बिल की मुख्य विशेषताएं Show
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं संदर्भ 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या में 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों का हिस्सा 8.6% है और 2050 तक यह दर 21% होने का अनुमान है।[1] वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय सुरक्षा, कल्याण और संरक्षण देने के लिए माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण एक्ट, 2007 को लागू किया गया था। इस एक्ट में बच्चों से यह अपेक्षा की गई है कि वे अपने माता-पिता को मेनटेनेंस (भरण-पोषण या गुजारा भत्ता) दें और सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह ओल्ड एज होम्स बनाए और वरिष्ठ नागरिकों को मेडिकल सहायता सुनिश्चित करे। एक्ट भरण-पोषण को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और अपीलीय ट्रिब्यूनल का गठन करता है। एक्ट के अंतर्गत कई मामले दर्ज किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक्ट की विस्तृत जांच की और केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि वह एक्ट के कुछ प्रावधानों की फिर से समीक्षा करे जोकि अस्पष्ट हैं। अदालत ने एक्ट की व्याख्या इस तरह की थी कि कोई भी पक्ष प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है और उसने कानूनी प्रतिनिधित्व पर लगे प्रतिबंध को हटाया था।[2] बिल 2007 के एक्ट में संशोधन करता है ताकि बच्चों, संबंधियों और माता-पिता की परिभाषा को विस्तार दिया जा सके तथा बच्चों और संबंधियों द्वारा माता-पिता को दी जाने वाली भरण-पोषण राशि की अधिकतम सीमा को खत्म किया जा सके। साथ ही बिल माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के लिए केयर होम्स और दूसरे कल्याणकारी उपायों का प्रावधान करता है। मुख्य विशेषताएं तालिका 1 में बिल में प्रस्तावित संशोधनों का उल्लेख है। तालिका 1: एक्ट और बिल के बीच अंतर
Sources: Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007; Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens (Amendment) Bill, 2019; PRS. भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण भरण-पोषण की मासिक देय राशि की अधिकतम सीमा को हटाना एक्ट राज्य सरकारों को भरण-पोषण ट्रिब्यूनल बनाने की अनुमति देता है ताकि बच्चों द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को मासिक देय राशि का निर्धारण किया जा सके। एक प्रशासनिक अधिकारी इस ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता करेगा। यह राशि 10,000 रुपए प्रति माह से अधिक नहीं हो सकती। बिल इस भरण-पोषण की राशि की अधिकतम सीमा को हटाता है और ट्रिब्यूनल को निम्नलिखित आधार पर इसे तय करने की अनुमति देता है: (i) वरिष्ठ नागरिकों का जीवन स्तर और उनकी आय, और (ii) बच्चों की आय। यह कहा जा सकता है कि भरण-पोषण की मासिक राशि की अधिकतम सीमा तय करने के लिए न्यायिक विशेषज्ञता चाहिए। संभव है ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता करने वाले प्रशासनिक अधिकारी के पास यह विशेषज्ञता न हो। उल्लेखनीय है कि तलाक के बाद पत्नी/पति के लिए भरण-पोषण राशि को तय करने की ऐसी ही प्रक्रिया में अध्यक्षता न्यायिक अधिकारी द्वारा ही की जाती है। इसके अतिरिक्त एक्ट में कहा गया है कि बच्चों को वरिष्ठ नागरिकों को इतना भरण-पोषण देना होगा कि वे ‘सामान्य जीवन’ जी सकें। बिल में इसमें संशोधन किया गया है और कहा गया है कि बच्चे वरिष्ठ नागरिकों को इतना भरण-पोषण देने के लिए बाध्य हैं जिससे वे गरिमा के साथ अपना जीवन जी सकें। हालांकि बिल में ‘गरिमापूर्ण जिंदगी’ को स्पष्ट नहीं किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने मानव गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार की परिभाषा देते हुए कहा था कि इसमें पर्याप्त पोषण, कपड़ा, आश्रय और पढ़ना लिखना एवं खुद को विविध तरीके से अभिव्यक्त करना, दूसरे लोगों से स्वतंत्रता से मिलना-जुलना शामिल है।[3] यह कहा जा सकता है कि ‘गरिमापूर्ण जीवन’ में क्या-क्या आता है, इसे तय करने के लिए न्यायिक प्रशिक्षण और क्षमता होनी चाहिए। संभव है कि वह प्रशासनिक अधिकारियों में मौजूद न हो। भरण-पोषण के आदेश के खिलाफ अपीलीय ट्रिब्यूनल में अपील दायर की जा सकती है जिसकी अध्यक्षता भी प्रशासनिक अधिकारी द्वारा की जाएगी। इसलिए एक्ट के अंतर्गत न्यायिक अपील का कोई प्रावधान नहीं है। इस प्रकार अपीलीय ट्रिब्यूनल के आदेश से पीड़ित व्यक्ति के पास केवल एक उपाय मौजूद है, वह यह कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय में रिट दायर कर सकता है। लीगल प्रैक्टीशनर्स ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया में पक्षों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते एक्ट कहता है कि ट्रिब्यूनल या अपीलीय ट्रिब्यूनल में लीगल प्रैक्टीशनर किसी भी पक्ष का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। हालांकि लीगल प्रतिनिधि पर प्रतिबंध से कानूनी प्रक्रिया में तेजी आ सकती है और उससे जुड़े पक्षों के खर्चों में कमी आ सकती है, लेकिन बिल का यह प्रावधान एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 30 का उल्लंघन भी करता है। इस सेक्शन में कहा गया है कि सभी एडवोकेट्स को निम्नलिखित में प्रैक्टिस करने का अधिकार है: (i) सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी अदालतें, (ii) ट्रिब्यूनल या सबूत लेने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत किसी व्यक्ति के सामने, और (iii) किसी ऐसी अन्य अथॉरिटी या व्यक्ति के सामने जिसके सामने वह वकील प्रैक्टिस करने के लिए अधिकृत है।[4] पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने परमजीत कुमार सरोया बनाम भारत संघ के मामले में कहा था कि एडवोकेट्स एक्ट, 1961 का यह सेक्शन 2007 के एक्ट के संसद में पारित होने के बाद लागू हुआ था। इसलिए एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के प्रावधान लागू रहेंगे और भरण-पोषण या अपीलीय ट्रिब्यूनल में लीगल प्रैक्टीशनर्स द्वारा सहायता पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।2 ‘संबंधी’ की परिभाषा अस्पष्ट है बिल ‘संबंधी’ को निस्संतान (चाइल्डलेस) वरिष्ठ नागरिक के कानूनी वारिस के रूप में परिभाषित करता है। हालांकि वरिष्ठ नागरिक अपनी वसीयत को किसी भी समय बदल सकते हैं। इसलिए इस पर अंतिम फैसला नहीं हो सकता कि लीगल वारिस कौन होगा और किसे वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण करना चाहिए। होम केयर सेवाओं की परिभाषा तय नहीं बिल में ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को होम केयर सेवाएं प्रदान करने वाले संस्थानों के लिए शर्तें निर्धारित की गई हैं जिन्हें शारीरिक या मानसिक बीमारियों के कारण अपनी रोजमर्रा के काम करने में समस्याएं आती हैं। इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रशिक्षित और सर्टिफाइड सहायक या केयरगिवर्स को नौकरी पर रखना, और (ii) राज्य सरकार द्वारा स्थापित रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी में रजिस्टर करना। हालांकि बिल यह स्पष्ट नही करता कि होम केयर सेवाओं में क्या शामिल होगा। उदाहरण के लिए यह अस्पष्ट है कि क्या होम केयर सेवाओं में मेडिकल सेवाएं जैसे फिजियोथेरेपी और आईवी ड्रिप्स देना, या खाना पकाना और साफ-सफाई जैसी सेवाओं शामिल होंगी। इसके अतिरिक्त बिल में यह अपेक्षा की गई है कि होम केयर सेवाएं प्रदान करने वाले संस्थान प्रशिक्षित और सर्टिफाइड सहायकों या केयरगिवर्स को नौकरी पर रखेंगे। हालांकि बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है या उसके लिए कोई नियम नहीं बनाए गए हैं कि सहायकों और केयरगिवर्स को ऐसी सेवाएं देने से पहले किन सर्टिफिकेशंस और प्रशिक्षणों को हासिल करना चाहिए। राज्यों पर वित्तीय असर राज्य सरकारों को बिल के अंतर्गत विभिन्न प्रावधानों को लागू करना होगा और उसके लिए खर्च भी करना होगा। इन प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) केयर होम्स बनाना, (ii) वरिष्ठ नागरिकों के लिए सुलभ सार्वजनिक सुविधाएं तैयार करना, और (iii) निजी केयर होम्स और होम केयर सेवाओं को रेगुलेट करना। बिल के वित्तीय ज्ञापन (फाइनांशियल मेमोरेंडम) में कहा गया है कि इन प्रावधानों को लागू करने के लिए भारत के समेकित कोष से कोई धनराशि नहीं दी जाएगी।[5] उल्लेखनीय है कि अगर राज्य विधानमंडल जरूरी राशि आबंटित नहीं करतीं या उनके पास पर्याप्त धनराशि नहीं होती तो बिल के कार्यान्वयन पर असर हो सकता है।
[1] National Policy for Senior Citizens, Ministry of Social Justice and Empowerment, March 2011. [2] Paramjit Kumar Saroya v. Union of India and another, [AIR 2014 P&H 121]. [3] Francis Coralie Mullin v. Administrator, Union Territory of Delhi and Ors. [(1981) 1 SCC 608]. [4] Advocates Act, 1961. [5] Financial Memorandum, Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens (Amendment) Bill, 2019. अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है। माता पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण कल्याण अधिनियम कब पारित किया गया?माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 को माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकता के आधार पर उनका भरणपोषण और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए 29 दिसंबर 2007 को अधिनियमित किया गया था ।
हिंदू विवाहित महिलाओं का पृथक निवास एवं भरण पोषण अधिनियम कब पारित हुआ?हिन्दू विवाह अधिनियम भारत की संसद द्वारा सन् १९५५ में पारित एक कानून है। इसी कालावधि में तीन अन्य महत्वपूर्ण कानून पारित हुए : हिन्दू उत्तराधिका अधिनियम (1955), हिन्दू अल्पसंख्यक तथा अभिभावक अधिनियम (1956) और हिन्दू एडॉप्शन और भरणपोषण अधिनियम (1956).
वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 के क्या प्रावधान हैं?Senior Citizen Rights:2007 में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम (वरिष्ठ नागरिक अधिनियम) को लागू हुए 15 साल बीत चुके हैं, जो इस तरह के अधिकार प्रदान करता है. Senior Citizen Rights: संपत्ति का मालिकाना हक बुजुर्ग माता-पिता और उनके बच्चों के बीच संबंधों के सबसे कठिन पहलुओं में से एक होता है.
धारा 2007 क्या है?माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) भारत सरकार का एक अधिनिय है जो वृद्ध व्यक्तियों एवं माता-पिता के भरण-पोषण एवं देखरेख का एक प्रभावी व्यवस्था करती है। इसका विधेयक सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय द्वारा लाया गया था।
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