपज तथा जनसंख्या आदि का ज्ञान कराने के लिए ग्राफ की विशेष सहायता ली जाती है। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग गणित तथा विज्ञान शिक्षण में भी किया जाता है। 7. चार्ट चार्टी (Charts) के प्रयोग से शिक्षक को शिक्षण का उद्देश्य प्राप्त करने में सहायता मिलती है। चार्टी का प्रयोग भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र, नागरिकशास्त्र तथा गणित एवं विज्ञान आदि सभी विषयों में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। 8. बुलेटिन-बोर्ड बुलेटिन-बोर्ड (Bulletin Board) आधुनिक शिक्षा प्रणाली का एक उपयोगी उपकरण है। इस पर देश की राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में चित्र, ग्राफ, आकृति तथा लेख एवं आवश्यक सूचनाओं को प्रदर्शित करके बालकों की जिज्ञासा को इस प्रकार से उत्तेजित किया जाता है कि उनके ज्ञान में निरन्तर वृद्धि होती रहे। बुलेटिन-बोर्ड को विद्यालय में किसी इतने ऊँचे उपयुक्त स्थान पर रखा जाना चाहिए, जिससे सभी बालक प्रदर्शित की हुई सामग्री से लाभान्वित हो सके। ये बालकों के आकर्षण के केन्द्र होते है। इस पर बालकों को भी अपनी एकत्रित की हुई सामग्री को प्रदर्शित करने के अवसर मिलने चाहिए। ph विविध प्रकार के बुलेटिन बोर्ड 9. फ्लेनेल बोर्ड फ्लेनेल बोर्ड (Flenail Bourd) बनाने के लिए प्लाईवुड अथवा हार्ड-बोर्ड के टुकड़े पर फ्लेनेल के कपड़े को खींचकर बांध दिया जाता है। इसके बाद इस पर विभिन्न विषयों से सम्बन्धित चित्र, मानचित्र, रेखाचित्र तथा ग्राफ आदि को प्रदर्शित किया जाता है। 10. संग्रहालय संग्रहालय (Museum) भी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। इसमें सभी वस्तुओ को एकत्रित करके रखा जाता है। इन वस्तुओं की सहायता से पाठ रोचक तथा सजीव बन जाता है। संग्रहालय में एकत्रित वस्तुओं का प्रयोग भूगोल, इतिहास, गणित तथा विज्ञान आदि विषयों के शिक्षण में सरलता से किया जा सकता है। 11. ब्लैकबोर्ड कक्षा अध्यापन में दृश्य (visual) साधन के रूप में ब्लैकबोर्ड (श्यामपट्ट) का ही प्रयोग सर्वाधिक होता है। इसका उचित एवं विधिपूर्वक उपयोग पाठ को प्रभावशाली बनाने में बहुत सहायक होता है। 12. मैजिक लैन्टर्न मैजिक लैन्टर्न (Magic Lantern) एक चित्र प्रदर्शक यन्त्र है। इसकी मदद से स्लाइडों द्वारा विविध चित्रों अथवा पाठ का प्रदर्शन किसी पर्दे या दीवार पर किया जाता है। 13. चित्र-विस्तारक यन्त्र (एपिडियास्कोप) चित्र-विस्तारक (Epediascope) पाठ को अधिक स्पष्ट और रोचक बनाने के लिए एक प्रभावशाली यन्त्र है। यह मैजिक लैनटर्न से भी अधिक प्रभावशाली यन्त्र है, क्योकि मैजिक लैनटर्न में चित्रों या पाठ को प्रदर्शित करने के लिए पहले उसके स्लाइड बनाने की आवश्यकता होती है, जबकि एपिडियास्कोप में छोटे-छोटे चित्रों, मानचित्रों, पोस्टरों तथा पुस्तक के पृष्ठों को कमरे में अन्धेरा करके चित्रपट अथवा पर्दे पर बिना स्लाइडे बनाए हुए ही बड़ा करके दिखाया जा सकता है। 14. स्लाइडे, फिल्म पट्टियाँ तथा प्रोजेक्टर स्लाइडों एवं स्लाइडों की फिल्म पट्टियों का प्रयोग शिक्षण में सहायक साम्रगी के तौर पर किया जाता है। इसके लिए प्रोजेक्टर की सहायता ली जाती है। प्रोजेक्टर एडियास्कोप से बेहतर साबित होते हैं क्योंकि एपिडियास्कोप द्वारा बालकों को चित्र या पाठ एक-एक कर दिखाया जा सकता है, जबकि प्रोजेक्टर द्वारा चित्रों की स्लाइडो अथवा फिल्म पट्टियों को एक क्रम में दिखाया जा सकता है। 17.3.2 श्रव्य सहायक सामग्री श्रव्य सामग्री (Audio Aids) से तात्पर्य उन साधनों से है, जिनमें केवल श्रव्य इन्द्रियों (कानों) द्वारा प्रयोग किया जा सकता है। श्रव्य सामग्री के अन्तर्गत रेडियो, टेलीफोन, ग्रामोफोन, टेलीकॉन्फ्रेसिंग, टेप-रिकॉर्डर इत्यादि आते हैं। 1. रेडियो रेडियो (Radio) द्वारा दूरस्थ बालकों को भी एक साथ नवीनतम घटनाओं एवं सूचनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। रेडियो पर विभिन्न कक्षा के विभिन्न विषयों के अध्यापन सम्बन्धी प्रोग्राम भी सुनाए जाते हैं। रेडियो-पाठ का उपयोग शिक्षण की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करने के लिए किया जाता है। 2. टेप-रिकॉर्डर शैक्षिक उपकरण के रूप में टेप रिकॉर्डर (Tape-recorder) एक प्रचलन उपकरण है। इसकी सहायता से महापुरुषों के प्रवचन, नेताओ के भाषण तथा प्रसिद्ध साहित्यकारों की कविताओं, कहानियों तथा प्रसिद्ध कलाकारों के संगीत का आनन्द उठाया जा सकता है। इससे बालकों को बोलने की गति तथा स्वर, प्रभाव सम्बन्धी सभी त्रुटियों एवं उच्चारणों को सुधारने में आश्चर्यजनक सहायता मिलती है। 17.3.3 दृश्य-श्रव्य सहायक सामग्री दृश्य-श्रव्य सामग्री (Audio-Visual Aids) का तात्पर्य शिक्षण के उन साधनों से है जिनके प्रयोग से बालकों की देखने और सुनने वाली ज्ञानेन्द्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं और वे पाठ के सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा कठिन-से-कठिन भावों को सरलतापूर्वक समझ जाते हैं। दृश्य-श्रव्य सामग्री का अर्थ उन समस्त सामग्री से है जो कक्षा में अथवा अन्य शिक्षण परिस्थितियों में लिखित अथवा बोली हुई पाठ्य-सामग्री को समझाने में सहायता देती है। इसके अन्तर्गत सिनेमा, वृत्तचित्र, दूरदर्शन, नाटक इत्यादि आते हैं। 1. चल-चित्र चल-चित्र (Films) अथवा सिनेमा के अनेक लाभ है, इसके द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान अन्य उपकरणों की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है, क्योंकि इसमें देखने तथा सुनने की दो इन्द्रियाँ सक्रिय रहती है। इसके द्वारा बालकों को विभिन्न देशो, स्थानों अथवा घटनाओं का ज्ञान सरलतापूर्वक कराया जा सकता है। इससे बालकों की कल्पनाशक्ति का विकास होता है। 2. टेलीविजन चल-चित्र से होने वाले सभी लाभ टेलीविजन (Television) से भी प्राप्त होते है, किन्तु सिनेमा की अपेक्षा इसका दायरा अत्यन्त विस्तृत होता है। आजकल टेलीविजन पर कई मनोरंजक कार्यक्रमों के अतिरिक्त कई प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया जाता है, जिससे बच्चों के ज्ञान में वृद्धि होती है। इग्नो एवं यूजीसी के अतिरिक्त कुछ विश्वविद्यालयो द्वारा भी उपग्रहों की मदद से विभिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। 3. कम्प्यूटर कम्प्यूटर (Computer) एक ऐसा आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जिसको प्रयोग जीवन के विविध क्षेत्रों में किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी इसका व्यापक उपयोग होने लगा है। शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर से निम्नलिखित लाभ है • इससे छात्रों में पाठ के प्रति रुचि का विकास होता है। ये चित्रों, चलचित्रों के माध्यम से पाठ को अत्यन्त जीवन्त एवं मनोरंजक बना देता है। • इससे छात्रों को उच्चकोटि का पुनर्बलन (Reinforcement) प्राप्त होता है। कम्प्यूटर के जरिए इण्टरनेट का प्रयोग विविध प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है। इसके द्वारा पाठो का प्रस्तुतीकरण तैयार किया जा सकता है, जिससे पाठ अधिक सरल एवं रुचिकर हो सकते हैं। अभ्यास प्रश्न 1. शिक्षण का उद्देश्य होता है। (1) विद्यार्थियों को ज्ञान उपलब्ध कराना (2) विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना (3) विद्यार्थियों को बताना कि पढ़ने से कुछ प्राप्त नहीं होता (4) उपरोक्त में से कोई नहीं 2.शिक्षण की प्रक्रिया एक त्रिस्तरीय प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत आता है (1) छात्र (2) शिक्षक (3) पाठ्यक्रम (4) ये सभी 3. “शिक्षण चार चरणों वाली प्रक्रिया है― योजना, निर्देशन, मापन तथा मूल्यांकन।” शिक्षण के सन्दर्भ में यह कथन किस मनोवैज्ञानिक का है? (1) हफ तथा डंकन (2) वाइगोत्स्की एवं पियाजे (3) हर्जवर्ग एवं साइमन (4) मॉस्लो एवं बर्टन 4. शिक्षा एक ऐसी क्रिया है, जो जीवनपर्यन्त चलती रहती है, इस प्रक्रिया के अन्तर्गत क्या-क्या आता है? A.ज्ञान B. कौशल C. अनुभव D. अभिवृत्ति (1) A और B (2) B और C (3) A और D (4) ये सभी 5. अधिगम व्यक्ति के दृष्टिकोण, सोच एवं व्यवहार में बदलाव लाता है, निम्न में से कौन-सा परिवर्तन अधिगम का परिणाम नहीं है? (1) मानसिक परिवर्तन (2) सामाजिक परिवर्तन (3) शारीरिक परिवर्तन (4) नैतिक परिवर्तन 6. प्रशिक्षण के माध्यम से विकास होता है (1) सामान्य कौशल का (2) विशिष्ट कौशल का (3) सामान्य तथा विशिष्ट दोनों का मिला-जुला रूप (4) किसी भी प्रकार के कौशल का नहीं 7. अध्यापन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी के ………….. को उचित दिशा में प्रभावित करना अर्थात् उसके …………… को उचित दिशा में प्रभावी बनाना होता है। (1) व्यक्तित्व, ज्ञान (2) व्यवहार, अधिगम (3) व्यक्तित्व परीक्षाफल (4) व्यवहार, विद्यालय 8. शैक्षिक प्रक्रिया के तीन मुख्य बिन्दु होते हैं, जो शिक्षार्थियों के लिए बेहद महत्त्व के विषय है, वे है (1) उद्देश्य (2) अधिगम अनुभव क्रियाएँ (3) विद्यार्थी का मूल्य निर्धारण करना (4) उपरोक्त सभी 9. अध्यापक को विद्यार्थी को अनुभव प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए? (1) शिक्षण का परम्परागत तकनीक अपनानी चाहिए (2) शिक्षण के लिए केवल एक विधि को अपनाना चाहिए (3) शिक्षण के लिए विभिन्न तरीके को अपनाना चाहिए (4) उपरोक्त में से कोई नहीं 10. अध्यापन एक (1) एक्युवीय प्रक्रिया है (2) द्विभुवीय प्रक्रिया है (3) त्रिघुवीय प्रक्रिया है (4) बहुधुवीय प्रक्रिया है 11. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अधिगमकर्ता से सम्बन्धित निम्नलिखित में से किन सिद्धान्तों का पालन किया जाता है? A. व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धान्त B. छात्र केन्द्रिता का सिद्धान्त C. सक्रिय सहयोग का सिद्धान्त (1) केवल A (2) केवल B (3) केवल C (4) ये सभी 12. संसार का कोई भी व्यक्ति योग्यता, क्षमता तथा कुशलता में एक समान नहीं हो सकता यह अधिगम के किस सिद्धान्त को निरूपित करता है? (1) सक्रिय सहयोग लेने का सिद्धान्त (2) पत्र केन्द्रिता का सिद्धान्त (3) व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धान्त (4) उपरोक्त में से कोई नहीं 13. अधिगम का मुख्य उद्देश्य होता है (1) छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाना (2) छात्रों के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं लाना (3) छात्रों को अपने मार्ग से विचलित करना (4) उपरोक्त में से कोई नहीं 14. शिक्षण विधियों तथा शिक्षण व्यूह रचनाओं में अन्तर होता है (1) पाठ्यवस्तु का (2) उद्देश्यों का (3) प्रारूप का (4) अधिनियमों का 15. अध्यापन में शैक्षिक तकनीक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यहाँ शैक्षिक तकनीक की विशेषताएँ हैं (1) यह वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित होती है (2) यह मनोवैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित होती है (3) यह शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाती है (4) उपरोक्त सभी 16. सूक्ष्म शिक्षण के सन्दर्भ में यह कथन “सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाँटना है।” किस मनोवैज्ञानिक का है? (1) डी. एलन (2) डी. पार्कर (3) सी. कर्टनर (4) हर्जवर्ग 17. सूक्ष्म शिक्षण किस सिद्धान्त पर बल देता है? (1) एकल कौशल प्रशिक्षण पर (2) द्विकौशल प्रशिक्षण पर (3) बहुकौशल प्रशिक्षण पर (4) उपरोक्त में से कोई नहीं 18. निम्नलिखित में से कौन-सा कौशल शिक्षण कौशल का उदाहरण है? (1) प्रश्न पूछना (2) विन्यास प्रेरणा (3) पुनर्बलन (4) ये सभी 19. शिक्षण विधियों में ………. तथा ………..को महत्त्व दिया जाता है। (1) कार्य, प्रस्तुतीकरण (2) रणनीति, प्रयोग (3) उद्देश्य, महत्त्व (4) इनमें से कोई नहीं 20. शिक्षण व्यूह रचना का अर्थ है (1) शिक्षा की रणनीति का निर्माण एवं उसका प्रयोग (2) शिक्षण का तरीका (3) अध्यापक को स्वयं में अपने यावहार को सुधारना (4) उपरोक्त सभी 21. शिक्षण अधिगम के अन्तर्गत शिक्षक का प्रमुख कार्य है (1) बालक को सीखने के लिए अभिप्रेरित करना (2) बालक को पदाना (3) बालक को खेलने से रोककर उसे आध्ययन में लगाना (4) बालक को केवल पाठ्य-पुस्तक से पढ़ने के लिए प्रेरित करना 22. निम्नलिखित में से कौन शिक्षण विधि का/के प्रकार है/है? (1) शिक्षक नियन्त्रित अनुदेशन (2) समूह नियन्त्रित अनुदेशन (3) शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन (4) उपरोक्त सभी 23. कैलर योजना, अभिक्रमित अनुदेशन तथा खेल विधि शिक्षण विधि के किस प्रकार के अन्तर्गत आता है? (1) शिक्षक नियन्त्रित अनुदेशन (2) छात्र नियन्त्रित अनुदेशन (3) समूह नियन्त्रित अनुदेशन (4) शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन 24. प्रश्नोत्तर विधि, अन्वेषण विधि, सामूहिक वाद-विवाद विधि शिक्षण विधि के किस अंग का भाग है? (1) शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन (2) समूह नियन्त्रित अनुदेशन (3) छात्र नियन्त्रित अनुदेशन (4) उपरोक्त में से कोई नहीं 25. बागवानी शिक्षा पद्धति के जनक निम्नलिखित में से कौन है? (1) फ्रोबेल (2) मॉस्लो (3) यंग (4) वाइगोत्स्की 26. किण्डर गार्टन प्रणाली के तहत बच्चों को किस प्रकार से सिखाने पर बल दिया जाता है? (1) खेल के माध्यम से (2) कक्षा-आययन के माध्यम से (3) निजी ट्यूशन के माध्यम से (4) स्वयं करके सीखने के माध्यम से 27. प्रोजेक्ट-परियोजना विधि का प्रतिपादन किसने किया? (1) किल पैट्रिक (2) जेम्स मील (3) डाल्टन (4) एण्डरसन 28. निम्नलिखित विशेषताओ में कौन-सी डाल्टन शिक्षा विधि की विशेषता है? (1) शिक्षा का स्वरूप व्यक्तिगत भिन्नता पर आधारित होना (2) स्वयं करके अनुभव के माध्यम से सीखने पर बल (3) एक निश्चित समय में निश्चित कार्य करने पर बल (4) उपरोक्त सभी 29. अध्यापक को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि बच्चों को कैसे पढ़ाना है, बच्चे किस आयु में सीखते है शिक्षा की कौन-सी विधि इस विचारधारा का पोषण करती है? (1) पेस्तालॉजी विधि (2) डाल्टन विधि (3) माण्टेसरी विधि (4) किण्डर गार्टन विधि 30. पेस्तालॉजी विधि किसने दी? (1) जॉन हेनरी पेस्तालॉजी (2) मार्टिन हेनरी पेस्तालाजी (3) वाइगोत्स्की (4) पियाजे 31. अध्यापन-अधिगम की प्रक्रिया को सरल व प्रभावशाली बनाने हेतु विभिन्न प्रकार के शिक्षण सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है वे हैं (1) केवल दृश्य सामग्री (2) केवल श्रव्य सहायक सामग्री (3) केवल दृश्य-श्रव्य सामग्री (4) दृश्य, श्रव्य सहायक एवं दृश्य श्रव्य सामग्री 32. दृश्य-श्रव्य सामग्री कैसी नहीं होनी चाहिए? (1) जो शिक्षण के उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता दे (2) सुन्दर तथा आकर्षक (3) बालक को विचलित करने वाला (4) बालकों की रुचि को बढ़ाने वाला 33. बालकों में निरीक्षण करने की योग्यता के विकास में सर्वाधिक मदद करता है (1) अमण (2) चार्ट (3) नमूना (4) कम्प्यूटर 34. बालको के सन्दर्भ में वास्तविक पदार्थ का अर्थ होता है (1) वैसी वस्तुएँ जिन्हें बालक केवल देखकर अनुभव प्राप्त कर सकता है (2) वैसी वस्तुएं जिन्हें बालक स्पर्श कर (छूकर) अनुभव प्राप्त कर सकता है (3) वैसी वस्तुएँ जिन्हें देखकर तथा एकर अनुभव प्राप्त कर सकता है (4) बालकों के लिए वास्तविक पदार्थ एक कल्पना है 35. दृश्य सामग्री बालकों को सिखाने की एक वैज्ञानिक विधि है। नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन एक दृश्य सामग्री का अंग नहीं है? (1) नमूना (2) चित्र (3) रेखाचित्र (4) रेडियो 36. मैजिक लैन्टर्न एक (1) एक कहानी का नाम है। (2) एक जादूगर द्वारा लिखित एक पुस्तक है (3) एक फिल्म का नाम है (4) एक चित्र प्रदर्शक यन्त्र है 37. कक्षा अध्यापन में दृश्य साधन के रूप में किसका सर्वाधिक प्रयोग होता है? (1) ग्राफ (2) चार्ट (3) ब्लैकबोर्ड (4) रेखाचित्र 38. कौन-सी शिक्षण सहायक सामग्री बच्चों के लिए सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र होनी चाहिए? (1) बुलेटिन-बोर्ड (2) चार्ट (3) लैकबोर्ड (4) रेखाचित्र 39. एपिडियास्कोप उपकरण का उपयोग निम्नलिखित में से किसके लिए किया जाता है? (1) वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखने के लिए (2) किसी अपारदर्शी वस्तु को स्क्रीन पर प्रक्षेपित करने के लिए (3) किसी वस्तु की नकल उतारने के लिए (4) किसी वस्तु को बड़ा दिखाने के लिए 40. निम्नलिखित में से कौन-सा एक श्रव्य सामग्री के अन्तर्गत नहीं आता? (1) रेडियो (2) टेलीफोन (3) टेप-रिकॉर्डर (4) टेलीविजन 41. निम्नलिखित में से कौन एक दृश्य-श्रव्य सहायक सामग्री का उदाहरण है? (1) केवल चलचित्र (2) केवल टेलीविजन (3) केवल नाटक (4) चलचित्र, टेलीविजन तथा नाटक तीनों 42. किस शिक्षण सहायक सामग्री से छात्रों को उच्च कोटि का पुनर्बलन प्राप्त हो सकता है? (1) कम्प्यूटर (2) पार्ट (3) रेडियो (4) टेलीविजन विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न 43. एक शिक्षक अपने लोकतान्त्रिक स्वभाव के कारण विद्यार्थियों को पूरी कक्षा में कहीं भी बैठने की अनुमति देता है। कुछ शिक्षार्थी एक साथ बैठते हैं और चर्चा करते हैं या सामूहिक पठन करते हैं। कुछ चुपचाप बैठकर अपने-आप पढ़ते है। एक अभिभावक को यह पसन्द नहीं आता है। इस स्थिति से निपटने का निम्न में से कौन-सा तरीका सबसे बेहतर हो सकता है? [CTET June 2011] (1) अध्यापक को प्रधानाचार्य से विद्यार्थियों की शिकायत करनी चाहिए (2) अध्यापक को प्रधानाचार्य से अनुरोध करना चाहिए कि वे उनके बच्चे का अनुभाग बदतर (3) अभिभावकों को शिक्षक पर विश्वास व्यक्त करना चाहिए और शिक्षक के साथ समस्या पर चर्चा करनी चाहिए (4) अभिभावकों को उस विद्यालय से अपने बच्चे को निकाल लेना चाहिए 44. निचली कक्षाओ में शिक्षण की खेल-पद्धति मूल रूप से आधारित है। [CTET June 2011] (1) शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों के सिद्धान्तों पर (2) शिक्षण-पद्धतियों के सिद्धान्तों पर (3) विकास एवं वृद्धि के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर (4) शिक्षण के समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों पर 45. एक शिक्षक को अपने विद्यार्थियों की क्षमताओं को समझने का प्रयास करना चाहिए, निम्नलिखित में से कौन-सा क्षेत्र इस उद्देश्य के साथ सम्बद्ध है? [CTET June 2011] (1) शिक्षा-समाजशास्त्र (2) सामाजिक दर्शन (3) मीडिया-मनोविज्ञान (4) शिक्षा-मनोविज्ञान 46. एक शिक्षिका पाठ्य-वस्तु और फल-सब्जियों के कुछ चित्रों का प्रयोग करती है और अपने विद्यार्थियों से चर्चा करती है। विद्यार्थी इस जानकारी को अपने पूर्व ज्ञान से जोड़ते है और पोषण की संकल्पना को सीखते है। यह उपागम ……….….पर आधारित है। [CTET Jan 2012] (1) शान के निर्माण (2) अधिगम के शास्त्रीय अनुबन्धन (3) पुनर्बलन के सिद्धान्त (4) अधिगम के सक्रिय अनुबन्धन 47. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि [CTET-Jan 2017] (1) बच्चों की विकास दर भिन्न होती है और ये भिन्न तरीकों से सीख सकते है (2) शिक्षार्थी हमेशा समूहों में ही बेहतर सीखते है (3) शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में ऐसा ही बताया गया है (4) इससे प्रत्येक शिक्षा को अनुशासित उले लिए शिक्षकों को बेहतर अवसर मिलते है 48. निम्नलिखित में से कौन-सा शिक्षक से सम्बन्धित अधिगम को प्रभावित करने वाला कारक है? [CTET Jan 2012] (1) विषय-वस्तु में प्रवीणता (2) बैठने की उचित व्यवस्था (3) शिक्षण-अधिगम संसाधनों की उपलब्धता (4) विषय-वस्तु या अधिगम-अनुभवों की प्रकृति 49. बीजों का अंकुरण संकल्पना के शिक्षण की सबसे प्रभावी पद्धति है [CTET Jan 2012] (1) विस्तृत व्याख्या करना (2) विद्यार्थियों द्वारा पौधे के बीज बोना और उसके अंकुरण के चरणों का अवलोकन करना (3) श्याम पट्ट पर चित्र बनाना और वर्णन करना (4) बीज की वृद्धि के चित्र दिखाना 50. निम्नलिखित में से कौन-सा सूक्ष्म गतिक कौशल का उदाहरण है? [CTET Nov 2012] (1) लिखना (2) चढ़ना (3) फुदकना (4) दौड़ना 51. निम्नलिखित में से अन्त:विषयी अनुदेशन का सर्वोत्कृष्ट लाभ यह है कि [CTET Nov 2012] (1) विद्यार्थियों को सीखे गए नए ज्ञान को बहु-सन्दर्भो में अनुप्रयोग करने और सामान्यीकृत करने के अवसर दिए जाते हैं। (2) प्रकरणों की विविधता, जिन्हें परम्परागत पाठ्यचर्या से सम्बोधित किए जाने की आवश्यकता है, से शिक्षकों के अभिभूत होने की कम सम्भावना होती है। (3) विद्यार्थियों में विभिन्न विषय-क्षेत्रों के विशेष प्रकरणों के प्रति नापसन्दगी विकसित होने की कम सम्भावना होती है। (4) पाठ-योजना बनाने और गतिविधियों में शिक्षकों को अधिक लचीलेपन की अनुमति होती है। 52. बच्चो द्वारा की जाने वाली त्रुटियो के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है? [CTET Nov 2012] (1) एक शिक्षक को प्रत्येक त्रुटि पर ध्यान नहीं देना चाहिए अन्यथा पाठ्यक्रम पूरा नहीं होगा (2) प्रत्येक त्रुटि को सुधारने में बहुत अधिक समय लगेगा तथा एक शिक्षक के लिए थकाने वाला होगा (3) स्वयं बच्चों द्वारा त्रुटियों को सुधारा जा सकता है इसलिए शिक्षक को उन्हें तुरन्त ही नहीं सुधारना चाहिए (4) यदि एक शिक्षक कक्षा-कक्ष में सभी बच्चों की त्रुटियों को सुधारने योग्य नहीं है तो यह संकेत करता है कि शिक्षक-शिक्षा की व्यवस्था असफल है 53. एक सशक्त विद्यालय अपने शिक्षको में निम्नलिखित योग्यताओं में से किसे सर्वाधिक बढ़ावा देगा? (CTET Nov 2013) (1) प्रतिस्पर्धात्मक अभिवृति (2) परीक्षण करने की प्रवृत्ति (3) स्मृति (4) अनुशासित स्वभाव 54. एक शिक्षक (को) [CTET July 2013] (1) व्याख्यान पर अधिक ध्यान देना चाहिए और ज्ञान के लिए आधार उपलब्ध कराना चाहिए (2) शिक्षार्थियों द्वारा की गई त्रुटियों को एक भयंकर भूल के रूप में लेना चाहिए और प्रत्येक त्रुटि के लिए गम्भीर टिप्पणी देनी चाहिए (3) शिक्षार्थी कितनी बार गलती करने से बचता है इसे सफलता के माप के रूप में लेना चाहिए (4) जब शिक्षार्थी विचारों को सम्प्रेषित करने की कोशिश कर रहे हों, तो उन्हें ठीक नहीं करना चाहिए 55. बच्चों में सीखने और सुनने के लिए अधिगम-योग्य वातावरण के लिए निम्नलिखित में से कौन उपयुक्त है? [CTET July 2013] (1) शिक्षार्थियों को यह छूट देना कि क्या सीखना है और कैसे सीखना है? (2) एक लम्बे समय के लिए निष्क्रिय रूप से सुनना (3) निरन्तर गृहकार्य देते रहना (4) सीखने वाले द्वारा व्यक्तिगत कार्य करना 56. यदि एक विद्यार्थी विद्यालय में लगातार निम्नतर श्रेणी प्राप्त करता है, तो उसके अभिभावक को उसकी सहायता हेतु परामर्श दिया जा सकता है कि। [CTET Feb 2014] (1) वह अध्यापकों की घनिष्ठ संगति में कार्य करे (2) मोबाइल फोन, चलचित्र, कॉमिक्स, खेल हेतु अतिरिक्त काल पर रोक लगाएँ (3) जो भली-भाँति शिक्षा नहीं ले पाए उनकी जीवन-सम्बन्धी कठिनाइयों का वर्णन करें (4) घर पर उसको परिश्रमपूर्वक कार्य करने पर बल दें 57. निम्नलिखित में से कौन-सा तत्त्व कक्षा में अधिगम हेतु सहायक हो सकता है? [CTET Feb 2014] (1) बच्चों को अधिगम हेतु प्रेरित करने के लिए परीक्षणों की संख्या को बढ़ा देना (2) अध्यापकों द्वारा बच्चों की स्वायत्तता को बढ़ावा य सहायता देना (3) समानता बनाए रखने के लिए किसी एक अनुदेशन पद्धति पर टिके रहना (4) कालांश की अवधि को 40 मिनट से 50 मिनट तक बढ़ा देना 58. बहुशिक्षण-शास्त्रीय तकनीके, वर्गीकृत अधिगम सामग्री, बहु-आकलन तकनीके तथा परिवर्तनीय जटिलता एवं सामग्री का स्वरूप निम्नलिखित में से किससे सम्बद्ध है? [CTET Feb 2014] (1) सार्गभौमिक अभिगम प्रारूप (2) उपचारात्मक शिक्षण (3) विभेदित अनुदेशन (4) पारस्परिक शिक्षण 59. एक अध्यापक उस बच्चे के साथ परामर्श करते है, जिसकी निष्पत्यात्मक प्रगति एक दुर्घटना के पश्चात् अनुकूल नहीं है। निम्नलिखित में से कौन-सी प्रक्रिया विद्यालय में परामर्श के लिए सबसे बेहतर हो सकती है? [CTET Feb 2014] (1) यह एक उपशासक उपाय है ताकि लोग अपने को आरामदायक महसूस कर सकें (2) यह अपने विचारों द्वारा खोज करने हेतु लोगों में आत्मविश्वास का निर्माण करता है (3) विद्यार्थियों भविष्य के विकल्पों को चुनने हेतु यह एक अच्छा सम्भावित परामर्श है (4) इस कार्य को केवल अनुभवी कुशल व्यावसायिक विशेषज्ञ से कराया जा सकता है 60. एक शिक्षिका पाठ को पूर्वपठित पाठ से जोड़ते हुए बच्चों को साराश लिखना सिखा रही है। वह क्या कर रही है? [CTET Feb 2014] (1) वह बच्चों को पाठ समझने की स्वशैली विकसित करने में सहायता कर रही है। (2) यह बच्चों को सम्पूर्ण पाठ्य-वस्तु को पूर्णरूप से न पढ़ने की आवश्यकता का सकेत दे रही है। (3) वह आकलन के दृष्टिकोण से पाठ्य-वस्तु के महत्व का पुनर्वलित कर रही है। (4) वह विद्यार्थियों को सामर्थ्यात्मक स्मरण करने को प्रेरित कर रही है। 61. निम्न में से कौन-सा सीखने की शैली का एक उदाहरण है? [CTET Sept 2014] (1) चाक्षुष (2) संग्रहण (3) तथ्यात्मक (4) स्पर्श-सम्बन्धी 62. सिद्धान्त चित्र …….. के द्वारा नवीन अवधारणों की समझ बढ़ाते है। [CTET Sept 2014] (1) विषय क्षेत्रों के बीच ज्ञान के स्थानान्तरण (2) विशिष्ट विवरण पर एकाग्रता केन्द्रित करने (3) अध्ययन के लिए शैक्षणिक विषय-वस्तु की प्राथमिकता तय करने (4) तर्कपूर्ण ढंग से सूचनाओं को व्यवस्थित करने की योग्यता बढ़ाने 63. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक अधिगम को सकारात्मक प्रकार से प्रभावित करता है? [CTET Sept 2014] (1) अनुत्तीर्ण हो जाने का भय (2) सहपाठियों से प्रतियोगिता (3) अर्थपूर्ण सम्बन्ध (4) माता-पिता की ओर से दबाव 64. एक प्रभावशाली अध्यापिका होने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है [CTET Feb 2013] (1) पुस्तक से उत्तरों को लिखाने पर बल देना (2) समूह गतिविधियों के बजाय वैयक्तिक अधिगम पर ध्यान देना (3) विद्यारियों के द्वारा प्रश्न पूछने के कारण उत्पन्न व्यवधान की अनदेखी करना (4) प्रत्येक बच्चे के सम्पर्क में रहना 65. बच्चों के अधिगम को सुगम बनाने के लिए अध्यापकों को एक अच्छे कक्षायी परिवेश का सृजन करने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के अधिगम परिवेश का सृजन करने के लिए नीचे दिए गए कथनों में से कौन-सा नहीं है? [CTET Feb 2015] (1) बच्चे के प्रयासों को स्वीकृति (2) आध्यापकों के अनुसार कार्य करना (3) बच्चे को स्वीकार करना (4) अध्यापक का सकारात्मक रुख 66. शिक्षार्थियों के ज्ञान अर्जन में सहायता करने के क्रम में अध्यापकों को किस पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए? [CTET Feb 2015] (1) सुनिश्चित करना कि शिक्षार्थी सब कुछ याद करते हैं (2) शिक्षार्थी के द्वारा प्राप्त किए गए अंकों/ग्रेडों पर (3) शिक्षार्थी को सक्रिय सहभागिता के लिए शामिल करना (4) शिक्षार्थी के द्वारा अधिगम की अवधारणाओं में कुशलता प्राप्त करना 67. अधिगम अनुभवों को इस प्रकार से आयोजित किया जाना चाहिए, जिससे अधिगम को सार्थक बनाया जा सके। नीचे दिए गए अधिगम अनुभवों में से कौन-सा बच्चों के लिए सार्थक अधिगम को सुगम नहीं बनाता है? [CTET Feb 2015] (1) विषय-वस्तु की केवल याद करने के आधार पर पुनरावृत्ति (2) विषय-वस्तु पर प्रश्न बनाना (3) प्रकरण पर परिचर्चा और वाद-विवाद (4) प्रकरण पर प्रस्तुतीकरण 68. बच्चों को समूह कार्य देना एक प्रभावी शिक्षण रणनीति है, क्योंकि [CTET Sept 2015] (1) छोटे समूह में कुछ बच्चों को दूसरे बच्चों पर हावी होने की अनुमति होती है (2) सीखने की प्रक्रिया में बच्चे एक-दूसरे से सीखते हैं और परस्पर सहायता भी करते हैं (3) बच्चे अपना काम जल्दी करने में समर्थ होते हैं (4) इससे शिक्षक का काम कम हो जाता है 69. सुरेश सामान्य रूप से एक शान्त कमरे में अकेले पढ़ना चाहता है, जबकि मदन एक समूह में अपने मित्रों के साथ पढ़ना चाहता है। यह उनके …………. में विभिन्नता के कारण है। [CTET Sept 2015] (1) अभिक्षमता (2) अधिगम शैली (3) परावर्तकता-स्तर (4) मूल्यों 70. जटिल परिस्थिति को संसाधित करने में शिक्षक बच्चों की सहायता कर सकता है [CTET Feb 2016] (1) प्रतियोगिता को बढ़ावा देकर और सबसे पहले कार्य पूरा करने वाले बच्चे को पुरस्कार देकर (2) कोई भी सहायता न देकर, जिससे बच्चे अपने आप निर्वाह करना सीखें (3) उस पर एक भाषण देकर (4) कार्य को छोटे हिस्सों में बाँटने के बाद निर्देश लिखकर 71. अपने चिन्तन में अवधारणात्मक परिवर्तन लाने हेतु शिक्षार्थियों को सक्षम बनाने के लिए शिक्षक को। [CTET Feb 2016] (1) उन बच्चों को पुरस्कार देना चाहिए जिन्होंने अपने चिन्तन में परिवर्तित किया है (2) बच्चों को स्वयं चिन्तन करने के लिए हतोत्साहित करना चाहिए और उनसे कहना चाहिए कि वे शिक्षिका को सुने और उसका अनुपालन करें (3) व्याख्यान के रूप में व्याख्या प्रस्तुत करनी चाहिए (4) स्पष्ट और आश्वस्त करने वाली व्याख्या देनी चाहिए तथा शिक्षार्थियों के साथ चर्चा करनी चाहिए 72. किसी प्रारम्भिक कक्षा में प्रभावशाली शिक्षक का उद्देश्य विद्यार्थियों को उत्प्रेरित करना होगा [CTET Feb 2016] (1) रटकर याद करने के लिए जिससे वे प्रत्यास्मरण करने में अच्छे बनें (2) दण्डात्मक उपायों का प्रयोग करके जिससे दे शिक्षक का सम्मान करें (3) ऐसे काम करने के लिए जिससे परीक्षा के अन्त में वे अच्छे अंक पा सकें (4) सीखने के लिए जिससे वे जिज्ञासु बनें और सीखने के लिए ही सीखना पसन्द करें 73. निम्नलिखित में से कौन-सा उदाहरण प्रभावशाली विद्यालय की प्रथा का है? [CTET Feb 2016] (1) शारीरिक दण्ड (2) व्यक्तिसापेक्ष अधिगम (3) प्रतियोगितात्मक कक्षा (4) निरन्तर तुलनात्मक मूल्यांकन उत्तरमाला 1. (2) 2. (4) 3. (1) 4. (4) 5. (3) 6. (2) 7. (2) 8. (4) 9. (3) 10. (3) 11. (4) 12. (3) 13. (1) 14. (2) 15. (4) 16. (1) 17. (1) 18. (4) 19. (1) 20. (1) 21. (1) 22. (4) 23. (2) 24. (1) 25 (1) 26. (1) 27. (1) 28. (4) 29. (1) 30. (1) 31. (4) 32. (3) 33. (1) 34. (3) 35. (4) 36. (4) 37. (1) 38. (1) 39. (2) 40. (4) 41. (4) 42. (1) 43 (3) 44. (3) 45. (4) 46. (1) 47. (1) 48. (1) 49. (2) 50. (1) 51. (1) 52. (4) 53. (1) 54. (4) 55. (1) 56. (1) 57. (2) 58. (3) 59. (2) 60. (1) 61. (1) 62. (4) 63. (3) 64. (4) 65. (2) 66. (3) 67. (1) 68. (2) 69 (2) 70. (4) 71. (4) 72. (4) 73. (3) ★★★
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अधिगम प्रक्रिया के कितने अंग हैं?वुडवर्थ के अनुसार अधिगम प्रक्रिया या स्मृति संग्रहण के चार (4) अंग हैं।
अधिगम की प्रक्रिया के कितने सोपान है?गैग्ने ने सीखने को आठ वर्गो में वर्गीकृत करते हुए उन्हें एक अधिगम सोपानिकी के रुप में प्रस्तुत किया। इस अधिगम सोपानिकी के आठ वर्गों में एक स्वस्पष्ट अंतर्निहित क्रम निहित है तथा अगला क्रम पिछले क्रम से उच्चतर अथवा जटिलतर होता जाता है।
शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया क्या है?प्रत्येक बच्चा स्वाभाविक रूप से सीखने के लिए अभिप्रेरित होता है। बच्चों के सीखने के तौर तरीके में विवधता होती है। जैसे अनुभवों के माध्यम से, प्रश्न पूछने, सुनने, सोचने, चिंतन करने, अभिव्यक्त करने, छोटे एवं बड़े समूहों में गतिविधियां करने आदि से सीखते है।
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