पंचायत का क्या मतलब होता है? - panchaayat ka kya matalab hota hai?

मध्यप्रदेश में आठ साल बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो रहे हैं। प्रत्याशी पूरे जोर-शोर से प्रचार में लगे हैं। वे वोटर्स को रिझाने में लगे हैं। वैसे, क्या आप जानते हैं कि आखिर पंचायत क्या है? इसके चुनाव होते कैसे हैं? क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है? पंचायत काम कैसे करती है? इसे त्रिस्तरीय क्यों कहते हैं? पंच, सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य और अध्यक्ष कैसे चुने जाते हैं? अगर नहीं, तो वीडियो में पंचायत चुनाव के बारे में सिलसिलेवार पूरी जानकारी बताते हैं…।

सबसे छोटी यूनिट ग्राम पंचायत

त्रिस्तरीय पंचायतराज व्यवस्था में तीन लेयर होती हैं। पहली ग्राम पंचायत, जो सबसे छोटी यूनिट होती है। यह 2 से 3 गांवों को मिलाकर बनती है। दूसरी, जनपद पंचायत। यह ब्लॉक स्तर की यूनिट है। और सबसे बड़ी इकाई होती है जिला पंचायत। यह तीसरी और सबसे बड़ी यूनिट होती है।

तीनों यूनिट कैसे काम करती हैं…
ग्राम पंचायत गांव के विकास और समस्याओं का समाधान करती है। ग्राम पंचायत में पॉलिटिकल बॉडी का चुनाव होता है। यहां दो पद चुने जाते हैं पंच और सरपंच। सरपंच पंचायत का मुखिया कहलाता है यानी प्रथम नागरिक। हर पंचायत में 10 से 15 तक छोटे-छोटे वार्ड होते हैं। सरपंच और पंचों काे जनता सीधे मतदान करके चुनती है। इनका कार्यकाल पांच साल का होता है।

जनपद पंचायत 80 से 100 ग्राम पंचायतों का समूह होता है। इसका ऑफिस ब्लाॅक मुख्यालय पर होता है। इस पर भी पॉलिटिकल बॉडी का नियंत्रण होता है। हर जनपद पंचायत में भी 10 से 15 वार्ड होते हैं। हर एक वार्ड 8 से 10 ग्राम पंचायतों को मिलाकर बनता है। यहां से जनपद पंचायत के सदस्य पब्लिक सीधे मतदान कर चुनती है। जब सभी 10 से 15 जनपद सदस्य चुन लिए जाते हैं, तो ये सब मिलकर जनपद अध्यक्ष चुनती है। हर जिले में 5 से लेकर सात जनपद पंचायतें होती हैं। यह सबसे बड़ी यूनिट जिला पंचायत और ग्राम पंचायत के बीच सेतु का काम करता है।

अब बताते हैं जिला पंचायत। इसका ऑफिस हर जिला मुख्यालय पर होता है। जनपद की तरह जिला पंचायत बॉडी का भी चुनाव करके गठन होता है। यहां जिला पंचायत सदस्य चुने जाते हैं। यह मिलकर जिला पंचायत अध्यक्ष चुनते हैं।

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मध्य प्रदेश में इस समय पंचायत चुनाव हो रहे हैं. पंचायतों को लेकर अक्सर अखबारों में खबरें छपती रहती हैं. ये खबरें उनके काम की भी होती हैं. महिला प्रधानों की होती हैं और वहां अक्सर होने वाले भ्रष्टाचार की भी. पंचायत वेबसीरीज ने कम से कम इतना तो किया है कि लोगों के मन में पंचायत को लेकर एक तरह का कौतुहल तो जगा ही दिया है. कई तरह के सवाल लोगों के जेहन में पैदा हो रहे होंगे – पंचायत का काम क्या होता है. प्रधान का चुनाव कैसे होता है. कौन सी वो परीक्षा है, जिससे पंचायत सचिव का सेलेक्शन होता है और ये वेतन के रूप में कितना पैसा पाता है.

पंचायत दरअसल गांव को लोकतांत्रिक तरीके से चलाने और सरकारी नीतियों और योजनाओं को लागू करने वाली सबसे छोटी ईकाई होती है. ये गांव के प्रशासन को संभालने वाली मुख्य संस्था होती है. जिसके सदस्यों और प्रधान को चुनने के लिए ग्राम सभा स्तर पर चुनाव होता है. इसमें लोग वोट देकर पंचायत के तहत आने वाले वार्डों के सदस्य चुनते हैं और साथ ही प्रधान या सरपंच. ये चुनाव 05 साल के लिए होता है.

अगर आपने प्राइम वीडियो की ओटीटी सीरीज पंचायत में देखा होगा कि पंचायत की कार्यविधियों को संचालित करने के लिए एक कार्यालय होता है, जिसे पंचायत भवन कहते हैं. हर ग्राम सभा में ऐसा एक भवन होता है. आमतौर पर पंचायत का कार्यालय से संबंधित कामों को देखने का पंचायत सचिव का होता है, जिसे एक पंचायत सहायक भी मिलता है.

देशभर में करीब 2.5 लाख ग्राम पंचायतें हैं. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा एक व्यवस्था के तहत इन्हें फंड दिया जाता है. कई बार कई गांवों को मिलाकर भी उनकी एक ग्राम पंचायत होती है.

पहली ग्राम पंचायत कौन सी थी?
देश में ग्राम पंचायतों ने अक्टूबर 1959 में पहली बार काम करना शुरू किया. राजस्थान के नागौर जिले के बदरी गांव में पहली बार 02 अक्टूबर 1959 को ग्राम पंचायत चुनी गई और इसने काम शुरू किया.

प्राचीन भारत में भी थी ग्राम पंचायत व्यवस्था
वैदिक काल में भी पंचायतों का अस्तित्व था. तब ग्राम के प्रमुख को ग्रामणी कहते थे. परिषद् अथवा पंचायत ग्राम की भूमि की व्यवस्था करती थी और ग्राम में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में मदद करती थी. कौटिल्य ने ग्राम को राजनीतिक इकाई माना. “अर्थशास्त्र” का “ग्रामिक” ग्राम का प्रमुख होता था, जिसे कितने ही अधिकार हासिल थे. बाद के राजाओं ने भी इस व्यवस्था को अपनाया.
अंग्रेजी शासनकाल में पंचायत-व्यवस्था को झटका लगा. ये व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई. फिर भी ग्रामों के सामाजिक जीवन में पंचायतें बनी रहीं. प्रत्येक जाति अथवा वर्ग की अपनी अलग-अलग पंचायतें थीं जो उसके सामाजिक जीवन को नियंत्रित करती थीं. पंचायत की व्यवस्था एवं नियमों का उल्लंघन करनेवाले को कठोर दंड दिया जाता था.
हालांकि 1915 के बाद अंग्रेजों को महसूस हुआ कि ग्राम स्तर पर भी अधिकार देने जरूरी हैं. तब उन्होंने ग्राम पंचायत जैसी संस्थाएं बनाईं लेकिन ये बहुत कम थीं. कहा जा सकता है कि 1947 तक गांवों में सही पंचायत व्यवस्था का अभाव ही रहा. बाद में फिर इसे जिंदा किया गया.

किसी ग्राम सभा के लिए कितनी आबादी जरूरी?
किसी भी ग्रामसभा के लिए लोगों की आबादी 400 या उससे अधिक होनी चाहिए. ग्राम पंचायत का प्रमुख निर्वाचित प्रधान होता है, जिसको सरपंच या मुखिया भी कहते हैं. आबादी के हिसाब से ही ग्राम पंचायतों के वार्ड बनाए जाते हैं और हर वार्ड से पंचायत के लिए एक सदस्य चुना जाता है. अब कई गांवों में प्रधान के पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं. इसी तरह हर ग्राम पंचायत में सदस्य के तौर पर एक तिहाई महिला सदस्य और एक तिहाई अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्य भी आरक्षित रहते हैं.

1000 तक की आबादी वाले गांवों में 10 ग्राम पंचायत सदस्य, 2000 तक 11 तथा 3000 की आबादी तक 15 सदस्य हाेने चाहिए. साल में दो बार इनकी बैठक होनी भी जरूरी है, वैसे अगर किसी जरूरी मुद्दे पर चाहे तो प्रधान 15 दिन की नोटिस देकर बैठक बुला सकता है. लेकिन कहीं कहीं नोटिस पीरियड की अवधि और कम भी होती है. 

भारत में पंचायत का क्या अर्थ है?

पंचायत भारत में स्थानीय शासन प्रणाली का नाम है। पंचायत का अर्थ "पांच जनों" का समूह है। सरल शब्दों में, पंचायत एक गाँव का प्रतिनिधित्व करने वाले बुजुर्गों की एक परिषद है। पंचायत प्रणाली में ग्राम स्तर (ग्राम पंचायत), गांवों के समूह (खंड पंचायत), और जिला स्तर (जिला पंचायत) शामिल हैं।

पंचायत को इंग्लिश में क्या होता है?

In India, a Panchayat is a village council.