वर्गीकरण के प्रमुख आधार कौन कौन से हैं? - vargeekaran ke pramukh aadhaar kaun kaun se hain?

Solution : संसाधनों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है
(1) उत्पत्ति के आधार पर-जैव तथा अजैव ।
(ii) समाप्यता के आधार पर-नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य ।
(iii) स्वामित्व के आधार पर-व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ।
(iv) विकास के स्तर के आधार पर-संभावी, विकसित भंडार और संचित कोष।

इसके पूर्व के लेख में स्वर और व्यन्जनों के बारे में जानकारी दी गई है। इस लेख में स्वरों का प्रकारों (वर्गीकरण) की जानकारी दी गई है।

स्वरों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है-
(क) जिह्वा के व्यवहृत भाग के आधार पर।
(ख) जिह्वा के व्यवहृत भाग की ऊँचाई के आधार पर।
(ग) ओठों की स्थिति के आधार पर।
(घ) कोमल तालु की स्थिति के आधार पर।
(ङ) स्वरतंत्रिय आधार पर।
(च) काल के आधार पर

(क) जिह्वा के व्यवहृत भाग के आधार पर-

मुख विवर में जीभ किसी वर्ण के उच्चारण करने में प्रमुख सहायक अङ्ग है। स्वरों के उच्चारण में जिह्वा की तीन अवस्थाएँ होती हैं। ये अवस्थाएँ जिह्वा के भागों के आधार पर हैं। इसी आधार पर स्वरों को इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है।
(i) अग्र स्वर - इ, ई, ए, ऐ।
(ii) मध्य स्वर - अ, आ।
(iii) पश्च स्वर - उ, ऊ, ओ औ

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(ख) जिह्वा के व्यवहृत भाग की ऊँचाई के आधार पर -

जिह्वा के व्यवहृत भाग की ऊँचाई के आधार पर स्वरों के वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है-
(i) संवृत (बिल्कुल सँकरा) - जब जिह्वा का व्यवहृत भाग स्वरों के उच्चारण में अधिकतम ऊँचाई पर होगा, तब मुख रन्ध्र संवृत होने के कारण वे संवृत कोटि में होते हैं। जैसे- इ, ई, उ, ऊ।
(ii) अर्ध संवृत्त (कुछ सँकरा) - इसमें जिह्वा का व्यवहृत भाग कम ऊँचाई पर होता है। इस स्थिति में उच्चारित स्वर अर्द्धसंवृत्त होते हैं। जैसे- ए, ओ।
(iii) विवृत्त (बिल्कुल खुला) - जब जिह्वा का व्यवहृत भाग निम्नतम् अवस्था में रहता है तब स्वर की उत्पत्ति विवृत अवस्था में होती है। जैसे- आ।
(iv) अर्ध विवृत्त (कुल खुला) - जब जिह्वा का व्यवहृत भाग संवृत की अवस्था में कुछ कम ऊँचाई पर होगा, तब अर्द्धसंवृत्त स्वरों का निर्माण होगा। जैसे - अ, ऐ औ।

चित्र देखें

वर्गीकरण के प्रमुख आधार कौन कौन से हैं? - vargeekaran ke pramukh aadhaar kaun kaun se hain?

(ग) ओठों की स्थिति के आधार पर

स्वरों के उच्चारण में ओठों की दो स्थितियों बनती हैं -
(अ) वृताकार
(ब) अवृताकार
(अ) वृताकार - जिन स्वरों के उच्चारण में ओंठ वृत्ताकार हो जाते हैं, उन्हें वृताकार स्थिति में रखते हैं। जैसे - ओ, औ,उ, ऊ
(ब) अवृताकार - ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में ओठों की स्थिति सामान्य रहती हो, वृत के समान गोल न बनती हो, उन्हें अवृत्ताकार स्वर कहा जाता है। जैसे- अ, आ, इ, ई, ऋ, ए, ऐ।

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(घ) कोमल तालु के आधार पर

इसे ही अनुनासिका या कौवे की स्थिति भी कहते है। उच्चारण के समय कोमल तालु/ कौवे की दो स्थितियों होती है। इस स्थिति में स्वर उच्चारण दो प्रकार से होते हैं -
(अ) निरनुनासिक
(ब) अनुनासिक
(अ) अनुनासिक - उच्चारण के समय जब कौवा बीच में लटकता रहता है और इसी के फलस्वरूप वायु का कुछ भाग नाक से निकलता है। अतः इस स्थिति से उच्चारित स्वर अनुनासिक कहलता है। जैसे- अँ, आँ, ॐ, एँ आदि।
(ब) निरनुनासिक - जब किसी स्वर के उच्चारण में कोमल तालु अपनी स्वाभाविक स्थिति में रहकर वायु के सम्पूर्ण प्रवाह को मुख विवर से जाने देता है, तब स्वर का उच्चारण निरनुनासिका होता है। जैसे - अ, आ, इ, ई ओ औ आदि।

(ङ) स्वरतन्त्रिय आधार पर या माँसपेशियों की स्थिति) -

माँसपेशियों की स्थिति में होने वाली शिथिलता और दृढ़ता के आधार पर स्वर के दो भेद है-
(अ) शिथिल स्वर और (ब) दृढ स्वर।
(अ) शिथिल स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में मुखाङ्गों की मांसपेशियों में शिथिलता महसूस होती है, उन्हें शिथिल स्वर कहा जाता है। जैसे- अ, इ, उ
(ब) दृढ़ स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में मुख अङ्गों की मांसपेशियों में दृढ़ता महसूस होती है, ऐसे स्वरों को दृढ़ स्वर कहा जाता है। जैसे - ई, ऊ

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(च) काल (मात्राकाल) के आधार पर

स्वर के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। अतः मात्रा के समय (काल) को ध्यान में रखते हुए स्वर दो हस्व और दीर्घ हैं।
(अ) ह्रस्व स्वर - वे स्वर जिनके उच्चारण में बहुत कम समय अर्थात एक मात्रा काल का समय लगता हो, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। उदाहरण- अ, इ, उ, ऋ
(ब) दीर्घ स्वर - वे स्वर जिनके उच्चारण में बहुत अपेक्षाकृत ज्यादा अर्थात दो मात्रा काल का समय लगता हो, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। उदाहरण-आ, ई, उ, ए, ऐ, ओ, औ

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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में प्रयुक्त एक ऐसा चिन्ह जो वर्णमाला के व्यन्जन वर्णों के नीचे तिरछी रेखा (्) के रूप में लगाया जाता है उसे हलन्त कहते हैं।

के वर्गीकरण के प्रमुख आधार कौन कौन से हैं?

Answer:.
उत्पत्ति के आधार पर :- जैव और अजैव.
समाप्यता के आधार पर :- नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य.
स्वामित्व के आधार पर :- व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय.
विकास के स्तर के आधार पर : संभावी, विकसित भंडार और संचित कोष.

संसाधन के वर्गीकरण के विभिन्न आधार क्या है?

उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण इसके अंतर्गत मत्स्य जीव, पशुधन, मनुष्य, पक्षी आदि आते हैं। अजैव संसाधन:- हमारे वातावरण में उपस्थित वैसे सभी संसाधन जिनमें जीवन व्याप्त नहीं हैं अर्थात निर्जीव हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं। उदाहरण-चट्टान, पर्वत, नदी, तालाब, समुद्र, धातुएँ, हवा, सभी गैसें, सूर्य का प्रकाश, आदि।

संसाधनों के वर्ग कौन कौन से हैं?

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