Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3 बस की यात्रा Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 8 Hindi Solutions Vasant Chapter 3 बस की यात्राRBSE Class 8 Hindi बस की यात्रा Textbook Questions and Answersकारण बताएँ - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. पाठ से आगे - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मौज-मस्ती करते-करते कब हम सबकी पलकें भारी हो गयीं और महुआ निकल गया इसका पता नहीं चला। भरतपुर के पास अचानक हमारी बस के आगे के एक पहिए का टायर पंचर हो गया। बस वहीं की वहीं रुक गई। वह स्थान एक सुनसान जंगल में था। अचानक दो लुटेरे बस में चढ़ आए। उन्होंने हम सबसे नगदी लूट ली और भाग गए। इससे हम सब डर गए। ड्राइवर ययर बदलता ही रह गया। टायर बदलते ही हम सब सोच में पड़ गए कि अब क्या किया जाए? तभी एक शिक्षक ने प्रधानाचार्यजी को फोन कर घटित घटना की जानकारी उन्हें दी। उन्होंने कहा बच्चों का उत्साह बनाए रखो और सीधा 'गोल्डन होटल' में जाकर ठहरो। सुबह तक हम स्वयं वहाँ आ रहे हैं। सुबह होतेहोते ही उन्होंने वहाँ पहुँचकर सबके चेहरों को मुस्कुराहट दे दी और हम सब नाश्ता करके ताजमहल देखने खुशी-खुशी से गए। ताजमहल देखने के बाद हम सबने आगरा के बाजारों का भी भ्रमण बस द्वारा किया और दोपहर का भोजन कर बस द्वारा घर के लिए रवाना हो गए। मन-बहलाना - प्रश्न 1. भाषा की बात - प्रश्न 1. 2. वश (अधीनता) के अर्थ में - 3. बस (पर्याप्त) के अर्थ में - प्रश्न 2.
कि योजक शब्द से बनाने वाले वाक्य -
प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. RBSE Class 8 Hindi बस की यात्रा Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. रिक्त स्थानों की पूर्ति - प्रश्न 11.
उत्तर : अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. लघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. निबन्धात्मक प्रश्न - प्रश्न 35. प्रश्न 36. गद्यांश पर आधारित प्रश्न - प्रश्न 37. प्रश्न : 2. बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीटों का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड़कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है। प्रश्न : 3. बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठे थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी। प्रश्न : 4. मैंने उस कम्पनी के स्सेिदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इस बस से सफर कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है। सोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेता होना चाहिए। अगर बस नाले में गिर पड़ती और हम मर जाते तो देवता बहिँ पसारे उसका इन्तजार करते। कहते"वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।" प्रश्न : 5. दूसरा घिसा टायर लगाकर बस फिर चली। अब हमने वक्त पर पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड दी थी। पन्ना कभी भी पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी। पन्ना क्या, कहीं भी, कभी भी पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी। लगता था, जिंदगी इसी बस में गुजारनी है और इससे सीधे उस लोक को प्रयाण कर जाना है। इस पृथ्वी पर उसकी कोई मंजिल नहीं है। हमारी बेताबी, तनाव खत्म हो गए। हम बड़े इत्मीनान से घर की तरह बैठ गए। चिंता जाती रही। हँसी-मजाक चालू हो गया। प्रश्न : बस की यात्रा Summary in Hindiपाठ का सार - 'बस की यात्रा' हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित एक व्यंग्यात्मक कहानी है। इसमें लेखक ने यह बताना चाहा है कि किस प्रकार पुरानी और खराब हालत की बसें सड़कों पर चलती हैं। उनके मालिक केवल धन कमाना चाहते हैं। यात्रियों के जान-माल की रक्षा को लेकर उन्हें कोई चिन्ता नहीं रहती है। एकाएक बस के रुक जाने का क्या कारण था?उत्तर : बस के एकाएक रुक जाने का कारण टंकी में छेद हो जाना था।
लेखक व उसके मित्र कहाँ जा रहे थे?लेखक व उसके मित्रों को जबलपुर जाना था। वे पन्ना किसी काम से आए थे। शाम को जाने वाली बस बड़ी ही जर्जर अवस्था में थी। वह कहीं भी चलते-चलते बंद हो सकती थी या दुर्घटना ग्रस्त हो सकती थी।
लेखक को कंपनी के हिस्सेदार के प्रति श्रद्धा का क्या कारण था?लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई? उत्तर:- लेखक के मन में बस कंपनी के हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा इसलिए जाग गई कि वह टायर की स्थिति से परिचित होने के बावजूद भी बस को चलाने का साहस जुटा रहा था। कंपनी का हिस्सेदार अपनी पुरानी बस की खूब तारीफ़ कर रहा था।
पुलिया के ऊपर पहुंचने के बाद क्या हुआ?पुलिया के ऊपर बस का टायर पंचर (फिस्स) हो गया। जिससे बस जोर से हिलकर रुक गई। अगर यह बस तेज गति से चल रही होती तो अवश्य ही उछलकर नाले में गिर जाती। ऐसे में लेखक ने कंपनी के हिस्सेदार की ओर श्रद्धाभाव से देखा।
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