खनिज उत्खनन को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए - khanij utkhanan ko prabhaavit karane vaale kaarakon ka varnan keejie

खनन की वजह से विस्थापित होने वाले, जमीन का अधिकार खो देने वाले व जिनकी आजीविका खत्म हो गई है वे प्रभावित माने जाते हैं।

जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) न्यास को पांच वर्ष हो रहे हैं लेकिन समुचित तौर पर खनन से पीड़ित व्यक्तियों की न तो पहचान हो रही है और न ही उन्हें सूचीबद्ध किया जा रहा है। यही सबसे बड़ी वजह है कि खनन से जो सर्वाधिक प्रभावित हैं वह डीएमएफ के लाभ से ही वंचित हैं। खनन की वजह से विस्थापित होने वाले, जमीन का अधिकार खो देने वाले व जिनकी आजीविका खत्म हो गई है वे प्रभावित माने जाते हैं। खान एवं खनिज (विकास और नियामक) संशोधन कानून 2015, के प्रधान कानून के तहत विशिष्ट तौर पर डीएमएफ का एक गैर लाभकारी न्यास के रूप में गठन किया गया है। इस न्यास का खनन से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की पहचान करना प्राथमिक और अहम काम होना चाहिए। एक न्यास के तौर पर यह कानूनी जिम्मेदारी है कि वह खनन प्रभावित सही लाभार्थियों की पहचान करें। बिना लाभार्थियों के न्यास नहीं हो सकता।  

प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (पीएमकेकेवाई) की गाइडलाइन के तहत यह स्पष्ट तौर पर परिभाषित किया गया है कि खनन प्रभावित कौन हैं। इनमें प्राथमिक तौर पर वह व्यक्ति शामिल हैं जो खनन के चलते अपने जमीन का कानूनी, पेशेवर व जमीन के उपयोग का अधिकार, आजीविका या जंगल आधारित आजिविका और पारंपरिक अधिकार खो देते हैं। यह डीएमएफ से ही जुड़ा है। साथ ही सभी राज्यों में डीएमएफ न्यास नियमों का हिस्सा भी है। (नीचे देखें – खनन प्रभावित कौन?)

खनन प्रभावितों की उपेक्षा के चलते डीएमएफ में लक्ष्य केंद्रित किए जाने वाले निवेश की संभावना को खत्म कर रहा है। डीएमएफ फंड के न्यास से प्रभावितों की न सिर्फ जिंदगी बल्कि उनकी आजीविका को भी सुधारा जा सकता है। यह कुछ खनन प्रभावित जिलों में डीएमएफ के निवेश से स्पष्ट होता है। मिसाल के तौर पर झारखंड के शीर्ष कोयला खनन जिलों को ले सकते हैं। झारखंड देश में डीएमएफ संग्रहण के मामले में दूसरे नंबर का राज्य है। झारखंड के पास डीएमएफ फंड में 4,084 करोड़ रुपये से भी ज्यादा फंड मौजूद है। इसी राज्य में शीर्ष कोयला खनन वाला जिला रामगढ़ है। इस वर्ष डीएमएफ न्यास के खाते में करीब 568 करोड़ रुपए का संग्रहण है। यहां दो मत्सय परियोजनाओं के लिए डीएमएफ ट्रस्ट फंड से ही 4 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इनमें भैरव जलाशय और नलकरी जलाशय परियोजना शामिल हैं।

रामगढ़ जिले में मत्सय विभाग के मुताबिक भैरव परियोजना के तहत 334 लाभार्थी और नलकरी परियोजना के तहत 132 लाभार्थी हैं। हालांकि, इन लाभार्थियों में ज्यादातर खनन प्रभावित लोग नहीं है। मत्सय विभाग के मुताबिक बांध के कारण विस्थापित हुए लोग ही इस परियोजना के लाभार्थी हैं। वहीं, जिले में डीएमएफ की निगरानी करने वाली ईकाई (पीएमयू) ने भी यह स्पष्ट किया है। इस जिले के पास भी खनन प्रभावितों की न तो सूची है और न ही न्यास से लाभान्वित हुए वास्तविक लोगों की संख्या।

झारखंड में शीर्ष कोयला खनन जिला धनबाद में भी डीएमएफ का यही हाल है। यहां झरिया में खनन प्रभावित लोगों के लिए अभी तक कोई निवेश नहीं किया गया है। यहां खनन से प्रभावित होने वाले प्राथमिक लाभार्थी मौजूद हैं लेकिन उनकी आजीविका और उनको दोबारा बसाने को लेकर भी कुछ नहीं किया गया है। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि डीएमएफ न्यास को जो करना चाहिए वह नहीं किया जा रहा है। क्या वास्तविक लाभार्थी लक्ष्य किए जा रहे हैं?  यदि रामगढ़ के मामले में देखें तो यहां के लिए आजीविका परियोजना बेहद अहम है। डीएमएफ  न्यास के जरिए खनन प्रभावित सही लाभार्थियों के आजीविका का प्रबंध करना चाहिए। बांध से प्रभावित होने वाले लोगों के लिए अन्य वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अन्यथा खनन प्रभावित लोगों को लाभ पहुंचाने वाले एक विशिष्ट फंड और योजना का कोई अर्थ नहीं है।

जरूरत है कि सरकारी प्राधिकरण और खासतौर से डीएमएफ की प्रशासनिक संस्था यानी डीएमएफ की अध्यक्षता करने वाले जिलाधिकारी उसके सही क्रियान्वयन पर जोर दें। डीएमएफ जिले के सामान्य विकास का फंड नहीं है। एक दशक पहले खनन प्रभावित क्षेत्रों में आजीविका और अधिकारों से वंचित होने वाले लोगों के लिए यह तैयार किया गया था। इन समृद्ध खनन क्षेत्रों में देश के सबसे उपेक्षित और गरीब लोग वास करते हैं। डीएमएफ फंड इन्हीं के लिए बनाया गया था। डीएमएफ को सामाजिक-आर्थिक न्यास के लिए प्रभाव में लाया गया था। सही लाभार्थियों की पहचान न होने से डीएमएफ अपनी मूल भावना के विरुद्ध काम कर रहा है।  

पीएमकेकेवाई के तहत कौन हैं खनन प्रभावित

  • जमीन अधिग्रहण में उचित और पारदर्शी मुआवजा, पुर्नस्थापन और पुर्नवास कानून, 2013 के अधीन सेक्शन 3 (सी) में परिभाषित प्रभावित परिवार और कानून के ही 3 (के) में परिभाषित विस्थापित परिवार
  • जमीन का खनन होने से उसपर कानूनी और पेशेगत अधिकार खो देने वाले खनन प्रभावित लोग
  • खनन की वजह से जमीन के उपभोग व पारंपरिक अधिकार खत्म होने वाले लोग
  • संबंधित ग्राम सभा के जरिए चिन्हित लोग

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प्रशन: खनन की विभिन्न पद्धतियों की व्याख्या कीजिए। भारत में खनन गतिविधियों को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, खनन गतिविधियों से सम्बद्ध चिंताओं की भी विवेचना कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • खनन की एक संक्षिप्त परिभाषा देते हुए इसकी विभिन्न पद्धतियों की व्याख्या कीजिए।
  • भारत में खनन गतिविधियों को प्रभावित करने वाले कारकों को रेखांकित कीजिए।
  • खनन गतिविधियों से संबद्ध चिंताओं की विवेचना कीजिए।

उत्तर:

खनन से आशय ऐसी प्रक्रिया से है जिसके अंतर्गत पृथ्वी के आंतरिक भाग से विभिन्न खनिज पदार्थों जैसे- धात्विक यौगिकों तथा कोयला, रेत, तेल व प्राकृतिक गैस इत्यादि जैसे गैर-खनिज पदार्थों को उत्खनित किया जाता है। अयस्क की उपस्थिति और प्रकृति के आधार पर, खनन निम्न प्रकार के होते हैं:

  •  धरातलीय खनन (Surface mining): इसे विवृत खनन (open-cast) भी कहा जाता है, यह खनिजों के खनन की सबसे सरल व सस्ती विधि है और इस विधि का प्रयोग सतह के निकट विद्यमान पदार्थों के खनन हेतु किया जाता है। इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर किया गया व्यय अपेक्षाकृत कम होता है। इस विधि के अंतर्गत उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है।
  • भूमिगत खनन (Underground mining): अयस्क के धरातल के नीचे गहराई में निक्षेपित होने की स्थिति में भूमिगत अथवा कूपकी खनन विधि (shaft method) का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में, लंबवत कूपक गहराई तक खोदे जाते हैं जहां से खनिजों तक पहुँचने हेतु भूमिगत गैलरियां विस्तृत होती हैं। इन मार्गों से ही खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है।

अन्य पद्धतियों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

  • प्लेसर खनन, इस विधि का उपयोग नदी मार्गों, पुलिन बालू अथवा अन्य परिवेशों की तलछटों से मूल्यवान धातुओं के निष्कर्षण के लिए किया जाता है।
  • स्व-स्थानिक खनन, इस विधि का उपयोग मुख्य रूप से यूरेनियम के खनन के लिए किया जाता है। इसके अंतर्गत खनिज संसाधनों को उसी स्थान पर विलयित (dissolving) किया जाता है। इसके पश्चात धरातल से शैलों को हटाए बिना सतह पर इस खनिज को परिष्कृत किया जाता है।

भारत में खनन गतिविधि को प्रभावित करने वाले कारक:

भौतिक कारक

  • खनिज निक्षेपों का आकार तथा अयस्क की श्रेणी: यह एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि खनन के लिए बड़ी मात्रा में महंगे उपकरणों की आवश्यकता होती है। उच्च श्रेणी के अयस्क अधिक मात्रा में धातुओं का उत्पादन करते हैं, इसलिए ये अधिक खनन गतिविधियों को आकर्षित करते हैं।
  • निक्षेपों की उपलब्धता की अवस्था: यह खनन की विधि के प्रयोग को निर्धारित करता है।
  • अभिगम्यता (पहुंच): भू-भाग और जलवायु अभिगम्यता का निर्धारण करते हैं जो खनन कार्यों में सहायता अथवा अवरोध उत्पन्न करता है।

आर्थिक कारक

  • खनिज की मांग: स्वर्ण, हीरा, तांबा, यूरेनियम इत्यादि की अत्यधिक माँग के कारण इनका प्राय: उच्च कीमत पर खनन किया जा सकता है तथा इन्हें उच्च लागत पर विक्रय किया जा सकता है।
  • विद्यमान तकनीक और उसका उपयोग: प्रौद्योगिकी में परिवर्तनों के कारण खनिज संसाधनों के दोहन के तरीकों में भी परिवर्तन हुआ है। उदाहरण के लिए, सुदूर संवेदन तकनीकों (रिमोट सेंसिंग तकनीकों) की सहायता से, किसी क्षेत्र में खनिज संसाधनों के भंडारों का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • परिवहन लागत: परिचालन लागत के संदर्भ में, तटीय स्थानों अथवा औद्योगिक स्थलों के निकट स्थित निक्षेपों का दूर – स्थित अंतर्देशीय निक्षेपों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होता है।
  • अन्य कारक: इसके अंतर्गत श्रम लागत, अवसंरचना के विकास हेतु पूंजी, प्रशुल्क नीतियां इत्यादि सम्मिलित होते हैं।

खनन गतिविधि से संबद्ध चिंताएं:

  • वनस्पति-ह्रास और भूमि क्षरण: खनन के लिए वनस्पति के साथ-साथ मूलाधार मृदा की परतों और ऊपरी शैल खण्डों को हटाने की आवश्यकता होती है, जिससे उस क्षेत्र का भू-परिदृश्य नष्ट हो जाता है।
  • भू-अवतलन: खनन क्षेत्रों के अवतलन के परिणामस्वरूप इमारतों में झुकाव, घरों में दरारें, सड़कों में संकुचन (बकलिंग), रेल की पटरियों में मुड़ाव, पाइप लाइनों की दरारों से गैस का रिसाव आदि विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती है, जो गंभीर आपदाओं का कारण बनती हैं।
  • जल प्रदूषण: अयस्कों में उपस्थित सल्फर से सल्फ्यूरिक अम्ल का निर्माण होता है जो खनन गतिविधियों के माध्यम से सतही जल के साथ-साथ भूजल के प्रदूषण (खान से होने वाला अम्लीय अपवाह) का भी एक गंभीर कारण बनता है। यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी पदार्थ व भारी धातुएँ भी जल निकायों को प्रदूषित करती हैं।
  • वायु प्रदूषण: सल्फर ऑक्साइड, आर्सेनिक अम्ल, कैडमियम और लेड आदि प्रगालकों का निकटवर्ती वायुमंडल में तीव्रता से प्रसार हो जाता है। साथ ही, खनन गतिविधियां उस क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर धूल प्रदूषण का कारण बनती हैं।
  • ध्वनि प्रदूषण: ड्रिलिंग व विस्फोट जैसी गतिविधियां, फावड़ों, डंपरों, ड्रिलिंग यंत्रों, बुलडोज़रों, रिपर्स इत्यादि जैसे खनन 

    खनन को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

    खनन कार्य की लाभप्रदता दो बातों पर निर्भर करती है। (i) भौतिक कारक जिनमें खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को सम्मिलित करते है। (ii) आर्थिक कारक जिनमें खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय आता है।

    उत्खनन से किस प्रकार के पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं उनका क्या निदान है?

    नदियों व तालाबों से खनन करके लाई गई रेत या बालू का परिवहन खुले वाहनों में किया जाता है। जो हवा के साथ उड़कर पर्यावरण को दूषित करती है। रेत के सूक्ष्म कण हवा में फैलने से वह संास लेने पर हमारे शरीर के अंदर चले जाते है जो हमारे फेफड़ों में एकत्र हो जाता है। इससे हमारे शरीर में नई-नई बीमारियां होने लगती हैं

    प्र १८ खनन को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

    18. खनन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से है?.
    अयस्क की समृद्धि या ग्रेड.
    जमा राशि.
    खनन तकनीक.
    अभिगम्यता.
    परिवहन विकल्प.
    औद्योगीकरण का चरण.
    तकनीकी.

    खनन क्या है विधियों का वर्णन कीजिए?

    इस प्रकार के खनन में धरातल के ऊपर जो पहाड़ आदि हैं उनको तोड़कर खनिज प्राप्त किए जात हैं, जैसे चूने का पत्थर, बालू का पत्थर, ग्रैनाइट, लौह अयस्क आदि। इस विधि में मुख्य कार्य पत्थर को तोड़ना ही हैं। शिलाएँ कठोरता, मजबूती तथा दृढ़ता में भिन्न होती हैं। जो शिलाएँ कोमल होती हैं, उनको तोड़ने में कोई कठिनाई नहीं होती।