पिंड दान करने में क्या क्या लगता है? - pind daan karane mein kya kya lagata hai?

बच्चे का जन्म जब होता है तो उस समय इंसान अकेला होता है। न उसे दुनिया का कोई बोध होता है और न ही किसी मोह माया का कोई भी बंधन। लेकिन जैसे जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है, वो दुनिया के मोह के बंधनों में बंधने लगता है। तमाम तरह के रिश्ते उसके आगे पीछे घूमने लगते हैं। जब इंसान एक नौजवान व्यक्ति के रूप में ढल जाता है तब तक उसके पास बहुत सारे रिश्ते हो जाते हैं। ये सब मोह माया तो ही है जिसमें इंसान हमेशा बंधा ही रहता है और अगर चाहे तो भी बाहर नहीं आ पाता है। फिर व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा दिन भी आता है जब उसकी सांसें थम जाती हैं और उसमें जान ही नहीं बचती है। ये समय मृत्यु का होता है। इंसान जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो वो बस अपने शरीर को त्याग देता है। उसके शरीर में जो आत्मा होती है वो कभी भी खत्म नहीं होती है।

इंसान इस दुनिया को भले ही छोड़कर चला जाता है लेकिन उसके घरवालों को उसके जाने के बाद भी कुछ कर्म करने ही पड़ते हैं। अगर घरवाले व्यक्ति की मौत के बाद कर्मों को ठीक ढंग से नहीं करते हैं तो व्यक्ति की आत्मा कभी भी मुक्त नहीं हो पाती है और इधर उधर बस भटकती रहती है। ये तो आप सभी जानते ही हैं कि आत्मा को मृत्यलोक का सफर तय करना होता है। ऐसे में ये ज़रूरी है कि मरने के बाद व्यक्ति का श्राद्ध और पिंडदान किया जाए। इसके बिना आत्मा के अंदर ताकत नहीं आती है कि वो अपना आगे का सफर तय कर सके। उसके सारे कर्मों का हिसाब किताब होता है और उसे रास्ते में बताया जाता है कि उसने अपने पूरे जीवनकाल में क्या क्या किया है।

आत्मा का सफर कष्टदायक न रहे और आत्मा बड़ी ही सरलता से मृत्युलोक तक का सफर तय कर ले, इसीलिए हिंदू धर्म में बहुत सारे कर्मकांड करवाए जाते हैं। ये सारे कर्मकांड पूरे विधि विधान से किये जाने चाहिए। इन कर्मकांड में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पिंडदान और श्राद्ध को माना जाता है। अपने पितरों को निमित अर्पण और तर्पण देने से ही उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इस काम को बहुत ही विधि विधान से करना चाहिए। आइये देखते हैं कि पिंडदान कैसे किया जाना चाहिए।

● पिंडदान करने की विधि क्या है?

पिंडदान करने के लिए आप निम्न बातों का विशेष ध्यान रखें-

◆ जब भी मृत व्यक्ति के घरवाले मृतक का पिंडदान करें तो सबसे पहले चावल या फिर जौ के आटे में दूध और तिल को मिलाकर उस आटे को गूथ लें। इसके बाद उसका गोला बना लें।

◆ जब भी आप तर्पण करने जाएं तो ध्यान रखें कि आप पीतल के बर्तन लें या फिर पीतल की थाली लें। उसमें एकदम स्वच्छ जल भरें। इसके बाद उसमें दूध व काला तिल डालकर अपने सामने रख लें। इसी के साथ अपने सामने आप एक और खाली बर्तन भी रखें।

◆ अब आप अपने दोनों हाथों को मिला लें। इसके बाद मृत व्यक्ति का नाम लेकर तृप्यन्ताम बोलते हुए अंजुली में भरे हुए जल को सामने रखे खाली बर्तन में डाल दें।

◆ जल से तर्पण करते समय आप उसमें जौ, कुशा, काला तिल और सफेद फूल अवश्य मिला लें। इससे मृत आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा करने से पितर तृप्त हो जाते हैं।

◆ बस इसके बाद आप ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान दक्षिणा दें।

● पिंडदान करते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें?

पिंडदान करते समय कुछ बातें हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए जो कि निम्न हैं-

◆ जब भी पितृ पक्ष चले, उस समय कुत्ते, कौवे और गाय को भोजन अवश्य कराना चाहिए। मान्यता के अनुसार जो कुत्ता और कौवा होता है वो पितर के करीब होता है। वहीं जो गाय होती है वो उन्हें वैतरणी पार करवाने में मदद करती है।

◆ पिंडदान करते समय हमेशा सोने चांदी, तांबे, कांसे या फिर पत्तल के ही पात्रों का इस्तेमाल करना चाहिए।

◆ श्राद्ध करने के सबसे उत्तम स्थान  गया, बद्रीनाथ, हरिद्वार, गंगासागर, पुश्कर, जगन्नाथपुरी, काशी, कुरुक्षेत्र, आदि को माना जाता है।

◆ शहद, तुलसी, दूध तथा तिल को पिंडदान में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है।

◆ जब भी पिंडदान की विधि करवाएं, तो हमेशा ध्यान रखें कि किसी श्रेष्ठ जगह पर ही पूजन विधि सम्पन्न करें और बड़े पंडित को ही इस विधि को सम्पन्न करने के लिए बुलाएं। तभी आपके कार्य सफल होंगे और आत्मा तृप्त होगी।

मृत्यु एक ऐसा सत्य है, जिसके बारे में बात करने से लोग बचना चाहते हैं। लेकिन अगर बात नहीं करेंगे तो इसके बारे में जानेंगे कैसे। इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन इस दुनिया को छोड़कर जाना ही होगा। कोई भी हमेशा जीवित नहीं रहता है। जीवन और मृत्यु एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। अगर किसी को जीवन मिला है तो यह तय है कि उसका अंत भी एक न एक दिन होकर रहेगा। वहीं मृत्यु होने के बाद व्यक्ति को दूसरा जन्म मिलता है, ऐसे में जब तक मृत्यु नहीं होगी तब तक किसी को नया जन्म कैसे मिलेगा। यही कारण है कि दोनों एक दूसरे के पूरक के तौर पर जाना है।

पिंड दान की विधि

एक ओर जब बच्चा जन्म लेता है तो हर तरफ खुशी का माहौल होता है, दूसरी तरफ जब किसी की मृत्यु होती है तो हर तरफ उदासी छाई रहती है। जन्म होते समय इंसान इस धरती पर अकेले ही आता है। एक नए जन्मे बच्चे को दुनियादारी की कोई समझ नहीं होती है। वो नादान बच्चा मोह माया से बिल्कुल अंजान होता है और सभी बंधनों से मुक्त रहता है। फिर धीरे- धीरे बच्चा बड़ा होने लगता है और जैसे जैसे वो बड़ा होता है उसके ऊपर ज़िम्मेदारियों का बोझ आ जाता है। धीरे धीरे वो मोह माया में लिपट जाता है और ढेर सारे बंधनों में बंध जाता है। ये सब मोह माया ही तो है जिसमें इंसान हमेशा बंधा ही रहता है और अगर चाहे तो भी बाहर नहीं आ पाता है। फिर व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा दिन भी आता है जब उसकी सांसें थम जाती हैं और उसमें जान ही नहीं बचती है। ये समय मृत्यु का होता है। इंसान जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो वो बस अपने शरीर को त्याग देता है। उसके शरीर में जो आत्मा होती है वो कभी भी खत्म नहीं होती है। मृत्यु होने के बाद व्यक्ति का सफर खत्म नहीं होता है। बल्कि मृत्यु होने के बाद ही आत्मा का मृत्युलोक तक का जो सफर होता है वो शुरू होता है।

यहां सफर सिर्फ इंसान के शरीर का समाप्त होता है। उसकी आत्मा तो हमेशा ही सफर में रहती है। इंसान की मृत्यु के बाद उसके परिवार के लोगों को कुछ ज़िम्मेदारियों को निभाना होता है। इसीलिए कहा जाता है कि मृत्यु के बाद के कर्मों को पूरे रीति रिवाज के साथ करना चाहिए वरना आत्मा तृप्त नहीं होती है और मुक्त न होने की वजह से आत्मा भटकती रहती है। साथ ही ये अपने आसपास के लोगों को परेशान करती रहती है।  तो आप सभी जानते ही हैं कि आत्मा को मृत्यलोक का सफर तय करना होता है। ऐसे में ये ज़रूरी है कि मरने के बाद व्यक्ति का श्राद्ध और पिंडदान किया जाए। इसके बिना आत्मा के अंदर ताकत नहीं आती है कि वो अपना आगे का सफर तय कर सके। उसके सारे कर्मों का हिसाब किताब होता है और उसे रास्ते में बताया जाता है कि उसने अपने पूरे जीवनकाल में क्या क्या किया है।

पिंडदान में उपयोग होने वाली आवश्यक सामग्री;-

श्राद्ध पक्ष के दौरान ऐसा माना जाता है कि जो पितर होते हैं वो अपने अपने कुल को वापस चले जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान करने से पितर तृप्त होते हैं और इसी के साथ ही वो घर में अच्छी संतान के होने का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। इसीलिए श्राद्ध करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है। जो लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध और पिंडदान नहीं करते हैं उनकी पितरों की आत्मा कभी तृप्त नहीं होती है। उनकी आत्मा अतृप्त ही रहती है। ऐसे में ये जानना बहुत आवश्यक है कि श्राद्ध में किन सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। क्योंकि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि श्राद्ध को पूरे विधि विधान से ही किया जाना चाहिए अन्यथा इसको करने का कोई फायदा नहीं होता है।

श्राद्ध तर्पण

श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए। वहीं यदि आप उड़द, सफेद पुष्प, केले, गाय के दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ने आदि का इस्तेमाल करते हैं श्राद्ध में तो इससे आपके पितर प्रशन्न होते हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है। पितृ पक्ष में आप तुलसी और पीपल के पेड़ पर जल ज़रूर अर्पित करें। साथ ही पितृ पक्ष में सूर्यदेव को भी अर्ध्य अवश्य दें।

पिंडदान करने के लिए आप निम्न बातों का विशेष ध्यान रखें-

◆ जब भी मृत व्यक्ति के घरवाले मृतक का पिंडदान करें तो सबसे पहले चावल या फिर जौ के आटे में दूध और तिल को मिलाकर उस आटे को गूथ लें। इसके बाद उसका गोला बना लें।

◆ जब भी आप तर्पण करने जाएं तो ध्यान रखें कि आप पीतल के बर्तन लें या फिर पीतल की थाली लें। उसमें एकदम स्वच्छ जल भरें। इसके बाद उसमें दूध व काला तिल डालकर अपने सामने रख लें। इसी के साथ अपने सामने आप एक और खाली बर्तन भी रखें।

◆ अब आप अपने दोनों हाथों को मिला लें। इसके बाद मृत व्यक्ति का नाम लेकर तृप्यन्ताम बोलते हुए अंजुली में भरे हुए जल को सामने रखे खाली बर्तन में डाल दें।

◆ जल से तर्पण करते समय आप उसमें जौ, कुशा, काला तिल और सफेद फूल अवश्य मिला लें। इससे मृत आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा करने से पितर तृप्त हो जाते हैं।

◆ बस इसके बाद आप ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान दक्षिणा दें।

पिंडदान में क्या क्या सामग्री होती है?

रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी, रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी के पत्ते, पान, जौ, हवन सामग्री, गुड़, मिट्टी दीया, कपास, अगरबत्ती , दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर. इसी सामग्री से श्राद्ध पूजा की जाती है.

पिंड दान की विधि क्या है?

उन्होंने बताया कि इस विधि से हर पितर को एक पिंड दिया जाता है। घर पर एकोदिष्ट श्राद्ध पिता की तिथि पर किया जाता है, जबकि अन्य पितरों को तर्पण किया जाता है। पिता के ही पिंड में सभी पितर सहभागी हो जाते हैं। पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, धान्य की समृद्धि होती है।

पिंडदान करने में कितना खर्चा आता है?

गया में पिंडदान का खर्च आप पर निर्भर करता है की आप कितना खर्च करना चाहते हैं. अगर आप सभी प्रकार की सुख सुविधा चाहते है. जैसे की रहना, खानापीना तथा पंडित का खर्च तो 10 से 12 हजार तक का खर्चा हो सकता हैं.

कितने पिंड बनाने चाहिए?

धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा सांसारिक मोह माया से अलग नहीं हो पाती। इसलिए वह प्रेत लोक में भी भटकती रहती है। इसलिए आत्मा को पितृलोक भेजने के लिए पिंडदान (सपिंडन) करना चाहिए। पिंडदान में पके चावल, आटा, घी एवं तिल को मिलाकर उसके पांच पिंड बनाने चाहिए