पशुपालन तथा पशुचिकित्सा सेवा विभाग के चिकित्सक इलाज करने के साथ किसानों को जागरूक कर रहे हैं। वर्ष 2014 में खुरपका-मुंहपका नजर आने के बाद से मवेशियों में आए दिन खुरपका-मुंहपका के विरुध्द खुराक दी जा रही है। इससे हाल ही के दिनों में खुरपका-मुंहपका नहीं आने से किसानों ने सुकून की सांस ली थी। अब फिर से खुरपका-मुंहपका बीमारी के नजर आने से किसानों में भय छाया हुआ है। Show
रोग का कारण ऐसे फैलता है यह रोग ये उपाय रहेंगे कारगर
दवा की खुराक पिलाना शुरू
खुरपका-मुंहपका रोग से मवेशी को नहीं देंगे मरनेसंवाद सहयोगी, हाथरस : पशुपालन विभाग पशुओं में जानलेवा बीमारी खुरपका-मुंहपका रोक की रोकथाम के लिए अभी संवाद सहयोगी, हाथरस : पशुपालन विभाग पशुओं में जानलेवा बीमारी खुरपका-मुंहपका रोक की रोकथाम के लिए अभी से अभियान में जुट गया है। इसके लिए टीमें गठित की गई हैं। टीमों के पर्यवेक्षण के लिए जिलाधिकारी जल्द ही अधिकारियों के नाम तय करेंगे। क्या है रोग खुरपका-मुंहपका रोग कीड़े से होता है, जिसे आंखें नहीं देख पाती हैं। इसे विषाणु कहते हैं। यह रोग किसी भी उम्र की गाय व भैंस में हो सकता है। हालांकि, यह रोग किसी भी मौसम में हो सकता है। इसके चपेट में आने से पशु सूख जाता है। उसकी कार्य व उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। टीकाकरण से ही रोग की रोकथाम की जा सकती है। रोग के लक्षण इस रोग की चपेट में आने पर पशु को तेज बुखार आता है। पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर, होंठ के अंदर व खुरों के बीच छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं। दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं। छाला फटने पर वहां जख्म हो जाता है। पशु जुगाली बंद कर देते हैं। मुंह से लार गिरने लगती है। वह सुस्त होकर खाना पीना तक छोड़ देता है। खुर में जख्म होने पर वह लंगड़ाकर चलता है। खुरों में कीचड़ लगने पर कीड़े पड़ जाते हैं और कभी-कभी मौत का कारण भी बनता है। रोग का फैलना बीमार पशु से यह रोग धीरे-धीरे स्वस्थ पशुओं में भी फैलने लगता है। क्योंकि सभी पशु एक साथ चारा खाते हैं। इससे वह भी इस रोग की चपेट में आ जाते हैं। इतना ही नहीं यह हवा से दूसरे स्वस्थ पशुओं में फैलता है। उपचार के साधन विषाणु से फैलने वाले रोगों का इलाज अभी तक नहीं खोजा जा सका है। फिर भी कुछ दवाएं इस रोग को कम करने के काम आती हैं। पैरों के घावों में मरहम पट्टी से रोग को बढ़ने से रोकने के लिए उपचार किया जाता है। रोग के लक्षण मिलने पर उठाएं कदम -बीमार पशु को तत्काल स्वस्थ्य पशुओं से दूर रखें, उनका दाना पानी भी अलग दें। -पशु को बांधकर रखें और उन्हें घूमने फिरने न दें। -पशु को सूखे स्थान पर ही बांधे, कीचड़, गीली मिट्टी व गंदगी से दूर रखें। -बीमार पशु को कतई न बेचें और नहीं बीमार पशु को खरीदें। -जहां पशु की लार गिरती है, वहां पर कपड़े धोने का सोडा व चूने का छिड़काव करें। -फिनाइल का प्रयोग भी बीमारी की रोकथाम में सहायक होता है। -मृत पशु को तत्काल पूरी तरह जला दें, संभव न हो तो उसे गहरे गड्ढे में गाड़ दें। -समय-समय पर पशुओं में खुरपका मुंहपका के टीके अवश्य लगवाएं। -रोक फैलने पर तत्काल नजदीकी पशु चिकित्सक को इसकी सूचना दें। इनका कहना है एफएमजी का टीका साल में दो बार लगवाना चाहिए। ताकि बीमारी पशुओं के पास तक न फटकने पाए। इसके लिए शासन हर साल दो बार अभियान चलाता है। इसके लिए पशुपालकों को खुद ही जागरूक रहकर टीकाकरण कराने से कतई नहीं चूकना चाहिए। इसके लिए अभियान शुरू हो गया है। सभी पशुपालक टीमों को सहयोग करें। -डॉ. देवेंद्र कुमार शर्मा, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी। खुर पका मुंह पका का देसी इलाज क्या है?रोग का उपचार
मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी के पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए। मुंह में बोरो-गिलिसरीन तथा खुरों में किसी एंटीसेप्टिक लोशन का प्रयोग किया जा सकता है। इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए। पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।
खुरपका रोग कैसे होता है?खुरपका व मुंहपका रोग से पीड़ित पशुओं को तेज बुखार हो जाता है। मुंह से लार निकलने लगता है। इसी के साथ मुंह व खुरों में छाले पड़ जाते हैं। पशु लंगड़ाने लगते हैं।
गाय के मुंह में छाले होने पर क्या करें?पशु के मुंह में छाले पड़ने पर सुहागा के चूर्ण को पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए या फिर पोटाश को ठंडे पानी में मिलाकर मुंह की सफाई करनी चाहिए। या फिर ग्लिसरीन और बोरिक ऐसिड का पेस्ट बनाकर जीभ के उपर छालों पर लगानी चाहिए। इन उपचारों को दिन में तीन से चार बार दोहराते रहते चाहिए।
फुट एंड माउथ रोग कैसे होता है?(Foot-and-mouth disease-FMD)
FMD गाय, भैंस और हाथी आदि में होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह खासकर दूध देने वाले जानवरों के लिये अधिक हानिकारक होता है। पशुओं के जीभ और तलवे पर छालों का होना जो बाद में फट कर घाव में बदल जाते हैं। इसके पश्चात् जानवरों के दुग्ध उत्पादन में भी लगभग 80 प्रतिशत तक की गिरावट आ जाती है।
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