साये में धूप गजल संग्रह के रचनाकार कौन है? - saaye mein dhoop gajal sangrah ke rachanaakaar kaun hai?

साये में धूप -दुष्यन्त कुमार

साये में धूप गजल संग्रह के रचनाकार कौन है? - saaye mein dhoop gajal sangrah ke rachanaakaar kaun hai?

लेखक दुष्यंत कुमार
मूल शीर्षक साये में धूप
प्रकाशक राधाकृष्ण प्रकाशन, 7/31, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2008
ISBN 978-81-7119-794-1
देश भारत
पृष्ठ: 64
भाषा हिन्दी
विषय कविताएँ
विधा ग़ज़ल
टिप्पणी दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों में ग़रीबों के प्रति सहानुभूति साफ़ झलकती है। उनकी मज़बूरियों को वह अपनी ग़ज़लों में स्थान देते हैं।

साये में धूप दुष्यंत कुमार द्वारा रचित प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह है। यह उस दौर की रचना है, जब देश कुछ दशक पहले ही आज़ाद हुआ था, लेकिन राजनीति के प्रति निराशा समाज में और फिर साहित्य में साफ़ झलकने लगी थी। कुछ ऐसी ही भावना अज्ञेय जी के डायरी अंशों के संकलन 'कवि-मन' में भी देखने को मिली थी, लेकिन अज्ञेय जी वहाँ अधिक मुखर थे। हिन्दी के साहित्यकारों द्वारा स्वाधीनता संघर्ष में किए गये योगदान– कुछ ने उत्तेजक लेख और कवितायें लिखी थीं और कुछ साहित्यकार तो स्वयं जेल भी गये थे– को देखते हुए उनकी भारत सरकार से आशायें भी बहुत थीं, लेकिन सरकार के काम करने के तरीके और जनता के सरोकारों से कोई मतलब ना दिखाती हुई सरकारों का चित्र हमें ‘70 के दशक के साहित्य में दिखता है। ये भावना आगे आने वाले दशकों में बलवती ही गई।[1]

प्रमुख ग़ज़ल

'साये में धूप' की ग़ज़लें उसी दौर की उस हताशा का प्रतिनिधित्व करती हैं। कुछ प्रसिद्ध ग़ज़लें जैसे 'हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए', 'कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए' आपने अवश्य ही सुनी होंगी क्योंकि राजनितिक विश्लेषण करते हुए इन ग़ज़लों के माध्यम से नाकामियों को दर्शाया जाता है। दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों में ग़रीबों के प्रति सहानुभूति साफ़ झलकती है। उनकी मज़बूरियों को वह अपनी ग़ज़लों में स्थान देते हैं क्योंकि स्वतंत्रता के बाद सरकार से सबसे ज़्यादा किसी वर्ग को उम्मीद थी तो वह इन्हीं को थी। उदाहरण के लिए देखिए -

'ना हो कमीज़ तो पावों से पेट ढँक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए।'
'ये सारा ज़िस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सज़दे में नही था, आपको धोखा हुआ होगा।'
'चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पावों की
सोचो कितना बोझ उठाकर मैं इन राहों से गुज़रा।'

भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़

ऐसा नहीं है कि 'आम आदमी' की आवाज़ उस समय सिर्फ़ दुष्यंत कुमार जी ने ही उठाई थी। तमाम अन्य साहित्यकारों ने भी इसके लिए आवाज़ उठाई थी, लेकिन ज़्यादातर लोगों ने गद्य में– ज़्यादातर आलोचना या व्यंग– ही किया था। दुष्यंत कुमार इसे ग़ज़लों के रूप में लाकर एक अलग ही आवाज़ दे देते हैं। शासन व्यवस्था में फैली पंगुता और भ्रष्टाचार को उन्होंने इन शेरों के माध्यम से व्यक्त किया है-

'यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।'
'भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ,
आजकल दिल्ली में है ज़ेरे बहस ये मुद्दआ।'
'इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है
हर किसी का पाँव घुटने तक सना है।'

दुष्यंत कुमार ने सिर्फ़ जनता की छटपटाहट को ही स्थान दिया हो ऐसा नहीं है। कई ग़ज़लों में आशावादी स्वर रहे हैं। कुछ शेर देखिए-

'एक चिंगारी कहीं से ढूंढ़ लाओ दोस्तों,
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।'
'कैसे आकाश में सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों।'

दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों के कुछ और रुचिकर अंश यहाँ देखिए-

'मौत ने तो धर दबोचा एक चीते की तरह,
ज़िंदगी ने जब छुआ तब फासला रखकर छुआ।'
'सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।'
'मूरत सँवारने में बिगड़ती चली गई,
पहले से हो गया है ज़हाँ और भी खराब।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक समीक्षा : दुष्यंत कुमार द्वारा रचित 'साये में धूप' (हिंदी) www.yayawar.in। अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2017।

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साये में धूप / दुष्यंत कुमार

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साये में धूप

साये में धूप गजल संग्रह के रचनाकार कौन है? - saaye mein dhoop gajal sangrah ke rachanaakaar kaun hai?

रचनाकार दुष्यंत कुमार
प्रकाशक राधाकृष्ण प्रकाशन,7/31, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
वर्ष जनवरी ०१, २००८
भाषा हिन्दी
विषय कविताएँ
विधा ग़ज़ल
पृष्ठ 64
ISBNGet Barcode978-81-7119-794-1
विविध

इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।

  • भूमिका / साये में धूप / दुष्यंत कुमार
  • कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए / दुष्यंत कुमार
  • कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं / दुष्यंत कुमार
  • ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा / दुष्यंत कुमार
  • इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है / दुष्यंत कुमार
  • देख, दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली / दुष्यंत कुमार
  • खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही / दुष्यंत कुमार
  • परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं / दुष्यंत कुमार
  • अपाहिज व्यथा को वहन कर रहा हूँ / दुष्यंत कुमार
  • भूख है तो सब्र कर / दुष्यंत कुमार
  • ये रौशनी है हक़ीक़त में एक छल, लोगो / दुष्यंत कुमार
  • कहीं पे धूप / दुष्यंत कुमार
  • आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख / दुष्यंत कुमार
  • मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिए / दुष्यंत कुमार
  • पुराने पड़ गये डर, फेंक दो तुम भी / दुष्यंत कुमार
  • मत कहो, आकाश में कुहरा घना है / दुष्यंत कुमार
  • चांदनी छत पे चल रही होगी / दुष्यंत कुमार
  • इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और / दुष्यंत कुमार
  • हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए / दुष्यंत कुमार
  • आज सड़कों पर / दुष्यंत कुमार
  • मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे / दुष्यंत कुमार

साये में धूप गजल संग्रह किसकी रचना है?

हिंदी ग़ज़ल में सबसे लोकप्रिय है दुष्यंत कुमार की साये में धूप

साये में धूप दुष्यंत कुमार का कौन सा संग्रह है?

आपातकाल के समय उनका कविमन क्षुब्ध और आक्रोशित हो उठा जिसकी अभिव्यक्ति कुछ कालजयी ग़ज़लों के रूप में हुई, जो उनके ग़ज़ल संग्रह 'साये में धूप' का हिस्सा बनीं।

दुष्यंत कुमार की गजल का नाम क्या है?

दुष्यंत कुमार की 10 ग़ज़लें - बेचैनी, खुलापन, बेलौस मस्ती से भरी हुईं

साये में धूप शीर्षक ग़ज़ल का मूल प्रतिपाद्य क्या है?

दुष्यंत की इस गजल का मिजाज बदलाव के पक्ष में है। वह राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव चाहता है, तभी तो वह दरख्त के नीचे साये में भी धूप लगने की बात करता है और वहाँ से उम्र भर के लिए कहीं और चलने को कहता है। वह तो पत्थर दिल लोगों को पिघलाने में विश्वास रखता है। वह अपनी शर्तों पर जिंदा रहना चाहता है।