धरती की सी रीत देह दोहे से हमें क्या सीख मिलती है? - dharatee kee see reet deh dohe se hamen kya seekh milatee hai?

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Short Note

रहीम मनुष्य को धरती से क्या सीख देना चाहता है?

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Solution

रहीम मनुष्य को धरती से सीख देना चाहता है कि जैसे धरती सरदी, गरमी व बरसात सभी ऋतुओं को समान रूप से सहती है, वैसे ही मनुष्य को भी अपने जीवन में सुख-दुख को सहने की क्षमता होनी चाहिए।

Concept: पद्य (Poetry) (Class 7)

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Chapter 11: रहीम के दोहे - अतिरिक्त प्रश्न

Q 13Q 12Q 14

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NCERT Class 7 Hindi - Vasant Part 2

Chapter 11 रहीम के दोहे
अतिरिक्त प्रश्न | Q 13

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कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत॥

अर्थ- रहीम दास जी ने इस दोहे में सच्चे मित्र के विषय में बताया है। वो कहते हैं कि सगे-संबंधी रूपी संपति कई प्रकार के रीति-रिवाजों से बनते हैं। पर जो व्यक्ति आपके मुश्किल के समय में आपकी मदद करता है या आपको मुसीबत से बचाता है वही आपका सच्चा मित्र होता है।

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
‘रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥

अर्थ- इस दोहे में रहीम दास जी ने मछली के जल के प्रति घनिष्ट प्रेम को बताया है। वो कहते हैं मछली पकड़ने के लिए जब जाल पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। परन्तु मछली जल को छोड़ नहीं सकती और वह पानी से अलग होते ही मर जाती है।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

अर्थ- रहीम दास जी इन पंक्तियों में कहते हैं जिस प्रकार पेड़ अपने ऊपर फले हुए फल को कभी नहीं खाते हैंए तालाब कभी अपने अन्दर जमा किये हुए पानी को कभी नहीं पीता है उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति/परोपकारी व्यक्ति भी अपना इक्कठा किये हुआ धन से दूसरों का भला करते हैं।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘हीम’ घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात॥

अर्थ- रहीम जी कहते हैं जिस प्रकार क्वार महीने में (बारिश और शीत ऋतु के बीच) आकाश में घने बादल दिखाई देते हैं, पर बिना बारिश बारिश किये वो बस खाली गडगडाहट की आवाज करते हैं, उस प्रकार जब कोई अमीर व्यक्ति कंगाल हो जाता है या गरीब हो जाता है तो उसके मुख से बस घमंडी बड़ी.बड़ी बातें ही सुनाई देती हैं जिनका कोई मूल्य नहीं होता।

धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह।
जैसी परे सो सहि रहै, त्‍यों रहीम यह देह॥

अर्थ- इस दोहे में रहीम दास जी ने धरती के साथ-साथ मनुष्य के शरीर की सहन शक्ति का वर्णन किया है। वह कहते हैं कि इस शरीर की सहने की शक्ति धरती समान है। जिस प्रकार धरती सर्दी-गर्मी वर्षा की विपरित परिस्थितियों को झेल लेती है। उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी जीवन में आने वाले सुख-दुःख को सहने की शक्ति रखता है।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।

अर्थ- रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का धागा अर्थात रिश्ता कभी तोड़ना नहीं चाहिए। अगर एक बार यह प्रेम का धागा टूटता है तो कभी नहीं जुड़ता और अगर जुड़ भी जाए तो उसमें गांठ पड़ जाती है। कहने का अर्थ यह है कि रिश्तों में दरार आ जाये तो खटास रह ही जाती है।

रूठे सुजन मनाइये, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिर फिर पोइये, टूटे मुक्ताहार।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि अगर आपका कोई खास सखा अथवा रिश्तेदार आपसे नाराज हो गया है तो उसे मनाना चाहिए। अगर वो सौ बार रूठे तो सौ बार मनाना चाहिए, क्योंकि अगर कोई मोती की माला टूट जाती है तो सभी मोतियों को एकत्र कर उसे वापस धागे में पिरोया जाता है।

रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई कहा करे तलवारि।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि अगर कोई बड़ी वस्तु मिल जाए तो छोटी वस्तु को नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि जो काम एक छोटी सुई कर सकती है, उसे बड़ी तलवार नहीं कर सकती। अर्थात जो आपके पास है उसकी कद्र करें, उससे अच्छा मिलने पर जो है उसे ना भूलें।

जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति योग्य और अच्छे चरित्र का होता है, उस पर कुसंगति भी प्रभाव नहीं डाल सकती। जैसे जहरीला नाग यदि चंदन के वृक्ष पर लिपट जाए तब भी उसे जहरीला नहीं बना सकता।

खीरा सिर से काटिये मलियत नमक बनाय।
रहिमन करूए मुखन को चहियत इहै सजाय।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि जिस तरह खीरे को काटकर उसमें नमक लगाकर उसके कड़वेपन को दूर किया जाता है, उसी प्रकार कड़वे वचन बोलने वाले व्यक्ति को भी यही सजा मिलनी चाहिए।

रहिमन थोरे दिनन को, कौर करे मुँह स्याह।
न्हीं छलन को परतिया, नहीं कारन को ब्याह।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि थोड़े दिन के लिए कौन अपना मुँह काला करता है, क्योंकि पर नारी को ना धोखा दिया जा सकता है और ना ही विवाह किया जा सकता है।

गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि।
कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि जिस तरह गहरे कुँए से भी बाल्टी डालकर पानी निकाला जा सकता है। उसी तरह अच्छे कर्मो द्वारा किसी भी व्यक्ति के दिल में अपने लिए प्यार भी उत्पन्न किया जा सकता है, क्योंकि मनुष्य का हृदय कुँए से गहरा नहीं होता।

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि जिस तरह धरती माँ ठण्ड, गर्मी और वर्षा को सहन करती हैं, उसी प्रकार मनुष्य शरीर को भी पड़ने वाली भिन्न-भिन्न परिस्थितियों को सहन सहन करना चाहिए।

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार मेंहदी लगाने वालों को भी उसका रंग लग जाता है, उसी प्रकार नर सेवा करने वाले भी धन्य हैं उन पर नर सेवा का रंग चढ़ जाता है।

रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि शत प्रतिशत मन लगाकर किये गए काम को देखें, उनमें कैसी सफलता मिलती है। अगर अच्छी नियत और मेहनत से कोई भी काम किया जाए तो सफलता मिलती ही है, क्योंकि सही और उचित परिश्रम से इंसान ही नहीं भगवान को भी जीता जा सकता है।

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।

अर्थ- इस दोहे में रहीम जी चित्रकूट को मनोरम और शांत स्थान बताते हुए सुन्दर रूप में वर्णन कर रहे हैं। वो कह रहे हैं कि चित्रकूट ऐसा भव्य स्थान है जहाँ अवध के राजा श्रीराम अपने वनवास के दौरान रहे थे। जिस किसी व्यक्ति पर संकट आता है वह इस जगह शांति पाने के लिए इस स्थान पर चला आता है।

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थ- रहीम जी ने इस दोहे में कहा है कि जिस प्रकार फटे हुए दूध को मथने से मक्खन नहीं निकलता है, उसी प्रकार अगर कोई बात बिगड़ जाती है तो वह दोबारा नहीं बनती। इसलिए बात को संभालें ना कि बिगड़ने दें।

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष चून।।

अर्थ- रहीम जी कहते हैं कि इस संसार में पानी के बिना सब कुछ बेकार है, इसलिए पानी को हमें बचाए रखना चाहिए। पानी के बिना सब कुछ व्यर्थ है चाहे वह मनुष्य, जीव-जन्तु या अन्य वस्तु हो। ‘मोती’ के विषय में बताते हुए रहीम जी कहते हैं कि पानी के बिना मोती की चमक का कोई मूल्य नहीं है। ‘मानुष’ के सन्दर्भ में पानी का अर्थ मान-सम्मान या प्रतिष्ठा को बताते हुए उन्होंने कहा है जिस मनुष्य का सम्मान समाप्त हो जाये उसका जीवन व्यर्थ है।

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय।।

अर्थ- रहीम जी इस दोहे में कहते हैं कि हमें अपने मन के दुःख को अपने मन में ही रखना चाहिए क्योंकि किस दुनिया में कोई भी आपके दुःख को बांटने वाला नहीं है। इस संसार में बस लोग दूसरों के दुःख को जानकर उसका मजाक उडाना ही जानते हैं।

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत।।

अर्थ- रहीम दास जी कहते हैं कि मृग मधुर तान पर मोहित होकर स्वयं को शिकारी को सौंप देता है और मनुष्य किसी भी कला से मोहित होकर उसे धन देते हैं। जो मनुष्य कला पर मुग्ध होने के बाद भी उसे कुछ नहीं देता है वह पशु से भी हीन है। हमेशा कला का सम्मान करो और उससे प्रभावित होने पर दान जरूर करें।

धरती की सी देह से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर- रहीम मनुष्य को धरती से सीख देना चाहता है कि जैसे धरती सरदी, गरमी व बरसात सभी ऋतुओं को समान रूप से सहती है, वैसे ही मनुष्य को भी अपने जीवन में सुख-दुख को सहने की क्षमता होनी चाहिए।

रहीम दास जी के अनुसार धरती क्या सहती है सीत घाम मेह उपर्युक्त तीनों सहती है?

Expert-Verified Answer अर्थात रहीम दास जी ने इस धरती की सहनशक्ति और मनुष्य की सहनशक्ति की तुलना वर्णन किया है। वह कहते हैं मनुष्य का जो सहन शक्ति है, उसके सहन करने की शक्ति धरती के समान ही है। जिस प्रकार सदैव धरती सदैव सर्दी, गर्मी, बारिश इन सब अलग-अलग विपरीत परिस्थितियों को झेलती रहती है।

सीत घाम का क्या अर्थ है *?

धरती ही पर परग है , सीत, घाम औ' मेह ॥ जो कुछ भी इस देह पर आ बीते, वह सब सहन कर लेना चाहिए। जैसे, जाड़ा, धूप और वर्षा पड़ने पर धरती सहज ही सब सह लेती है। सहिष्णुता धरती का स्वाभाविक गुण है।