[तृप्ति = सन्तुष्टि। आत्म-बलि = अपने प्राण न्योछावर कर देना। निष्प्राण = प्राणरहित, मृत। पुण्य-क्षेत्र = पवित्र स्थान। अमल = स्वच्छ। विलसित = सुशोभित। ] प्रसंग–कवि ने त्याग और बलिदान को ही सच्चे देश-प्रेम के लिए आवश्यक माना है। व्याख्या-कवि कहता है कि सच्चा प्रेम वही है, जिसमें आत्म-त्याग की भावना होती है; अर्थात् आत्म-त्याग पर ही सच्चा प्रेम निर्भर होता है। सच्चे प्रेम के लिए यदि हमें अपने प्राणों को भी न्योछावर करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। बिना त्याग के प्रेम प्राणहीन या मृत है। त्याग से ही प्रेम में प्राणों का संचार होता है; अत: सच्चे प्रेम के लिए प्राणों का बलिदान करने को भी सदैव प्रस्तुत रहना चाहिए। देशप्रेम वह पवित्र भावना है, जो निर्मल और सीमारहित त्याग से सुशोभित होती है। देशप्रेम की भावना से ही मनुष्य की आत्मा विकसित होती है। आत्मा के विकास से मनुष्य का विकास होता है; अत: देशप्रेम से आत्मा का विकास और आत्मा के विकास से मनुष्यता का विकास करना चाहिए। काव्यगत सौन्दर्य- |