तातुश लेखिका के आने पर खुश क्यों हो जाते थे - taatush lekhika ke aane par khush kyon ho jaate the

लेखिका परिचय
बेबी हालदार

लेखिका बेबी हालदार का जन्म जम्मू कश्मीर के किसी स्थान पर हुआ, जहाँ सेना की नौकरी में उनके पिता तैनात थे। इनका जन्म संभवतया 1974 ई. में हुआ। परिवार की आर्थिक दशा कमजोर होने के कारण तेरह वर्ष की आयु में इनका विवाह दुगुनी उम्र के व्यक्ति से कर दिया गया। इस कारण उन्हें सातवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 12-13 वर्षों के बाद पति की ज्यादतियों से परेशान होकर वे तीन बच्चों सहित पति का घर छोड़कर दुर्गापुर से फरीदाबाद आ गई। कुछ समय बाद वे गुड़गाँव चली आई और घरेलू नौकरानी के रूप में काम कर रही हैं। इनकी एकमात्र रचना है-आलो-आँधारि। यह मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखी गई तथा बाद में इसका हिंदी अनुवाद किया गया।

पाठ का साराशी

आलो-आँधारि-लेखिका की आत्मकथा है-यह उन करोड़ों झुग्गियों की कहानी है जिसमें झाँकना भी भद्रता के तकाजे से बाहर है। यह साहित्य के उन पहरुओं के लिए चुनौती है जो साहित्य को साँचे में देखने के आदी हैं, जो समाज के कोने-अँतरे में पनपते साहित्य को हाशिए पर रखते हैं और भाषा एवं साहित्य को भी एक खास वर्ग की जागीर मानते हैं। यह एक ऐसी आपबीती है जो मूलत: बांग्ला में लिखी गई, लेकिन पहली ऐसी रचना जो छपकर बाज़ार में आने से पहले ही अनूदित रूप में हिंदी में आई। अनुवादक प्रबोध कुमार ने एक जबान को दूसरी जबान दी. पर रूह को छुआ नहीं। एक बोली की भावना दूसरी बोली में बोली, रोई, मुसकराई।

लेखिका अपने पति से अलग किराए के मकान में अपने तीन छोटे बच्चों के साथ रहती थी। उसे हर समय काम की तलाश रहती थी। वह सभी को अपने (लेखिका) लिए काम ढूँढ़ने के लिए कहती थी। शाम को जब वह घर वापिस आती तो पड़ोस की औरतें काम के बारे में पूछतीं। काम न मिलने पर वे उसे सांत्वना देती थीं। लेखिका की पहचान सुनील नामक युवक से थी। एक दिन उसने किसी मकान मालिक से लेखिका को मिलवाया। मकान मालिक ने आठ सौ रुपये महीने पर उसे रख लिया और घर की सफाई व खाना बनाने का काम दिया। उसने पहले काम कर रही महिला को हटा दिया। उस महिला ने लेखिका से भला-बुरा कहा। लेखिका उस घर में रोज सवेरे आती तथा दोपहर तक सारा काम खत्म करके चली जाती। घर जाकर बच्चों को नहलाती व खिलाती। उसे बच्चों के भविष्य की चिंता थी।

जिस मकान में वह रहती थी, उसका किराया अधिक था। उसने कम सुविधाओं वाला नया मकान ले लिया। यहाँ के लोग उसके अकेले रहने पर तरह-तरह की बातें बनाते थे। घर का खर्च चलाने के लिए वह और काम चाहती थी। वह मकान मालिक से काम की नयी जगह ढूँढ़ने को कहती है। उसे बच्चों की पढ़ाई, घर के किराए व लोगों की बातों की भी चिंता थी। मालिक सज्जन थे। एक दिन उन्होंने लेखिका से पूछा कि वह घर जाकर क्या-क्या करती है। लेखिका की बात सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने स्वयं को ‘तातुश’ कहकर पुकारने को कहा। वे उसे बेबी कहते थे तथा अपनी बेटी की तरहमानते थे। उनका सारा परिवार लेखिका का ख्याल रखता था। वह पुस्तकों की अलमारियों की सफाई करते समय पुस्तकों को उत्सुकता से देखने लगती। यह देखकर तातुश ने उसे एक किताब पढ़ने के लिए दी।

तातुश ने उससे लेखकों के बारे में पूछा तो उसने कई बांग्ला लेखकों के नाम बता दिए। एक दिन तातुश ने उसे कॉपी व पेन दिया और कहा कि समय निकालकर वह कुछ जरूर लिखे। काम की अधिकता के कारण लिखना बहुत मुश्किल था, परंतु तातुश के प्रोत्साहन से वह रोज कुछ पृष्ठ लिखने लगी। यह शौक आदत में बदल गया। उसका अकेले रहना समाज में कुछ लोगों को सहन नहीं हो रहा था। वे उसके साथ छेड़खानी करते थे और बेमतलब परेशान करते थे। बाथरूम न होने से भी विशेष दिक्कत थी। मकान मालिक के लड़के के दुव्र्यवहार की वजह से वह नया घर तलाशने की सोचने लगी।

एक दिन लेखिका काम से घर लौटी तो देखा कि मकान टूटा हुआ है तथा उसका सारा सामान खुले में बाहर पड़ा हुआ है। वह रोने लगी। इतनी जल्दी मकान ढूँढ़ने की भी दिक्कत थी। दूसरे घरों के लोग अपना सामान इकट्ठा करके नए घर की तलाश में चले गए। वह सारी रात बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे बैठी रही। उसे दुख था कि दो भाई नजदीक रहने के बावजूद उसकी सहायता नहीं करते। तातुश को बेबी का घर टूटने का पता चला तो उन्होंने अपने घर में कमरा दे दिया। इस प्रकार वह तातुश के घर में रहने लगी। उसके बच्चों को ठीक खाना मिलने लगा। तातुश उसका बहुत ख्याल रखते।

बच्चों के बीमार होने पर वे उनकी दवा का प्रबंध करते। उनके सद्व्यवहार को देखकर बेबी हैरान थी। उसका बड़ा लड़का किसी के घर में काम करता था। वह उदास रहती थी। तातुश ने उसके लड़के को खोजा तथा उसे बेबी से मिलवाया। उस लड़के को दूसरी जगह काम दिलवाया। लेखिका सोचती कि तातुश पिछले जन्म में उसके बाबा रहे होंगे। तातुश उसे लिखने के लिए निरंतर प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने अपने कई मित्रों के पास बेबी के लेखन के कुछ अंश भेज दिए थे। उन्हें यह लेखन पसंद आया और वे भी लेखिका का उत्साह बढ़ाते रहे। तातुश के छोटे लड़के अर्जुन के दो मित्र वहाँ आकर रहने लगे, परंतु उनके अच्छे व्यवहार से लेखिका बढ़े काम को खुशी-खुशी करने लगी। तातुश ने सोचा कि सारा दिन काम करने के बाद बेबी थक जाती होगी। उसने उसे रोजाना शाम के समय पार्क में बच्चों को घुमा लाने के लिए कहा। इससे बच्चों का दिल बहल जाएगा। अब वह पार्क में जाने लगी।

पार्क में नए-नए लोगों से मुलाकात होती। उसकी पहचान बंगाली लड़की से हुई जो जल्दी ही वापिस चली गई। लोगों के दुव्र्यवहार के कारण उसने पार्क में जाना छोड़ दिया। लेखिका को किताब, अखबार पढ़ने व लेखन-कार्य में आनंद आने लगा। तातुश के जोर देने पर वह अपने जीवन की घटनाएँ लिखने लगी। तातुश के दोस्त उसका उत्साह बढ़ाते रहे। एक मित्र ने उसे आशापूर्णा देवी का उदाहरण दिया। इससे लेखिका का हौसला बढ़ा और उसने उन्हें जेलू कहकर संबोधित किया। एक दिन लेखिका के पिता उससे मिलने पहुँचे। उसने उसकी माँ के निधन के बारे में बताया। लेखिका के भाइयों को पता था, परंतु उन्होंने उसे बताया नहीं। लेखिका काफी देर तक माँ की याद करके रोती रही। बाबा ने बच्चों से माँ का ख्याल रखने के लिए समझाया। लेखिका पत्रों के माध्यम से कोलकाता और दिल्ली के मित्रों से संपर्क रखने लगी। उसे हैरानी थी कि लोग उसके लेखन को पसंद करते हैं।

शर्मिला उससे तरह-तरह की बातें करती थी। लेखिका सोचती कि अगर तातुश उससे न मिलते तो यह जीवन कहाँ मिलता। लेखिका का जीवन तातुश के घर में आकर बदल गया। उसका बड़ा लड़का काम पर लगा था। दोनों छोटे बच्चे स्कूल में पढ़ रहे थे। वह स्वयं लेखिका बन गई थी। पहले वह सोचती थी कि अपनों से बिछुड़कर कैसे जी पाएगी, परंतु अब उसने जीना सीख लिया था। वह तातुश से शब्दों के अर्थ पूछने लगी थी। तातुश के जीवन में भी खुशी आ गई थी। अंत में वह दिन भी आ गया जब लेखिका की लेखन-कला को पत्रिका में जगह मिली। पत्रिका में उसकी रचना का शीर्षक था- ‘आलो-आँधारि” बेबी हालदार। लेखिका अत्यंत प्रसन्न थी। तातुश के प्रति उसका मन कृतज्ञता से भर आया। उसने तातुश के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया।

शब्दार्थ

पृष्ठ संख्या 21
स्वामी-पति’ चुक-चुक-अफसोस जताने का भाव। अनसुनी-बिना सुने हुए।

पृष्ठ संख्या 22
फौरन-तुरंत। गेट-दरवाजा। विधवा-वह महिला जिसका पति मर गया हो।

पृष्ठ संख्या 23
राजी-सहमत। बकते-बकते-गालियाँ देते हुए। आश्चर्य-हैरान। ढेर-काफी। बाबा-पिता। सुयोग-अच्छा अवसर। चेष्टा-प्रयास। रोज-प्रतिदिन।

पृष्ठ संख्या 24
दादा-बड़ा भाई। भाड़ा-किराया। रेडी-तैयार। गुजारा-निर्वाह। हठात्-हठपूर्वक अचानक। माया-दया।

पृष्ठ संख्या 25
दरकार-जरूरत। चेहरा खिल उठना-प्रसन्न होना। बाध्य-मजबूर। तीसरे पहर-दोपहर और शाम के बीच का समय। चारा-रास्ता। रव्याल-ध्यान।

पृष्ठ संख्या 26
बंधु-मित्र। तातुश-पिता के समान। जबान-आवाज।

पृष्ठ संख्या 27
डस्टिग-झाड़-पोंछ करना। मन मसोसना-मन की बात मन में रखना।

पृष्ठ संख्या 28
आहिस्ता-धीमे से। विश्वास-यकीन। आमार मेये बेला-पुस्तक का नाम। तसलीमा नसरिन-बांग्लादेश की प्रसिद्ध लेखिका।

पृष्ठ संख्या 29
पेज-पृष्ठ। दिक्कत-कठिनाई। टेबिल-मेज। ड्रार-मेज के अंदर वस्तु रखने की बनी जगह। ऊँह-टालने का भाव।

पृष्ठ संख्या 30
चैन-आराम। बेमतलब-बिना अर्थ की। बाँदी-दासी। नागा करना-अंतराल या छुट्टी करना। हाट-स्थानीय बाजार। पाड़ा-मोहल्ला।

पृष्ठ संख्या 31
चेष्टा-प्रयास। ताने मारना-व्यंग्यात्मक बातें। फर्क-अंतर। शरम-लज्जा।

पृष्ठ संख्या 32
सिर पकड़कर बैठना-अत्यधिक परेशान होना। सहेजकर-सँभालकर। मोह-प्रेम।

पृष्ठ संख्या 33
लगाव-प्यार। बुलडोजर-तोड़-फोड़ करने वाली मशीन। राजी-सहमत।

पृष्ठ संख्या 34
नाश्ता-सुबह का हल्का भोजन। तबीयत-सेहत।

पृष्ठ संख्या 36
मास-महीना। वयस-उम्र। सिर्फ-केवल।

पृष्ठ संख्या 37
गैरकानूनी-कानून के विरुद्ध। खटना-काम में लगातार लगे रहना। भाग-दौड़-ज्यादा काम करना।

पृष्ठ संख्या 38
उत्साह-जोश। दोष-भूल। हुनर-कला। स्नेह-प्रेम। महीना-मासिक वेतन।

पृष्ठ संख्या 39
फट-से-तत्काल। चौपट-बेकार।

पृष्ठ संख्या 40
पार्क-बगीचा। आशय-मतलब। खातिर-के लिए।

पृष्ठ संख्या 41
दीदीमा-नानी।

पृष्ठ संख्या 42
फोटो कॉपी-नकल। आवाक्-हैरानी से चुप रह जाना। उत्कृष्ट-बहुत अच्छा। अभिधान-उपाधि, शब्दकोश।

पृष्ठ संख्या 43
क्षमता-योग्यता। माथा-पच्ची-दिमाग पर जोर देना। व्यवस्था-प्रबंध। कांड-घटना। 蛾…

पृष्ठ संख्या 44
जेदू-पिता के बड़े भाई। मरजी-इच्छा।

पृष्ठ संख्या 45
खड-भाग। खबर-समाचार।

पृष्ठ संख्या 47
स्मरणीय-याद आने योग्य। असाधारण-जो सामान्य न हो। दुर्दशा-बुरी हालत। आर्थिक-धन संबंधी।

पृष्ठ संख्या 48
खाते-कमाते-मेहनत के साथ निर्वाह करना। रुद्ध-रुका हुआ। दादा-बड़ा भाई। भर्ती-दाखिल। बऊदी-भाभी। भाड़ा-किराया।

पृष्ठ संख्या 49
ख्याल-ध्यान। अंतिम-आखिरी। भेंट-मुलाकात। क्रिया-कर्म-मृत्यु के बाद तौर-तरीके।

पृष्ठ संख्या 50
दी-दीदी। बहलना-बदलना। राय-विचार, मत। मल्लेश्वरी-भारोत्तोलना की प्रसिद्ध महिला खिलाड़ी। अंत-समाप्त। अभिज्ञता-ज्ञान।

पृष्ठ संख्या 51
बांधवी-सहेली। आहलादित-आनंदित। आयना-दर्पण।

पृष्ठ संख्या 52
खुसर-फुसर-कानाफूसी करना। तुच्छ-छोटी।

पृष्ठ संख्या 53
मगन-मस्त। भटकना-बेकार में इधर-उधर घूमना। उकताना-परेशान होना।

पृष्ठ संख्या 54
हिलोरें मारना-अत्यधिक प्रसन्न होना।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

प्रश्न 1:
पाठ के किन अंशों से समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है। क्या वर्तमान समय में स्त्रियों की इस सामाजिक स्थिति में कोई परिवर्तन आया है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर –
पाठ के निम्नलिखित अंशों से समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है-

  1. घर में अकेले रहते देख आस-पास के सभी लोग पूछते, तुम यहाँ अकेली रहती हो? तुम्हारा स्वामी कहाँ रहता है? तुम कितने दिनों से यहाँ हो? तुम्हारा स्वामी वहाँ क्या करता है? तुम क्या यहाँ अकेली रह सकोगी। तुम्हारा स्वामी क्यों नहीं आता? ऐसी बातें सुन मेरी किसी के पास खड़े होने की इच्छा नहीं होती, किसी से बात करने की इच्छा नहीं होती।
  2. उसके यहाँ से लौटने में कभी देर हो जाती तो सभी मुझे ऐसे देखते जैसे में कोई अपराध कर आ रही हूँ। बाजार-हाट करने भी जाना होता तो वह बूढ़े मकान मालिक की स्त्री, कहती, “कहाँ जाती है रोज-रोज? तेरा स्वामी है नहीं, तू तो अकेली ही है। तुझे इतना घूमने-घामने की क्या दरकार?” मैं सोचती, मेरा स्वामी मेरे साथ नहीं है तो क्या मैं कहीं घूम-फिर भी नहीं सकती और फिर उसका साथ में रहना भी तो न रहने जैसा है। उसके साथ रहकर भी क्या मुझे शांति मिली। उसके होते हुए भी पाड़े के लोगों की क्या-क्या बातें मैंने नहीं सुनीं।
  3. जब मैं बच्चों के साथ कहीं जा रही होती तो लोग तरह-तरह की बातें करते, कितनी सीटियाँ मारते, कितने ताने मारते।
  4. आसपास के लोग एक-दूसरे को बताते कि इस लड़की का स्वामी यहाँ नहीं रहता है, वह अकेली ही भाड़े के घर में बच्चों के साथ रहती है। दूसरे लोग यह सुनकर मुझसे छेड़खानी करना चाहते। वे मुझसे बातें करने की चेष्टा करते और पानी पीने के बहाने मेरे घर आ जाते। मैं अपने लड़के से उन्हें पानी पिलाने को कह कोई बहाना बना बाहर निकल आती।
  5. मैंने सोचा यह क्या इतना सहज है। घर में कोई मर्द नहीं है तो क्या इसी से मुझे हर किसी की कोई भी बात माननी होगी। वर्तमान समय में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में काफी बदलाव आया है। वे अपने पैरों पर खड़ी हैं तथा अनेक तरह के कार्य कर रही हैं। महानगरों में तो अविवाहित युवतियाँ भी अकेली रहकर अपना जीवन-यापन करती हैं। कुछ मनचले अवश्य उन्हें तंग करने की कोशिश करते हैं, परंतु आम व्यक्ति का व्यवहार अपमानजनक नहीं होता।

प्रश्न 2:
अपने परिवार से लेकर तातुश के घर तक के सफ़र में बेबी के सामने रिश्तों की कौन-सी सच्चाई उजागर होती है?
उत्तर –
अपने परिवार से लेकर तातुश के घर तक के सफर में बेबी ने रिश्तों की सच्चाई जानी। उसने जाना कि रिश्तों का संबंध दिल से होता है, अन्यथा रिश्ते बेगाने होते हैं। पति का घर छोड़कर आने के बाद वह अकेली व असहाय थी। वह अकेले ही बच्चों के साथ किराये के मकान में रहने लगी। वह खुद ही काम ढूँढ़ने जाती। हालाँकि उसके समीप ही भाई व रिश्तेदार रहते थे, परंतु किसी ने उसकी सहायता नहीं की। वे उससे मिलने तक नहीं आए। उसे अपनी माँ की मृत्यु का समाचार तक छह महीन बाद अपने पिता से मिला। दूसरी तरफ, बाहरी व्यक्तियों ने उसकी सहायता की। सुनील नामक युवक ने उसे काम दिलवाया, तातुश ने उसे बेटी के समान माना तथा उसकी हर तरीके से मदद की। उनके प्रोत्साहन से वह लेखिका बन पाई। मकान टूटने के बाद भोला दा उसके साथ रात भर खुले आसमान में बैठा रहा। इस प्रकार दिल में स्नेह हो तो रिश्ते बन जाते हैं।

प्रश्न 3:
इस पाठ से घरों में काम करने वालों के जीवन की जटिलताओं का पता चलता है। घरेलू नौकरों को और । किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? इस पर विचार करिए।
उत्तर –
इस पाठ से घरों में काम करने वालों के जीवन की निम्नलिखित जटिलताओं का पता चलता है-

  1. घरेलू नौकरों को आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलती। उनकी नौकरी कभी भी खत्म हो सकती है।
  2. उन्हें गदे व सस्ते मकानों में रहना पड़ता है, क्योंकि ये अधिक किराया नहीं दे पाते।
  3. इन लोगों का शारीरिक शोषण भी किया जाता है। नौकरानियों को अकसर शोषण का शिकार होना पड़ता है।
  4. इन लोगों के साथ मकान मालिक अशिष्ट व्यवहार करते हैं।
  5. बेबी की तरह इन्हें सुबह से देर रात तक काम करना पड़ता है।

अन्य समस्याएँ

  1. अपूर्ण भोजन व दवाइयों के अभाव में ये अकसर बीमार रहते हैं।
  2. धन के अभाव में इनके बच्चे अशिक्षित रह जाते हैं। उन्हें कम उम्र में ही दूसरों के यहाँ काम करना पड़ता है।
  3. ये अकसर आर्थिक संकट में फँसे रहते हैं।

प्रश्न 4:
‘आलो-आँधारि’ रचना बेबी की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ कई सामाजिक मददों को समेटे है। किन्हीं दो मुख्य समस्याओं पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर –
‘आलो-आँधारि’ एक ऐसी रचना है जो बेबी हालदार की आत्मकथा होने के साथ-साथ एक अनदेखी दुनिया के दर्शन करवाती है। यह ऐसी दुनिया है जो हमारे पड़ोस में है, फिर भी हम इसमें झाँकना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। दो प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(क) परित्यक्ता स्त्री की स्थिति-इस रचना में बेबी एक परित्यक्ता स्त्री है। वह किराए के मकान में रहकर घरों में नौकरानी का काम करके गुजारा कर रही है। समाज का व्यवहार उसके प्रति कटु है। स्वयं औरतें ही उस पर ताना मारती हैं। हर व्यक्ति उस पर अपना अधिकार समझता है तथा उसका शोषण करना चाहता है। उसका मानसिक, शारीरिक व आर्थिक शोषण किया जाता है। उस पर तरह-तरह की वर्जनाएँ थोपी जाती हैं तथा सहायता के नाम पर उसका मजाक उड़ाया जाता है।
(ख) गंदी बस्तियाँ-इस रचना में गंदी बस्तियों के बारे में बताया गया है। घरेलू नौकर तंग बस्तियों में रहते हैं। वहाँ शोचालय की सुविधा भी नहीं होती। महिलाओं को इस मामले में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। नालियों. कूड़ेदानों आदि के निकट बसी इन बस्तियों में अनेक बीमारियाँ फैलने का भय रहता है। सरकार भी अपनी आँखें मूंदे रहती है।

प्रश्न 5:
तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती हो-जेदू का यह कथन रचना संसार के किस सत्य को उद्घाटित करता है?
उत्तर –
जेलू का यह कथन यह बताता है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही विकट क्यों न हों, मनुष्य इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। आशापूर्णा देवी भी आम गृहणी थीं। वे सारा दिन घर के काम-काज में व्यस्त रहती थीं, परंतु वे लेखन में रुचि रखती थीं। परिवार के सो जाने के बाद वे लिखती थीं और लिखते-लिखते विश्व प्रसिद्ध कथाकार बन गई। बेबी की स्थिति उनसे भी खराब है। वह आर्थिक संकट से ग्रस्त है, फिर भी वह निरंतर लिखकर अपनी शैली को सुधार सकती है। वह थोड़ा समय निकालकर लिख सकती है। इस तरह वह भी प्रसिद्ध लेखिका बन सकती है।

प्रश्न 6:
बेबी की जिंदगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन कैसा होता? कल्पना करें और लिखें।
उत्तर –
तातुश के संपर्क में आने से पहले बेबी कई घरों में काम कर चुकी थी। उसका जीवन कष्टों से भरा था। तातुश के परिवार में आने के बाद उसे आवास, वित्त, भोजन आदि समस्याओं से राहत मिली। यहाँ उसके बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से होने लगा। यदि उसकी जिंदगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन अंधकारमय होता। उसे गंदी बस्ती में रहने के लिए विवश होना पड़ता। उसके बच्चों को शिक्षा शायद नसीब ही नहीं होती, क्योंकि उसके पास आय के स्रोत सीमित होते। बच्चे या तो आवारा बन जाते या बाल मजदूर बनते। अकेली औरत होने के कारण उसे समाज के लोगों के मात्र अश्लील व्यवहार का ही सामना नहीं करना पड़ता, अपितु उसे अवारा लोगों के शोषण का शिकार भी होना पड़ सकता था। बड़ा लड़का तो शायद ही उसे मिल पाता। उसके पिता भी उसे याद नहीं करते और माँ की मृत्यु का समाचार भी नहीं मिलता। इस तरह बेबी का जीवन चुनौतीपूर्ण तथा अंधकारमय होता।

अन्य हल प्रश्न

I. मूल्यपरक प्रश्न
निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए मूल्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) मेम साहब की कोठी के सामने की एक कोठी में सुनील नाम का तीस-बत्तीस साल का एक युवक मोटर चलाता था। वह मुझे पहचानता था इसलिए मैंने उससे भी अपने काम के बारे में कह रखा था। एक दिन रास्ते में मुझे देखकर उसने पूछा, तुम क्या अब उस कोठी में काम नहीं करतीं? मैंने कहा, मुझे उस कोठी को छोड़े डेढ़ सप्ताह हो गए। अभी तक मुझे कोई काम नहीं मिला है। वह बोला, ठीक है, मुझे काम के बारे में कुछ पता चलेगा तो बताऊँगा। दो-एक दिन बाद दोपहर को बच्चों को खिला-पिलाकर मैं उनके साथ सो रही थी कि सुनील आया और बोला, क्यों, काम मिला? मैंने कहा, नहीं, अभी तक कुछ नहीं मिला। वह बोला, तो चलो मेरे साथ। मैंने पूछा, कहाँ? तो वह बोला, काम करना है तो मैं तुम्हें लिए चलता हूँ, बाकी बातें तुम स्वयं वहाँ कर लेना।
प्रश्न

  1. सुनील के व्यवहार में कौन-कौन से मूल्य उभरकर सामने आते हैं, लिखिए? 1
  2. आप सुनील की जगह होते और कहानी की अन्य परिस्थितियाँ यथावत होतीं तो आप क्या करते? 2
  3. इस गदयांश में किस सामाजिक समस्या की झलक मिलती है? इसे दूर करने के लिए कोई दो उपाय सुझाइए। 2

उत्तर –

  1. बेरोजगार लेखिका से सुनील से काम के लिए कह रखा था, जिसे उसने पूरा भी किया। इस प्रकार उसके व्यवहार में परोपकार, सहानुभूति, सदयता तथा पर दुखकातरता जैसे मूल्य उभरकर सामने आते हैं।
  2. यदि में सुनील की जगह होता तो लेखिका को हर प्रकार से मदद करने का आश्वासन देता। उसके लिए काम तलाशने का काम पहली प्राथमिकता के आधार पर करता। काम न मिलने तक मैं लेखिका के समक्ष आर्थिक मदद का भी प्रस्ताव रखता। काम मिलने पर उसकी पहचान की जिम्मेदारी मैं स्वयं लेता।
  3. इस गद्यांश में बेरोजगारी की समस्या की झलक मिलती है। इसे दूर करने के लिए मैं अनपढ़ों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करता तथा लोगों की शिल्प प्रशिक्षण लेने की प्रेरणा देता।

(ख) मैं इसी तरह रोज सबेरे आती और दोपहर तक सारा काम खत्म कर चली जाती। बीच-बीच में साहब मेरे बारे में इधर-उधर की बातें पूछ लेते। एक दिन उन्होंने मेरे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा तो मैंने कहा, ‘मैं तो पढ़ाना चाहती हूँ लेकिन वैसा सुयोग कहाँ है, फिर भी चेष्टा तो करूंगी ही बच्चों के लिए। उन्होंने एक दिन बुलाकर फिर कहा, तुम अपने लड़के और लड़की को लेकर आना। यहाँ एक छोटा-सा स्कूल है। मैं वहाँ बोल दूँगा। तुम रोज बच्चों को वहाँ छोड़ देना और घर जाते समय अपने साथ ले जाना। मैं अब बच्चों को साथ लेकर आने लगी। उन्हें स्कूल में छोड़, घर आकर अपने काम में लग जाती। स्कूल से बच्चे जब मेरे पास आते तो साहब कुछ-न-कुछ उन्हें खाने को देते।
प्रश्न

  1. शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा की ओर मोड़ने के लिए आप क्या क्या करना चाहेंगे?
  2. ‘आज बच्चों का अनपढ़ रहना कल के समाज पर बोझ बन जाएगा।” इस कथन से आप कितना सहमत हैं और क्यों?
  3. आप ‘साहब’ के व्यक्तित्व के किन-किन मूल्यों को अपनाना चाहेंगे?

उत्तर –

  1. शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा की ओर मोड़ने के लिए मैं-
    (क) उनके माता-पिता की शिक्षा का महत्व समझाऊँगा।
    (ख) सायंकाल में ऐसे बच्चों को एकत्रकर पढ़ाऊँगा।
    (ग) शिक्षा से वंचित इन बच्चों को अपनी पुरानी कापियाँ, किताबें तथा अपने बचाए जेब खर्च से पेंसिल, कापियाँ तथा स्लेट आदि दूँगा।
    (घ) समाज के धनाढ्य लोगों से ऐसे बच्चों की मदद के लिए आगे आने को कहूँगा।
  2. ‘आज बच्चों का अनपढ़ रहना कल के समाज पर बोझ बन जाएगा।” इस कथन से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। अनपढ़ बच्चे अपने जीवन में कोई विशेष प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर पाएँगे। ऐसे में वे आजीवन मजदूर बनकर रह जाएँगे। उचित कौशल के अभाव में शायद वे अपराध की ओर कदम बढ़ा दें और समाज-देश के लिए अपना योगदान न दे सकें।
  3. साहब’ के व्यक्तित्व से परोपकार, सदयता, दूसरों के जीवन में उजाला फैलाने जैसे मूल्यों को अपनाना चाहूगा।

(ग) मैं सवेरे उठकर बच्चों को खिला-पिलाकर रेडी करती और घर में ताला लगाकर उनके साथ निकल पड़ती। मैं एक ही कोठी में काम करते कैसे अपना काम चलाऊँगी और कैसे घर का किराया दूँगी, इस बात को लेकर लोग आपस में खूब बातें करते। मैं स्वयं भी चिंतित थी कि मुझे और दो-एक कोठियों में काम नहीं मिला तो इतने पैसों में गुजारा कैसे होगा। मैं रोज साहब से पूछती कि किसी ने उन्हें काम के बारे में कुछ बताया क्या। वह मेरा प्रश्न और कोई बात कर टाल देते लेकिन उन्हें देखकर मुझे लगता जैसे वह नहीं चाहते कि मैं कहीं और भी काम करूं। शायद वह सोचते रहे हों कि मुझसे वह सब होगा नहीं और हेागा भी तो उससे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं चल पाएगी। शायद इसीलिए उन्होंने एक दिन हठात् मुझसे पूछा, बेबी, महीने में तुम्हारा कितना खर्चा हो जाता है? शरम से मैं कुछ नहीं बोली और उन्होंने भी दुबारा नहीं पूछा।
प्रश्न

  1. ‘साहब’ की जगह आप होते तो लेखिका को अन्यत्र काम करने के प्रोत्साहित करते या नहीं और क्यों? 2
  2. साहब का व्यक्तित्व समाज के लिए आप कितना प्रेरक मानते हैं और क्यों? 2
  3. आप लेखिका की परिस्थितियों में रह रहे होते तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के प्रति क्या दृष्टिकोण रखते? और क्यों? 1

उत्तर –

  1. यदि मैं ‘साहब’ की जगह होता तो लेखिका को अन्यत्र काम करने के लिए प्रोत्साहित न करता, क्योंकि समाज में अकेली रह रही औरत के प्रति कुछ लोगों का दृष्टिकोण अच्छा नहीं होता। ऐसे लोग इस तरह की औरतों से अनुचित फायदा का अवसर खोजते रहते हैं।
  2. मैं ‘साहब’ के व्यक्तित्व को समाज के लिए प्रेरणादायक मानता हूँ. क्योंकि उन्होंने अपने घर में काम करने वाली को भरपूर सम्मान दिया और उसकी मदद की। उन्होंने अपने अनुभव के कारण ही लेखिका को अन्यत्र काम करने से मना ही नहीं किया वरन् लेखिका के सारे खचों का भी ध्यान रखते थे।
  3. यदि मैं लेखिका जैसी परिस्थितियों में जी रहा होता मैं भी अपने बच्चों की शिक्षा का समुचित प्रबंध करने के लिए चिंतित रहता, क्योंकि अनपढ़ बच्चे बाद में समाज पर बोझ साबित होते हैं।

(घ) देखो बेबी, तुम समझो कि मैं तुम्हारा बाप, भाई, माँ, बंधु, सब कुछ हूँ। यह कभी मत सोचना कि यहाँ तुम्हारा कोई नहीं है। तुम अपनी सारी बातें मुझे साफ-साफ बता सकती हो, मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा। थोड़ा रुककर उन्होंने फिर कहा, देखो, मेरे बच्चे मुझे तातुश कहते हैं, तुम भी मुझे वही कहकर बुला सकती हो। उस दिन से मैं उन्हें तातुश कहने लगी। मैं तातुश कहकर उन्हें बुलाती तो वह बहुत खुश होते और कहते, तुम मेरी लड़की जैसी हो। इस घर की लड़की हो। कभी यह मत सोचना कि तुम परायी हो। वहाँ कोई भी मेरे साथ पराये जैसा व्यवहार नहीं करता। तातुश के तीन लड़के थे। उस समय तक मैंने एक ही को देखा था और वह उनका सबसे छोटा लड़का था। उसके मुँह में जैसे जबान ही नहीं थी।
प्रश्न

  1. तातुश का व्यवहार वर्तमान समय में और भी प्रासंगिक हो जाता है। इस बारे में आपकी क्या राय है? 2
  2. यदि आप तातुश की जगह होते तथा कहानी की अन्य परिस्थितियाँ वही होती तो आप क्या करते? 2
  3. तातुश के व्यक्तित्व से आप किन-किन गुणों को अपनाना चाहेंगे? 1

उत्तर –

  1. वर्तमान समय में जब विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रही स्त्रियों के प्रति समाज के कुछ लोगों की सोच स्वस्थ नहीं है, ऐसे में तातुश ने लेखिका को अपने परिवार की सदस्या की तरह रखा और उसकी हर प्रकार से मदद करते हुए सम्मान दिया। उनका यह व्यवहार आज और भी प्रासंगिक हो जाता है।
  2. यदि मैं तातुश की जगह होता तो तातुश की तरह ही नारी जाति का सम्मान करता तथा लेखिका को भरपूर मदद करता। मैं लेखिका की भावनाओं का सम्मान करता और उसके बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करता।
  3. मैं तातुश के व्यक्तित्व से नारी जाति का सम्मान करने की भावना, परोपकार, सदयता तथा सहानुभूति जैसे गुणों को अपनाना चाहुँगा।

(ड) किताब पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता। कुछ दिनों बाद तातुश ने एक दिन पूछा, तुम जो किताब ले गई थीं उसे ठीक से पढ़ तो रही हो? मैंने हाँ कहा तो वह बोले, मैं तुम्हें एक चीज दे रहा हूँ, तुम उसका इस्तेमाल करना। समझना कि वह भी मेरा ही एक काम है। मैंने पूछा, कौन-सी चीज? तातुश ने अपनी लिखने की टेबिल के ड्रार से एक पेन और कॉपी निकाली और बोले, इस कॉपी में तुम लिखना। लिखने को तुम अपनी जीवन-कहानी भी लिख सकती हो। होश सँभालने के बाद से अब तक की जितनी भी बातें तुम्हें याद आएँ सब इस कॉपी में रोज थोड़ा-थोड़ा लिखना। पेन और कॉपी हाथ में लिए मैं सोचने लगी कि इसका तो कोई ठिकाना नहीं कि जो लिखूंगी वह कितना गलत या सही होगा। तातुस ने पूछा, क्यों, क्या हुआ? क्या सोचने लगी? मैं चौंक पड़ी। फिर बोली, सोच रही थी कि लिख सकूंगी या नहीं। वह बोले, जरूर लिख सकोगी। लिख क्यों नहीं सकोगी! जैसा बने वैसा लिखना।
प्रश्न

  1. तातुश दवारा लेखिका को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करने को आप कितना उचित मानते हैं और क्यों?
  2. आपके आसपास भी ऐसे बच्चे होंगे जिनकी पढ़ाई-लिखाई छूट चुकी होगी, ऐसे बच्चों की पढ़ाई के लिए आप क्या-क्या मदद कर सकते हैं?
  3. तातुश के व्यक्तित्व से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?

उत्तर –

  1. तातुश द्वारा लेखिका को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करने को मै पूर्णतया उचित मानता हूँ। तातुश ने अपने घर में काम करने वाली महिला की लेखन अभिरुचि को पहचाना और प्रोत्साहित किया, जिसके फलस्वरूप उसका लेखिका वाला रूप समाज के सम्मुख आ सका।
  2. हमारे आसपास भी अनेक ऐसे बच्चे हैं जिनकी पढ़ाई प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण छूट चुकी है। ऐसे बच्चों की मैं हर संभव मदद करूंगा और उन्हें पुन: पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करूंगा और शिक्षा का महत्व समझाऊँगा। उन्हें शाम को कुछ समय पढ़ाऊँगा और निकटवर्ती पाठशाला में प्रवेश दिलाऊँगा।
  3. तातुश के व्यक्तित्व से हमें दूसरों की मदद करने की प्रेरणा, शिक्षा के प्रति बच्चों को जागरूक बनाने, सहृदय बनने, दूसरों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैलाने की प्रेरणा मिलती है।

(च) जब मेरे स्वामी के सामने वहाँ के लोगों के मुँह बंद नहीं होते थे तो यहाँ तो बच्चों को लेकर मैं अकेली थी! यहाँ तो वैसी बातें और भी सुननी पड़तीं। मैं काम पर आती-जाती तो आस-पास के लोग एक-दूसरे को बताते कि इस लड़की का स्वामी यहाँ नहीं रहता है, यह अकेली ही भाड़े के घर में बच्चों के साथ रहती है। दूसरे लोग यह सुनकर मुझसे छेड़खानी करना चाहते। वे मुझसे बातें करने की चेष्टा करते और पानी पीने के बहाने मेरे घर आ जाते। मैं अपने लड़के से उन्हें पानी पिलाने को कह कोई बहाना बना बाहर निकल आती। इसी तरह मैं जब बच्चों के साथ कहीं जा रही होती तो लोग जबरदस्ती न जाने कितनी तरह की बातें करते, कितनी सीटियाँ मारते, कितने ताने मारते! लेकिन मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं उनसे बचकर निकल जाती। तातुश के यहाँ जब पहुँचती और वह बताते कि उनके किसी बंधु ने उनसे फिर मेरे पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा है तो खुशी में मैं वह सब भूल जाती जो रास्ते में मेरे साथ घटता।
प्रश्न

  1. आप समाज में अकेली रहने वाली महिलाओं के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण तथा सम्मान की भावना प्रगाढ़ करने के लिए युवाओं को क्या सुझाव देंगे? 2
  2. यदि आप तातुश की जगह होते और कहानी की अन्य परिस्थितियाँ वही होती तो आप क्या करते? 2
  3. आपके विचार से तातुश लेखिका को पढ़ने-लिखने के लिए इतना प्रोत्साहित क्यों करते थे? 1

उत्तर –

  1. समाज में अकेली रहने वाली महिलाओं के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण और सम्मान की भावना प्रगाढ़ करने के लिए मैं युवाओं से संयमित एवं मर्यादित व्यवहार करने का अनुरोध करूंगा। उन्हें नारी की महत्ता से भी अवगत कराऊँगा तथा संस्कार एवं नैतिक मूल्यों का ज्ञान कराऊँगा।
  2. यदि मैं तातुश की जगह होता तो लेखिका को जिस तरह तातुश ने प्रोत्साहित करके उसके अंदर छिपी प्रतिभा को निखारा उसी तरह मैं भी लेखिका को पढ़ने-लिखने का पर्याप्त अवसर देता। उसे काम करने वाली महिला मात्र न मानकर उसके घर की सदस्य जैसा व्यवहार करता।
  3. मेरे विचार से तातुश को जिंदगी का अनुभव था। वे जानते थे कि शिक्षा से व्यक्ति का जीवन, रहन-सहन बदल जाता है तथा व्यक्ति अधिक सभ्य एवं समाजोपयोगी नागरिक बनता है। इसीलिए वे लेखिका को इतना पढ़ने-लिखने के लिए प्रोत्साहित करते थे।

II. निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
‘आलो-आँधारि’ पाठ के आधार पर तातुश का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर –
तातुश सज्जन प्रवृत्ति के अधेड़ अवस्था के शिक्षक हैं, वे दयालु हैं तथा करुण भाव से युक्त हैं। जब बेबी उनके घर काम करने आई तो उन्होंने उसके काम की प्रशंसा की। वे उसे अपनी बेटी के समान समझते थे। वे उसे कदम-कदम पर प्रोत्साहित करते थे। बेबी की पढ़ने के प्रति रुचि देखकर वे कॉपी व पेन देते हैं तथा उसे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। वे उसके बच्चों को स्कूल में भेजने की व्यवस्था करते हैं। उसका घर टूट जाने के बाद उसे अपने घर में जगह देते हैं। वे उसके बड़े लड़के को ढूँढ़कर उससे मिलवाते हैं तथा बाद में अच्छी जगह पर उसे काम दिलवाते हैं। जब कभी बेबी के बच्चे बीमार होते हैं तो उनका इलाज भी करवाते थे। तातुश बेबी के लेखन को अपने मित्रों के पास भेजते थे। वे कोई ऐसी बात नहीं करते थे जिससे बेबी को ठेस लगे। ऐसे चरित्र समाज में दुर्लभ होते हैं तथा आदर्श रूप प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 2:
बेबी के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
‘आलो-आँधारि’ रचना की प्रमुख पात्र बेबी है। यह उसकी आत्मकथा है उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(क) परित्यक्ता-बेबी की शादी अपने से दुगुनी उम्र के व्यक्ति के साथ हुई। उसे ससुराल में सदा प्रताड़ना मिली। वह किसी दूसरी महिला के साथ रहने लगा था। अंत में वह अपने पति को छोड़कर अलग रहने लगी और घरेलू कामकाज करके निर्वाह करने लगी। उसे अनेक तरह की सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पडा।
(ख) साहसी व परिश्रमी-बेबी पति के अत्याचारों को सहन न करके उससे अलग किराए के मकान में रहने लगी। वह लोगों के घरों में काम करके गुजारा करने लगी। वह दिन-रात काम करती थी। तातुश के घर का अत्यधिक काम वह शीघ्रता से कर लेती थी। वह हर स्थिति का सामना करती है। घर तोड़े जाने के बाद वह रात खुले आसमान के नीचे गुजारती है।
(ग) अध्ययनशील-बेबी को पढ़ने-लिखने का चाव था। तातुश की पुस्तकों की अलमारियाँ साफ करते समय वह उन पुस्तकों को खोलकर देखती थी। तातुश ने उसे ‘आमार मेये बेला’ पुस्तक पढ़ने के लिए दी तथा बाद में कॉपी व पेन भी लिखने के लिए दिया। तातुश की प्रेरणा से उसने लिखना शुरू किया।
(घ) स्नेहमयी माता-बेबी अपने बच्चों के भविष्य की बहुत चिंता करती है। वह उन्हें पढ़ाना-लिखाना चाहती है। तातुश की मदद से वह दो बच्चों को स्कूल भेजती है। वह बड़े लड़के के लिए भी व्याकुल रहती है जो किसी के घर काम करता है। तातुश उसे घर लाते हैं। निष्कर्षत: बेबी साहसी, परिश्रमी, अध्ययनशील व स्नेहमयी चरित्र की है।

प्रश्न 3:
सजने-सँवरने के बारे में बेबी की क्या राय थी?
उत्तर –
कोलकाता की शर्मिला दीदी ने लेखिका को अपने घर आने का निमंत्रण दिया तथा सजने-सँवरने आदि की बात कही। सजने-सँवरने की बात पर लेखिका को हैरानी होती है। बचपन से ही उसे सजने का शौक नहीं था। उसे ये काम फालतू के लगते थे। उसने देखा कि लड़कियाँ व बहुएँ घंटों शीशे के सामने खड़ी होकर श्रृंगार करती हैं। वे नयी साड़ी पहनती हैं ताकि पति उनकी तारीफ करे। वे दूसरों से प्रशंसा भी चाहती हैं। कई प्रकार के गहने पहनकर वे घूमने जाती हैं। लेखिका स्वयं को औरों से अलग मानती है। वह तो शादी के बाद भी इन चीजों से दूर रही। उसने सीधी तरह कंघी करके माँग से सिंदूर लगाना ही सीखा था।

III. लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
शर्मिला दी और बेबी के संबंधों के बारे में बताइए।
उत्तर –
शर्मिला दी कोलकाता में रहती थीं। वह बेबी को हिंदी में चिट्ठयाँ लिखती थीं। उनकी चिट्ठयों में अलग तरह की ही बात होती थी। बेबी सोचती थी कि वे भी तो घर के काम के लिए कोई लड़की रखी होंगी। क्या वह उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करती होंगी जैसा मेरे साथ। उसे तो वह किसी के घर काम करने वाली लड़की की तरह नहीं देखतीं और चिट्ठयाँ भी अपनी बाँधवी की तरह लिखती हैं। तातुश उसकी चिट्ठयों को पढ़कर सुनाते तो वह अपनी टूटी-फूटी बांग्ला में उन्हें लिख लेती थी। उदास होने पर वह इन्हें पढ़ती तथा प्रसन्न होती थी।

प्रश्न 2:
‘बेबी के लिए तातुश के हृदय में माया है।’-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
तातुश ने बेबी को काम पर रखा। वे उसके बच्चों के बारे में पूछते हैं तथा उन्हें स्कूल में भेजने के लिए उसे प्रेरित करते हैं। वे बच्चों के स्कूल में प्रवेश के लिए बेबी की मदद करते हैं। जब बेबी उन्हें दूसरे घर में काम तलाशने के लिए कहती तो वे उसे दूसरी कोठी में काम न करने की सलाह देते थे। वे कहते तो कुछ न थे, परंतु कुछ ऐसा सोचा करते थे कि बेबी को महसूस होता था कि वे बेबी के प्रति माया रखते हैं, कभी-कभी वे बरतन पोंछ रहे होते थे तो कभी जाले ढूँढ़ रहे होते थे।

प्रश्न 3:
सुनील ने बेबी की सहायता कैसे की?
उत्तर –
सुनील तीस-बत्तीस साल का युवक था जो एक कोठी में ड्राइवर का काम करता था। बेबी ने उसे कहीं काम दिलवाने के लिए कह रखा था, जब सुनील को पता चला कि बेबी को डेढ़ सप्ताह से कोई काम नहीं मिला तो वह उसे तातुश के घर ले गया। उनसे बातचीत करके उसने बेबी को उनके घर का काम दिलवा दिया।

प्रश्न 4: तातुश ने बेबी को क्या दिया? उस पर बेबी की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर –
तातुश ने बेबी की पढ़ने-लिखने में रुचि देखी तो उसने उसे पेन व कॉपी दी तथा लिखने को कहा। उसने कहा कि होश सँभालने के बाद से अब तक की जितनी भी बातें तुम्हें याद आएँ, सब इस कॉपी में रोज थोड़ा-थोड़ा लिखना। पेन-कॉपी लेकर बेबी सोचने लगी कि इसका तो कोई ठिकाना नहीं कि जो लिखेंगी, वह कितना गलत या सही होगा। तातुश ने पूछा तो वह चौंक पड़ी। उसने कहा कि सोच रही थी कि लिख सकूंगी या नहीं।

प्रश्न 5:
लखिका को लेखन के लिए किन-किन लोगों ने उत्साहित किया?
उत्तर –
लेखिका को लेखन के लिए सबसे पहले तातुश ने प्रेरित किया। उन्होंने ही उसका परिचय कोलकाता और दिल्ली के लोगों से करवाया। इसके अतिरिक्त कोलकाता के जेलू आनंद, अध्यापिका शर्मिला आदि पत्र लिखकर उसे प्रोत्साहित करते थे। दिल्ली के रमेश बाबू उनसे फोन पर बातें करते थे।

प्रश्न 6: तातुश के घर बेबी सुखी थी, फिर भी उदास हो जाती थी। क्यों?
उत्तर –
तातुश के घर पर बेबी को बहुत सुविधाएँ व सहायता मिली, परंतु उसे अपने बड़े लड़के की याद आती थी। उसकी सूचना दो महीने से नहीं आई थी। जो लोग उसके लड़के को लेकर गए थे, उनके दिए पते पर वह लड़का नहीं रहता था। उसने कुछ दूसरे लोगों से पूछा तो किसी ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। इसलिए वह कभी-कभी उदास हो जाती थी।

प्रश्न 7:
मोहल्लेवासियों का लेखिका के प्रति कैसा रवैया था?
उत्तर –
लेखिका अकेली रहती थी, इस कारण मोहल्लेवासियों का रवैया अच्छा नहीं था। वे उसे हर समय परेशान करते थे। महिलाएँ उससे तरह-तरह के सवाल करती थीं। कुछ पुरुष उसके साथ बात करने की कोशिश करते थे तो कुछ उसे ताने देते थे। औरतें उसके अकेले रहने का कारण पूछती थीं। लोग पानी के बहाने उसके घर के अंदर तक आ जाते थे। वे उससे अजीबो-गरीब सवाल पूछते जिनके जवाब लोकलिहाज से परे थे। दुखी होकर उसने मकान बदलने का फैसला किया।

प्रश्न 8: बेबी को अपनी माँ की मृत्यु का समाचार कैसे मिला?
उत्तर –
एक दिन बेबी के पिता उससे मिलने आए। उसने अपनी माँ के बारे में पूछा तो उन्होंने इधर-उधर की बातें करनी आरंभ कर दीं, फिर बताया कि उसकी माँ तो छह-सात महीने पहले ही दुनिया छोड़ गई है। उसके भाइयों ने उसे नहीं बताया। बेबी सिसक-सिसक कर रोने लगी।

प्रश्न 9:
बेबी ने पार्क में घूमना क्यों छोड़ दिया?
उत्तर –
तातुश के कहने पर बेबी बच्चों को पार्क में घुमाने ले जाती थी। वहाँ अनेक बंगाली औरतें भी थीं। वे उससे उसके पति के बारे में तथा यहाँ अकेली रहने के बारे में तरह-तरह के सवाल पूछती थीं। बेबी को इन बातों का जबाव देना तथा पुरानी बातों को फिर से दोहराना अच्छा नहीं लगता था। पार्क में आने वाले बंगाली लड़के भी उद्दंडतापूर्ण व्यवहार करते थे। इन सब कारणों से उसने पार्क में घूमना छोड़ दिया।

प्रश्न 10:
अपनी प्रकाशित रचना देखने से बेबी पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर –
बेबी को जैसे ही पैकेट में पत्रिका मिली। उसे पत्रिका के पन्ने पर अपना नाम दिखाई दिया-“आलो-आँधारि” बेबी हालदार। वह प्रसन्नता से झूम उठी। उसने अपने बच्चों से उसे पढ़वाया। बच्चे नाम पढ़कर हँसने लगे। उन्हें हँसता देख बेबी ने उन्हें अपने पास खींच लिया। तभी उसे तातुश की याद आई, जिनकी प्रेरणा से उसने लिखना शुरू किया था। वह बच्चों को छोड़कर भागती हुई तातुश के पास गई और उन्हें प्रणाम किया। तातुश ने उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।

Tatus लेखिका के आने पर क्यों खुश हो जाते थे?

परिवार की आर्थिक दशा कमजोर होने के कारण तेरह वर्ष की आयु में इनका विवाह दुगुनी उम्र के व्यक्ति से कर दिया गया। इस कारण उन्हें सातवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

तातुश का अर्थ क्या होता है?

'तातुश' का अर्थ होता है, पिता के समान व्यक्ति।

तातुश के व्यक्तित्व हमें क्या सिखाता है?

तातुश के व्यक्तित्व से हमें दूसरों की मदद करने की प्रेरणा, शिक्षा के प्रति बच्चों को जागरूक बनाने, सहृदय बनने, दूसरों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैलाने की प्रेरणा मिलती है।

तातुश ने बेबी हालदार को लेखन के लिए कैसे प्रोत्साहित किया?

तातुश उसे लिखने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने अपने कई मित्रों के पास बेबी के लेखन के कुछ अंश भेज दिए थे। उन्हें यह लेखन पसंद आया और वे भी लेखिका का उत्साह बढ़ाते रहे। तातुश के छोटे लड़के अर्जुन के दो मित्र वहाँ आकर रहने लगे, परंतु उनके अच्छे व्यवहार से लेखिका बढ़े काम को खुशी-खुशी करने लगी।