कविता में छंदों का क्या महत्व है तथा इसके प्रकार का बताइये? - kavita mein chhandon ka kya mahatv hai tatha isake prakaar ka bataiye?

कविता में छंदों का क्या महत्व है तथा इसके प्रकार का बताइये? - kavita mein chhandon ka kya mahatv hai tatha isake prakaar ka bataiye?

छंद और इसकी मात्राएँ | छंद के प्रकार - मात्रिक छंद, वर्णिक छंद और अतुकांत (मुक्त) छंद

  • BY:RF Temre
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कविता के शाब्दिक अनुशासन का नाम छंद है।
काव्यशास्त्र के नियमानुसार जिस कविता या काव्य में मात्रा, वर्ण संख्या, गण, यति, गति, लय तथा तुक आदि नियमों का विचार करके शब्द योजना की जाती है, उसे 'छंद' कहते हैं।
काव्य में छंद के माध्यम से कम शब्दों में आधिकारिक भावों की अभिव्यक्ति होती है तथा इससे संगीत और लय का समावेश हो जाता है। अतः गेयता, भावाभिव्यक्ति और नाद-सौंदर्य की दृष्टि से छंद की उपयोगिता सर्वमान्य है।

मात्रा- किसी स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है उसकी अवधि को मात्रा कहते हैं। मात्राएँ हृस्व और दीर्घ होती है।
हृस्व मात्रा- अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर की मात्राएँ हैं। इसे लघु भी कहते हैं। इसकी एक मात्रा गिनी जाती है। इसका चिन्ह '।' है।
दीर्घ मात्रा- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की दीर्घ मात्रा होती है। इसे गुरु भी कहते हैं। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है। इसका संकेत चिन्ह 'S' है।

मात्रा लगाने के सामान्य नियम निम्नलिखित हैं-
1. सभी हृस्व स्वरों और उनके योग से उच्चारित वर्णों पर लघु मात्रा लगती है।
2. दीर्घ स्वरों और उनके सहयोग से उच्चारित व्यंजनों पर गुरु मात्रा लगती है।
3. अनुस्वार और विसर्ग युक्त वर्णों पर गुरु मात्रा लगती है, चाहे वे हृस्व वर्ण ही हों।
4. संयुक्त अक्षर से पूर्व के वर्ण पर गुरु मात्रा लगती है। यदि शब्द का पहला वर्ण संयुक्त है तो उस पर वर्ण के अनुसार मात्रा लगेगी अर्थात् यदि वह लघु वर्ण तो लघु और दीर्घ वर्ण वर्ण है तो गुरु मात्रा लगेगी।
5. संयुक्ताक्षर के पूर्व के वर्ण पर यदि बल नहीं पड़ता तो उसकी मात्रा लघु ही रहेगी।

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मात्राओं से संबंधित अन्य नियम निम्नलिखित हैं-
1. कविता में प्रायः संयुक्त अक्षर से पहले वर्ण को गुरु S माना जाता है। जैसे- दीनबन्धु
2. अनुस्वार से युक्त ह्रस्व वर्ण गुरु माना जाता है। जैसे- बसंत ISI
3. विसर्ग युक्त ह्रस्व वर्ण गुरु माना जाता है। जैसे- अतः IS
4. किसी शब्द के प्रथम संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा हो तो वह गुरु माना जाएगा, किन्तु यदि ह्रस्व है तो लघु रहेगा। जैसे- क्लांत SI, स्वर II
5. यदि संयुक्त वर्ण के पहले का वर्ण स्वयं गुरु हो तो उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे- मान्धाता SSS
6. चन्द्र बिन्दु वाला अक्षर लघु मात्रा में आता है। जैसे- हँस II

गण- इसका महत्व वर्णिक छंदों में होता है। तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। वर्णित छंदों में वर्ण की गणना की जाती है। उन वर्णों की लघुता एवं गुरुता के विचार से गणों के आठ रूप होते हैं। उन गणों के नाम तथा लक्षण इस सूत्र से याद रखे जा सकते हैं।
"यमाता राज भान सलगा"
गण, उनके नाम, मात्राएँ तथा उदाहरण निम्नलिखित हैं-
1. यगण- यमाता- ISS- कहानी
2. मगण- मातारा- SSS- पांचाली
3. तगण- ताराज- SSI- वागीश
4. रगण- राजभा- SIS- साधना
5. जगण- जभान- ISI- हरीश
6. भगण- भानस- SII- गायक
7. नगण- नसल- III- सरस
8. सगण- सलगा- IIS- प्रभुता

यति- छंद को पढ़ते समय जहाँ रुका जाता है, उसे यति कहा जाता है।

लय- छंद को पढ़ने की शैली को लय करते हैं।

गति- गति का अर्थ है प्रवाह अर्थात् छंद को पढ़ते समय प्रवाह एक-सा हो। मात्रिक छंदों के लिए इसका विशेष महत्व है।

तुक- पद के चरणों के अंत में जो समान स्वर आते हैं तथा साम्य में बैठाने के लिए लिये जाते हैं, उन्हें तुक कहते हैं।

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छंद के भेद- छंद दो प्रकार के होते हैं-
1. मात्रिक छंद
2. वर्णिक छंद

मात्रिक छंद- जिन काव्य रचनाओं में मात्राओं की गणना की जाती है तथा इसके आधार पर छंद का गठन किया जाता है, तो इसे मात्रिक छंद कहते हैं। हिंदी के प्रमुख मात्रिक छंद निम्नलिखित हैं-

दोहा छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इस छंद के विषम चरणों में (प्रथम और तृतीय) 13-13 मात्राएँ तथा सम चरणों (द्वितीय व चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। तुक सम चरणों में होती है। चरण के अंत में लघु होना आवश्यक है।
उदाहरण- 1. मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
SS II SS IS SS SII SI 13+11=24
जा तन की झाँई परे, स्याम हरित दुति होय।
S II S SS IS SI III II SI 13+11=24
2. उठे लखनु निसि बिगत सुनि, अरुन सिखा धुनि कान।
IS III II III II III IS II SI 13+11=24
गुरु ते पहिलेहि जगत्पति, जागे जानु सुजान।
II S IISI IIII SS SI ISI 13+11=24

चौपाई- यह मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। तुक पहले चरण की दूसरे चरण से और तीसरे चरण की चौथे चरण से मिलती है। इसका अंत गुरु लघु (SI) से होता है।
उदाहरण- 1. ते दोउ बंधु प्रेम जनु जीते।
S SI II SI II SS =16
गुरु पद कमल पलोटत प्रीते।
II II III ISII SS =16
बार-बार मुनि आज्ञा दीन्हीं।
SI SI II SS SS =16
रघुबर आइ सयन सब कीन्हीं।
IIII SI III II SS =16
2. मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदशरथ अजर बिहारी।।
करि प्रणाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी।।

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रोला छंद- यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। एक पंक्ति में दो चरण होते हैं। जिसकी प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 11-11 व द्वितीय चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति में कुल 24 मात्राएँ होती हैं। अंत में दो गुरु होते हैं। इसे रोला छंद कहते हैं।
उदाहरण- तरनि तनूजा तरू, तमाल तरुवर बहु छाए।
III ISS IS, ISI III II SS 11+13=24
झुके कूल सों जल, परसन हित मनहुँ सुहाए।
IS SI S II, IIII II III ISI 11+13=24
जमुना जल में लखत, उझकि सब निज-निज शोभा।
IIS II S III, III II II II SS 11+13=24
कै उमंगे प्रिय, प्रिया के अनगिन गोभा।
S ISS SI, SS S IIII SS 11+13=24

सोरठा छंद- यह एक मात्रिक छंद है। दोहा का उल्टा होता है। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण- राधा नागरि सोय, मेरी भव बाधा हरौ।
SS SII SI, SS II SS IS 11+13=24
श्याम हरित दुति होय, जा तन की झाँई परे।
SI III II SI, S II S SI IS 11+13=24

उल्लाला छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इसकी प्रत्येक पंक्ति में कुल 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 15 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। इसे उल्लाला छंद कहते हैं।
उदाहरण- करते अभिषेक पयोद हैं, बलियारी इस देश की।
IIS IISI ISI S, IISS II SI S 15+13=28
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।
S SI SI S IS S, III SS ISI S 15+13=28

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गीतिका छंद- यह एक मात्रिक सम छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 14 व 12 कि यति से 26 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण के अंत में लघु, गुरु होता है।
उदाहरण- साधु भक्तों में सुयोगी, संयमी बढ़ने लगे।
SI SS S ISS, SIS IIS IS 14+12=26
सभ्यता की सीढ़ियों पर, सूरमा चढ़ने लगे।
ISS S SIS II, SIS IIS IS 14+12=26
वेद मंत्रों को विवेकी, प्रेम से पढ़ने लगे।
SI SS S ISS, SI S IIS IS 14+12=26
वंचकों की छातियों में, शूल से गढ़ने लगे।
SIS S SIS S, SI S IIS IS 14+12=26

हरिगीतिका छंद- यह सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-12 की गति के साथ 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण का अंत लघु-गुरु से होता है।
उदाहरण- वह सनेह की मूर्ति दयामति, माता तुल्य महीं है।
II ISI S SI ISII, SS IS IS S 16+12=28
उसके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा, क्या कुछ शेष नहीं है।
IIS II IIS SSS, S II SI IS S 16+12=28
हाथ पकड़ कर प्रथम जिन्होंने, चलना तुम्हें सिखाया।
SI III II III ISS, IIS IS ISS 16+12=28
भाषा सिखा हृदय का अद्भुत, रूप स्वरूप दिखाया।
SS IS III S SI, SI ISI ISS 16+12=28

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कुण्डली छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। यह छंद दोहा और रोला छंद का मिश्रण होता है। जिस शब्द से इस छंद का आरंभ होता है, उसी शब्द से अंत होता है। दूसरी पंक्ति का उत्तरार्ध तीसरी पंक्ति का पूर्वार्ध्द होता है। इस प्रकार के छंद को कुण्डली छंद कहते हैं। इसमें दोहा तथा रोला कुण्डली के समान गुँथे हुए होते हैं। इसमें 6 चरण होते हैं।
उदाहरण- बिना बिचारे जो करे, सो पाछे पछिताय।
IS ISS S IS, S SS IISI 13+11=24
काम बिगाडरे आपनो, जग में होत हँसाय।
SI ISS SIS, II S SI ISI 13+12=24
जग में होता हँसाय, चित्त में चैन न आवे।
II S SI ISI, IS S SI I SS 13+11=24
खानपान, सम्मान, राग, रंग, मनहिं न भावै।
SISI ISI SI SI IIS I SS 13+11=24
कह गिरधर कविराय, दुख कुछ टरत न टारें।
II IIII IISI, II II III I SS 11+13=24
खटखत है जिय माहि, कियो जो बिना विचारे।
IIII S II SI, IS S IS ISS 11+13=24

टीप- दोहा छंद + रोला छंद = कुंडली छंद

छप्पय छंद- यह एक विषम मात्रिक छंद है। इसमें 6 चरण होते हैं। यह छंद रोला और उल्लाला छंद का मिश्रण होता है। इसके प्रथम चार चरण रोला और दो चरण उल्लाला के होते हैं। रोला के प्रत्येक चरण में 11-13 की यति पर 24 मात्राएँ और उल्लाला के हर चरण में 15-13 की यति पर 28 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण- जहाँ स्वतंत्र विचार, न बदलें मन में मुख में।
IS ISI ISI, I IIS II S II S
जहाँ न बाधक बनें, सबले निबलों के सुख में।
IS I SII IS, III IIS S II S
सबको जहाँ समान, निजोन्नति का अवसर हो।
IIS IS ISI, ISII IIII S
शांतिदायिनी निशा हर्षसूचक वासर हो।
SISIS IS, ISSII SII S
सब भाँति सुशासित हों जहाँ, समता के सुखकर नियम।
II SI ISII S IS, IIS S IIII III
बस उसी स्वशासित देश में, जागें हे जगदीश हम।
II IS ISII SI S, SS S IISI II

टीप- रोला छंद + उल्लाला छंद = छप्पय छंद

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वर्णिक छंद- जिन छंदों में केवल वर्णों की गणना की जाती है तथा वर्णों की संख्या के आधार पर छंद का निर्धारण किया जाता है, उसे वर्णिक छंद कहते हैं। इसमें गण का महत्व होता है। हिंदी के प्रमुख वर्णिक छंद निम्नलिखित हैं-

घनाक्षरी छंद- य एक वर्णिक छंद है। इस छंद में एक चरण में कुल 32 वर्ण होते हैं। इसमें 8-8 पर यति से 32 वर्ण होते हैं। इस छंद को घनाक्षरी छंद कहते हैं।
उदाहरण- नगर से दूर कुछ गाँव की सी बस्ती एक
हरे भरे खेतों के समीप अति अभिराम।
जहाँ पत्रजाल अंतराल से झपकते हैं
लाल खपरैले श्वेत छज्जों के संवारे धाम।
बीचों-बीच वह वृक्ष खड़ा है विशाल एक
झूलते हैं बाल कभी जिसकी लताएँ थाम।
चढ़ी मंजु मालती लता है जहाँ छायीं हुई
पत्थर के पहियों की चौकियाँ पड़ी है श्याम।

टीप- कतिपय विद्वानों ने घनाक्षरी छंद को कवित्त भी स्वीकारा है।

मंदाक्रांता छंद- यह एक वर्णिक छंद है। यह छंद मगण, भगण, नगण, दो तगण तथा दो गुरुओं की योग से बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। चौथे, छठे और सातवें वर्ण पर यति होती है।
उदाहरण- धाता द्वारा सृजित जग में हो धरा मध्य आके।
पाके खोये विभव कित प्राणियों ने अनेकों।
जैसा प्यारा विभव ब्रज के हाथ से आज खोया।
पाके ऐसा विभव वसुधा में न खोया किसी ने।

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कवित्त छंद- यह एक वर्णिक छंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 16 और 15 के विराम (यति) से 31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।
उदाहरण- सच्चे हो पुजारी तुम प्यारे प्रेम मंदिर के,
उचित नहीं है तुम्हें दुख से कराहना।
करना पड़े जो आत्म त्याग अनुराम वश,
तो तुम सहर्ष निज भाग्य की सराहना।
प्रीति का लगाना कुछ कठिन नहीं है, सखे,
किंतु है कठिन नित्य नेह का निबाहना।
चाहना जिसे है तुम्हें चाहिए सदैव उसे,
तन मन प्राण से प्रमोद युत चाहना।

सवैया- 22 से लेकर 26 वर्ण तक के छंद को सवैया कहते हैं।
ये अनेक प्रकार के होते हैं- मत्तगयन्द, दुर्मिल, मदिर, चकोर, किरीट सवैया आदि।
हिंदी के प्रमुख सवैया छंद निम्न लिखित हैं-

मत्तगयंद (मालती) सवैया- यह एक वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु के क्रम में 23 वर्ण होते हैं। इसे मालती सवैया भी कहते हैं।
उदाहरण- धूरि भरे अति शोभित श्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरे अँगना, पग पैंजनी बाजति पीरी कछौटी।
वा छवि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सौ ले गयौ माखन रोटी।

दुर्मिल (चंद्रकला) सवैया- यह एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण तथा आठ सगण होते हैं। इसे चंद्रकला सवैया भी कहते हैं।
उदाहरण- पुर तैं निकसी रघुवीर वधू धरि-धीर दिये मग में डग द्वै।
झलकी भरि भाल कनी जल की पुट सूखि गये मधुराधर वै।
फिर बूझति हैं चलनौ अब केटिक पर्णकुटी करिहौ कित ह्वै।
तिय की लखि आतुरता पिय की, अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।

अतुकांत (मुक्त) छंद- कुछ पद्यांश गद्यात्मक होते हैं। उनमें संगीतात्मकता का अभाव है। इस प्रकार के पद्यांश अतुकांत अथवा मुक्त छंद कहलाते हैं।
मुक्त छंद के प्रवर्तक 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' हैं।
उदाहरण- हम नदी के द्वीप हैं।
हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्त्रोतस्विनी बह जाए,
वह हमें आकार देती है।

गेय पद- कुछ पद्यांश लययुक्त होते हैं। उनमें संगीतात्मकता होती है। ऐसे पद गेय पद के लाते हैं।
उदाहरण- उसकी देहरी पर अपना माथा टेककर,
हम उन्नत होते हैं उसको देखकर।
ऋतुओं! उसको नित नूतन परिधान दो,
झुलस रही है धरती, सावन दान दो।

आशा है, छंदों से संबंधित यह जानकारी परीक्षापयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
धन्यवाद।
RF Temre
infosrf.com

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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कविता में छंदों का क्या महत्व है तथा इसके प्रकार बताइए?

वर्णिक छंद जिन छंदों की रचना को वर्णों की गणना और क्रम के आधार पर किया जाता है उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं । वृतों की तरह इनमे गुरु और लघु का कर्म निश्चित नहीं होता है बस वर्ण संख्या निश्चित होती है। ये वर्गों की गणना पर आधारित होते हैं। जिनमे वर्गों की संख्या क्रम गणविधान लघु गुरु के आधार पर रचना होती है।

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दोहा छंद.
सोरठा छंद.
रोला छन्द.
चौपाई छन्द.
बरवै छंद.
कुण्डलिया (दोहा + रोला) छन्द.
हरिगीतिका छंद.
उल्लाला छंद.