वह तोड़ती पत्थर’ कविता सुप्रसिद्ध कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित। मजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है। Show
तोड़ती पत्थर : कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का इतिहासकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजन्म21 फरवरी 1896जन्म स्थानमेदिनीपुर जिला, बंगाल, पश्चिम बंगालमृत्यु15 अक्टूबर 1961मृत्यु स्थानप्रयाग, भारत‘ वह तोड़ती पत्थर’ कविता की व्याख्या’वह तोड़ती पत्थर वह तोड़ती पत्थर, नहीं छायादारपेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
प्रसंग :- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता “वह तोड़ती पत्थर” से लिया गया है | इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ जी हैं | इस कविता में कवि ने इलाहाबाद की सड़क के किनारे तपती धूप में पत्थर तोड़ती हुई एक श्रमिक महिला का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है | तोड़ती पत्थर’ कविता का सारांश‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता सुप्रसिद्ध कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित। मजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है। कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के मार्ग पर एक मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा। वह जिस पेड़ के नीचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नहीं था, फिर भी विवशतावश वह वहीं बैठे पत्थर तोड़ रही थी। उसका शरीर श्यामवर्ण का था, तथा वह पूर्णत: युवा थी। उसके हाथ में एक भारी हथौड़ा था, जिससे वह बार-बार पत्थर पर प्रहार कर रही थी। उसके सामने ही सघन वृक्षों की पंक्ति, अट्टालिकाएं, भवन तथा परकोटे वाली कोठियाँ विद्यमान थीं। तोड़ती पत्थर कविता का भाव पक्ष क्या हैनिराला का जीवन अत्यंत संघर्ष में था इसका प्रभाव उनकी काव्य यात्रा पर भी पड़ा निराला का काव्य उनके संघर्ष में जीवन का प्रतिबिंब कहा जा सकता है। उनकी जीवन दृष्टि और काव्य दृष्टि का निर्माण इसी संघर्ष के दौरान हुआ उन्होंने जीवन और काव्य दोनों में सामाजिक आर्थिक शोषण और रूढीगत मान्यताओं का दृढ़ता पूर्वक विरोध किया | इसी कारण छायावादी कवियों में सबसे मुखर विद्रोही स्वर निराला के काव्य में व्यक्त हुआ है निराला के काव्य में भाव बोध की विविधता नजर आती है। जिसमें जीवन का हर रंग मिलता है उसमें उल्लास और अवसाद शांति और क्रांति दोनों हैं ।
तोड़ती पत्थर सामाजिक क्रांति का प्रतिनिधित्व करने वाली कविता है। यह निराला की अत्यंत प्रसिद्ध रचना है इस कविता में जीवन यथार्थ के दो विरोधी चित्र एक साथ दिए गए हैं एक और कड़कड़ाती धूप में पत्थर तोड़ती मजदूरिन है तो दूसरी और छायादार पेड़ों से घिरी विशाल अट्टालिकाए हैं। लेकिन कवि को महसूस होता है कि पत्थर नहीं तोड़ रही है वरन आर्थिक और सामाजिक विषमता के चट्टान को तोड़ रही है । वह तोड़ती पत्थर सरचना शिल्पनिराला का कला बोध भी विविधता लिए हुए हैं भाषा के कितने रूप उनके यहां मिलते हैं उतने किसी अन्य कवि के यहां नहीं। उनकी आरंभिक कविताओं में संस्कृतनिष्ठ और समास – प्रधान भाषा दिखाई देती है जिसका सर्वोत्तम उदाहरण उनकी पहली कविता ‘जूही की कली’ के साथ ही ‘राम की शक्ति पूजा’,। लेकिन बाद में उन्हें बोलचाल की भाषा का रंग नजर आने लगता है| ‘श्याम तन, भर बधा योवन’, मैं पत्थर तोड़ती’ मजदूरिन का अत्यंत कर्मरत और जीवन व्यक्तित्व साकार हुआ है। निराला’ हिंदी के पहले कवि हैं जिन्होंने काव्य शिल्प की चली आती रुढियों में पूरी तरह मुक्त होने का प्रयास किया उन्होंने हिंदी कविता को छंद के बंधन से मुक्त किया। इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्होंने छंद बंद कविता नहीं लिखी वरन सच्चाई यह है कि परंपरागत शब्दों में नए प्रयोग करके उन्हें नया निखार दिया और कई नए छंदों का निर्माण भी किया अपनी मुक्त संघ की कविता में भी उन्होंने ले और संगीत का समुचित समावेश किया है। वह तोड़ती पत्थर कविता का प्रतिपाद्य क्या हैनिराला की कविताओं में जो सामाजिक और यथार्थ दृष्टि दिखाई देती है वह उनके जीवन संघर्षों की ही देन है। निराला को जीवन भर जो दुख और अपमान झेलने पड़े। उनके कारण उनका स्वर सामाजिक अन्याय और आर्थिक शोषण के विरुद्ध प्रबल वेग में उमड़ पड़ा।
वह तोड़ती पत्थर: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला व्याख्या,सारांश – अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। और सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे धन्यवाद ! पत्थर तोड़ने वाली महिला को कवि ने कहाँ पर देखा?Solution : वह तोड़ती पत्थर' कविता में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी जी ने इलाहाबाद में भयानक गर्मी में रास्ते पर पत्थर तोड़ने का काम करने वाली एक मजदूर स्त्री को देखा।
तोड़ती पत्थर कविता में स्त्री पत्थर कैसे तोड़ रही है?वह जिस पेड़ के नीचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नहीं था, फिर भी विवशतावश वह वहीं बैठे पत्थर तोड़ रही थी। उसका शरीर श्यामवर्ण का था, तथा वह पूर्णत: युवा थी। उसके हाथ में एक भारी हथौड़ा था, जिससे वह बार-बार पत्थर पर प्रहार कर रही थी।
तोड़ती पत्थर कविता में किसकी चित्रण हुआ है?Explanation: तोड़ती पत्थर कविता भी इसी तरह की कविता है। इसमेें निराला जी ने इलाहाबाद के पथ पर भरी दोपहरी में पत्थर तोड़ने वाली मजदूरनी का यथार्थ चित्रण किया है। यह चित्रण अत्यंत मर्मस्पर्शी है।
वह तोड़ती पत्थर कविता का क्या अर्थ है?कवि इलाहाबाद के किसी रास्ते पर उस महिला को पत्थर तोड़ते हुए देखते है। वह एक ऐसे पेड़ के नीचे बैठी है, जहा छाया नहीं मिल रही आस पास भी कोई छायादार जगह नहीं हैं। इस प्रकार कवि शोषित समाज की विषमता का वर्णन करते है। ओर बताते है की मजदूर वर्ग अपना काम पूरी लग्न के साथ करते है।
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