अतिथि के अपेक्षा से अधिक रूक जाने पर लेखक की क्या क्या प्रतिक्रियाएँ हुई? - atithi ke apeksha se adhik rook jaane par lekhak kee kya kya pratikriyaen huee?

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अतिथि के अपेक्षा से अधिक रूक जाने पर लेखक की क्या क्या प्रतिक्रियाएँ हुई? - atithi ke apeksha se adhik rook jaane par lekhak kee kya kya pratikriyaen huee?

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अतिथि के अपेक्षा से अधिक रूक जाने पर लेखक की क्या क्या प्रतिक्रियाएँ हुई? - atithi ke apeksha se adhik rook jaane par lekhak kee kya kya pratikriyaen huee?

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अतिथि के अपेक्षा से अधिक रुक जाने पर लेखक की क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ हुई। उन्हें कम से छाँटकर लिखिए 


दूसरे दिन मन में आया कि बस इस अतिथि को अब और अधिक नहीं झेला जा सकता।
- तीसरे दिन उसका देवत्व समाप्त हो गया वह राक्षस दिखाई देने लगा।
- चौथे दिन मुस्कान फीकी पड़ गई। बातचीत रूक गई। डिनर की बजाय खिचड़ी, बन गई। मन में आया कि उसे ‘गेट आउट’ कह दिया जाए।

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 पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया?


पति ने स्नेह से भीगी मुस्कुराहट से मेहमान को गले लगाकर उसका स्वागत किया। रात के भोजन में दो प्रकार की सब्जियों और रायते के अलावा मीठी चीजों का भी प्रबन्ध किया गया था। उनके आने पर पत्नी ने उनका स्वागत सादर प्रणाम करके किया था।

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कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही है?


कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से पंछी के पंखों की तरह फड़फड़ा रही है।

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पाठ में आए इन वाक्यों में ‘चुकना’ क्रिया के विभिन्न प्रयोगों को ध्यान से देखिए और वाक्य सरंचना को समझिए-(क) तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकित कर चुके।
(ख) तुम मेरी काफ़ी मिट्‌टी खोद चुके।
(ग) आदर-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे।
(घ) शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए।
(ङ) तुम्हारे भारी-भरम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी और तुम यहीं हो।

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निम्नलिखित वाक्य सरंचनाओं में ‘तुम’ के प्रयोग पर ध्यान दीजिए-
(क) लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो।
(ख) तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुस्कुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है।
(ग) तुम्हारे भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी।
(घ) कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो।
(ङ) भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण कर रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे।

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निम्नलिखित प्रशनों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में लिखिए-
अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है?


अतिथि लेखक के घर पर पिछले चार दिनों से रह रहा था और अभी तक जाने का नाम नहीं ले रहा था।

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अतिथि के अपेक्षा से अधिक रूक जाने पर लेखक की क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ हुईं, उन्हें क्रम से छाँटकर लिखिए।

Solution

अतिथि के अपेक्षा से अधिक एक जाने पर लेखक परेशान एवं दुखी हो गया। उसने इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप-

  • अतिथि को एस्ट्रोनॉट्स के समान बताकर जल्द चले जाने के बारे में सोचा।
  • वह आतिथ्य सत्कार में होने वाले खर्च को सोचकर परेशान हो गया।
  • उसे अतिथि देवता कम, मानव और कुछ अंशों में दानवे नज़र आने लगा।
  • पाँचवें दिन रुकने पर उसने अतिथि को गेट आउट कहने तक का मन बना लिया।

Concept: गद्य (Prose) (Class 9 B)

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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि is part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि.

Board CBSE
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Hindi Sparsh
Chapter Chapter 4
Chapter Name तुम कब जाओगे, अतिथि
Number of Questions Solved 34
Category NCERT Solutions

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1.
अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है?
उत्तर-
अतिथि चार दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है।

प्रश्न 2.
कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही हैं?
उत्तर-
कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ा रही हैं। मानों वे भी अतिथि को बता रही हों कि तुम्हें यहाँ आए। दो-तीन दिन बीत चुके हैं।

प्रश्न 3.
पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया?
उत्तर-
पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत प्रसन्नतापूर्वक किया। पति ने स्नेह से भीगी मुसकान से उसे गले लगाया तथा पत्नी ने सादर नमस्ते की।

प्रश्न 4.
दोपहर के भोजन को कौन-सी गरिमा प्रदान की गई?
उत्तर-
दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की गई।

प्रश्न 5.
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा?
उत्तर-
अतिथि ने तीसरे दिन कहा कि वह अपने कपड़े धोबी को देना चाहता है।

प्रश्न 6.
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ?
उत्तर-
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लेखक उच्च मध्यमवर्गीय डिनर से खिचड़ी पर आ गया। यदि इसके बाद भी अतिथि नहीं गया तो उसे उपवास तक जाना पड़ सकता है।

लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था?
उत्तर-
लेखक अपने अतिथि को भावभीनी विदाई देना चाहता था। वह चाहता था कि अतिथि को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन तक जाया जाए। उसे बार-बार रुकने का आग्रह किया जाए, किंतु वह न रुके।

प्रश्न 2.
पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए-

  1. अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
  2. अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
  3. लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़े।
  4. मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
  5. एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।

उत्तर-

  1. बिना सूचना दिए अतिथि को आया देख लेखक परेशान हो गया। वह सोचने लगा कि अतिथि की आवभगत में उसे अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा जो उसकी जेब के लिए भारी पड़ने वाला है।
  2. अतिथि देवता होता है पर अपना देवत्व बनाए रखकरे। यदि अतिथि अगले दिन वापस नहीं जाता है और मेजबान के लिए पीड़ा का कारण बनने लगता है तो मनुष्य न रहकर राक्षस नज़र आने लगता है। देवता कभी किसी के दुख का कारण नहीं बनते हैं।
  3. जब अतिथि आकर समय से नहीं लौटते हैं तो मेजबान के परिवार में अशांति बढ़ने लगती है। उस परिवार का चैन खो जाता है। पारिवारिक समरसता कम होती जाती है और अतिथि का ठहरना बुरा लगने लगता है।
  4. पहले दिन के बाद से ही लेखक को अतिथि का रुकना भारी पड़ रहा था। दूसरा तीसरा दिन तो जैसे तैसे बीता पर अगले दिन वह सोचने लगा कि यदि अतिथि पाँचवें दिन रुका तो उसे गेट आउट कहना पड़ेगा।
  5. देवता कुछ ही समय ठहरते हैं और दर्शन देकर चले जाते हैं। अतिथि कुछ ही समय के लिए देवता होते हैं, ज्यादा दिन ठहरने पर मनुष्य के लिए वह भारी पड़ने लगता है तब किसी भी तरह अतिथि को जाना ही पड़ता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
कौन-सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
तीसरे दिन मेहमान का यह कहना कि वह धोबी से कपड़े धुलवाना चाहता है, एक अप्रत्याशित आघात था। यह फरमाइश एक ऐसी चोट के समान थी जिसकी लेखक ने आशा नहीं की थी। इस चोट का लेखक पर यह प्रभाव पड़ा कि वह अतिथि को राक्षस की तरह मानने लगा। उसके मन में अतिथि के प्रति सम्मान की बजाय बोरियत, बोझिलता और तिरस्कार की भावना आने लगी। वह चाहने लगा कि यह अतिथि इसी समय उसका घर छोड़कर चला जाए।

प्रश्न 2.
‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुजरना’-इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं? विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
संबंधों का संक्रमण दौर से गुजरने का आशय है-संबंधों में बदलाव आना। इस अवस्था में कोई वस्तु अपना मूल स्वरूप खो बैठती है और कोई दूसरा रूप ही अख्तियार कर लेती है। लेखक के घर आया अतिथि जब तीन दिन से अधिक समय रुक गया तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई। लेखक ने उससे अनेकानेक विषयों पर बातें करके विषय का ही अभाव बना लिया था। इससे चुप्पी की स्थिति बन गई, जो बोरियत लगने लगी। इस प्रकार उत्साहजनक संबंध बदलकर अब बोरियत में बदलने लगे थे।

प्रश्न 3.
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर-
जब अतिथि चार दिन के बाद भी घर से नहीं टला तो लेखक़ के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन आए

  • उसने अतिथि के साथ मुसकराकर बात करना छोड़ दिया। मुसकान फीकी हो गई। बातचीत भी बंद हो गई।
  • शानदार भोजन की बजाय खिचड़ी बनवाना शुरू कर दी।
  • वह अतिथि को ‘गेट आउट’ तक कहने को तैयार हो गया। उसके मन में प्रेमपूर्ण भावनाओं की जगह गालियाँ आने लगीं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्याय लिखिए-

  1. चाँद
  2. ज़िक्र
  3. आघात
  4. ऊष्मा
  5. अंतरंग

उत्तर-

  1. चाँद – शशि, राकेश
  2. जिक्र – वर्णन, कथन
  3. आघात – चोट, प्रहार ऊष्मा
  4. ऊष्मा – ताप, गरमाहट
  5. अंतरंग – घनिष्ठ, नजदीकी

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए-

  1. हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे। (नकारात्मक वाक्य)
  2. किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे। (प्रश्नवाचक वाक्य)
  3. सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। (भविष्यत् काल)
  4. इनके कपड़े देने हैं। (स्थानसूचक प्रश्नवाची)
  5. कब तक टिकेंगे ये? (नकारात्मक)

उत्तर-

  1. हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने नहीं जाएँगे।
  2. किसी लॉण्ड्री पर दे देने पर क्या जल्दी धुल जाएँगे।
  3. सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो जाएगी।
  4. इनके कपड़े कहाँ देने हैं?
  5. कब तक नहीं टिकेंगे ये?

प्रश्न 3.
पाठ में आए इन वाक्यों में ‘चुकना’ क्रिया के विभिन्न प्रयोगों को ध्यान से देखिए और वाक्य संरचना को समझिए-

  1. तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकित कर चुके
  2. तुम मेरी काफ़ी मिट्टी खोद चुके
  3. आदर-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे।
  4. शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चूक गए
  5. तुम्हारे भारी-भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी और तुम यहीं हो।

उत्तर-
छात्र स्वयं चुकना क्रिया के विभिन्न प्रयोगों को ध्यान से देखें और वाक्य से रचना को समझें।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं में ‘तुम’ के प्रयोग पर ध्यान दीजिए-

  1. लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो।
  2. तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुसकुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है।
  3. तुम्हारे भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी।
  4. कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो।
  5. भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण कर रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे।

उत्तर-
उपर्युक्त वाक्यों में ‘तुम’ के सभी प्रयोग लेखक के घर आए अतिथि के लिए हुए हैं।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
‘अतिथि देवो भव’ उक्ति की व्याख्या करें तथा आधुनिक युग के संदर्भ में इसका आकलन करें।
उत्तर-
भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता का दर्जा दिया गया है। उसे देवता के समान मानकर उसका आदर सत्कार किया जाता है। आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य मशीनी जीवन जी रहा है। उसके पास अपने परिवार के लिए समय नहीं रह गया है तो अतिथि के लिए समय कैसे निकाले। इसके अलावा महँगाई के इस युग में जब अपनी जरूरतें पूरी करना कठिन हो रहा तो अतिथि का सत्कार जेब काटने लगता है। ऐसे में मनुष्य को अतिथि से दूर ही रहना चाहिए।

प्रश्न 2.
विद्यार्थी अपने घर आए अतिथियों के सत्कार का अनुभव कक्षा में सुनाएँ।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अनुभव स्वयं व्यक्त करें।

प्रश्न 3.
अतिथि के अपेक्षा से अधिक रूक जाने पर लेखक की क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ हुईं, उन्हें क्रम से छाँटकर लिखिए।
उत्तर-
अतिथि के अपेक्षा से अधिक एक जाने पर लेखक परेशान एवं दुखी हो गया। उसने इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप-

  • अतिथि को एस्ट्रोनॉट्स के समान बताकर जल्द चले जाने के बारे में सोचा।
  • वह आतिथ्य सत्कार में होने वाले खर्च को सोचकर परेशान हो गया।
  • उसे अतिथि देवता कम, मानव और कुछ अंशों में दानवे नज़र आने लगा।
  • पाँचवें दिन रुकने पर उसने अतिथि को गेट आउट कहने तक का मन बना लिया।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ यह प्रश्न लेखक के मन में कब घुमड़ने लगा?
उत्तर-
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’—यह प्रश्न लेखक के मन में तब घुमड़ने लगा जब लेखक ने देखा कि अतिथि को आए आज चौथा दिन है पर उसके मुँह से जाने की बात एक बार भी न निकली।

प्रश्न 2.
लेखक अपने अतिथि को दिखाकर दो दिनों से कौन-सा कार्य कर रहा था और क्यों?
उत्तर-
लेखक अपने अतिथि को दिखाकर दो दिनों से तारीखें बदल रहा था। ऐसा करके वह अतिथि को यह बताना चाह रहा था कि उसे यहाँ रहते हुए चौथा दिन शुरू हो गया है। तारीखें देखकर शायद उसे अपने घर जाने की याद आ जाए।

प्रश्न 3.
लेखक ने एस्ट्रानॉट्स का उल्लेख किस संदर्भ में किया है?
उत्तर-
लेखक ने एस्ट्रोनॉट्स का उल्लेख घर आए अतिथि के संदर्भ में किया है। लेखक अतिथि को यह बताना चाहता है कि लाखों मील लंबी यात्रा करने बाद एस्ट्रानॉट्स भी चाँद पर इतने समय नहीं रुके थे जितने समय से अतिथि उसके घर रुका हुआ है।

प्रश्न 4.
‘आर्थिक सीमाओं की बैंजनी चट्टान’ कहकर लेखक ने किस ओर संकेत किया है?
उत्तर-
‘आर्थिक सीमाओं की बैंजनी चट्टान’ कहकर अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति की ओर संकेत किया है। लेखक के घर आया अतिथि चौथे दिन भी घर जाने के लिए संकेत नहीं देता है, जबकि उसके इतने दिन रुकने से लेखक के घर का बजट और उसकी आर्थिक स्थिति खराब होने लगी थी।

प्रश्न 5.
अतिथि को आया देख लेखक की क्या दशा हुई और क्यों?
उत्तर-
अतिथि को असमय आया देख लेखक ने सोचा कि यह अतिथि अब पता नहीं कितने दिन रुकेगा और इसके रुकने पर उसका आर्थिक बजट भी खराब हो जाएगी। इसका अनुमान लगाते ही लेखक का दृश्य किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा।

प्रश्न 6.
लेखक ने घर आए अतिथि के साथ ‘अतिथि देवो भवः’ परंपरा का निर्वाह किस तरह किया?
उत्तर-
लेखक ने अतिथि को घर आया देखकर स्नेह भीगी मुसकराहट के साथ उसका स्वागत किया और गले मिला। उसने अतिथि को भोजन के स्थान पर उच्च मध्यम वर्ग का डिनर करवाया, जिसमें दो-दो सब्जियों के अलावा रायता और मिष्ठान भी था। इस तरह उसने अतिथि देवो भव परंपरा का निर्वाह किया।

प्रश्न 7.
लेखक ने अतिथि का स्वागत किसे आशा में किया?
उत्तर-
लेखक ने अतिथि का स्वागत जिसे उत्साह और लगन के साथ किया उसके मूल में यह आशा थी कि अतिथि भी अपना देवत्व बनाए रखेगा और उसकी परेशानियों को ध्यान में रखकर अगले दिन घर चला जाएगा। जाते समय उसके मन पर शानदार मेहमान नवाजी की छाप होगी।

प्रश्न 8.
लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अतिथि मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है?
उत्तर-
लेखक ने देखा कि दूसरे दिन वापस जाने के बजाय अतिथि तीसरे दिन धोबी को अपने कपडे धुलने के लिए देने की बात कह रहा है। इसका अर्थ यह है कि वह अभी रुकना चाहता है। इस तरह अतिथि ने अपना देवत्व छोड़कर मानव और राक्षस वाले गुण दिखाना शुरू कर दिया है।

प्रश्न 9.
लेखक और अतिथि के बीच सौहार्द अब बोरियत का रूप किस तरह लेने लगा था?
उत्तर-
अतिथि जब लेखक के यहाँ चौथे दिन भी रुका रह गया तो लेखक के मन में जैसा उत्साह और रुचि थी वह सब समाप्त हो गया। उसने विविध विषयों पर बातें कर लिया था। अब और बातों का विषय शेष न रह जाने के कारण दोनों के बीच चुप्पी छाई थी। यह चुप्पी अब सौहार्द की जगह बोरियत का रूप लेती जा रही थी।

प्रश्न 10.
यदि अतिथि पाँचवें दिन भी रुक गया तो लेखक की क्या दशा हो सकती थी?
उत्तर-
यदि अतिथि पाँचवें दिन भी रुक जाता तो लेखक की बची-खुची सहनशक्ति भी जवाब दे जाती। वह आतिथ्य के बोझ को और न सह पाता। डिनर से उतरकर खिचड़ी से होते हुए उपवास करने की स्थिति आ जाती। वह किसी भी स्थिति में अतिथि का सत्कार न कर पाता।

प्रश्न 11.
लेखक के अनुसार अतिथि का देवत्व कब समाप्त हो जाता है?
उत्तर-
लेखक का मानना है कि अतिथि देवता होता है, पर यह देवत्व उस समय समाप्त हो जाता है जब अतिथि एक दिन से ज्यादा किसी के यहाँ ठहर कर मेहमान नवाजी का आनंद उठाने लगता है। उसका ऐसा करना मेजबान पर बोझ बनने लगता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक के व्यवहार में आधुनिक सभ्यता की कमियाँ झलकने लगती हैं। इससे आप कितना सहमत हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक पहले तो घर आए अतिथि का गर्मजोशी से स्वागत करता है परंतु दूसरे ही दिन से उसके व्यवहार में बदलाव आने लगता है। यह बदलाव आधुनिक सभ्यता की कमियों का स्पष्ट लक्षण है। मैं इस बात से पूर्णतया सहमत हूँ। लेखक जिस अतिथि को देवतुल्य समझता है वही अतिथि मनुष्य और कुछ अंशों में राक्षस-सा नजर आने लगता है। उसे अपनी सहनशीलता की समाप्ति दिखाई देने लगती है तथा अपना बजट खराब होने लगता है, जो आधुनिक सभ्यता की कमियों का स्पष्ट प्रमाण है।

प्रश्न 2.
दूसरे दिन अतिथि के न जाने पर लेखक और उसकी पत्नी का व्यवहार किस तरह बदलने लगता है?
उत्तर
लेखक के घर जब अतिथि आता है तो लेखक मुसकराकर उसे गले लगाता है और उसका स्वागत करता है। उसकी पत्नी भी उसे सादर नमस्ते करती है। उसे भोजन के बजाय उच्च माध्यम स्तरीय डिनर करवाते हैं। उससे तरह-तरह के विषयों पर बातें करते हुए उससे सौहार्द प्रकट करते हैं परंतु तीसरे दिन ही उसकी पत्नी खिचड़ी बनाने की बात कहती है। लेखक भी बातों के विषय की समाप्ति देखकर बोरियत महसूस करने लगता है। अंत में उन्हें अतिथि देवता कम मनुष्य और राक्षस-सा नज़र आने लगता है।

प्रश्न 3.
अतिथि रूपी देवता और लेखक रूपी मनुष्य को साथ-साथ रहने में क्या परेशानियाँ दिख रही थीं?
उत्तर-
भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता माना गया है जिसका स्वागत करना हर मनुष्य का कर्तव्य होता है। इस देवता और अतिथि को साथ रहने में यह परेशानी है कि देवता दर्शन देकर चले जाते हैं, परंतु आधुनिक अतिथि रूपी देवता मेहमान नवाजी का आनंद लेने के चक्कर में मनुष्य की परेशानी भूल जाते हैं। जिस मनुष्य की आर्थिक स्थिति अच्छी न हो उसके लिए आधुनिक देवता का स्वागत करना और भी कठिन हो जाता है।

प्रश्न 4.
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ की प्रासंगिकता आधुनिक संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ नामक पाठ में बिना पूर्व सूचना के आने वाले उस अतिथि का वर्णन है जो मेहमान नवाजी का आनंद लेने के चक्कर मेजबान की परेशानियों को नज़रअंदाज कर जाता है। अतिथि देवता को नाराज़ न करने के चक्कर में मेजबान हर परेशानी को झेलने के लिए विवश रहता है। वर्तमान समय और इस महँगाई के युग में जब मनुष्य अपनी ही ज़रूरतें पूरी करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा है और उसके पास समय और साधन की कमी है तब ऐसे अतिथि का स्वागत सत्कार करना कठिन होता जा रहा है। अतः यह पाठ आधुनिक संदर्भो में पूरी तरह प्रासंगिक है।

प्रश्न 5.
लेखक को ऐसा क्यों लगने लगा कि अतिथि सदैवृ देवता ही नहीं होते?
उत्तर-
लेखक ने देखा कि उसके यहाँ आने वाले अतिथि उसकी परेशानी को देखकर भी अनदेखा कर रहा है और उस पर बोझ बनता जा रहा है। चार दिन बीत जाने के बाद भी वह अभी जाना नहीं चाहता है जबकि देवता दर्शन देकर लौट जाते हैं। वे इतना दिन नहीं ठहरते। इसके अलावा वे मनुष्य को दुखी नहीं करते तथा उसकी हर परेशानी का ध्यान रखते हैं। अपने | घर आए अतिथि का ऐसा व्यवहार देखकर लेखक को लगने लगता है कि हर अतिथि देवता नहीं होता है।

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अतिथि लेखक के घर पर पिछले चार दिनों से रह रहा था और अभी तक जाने का नाम नहीं ले रहा था। (क) लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो। () तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुस्कुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है। (ग) तुम्हारे भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी।

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