उपभोक्ता संस्कृति समाज में कैसे कार्य करती है? - upabhokta sanskrti samaaj mein kaise kaary karatee hai?

उपभोक्तावाद की संस्कृति का सार

उपभोक्तावाद की संस्कृति निबंध बाज़ार की गिरफ्त में आ रहे समाज की वास्तविकता को प्रस्तुत करता है। लेखक का मानना है कि हम विज्ञापन की चमक-दमक के कारण वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं, हमारी निगाह गुणवत्ता पर नहीं है। संपन्न और अभिजात वर्ग द्वारा प्रदर्शनपूर्ण जीवन शैली अपनाई जा रही है, जिसे सामान्य जन भी ललचाई निगाहों से देखते हैं। यह सभ्यता के विकास की चिंताजनक बात है, जिसे उपभोक्तावाद ने परोसा है। लेखक की यह बात महत्वपूर्ण है कि जैसे-जैसे यह दिखावे की संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति और विषमता भी बढ़ेगी।

लेखक अपने विचार प्रकट करते हुए बताता है कि आज समाज में चारों ओर नयी जीवन-शैली स्थापित होती जा रही है। नये-नये उत्पादों से सुख भोगा जा रहा है। नए उत्पादों के साथ-साथ मानव-चरित्र में भी बदलाव आता जा रहा है। दैनिक जीवन में काम आने वाली विभिन्न सामग्रियाँ अपनी ओर खींचती हैं। दाँतों की सुरक्षा और स्वच्छता के लिए अनेक प्रकार के टूथ-पेस्ट बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन हम मशहूर और कीमती ब्रांड ही खरीदना पसंद करते हैं। शारीरिक सौंदर्य बढ़ाने के लिए अनेक नए उत्पाद बाजार से जुड़े हुए हैं। तरह-तरह की साबुन हैं जो शरीर को तरोताजा रखती है. पसीना रोककर जी से रक्षा करती हैं, शरीर को पवित्र एवं त्वचा को नर्म रखती हैं। समृद्ध परिवार की महिलाएं सौंदर्य-सामग्री पर हजारों रुपये खर्च कर देती हैं। इसी तरह पुरुषों के लिए भी अनेक चीजें बाजार में आई हुई हैं।

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लेखक कहता है कि अनेक तरह के बुटीक खुले हुए हैं जहाँ समय के अनुसार और महँगे वस्त्र पहनने को मिलते हैं। पुराने फैशन के कपड़े पहनने में लोगों को शर्म आती है। घड़ी समय देखने के काम आती है, मगर दूसरों को दिखाने के लिए लोग महँगी-से-महंगी घड़ी खरीद सकते हैं। म्यूजिक सिस्टम महँगा होना चाहिए चाहे संगीत समझ ही न आता हो। इसी तरह लोग दिखावे के लिए कम्प्यूटर खरीदते हैं। आज लोग सुख-सुविधाओं को देखने लगे हैं। अच्छे होटल में खाना खाना, अच्छे अस्पताल में इलाज करवाना, अच्छे महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करना उन्हें अच्छा लगता है। अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में तो एक अच्छी कीमत देकर अपने अंतिम संस्कार और विश्राम का प्रबंध भी किया जाता है। इस प्रकार की बातें हमारे देश में भी हो सकती हैं। अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने के कई तरीके होते हैं। इस तरह लेखक ने उपभोक्तावादी समाज का चित्रण किया है। उनके लिए विज्ञापन का विशेष महत्त्व है। यही उन्हें अपने अनुरूप लगता है।

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यहाँ लेखक पूछना चाहता है कि इस उपभोक्ता संस्कृति का विकास भारत में क्यों हो रहा है? लेखक तर्क देता है. कि भारत में सामंती संस्कृति के तत्व पहले भी थे तथा इसी संस्कृति से उपभोक्तावाद जुड़ा रहा है। आज समय बदल गया है। आज सांस्कृतिक पहचान करें तो पाएंगे कि परम्पराओं का महत्व समाप्त हो गया है, आस्थाओं का विनाश हो गया है। हम बुद्धि से अपने-आपको दास समझने लगे हैं, पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहे हैं। अपनी झूठी प्रतिष्ठा बनाने के लिए अपनों को धोखा दे रहे हैं। अपनों को भुलाकर आधुनिकता के फरेब में धँसते जा रहे हैं। हमारा समाज भी दूसरों के इशारों पर चल रहा है। विज्ञापन और प्रसार का सम्मोहन हमारी मानसिकता को बदल रहा है। अब यह चिंता का विषय बनता जा रहा है कि इस संस्कृति के फैलाव के क्या परिणाम निकलेंगे? संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है, विदेशी वस्तुओं को पसंद किया जा रहा है। लोगों में आपसी दूरी बढ़ रही है। इस प्रकार का अंतर अशांति उत्पन्न करता है। हम अपने लक्ष्य को पाने के लिए भटक जाएंगे आज मर्यादाएँ टूट रही हैं। नैतिक मापदंड ढीले हो रहे हैं। सभी स्वार्थ पूर्ति में लगे हुए हैं, दूसरों के विषय में कोई नहीं सोचता। भोग की इच्छा बहुत अधिक फैली हुई है। गांधी जी के अनुसार हमें अपने आदर्शों पर टिके रहते हुए स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों को भी अपनाना चाहिए। उपभोक्ता संस्कृति हमारे लिए खतरा है। आने वाले समय में यह एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाएगी।

उपभोक्तावाद की संस्कृति का प्रश्न उत्तर

1.लेखक के अनुसार जीवन में सुख' से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- लेखक का कहना है कि उपभोक्तावाद के दर्शन ने आज सुख की परिभाषा बदल दी है। आज के समय में बढ़ते हुए उत्पादों का भोग करना ही सुख है। दूसरे शब्दों में जिन उत्पादों से हमारी इच्छा पूर्ति होती है। उस इच्छापूर्ति को सुख कहते हैं लेखक का कहना है कि उत्पाद के प्रति समर्पित होकर हम अपने चरित्र को भी बदल रहे हैं अर्थात वास्तविक सुख की स्थान पर भौतिक सुख को महत्व दे रहे हैं।

2.आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

उत्तर- आज की उपभोक्तावादी संस्कृति सामान्य व्यक्ति के दैनिक जीवन को पूरी तरह से प्रभावित कर रही है। आज हम विज्ञापन की चमक-दमक के कारण वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं। हम उसकी गुणवत्ता को नहीं देखते हैं संपन्न वर्ग की होड़ करते हुए सामान्य जन भी उसे पाने के लिए लालायित दिखाई देते हैं। दिन-प्रतिदिन परंपराओं में गिरावट आ रही है। आस्थाएं समाप्त होती जा रही हैं।

3.लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?

उत्तर-लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि दिखावे की संस्कृति के फैलने से सामाजिक अशांति विषमता और विद्रूपता बढ़ती जाती है। हमें अपने समाज में स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभाव बनाए रखने होंगे। यदि ऐसा न किया गया तो हमारी सामाजिक नींव हिल जाएगी। उपभोक्ता की संस्कृत में फंसकर लोग अपने ही समाज के दुश्मन हो जाएंगे।

4. आशय स्पष्ट कीजिए

(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

उत्तर- उपर्युक्त कथन का आशय यह है कि आज हम वस्तु की गुणवत्ता को न देखकर विज्ञापन की चमक-दमक में फंसते जा रहे हैं तथा संपन्न वर्ग की देखा-देखी हम भी उन्हें पाने के लिए उत्सुक रहते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप उस उत्पाद के प्रति समर्पित होकर हम आज के मशीनीकरण के समाज में ढलते जा रहे हैं।

(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।

उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि प्रतिष्ठित व्यक्तित्व किसी भी तरह का कोई भी असंभव कार्य कर सकता है। वह उसके व्यक्तित्व को निखारने या प्रसार करने में मदद करता है लेकिन वही काम किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा यदि किया जाता है तो वह हंसी का पात्र बन जाता है। उसका लोग मजाक उड़ाने लगते हैं। अतः समाज कल्याण का कार्य किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जाए तो उसे हमें सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए।

उपभोक्तावाद की संस्कृति की रचना और अभिव्यक्ति

5.कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं| क्यों?

उत्तर- टीवी पर किसी भी वस्तु का विज्ञापन इतने प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है कि उस विज्ञापन को देखकर हम उससे इतने अधिक प्रभावित हो जाते हैं कि आवश्यकता न होने पर भी हम उस वस्तु को खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं। ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियां लाखों करोड़ों रुपए अपने उत्पादन के विज्ञापन में लगा देती हैं। इसका सीधा सा यही अर्थ है कि लोगों का विज्ञापन की ओर आकर्षित होना।

6. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।

उत्तर- हमारे अनुसार वस्तु को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए न कि उसका विज्ञापन। जिस वस्तु का गुणवत्ता युक्त विज्ञापन होता है वह बाजार में सदैव बनी रहती है। किसी वस्तु में गुणवत्ता नहीं है विज्ञापन के कारण किसी ने उस वस्तु को खरीद लिया लेकिन दूसरी बार वह उसे नहीं खरीदेगा। अगर इसमें गुणवत्ता होती तो वह उसे बार-बार खरीदता।

7. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही 'दिखावे की संस्कृति' पर विचार व्यक्त कीजिए।

 विद्यार्थी स्वयं करें

8.आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।

 विद्यार्थी स्वयं करें

उपभोक्तावाद की संस्कृति का भाषा-अध्ययन

9.धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।

इस वाक्य में 'बदल रहा है' क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अत: यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।

(क)ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।

उत्तर-

*चारों ओर उत्पादन बढ़ाने पर जोर है ।

*जो आप को लुभाने की जी तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है ।

*आज सामंत बदल गए हैं।

*अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है।

*अच्छे इलाज के अतिरिक्त यह अनुभव काफी समय तक चर्चा का विषय भी रहेगा।

ख.धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।

उत्तर-

*बच्चा बहुत

जोर से

चिल्लाया।

*दिनेश दो घंटे से

लगातार

लिख रहा है।

*वह कक्षा में

हमेशा

बोलता रहता है।

*

आजकल

तुम बहुत कम दिखाई देते हो।

*आज बेरोजगारी बहुत

ज्यादा

हो गई है।

*तुम्हें

यहां

नहीं आना चाहिए था।

(ग)नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए

(1) कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।

उत्तर-

क्रिया-विशेषण- निरंतर

विशेषण-

(2) पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया।

उत्तर-

क्रिया-विशेषण-

विशेषण- पके

(3) रसोईघर से आती पुलाव की हलकी खुशबू से मुझे जोरों की भूख लग आई।

उत्तर-

क्रिया-विशेषण-

विशेषण- हलकी खुशबू, जोरों

(4) उतना ही खाओ जितनी भूख है।

उत्तर-

क्रिया-विशेषण- उतना

विशेषण-

(5) विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है।

उत्तर-

क्रिया-विशेषण- आजकल

विशेषण- विलासिता

उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा?

गाँधी जी चाहते थे कि हम भारतीय अपनी बुनियाद पर कायम रहें, अर्थात् अपनी संस्कृति को न त्यागें। परंतु आज उपभोक्तावादी संस्कृति के नाम पर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मिटाते जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने उपभोक्तावादी संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है।

आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित कर रही है?

आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर रही है। हम वही खाते-पीते और पहनते-ओढ़ते हैं जो आज के विज्ञापन कहते हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण हम धीरे-धीरे उपभोगों के दास बनते जा रहे हैं। हम अपनी जरूरतों को अनावश्यक रूप से बढ़ाते जा रहे हैं।

उपभोक्तावाद की संस्कृति लोगों पर क्या प्रभाव डाल रही है?

आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे जीवन पर हावी हो रही है। मनुष्य आधुनिक बनने की होड़ में बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं, पश्चिम की संस्कृति का अनुकरण किया जा रहा है। आज उत्पाद को उपभोग की दृष्टि से नहीं बल्कि महज दिखावे के लिए खरीदा जा रहा है। विज्ञापनों के प्रभाव से हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं।

उपभोक्ता संस्कृति से आप क्या समझते हैं?

उपभोक्ता संस्कृति से हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास हो रहा है। इसके कारण हमारी सामाजिक नींव खतरे में है। मनुष्य की इच्छाएँ बढ़ती जा रही है, मनुष्य आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। सामाजिक दृष्टिकोण से यह एक बड़ा खतरा है।