This article will share Utho Dhara Ke Amar Saputoan Questions & Answers उठो धरा के अमर सपूतों प्रश्न और उत्तर Show यह कविता द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित है। पिछले पोस्टों में मैंने Sahsi Kanya और Bhap Ki TakatकेQuestions & Answersशेयर किए हैं तो आप उसे भी चेक कर सकते हैं। शब्दार्थ
प्रश्न 1: उचित विकल्प चुनिए –(क) कवि ने युग-युग के मुरझे सुमनों में क्या भरने के लिए कहा है?i. नई-नई पहचान (ख) कवि ने नवयुग की नूतन वीणा में क्या भरने के लिए कहा है?i. नवयुग का आह्वान (ग) भौंरे किस तरह मँडराते हैं?i. गुन-गुन, गुन-गुन करते हुए (घ) कवि ने जग-उद्यान किससे गुंजित करने के लिए कहा है ?i. नूतन मंगलमय ध्वनियों से प्रश्न 2: सरस्वती के मंदिर को कवि ने कैसा बताया है?उत्तर:सरस्वती के मंदिर को कवि ने पावन और शुभ बताया है। प्रश्न 3: कविता में धरती के अमर सपूतों का आह्वान कौन कर रहा है?उत्तर:कविता में धरती के अमर सपूतों का आह्वान कवि कर रहा है। प्रश्न 4: कवि धरती के सपूतों को जन-जन के जीवन में क्या भरने के लिए कह रहे हैं ?उत्तर:कवि धरती के सपूतों को जन-जन के जीवन में नव स्फूर्ति और नव प्राण भरने के लिए कह रहे हैं। प्रश्न 5: धरती के सौंदर्य का वर्णन कवि ने किस प्रकार किया है?उत्तर:कवि ने धरती के सौंदर्य में कहा है कि आज भारत रूपी उद्यान की हर एक कली खिल रही है और सारे फूल मुस्करा रहे हैं। आज़ादी के सूर्य ने सारी धरती को प्रकाशित कर दिया है। ऐसा लगता है कि धरती माँ का शरीर सुनहरा हो गया हो । प्रश्न 6: कवि ने रक्षक और पुजारी किसे और क्यों कहा है ?उत्तर: कवि ने देश के सपूतों/बालकों या हमें ही रक्षक और पुजारी कहा है क्योंकि उनके अनुसार पूरा देश सरस्वती का मंदिर है जिसकी शुभ विधाएँ ही हमारी संपत्ति है। इस संपत्ति की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है जिस कारण हम देश के रक्षक और पुजारी हैं। प्रश्न 7: कविता से मिलने वाली सीख अपने शब्दों में लिखिए।उत्तर:इस कविता की मदद से देशभक्ति और नए कार्यों को करने की भावना का विकास कर पाने की सीख मिलती है | प्रश्न 8: पंक्तियाँ पढ़ कर प्रश्नों के उत्तर दीजिये –(i) कवि ने किन नई चीजों की बात कही है?उत्तर:कवि कहते हैं कि प्रात: अर्थात सुबह, बात, किरण, ज्योति अर्थात रोशनी, उमंगें, तरंगे अथार्त आशा और साँस ये सभी चीजें नई हैं । (ii) कवि किसे और किसमें नई मुस्कान भरने के लिए कह रहे हैं?उत्तर: कवि धरती के अमर सपूतों अर्थात नवयुवकों को युग-युग के मुरझाए हुए फूलों में अर्थात वर्षों तक अंग्रेज़ों का गुलाम रहे भारत देश के बच्चों को नई मुस्कान नया जीवन भर देने के लिए कह रहे हैं जिससे वे बालक भारत देश के प्रति अपना सर्वस्व न्योछावर कर सकें। तो यह थे प्रश्न और उत्तर।
Utho Dhara Ke Amar Saputo – उठो धरा के अमर सपूतो कविता, शब्दार्थ, सारांश, अर्थ, सम्पूर्ण व्याख्या और प्रश्न-उत्तरHere I am sharing beautiful best Hindi Poem For Kids in which very valuable thought is presented by the poet. यहाँ छोटे बच्चों के लिए ज्ञान पर लिखी हुई बहुत ही सुंदर कविता प्रस्तुत किया गया है। यह कविता हमारे सभी नन्हें-मुन्हें बच्चों के लिए जरूर पसंद होगी। इस कविता का नाम है “उठो धरा के अमर सपूतो“ कविता के माध्यम से कवि द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी यही कहना चाहते है कि हमारा देश युवाओं का देश है। यहाँ पर रहने वाले सभी छोटे-छोटे बच्चे ही आगे चलकर देश का भविष्य का निर्मांण करते हैं और इस पावन रूपी धरती पर आओ हम सभी मिल-जुल कर अपने देश का निर्मांण करते हैं। कविता में कवि नवयुवकों को अपने भारत-माता देश के नव-निर्माण के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। कवि का मानना है कि बच्चे ही देश का भविष्य होते है। अपने देश के निर्माण के लिए आशा और विश्वास और नयी उमंग के साथ उन्हें आगे बढ़ना चाहिए। उठो धरा के अमर सपूतोउठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्मांण करो। जन-जन के जीवन में फिर से, नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो। नया प्रभात है, नई बात है, नई किरण है, ज्योति नई। नई उमंग है, नई तरंगे, नई आस है, साँस नई। युग-युग के मुरझे सुमनों में, नई-नई मुस्कान भरो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करों। डाल-डाल पर बैठ विहग, कुछ नए स्वरों में गाते हैं। गुन-गुन, गुन-गुन करते भौरे, मस्त हुए मँडराते है। नवयुग की नूतन वीणा में, नया राग, नवगान भरो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करो। कली-कली खिल रही इधर, वह फूल-फूल मुस्काया है। धरती माँ की आज हो रही, नई सुनहरी काया है। नूतन मंगलमय ध्वनियों से, गुंजित जग उद्यान करो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करों। सरस्वती माँ का पावन मंदिर, यह संपत्ति तुम्हारी है। तुम में से हर बालक, इसका रक्षक और पुजारी है। शत-शत दीपक जला ज्ञान के, नवयुग का आह्वान करो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करो। -द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी Utho Dhara Ke Amar Saputo उठो धरा के अमर सपूतो कविता का शब्दार्थं धरा- पृथ्वी, धरती स्फूर्ति – जोश, उमंग, उत्साह अमर – न मरनेवाला सपूत – कुल का नाम, सुपुत्र पुनः – फिर नव – नया प्राण – जीवन तरंग-लहर सुमन – फूल विहग – पक्षी नवयुग – नया जमाना नूतन – नई वीणा – सितार जैसा वाद्य यंत्र (जो सरस्वती देवी के हाथों में होता है।) राग – गाने का ढंग सुनहरी – सोने जैसी चमकीली काया – देह,शरीर मंगलमय – शुभ, मांगलिक गुंजित – गुंजार से युक्त जग-उद्यान – संसाररूपी बगीचा पावन – पवित्र आह्वान करना – पुकारना, बुलाना सूमन – फूल गान – गीत उद्यान – बगीचा रक्षक – रक्षा करने वाला निर्मांण – रचना, बनाना ज्योति – प्रकाश आह्वान करो – आमंत्रित करो मंगलमय – शुभ प्रातः – सुबह विहग – पक्षी पावन – पवित्र शत – सौ आस – उम्मीद, आशा नूतन – नई जग – संसार संपत्ति – धन गुंजित – भौंरों के गुंजार से युक्त पुनः – दोबारा, फिर प्रायः – अक्सर नूतन – नया Utho Dhara Ke Amar Saputo उठो धरा के अमर सपूतो कविता का सारांश हे भारत माता के अमर सपूतों अब पुन: नया निर्माण करने का समय आ गया है गुलामी में से मुक्त हर एक व्यक्ति के जीवन में फिर से एक नई चेतना, नये प्राण भरने का काम आपको करना है। अब तो हर रोज़ नई सुबह सूरज की नई किरण हमारे लिए नयी बात और नया प्रकाश लेकर आ रही है। अब तो हर एक के मन में नयी उमंग और तरंग है। आजादी की इस नयी सुबह की साँस के साथ ही सबकी आश पूर्ण करनी है। इन मुरझायें फूलों में नयी जान भरनी है। आज़ादी की इस स्फूर्ति से भरी सुबह से सब खुश है। डालियों पर बैठे हुए पक्षी भी गीत गा रहे है। लगता है जैसे उन्हे भी नया स्वर मिला हो। बाग में चारों और भौरों का गुंजारव सुनाई पड़ता है इस अमर धरा के हे अमर सपूतों आज़ादी के बाद देश में नया युग आया है। इस नये युग रुपी वीणा में तुम नया राग और नया गीत भरके कुछ नया निर्माण करो। आज भारत रुपी उद्यान की हर एक कली खिल रही है और सारे फूल मुस्करा रहे है। आजादी के सूर्य ने सारी धरती को प्रकाशित किया है। ऐसा लगता है कि धरती माता का शरीर सुनहरा हो गया हो। हे वीर सपूतों, तुम्हे अपनी मंगलमय वाणी से जग रुपी उद्यान को गुंजित करना है। यह पूरा देश सरस्वती का मंदिर है। यहाँ की विद्याएँ ही तुम्हारी सम्पत्ति है. तुम में से प्रत्येक बालक इस शुभ विद्यामंदिर का रक्षक और पूजारी है। तुम यहाँ कोटि-कोटि ज्ञान के दीपक जलाकर नये युग का आह्वान करना है। हे अमर सपूतों इस कल्याणकारी ज्ञान के द्वारा ही तुम नये युग का निर्माण करो। Utho Dhara Ke Amar Saputo उठो धरा के अमर सपूतो कविता का सरल अर्थ उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्मांण करो। जन-जन के जीवन में फिर से, नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो। हे भारतमाता के अमर पुत्रो, गुलामी की रात बीत गई है और आजादी का सबेरा हुआ है। अब तुम अज्ञान-आलस्य की नींद से जागो और देश के नवनिर्माण में लग जाओ। तुम्हें देशवासियों के जीवन में फिर से नया उत्साह भरना हैं, उनमें नए प्राणों का संचार करना है। नया प्रभात है, नई बात है, नई किरण है, ज्योति नई। नई उमंग है, नई तरंगे, नई आस है, साँस नई। युग-युग के मुरझे सुमनों में, नई-नई मुस्कान भरो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करों। आजादी की नयी सुबह में नयी चर्चाएं हो रही हैं। नये विचारों की किरणें फैल रही हैं। सब अपने जीवन में नये प्रकाश का अनुभव कर रहे हैं। लोगों के मन नयी उमंगें हैं और हौसले की नयी लहरें हैं। सबके मन में नयी आशाएं हैं। आज देशवासी खुलकर साँस ले रहे हैं। हे देश के सूपतो, तुम्हें युग-युग के मुरझाए हुए फूलों को नयी मुस्कान देनी है, उन्हें फिर से खिलाना है। डाल-डाल पर बैठ विहग, कुछ नए स्वरों में गाते हैं। गुन-गुन, गुन-गुन करते भौरे, मस्त हुए मँडराते है। नवयुग की नूतन वीणा में, नया राग, नवगान भरो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करो। आजादी की इस सुबह में प्रकृति भी आनंदित है। पेड़ों की डालों पर बैठे पक्षियों के स्वरों में भी नवीनता है। वे भी जैसे खुशी का कोई गीत गा रहे हों। बागों में भौरे गुंजार करते हुए मस्ती से मंडरा रहे हैं। हे देश के सपूतो, स्वतंत्रता बाद देश में नया युग आया है। इस नये युग की वीणा में तुम्हें नये राग और नये गाने भरने हैं। कली-कली खिल रही इधर, वह फूल-फूल मुस्काया है। धरती माँ की आज हो रही, नई सुनहरी काया है। नूतन मंगलमय ध्वनियों से, गुंजित जग उद्यान करो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करों। इधर उद्यान में कलियाँ खिल रही हैं और प्रत्येक फूल मुस्करा रहे हैं। सारे देश में स्वतंत्रता के सूर्य का प्रकाश फैला हुआ है। ऐसा लगता है जैसे भारतमाता का शरीर आज सुनहरा हो रहा हो। हे देश के सपूतो, तुम्हें अपनी मंगलमय वाणी से इस संसाररूपी उद्यान को गुंजित करना है। सरस्वती माँ का पावन मंदिर, यह संपत्ति तुम्हारी है। तुम में से हर बालक, इसका रक्षक और पुजारी है। शत-शत दीपक जला ज्ञान के, नवयुग का आह्वान करो। उठो धरा के अमर सपूतो, पुनः नया निर्माण करो। कवि देश के बालकों से कहते हैं कि हमारा देश सरस्वती का पवित्र मंदिर है। यहाँ की कल्याणकारी सारी विद्याएँ ही तुम्हारी संपत्ति हैं। तुममें से प्रत्येक बालक इस विद्या-मंदिर का रक्षक और पुजारी है। तुम्हें यहाँ ज्ञान के सैकड़ों दीपक जलाने हैं और नये युग का आह्वान करना है। (तुम्हें सभी प्रकार का ज्ञान पाकर देश का भविष्य उज्ज्वल बनाना है।) Utho Dhara Ke Amar Saputo उठो धरा के अमर सपूतो कविता का संपूर्ण व्याख्या हम इस कविता को प्रोत्साहित गीत भी कह सकते हैं क्योंकि कवि इस कविता में भारत के देशवासियों को प्रेरित भी कर रहा है। आप सभी लोग जानते है कि हमारा देश कई युगों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा है। अपने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए हमारे देश के कई वीर सपूतो ने और माताओ ने हर सभी ने अपना बलिदान देकर इस सोने की धरती को आजाद किया है। इस आजादी को पाने के लिए हमारे देश के वीर सपूतो ने हँसते-हँसते हुए फांसी की सुली पर अपना प्राण त्याग दिया है। हमारे देश की कितने माताओं विधवा हो चुकी थी। और बच्चे भी अनाथ हो गए हैं तब जाकर हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। कवि अपने कविता के माध्यम से देश के युवाओं को सम्बोधित कर रहा है। इस देश की आजादी को बनाए रखने के लिए हमें अपने देश के नव निर्माण के लिए अपने-अपने घरों से बाहर निकल कर अपने विश्वास, उमंग और कर्तव्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए। कवि ने अपने कविता में “उठो धरा के अमर सपूतों ” इसलिए कहा है कि भारत वह एक देश है जहां पर हजारों सालों से अत्याचार होता गया है। कवि देश के युवाओ को आह्वान करते हुए कहा है कि हे मातृभूमि के वीर सपूतो उठो और उठकर अपने देश के पुनः नव निर्माण के कार्यों में जुट जाओ। युगों-युगों से हमारा देश गुलामी की जंजीरो में जकड़ा हुआ है। हमारे देशवासियों के मन में निराशा की भावना भर गई है इसलिए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए देशवासियों में एक बार फिर से आशा की नई किरण भर दो, उनमें एक नयी ताजगी प्रदान कर दो। नया जीवन का तुम संचार करो। जिससे हर कोई अपने देश के निर्माण में जुट जाए। यह हमारे लिए नई बात है। सूर्य की किरणें भी हमारे लिए नई है, ज्योति भी हमारे लिए नई है और नयी आशाए भी है, अर्थात् हमारे लिए वह सभी शकि्तयाँ मौजुद है। जिसका सदुपयोग करके हम अपने देश को उन्नति और विकास के रूप में मुस्कान भर सकते हैं। कवि देश के युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए कह रहा है कि देखों डाल पर बैठी चिड़िया भी मधुर आवाज में गीत गा रही है और भौरे भी फूल पर गुन-गुन करते हुए मस्ती में मंडरा रही है और अपनी चारों तरफ देखों कलियाँ भी इधर उधर खिल रही है और आपस में खुशी से मुस्कुरा रहे हैं। आज धरती माँ सज-धज कर एक नए रूप में हमारे सामने खड़ी हुई लग रही है। हम नवीन एवं मंगलमय गीतों की स्वरों से समस्त प्रकृति एवं समस्त बाग बगीचों में गुंजायावान कर दें। हे भारत माता के वीर सपूतो उठो तुम अपने देश का नव निर्माण करो। हमारा देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के किसी भी देश से आगे रहा है । तुम्हारे लिए तुम्हारा देश ज्ञान प्राप्त करने का पवित्र मंदिर के सामान है। यहाँ के शिक्षा का मंदिर पर तुम्हारा अपना अधिकार है और तुम ही इसके पुजारी हो। अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए। तुम्हें ज्ञान के सैकड़ों दीपक प्रज्ज्वलित कर एक नए युग का निर्माण करना है अर्थात् ज्ञान के प्रकाश को तुम इतना फैलाओं कि कोई दूसरा अज्ञान बैठा न रहे। हमारे लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। ऐसा न हो कि ज्ञान के अभाव में एक बार फिर से किसी अन्य शक्तियाँ का गुलाम में बन पाए। इसलिए कवि बार-बार आप से आग्रह कर रहा है कि उठो मेरे देश के वीर सपूतो अपने देश का पुनः नव-निर्माण करो। FAQ For Utho Dhara Ke Amar Saputo उठो धरा के अमर सपूतो कविता का प्रश्न उत्तरQ1. उठो धरा के अमर सपूतों कविता के कवि कौन हैं? ANS. उठो धरा के अमर सपूतों कविता के कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी हैं। Q2. उठो धरा के अमर सपूतों शीर्षक कविता से हमें क्या संदेश मिलता है प्रस्तुत पाठ के रचनाकार कौन हैं? ANS. कवि देश के सपूतों से कहते हैं कि अब हमारा देश स्वतंत्र हो चुका है। अब तुम्हें देश का नव निर्माण करना है। हमें स्वतंत्रता का लाभ जन-जन लोगों तक पहुंचाना है । देशवासी तुमसे बड़ी-बड़ी आशाएं रखते हैं। तुम्हें उन्हें निराश नहीं करनी है। तुम्हें लोगों में नए प्राण फूंकने हैं। विकास के नए रास्ते खोजकर तुम्हें देश का पिछड़ापन दूर करना है। इस प्रकार कवि ने देश के सपूतो को संदेश दिया है कि वे देश को एक युग में ले जाएँ। प्रस्तुत पाठ के रचनाकार द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी हैं। Q3. उठो धरा के अमर सपूतों शीर्षक कविता से हमें क्या संदेश मिलता है? ANS. कविता के माध्यम से कवि द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी जी हमें यही संदेश देना चाहते है कि हमारा देश युवाओं का देश है। यहाँ पर रहने वाले सभी छोटे-छोटे बच्चे ही आगे चलकर देश का भविष्य का निर्मांण करते हैं और इस पावन रूपी धरती पर आओ हम सभी मिल-जुल कर अपने देश का निर्मांण करते हैं। कविता में कवि नवयुवकों को अपने भारत-माता देश के नव-निर्माण के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। कवि का मानना है कि बच्चे ही देश का भविष्य होते है। अपने देश के निर्माण के लिए आशा और विश्वास और नयी उमंग के साथ उन्हें आगे बढ़ना चाहिए। Q4. हमें रक्षक और पुजारी बनकर क्या करना है? ANS. हमें रक्षक और पुजारी बनकर अपने देश को बचाना है और साथ ही साथ कर्तव्यों का भी पालन करना है। तुम्हें ज्ञान के सैकड़ों दीपक प्रज्ज्वलित कर एक नए युग का निर्माण करना है अर्थात् ज्ञान के प्रकाश को तुम इतना फैलाओं कि कोई दूसरा अज्ञान बैठा न रहे। Q5. नवयुग का आह्वान कैसे करना है? ANS. ज्ञान के सैकड़ों दीपक जलाकर नवयुग का आह्वान किया जाएगा। Q6. कवि माहेश्वरी धरा के अमर सपूतों से क्या चाहते हैं? ANS. कवि माहेश्वरी जी धरा के अमर सपूतो से यही चाहते हैं कि सदियों की गुलामी के बाद आज हमारे भारत देश को स्वतंत्रता मिली है। कवि चाहते हैं कि देश के युवक स्वतंत्रता के बाद देश का पुनः नव निर्माण करें। वे लोगों के जीवन में नया उत्साह भरें, उनमें नए प्राणों का संचार करें। युग-युग के मुरझाए हुए फूलों को नयी मुस्कान दें। अपनी मंगलमय वाणी से संसाररूपी उद्यान को गुंजित करें। वे प्राप्त ज्ञान से देश का भविष्य उज्ज्वल बनाएँ। इस प्रकार, कवि माहेश्वरीजी धरा के सपूतों से अनेक अपेक्षाएं रखते हैं। Q7. गुन गुन करते हुए कौन मँडराते हैं? ANS. गुन गुन करते हुए भौरें मँडरा रहें हैं। Q8. “युग-युग के मुरझे सुमनों” से कवि का क्या आशय है? ANS. हे मातृभूमि के पुत्रो, तुमने इस देश को स्वतंत्र करने के लिए बड़ा संघर्ष किया है और अंत में तुम विजयी हुए हो। सचमुच, तुम भारतमाता के सपूत हो, लेकिन अभी तुम्हें बहुत कुछ करना है। युग-युग से पराधीनता में रहते-रहते यहाँ के देशवासियों के हृदयों में निराशा भर गई है। तुम्हें इस निराशा को दूर कर इन्हें आशा बंधानी है। पराधीनता के दरम्यान यहाँ जो बरबादी हुई है, उसे दूर कर हर क्षेत्र में नया निर्माण करना है। Q9. मुरझे सुमनों का वास्तविक अर्थ क्या है? ANS. उठो धरा के अमर सपूतो कविता में “मुरझे सुमनों” का वास्तविक अर्थ है कि मन में निराशा की भाव जगना। युग-युग से पराधीनता में रहते-रहते यहाँ के देशवासियों के मन और हृदय में निराशा की भावना भर गई है। तुम्हें इसे दूर करके आशा की भावना प्रकट करनी है। Q10. सरस्वती का पावन मंदिर किसे कहा गया है? ANS. भारत देश को Q11. कवि ने देश के सपूतों को क्या संदेश दिया है? ANS. कवि देश के सपूतों से कहते हैं कि अब हमारा देश स्वतंत्र हो चुका है। अब तुम्हें देश का नव निर्माण करना है। हमें स्वतंत्रता का लाभ जन-जन लोगों तक पहुंचाना है । देशवासी तुमसे बड़ी-बड़ी आशाएं रखते हैं। तुम्हें उन्हें निराश नहीं करनी है। तुम्हें लोगों में नए प्राण फूंकने हैं। विकास के नए रास्ते खोजकर तुम्हें देश का पिछड़ापन दूर करना है। इस प्रकार कवि ने देश के सपूतो को संदेश दिया है कि वे देश को एक युग में ले जाएँ। Q12. धरती माँ की काया सुनहरी क्यों हो गई है? ANS. डाल पर बैठी चिड़िया भी मधुर आवाज में गीत गा रही है और भौरे भी फूल पर गुन-गुन करते हुए मस्ती में मंडरा रही है और अपनी चारों तरफ देखों कलियाँ भी इधर उधर खिल रही है और आपस में खुशी से मुस्कुरा रहे हैं। आज धरती माँ सज-धज कर एक नए रूप में हमारे सामने खड़ी हुई लग रही है। हम नवीन एवं मंगलमय गीतों की स्वरों से समस्त प्रकृति एवं समस्त बाग बगीचों में गुंजायावान कर दें। सारे देश में स्वतंत्रतारूपी सूर्य का प्रकाश फैला हुआ है। सुनहरी धूप के कारण आज धरती माँ की काया सुनहरी हो रही है। Q13. उठो धरा के अमर सपूतों कविता में नवयुग का आह्वान कैसे बताया? ANS. उठो धरा के अमर सपूतों कविता में कवि ने देश का नवनिर्माण करने के लिए धरती के सपूतों का आह्वान किया है। Q14.कवि ने ‘अमर सपूतों’ किसे कहा है? ANS. कवि ने ‘अमर सपूतों’ भारत के युवाओं को कहा है। Q15. कविता में जग का उद्यान कैसे गुंजित होगा? ANS. कवि देश के युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए कह रहा है कि आज भारत रुपी उद्यान की हर एक कली खिल रही है, सारे फूल मुस्करा रहे है और डाल पर बैठी चिड़िया भी मधुर आवाज में गीत गा रही है। आजादी के सूर्य ने सारी धरती को प्रकाशित किया है। ऐसा लगता है कि धरती माता का शरीर सुनहरा हो गया हो। हे वीर सपूतों, तुम्हे अपनी मंगलमय गीतों की स्वरों से समस्त प्रकृति एवं समस्त संसाररूपी उद्यान को गुंजित करना है। Q16. सरस्वती के मंदिर का रक्षक कौन है? ANS. सरस्वती के मंदिर का रक्षक नए युग के बालक हैं। Q17. जन जन के जीवन में कवि ने क्या करने के लिए कहा है? ANS. हे भारतमाता के अमर सपूतो, गुलामी की रात बीत गई है और आजादी का सबेरा हुआ है। अब तुम अज्ञान-आलस्य की नींद से जागो और देश के नवनिर्माण में लग जाओ। तुम्हें देशवासियों के जीवन में फिर से नया उत्साह भरना हैं, उनमें नए प्राणों का संचार करना है। Q18. धरा के अमर सपूतो से कवि का क्या तात्पर्य है? ANS. धरा के अमर सपूतो से कवि अपने कविता के माध्यम से देश के युवाओं को सम्बोधित कर रहा है। इस देश की आजादी को बनाए रखने के लिए हमें अपने देश के नव निर्माण के लिए अपने-अपने घरों से बाहर निकल कर अपने विश्वास, उमंग और कर्तव्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए। Q19. सरस्वती मंदिर के रक्षक और पुजारी कौन हैं? ANS. सरस्वती मंदिर के रक्षक और पुजारी प्रत्येक बालक हैं। Q20. प्रस्तुत कविता में कवि किसका आह्वान करता है? ANS. देश के सपूतों का Q21. कविता में कवि ने किसकी प्रेरणा दी है? ANS. देश के नव निर्मांण की Q22. प्रस्तुत कविता में कवि किसका नव निर्माण करने के लिए कहता है? ANS. देश का |