कंचा कहानी का सार, कंचा का सार, कंचा का सारांश, कंचा कहानी का सारांश, कंचा पाठ का सारकंचा कहानी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक वसंत भाग 2 में संकलित है। इसके लेखक मलयालम कवि टी. पद्मनाभन है। कंचा कहानी मूल रूप से मलयालम भाषा में लिखी गई है। कंधे पर बस्ता लटकाए अप्पू अपने आप में मस्त विद्यालय की ओर जा रहा था। सियार और कौआ की कहानी उसके दिमाग में चल रही थी। सियार ने कौए से कहा-"प्यारे कौए, एक गाना गाओ तो तुम्हारा गाना सुनने के लिए बेचैन हो रहा हूँ।" कौए ने गाने के लिए मुंह खोला तो उसके मुँह में दबी रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया। सियार रोटी का टुकड़ा लेकर भाग गया। अप्पू सोचकर हँस दिया। 'बुद्धू कौआ" सियार की चालाकी भी न समझ पाया। रास्ते में चलते-चलते उसने एक दुकान की अलमारी में काँच के बड़े-बड़े जार देखे जिनमें चाकलेट, पिपरमेंट और बिस्कुट थे। उसकी नजर उन पर तो नहीं गई। वह आकर्षित हुआ उस जार से जिसमें कंचे रखे हुए थे। हरे लकीर वाले बढ़िया सफेद गोल कंचे। बड़े आँवले के समान थे। वह कंचों की दुनिया में ही खो गया। उसे देखते-देखते लगा कि जार आसमान-सा बड़ा होने लगा है। वह भी उस जार के भीतर आ गया। Show
वैसे भी उसे अकेले खेलने की आदत थी क्योंकि छोटी बहन की मृत्यु के बाद वह अकेला ही खेलता था। जब दुकानदार ने उसे आवाज लगाई कि लड़के तू तो जार को नीचे ही गिरा देगा तो वह चौंक उठा। दुकानदार ने पूछा कि क्या कंचा चाहिए? तो उसने नहीं लेना' सोचकर सिर हिला दिया। स्कूल की घंटी बजी वह बस्ता थामे दौड़ पड़ा क्योंकि उसे मालूम था कि देर से पहुँचने वालों को पिछले बैंच पर बैठना पड़ता है। उस दिन देर से पहुँचने के कारण वह स्वयं ही सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठ गया। पिछले बेंच पर बैठने पर भी वह सभी मित्रों को देखने लगा कि कौन कहाँ बैठा है। रामन, अन्नु, मल्लिका उसने सबको देखा लेकिन न जाने क्यों उसकी आँखें जॉर्ज को खोज रही थीं उसका दिमाग तो कंचों में खोया था और उसे पता था कि कंचों में जॉर्ज को कोई हरा नहीं सकता। रामन से उसे पता चला कि वह आज बीमार है इसलिए स्कूल नहीं आया। अप्पू ने हड़बड़ी में पुस्तक खोली और जाना कि मास्टर जी 'रेलगाड़ी' का पाठ पढ़ा रहे है। वे बताते जा रहे है कि तुम में से कई बच्चों ने रेलगाड़ी देखी होगी। इसे भाप की गाड़ी भी कहते हैं। इसमें पानी डालने के स्थान को बॉयलर कहते हैं। यह एक लोहे का बड़ा पीपा होता है। इस तरह से उन्होनें रेलगाड़ी का पाठ पढ़ाया। मास्टर जी भले ही पाठ को पढ़ाते और समझाते जा रहे थे लेकिन अप्पू न जाने कहाँ खोया था। उसे तो वही कंचे बार-बार याद आ रहे थे। वह सोच रहा था कि जॉर्ज ठीक हो जाए तो उसके साथ खेलेगा। मास्टर जी उसके चेहरे से पहचान गए कि अप्पू का ध्यान पढ़ाई में नहीं है। वे उसके पास गए और पूछना चाहा कि वे क्या पढ़ा रहे है? वह अचानक बोल उठा? 'कंचा' कक्षा के बच्चे हैरान थे कि यह क्या हुआ। कंचा सुनकर मास्टर जी क्राधित हो गए अप्पू को मास्टरजी ने बेंच पर खड़ा करा दिया लेकिन उसका ध्यान अभी भी कंचों में ही था। पाठ समाप्त हो गया बच्चे पाठ से सबधित कठिनाइयाँ मास्टर जी से पूछने लगे लेकिन अप्पू तो इस सोच में खोया था कि कंचे खरीदे कैसे ? क्या जॉर्ज को साथ ले जाने पर दुकानदार कंचे देगा? मास्टर जी ने उससे पूछा-'क्या सोच रहे हो? तो उसके मुँह से निकला-'पैसे'। मास्टर जी ने पूछा पैसे किसके लिए चाहिए, क्या रेलगाड़ी के लिए? वह बोला-'रेलगाड़ी नहीं कंचा।' चपरासी के कक्षा में आने के कारण मास्टर जी ने उसके इस उत्तर का जवाब न दिया। चपरासी ने कक्षा में मास्टर जी को एक फीस का नोटिस दिया। मास्टर जी नोटिस पढ़कर कहने लगे कि जो फीस लाए हैं वे ऑफिस में जमा करवा दें। सब बच्चों के साथ, राजन के सचेत करने पर अप्पू भी फीस जमा करवाने जाने लगा। पहले तो मास्टर जी ने मना किया परंतु बाद में जाने दिया। अप्पू ने फीस जमा न करवाई, जबकि पिताजी ने उसे एक रुपया पचास पैसे दिए थे। उसके दिमाग में तो कंचे ही घूम रहे थे सभी बच्चों ने फीस जमा करवा दी लेकिन अप्पू ने फीस जमा न करवाई। जब वह घर जा रहा था तो उसकी चाल की तेजी बढ़ी वह उसी दुकान पर आकर रुका। दुकानदार उसे देखकर हँसा और बोला-'कंचा चाहिए न?' उसने सिर हिला दिया। दुकानदार ने कहा-'कितने कंचे चाहिए?' उसने जेब से एक रुपया पचास पैसे निकाले तो दुकानदार चौंक गया इतने सारे पैसे। साथ ही दुकानदार ने अपने-आप में यह अंदाजा भी लगा लिया कि सब साथियों के मिलकर ले रहा होगा दुकानदार से कंचे लेकर कागज की पोटली छाती से चिपकाए आगे बढ़ने लगा। अप्पू अपने कंचे देखने चाहे कि सब में लकीरें हैं या नहीं। पोटली खोलते ही सारे कंचे सड़क पर बिखर गए। वह एक-एक कंचे को उठाकर एकत्रित करने लगा हथेली भर गई अब उसने बस्ते में रखने चाहे। अचानक ही सामने से कार आ गई। ड्राइवर को गुस्सा आ रहा था कि उसने रास्ता रोका हुआ है लेकिन वह हँसकर ड्राइवर को भी कंचा दिखाने लगा तो ड्राइवर का गुस्सा भी उसके प्रति प्रेम में बदल गया। वह आज घर देर से पहुँचा तो माँ कुछ परेशान थी लेकिन वह खेल-खेल में माँ की आँखें बंद कर उसे कंचे दिखाने लगा। माँ ने पूछा कि इतने सारे कंचे कहाँ से लाया तो उसने सच बताया कि पिताजी द्वारा दिए फीस के पैसों से खरीदे हैं। पहले तो माँ हैरान हुई कि उसने यह क्या किया लेकिन वह उससे बहुत प्रेम करती थी। उसे कुछ कहना भी नहीं चाहती थी। उसके दिमाग में एक बात घूम रही थी कि कंचे किसके साथ खेलेगा। उसे अपनी मरी हुई बच्ची की याद आ गई और वह रोने लगी। अप्पू को लगा कि माँ को कंचे पसंद नहीं आए वह कहने लगा माँ! "ये कंचे बुरे हैं न!" लेकिन माँ कहने लगी नहीं, अच्छे हैं। वह हँस पड़ा। माँ भी हँस पड़ी। माँ ने उसे गले लगा लिया क्योंकि वह उसे हमेशा खुश देखना चाहती थी। इसलिए माँ.ने उसे डाँटा नहीं। कंचा पाठ के प्रश्न उत्तरकंचा के प्रश्न उत्तरकंचा कहानी के प्रश्न उत्तर1, कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन में समा जातें हैं तब क्या होता है?उत्तर- कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के दिमाग में समा जाते हैं तो उसके देखते-देखते जार बढ़ने लगता है। वह जार आसमान जितना बड़ा हो जाता है। इतने बड़े जार में अप्पू स्वयं को अकेला पाता है। वहाँ उसके साथ खेलने के लिए अन्य और कोई लड़का नहीं है, फिर भी उसे उस जार में होना अच्छा लगता है। वह जार में कंचों को बिखेर कर खेल खेलने लगा है। तभी अचानक दुकानदार की आवाज सुनकर उसका ध्यान टूट जाता है। उसकी नज़रों के सामने वही जार छोटा होता हुआ प्रतीत होने लगता है। 2. दुकानदार और ड्राइवर के सामने अप्पू की क्या स्थिति है? वे दोनों उसको देखकर पहले परेशान होते हैं, फिर हंसते हैं। कारण बताइए।उत्तर-दुकानदार व ड्राइवर के सामने अप्पू एक छोटा बच्चा है जो अपनी ही धुन में मस्त है। दुकानदार उसे देखकर पहले बहुत परेशान होता है। वह कंचे देख तो रहा है लेकिन खरीद नहीं रहा। फिर जैसे ही अप्पू ने कंचे खरीदे तो वह हँस दिया। ऐसे ही जब अप्पू के कंचे सड़क पर बिखर जाते हैं तो तेज़ गति से आती कार का ड्राइवर यह देखकर परेशान हो जाता है कि वह दुर्घटना की परवाह किए बिना, सड़क पर कंचे बीन रहा है। लेकिन जैसे ही अप्पू ड्राइवर को इशारा करके अपना कंचा दिखाता है तो वह उसकी बचपन की शरारत समझकर हँसने लगता है। इस तरह ड्राइवर को अपने बचपन की शरारतें याद आ जाती है। 3. 'मास्टर जी की आवाज़ अब कम ऊँची थी। वे रेलगाड़ी के बारे में बता रहे थे।' मास्टर जी की आवाज़ धीमी क्यों हो गई होगी? लिखिए।उत्तर- जब मास्टर जी ने रेलगाड़ी पाठ पढाना शुरू किया तो उनकी आवाज़ ऊँची थी अर्थात् तेज थी क्योंकि वे सभी बच्चों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहते थे जिससे बच्चे ध्यानपूर्वक उनकी बातों को सुनते हुए पाठ को समझ सकें। जब पाठ शुरू हो गया बच्चे ध्यानपूर्वक उनकी बातें सुनने लगे तो उनकी आवाज़ धीमी हो गई। कंचा पाठ का कहानी से आगे1. कंचे, गिल्ली-डंडा, गेंदतड़ी (पिट्ट) जैसे गली-मोहल्लों के कई खेल ऐसे हैं जो बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं। आपके इलाके में ऐसे कौन-कौन से खेल खेले जाते हैं? उनकी एक सूची बनाइए।उत्तर-हमारे इलाके में फुटबॉल, क्रिकेट, वॉलीबॉल,बैडमिंटन, खो-खो आदि अधिक खेले जाते प्रश्न 2. किसी एक खेल को खेले जाने की विधि को अपने शब्दों में लिखिए।उत्तर- क्रिकेट खेलने की विधि इस प्रकार है- क्रिकेट का मैच दो टीमों के बीच होता हैं। दोनों टीमों में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। एक टीम बल्लेबाजी करती है और दूसरी टीम गेंदबाजी व क्षेत्ररक्षण करती है। इस खेल में तीन निर्णायक होते हैं, दो मैदान में व एक दूर बैठकर कैमरे से निरीक्षण करता है। इस खेल में बल्लेबाज जीतने जीतने के लिए रन बनाते हैं। खिलाड़ी एक रन, दो रन, चौका व छक्का मारकर रनों की संख्या बढ़ाते हैं। दोनों टीमें बारी-बारी से खेलती हैं। जो टीम अधिक रन बनाती है वह जीत जाती है। कंचा पाठ का अनुमान और कल्पनाकंचा कहानी का अनुमान और कल्पनाप्रश्न 1. जब मास्टर जी अप्पू से सवाल पूछते हैं तो वह कौन सी दुनिया में खोया हुआ था? क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आप किसी दिन क्लास में रहते हुए भी क्लास से गायब रहे हों? ऐसा क्यों हुआ और आप पर उस दिन क्या गुज़री? अपने अनुभव लिखिए।उत्तर-जब मास्टर जी कक्षा में रेलगाड़ी का पाठ पढ़ा रहे थे तो अप्पू तो कंचों की दुनिया में खोया था उसका ध्यान मास्टर जी के द्वारा पढ़ाए जाने वाले पाठ में बिलकुल न था। बात पिछले वर्ष की है मेरा जन्मदिन था। घर में सब रिश्तेदार आए थे। माँ ने मुझे उस दिन विद्यालय भेज दिया क्योकि गणित का पेपर था। परिक्षा देने के बाद विज्ञान की क्लास का ध्यान ही नहीं रहा जबकि विज्ञान की अध्यापिका पढ़ा रही थी। मेरे दिमाग में कुछ नहीं आ रहा था क्योंकि मेरी आँखों के आगे तो घर का माहौल छाया था। इतने में अध्यापिका मेरे पास आई और पूछा कि तुम्हें प्रश्न समझ आ गया तो मैंने हाँ में उत्तर दे दिया लेकिन बहुत शर्म आई जब उन्होंने कहा कि तुम पढ़ क्या रहे हो, पुस्तक तो तुम्हारी उल्टी पड़ी है। सच! मुझे बहुत शर्म आई। मैंने खड़े होकर सच अध्यापिका को अपने जन्मदिन के तैयारी की बात बताई तो वे भी हँसने लगी और मुझे जन्मदिन मुबारक' कहकर बिठा दिया। प्रश्न 2. आप कंचा पाठ को क्या शीर्षक देना चाहेंगे?उत्तर- मेरे हिसाब से कंचा कहानी का शीर्षक 'कंचो की दुनियां' या 'सपनो की दुनियां' होना चाहिए। प्रश्न- गुल्ली-डंडे और क्रिकेट में कुछ समानता है और कुछ अंतर बताइए कौन सी समानताएं हैं और क्या क्या अंतर है?उत्तर- गुल्ली डंडा और क्रिकेट में निम्नलिखित समानताएं और अन्तर हैं- गुल्ली डंडा और क्रिकेट में समानता1- गुल्ली डंडा और क्रिकेट में दो-दो टीमें रहती है। 2- गुल्ली डंडा और क्रिकेट दोनों खेल सहयोग की भावना पर आधारित होते हैं। 3- गुल्ली डंडा और क्रिकेट दोनों खेल खुली जगह पर खेले जाते हैं। 4- गुल्ली डंडा और क्रिकेट दोनों खेलों में हार-जीत निश्चित होती है। गुल्ली डंडा और क्रिकेट में असमानता-1-क्रिकेट निश्चित समय सीमा में खेला जाता है जबकि गुल्ली-डंडा का कोई निश्चित समय सीमा नहीं होती है। 2-गुल्ली और डंडा दोनों लकड़ी के होते हैं जबकि क्रिकेट में बल्ला लकड़ी का गेंद चमड़े की होती है। 3-क्रिकेट के निर्णायक अंपायर होते हैं जबकि गुल्ली डंडा के निर्णायक खिलाड़ी स्वयं होते हैं। 4-गुल्ली-डंडा में खिलाड़ियों की कोई निश्चित संख्या नहीं होती जबकि क्रिकेट में खिलाड़ियों की संख्या निश्चित होती है। कंचा पाठ के भाषा की बातकंचा कहानी के भाषा की बात1-नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित मुहावरे किन भावों को प्रकट करते हैं? इस भावों से जुड़े दो-दो मुहावरे बताइए और उनका वाक्य में प्रयोग कीजिए।★माँ ने दाँतों तले उँगली दबाई। ★सारी कक्षा साँँस रोके हुए उसी तरह देख रही है।उत्तर- 1- 'दांतो तले उंगली दबाना' मुहावरे से संबंधित दो मुहावरे इस प्रकार हैं- ★'दांतो तले उंगली दबाना' मुहावरे का अर्थ आश्चर्य प्रकट करना होता है। ★'मुंह खुला का खुला रहना' तूफान की तीव्र गति को देखकर मेरा मुंह खुला का खुला रह गया। ★'हक्का-बक्का होना' राम एक चोर बन गया है यह सुनकर सभी हक्के बक्के रह गए । 2-साँस रोके हुए मुहावरे से संबंधित दो मुहावरे इस प्रकार हैं- ★'सांस रोके हुए' मुहावरे का अर्थ होता है डर जाना । ★'प्राण सूख जाना'- धमकी को देखते ही मेरे प्राण सूख गए। ★'दम साधे खड़े हो जाना'- जब मेरी चोरी पकड़ी गई तो मैं लोगों के सामने दम साधे खड़ा था। 2. विशेषण कभी-कभी एक से अधिक शब्दों के भी होते हैं। नीचे लिखे वाक्यों में रेखांकित हिस्से क्रमशः रकम और कंचे के बारे में बताते हैं, इसलिए वे विशेषण है।★पहले कभी किसी ने इतनी बड़ी रकम से कुछ नहीं खरीदे। |