शरीर में कैंसर का पता कैसे लगाएं? - shareer mein kainsar ka pata kaise lagaen?

कैंसर, किसी कोशिका के असामान्य तरीके से बढ़ने की बीमारी है. आमतौर पर, हमारे शरीर की कोशिकाएं नियंत्रित तरीके से बढ़ती हैं और विभाजित होती हैं. जब सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है या कोशिकाएं पुरानी हो जाती हैं, तो वे मर जाती हैं और उनकी जगह स्वस्थ कोशिकाएं ले लेती हैं. कैंसर में कोशिका के विकास को नियंत्रित करने वाले संकेत ठीक से काम नहीं करते हैं. कैंसर की कोशिकाएं बढ़ती रहती हैं और जब उन्हें रुकना चाहिए तो कई गुना बढ़ जाती हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो कैंसर कोशिकाएं स्वस्थ कोशिकाओं वाले नियमों का पालन नहीं करती हैं.

हर एक कोशिका ऐसे जींस से नियंत्रित होती है जो कोशिकाओं को निर्देश देते हैं कि उन्हें कैसे काम करना है, कब बढ़ना और कब विभाजित होना है. कैंसर शरीर की अपनी ही कोशिकाओं से विकसित होता है: किसी एक कोशिका के जीन के भीतर आने वाले बदलाव के साथ ही इसकी शुरुआत होती है. आनुवंशिक बदलाव या म्यूटेशन (कोशिका में आने वाली तब्दीली या हेर-फेर) किसी कोशिका के सामान्य कार्य में हस्तक्षेप कर सकते हैं. ज़्यादातर तब्दीलियां नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, लेकिन कभी-कभी ये कोशिका के विकास को नियंत्रित करने में अड़चन पैदा कर देती हैं. ऐसा कभी-कभार ही होता है कि जीन में बदलाव सिर्फ़ इसलिए आएं क्योंकि माता-पिता के साथ भी ऐसा ही हुआ था. ज़्यादातर हेर-फेर अनायास होते हैं, वह भी तब, जब कोशिकाएं अलग-अलग हिस्सों में बंटती हैं. इतना ही नहीं, ये फेर-बदल ग़लती से होते हैं और अचानक होते हैं. बड़ों को होने वाले कैंसर के उलट, बच्चों को होने वाले कैंसर की वजह ज़िंदगी जीने के तौर-तरीके या पर्यावरण नहीं होते हैं. बल्कि, बच्चों को होने वाले कैंसर के ज़्यादातर मामले जीन में आने वाली तब्दीली का नतीजा होते हैं जो कि इत्तेफ़ाक से होता है.

कैंसर शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर उस सेल या टिशू के लिए किया जाता है जहां यह शुरू होता है. बच्चों में अलग-अलग तरह के लगभग 100 से ज़्यादा के कैंसर होते हैं. कोशिकाएं माइक्रोस्कोप में कैसे दिखती हैं और कोशिकाओं की आणविक और आनुवंशिक विशेषताएं कैंसर के विशिष्ट प्रकार को निर्धारित करने में मदद करने के लिए जानकारी देती हैं.

कई कैंसर कोशिकाओं के ढेर या गुच्छे बना लेते हैं, जिससे एक ठोस गांठ बन जाती है. दूसरे कैंसर, जैसे ल्यूकेमिया, खून के ज़रिए शरीर के बाकी हिस्सों में फ़ैलते हैं और एक जगह इकट्ठे नहीं होते हैं. जैसे ही ठोस गांठ बढ़ती है, कुछ कोशिकाएं शरीर के दूसरे हिस्सों में चली जाती हैं. इस प्रक्रिया को मेटास्टैसिस कहते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि कैंसर सीधे आस-पास के शरीर में फैल जाए।
वह स्थान जहां कैंसर सबसे पहले शुरू होता है, उसे प्राइमरी ट्यूमर कहा जाता है. मेटास्टैसिस कैंसर का नाम प्राइमरी ट्यूमर से लिया जाता है। उदाहरण के लिए, ओस्टियोसार्कोमा जो कि हड्डी में शुरू हो कर फेफड़ों में फैल गया को मेटास्टैसिस ओस्टियोसार्कोमा बोला जाता है, न कि फेफड़ों का कैंसर।

कैंसर कोशिकाओं में अक्सर ऐसे लक्षण होते हैं जिनसे उनके बढ़ने की संभावना बढ़ती हैं। कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं की तुलना में अधिक तेज़ी से विभाजित हो सकती हैं या जब उन्हें विभाजन रोकना होता है, तब भी वे विभाजित होना बंद नहीं करती हैं. कुछ कैंसर कोशिकाएं नए जीन म्यूटेशन विकसित करना जारी रखती हैं जिससे वे तेजी से बढ़ सकती हैं. कैंसर कोशिकाएं के बढ़ने से उनकी बनी हुई गांठ आस-पास के खून की नसों और तंत्रिकाओं पर दबाव ङाल सकता है जिससे शरीर के कई अंग सही तरीके से काम करना बन्द कर सकते हैं। कैंसर कोशिकाएं स्वस्थ कोशिकाओं के काम में अड़चन डाल सकती है।

बच्चों को होने वाले कैंसर के मुख्य उपचारों में सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी, और लक्षित थेरेपी शामिल हैं. कैंसर के लिए कौनसा उपचार इस्तेमाल करना चाहिए या कौन से उपचारों का मेल करना चाहिए, यह कई बातों से तय होता है. इनमें शामिल है:

  • कैंसर का प्रकार जिसमें जीन में आई तब्दीली शामिल है
  • ट्यूमर कहां पर है
  • कैंसर पहली बार हुआ है या दोबारा हुआ है
  • ट्यूमर के आकार सहित कैंसर कौनसे चरण में है और क्या कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल गया है या नहीं
  • बच्चे की उम्र

थेरेपी में आ रहे सुधारों की वजह से बचपन में होने वाले कैंसर के बाद ज़िंदा रहने वालों की दर में बढ़ोतरी हुई है, जो अमेरिका में अब औसतन 80% या उससे ज़्यादा है. हालांकि, दूसरे कैंसर के मामलों में रोग का निदान न होने से हालत अब भी बेहतर नहीं हुए हैं. वैज्ञानिक कैंसर की आनुवंशिक वजहों और कैंसर कोशिकाओं के खास लक्षणों के बारे में ज़्यादा जानने की कोशिश में जुटे हैं. ये खोजें बच्चों को होने वाले कैंसर के निदान और उसके उपचार को बेहतर बनाएंगी.

वैज्ञानिकों ने ऐसा ब्लड टेस्ट विकसित किया है जिससे कैंसर का पता लगाया जा सकता है. यह पहला ऐसा ब्लड टेस्ट है जो कैंसर की जानकारी देने के साथ यह भी बताता है कि बीमारी शरीर में फैली है या नहीं. जानिए यह कैसे काम करता है...

शरीर में कैंसर का पता कैसे लगाएं? - shareer mein kainsar ka pata kaise lagaen?

इस ब्‍लड टेस्‍ट को इंग्‍लैंड की ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने विकसित किया है.

वैज्ञानिकों ने ऐसा ब्‍लड टेस्‍ट विकसित किया है जिससे कैंसर का पता लगाया जा सकता है. यह पहला ऐसा ब्‍लड टेस्‍ट है जो कैंसर की जानकारी देने के साथ यह भी बताता है कि बीमारी शरीर में फैली है या नहीं. वर्तमान में मरीजों में कैंसर की पुष्टि के लिए कई तरह के टेस्‍ट किए जाते हैं जैसे- कोलोनास्‍कोपी, मेमोग्राफी और पैप टेस्‍ट. नए टेस्‍ट की मदद से कैंसर की जांच और आसानी से की जा सकेगी. 

इस टेस्‍ट को विकसित करने वाली ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है, इस जांच से मरीजों में मेटास्‍टेटिक कैंसर का पता लगाया जा सकता है. यह वो बेहद गंभीर किस्‍म का कैंसर होता है जो पूरे शरीर में फैलता है. 

यह टेस्‍ट क्‍यों खास  है, यह कैसे काम करता है, मरीजों को इसका कैसे फायदा मिलेगा, जानिए इन सवालों के जवाब…

कैसे काम करता है नया ब्‍लड टेस्‍ट

ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मुताबिक, नया ब्‍लड टेस्‍ट कितना सफल है इसे समझने के लिए 300 मरीजों के सैम्‍पल लिए गए. इनमें से 94 फीसदी मरीजों में सफलतापूर्वक कैंसर का पता चला. इस टेस्‍ट में खास तरह की तकनीक का इस्‍तेमाल किया गया है जिसे NMR मेटाबोलोमिक्‍स कहते हैं. 

शोधकर्ता डॉ. जेम्‍स लार्किन कहते हैं, इंसान के शरीर में कई तरह के केमिकल बनते रहते हैं. इन्‍हें बायोमर्कर कहते हैं. इनकी जांच करके इंसान के शरीर के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है. नया ब्‍लड टेस्‍ट करके इंसान के ब्‍लड में ऐसे बायोमार्कर्स को पहचाना जाता है जो बताते हैं कि इंसान कैंसर से जूझ रहा है या नहीं. कैंसर होने पर शरीर में कुछ खास तरह के बायोमार्कर पाए जाते हैं, ब्‍लड टेस्‍ट के जरिए इन्‍हीं को पहचाना जाता है. 

मरीजों को कैसे राहत मिलेगी?

वर्तमान में मरीजों में कैंसर की पुष्टि के लिए कई तरह के टेस्‍ट करने पड़ते हैं, जो महंगे होते हैं. इसके साथ ही इन्‍हें कराने में समय भी लगता है. मरीजों के लिए नया ब्‍लड टेस्‍ट आसान विकल्‍प साबित होगा  क्‍योंकि ब्‍लड सैम्‍पल लेना आसान है. 

शोधकर्ताओं का कहना है, यह ब्‍लड टेस्‍ट उन मरीजों का भी किया जा सकता है जिसमें ऐसे नॉन-स्‍पेसिफ‍िक लक्षण दिखते हैं कि कहना मुश्किल होता है कि वो कैंसर से जूझ रहा है या नहीं. जैसे-  थकान रहना और तेजी से वजन का घटना. 

शोधकर्ता लार्किन कहते हैं, हमारा अगला टार्गेट है इसके लिए फंडिंग तैयार करना. इसके अलावा अगले क्‍लीनिकल ट्रायल के तहत  3 सालों में 2 से 3 हजार मरीजों का जांच की जाएगी. ये जांचें फंडिंग पर निर्भर हैं. इन ट्रायल के आधार पर ही हमें रेग्‍युलेटरी अथॉरिटी से अप्रूवल मिलेगा और इस टेस्‍ट से आम लोगों की जांच की जाएगी. अप्रूवल मिलने के बाद आम लोगों के लिए कैंसर की जांच कराना आसान हो सकेगा.

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कैंसर है या नहीं कैसे पता करें?

कैंसर के आम लक्षण हैं वजन में कमी, बुखार, भूख में कमी, हड्डियों में दर्द, खांसी या मूंह से खून आना. अगर किसी भी व्यक्ति को ये लक्षण दिखाई देते हैं, तो उसे तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

कैंसर के लिए कौन सा टेस्ट होता है?

वर्तमान में मरीजों में कैंसर की पुष्टि के लिए कई तरह के टेस्‍ट किए जाते हैं जैसे- कोलोनास्‍कोपी, मेमोग्राफी और पैप टेस्‍ट. नए टेस्‍ट की मदद से कैंसर की जांच और आसानी से की जा सकेगी.

कैंसर के 7 चेतावनी संकेत क्या हैं?

क्या आपके डॉक्टर ने आपके शरीर पर असामान्य या नए तिल, धक्कों, गांठों या निशानों को जांचा है। पीलिया (आंखों या उंगलियों का पीला पड़ना) एक ऐसा लक्षण है जो संभावित संक्रमण या कैंसर का संकेत दे सकता है। तिल में बदलाव भी चिंता का कारण हो सकता है। धब्बे जो खून बहते हैं और दूर नहीं जाते हैं, वे भी त्वचा कैंसर के लक्षण हैं।

कैसे जल्दी कैंसर का पता लगाने के लिए?

फिलहाल कैंसर का पता लगाने के लिए सिर्फ एक कन्फर्मेटिव टेस्ट है और वह सस्पेक्टेड ट्यूमर की बायॉप्सी। यह टेस्ट इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज अपने शरीर में किसी तरह का लक्षण या गांठ देखे जिसे डॉक्टर को दिखाने के बाद डॉक्टर उसे कैंसर के संकेत मानकर टेस्ट करवाने को कहें।