संदर्भ एवं पृष्ठभूमि संविधान के अनुच्छेद 280(1) के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या पहले उस समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझते हैं, एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा। 14 वित्त आयोग बन चुके हैं अब तक (टीम दृष्टि इनपुट) 14वाँ वित्त आयोग रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. वाई.वी. रेड्डी के अध्यक्षता वाले 14वें वित्त आयोग को 1 अप्रैल, 2015 से शुरू होने वाले पाँच वर्षों की अवधि को कवर करने वाली सिफारिशें देने के लिये 2 जनवरी, 2013 को गठित किया गया था। 14वें वित्त आयोग ने 15 दिसंबर, 2014 को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के लिये वैध हैं। क्यों पड़ी वित्त आयोग की आवश्यकता?
15वें वित्त आयोग की संरचना
वित्त आयोग के सदस्यों हेतु अर्हताएँ संसद द्वारा वित्त आयोग के सदस्यों की अर्हताएँ निर्धारित करने हेतु वित्त आयोग (प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम,1951 पारित किया गया है। इसका अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जो सार्वजनिक तथा लोक मामलों का जानकार हो। अन्य चार सदस्यों में उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की अर्हता हो या उन्हें प्रशासन व वित्तीय मामलों का या अर्थशास्त्र का विशिष्ट ज्ञान हो। वित्त आयोग के कार्य दायित्व
विस्तृत है 15वें वित्त आयोग का दायरा 15वें वित्त आयोग को विस्तृत दायरे में कार्य सौंपा गया है, जिसका उसे उचित समाधान करना होगा। आयोग अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, सभी राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों, पंचायतों और प्रत्येक राज्य की राजनीतिक पार्टियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर नियमित विचार-विमर्श करेगा। रिज़र्व बैंक से लिया जा सकता है सहयोग आयोग सभी विचारार्थ विषयों के समाधान का विश्लेषण करने के लिये देश के शोध संस्थानों की सहायता लेगा। जैसे कि रिज़र्व बैंक के पास संपूर्ण वित्तीय सहायता से जुड़े मामलों के आँकड़े और तकनीकी विशेषताएँ हैं। रिज़र्व बैंक का राज्य वित्त प्रभाग काफी लंबे समय से उभरते हुए वित्तीय परिदृश्य और राज्य की वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी देने का समृद्ध भंडार रहा है। ऐसे में आयोग को रिज़र्व बैंक के विश्लेषणात्मक और क्षेत्र संबंधी जानकारी से इन विशेष क्षेत्रों में काफी लाभ मिल सकेगा। इसके अलावा, विश्लेषणात्मक पत्रों को तैयार करने और कुछ जटिल मुद्दों का विश्लेषण करने में भी वित्त आयोग की मदद रिज़र्व बैंक कर सकता है, जिसकी आयोग को अपने कार्यों को निपटाने में ज़रूरत पड़ सकती है। परामर्शक सलाहकार परिषद का गठन हाल ही में 15वें वित्त आयोग ने अरविंद विरमानी की अध्यक्षता में 6 सदस्यों वाली सलाहकार परिषद का गठन किया है, जो आयोग को परामर्श देने के साथ-साथ आवश्यक सहायता भी प्रदान करेगी। सुरजीत एस. भल्ला, संजीव गुप्ता, पिनाकी चक्रबर्ती, साजिद चिनॉय और नीलकंठ मिश्रा इसके सदस्य हैं। सलाहकार परिषद की भूमिका और कामकाज आयोग के विचारार्थ विषयों से संबंधित विषय अथवा किसी ऐसे मसले पर आयोग को परामर्श देना जो प्रासंगिक हो सकता है।
(टीम दृष्टि इनपुट) 15वें वित्त आयोग के नियमों और शर्तों को लेकर विवाद 15वें वित्त आयोग के गठन के बाद से ही कुछ राज्यों द्वारा इनको 'सहकारी संघवाद' की अवधारणा पर कुठाराघात के रूप में लेते हुए उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के बीच जानबूझकर किए गए भेदभाव के रूप में मानते हुए इस मामले में गंभीर आपत्तियाँ जताई जा रही हैं।
आगे की राह
राज्यों में वित्त आयोग के कार्य
निष्कर्ष: केंद्र सरकार द्वारा हर पाँच साल पर वित्त आयोग का गठन किया जाता है, ताकि केंद्र व राज्यों के बीच और एक राज्य से दूसरे राज्यों के बीच राजस्व के बँटवारे का तरीका तय किया जा सके। देश में राजस्व सामूहिक रूप से इकट्ठा किया जाता है और फिर उसके बँटवारे का एक फॉर्मूला तय होता है। राजस्व के बँटवारे का तरीका और शर्तों को तय करते समय वित्त आयोग किसी भी राज्य के राजस्व प्रदर्शन के अलावा कई अन्य मानदंडों पर भी गौर करता है और उसी के बाद राजस्व का बँटवारा होता है। इसके लिये वित्त आयोग अक्सर राज्य की आबादी और उसकी आय के फासले को ध्यान में रखता है। इससे राजस्व बँटवारे का पैमाना अधिक गरीबी पर आकर ठहर जाता है। 15वें वित्त आयोग द्वारा 2011 की जनगणना को ध्यान में रखते हुए राज्यों के बीच संसाधनों का आवंटन किये जाने की अनुशंसा की गई है। देखा जाए तो नवीनतम जनगणना के आँकड़ों का प्रयोग किया जाना उचित प्रतीत होता है, किंतु इससे उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के मध्य विवाद का एक सबसे गंभीर मुद्दा उभर रहा है। जनगणना आधार के बदलाव के कारण सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसमें उन दक्षिणी राज्यों को नुकसान होने की ज़्यादा संभावना है, जो दशकों से अपनी आबादी को नियंत्रित करने के लिये बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके यहाँ कम जनसंख्या वृद्धि स्वाभाविक रूप से ‘कम प्रजनन दर’ से जुड़ी हुई है, जो बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और विकास का एक परिणाम है। ऐसे में उन्हें विकास संबंधी कार्यों में उनकी सफलता के कारण निधि आवंटन में नुकसान उठाना पड़ सकता है जिसे दंड की तरह माना जा रहा है। यही कारण है कि मुख्यतः दक्षिणी राज्य 15वें वित्त आयोग के नियमों तथा शर्तों पर गंभीर आपत्ति जता रहे हैं। राजस्थान वित्त आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है?मौजूदा गहलोत सरकार ने दो साल पांच माह बाद वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की है।
राजस्थान राज्य वित्त आयोग का गठन कब किया गया?प्रथम राज्य वित्त आयोग का गठन 23 अप्रैल 1994 को श्री के. के. गोयल की अध्यक्षता में तीन अन्य सदस्यों के साथ सदस्य सचिव के तहत किया गया था। 7 मई 1999 को श्री हीरा लाल देवपुरा की अध्यक्षता में सदस्य सचिव सहित तीन अन्य सदस्यों के साथ दूसरे राज्य वित्त आयोग का गठन किया गया था।
वर्तमान में भारत के वित्त आयोग के अध्यक्ष कौन हैं?वित्त आयोग. भारत के पहले वित्त आयोग के अध्यक्ष कौन हैं?प्रथम वित्त आयोग की स्थापना वर्ष 1951 में हुई थी और के. सी. नियोगी इसके अध्यक्ष थे।
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