Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 पद्य खण्ड Chapter 1 रैदास के पद Text Book Questions and Answers, Summary, Notes. Show Bihar Board Class 9 Hindi रैदास के पद Text Book Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. दूसरी कविता में कवि निर्गुण भक्ति की श्रेष्ठता एवं सगुण भक्ति और कर्मकांड की निरर्थकता की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करते हैं। बाहरी फल-फूल, जल ये अशुद्ध एवं बेकार चीजें हैं। रैदास जी मन ही मन में ईश्वर भक्ति में रत रहना चाहते हैं। उनका ईश्वर निराकार एवं सहज स्वरूप वाला है। कहीं कोई दिखावटीपन नहीं, राग-भोग की जरूरत नहीं। केवल मनसा-वाचा-कर्मणा निर्मल भक्तिभाव में वे विश्वास करते हैं। प्रश्न 6. इन पंक्तियों के द्वारा ईश्वर महिमा एवं भक्ति की महत्ता को दर्शाया गया है। जिस प्रकार चंदन के पेड़ से लिपटे हुए विषधर उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते दोनों को साथ-साथ रहने में कोई खतरा नहीं है, इसके पीछे प्रकृति या ईश्वर की ही कृपा है। ठीक उसी प्रकार, रैदास जैसे विष युक्त मनुष्य का भी बिन ईश्वर भक्ति के मुक्ति संभव नहीं। प्रश्न 7. (ख) प्रस्तुत पंक्तियों में महाकवि रैदास ने स्वयं को प्रभु के चरणों में रखकर तुलना करते हुए भक्ति भाव को प्रकट करते हैं। कवि कहता है कि हे प्रभो! जैसे चकोर चंद्रमा को अपलक निहारता रहता है ठीक वही हाल मेरा है। मैं भी चकोर की भाँति अपलक आपकी छवि, मन ही मन निरखता हूँ यानि नाम रट करते रहता हूँ। यानि मेरी भक्ति भी चकोर की अपलक सदृश है यानि अभंग है। (ग) प्रस्तुत पंक्तियों में महाकवि रैदास ने ईश्वर भक्ति की महिमा का गान करते हुए तुलनात्मक चित्रण किया है। कवि कहता है कि जिस प्रकार गाय के थन में मुँह लगाकर बछरु दूध पीता है और थन को जूठा कर देता है फिर भी उसमें शुद्धता है, निर्मलता है। क्योंकि गाय और बछड़े का संबंध आत्मीय संबंध है। राग-द्वेष एवं विवाद रहित संबंध है। माँ-बेटे का संबंध है। ठीक उसी प्रकार भगवान और भक्त का भी संबंध अटूट, पवित्र और राग-द्वेष रहित, विकार रहित रहता है। भक्त भगवान के लिए बछड़े के समान है यानि पुत्र की भाँति है। उसकी अशुद्धता, अज्ञानता या भूलों का ख्याल नहीं किया जाता क्योंकि वह समर्पण भाव से भक्ति रस में डूबा रहता है। इस प्रकार रविदास जी ने भक्त की दैन्यता, सहजता, आत्मनिवेदन, हृदय की निर्मलता के आधार पर सिद्ध करना चाहा है कि ईश्वर भक्ति में लीन भक्त की भूलें क्षम्य है। भक्त के लिए भगवान एवं भगवान के लिए भक्त दोनों की अनिवार्यता महत्वपूर्ण है। प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न
12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. आप ही मेरे सर्वस्व हैं। आपके सिवा मेरा दूसरा कोई सहारा नहीं, कोई अपना नहीं। संत प्रकृति के होने के कारण कवि में कहीं भी घमंड की बू नहीं आती। विवेक और विचार से परिपूर्ण होकर ही कवि ने ईश्वर भक्ति का गुणगान किया है। तब फिर सवाल ही नहीं उठता है-कहीं भी धृष्टता, अशिष्टता दिखाई दे। यही कारण है कि अपने विवेक विचार, कर्म से कवि का संत हृदय निश्छल, निर्मल, निष्कलुष है। कहीं भी दर्प नहीं है। इसी कारण भगवान-भक्ति में क्षमा-याचना के साथ अपने को दीन-हीन रूप में उपस्थित कर प्रभु की महिमा का गुणगान करते हुए शुद्ध भक्ति में लीन रहता है। नीचे लिखे पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें। 1.
अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी। (ख) कवि को भगवान के रूप में ही श्रीराम के नाम की रट लगी है। कवि के मन में श्रीराम के प्रति अपूर्व निष्ठा, श्रद्धा और भक्ति जमी हुई है। अतः, राम नाम की यह रट चाहकर भी छूट नहीं पाती है। यह कवि-मन में उमड़ी बड़ी गहरी रामभक्ति है। यह भक्ति स्थूल तथा छिछली न होकर कवि के मन और हृदय में डूबी गहरी और सूक्ष्म भक्ति-भावना है। (ग) कवि इस कथन के माध्यम से अपने आराध्य भगवान श्रीराम की श्रेष्ठता और विशेषता का वर्णन कर उनके साथ अपने जुड़े संबंध का परिचय देता है। कवि इस संदर्भ में श्रीराम की तुलना चंदन से और अपनी तुलना सामान्य जल से करता है। चंदन में सुगंधि का विरल गुण और विशेषता होती है। उसका संपर्क पाकर जल भी सुगंधमय हो जाता है। कवि यहाँ यह बताना चाहता है कि प्रभु की भक्ति के संसर्ग से कवि का मन पवित्र और भक्ति की सुगंध से सुवासित होकर धन्यातिधन्य हो गया है। वह दोषरहित और निर्मल हो गया है। (घ) इस पंक्ति में कवि अपने आराध्य भगवान श्रीराम की तुलना घन और चंद्रमा से तथा अपनी तुलना मोर और चकोर पक्षियों से करता है और ईश्वर से स्थापित अपने शाश्वत संबंध का परिचय देता है। उसका इस संदर्भ में कथन है कि भगवान और उसके बीच वही गहरा संबंध है, जो संबंध आकाश में उमड़ी घटा और मोर तथा चंद्रमा और चकोर में है। मोर को घटा से तथा चकोर को चंद्रमा से जो आह्लाद, प्रसन्नता और जीवन-शक्ति मिलती है, कवि को वही शक्ति सहज रूप से भगवान की भक्ति से प्राप्त होती है। (ङ) ‘ऐसी भक्ति करै रैदास’ कथन के माध्यम से कवि अपनी दास्य-भक्ति का परिचय देता है। यहाँ कवि ने यह उल्लेख किया है कि उसके आराध्य भगवान श्रीराम उनके लिए स्वामी हैं, मालिक हैं और वह उनका सहज विनीत और विनम्र दास है। एक अच्छे दास के रूप में वह अपने स्वामी रूप भगवान की सेवा और । भक्ति इसी दास-भावना से करता है। यहीं उसके जीवन की सहज सार्थकता है। 2. राम मैं पूजा कहाँ चढ़ाऊँ। फल अरु मूल अनूप न पाऊँ। (ख) भक् कवि रैदास की.नजर में भगवान की भक्ति के लिए फल-फूल-मूल आदि साधन अनूप और अनूठे नहीं है। इसका कारण यह है कि ये सभी साधन सहज रूप से पवित्र-निर्मल और उपयुक्त नहीं हैं। वे सभी जूठे-गैंदले और अपवित्र हैं। (ग) कवि के अनुसार दूध को गाय का बछड़ा जूठा करता है, फूल को भौंरा गंदा करता है और जल की निर्मलता को जल में विचरण करनेवाली मछली बर्बाद करती है। दूध दुहने के समय बछड़ा पहले स्तनपान कर दूध को जूठा कर देता है। भौंरा फूलों से चिपके रहने के कारण फूलों के सौंदर्य को विनष्ट कर देता है और मछली दिन-रात जल में रहकर जल की पवित्रता को विनष्ट कर देती है। (घ) यहाँ कवि के इस कथन का अभिप्राय यही है कि जहाँ चंदन के वृक्ष या पौधे रहते हैं, वहीं उसमें लिपटे बड़े-बड़े सर्प भी रहते हैं। इस रूप में इस दुनिया में अमृत चंदन के रूप में और विष सर्प के रूप में साथ-साथ मिलते हैं। अमृत यहाँ विष से अछता नहीं मिलता। (ङ) ‘मन ही पूजा मन ही धूप’ कथन से कवि का यह अभिप्राय है कि ईश्वर की अर्चना और पूजा के बाह्य साधन-धूप, दीप, जल, फूल, कंद-मूल आदि सभी निरर्थक और बेकार हैं। ईश्वर की सही और सच्ची पूजा तो मन के तल पर की जानी चाहिए। पूजा के बाह्य कर्मकांड ढोंग-ढकोसला तथा अंधविश्वास के प्रतीक होते हैं। कवि ईश्वर की सच्ची पूजा मन के ही तल पर करता है। वह ईश्वर के सच्चे स्वरूप का दर्शन पूजा-स्थलों में न कर मन के तल पर ही करता है। (च) ‘पूजा अरचा न जानूँ तेरी।’-कवि का यह कथन उसकी विनम्रता के भाव का प्रतीक है। वह बाह्य आडंबर के रूप में अपनी ईश्वर-भक्ति को प्रकट कर दुनिया को दिखाना नहीं चाहता और दुनिया की नजहरों में अपने आपको एक बड़े । भक्त के रूप में प्रकट करना नहीं चाहता। वह तो मन के तल पर एक मूक साधक के रूप में अपनी भक्ति साधना में रत रहकर भगवान की भक्ति मे तल्लीन है। एक सगुण भक्त, अर्थात् एक बुनियादी भक्त के रूप में वह भगवान की अर्चना और पूजा करना नहीं जानता है। वह तो मन-ही-मन ईश्वर की पूजा करता और मन के तल पर ही ईश्वर के सहज निर्मल स्वरूप का निर्माण कर अपनी चेतना का उसपर अर्पण करता है। उसकी भक्ति की यही एकमात्र गति है और कोई दूसरी गति नहीं। कवि रैदास ने किन किन संतों का उल्लेख किया है और क्यों?कवि रैदास ने किन-किन संतों का उल्लेख अपने काव्य में किया है और क्यों? कवि रैदास ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन का उल्लेख अपने काव्य में किया है। इसके उल्लेख के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि उसके प्रभु गरीबों के उद्धारक हैं। उन्होंने गरीबों और कमज़ोर लोगों पर कृपा करके समाज में ऊँचा स्थान दिलाया है।
दास के प्रभु में वे कौन सी विशेषताएँ हैं जो उन्हें अन्य देवताओं से श्रेष्ठ सिद्ध करती हैं?रैदास के प्रभु में वे कौन-सी विशेषताएँ हैं जो उन्हें अन्य देवताओं से श्रेष्ठ सिद्ध करती हैं? उत्तरः (i) वे केवल झूठी प्रशंसा या स्तुति नहीं चाहते। (ii) वे जाति प्रथा या छुआछुत को महत्व नहीं देते। वे समदर्शी हैं।
कवि रैदास के कौन कौन से नाम प्रचलित है?रैदास के चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित हैं। अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी । प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग- अँग बास समानी । प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा ।
रैदास के पदों की विशेषताएँ क्या हैं?रैदास की भक्ति भावना दास्य भाव की है। रैदास ने ईश्वर की तुलना चंदन से की है। और स्वयं की पानी से। क्योंकि चंदन में पानी को मिलाने से ही पानी का प्रत्येक कण सुगंधित हो उठता है।
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