Show पहेलियों को छत्तीसगढ़ी में जनउला कहते है, जिसके जरिये मानव ( मनखे ) बुद्धि की तार्किकता की परीक्षा ली जाती है। ऐसे ही कुछ जनऊला निम्न है। 1) उचकी घोड़ा म पुचकि लगाम ,उहूम बइठय ससुर दमांद। 2) बीच तरिया में टेड़गी रूख। 3) फूल-फूले रिंगी-चिंगी, फर फरे लमडेरा 4) पानी के तीर-तीर चर बोकरा, पानी अँटागे मर बोकरा। 5) अँउर न मँउर, बिन फोकला के चउँर। 6) नानचून टूरा, कूद-कूद के पार बाँधे। 7) ओमनाथ के बारी म, सोमनाथ के काँटा, एक फूल फूले, त पचीस पेंड़ भाँटा। 8) तरी बटलोही उपर डंडा, नइ जानही तेला परही डंडा। 9) एकझन कहे संझातिस झन, दूसर कहे पहातिस झन। 10) एकठन थारी में दु ठन अंडा, एक गरम एक ठंडा। 11) पूछी में पानी पियय, मूँड़ी ललीयाय। 12) जरकुल ददा, निरासा दाई, फूलमत बहिनी, फोदेला भाई। 13) करिया बईला बैठे हे, लाल बईला भागत हे। 14) दुरूग के डोकरी, पाछु डाहर मोटरी। 15) पीठ कुबरा पेट चिरहा, नई जानही तेकर चाल किरहा। 16) छितका कुरिया में बाघ गुर्रावय। 17) एक झन फकीर जेखर पेट म लकीर। 18) काँटे मा कटाय नहीं, भोंगे मा भोंगाय नहीं। 19) उपर पचरी नीचे पचरी, बीच में मोंगरी मछरी। 20) कारी गाय कलिन्दर खाय, दुहते जाय पनहाते जाय। 21) तीन गोड़ के टेटका मेरेर-मेरेर नरियाय, पाछू डाहर खुँदे त आगू डाहर हड़बड़ाय। 22) नानकुन टूरा, गोटानी असन पेट, कहाँ जाथस टूरा, रतनपुर देश। 23) दिखे में लाल लाल, छिये में गूज-गूज, हा दाई चाबदिस दाई बड़ेेक जन बूबू। 24) तरिया पार में फट-फीट, तेकर गुदा बड़ मिठ। 25) एक सींग के बोकरा मेरेर-मेरेर नरीयाय, मुहु डाहन चारा चरे, पाछु डाहन पघुराय। 26) सुलुँग सपेटा फुनगी में गाँठ, नई जानही तेकर नाक लकाँट। 27) ठुड़गा रूख म बुड़गा नाचे। 28) नानकुन मटुकदास, ओहना पहिनय सौ पचास। 29) आय लूलू जाय लूलू, पानी ल डर्राय लूलू। 30) पानी के भीतर काँस के लोटा 31) तनक से फुदकी फुदकत जाय, 32) अइठे गोइठे पार म बइठे। 33)सुक्खा तरिया म कोकड़ा फड़फड़ाय। 34) बीच तरिया म,गोबर चोता। 35) फरय न फुलय सूपा सूपा टूटय। 36) अरी अउ सरी, लुगरा कस धरि ,पांजर म फूल फुलय, माथा म फरी। 37) नांनकन लईका दु कौरा खाय बोडरी ल दबाबे त रस्ता दिखाय । 38) फाँदे के बेर एक ठन, ढीले के बेर दू ठन। 39) नाक बइठ के कान धर, मारय कोने शान । 40) हरियर भाजी, साग में न भात में, खाय बर सुवाद में। 41) एक जानवर असली, हड्डी न पसली - जोंक 42) कत्था सुपारी बंगला पान, नारी पुरुष के बाइस कान 43) हरियर लाटा, लाल पराठा किसी भी प्रदेश की लोकोक्तियां उस प्रदेश के लोक जीवन को समझने में सहायता करती है। वहां के लोग क्या सोचते हैं, किस चीज को महत्व देते हैं, किसे नकारते हैं, ये सब वहां के ""हाना'' प्रकट करती हैं। छत्तीसगढ़ में खेत को लेकर न जाने कितने ही हाना प्रचलित हैं - १. खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय।
२. खेती धान के नास, जब खेले गोसइयां तास
३. खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना।
४. बरसा पानी बहे न पावे , तब खेती के मजा देखावे
५. आषाढ़ करै गांव - गौतरी , कातिक खेलय जुआं।पास-परोसी पूछै लागिन, धान कतका लुआ।
६. तीन पईत खेती , दू पईत गाय।
७. अपन हाथ मां नागर धरे , वो हर जग मां खेती करे।
८. कलजुग के लइका करै कछैरी, बुढ़वा जोतै नागर -
९. भाठा के खेती , अड़ चेथी के मार
१०. जैसन बोही , तैसन लूही
११. तेल फूल में लइका बढे , पानी से बाढे धानखान पान में सगा कुटुम्ब , कर वैना बढे किसान
१२. तेली के बइला ला खरिखा के साथ,
१३. गेहूं मां बोय राई , जात मां करे सगाई।
१४. बोड़ी के बइल, घरजिया दमादमरै चाहे बाचै, जोते से काम।
१५. रेंसिग नइ रेंसिग भेड़ फोरत। मर-मर मरै बदवा, बांधे खाये तुरंग।
१६. डार के चूके बेंदरा अऊ, असाढ़ के चूके किसान
१७. बोवै कुसियार , त रहे हुसियार
१८. पूख न बइए , कूट के खइए
१९. एक धाव जब बरसे स्वाति , कुरमिन पहिरे सोने के पाती
२०. धान-पान अऊ खीरा , ये तीनों पानी के कीरा
२१. झन मार फुट-फुट , चार चरिहा धान कुटा
२२. जौन गरजये , तौन बरसे नहिं।
२३. संझा के झरी , बिहनियां के झगरा
२४. राम बिन दुख कोन हरे , बरखा बिन सागर कौन भरे
२५. पानी मां बस के , मगर ले बैर
२६. पानी गये पार बाधंत है।
२७. पानी पीए छान के , गुरु बनावै जान के
२८. आगू के भैंसा पानी पाए , पिछू के चिखला
२९. जियत पिता मां दंगी दंगा , मरे पिता पहुंचावै गंगा
३०. नदिया नहाय त सम्भुक पाय , तरिया नहाय त आधाकुआ नहाय त कुछ न पाय , कुरिया नहाय त ब्याधाकरने से कुछ नहीं मिलेगा। धर में स्नान करने से तो बीमारी हो जो जाएगी। ३१. धर कथे आ-आ , नदिया कथे जा-जा
३२. दहरा के मछरी अब्बर मोठ।
३३. लुवाठी में तरिया , कुनकुन नई होय।
३४. महानदी के महिमा, सिनाथ के झोल। अरपा के बारु अऊ खारुन के सोर।
३५. पहार हर दूरिहा , ले सुग्धर दिखथे।
३६. राई के परवत, अउ परवत के राई। एदे बूता कौन करे, डौकी के भाई।।
३७. बहारी लगाय, आमा के साध नइ भरइ।
३८. रुहा बेंदरा बर पीपर अनमोल।
३९. का हरदी के जगमग, का टेसू के फूल। का बदरी के छइहां, अऊ परदेसी के संग।।
४०. हाथ न हथियार, कामा काटे कुसियार।
४१. तेंदू के अंगरा , बरे के न बुताय के
४२. केरा कस पान हालत है।
४३. तुलसी मां मुतही , तउन किराबे करही।
४४. मंगल छूरा, बिरस्पत तेल , बंस बुड़े जे काटे बेल।
४५. एक जंगल मां दू ठिन बाध नइ रहैं
४६. बाबा घर मां , लईकोरी बन मां।
४७. हपटे बने के पथरा , फोरे घर के सीला।और पर उतार रहा है। ४८. हंडिया के एक ठन सित्था हट् मरे जाथे।
४९. केरा, केकेकरा, बीछी बांज, ए मन के जनमे ले नास।
५०. चलनी मां गाय दुहै करम ला दोस दे।
५१. जिहां गुर तिहां चाटी।
५२. ठिनिन-ठिनिन घंटी बाजै, सालिक राम के थापना। मालपुवा झलका के, मसक दिए अपना।।
५३. कब बबा मरही त कब बरा खावो।
५४. थूंके थूंक मां लडुवा बांधे।
५५. छत्तीसगढ़ के खेड़ा, मथुरा का पेड़ा
५६. फोकट के चिवड़ा, भरि-भरि खाये गला।
५७. बड़े बाप के बेटी धीव बिन खिचरी न खाय, संगत पड़े भोलानाथ के कंडा बिनत दिन जाय।
५८. अपन बेटडा लेड़वे नीक गेहुं के रोटी टेड़गे नीक।
५९. बिन रोए दाई दूध नई पियावै।
६०. ररुहा ला भाते भात।
६१. थोर खाये बहुत डेकारे।
६२. आप रुप भोजन पर रुप सिंगार।
६३. तोर गारी मोर कार के बारी।
६४. चार ठन बर्तन रइथे तिहां ठिक्की लगावे करथे।
६५. जेखर जइसे दाई ददा तेखर तइसे लइका। जेखर जैसे धर दुवार। तेखर तइसे फरिका।
६६. पाप ह छान्ही मां चढ़के नाचथे।
६७. खाय तौन ओंठ चबाय नई खाय तौन जीभ चाटय।
६८. भागे मछरी जांध असन मोंठा
६९. यहां घर उहाँ घर, पाँव पर विदा कर।
७०. अंधरी बर दई सहाय
७१. अंधरा खोजै दू आंखी।
७२. खाके मूत सूते बाऊँ काहे बैद बसावै गाऊँ।
७३. रोग बढ़े भोग ले
७४. बिहनियां उठि जे रोज नाहयओला देखि बैद पछताय।
७५. बासी पानी जे पिये ते नित हर्रा खाय। मोटी दतुअन जे करे ते धर बैद न जाय।
७६. जेवन बिगड़ गे तौन दिन बिगड़े गे।
७७. महतारी के परसे, अऊ मधा के बरसे।
७८. दाई के मन गाय असन बेटा कसाई।
७९. महतारी के पेट, कुम्हार के आवा।
८०. दाई के कमरछड़ अउ डऊकी के तीजा।
८१. दाई मेरे घिरा बर घिया मरे पिया बर।
८२. दाई देखे ठऊरी डऊकी देखे मोटरी।
८३. बिआवत दुख बिहावत दुख।
८४. घर देख बहुरिया निखारे।
८५. घर द्वार तोर बहुरिया देहरी मां पांव इन देहा।
८६. सास न ननदा घर मां अनन्दा।
८७. जेखर घर डौकी सियान तेखर मरे बिहान।
८८. रांड़ी के कुकरी राजा के हाथी दुनों एक बरोबर।
८९. सऊत के बने मउत।
९०. मरे सौत सताये काठ के ननद बिजराये।
९१. माटी के भूत डरवाथे काठ के सौत बिजराथे।
९२. बर न बहाव छट्टी बर धान कुटाय।
९३. बड़ पूत बाप के छोटे हवे दाई के मंझला बिआई के
९४. गुरु गोसइयां एके च आय।
९५. राखही राम त लेगेही कौन लेगेही राम त राखही कोन।
९६. भगवान के घर देर है अंधेर नइ ए।
९७. माने त देवता नहि त पाथर।
९८. जगत कहे भगत बइहा भगत कहे जगत बइहा।
९९. पढ़े बर गरंथ पोथी कीरा परे तोर भीतरी कोठी।
१००. जादा के जोगी मठ उजार।
१०१. टुटहा करम के फूटहा दोना।
१०२. चलनी मां गाय दूहै, करम ला दोसे दे।
१०३. पाप-पुन जे लिखे लिलरा, विधि के लिखा न मेटनहारा।
१०४. बिना करम काम नई होवय।
१०५. कहां जाबे भागे करम जाही आगे।
१०६. अपन मरे बिना सरग नई दिखै।
१०७. सुनै सबके करै मन के
१०८. बइठे बिगारी सहीं।
१०९. जेला गोठियाय आवै तेकर अंकरी बचाय जेला गोठियाय नई आवय तेखर चना धुनाय।
११०. धरम करे मां जउन होय हानि तभू न छाड़य धरम के बानी।
१११. जे खेलेय तास तेखर होय नास।
११२. दू ठन डोंगा में पांव धरही तोन बोहावे करही।
११३. दु कोतरी के हय डबरा झन बताय।
११४. खेलिये न जुआं झांकिये न कुआं।
११५. कहाई ले कराई नींक।
११६. सिकार के बेरा कुतिया गायब।
११७. बोकरा के जीव जाय खवइया बर अलोना।
११८. कुकुर के पूछी जब रहही टेड़गा।
११९. जेखर खाय तेखर गाय।
१२०. जौन पतरी मां खाय तउ न मां छेद करे।
१२१. दुध के जरे हा महीं ला फूंक के पीथे।
१२२. कबड्डी खेल लीम के तेल।
१२३. बैरी बर ऊंच पीढ़ा।
१२४. बाप मारे पूत साखी दे।
१२५. ससुराल सुख के सार जब रहे दिन दो चार।
१२६. परदेश जमाई राजा बराबेरा गांव जमाई आधा घर जमाई गधा बरोबर जब मर्जी तब लादा।
१२७. नाती चढ़य छाती।
१२८. गाय चरावै राउत दूध खाय बिलैया।
१२९. जेखर लाठी तेखर भैंस।
१३०. भैंस के आगे बेन बजाये, भैंस बैठ पगुराय।
१३१. भैंसा के सींग ह भैंसे ल गरु रथे।
१३२. कुकुर के पुछी जब रइही टेड़गा।
१३३. कुकूर भुंके हजार हाथी चले बजार।
१३४. दुलहिन नई देखे, त देख ओखर भाई। बाघ नई देखे, त देख ले बिलाई।
१३५. घोड़ी के लातला घोड़ा सदे।
१३६. बोकरा के जीव छूटै खवइया बर अलोना।
१३७. राजा के अगाड़ी घोड़ा के पिछाड़ी झन रहै।
१३८. मर मर मरै बदरवा बांधे खाय तुरंग।
१३९. खेत चरे गदहा मार खाय जोलहा।
१४०. बाम्हन ले गदहा भले विधि ले भले कुम्हार कायद ले धोबी भले सबसे भले चमार
१४१. बेदरा का जाने आदा के स्वादः।
१४२. हारे जुवारे बाघ बरोबर।
१४३. जेखर बेंदरा तेखर ले नाचे।
१४४. एक जंगल मा दू ठन बाघ नई रहे।
१४५. मरे बाघ के मेछा उखानत हे।
१४६. हाथी के पेट सोहारी मां नई भरय। ru ption की ओर संकेत करता है। १४७. हाथी ह कतकोन सुखाही तभी घोड़ा ले मोठ रइही।
१४८. एक कोलिहा हुआ-हुआ तो तब कोलिहा हुआ-हुआ।
१४९. कोईली अऊ कौआ बोली ले, चिन हाथे।
१५०. कुकरी उड़ान।
१५१. सांप के काटे सोवे बीछी काटे रोबे।
१५२. परोसी के बूती सांप नई मरै।
१५३. बिछी के मंतर नई जानै सांप के बिला मां हात डारै।
१५४. सांप के मूंड़ी तिहां बाबू के झुलेना।
१५५. कुआं के मेचका कुएं के हाल ला जान ही।
|