ओम शब्द की उत्पत्ति कब हुई? - om shabd kee utpatti kab huee?

एक बार असुरों ने इंद्रपुरी को घेर लिया। उनके पास बड़ी सुसज्जित सेना थी। हर प्रकार के हथियारों से सज्जित हो उन्होंने युद्ध के लिए इंद्र को ललकारा।

‘हमारा युद्ध में सामना करो। हम अपने बाहुबल की शक्ति से युद्ध में परास्त करना चाहते हैं। यदि हम से डरते हो तो हार स्वीकार करो। इंद्रपुरी हमारे हवाले करो।

विशाल असुर सेना को देख महाप्रतापी इंद्र एक बार तो कांप उठे। बहुसंख्यक शत्रु के सामने मुट्ठी भर देवता लोग क्या कर सकते सकेंगे ? यों तो मेरी इंद्रपुरी ही छीन जाएगी। अब तो किसी बाह्य देवी शक्ति से सहायता लेनी चाहिए।अपनी सीमित शक्तियों से तो इंद्रपुरी की रक्षा होती नहीं दिखती।

उनके सामने प्रश्न था, ‘असुर कैसे मारे जाएं ?’

भगवान् ने सलाह दी, केवल शब्द – शक्ति के देवता ॐ की सहायता से ही आप सब में नव प्राण और नए उत्साह का संचार संभव है। वे ही मेरी शक्ति के स्रोत है। उनकी कृपा से मुर्दा दिल में नई शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। आप उन्हीं के पास जाइए और उनसे शब्द – शक्ति ग्रहण कीजिए। भले शब्दों में भी प्रचंड शक्ति भरी हुई है। उसकी साधना कीजिए।

महाराज इंद्र को कुछ धैर्य हुआ ढूंढते – ढूंढते हुए ॐ (ओम्) देव के पास पहुंचे।

इंद्र ने ॐ से कहा, ‘हे भगवान् के शक्ति स्वरूप ॐ ! आप शब्द शक्ति हैं। हम आपको अपना नेता बना कर असुरों की सेना से युद्ध करना चाहते हैं। आप ईश्वर की शक्ति और सामर्थ्य के रूप है। आपके नाम के उच्चारण मात्र से हम देवताओं में नई शक्ति और नई स्फूर्ति आएगी।

आपके नाम के प्रत्येक स्वर में प्रचंड शक्ति भरी हुई है। आपका नाम उच्चारण करते रहने में हमें निरंतर साहस का प्रादुर्भाव होगा। इस संकट के समय में हमारे नेत्र आप पर लगे हुए हैं। हे स्वर देवता ! हमारी सहायता कीजिए।

‘ओम्’ (ॐ)सोचते रहे। देवताओं पर बड़ा संकट था। उन्हें वीरता, साहस, धैर्य, उत्साहवर्धक शब्दों की आवश्यकता थी। उनके शरीर में हाथ, पांव, नाक, मुंह सभी तो थे। केवल आत्मविश्वास और साहस कमजोर पड़ गया था। उत्साहवर्धक शब्दों से उनके वही शरीर फिर शक्तिशाली बन सकते थे। उनके लिए शब्दों की शक्तियों की योजना करनी होगी।

देवताओं की विनय पर उन्हें दया आ गई। ओम् एक शर्त पर देवताओं को दिव्य सहायता देने को तैयार हुए। सब ने पूछा, ‘हे देव! कहिए आपकी शर्त क्या है ?

अर्थात ‘मुझे ‘ओम‘ को पहले पढ़े बिना ब्राह्मण वेदोच्चारण ना करें। मेरे नाम का उच्चारण सबसे पहले किया जाया करें। यदि कोई ब्राह्मण मेरा नाम लिए बिना वेद पाठ करें तो वह देवताओं द्वारा स्वीकार किया जाए।’

‘ओम्‘ बिन असुर जीते नहीं जा सकते थे। अतः देवताओं ने उनकी यह शर्त मान ली। उन्होंने देवताओं की सेना का संचालन किया।

पूरी सेना के सामने वे खड़े थे। वे बोले, देवताओं! मेरा नाम उच्चारण करते – करते पूरे धैर्य के साथ आगे बढ़िये। आप सिंधु की थाह नाप लेंगे। कायरता दूर होगी। शिथिल पगों में अटल विश्वास की शक्ति आएगी। आज आप अपनी शक्ति को पहचान लीजिए। आप में दैवी शक्तियां सो रहे हैं। मेरा नाम लेने से वे खुल जाएगी।

देवताओं की सेना आगे बढ़ी। घोर युद्ध हुआ। देवताओं की सेना विश्वास भरें उच्च स्वर में ‘ॐ….ॐ….ॐ….ॐ….ॐ….ॐ….ॐ… का उच्चारण कर रही थी। उस शब्द की प्रचंड शक्ति से पूरी सेना में नई शक्ति और जोश उमड़ रहा था। वह नए उत्साह से दानवों की बड़ी सेना को काट रहे थे। थकी हुई सेना जैसी ही ‘ओम’ शब्द का उच्चारण करती, वैसे ही उसे नई शक्ति फिर मिल जाती। उसकी शक्ति अक्षय हो गई थी। इस शब्द का चमत्कार संजीवनी शक्ति के सामान जीवन और प्राणदायी था।

युद्ध समाप्त हुआ। ‘ओम्‘ शब्द शक्ति के कारण देवता विजयी हुए थे। सब देवताओं ने ॐ का जयकार किया।

तब से ॐ अमर हो गए। थके – हारे जीवन में निराश, उत्साहहीन व्यक्तियों को जीवन में नवजीवन, नई प्रेरणा और नई शक्ति देने के लिए ‘ओम्’ शब्द का प्रयोग प्रचलित हुआ।

संकट में, विपत्ति में युग युग से जनता ने ‘ओम्’ शब्द के उच्चारण तथा श्रवण से आत्मविश्वास प्राप्त किया है।

             
 ॐ
की उत्पत्ति




ॐ ही ब्रह्म है। ॐ ही यह प्रत्यक्ष जगत् है। ॐ ही
इस जगत की  अनुकृति है। ॐ-ॐ कहते हुए ही
शस्त्र रूप मन्त्र पढ़े जाते हैं। ॐ से ही अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रों का उच्चारण
करता है। ॐ कहकर ही अग्निहोत्र प्रारम्भ किया जाता है। ॐ कहकर ही ब्रह्म को
प्राप्त किया जा सकता है। सनातन धर्म ही नहीं
, भारत के अन्य
धर्म-दर्शनों में भी ॐ को महत्व प्राप्त है। बौद्ध-दर्शन में ॐ का प्रयोग जप एवं
उपासना के लिए प्रचुरता से होता है। जैन दर्शन में भी ॐ के महत्व को दर्शाया गया
है। श्रीमद्मागवत्
गीता में ॐ के महत्व को कई बार
रेखांकित किया गया है
, आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है
कि जो ॐ अक्षर रूपी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता है
, वह परम गति प्राप्त करता है। तो फिर इस ॐ की उत्पत्ति कैसे और कब हुई? हमारे जीवन मे ॐ का महत्व क्या है? ॐ का शुद्ध
उच्चारण क्या है
?

ये काल चक्र है इस काल चक्र में मैं आप सब का
अभिनंदन करता हूँ मैं  आशा करता आप इस
विडियो को पूरा देखने के बाद हमारे इस चैनल को सुब्स्कृबे जरूर करेंगे और
youtube के bell icon को बजाना न भूलें हमारे latest अपडेट के लिए। आइए जानते हैं ॐ की महिमा।

ॐ ध्वनि की प्रकृति पर ध्यान दिया जाए तो हमे पता
चलेगा की इसमे तीन अक्षरों का समावेश है अ
,, और म। । "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना,
"उ" का अर्थ है उठना, अर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् मृत्यु को प्राप्त
करना। "अ" ब्रह्मा का वाचक है
; उच्चारण द्वारा
हृदय में उसका त्याग होता है। "उ" विष्णु का वाचक हैं
; उसका त्याग कंठ में होता है तथा "म" रुद्र का वाचक है ओर उसका
त्याग तालुमध्य में होता है। इस प्रकार से ब्रह्मग्रंथि
, विष्णुग्रंथि
तथा रुद्रग्रंथि का छेदन हो जाता है। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी
सृष्टि का द्योतक है।

आसान भाषा में कहें तो निराकार ईश्वर को एक शब्द
में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ॐ ही है। यह हमारे आपके स्वांस की गति को
नियंत्रित कर सकता है। विज्ञान ने भी ॐ के उच्चारण और उसके लाभ को प्रमाणित किया
है। यह धीमी
, सामान्य और पूरी साँस छोड़ने में सहायता करती
है। यह हमारे श्वसन तंत्र को विश्राम देता है और हमारे मन-मस्तिष्क को शांत करता
है। ॐ मंत्र आपको सांसरिकता से अलग कर के आपको स्वयं से जोड़ता है। ॐ मंत्र का जाप
हीं वह सीढ़ी है जो आपको समाधि और आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर ले जाएगी।

दोस्तों आज से ही इस मंत्र का जप प्रारम्भ कर
दीजिये आप देखेंगे कैसे आपको हर तरह के चिंता से मुक्ति मिलती है। जप करने से पहले
काल चक्र की तरफ से बतायीं गईं कुछ विशेष बातों पर ध्यान जरूर दीजिएगा।

शांत स्थान पर आरामदायक स्थिति में बैठिए।

आंखें बंद करके शरीर और नसों में ढीला छोड़िए।

कुछ लम्बी सांसें लीजिए।

ॐ मंत्र का जाप करिए और इसके कंपन महसूस कीजिए।

इस प्रकार जप करने से आप स्वयं को परम शांति तक ले
जा सकते हैं।

आज का श्लोका ज्ञान:

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।

वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥

भावार्थ :

पीठ पीछे काम बिगाड़नेवाले था सामने प्रिय बोलने
वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए ।

दोस्तों हमारे द्वारा ॐ के विषय मे दी गई जानकारी
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, अगर आपके मन मे हिन्दू देवी देवताओं से जुड़ा कोई भी प्रश्न है तो हमे
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ओम नाम की उत्पत्ति कैसे हुई?

कुछ मान्यताओं के अनुसार ॐ की उत्पत्ति शिव के मुख से हुई। हालांकि ऋग्वेद और यजुर्वेद से लेकर कई उपनिषदों में का जिक्र मिलता है। मंडूक उपनिषद में कहा गया है कि संसार में भूत, भविष्य और वर्तमान काल में एवं इनसे भी परे जो हमेशा हर जगह मौजूद है, वो है। यानी इस ब्रह्मांड में हमेशा से था, है और रहेगा।

ओम की उत्पत्ति कब हुई?

ओम की उत्पत्ति भगवान शिव के मुख से ही हुई है जो भी इस ओंकार मंत्र का जप प्रति दिन करता है वो शिव कृपा का भागी होता है।

Om का शाब्दिक अर्थ क्या है?

ओउम् () या ओंकार का नामान्तर प्रणव है। यह ईश्वर का वाचक है। ईश्वर के साथ ओंकार का वाच्य-वाचक-भाव सम्बन्ध नित्य है, सांकेतिक नहीं। संकेत नित्य या स्वाभाविक सम्बन्ध को प्रकट करता है।

ॐ शब्द कहाँ से लिया गया है?

ओम को मंत्र , मंत्र या उद्धरणों की शुरूआत में वेदों से लिया गया एक मानक उच्चारण के रूप में इस्तेमाल किया गया। उदाहरण के लिए, गायत्री मंत्र , जिसमें ऋग्वेद संहिता ( आरवी 3 . 62.10) से एक मंत्र है। ओम () परमात्मा से निकलनेवाली अत्यन्त सूक्ष्म ध्वनि है, जिसे उच्च कोटि के साधक और संतजन ध्यान में अनुभव करते हैं।