संकट आपन वन्य जंतु कौन-कौन से हैं - sankat aapan vany jantu kaun-kaun se hain

उत्तर : प्रकृति की संरचना के अनुकूल प्रत्येक जीव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से परस्पर एक–दूसरे पर आश्रित है। ये अपने निश्चित पारिस्थितिक तंत्र में एक संतुलित जीवन जीते हैं। जब कभी यह संतुलित अवस्था बिगड़ती है, तो इन वन्य जीवों के लिए संकट उत्पन्न होता है, जिसमें विशेष रूप से मानवीय भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है । वन्य जीव स्वयं संतुलित रहने के साथ ही विश्व पर्यावरण को भी संतुलित रखते हैं । वन्य जीवों का अस्तित्व पेड़–पौधों पर भी निर्भर करता है। वर्तमान समय में 300 वर्ष पुराने मात्र 13 वृक्ष बचे हैं। शोध से पता चला है कि प्रति दस में से एक पार्थिव प्रजाति विलुप्त होने की स्थिति में हैं। 1890 में स्थापित भारतीय जंतु सर्वेक्षण विभाग, कोलकाता ने भारत में पायी जाने वाली लगभग 81000 जंतु जातियों के लिए देश के लगभग 90% से अधिक भाग का सर्वेक्षण प्राप्त कर लिया है, जिसे भारत के प्राणी जात का प्रकाशन 6 खंडों में किया जा रहा है। राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय नई दिल्ली के अनुसार 83 प्रजातियाँ स्तनधारियों की, 113 प्रजातियाँ पक्षियों की,21 प्रजातियाँ सरीसृपों की, 3 प्रजातियाँ उभयचरों की तथा 23 प्रजातियाँ मछलियों की लुप्त प्राय हैं। भारत में संकटग्रस्त जंतुओं की सूची लाल आंकड़ों की पुस्तक में प्रकाशित की जाती है।

भारत में संकटग्रस्त वन्य जीव

1. शेर

2. चीता

3. बाघ

4. सफेद तेंदुआ

5. गैंडा

6. स्लोलोरिस

7. जंगली भैंसा

8. गंगीय डालफिन

9. लाल पांडा

10. मालाबार सिवेट

11. कस्तूरी हिरन

12. संगाई हिरन

13. बारहसिंगा

14. कश्मीरी हिरन

15. सिंह पूंछ बंदर

16. नीलगिरी लंगूर

17. लघुपूंछ बंदर

18. बबून

19. गुनोन

20. चिम्पैंजी

21. औरंग

22. ऊथन

23. वनमानुष

24. कछुआ

25. पैगोलिन

26. सुनहरी सुअर

27. जंगली गधा

28. पिगमी सुअर

29. चित्तिदार लिनसैग

30. सुनहरी बिल्ली

31. भूरी बिल्ली

32. डूडोंग

33. सोन चिड़िया

34. जर्डेन घोड़ा

35. पहाड़ी बटेर

36. गुलाबी सिर बत्तख

37. श्वेतपूछ बत्तख

38. टेंगोपान

39. मगरमच्छ

40. घड़ियाल

41. जलीय छिपकली

42. अजगर

43. भूरा बारहसिंगा

44. छोटा बारहसिंगा

45. चौसिंग हिरण

46. दलदली हिरन

47. मास्क हिरन

48. नीलगिरी हिरन

प्रकृति संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ ने लाल आंकड़ा पुस्तक में विश्व के संकटग्रस्त जंतुओं की सूची दी है, जिसमें 400 पक्षियों, 305 स्तनधारी जंतुओं, 193 प्रकार की मछलियों, 138 उभयचरों और सरीसृपों की जातियों एवं उपजातियों के लुप्त होने की संभावना व्यक्त की गई है, इनके अनुसार 25000 पौधों की जातियाँ भी संकट में हैं। लाल आंकड़ा पुस्तक में प्रकाशित भारत में संकटग्रस्त जंतुओं की सूची में दी गई है। इस प्रकार भारत में मछलियों की 343 प्रजातियाँ, उभयचरों की 50 प्रजाजियाँ, सरीसृपों की 170 प्रजातियाँ, बिना रीढ़ वाले जंतुओं की, पक्षियों की 1037 प्रजातियाँ तथा स्तनधारियों की 497 प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं ।

वन्य जीव संरक्षण में प्रमुख चुनौती जानवरों का अवैध शिकार और इनके उत्पादों का गैर कानूनी व्यापार है । वन्य जीव संगठनों का वर्तमान बुनियादी ढाँचा इसे रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है । वन्य जीव उत्पादों के चोरी–छुपे व्यापार को कारगर तरीके से रोकने के लिए विश्व के 170 से ज्यादा देशों ने वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्त प्रायः प्रजातियों के व्यापार संबंधी अंतर्राष्ट्रीय करार पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें भारत सक्रिय रूप से शामिल है। जब कभी वन्य जीव उत्पादों के अवैध व्यापार के मामलों की जाँच की आवश्यकता महसूस की जाती है, तभी इस संस्था की सहायता ली जाती है । वन्य जीवों के लिए संकट उत्पन्न होने में जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण तथा शहरीकरण भी प्रमुख कारणं हैं। इस प्रकार वन्य जीवों के संरक्षण के लिए निम्न उपाय लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं–

(1) वन्य जीवों से संबंधित सभी सूचनाएं एकत्रित कर उन पर निगरानी रखें।

(2) वन्य जीवों के आश्रय स्थल के रूप में स्थित वन क्षेत्रों के विनाश को रोकना।

(3) अनुकूल पर्यावरणीय दशाओं वाले आवास स्थल विकसित करना ।

(4) प्राकृतिक आपदाओं एवं पर्यावरणीय प्रदूषणों से वन्य जीवों की रक्षा करना।

(5) वन्य जीवों के शिकार को प्रतिबंधित करना।

(6) वन्य जीवों की विशिष्ट प्रजाति के आधार पर अभयारण्यों की स्थापना की जाये, जैसा कि भारत में बाघ परियोजना, हाथी परियोजना, गैंडा परियोजना आदि के तहत संचालित है। इन क्षेत्रों को पर्यटन स्थलों के रूप में भी विकसित किया जाना चाहिए।

(7) विलुप्ति के कगार पर स्थित प्रजातियों के संरक्षण की विशिष्ट व्यवस्था की जानी चाहिए।

(8) वन्य जीवों के संरक्षण से संबंधित कानूनी प्रावधानों को कड़ाई से लागू किया जाये।

(9) वन्य जीवों के उचित प्रबंधन हेतु जन चेतना फैलाना आवश्यक है।

वन्य जीवों के वृहद् आवासीय स्थल जीवमंडल में जंतु एवं पेड़–पौधे परस्पर एक–दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबद्ध हैं तथा किसी एक में भी असंतुलन उत्पन्न होने से संपूर्ण जीवमंडलीय पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित होता है। अतः वन्य जीवों के संरक्षण से संबंधित सभी पहलुओं का अध्ययन करना अनिवार्य है। भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून वन्य जीव प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान करने के साथ–साथ उपयुक्त प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार करके वन्य जीव संरक्षण की नवीनतम विधियों को क्षेत्रीय प्रबंधकों तक पहुँचाने की दोहरी जिम्मेदारी निभा रहा है। इस प्रकार वन्य जीवों से संबंधित तथ्यों का अध्ययन करके संरक्षण किया जाना चाहिए ताकि भारत की जैव विविधता अपने वास्तविक संतुलन में बनी रहे। सन् 1890 में स्थापित भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण संस्थान,कोलकाता, वानस्पतिक संसाधनों का तथा यहाँ स्थित 1916 में स्थापित भारतीय प्राणी वैज्ञानिक सर्वेक्षण संस्थान देश की जैवविविधता (क्रमश: वनस्पति तथा जीवजंतुओं) से संबंधित सूचनाओं का संग्रहण करते हैं।

संकटा पन्ने जंतु कौन है?

एक प्रजाति जिसे जंगली में विलुप्त होने के बहुत उच्च जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। कभी एशियाई गैंडों में सबसे व्यापक, जावन गैंडों को अब गंभीर रूप से संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

संकटग्रस्त प्रजातियों से क्या समझते हैं?

Solution : संकटग्रस्त जातियाँ-वे जातियाँ हैं, जिनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो वे निकट भविष्य में समाप्त हो जायेंगी। जैसे-गैण्डा, गोडावन आदि।

जंगल में कौन कौन से जीव जंतु पाए जाते हैं?

सिंह, बाघ, हाथी, सियार, लोमड़ी, सूअर, लकडबग्घा, जिराफ, खरगोश, हिरण, बारहसिंघा, चीतल घोड़े कुछ प्रमुख वन्य जीव हैं

भारत में कितने प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं?

भारत में लगभग 1,250 पक्षियों की प्रजातियाँ हैं, जिनमें कुछ वर्गीकरण व्यवहार के आधार पर विविधताएँ हैं, यह विश्व की कुल प्रजातियों का लगभग 12% है। भारत में स्तनधारियों की लगभग 410 प्रजातियाँ ज्ञात हैं, जोकि विश्व की प्रजातियों का लगभग 8.86% है।

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