साये में धूप दुष्यंत कुमार द्वारा रचित प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह है। यह उस दौर की रचना है, जब देश कुछ दशक पहले ही आज़ाद हुआ था, लेकिन राजनीति के प्रति निराशा समाज में और फिर साहित्य में साफ़ झलकने लगी थी। कुछ ऐसी ही भावना अज्ञेय जी के डायरी अंशों के संकलन 'कवि-मन' में भी देखने को मिली थी, लेकिन अज्ञेय जी वहाँ अधिक मुखर थे। हिन्दी के साहित्यकारों द्वारा स्वाधीनता संघर्ष में किए गये योगदान– कुछ ने उत्तेजक लेख और कवितायें लिखी थीं और कुछ साहित्यकार तो स्वयं जेल भी गये थे– को देखते हुए उनकी भारत सरकार से आशायें भी बहुत थीं, लेकिन सरकार के काम करने के तरीके और जनता के सरोकारों से कोई मतलब ना दिखाती हुई सरकारों का चित्र हमें ‘70 के दशक के साहित्य में दिखता है। ये भावना आगे आने वाले दशकों में बलवती ही गई।[1] प्रमुख ग़ज़ल'साये में धूप' की ग़ज़लें उसी दौर की उस हताशा का प्रतिनिधित्व करती हैं। कुछ प्रसिद्ध ग़ज़लें जैसे 'हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए', 'कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए' आपने अवश्य ही सुनी होंगी क्योंकि राजनितिक विश्लेषण करते हुए इन ग़ज़लों के माध्यम से नाकामियों को दर्शाया जाता है। दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों में ग़रीबों के प्रति सहानुभूति साफ़ झलकती है। उनकी मज़बूरियों को वह अपनी ग़ज़लों में स्थान देते हैं क्योंकि स्वतंत्रता के बाद सरकार से सबसे ज़्यादा किसी वर्ग को उम्मीद थी तो वह इन्हीं को थी। उदाहरण के लिए देखिए -
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ऐसा नहीं है कि 'आम आदमी' की आवाज़ उस समय सिर्फ़ दुष्यंत कुमार जी ने ही उठाई थी। तमाम अन्य साहित्यकारों ने भी इसके लिए आवाज़ उठाई थी, लेकिन ज़्यादातर लोगों ने गद्य में– ज़्यादातर आलोचना या व्यंग– ही किया था। दुष्यंत कुमार इसे ग़ज़लों के रूप में लाकर एक अलग ही आवाज़ दे देते हैं। शासन व्यवस्था में फैली पंगुता और भ्रष्टाचार को उन्होंने इन शेरों के माध्यम से व्यक्त किया है-
दुष्यंत कुमार ने सिर्फ़ जनता की छटपटाहट को ही स्थान दिया हो ऐसा नहीं है। कई ग़ज़लों में आशावादी स्वर रहे हैं। कुछ शेर देखिए-
दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों के कुछ और रुचिकर अंश यहाँ देखिए- पन्ने की प्रगति अवस्था
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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साये में धूप गजल संग्रह किसकी रचना है?हिंदी ग़ज़ल में सबसे लोकप्रिय है दुष्यंत कुमार की साये में धूप
साये में धूप दुष्यंत कुमार का कौन सा संग्रह है?आपातकाल के समय उनका कविमन क्षुब्ध और आक्रोशित हो उठा जिसकी अभिव्यक्ति कुछ कालजयी ग़ज़लों के रूप में हुई, जो उनके ग़ज़ल संग्रह 'साये में धूप' का हिस्सा बनीं।
दुष्यंत कुमार की गजल का नाम क्या है?दुष्यंत कुमार की 10 ग़ज़लें - बेचैनी, खुलापन, बेलौस मस्ती से भरी हुईं
साये में धूप शीर्षक ग़ज़ल का मूल प्रतिपाद्य क्या है?दुष्यंत की इस गजल का मिजाज बदलाव के पक्ष में है। वह राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव चाहता है, तभी तो वह दरख्त के नीचे साये में भी धूप लगने की बात करता है और वहाँ से उम्र भर के लिए कहीं और चलने को कहता है। वह तो पत्थर दिल लोगों को पिघलाने में विश्वास रखता है। वह अपनी शर्तों पर जिंदा रहना चाहता है।
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