सबसे ज्यादा आयु का प्रधानमंत्री कौन बना? - sabase jyaada aayu ka pradhaanamantree kaun bana?

सना मारिन 34 साल की उम्र में दुनिया की सबसे युवा प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं. वो फ़िनलैंड में महिलाओं के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की प्रमुख होंगी.

परिवहन मंत्री रहीं सना को प्रधानमंत्री एंटी रिना के इस्तीफ़े के बाद सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए चुना है. इस सप्ताह वो शपथ ले सकती हैं.

वो पांच पार्टियों के मध्य-वामपंथी गठबंधन का नेतृत्व कर रही हैं. इन सभी पार्टियों की अध्यक्ष महिलाएं हैं.

देश में डाक हड़ताल से निपटने के मामले पर एंटी रिना ने गठबंधन का विश्वास खो दिया था और उन्हें पद छोड़ना पड़ा था.

सना मारिन जब अपना पदभार संभालेंगी तब वो दुनिया की सबसे युवा प्रधानमंत्री होंगी. अभी न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न की आयु 39 वर्ष और वहीं यूक्रेन के शीर्ष नेता ओलेक्सी होंचरुक की उम्र 35 वर्ष है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सैना मारिन का पालन-पोषण 'रैनबो फ़ैमिली' (एक प्रकार का हिप्पी समूह) में हुआ. वो किराए के एक अपार्टमेंट में अपनी मां और उनकी महिला पार्टनर के साथ रहती थीं.

उन्होंने फ़िनिश भाषा में मेनाएसेत भाषा में 2015 में कहा था कि बचपन में वो ख़ुद को 'अदृश्य' महसूस करती थीं क्योंकि वो अपने परिवार के बारे में खुले तौर पर बोलने से कतराती थीं.

लेकिन उन्होंने कहा था कि उनकी मां हमेशा उनका समर्थन करती रहीं और उन्होंने भरोसा दिलाया कि वो जो चाहें कर सकती हैं.

अपने परिवार की वो पहली शख़्स थीं जो विश्वविद्यालय तक गईं.

सोशल डेमोक्रेट्स में सना मारिन बहुत तेज़ी से उभरीं और उन्होंने 27 साल की उम्र में टेम्परे शहर के प्रशासन का नेतृत्व किया और 2015 में वो सांसद बनीं.

जून तक वो परिवहन और संचार मंत्री थीं और उनकी 22 महीने की एक बेटी है.

ऐसी कम ही संभावना है कि सना मारिन नीतियों में कोई बड़ा बदलाव करेंगी क्योंकि उनके दफ़्तर संभालने के दौरान गठबंधन एक कार्यक्रम पर सहमत हुआ है.

हालांकि, मारिन ने गठबंधन के नेतृत्व के चुनाव को क़रीबी हाशिए से जीतने के बाद कहा था कि उनका कार्यकाल हमेशा की तरह नहीं होगा.

उन्होंने पत्रकारों से कहा, "विश्वास बहाली के लिए हमारे पास बहुत काम है."

उन्होंने अपनी उम्र पर किए गए सवालों पर कहा कि उन्होंने कभी भी अपनी उम्र और लिंग के बारे में नहीं सोचा.

स्कैंडिवेनाई देश में सना मारिन तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं. अप्रैल में हुए चुनाव में सोशल डेमोक्रेट्स सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और इसी कारण गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री इसी पार्टी से होगा.

पार्टी ने 32 वर्षीय कातरी कुलमुनी का नाम वित्त मंत्री के लिए तय किया है. गठबंधन की पांच में से चार महिला नेता 35 वर्ष से कम आयु की हैं.

यूरोपीय संघ का अध्यक्ष पद इस समय फ़िनलैंड के पास है और ऐसी उम्मीद है कि ब्रसेल्स में 12 दिसंबर को यूरोपीय संघ सम्मेलन से पहले सांसद नई सरकार पर अपनी मुहर लगाएंगे.

मोरारजी देसाई (29 फ़रवरी 1896 – 10 अप्रैल 1995) (गुजराती: મોરારજી રણછોડજી દેસાઈ) भारत के स्वाधीनता सेनानी, राजनेता और देश के चौथे प्रधानमंत्री (सन् 1977 से 79) थे।[1] वह प्रथम प्रधानमंत्री थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बजाय अन्य दल से थे। वही एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया था।

वह 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे। इसके पूर्व कई बार उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की परंतु असफल रहे। लेकिन ऐसा नहीं हैं कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के क़ाबिल नहीं थे। वस्तुत: वह दुर्भाग्यशाली रहे कि वरिष्ठतम नेता होने के बावज़ूद उन्हें पंडित नेहरू और लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। मोरारजी देसाई मार्च 1977 में देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।

मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर (सौराष्ट्र) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे, अत: उन्होंने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हुई थी।

मोरारजी देसाई की शिक्षा-दीक्षा मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई जो उस समय काफ़ी महंगा और खर्चीला माना जाता था। मुंबई में मोरारजी देसाई नि:शुल्क आवास गृह में रहे जो गोकुलदास तेजपाल के नाम से प्रसिद्ध था। एक समय में वहाँ 40 शिक्षार्थी रह सकते थे। विद्यार्थी जीवन में मोरारजी देसाई औसत बुद्धि के विवेकशील छात्र थे। इन्हें कॉलेज की वाद-विवाद टीम का सचिव भी बनाया गया था लेकिन स्वयं मोरारजी ने मुश्किल से ही किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया होगा। मोरारजी देसाई ने अपने कॉलेज जीवन में ही महात्मा गाँधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेसी नेताओं के संभाषणों को सुना था।

मोरारजी देसाई ने मुंबई प्रोविंशल सिविल सर्विस हेतु आवेदन करने का मन बनाया जहाँ सरकार द्वारा सीधी भर्ती की जाती थी। जुलाई 1917 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में प्रविष्टि पाई। यहाँ इन्हें ब्रिटिश व्यक्तियों की भाँति समान अधिकार एवं सुविधाएं प्राप्त होती रहीं। यहाँ रहते हुए मोरारजी अफ़सर बन गए। मई 1918 में वह परिवीक्षा पर बतौर उप ज़िलाधीश अहमदाबाद पहुंचे। उन्होंने चेटफ़ील्ड नामक ब्रिटिश कलेक्टर (ज़िलाधीश) के अंतर्गत कार्य किया। मोरारजी 11 वर्षों तक अपने रूखे स्वभाव के कारण विशेष उन्नति नहीं प्राप्त कर सके और कलेक्टर के निजी सहायक पद तह ही पहुँचे।

मोरारजी देसाई ने 1930 में ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही बन गए। 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बन गए। उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित की और सरदार पटेल के निर्देश पर उसके अध्यक्ष बन गए। 1932 में मोरारजी को 2 वर्ष की जेल भुगतनी पड़ी। मोरारजी 1937 तक गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे। इसके बाद वह बंबई राज्य के कांग्रेस मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुए। इस दौरान यह माना जाता रहा कि मोरारजी देसाई के व्यक्तितत्त्व में जटिलताएं हैं। वह स्वयं अपनी बात को ऊपर रखते हैं और सही मानते हैं। इस कारण लोग इन्हें व्यंग्य से 'सर्वोच्च नेता' कहा करते थे। मोरारजी को ऐसा कहा जाना पसंद भी आता था। गुजरात के समाचार पत्रों में प्राय: उनके इस व्यक्तित्व को लेकर व्यंग्य भी प्रकाशित होते थे। कार्टूनों में इनके चित्र एक लंबी छड़ी के साथ होते थे जिसमें इन्हें गाँधी टोपी भी पहने हुए दिखाया जाता था। इसमें व्यंग्य यह होता था कि गाँधीजी के व्यक्तित्व से प्रभावित लेकिन अपनी बात पर अड़े रहने वाले एक ज़िद्दी व्यक्ति।

स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के कारण मोरारजी देसाई के कई वर्ष ज़ेलों में ही गुज़रे। देश की आज़ादी के समय राष्ट्रीय राजनीति में इनका नाम वज़नदार हो चुका था। लेकिन मोरारजी की प्राथमिक रुचि राज्य की राजनीति में ही थी। यही कारण है कि 1952 में इन्हें बंबई का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस समय तक गुजरात तथा महाराष्ट्र बंबई प्रोविंस के नाम से जाने जाते थे और दोनों राज्यों का पृथक गठन नहीं हुआ था। 1967 में इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन वह इस बात को लेकर कुंठित थे कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता होने पर भी उनके बजाय इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। यही कारण है कि इंदिरा गाँधी द्वारा किए जाने वाले क्रांतिकारी उपायों में मोरारजी निरंतर बाधा डालते रहे। दरअसल जिस समय श्री कामराज ने सिंडीकेट की सलाह पर इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की घोषणा की थी तब मोरारजी भी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल थे। जब वह किसी भी तरह नहीं माने तो पार्टी ने इस मुद्दे पर चुनाव कराया और इंदिरा गाँधी ने भारी मतांतर से बाज़ी मार ली। इंदिरा गाँधी ने मोरारजी के अहं की तुष्टि के लिए इन्हें उप प्रधानमंत्री का पद दिया।

अमेरिकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर के साथ मोरारजी देसाई (१९७८ में जिम्मी कार्टर के भारत आगमन पर)

पण्डित जवाहर लाल नेहरू के समय कांग्रेस में जो अनुशासन था, वह उनकी मृत्यु के बाद बिखरने लगा। कई सदस्य स्वयं को पार्टी से बड़ा समझते थे। मोरारजी देसाई भी उनमें से एक थे। श्री लालबहादुर शास्त्री ने कांग्रेस पार्टी के वफ़ादार सिपाही की भाँति कार्य किया था। उन्होंने पार्टी से कभी भी किसी पद की मांग नहीं की थी। लेकिन इस मामले में मोरारजी देसाई अपवाद में रहे। कांग्रेस संगठन के साथ उनके मतभेद जगज़ाहिर थे और देश का प्रधानमंत्री बनना इनकी प्राथमिकताओं में शामिल था। इंदिरा गांधी ने जब यह समझ लिया कि मोरारजी देसाई उनके लिए कठिनाइयाँ पैदा कर रहे हैं तो उन्होंने मोरारजी के पर कतरना आरम्भ कर दिया। इस कारण उनका क्षुब्ध होना स्वाभाविक था। नवम्बर 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन कांग्रेस-आर और कांग्रेस-ओ के रूप में हुआ तो मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी की कांग्रेस-आई के बजाए सिंडीकेट के कांग्रेस-ओ में चले गए। फिर 1975 में वह जनता पार्टी में शामिल हो गए। मार्च 1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया। परन्तु यहाँ पर भी प्रधानमंत्री पद के दो अन्य दावेदार उपस्थित थे-चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम। लेकिन जयप्रकाश नारायण जो स्वयं कभी कांग्रेसी हुआ करते थे, उन्होंने किंग मेकर की अपनी स्थिति का लाभ उठाते हुए मोरारजी देसाई का समर्थन किया।

इसके बाद 23 मार्च 1977 को 81 वर्ष की अवस्था में मोरारजी देसाई ने भारतीय प्रधानमंत्री का दायित्व ग्रहण किया। इनके प्रधानमंत्रित्व के आरम्भिक काल में, देश के जिन नौ राज्यों में कांग्रेस का शासन था, वहाँ की सरकारों को भंग कर दिया गया और राज्यों में नए चुनाव कराये जाने की घोषणा भी करा दी गई। यह अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक कार्य था। जनता पार्टी, इंदिरा गांधी और उनकी समर्थित कांग्रेस का देश से सफ़ाया करने को कृतसंकल्प नज़र आई। लेकिन इस कृत्य को बुद्धिजीवियों द्वारा सराहना प्राप्त नहीं हुई।

भारत में सबसे अधिक उम्र के प्रधानमंत्री कौन थे?

(सबसे कम उम्र से लेकर सबसे कम उम्र तक) जीवित प्रधान मंत्री की सूची:.
मनमोहन सिंह (2004–2014) जन्म: २६ सितम्बर १९३२ (उम्र:90 वर्ष, 58 दिन).
ऍच॰ डी॰ देवगौड़ा (1996–1997) जन्म: १८ मई १९३३ (उम्र:89 वर्ष, 189 दिन).
नरेन्द्र मोदी (2014–उपस्थित) जन्म: १७ सितम्बर १९५० (उम्र:72 वर्ष, 67 दिन).

भारत का प्रधानमंत्री कितनी उम्र तक रह सकता है?

प्रधानमन्त्री, आम तौर पर लोकसभा में बहुमत-धारी राजनैतिक दल का नेता होता है। उसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा होती है। इस पद पर किसी प्रकार की समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है परंतु एक व्यक्ति इस पद पर केवल तब तक रह सकता है जब तक लोकसभा में बहुमत उसके पक्ष में हो।

81 वर्ष की आयु में भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले व्यक्ति कौन थे?

इसके बाद 23 मार्च 1977 को 81 वर्ष की अवस्था में मोरारजी देसाई ने भारतीय प्रधानमंत्री का दायित्व ग्रहण किया।

भारत के पहले प्रधान कौन थे?

भारत के पहले प्रधानमन्त्री, जवाहरलाल नेहरू थे, जिन्होंने १५ अगस्त १९४७ में, भारत के स्वाधीनता समारोह के साथ, अपने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।