विऔद्योगीकरण (Deindustrialization) का अर्थ है - किसी देश या क्षेत्र में औद्योगिक क्रियाकलापों का क्रमशः कम होना तथा उससे सम्बन्धित सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन। यह औद्योगीकरण की उलटी प्रक्रिया है। विऔद्योगीकरण में विशेषतः भारी उद्योगों या निर्माण उद्योगों (manufacturing industry) में कमी आती है। Show
विऔद्योगीकरण बाजार पर आधारित अर्थव्यवस्था की एक विशेष प्रक्रिया है। इसमें उत्पादन क्रमशः गिरता है, आर्थिक संकट को जन्म देता है और अन्ततः एक बिलकुल नयी अर्थव्यवस्था जन्म लेती है। विऔद्योगीकरण के बारे में निम्नलिखित बातें कही जा सकतीं है-
ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भारत का वि-औद्योगीकरण[संपादित करें]ब्रिटिश शासन के अंतर्गत भारत के हस्तशिल्प उद्योगों का पतन सामने आया जिसके परिणामस्वरूप कृषि पर जनसंख्या का बोझ बढ़ाता गया। ब्रिटिश शासन के अंतर्गत विऔद्योगीकरण को प्रेरित करने वाले निम्नलिखित घटक माने जाते हैं:
18वीं सदी में भारत में दो प्रकार के हस्तशिल्प उद्योग आस्तित्व में थे- ग्रामीण उद्योग और नगरीय हस्तशिल्प। भारत में ग्रामीण हस्तशिल्प उद्योग यजमानी व्यवस्था के अंतर्गत संगठित था। नगरीय हस्तशिल्प उद्योग अपेक्षाकृत अत्यधिक विकसित थे। इतना ही नहीं, पश्चिमी देशो में इन उत्पादों की अच्छी-खासी माँग थी। ब्रिटिश आर्थिक नीति ने दोनों प्रकार के उधोगों को प्रभावित किया। नगरीय हस्तशिल्प उद्योगों में सूती वस्त्र उद्योग अत्यधिक विकसित था। कृषि के बाद इसी क्षेत्र का स्थान था, किन्तु ब्रिटिश माल की प्रतिस्पर्धा तथा भेदभावपूर्ण ब्रिटिश नीति के कारण सूती वस्त्र उद्योग का पतन हो गया। अंग्रेजो के आने से पूर्व बंगाल में जूट के वस्त्र की बुनाई भी होती थी। लेकिन 1835 ई. के बाद बंगाल में जूट हस्तशिल्प की भी धक्का लगा। ब्रिटिश राज की स्थापना से पूर्व भारत में कागज उद्योग का भी प्रचलन था, किन्तु 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में चार्ल्स वुड की घोषणा से स्थिति में नाटकीय परिवर्तन आया। इस घोषणा के तहत स्पष्ट रूप से यह आदेश जारी किया गया था कि भारत में सभी प्रकार के सरकारी कामकाज के लिए कागज की खरीद ब्रिटेन से ही होगी। ऐसी स्थिति में भारत में कागज उद्योग को धक्का लगाना स्वाभाविक ही था। प्राचीन काल से ही भारत बेहतर किस्म के लोहे और इस्पात के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध था, किन्तु ब्रिटेन से लौहे उपकरणों के आयात के कारण यह उद्योग भी प्रभावित हुए बिना न रह सका। सन्दर्भ[संपादित करें]इन्हें भी देखें[संपादित करें]
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Economics Chapter 1 स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers. RBSE Class 11 Economics Solutions Chapter 1 स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्थाRBSE Class 11 Economics स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था InText Questions and Answersपृष्ठ - 9. प्रश्न 1.
पष्ठ-11 प्रश्न 2. RBSE Class 11 Economics स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्थाक Textbook Questions and Answersप्रश्न 1, प्रश्न 2. प्रश्न 3. उन्होंने ऊँचा लगान लेने के बावजूद कृषि क्षेत्र एवं कृषकों के विकास हेतु कुछ भी नहीं किया। जमींदार कृषकों से अधिक से अधिक लगान लेने का प्रयास करते थे। जमींदारों के इस व्यवहार हेतु ब्रिटिश शासकों की राजस्व व्यवस्था की यह शर्त जिम्मेदार थी कि पूर्व-निर्धारित तिथि एवं राजस्व की राशि समय पर जमा न करवाने पर ब्रिटिश शासन द्वारा जमींदारों के अधिकार छीन लिए जाते थे अतः वे कृषकों का अधिक से अधिक शोषण करते थे औपनिवेशिक काल में कृषि की गतिहीनता हेतु अन्य भ अनेक कारण जिम्मेदार थे जैसे प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर सिंचाई सुविधाओं का अभाव, उर्वरकों का बहुत कम प्रयोग करना आदि। इन सभी कारणों के फलस्वरूप औपनिवेशिक काल में भारतीय कृषि की उत्पादकता अत्यन्त कम थी जिसके कारण कृषकों की दुर्दशा और अधिक बढ़ गई थी प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. अंग्रेजों ने 1850 में भारत में रेलों का विकास प्रारम्भ किया। रेल मार्गों के विकास के पीछे अंग्रेजों का मुख्य उद्देश्य भारत के सभी भागों से कच्चा माल एकत्रित कर ब्रिटेन पहुंचाना तथा ब्रिटेन के निर्मित माल को देश के सभी भागों में पहुँचाना था। औपनिवेशिक व्यवस्था के अन्तर्गत आन्तरिक व्यापार तथा समुद्री जल-मार्गों का विकास किया किन्तु इसके पीछे भी अधिक आर्थिक लाभ कमाने का स्वार्थ था। अत: अंग्रेजों ने भारत आधारिक संरचना का विकास स्वयं के हितों को पूरा करने के लिए किया। प्रश्न 8. प्रश्न 9.
(स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण विभिन्न वर्षों के लिए वित्त: उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि विगत तीन दशकों में भारत में कृषि क्षेत्रक की संवृद्धि दर लगभग स्थिर ही रही है। वर्ष 1980 से 1991 के मध्य कृषि क्षेत्रक की संवृद्धि दर 3.6 प्रतिशत थी वह वर्ष 1992 से 2001 के मध्य घटकर 3.3 प्रतिशत के स्तर पर आ गई तथा दसवीं पंचवर्षीय योजना में यह घटकर 2.3 प्रतिशत के स्तर पर ही रह गई तथा ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007 - 12) में कृषि क्षेत्रक की वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत रही। 2014 - 15 में यह वृद्धि दर ऋणात्मक -0.2 प्रतिशत रही। भारत में विगत दशकों में उद्योग क्षेत्र की संवृद्धि दर में उच्चावचन रहा है। देश में 1980-91 के मध्य उद्योग क्षेत्र की संवृद्धि दर 7.1 प्रतिशत थी वह 1992 - 2001 में यह संवृद्धि दर घटकर 6.5 प्रतिशत रह गई तथा दसवीं योजना में यह बढ़कर 94 प्रतिशत हो गई, किन्तु ग्यारहवीं योजना (2007- 2012) में यह 74 प्रतिशत रही। वर्ष 2014 - 15 में यह वृद्धि दर 5.9 प्रतिशत रही। सेवा क्षेत्र में विगत वर्षों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। वर्ष 1980 से 1991 के मध्य सेवा क्षेत्र की संवृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही। यह वर्ष 1992 से 2001 के मध्य बढ़कर 8.2 प्रतिशत हो गई तथा दसवीं योजना में यह घटकर 7.8 प्रतिशत ही रह गई जो ग्यारहवीं योजना में 8.2 प्रतिशत हो गई तथा वर्ष 2014 - 15 में यह वृद्धि दर 10.3 प्रतिशत रही। भारत में विगत दशकों में सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दरों में भी वृद्धि हुई है। वर्ष 1980 से 1991 के मध्य भारत में सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर 5.6 प्रतिशत थी वह वर्ष 1992 से 2001 के मध्य बढ़कर 6.4 प्रतिशत हो गई तथा दसवीं पंचवर्षीय योजना में सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई जो ग्यारहवीं योजना अवधि (2007 - 2012) में 8.2 प्रतिशत रही तथा वर्ष 2014 - 15 में यह वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रही। प्रश्न 10. साथ ही इसका ध्येय सेवाओं के सृजन और व्यापार को प्रोत्साहन देना है, ताकि विश्व के संसाधनों का इष्टतम स्तर पर प्रयोग हो और पर्यावरण का भी संरक्षण हो सके। विश्व व्यापार संगठन की संधियों में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ाने हेतु इसमें वस्तुओं के साथसाथ सेवाओं के विनिमय को भी स्थान दिया गया है। ऐसा सभी सदस्य देशों के प्रशुल्क और अप्रशुल्क अवरोधकों को हटाकर तथा अपने बाजारों को सदस्य देशों के लिए खोलकर किया गया है। विश्व व्यापार संगठन के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य के रूप में भारत विकासशील विश्व के हितों का संरक्षण करते हुए न्यायपूर्ण विश्वस्तरीय व्यापार व्यवस्था के नियमों तथा सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं की रचना में सक्रिय भागीदार रहा है। भारत ने व्यापार के उदारीकरण की अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा है। इसके लिए भारत ने आयात पर से अपने परिमाणात्मक प्रतिबन्ध हट लिए हैं तथा प्रशुल्क की दरों को भी कम कर दिया है। कर इंग्लैण्ड भेजते थे तथा वहाँ के निर्मित माल को ऊँचे मूल्यों पर भारत को बेचते थे, जिससे प्राप्त लाभ को ब्रिटेन भेज देते थे। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने अपने कर्मचारियों के वेतन, ऋण के ब्याज, युद्ध का खर्चा आदि के रूप में भी भारतीय धन को इंग्लैण्ड भेजा। इसे ही भारतीय सम्पत्ति का निष्कासन कहा गया। प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13.
प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16.
स्वतंत्रता पूर्व भारत के व्यवस्थित वि औद्योगिकीकरण के पीछे अंग्रेजों के दोहरे ध्येय क्या थे?भारत के व्यवस्थित वि-औद्योगीकरण का दोहरा ध्येय इस प्रकार था
भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना। उन उद्योगों के उत्पादन के लिए भारत को एक विशाल बाजार बनाना।
पूर्व स्वतंत्र भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रभावित व्यवस्थित विऔद्योगीकरण के पीछे दो गुना मकसद क्या था?Expert-verified answer
पहला उद्देश्य यह था कि भारत को ब्रिटेन में विकसित हो रहे हैं आधुनिक उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण कच्चे माल के एक मात्र निर्यातक के रूप में बनाना चाहते थे । दूसरा उद्देश्य यह था कि, उन उद्योगों के तैयार उत्पादों के लिए भारत को एक विशाल बाजार में बदलना ताकि उनका निरंतर विस्तार हो सके।
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