खुर पका मुंह पका का क्या इलाज है? - khur paka munh paka ka kya ilaaj hai?

पशुपालन तथा पशुचिकित्सा सेवा विभाग के चिकित्सक इलाज करने के साथ किसानों को जागरूक कर रहे हैं। वर्ष 2014 में खुरपका-मुंहपका नजर आने के बाद से मवेशियों में आए दिन खुरपका-मुंहपका के विरुध्द खुराक दी जा रही है। इससे हाल ही के दिनों में खुरपका-मुंहपका नहीं आने से किसानों ने सुकून की सांस ली थी। अब फिर से खुरपका-मुंहपका बीमारी के नजर आने से किसानों में भय छाया हुआ है।


पशुपालकों को 2013-14 में खुरपका-मुंहपका बीमारी ने बहुत परेशान किया था। राज्य में हजारों गाय, भैंस आदि मवेशियों की मृत्यु हुई थी। धारवाड़ जिले में भी 50 से अधिक मवेशियों की मृत्यु हुई थी। हजारों मवेशी इससे का शिकार हुए थे। दूध देने वाली गाय, भैंसों की मृत्यु हुई थी तथा इस बीमारी के कारण किसानों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था।

रोग का कारण
मुंहपका-खुरपका रोग एक अत्यन्त सुक्ष्ण विषाणु जिसके अनेक प्रकार तथा उप-प्रकार है, से होता है। इनकी प्रमुख किस्मों में ओ, ए, सी, एशिया-1, एशिया-2, एशिया-3, सैट-1, सैट-3 तथा इनकी 14 उप-किस्में शामिल है। हमारे देश मे यह रोग मुख्यत: ओ, ए, सी तथा एशिया-1 प्रकार के विषाणुओं की ओर से होता है। नम-वातावरण, पशु की आन्तरिक कमजोरी, पशुओं तथा लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन तथा नजदीकी क्षेत्र में रोग का प्रकोप इस बीमारी को फैलाने में सहायक कारक हैं।

ऐसे फैलता है यह रोग
यह रोग बीमार पशु के सीधे सम्पर्क में आने, पानी, घास, दाना, बर्तन, दूध निकलने वाले व्यक्ति के हाथों से, हवा से तथा लोगों के आवागमन से फैलता है। रोग के विषाणु बीमार पशु की लार, मुंह, खुर व थनों में पड़े फफोलों में बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं। ये खुले में घास, चारा, तथा फर्श पर चार महीनों तक जीवित रह सकते हैं लेकिन गर्मीं के मौसम में यह बहुत जल्दी नष्ट हो जाते हैं। विषाणु जीभ, मुंह, आंत, खुरों के बीच की जगह, थनों तथा घाव आदि के के जरिए स्वस्थ पशु के रक्त में पहुंचते हैं तथा लगभग 5 दिनों के अंदर उसमें बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं।

ये उपाय रहेंगे कारगर
इस बीमारी से बचाव के लिए पशुओं को पोलीवेलेंट वेक्सीन के वर्ष में दो बार टीके अवश्य लगवाने चाहिए। बछड़े/बछडिय़ों में पहला टीका एक माह की आयु में, दूसरे तीसरे माह की आयु तथा तीसरा 6 माह की उम्र में और उसके बाद नियमित सारिणी के अनुसार टीके लगाए जाने चाहिए।
- बीमारी हो जाने पर रोग ग्रस्त पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए।
-बीमार पशुओं की देख-भाल करने वाले व्यक्ति को भी स्वस्थ पशुओं के बाड़े से दूर रहना चाहिए।
-बीमार पशुओं के आवागमन पर रोक लगा देना चाहिए।
-रोग से प्रभावित क्षेत्र से पशु नहीं खरीदना चाहिए।
-पशुशाला को साफ-सुथरा रखना चाहिए।
-इस बीमारी से मरे पशु के शव को खुला न छोडक़र गाड़ देना चाहिए।


रोग के लक्षण
रोग ग्रस्त पशु को 104-106 डिग्री फारेनहाइट तक बुखार हो जाता है। वह खाना-पीना व जुगाली करना बन्द कर देता है। दूध का उत्पादन गिर जाता है। मुंह से लार बहने लगती है तथा मुंह हिलाने पर चप-चप की आवाज आती हैं इसी कारण इसे चपका रोग भी कहते है। बुखार के बाद पशु के मुंह के अंदर, गालों, जीभ, होंठ तालू व मसूड़ों के अंदर, खुरों के बीच तथा कभी-कभी थनों व आयन पर छाले पड़ जाते हैं। ये छाले फटने के बाद घाव का रूप ले लेते हैं जिससे पशु को बहुत दर्द होने लगता है। मुंह में घाव व दर्द के कारण पशु खाना-पीना बन्द कर देते हैं जिससे वह बहुत कमजोर हो जाता है। खुरों में दर्द के कारण पशु लंगड़ा चलने लगता है। गर्भवती मादा में कई बार गर्भपात भी हो जाता है। नवजात बछड़े/बछडिय़ां बिना किसी लक्षण दिखाए मर जाते है। लापरवाही होने पर पशु के खुरों में कीड़े पड़ जाते हैं तथा कई बार खुरों के कवच भी निकल जाते हैं।

दवा की खुराक पिलाना शुरू
पशुपालन विभाग रोगी पशुओं को अब तक खुराक पिलाने के 14 राउंड पूरे कर चुका है। जिले में 2.24 लाख मवेशियों को खुराक पिलाने का लक्ष्य रखा गया था जिसमें 2.20 लाख मवेशियों को खुराक पिलाई गई है। कुछ लोग पूछ रहे हैं कि खुराक पिलाने के बाद भी बीमारी क्यों नजर आ रही है। बाहरी जिलों तथा राज्यों से लाए गए मवेशियों से बीमारी नजर आई है। स्थानीय मवेशियों में पहले नजर नहीं आई थी। कुछ गांवों में अधिक है जहां इलाज किया जा रहा है। खुरपका-मुंहपका बीमारी की रोकथाम के लिए किए जाने वाली सतर्कता कार्रवाई के बारे में किसानों में जागरूकता पहुंचाई जा रही है। एक मवेशी से दूसरे मवेशी को फैलने के कारण चिकित्सकों की ओर से निर्देशित कार्रवाईयों को सख्ती से अमल में लाना चाहिए। बीमारी से पीडि़त मवेशियों का इलाज शुरू किया गया है। सोमवार से 15वें चरण की खुराक पिलाई जा रही है। डॉ. विशाल, उपनिदेशक, पशुपालन एवं पशुचिकित्सा सेवा विभाग


यूं कराएं उपचार
इस रोग का कोई निश्चित उपचार नहीं है परन्तु बीमारी की गम्भीरता को कम करने के लिए लक्षणों के आधार पर पशु का उपचार किया जाता है। रोगी पशु में सैकण्डरी संक्रमण को रोकने के लिए उसे पशु चिकित्सक की सलाह पर एंटीबायोटिक के टीके लगाए जाते हैं। मुंह व खुरों के घावों को फिटकरी या पोटाश के पानी से धोते हैं। मुंह में बोरो-गिलिसरीन तथा खुरों में किसी एंटीसेप्टिक लोशन या क्रीम का प्रयोग किया जा सकता है।

खुरपका-मुंहपका रोग से मवेशी को नहीं देंगे मरने

संवाद सहयोगी, हाथरस : पशुपालन विभाग पशुओं में जानलेवा बीमारी खुरपका-मुंहपका रोक की रोकथाम के लिए अभी

संवाद सहयोगी, हाथरस : पशुपालन विभाग पशुओं में जानलेवा बीमारी खुरपका-मुंहपका रोक की रोकथाम के लिए अभी से अभियान में जुट गया है। इसके लिए टीमें गठित की गई हैं। टीमों के पर्यवेक्षण के लिए जिलाधिकारी जल्द ही अधिकारियों के नाम तय करेंगे।

क्या है रोग

खुरपका-मुंहपका रोग कीड़े से होता है, जिसे आंखें नहीं देख पाती हैं। इसे विषाणु कहते हैं। यह रोग किसी भी उम्र की गाय व भैंस में हो सकता है। हालांकि, यह रोग किसी भी मौसम में हो सकता है। इसके चपेट में आने से पशु सूख जाता है। उसकी कार्य व उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। टीकाकरण से ही रोग की रोकथाम की जा सकती है।

रोग के लक्षण

इस रोग की चपेट में आने पर पशु को तेज बुखार आता है। पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर, होंठ के अंदर व खुरों के बीच छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं। दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं। छाला फटने पर वहां जख्म हो जाता है। पशु जुगाली बंद कर देते हैं। मुंह से लार गिरने लगती है। वह सुस्त होकर खाना पीना तक छोड़ देता है। खुर में जख्म होने पर वह लंगड़ाकर चलता है। खुरों में कीचड़ लगने पर कीड़े पड़ जाते हैं और कभी-कभी मौत का कारण भी बनता है।

रोग का फैलना

बीमार पशु से यह रोग धीरे-धीरे स्वस्थ पशुओं में भी फैलने लगता है। क्योंकि सभी पशु एक साथ चारा खाते हैं। इससे वह भी इस रोग की चपेट में आ जाते हैं। इतना ही नहीं यह हवा से दूसरे स्वस्थ पशुओं में फैलता है।

उपचार के साधन

विषाणु से फैलने वाले रोगों का इलाज अभी तक नहीं खोजा जा सका है। फिर भी कुछ दवाएं इस रोग को कम करने के काम आती हैं। पैरों के घावों में मरहम पट्टी से रोग को बढ़ने से रोकने के लिए उपचार किया जाता है।

रोग के लक्षण मिलने पर उठाएं कदम

-बीमार पशु को तत्काल स्वस्थ्य पशुओं से दूर रखें, उनका दाना पानी भी अलग दें।

-पशु को बांधकर रखें और उन्हें घूमने फिरने न दें।

-पशु को सूखे स्थान पर ही बांधे, कीचड़, गीली मिट्टी व गंदगी से दूर रखें।

-बीमार पशु को कतई न बेचें और नहीं बीमार पशु को खरीदें।

-जहां पशु की लार गिरती है, वहां पर कपड़े धोने का सोडा व चूने का छिड़काव करें।

-फिनाइल का प्रयोग भी बीमारी की रोकथाम में सहायक होता है।

-मृत पशु को तत्काल पूरी तरह जला दें, संभव न हो तो उसे गहरे गड्ढे में गाड़ दें।

-समय-समय पर पशुओं में खुरपका मुंहपका के टीके अवश्य लगवाएं।

-रोक फैलने पर तत्काल नजदीकी पशु चिकित्सक को इसकी सूचना दें।

इनका कहना है

एफएमजी का टीका साल में दो बार लगवाना चाहिए। ताकि बीमारी पशुओं के पास तक न फटकने पाए। इसके लिए शासन हर साल दो बार अभियान चलाता है। इसके लिए पशुपालकों को खुद ही जागरूक रहकर टीकाकरण कराने से कतई नहीं चूकना चाहिए। इसके लिए अभियान शुरू हो गया है। सभी पशुपालक टीमों को सहयोग करें।

-डॉ. देवेंद्र कुमार शर्मा, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी।

खुर पका मुंह पका का देसी इलाज क्या है?

रोग का उपचार मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी के पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए। मुंह में बोरो-गिलिसरीन तथा खुरों में किसी एंटीसेप्टिक लोशन का प्रयोग किया जा सकता है। इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए। पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।

खुरपका रोग कैसे होता है?

खुरपका व मुंहपका रोग से पीड़ित पशुओं को तेज बुखार हो जाता है। मुंह से लार निकलने लगता है। इसी के साथ मुंह व खुरों में छाले पड़ जाते हैं। पशु लंगड़ाने लगते हैं।

गाय के मुंह में छाले होने पर क्या करें?

पशु के मुंह में छाले पड़ने पर सुहागा के चूर्ण को पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए या फिर पोटाश को ठंडे पानी में मिलाकर मुंह की सफाई करनी चाहिए। या फिर ग्लिसरीन और बोरिक ऐसिड का पेस्ट बनाकर जीभ के उपर छालों पर लगानी चाहिए। इन उपचारों को दिन में तीन से चार बार दोहराते रहते चाहिए।

फुट एंड माउथ रोग कैसे होता है?

(Foot-and-mouth disease-FMD) FMD गाय, भैंस और हाथी आदि में होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह खासकर दूध देने वाले जानवरों के लिये अधिक हानिकारक होता है। पशुओं के जीभ और तलवे पर छालों का होना जो बाद में फट कर घाव में बदल जाते हैं। इसके पश्चात् जानवरों के दुग्ध उत्पादन में भी लगभग 80 प्रतिशत तक की गिरावट आ जाती है।