In this article, we will share MP Board Class 12th Hindi Solutions Chapter 3 ठेस Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books. Show ठेस पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्नठेस लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. ठेस दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. ठेस भाव-विस्तार/पल्लवन प्रश्न 1. ठेस भाषा-अनुशीलन प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. दिए गए मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए – दुम हिलाना, मुँह लटकाना, कान पकड़ना, फूट-फूटकर रोना। उत्तर: ठेस योग्यता-विस्तार प्रश्न 1. वह विभिन्न आकार और रूप-रंग की साकार प्रतीत होने वाली प्रतिमाएँ बनाने की कला में कुशल है। इतना ही नहीं, वह घर की सजावट के लिए आकर्षक फूलदान, फूल, मुखौटे, जालियाँ भी बनाप्ता है। मटके और सुराहियाँ तो इतनी फैशनेबिल और रंगीन होती हैं कि खरीदने को मन ललचा उठता है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. ठेस परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नI. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर करें –
उत्तर:
III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए- (M.P. 2010-2011)
उत्तर:
IV. निम्नलिखित के सही नोड़े मिलाइए – प्रश्न 1. उत्तर: (i) (घ) V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –
उत्तर:
ठेस लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. ठेस दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. स्वाभिमानी; स्वादिष्ट भोजन का शौकीन: प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. ठेस लेखक-परिचय प्रश्न 1. साहित्यिक विशेषताएँ: लोकगीत, लोकसंस्कृति, लोकभाषा लोकनायक की इस अवधारणा ने भारी-भरकम चीज़ एवं नायक की जगह अंचल को ही नायक बना डाला। उनकी रचनाओं में अंचल कच्चे और अनगढ़ रूप में ही आता है इसलिए उनका यह अंचल एक त शस्य-श्यामल है तो दूसरी तरफ धूलभरा और मैला भी।.स्वातंत्र्योत्तर भारत में जब सारा चिकास शहर केंद्रित होता जा रहा था, ऐसे में रेणुजी ने अपनी रचनाओं से अंचल की समस्याओं की ओर भी लोगों का ध्यान खींचा। उनकी रचनाएँ इस अवधारणा को भी पुष्ट करती हैं कि भाषा की सार्थकता वोली के साहचर्य में ही है। रचनाएँ:
इनके नाम से ‘रेणु रचनावली’ भी पाँच भागों में प्रकाशित हो चुकी है जिसमें इनका सारा साहित्य समाहित किया गया है। भाषा-शैली: महत्त्व: ठेस का पाठ सारांश प्रश्न 2. बाबू लोग सिरचन की खुशामद किया करते थे। सिरचन उच्च कोटि का कारीगर था। वह मनोनुकूल भोजन पाकर लोगों को विभिन्न प्रकार की चीजें बनाकर दिया करता था। उसमें स्वाभिमान भी कूट-कूटकर भरा था। एक बार पंचानन चौधरी के लड़के को अपमानित करते हुए उसने कहा था- ‘तुम्हारी भाभी नाखून से खाँटकर तरकारी परोसती है और इमली का रस डालकर कढ़ी तो हम कहार-कुम्हारों की घरवाली बनाती हैं, तुम्हारी भाभी ने कहाँ सीखा?’ सिरचन अपनी कला में अत्यंत निपुण है। वह धीरे-धीरे कार्य करता परंतु कार्य करते समय वह अत्यंत तन्मय हो जाता है। वह एक-एक मोथी और पटरे को हाथ में लेकर बड़े जतन से उसकी कुच्ची बनाता। फिर कुच्चियों को रंगने से लेकर सुतली सुलझाने में पूरा दिन लगाता है। काम करते समय उसकी तन्मयता में जरा भी बाधा पड़ी तो वह गेहुँअन साँप की तरह फुफकार उठता है। सिरचन को गाँव में ‘चटोर माना जाता है। यदि व्यक्ति उसे काम पर बुलाना चाहता है तो उसे तली हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध आदि का प्रबंध पहले करना पड़ता है। सिरदन को यदि मनोनुकूल भोजन नहीं मिलता तो वह कोई-न-कोई बहाना बनाकर कार्य को अधूरा छोड़ देता है। सिरचन ‘मोथी घास और पटरे की रंगीन शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंग डोर के मोढ़े’ आदि बनाने में अत्यंत कुशल है। मानू की माँ ने सिरचन को चिक और शीतलपाटी बनाने के लिए कहा। सिरचन ने चिक बनाने का कार्य प्रारंभ किया। ‘रंगीन सुतलियों में झब्बे डालकर वह चिक बनने बैठा। डेढ के हाथ की बिनाई देखकर ही लोग समझ गए कि इस बार एकदम नए फैशन की चीज बन रही है, जो पहले कभी नहीं बनी। सिरचन में मानू के प्रति ममत्व की भावना है। सिरचन चिक बुनने में अपनी संपूर्ण क्षमता का प्रयोग कर रहा था। वह जब काम में लीन होता तो इसे खाने-पीने की सुधि नहीं रहती। वह चिक में सुतली के फंदे डाल रहा था कि उसकी दृष्टि पास पड़े सूप की ओर गई। सूप में चिउरा और गुड़ का एक सूखा ढेला पड़ा था। मानू की माँ को पता लगा तो उसने अपनी मँझली बहू को कहा कि उसने सिरचन को ‘बँदिया’ क्यों नहीं दी? मँझली बह ने क्रोध में मुट्ठी-भर ‘बुंदिया’ सूप में फेंकी और चली गई। सिरचन मँझली बहू के इस व्यवहार से. अपने को अपमानित महसूस किया। उसके लिए यह अपमान हो गया। उसने कहा- “मँझली बहूरानी अपने मैके से आई हुई मिठाई भी इसी तरह हाथ खोलकर बाँटती हैं क्या?” मँझली भाभी सिरचन की बात सुनकर रोने लगी। मानू की माँ ने सिरचन से कहा कि उसे बहुओं का अपमान करने का अधिकार नहीं है। सिरचन को बुरा लगा। मानू पान सजाकर बैठकखाने में भेज रही थी। उसने पान का एक बीड़ा सिरचन को देते हुए कहा कि उसे छोटी बातों पर नाराज नहीं होना चाहिए। सिरचन को मानू की चाची ने पान खाते देखा तो विस्मित हो गई। सिरचन चाची को अपनी ओर अचरज से घूरते देखकर कहा- ‘छोटी चाची, जरा अपनी डिबिया, का गमकौआ जर्दा तो खिलाना।’ छोटी चाची, जरा भड़क उठी। उसने सिरका को बुरी तरह से अपमानित किया। सिरचन कुछ क्षणों तक चुपचाप बैठा रहा फिर वह कार्य को अधूरा छोड़कर चला गया। मानू का मन व्यथा से भर उठा। अधूरी चिक के सातों तारे फीके पड़ गए। माँ ने उसे धैर्य बँधाते हुए कहा कि वह उसे मेले से चिक खरीदकर भेज देगी। मानू का भाई सिरचन को मनाने उसके घर गया तो वह एक फटी हुई शीतलपाटी पर लेटकर कुछ सोच रहा था। उसने काम करने के लिए इनकार करते हुए कहा-“बबुआ जी! अब नहीं। कान पकड़ता हूँ, अब नहीं। मोहर छाप वाली धोती लेकर क्या करूँगा? कौन पहनेगा? ससुरी खुद मेरे, बेटे-बेटियों को ले गई अपने साथ बबुआ जी, मेरी घरवाली जिन्दा रहती तो मैं ऐसी दुर्दशा भोगता? यह शीतलपाटी उसी की बुनी हुई है। इस शीतलपाटी को छूकर कहता हूँ, अब यह काम नहीं करूँगा।” गाँव-भर में केवल मानू की माँ का घर ही तो बचा था जहाँ उसे सम्मान मिलता था। लेकिन अब वहाँ भी उसका अपमान हो गया। अपमानित सिरचन ने चिक और शीतलपाटी बुनना स्वीकार नहीं किया। मानू का भाई जब उसे ससुराल पहुँचाने जा रहा था तो स्टेशन पर उसकी दृष्टि प्लेटफार्म पर दौड़ते सिरचन पर पड़ी। उसकी पीठ पर बोझ लदा था। उसने हकलाते हुए कहा कि वह मानू दीदी के लिए चिक, शीतलपाटी और एक जोड़ी कुश की आसनी लेकर आया है। मानू उसे दाम निकालकर देने लगी तो उसने इनकार कर दिया। मानू फूट-फूटकर रोने लगी। सिरचन ने चिक और शीतलपाटी को बुनने में अपनी कला का अद्भुत चमत्कार . प्रदर्शित किया था। ठेस संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या प्रश्न 1. आज सिरचन को मुफ्तखोर, कामचोर या चटोर कह ले कोई एक समय था, जब उसकी मडैया के पास बड़े-बड़े लोगों की सवारियाँ बँधी रहती थीं। उसे लोग पूछते ही नहीं थे, उसकी खुशामद भी करते थे-अरे, सिरचन भाई! अब तो तुम्हारे ही हाथ में यह कारीगरी रह गई है सारे इलाके में। एक दिन भी समय निकालकर चलो। कल बड़े भैया की चिट्ठी आई है शहर से-सिरचन से एक जोड़ा चिक बनवाकर भेज दो। (Page 10) शब्दार्थ:
प्रसंग: लेखक सिरचन को, मजदूरी के लिए न बुलाने के कारणों को स्पष्ट करता हुआ कहता है कि लोग समझते हैं कि उसे मजदूरी करने के लिए बुलाकर क्या होगा? अर्थात् उसे बुला भी लिया तो वह कुछ नहीं करेगा। जब तक दूसरे कृषि श्रमिक खेत पर पहुंचकर एक-तिहाई काम समाप्त कर चुके होंगे, तब कहीं सिरचन हाथ में खुरपी इधर-उधर हिलाता पगडंडी पर धीरे-धीरे जमा-जमा कर पैर रखते हुए आता दिखाई देगा। अर्थात् सिरचन खेत पर देर से पहुँचेगा और इसलिए ज्यादा काम नहीं कर पाएगा। यदि बिना काम करवाए ही मजदूरी देनी हो तो अलग बात है। दूसरे शब्दों में, सिरचन को खेती के काम के लिए बुलाना बेकार में मजदूरी देने के समान आज गाँव के लोग सिरचन को मुफ्त में खाने वाला, काम से जी चुराने वाला या चटोर भले ही कह लें, परंतु उसके जीवन में एक समय ऐसा भी था, जब उसकी झोंपड़ी के पास गाँव के बड़े-बड़े सेठ-साहूकार, जमींदार आदि लोगों की सवारियाँ बँधी रहती थीं। उसे लोग पूछते ही नहीं थे, अपितु उसकी चापलूसी भी करते थे और कहते थे कि अरे, सिरचन भाई! अब तो इस क्षेत्र में केवल तुम्हारे हाथों में ही यह हुनर रह गया है। एक दिन समय निकालकर हमारे साथ भी घर चलो। कल बड़े भाई साहब का शहर से पत्र आया है कि सिरचन से एक जोड़ा बाँस की तीलियों से बना पर्दा भिजवा दो। विशेष:
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) प्रश्न (iii) गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) प्रश्न (iii) प्रश्न 2. ‘किसी दिन’ माने कभी नहीं? मोथी घास और पटेर की रंगीन शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोरे के मोढ़े, भूसी-चुन्नी रखने के लिए मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलवाहों के लिए ताल के सूखे पत्रों की छतरी-टोपी तथा इसी तरह के बहुत काम हैं, जिन्हें सिरचन के सिवा गाँव में और कोई नहीं जानता। यह दूसरी बात है कि अब गाँव में ऐसे कामों को बेकाम का काम समझते हैं लोग-बेकाम का काम, किसकी मजदूरी में अनाज यो पैसा देने की कोई ज़रूरत नहीं। पेट-भर खिला दो, काम पूरा होने पर एकाध पुराना-धुराना कपड़ा देकर बिदा करो। (Page 11) शब्दार्थ:
प्रसंग: व्याख्या: यदि उसके खाने-पीने की चीज़ों में घी कम हुआ तो उसके काम में जो बारीकियाँ और सुंदरता होती हैं, वह सब समाप्त हो जाएँगी। अर्थात् वह मन लगाकर अच्छा काम नहीं करेगा। काम अपूर्ण छोड़कर उठ जाएगा और कहेगा, आज सरदर्द हो रहा है और दर्द के मारे माथा फटा जा रहा है। थोड़ा-सा काम अधूरा रह गया है। किसी दिन आकर पूरा कर दूंगा। उसके ‘किसी दिन’ कहने का अर्थ होता है, वह काम कभी पूरा नहीं होगा। उसका ‘किसी.दिन’ कभी नहीं आता। अधूरा काम, अधूरा ही पड़ा रहेगा। सिरचन गाँव का एक कुशल कारीगर हैरिसे मोथी घास पर पटेर की रंगीन शीतलपाटी, बाँस की बारीक तीलियों का रंगीन झिलमिलाता पर्दा, सात रंग के डोरे (मोटे धागे) से मोढ़े बनाना, भूसी और चुन्नी रखने के लिए मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाल, हल चलाने वालों के लिए ताल के सूखे पत्तों से छतरी-टोपी बनाना आदि इस प्रकार के बहुत-से काम आते हैं। इन कामों को सिरचन के अतिरिक्त पूरे गाँव में कोई नहीं जानता। यह अलग बात है कि अब इन कामों को गाँव के लोगों का मानना है कि इस प्रकार के काम करवाने के लिए पेट भर खिला दो और काम पूरा होने पर फटे-पुराने कपड़े देकर बिदा कर दो, इतना ही पर्याप्त है। विशेष:
गद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) प्रश्न (iii) गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) प्रश्न 3. प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) प्रश्न (iii) गद्यांश पर आधारित बोधात्मक संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) प्रश्न (iii) प्रश्न
4. शब्दार्थ:
प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii)
प्रश्न (iii) गद्यांश पर आधारित बोधात्मक संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) प्रश्न (iii) प्रश्न 5. प्रसंग: व्याख्या: यह शीलतपाटी उसके प्रेम की अंतिम निशानी है। मैं इसी शीतलपाटी की शपथ लेकर कहता हूँ कि मुझसे अब लोगों की गुलामी नहीं की जाएगी। अब भविष्य में ये सब बुनने का काम नहीं करूँगा। तुम्हारी हवेली में ही मेरी कारीगरी का सम्मान होता था। मैं तुम्हारी हवेली में ही स्वयं को सम्मानित समझता था। परंतु अब उसी हवेली में अपमानित हुआ हूँ। अब तुम्हारा यहाँ आना . व्यर्थ है क्योंकि अब मैं यह काम नहीं करूंगा। विशेष:
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) प्रश्न (iii) गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर प्रश्न (i) प्रश्न (ii) आपके विचार से सिरचन का महत्त्व कम क्यों हो गया सिरचन चिक और शीतलपाटी स्टेशन पर ले जाकर मानू?उत्तर: सिरचन के द्वारा स्टेशन पर मानू को विदाई के समय शीतलपाटी, चिक आदि उपहार देना ही उचित था। यदि वह घर पर जाता उपहार देने तो कहानी में सिरचन के आत्मीय गुण में कमी आ जाती । फिर उसे तो गाँव वालों से ठेस लग चुका था ।
गांव के किसान सिरचन को क्या समझते हैं?खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मज़दूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को।
सिरचन कौन है?सिरचन अपने इलाके का एक निपुण कारीगर है। उसके जैसी मोथी घास और पटेर की शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोरे के मोढ़े, मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी कोई नहीं बना सकता। वह एक प्रतिभाशाली कलाकार है। सिरचन एक स्वाभिमानी कलाकार है।
बच्चों की दुआ कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?यह पाठ मो. इकबाल की रचना है। इस नज्म में बच्चे भगवान से प्रार्थना करते हैं कि -हे मेरे अल्लाह/ईश्वर मुझे बुराई से बचाना तथा जो नेक राह हो उसी राह पर चलाने की कृपा करना ।
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