कार्बन यौगिकों की संख्या बहुत अधिक होने का मुख्य कारण क्या है? - kaarban yaugikon kee sankhya bahut adhik hone ka mukhy kaaran kya hai?

कार्बनिक यौगिक अधिक संख्या का कारण है:  

  1. कार्बन का छोटा आकार
  2. कार्बन की संयोजकता 

  3. कार्बन का विशेष शृंखलन गुण 
  4. उपरोक्त सभी 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : कार्बन का विशेष शृंखलन गुण 

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10 Questions 40 Marks 10 Mins

स्पष्टीकरण:

  • कार्बन में कार्बन के अन्य परमाणुओं के साथ बंध बनाने की अद्वितीय क्षमता होती है, जो बड़े अणुओं को उत्पन्न करती है। इस गुण को शृंखलन कहा जाता है।
  • इन यौगिकों में कार्बन की लंबी शृंखला, कार्बन की शाखित शृंखला या वलय में व्यवस्थित कार्बन परमाणु भी हो सकते हैं
  • शृंखलन सहसंयोजी बंध के माध्यम से शृंखला या वलय अणु के निर्माण के लिए तत्वों का स्वबंधन होता है। 
  • कार्बन सबसे सामान्य तत्व है जो शृंखलन को प्रदर्शित करता है।
    • यह बेंजीन की तरह लंबी हाइड्रोकार्बन शृंखला और वलय बना सकता है।
  • कृपया ध्यान दीजिए कि परमाणु जितना छोटा होता है, उसमें शृंखलन की क्षमता उतनी ही अधिक होती है।  
  • कार्बन परिवार या समूह 4 परिवार के सभी तत्व शृंखलन गुण को प्रदर्शित करते हैं।
  • कार्बन परिवार में कार्बन(C), सिलिकॉन(Si), जर्मेनियम (Ge), टिन (Sn), सीसा (Pb), और फ्लेरोंवियम (Fl) शामिल हैं।

कार्बन यौगिकों की संख्या बहुत अधिक होने का मुख्य कारण क्या है? - kaarban yaugikon kee sankhya bahut adhik hone ka mukhy kaaran kya hai?
Important Points

  • केवल कार्बन शृंखलन गुण को प्रदर्शित करता है। एक दूसरे के साथ आबंधित होकर एक लंबी शृंखला बनाने वाले परमाणुओं की क्षमता को शृंखलन कहा जाता है
  • यह लंबी शृंखला के निर्माण हेतु समान तत्व के परमाणुओं की सहलग्नता है।
  • शृंखलन प्रक्रिया मुख्य रूप से कार्बन में होती है और यह बड़ी शृंखलाओं और संरचनाओं को बनाने के लिए अन्य कार्बन परमाणुओं के साथ सहसंयोजक बंध बनाती है।
  • कार्बन शृंखलन के कारण अपरूपता को दर्शाता है, जो एक ही तत्व के परमाणुओं को एक दूसरे के साथ सहलग्न होकर लंबी शृंखला का निर्माण करता है। 
  • कार्बन के विभिन्न अपरूप होते हैं जो प्रकृति में उपस्थित हैं जिनमें हीरा, ग्राफीन, फुलरीन, C60 ,C70 , अक्रिस्टलीय कार्बन, Q कार्बन, लोंसडेलाइट और कार्बन नैनोट्यूब शामिल हैं
  • एक तत्व
  • वह गुण जो एक से अधिक भौतिक रूप में उपस्थित रहता हैउसे अपरूपता कहा जाता है और रूपों को अपरूप कहा जाता है।
  • कार्बन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = (2, 4), इसलिए, कार्बन की संयोजकता 4 है।
  • एक कार्बन परमाणु के सबसे बाह्य संयोजी कोश में चार इलेक्ट्रॉन होते हैं।

तो, अष्टक विन्यास को पूरा करने के लिए इसे चार और इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।

Last updated on Sep 22, 2022

The Uttar Pradesh Secondary Education Service Selection Board (UPSESSB) has decided to extend the last date to submit online applications to conduct recruitment for the post of UP TGT (Trained Graduate Teacher). Now the applicants can submit their online application up to 16th July 2022. In this year's recruitment cycle the total vacancy of 3539 has been released. Willing candidates having the required UP TGT Eligibility Criteria can apply for the exam. This is a golden opportunity for candidates who want to get into the teaching profession in the state of Uttar Pradesh.

यह रसायन विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत कार्बन यौगिकों का अध्ययन किया जाता है। कार्बनिक यौगिकों के बिना की संभावना नहीं है। जंतुओं और वनस्पतियों के निर्माण में कार्बनिक यौगिक ही प्रमुख हैं। कार्बनिक यौगिकों के कुछ अति प्रमुख उपयोग निम्न हैं:

  1. हमारा भोजन: सभी भोज्य पदार्थ प्राय: कार्बनिक यौगिकों से निर्मित हैं जैसे-चावल, आटा, चीनी, प्रोटीन, विटामिन आदि सभी कार्बनिक पदार्थ हैं।
  2. हमारे दैनिक उपयोग के पदार्थ: हमारे सूती कपड़े सेलुलोज के बने हैं। नायलोन, टेरीलीन, रेयॉन आदि के कपड़े सांश्लेषिक कार्बनिक यौगिकों से निर्मित हैं। पेन, स्याही, जूते आदि कार्बनिक यौगिक ही से बने हैं। साबुन, बेसलीन, क्रीम लकड़ी, कोयला, घरेलू गैस, मिट्टी का तेल आदि कार्बनिक यौगिक ही हैं।
  3. औषधियाँ: निषचेतक पदार्थ क्लोरोफार्म, स्ट्रेप्टोमाइसिन, ऐस्पिरिन, पेनसिलिन आदि कार्बनिक यौगिक ही हैं। कीटाणुनाशक जैसे-डी.डी.टी., गेमेक्सीन, बी. एच.सी. आदि कार्बनिक यौगिक हैं।
  4. यातायात: पेट्रोल, तेल, रबर, टायर आदि कार्बनिक पदार्थ हैं।
  5. प्रसाधन तथा विलास सामग्री: क्रीम, पेन्ट, साबुन, तेल, फोटो फिल्म तथा प्लास्टिक के खिलौने आदि कार्बनिक यौगिक हैं।
  6. विस्फोटक पदार्थ: डायनामाइट, नाइट्रोग्लिसरीन, टी. एन. टी. आदि कार्बनिक यौगिक हैं।
कार्बनिक रसायन के उपयोग
औषधियां कपड़े भोजन उद्योग
एस्पिरिन सूती अनाज प्रसाधन विस्फोटक
क्विनोन ऊनी सब्जियां कागज एल्कोहल
सल्फाड्रग्स रेशम वसा साबुन पेंट
पेनिसिलिन नायलोन दूध रबर पेट्रोलियम
रोगाणुनाशी टेरीलीन शर्करा प्लास्टिक

 कार्बन तथा इसके यौगिक

कार्बन एक अधातु तत्व है, कार्बन परमाणु के चार संयोजी इलेक्ट्रॉनों के कारण यह आवश्यक है कि स्थायी संरचना की प्राप्ति हेतु या तो चार इलेक्ट्रॉन ग्रहण करे या चार इलेक्ट्रॉनों का त्याग करें। कार्बन सदैव अन्य तत्वों के साथ साझेदारी करके सहसंयोजक यौगिक बनाता है। कार्बन को Tetravalent भी कहते हैं। कार्बन में यह गुण पाया जाता है कि यह अपने यौगिकों में वलय या कई कड़ियां (Chains) बनाता है, कार्बन क इस गुण को Catenation कहते हैं। कार्बन एक अक्रिय तत्व है। अत: यह मुक्तावस्था एवं संयुक्तावस्था दोनों में पाया जाता है। संयुक्तावस्था में कार्बन विभिन्न रुप में पाये जाते हैं –

  1. काबोंनेट के रुप में (संगमरमर एवं डोलोमाइट)
  2. पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस।
  3. कार्बन यौगिक जैसे प्रोटीन एवं वसा के रुप में।
  4. कार्बन-डाईऑक्साइड (हवा में) के रुप में।

सभी जीवों में कार्बन उपस्थित रहता है। 

कार्बन के अपररुप

प्रकृति में शुद्ध कार्बन दो रुपों में पाया जाता है- हीरा एवं ग्रेफाइट के रुप में। जब हीरे तथा ग्रेफाइट को वायु में अत्यधिक गर्म करते हैं तो यह पूर्ण रुप से जल जाता है और कार्बन-डाईऑक्साइड बनाता हैं। जब हीरे तथा ग्रेफाइट की समान मात्रा दहन की जाती है तब कार्बन-डाईऑक्साइड की बराबर मात्रा उत्पन्न होती है तथा कोई अवशेष नहीं बचता। यद्यपि हीरा तथा ग्रेफाइट रासायनिक रुप से एक समान हैं, परन्तु उनके भौतिक गुण बहुत ही भिन्न हैं। ऐसे गुणों को प्रदर्शित करने वाले तत्वों को अपरुप (Allotrop) कहते हैं।

1. हीरा Diamond: हीरा एक पारदर्शक पदार्थ है। हीरे के उच्च अपवर्तन गुणांक के कारण यह चमकीले एवं कीमती आभूषण तथा जेवरों को बनाने के काम में लाया जाता है। सबसे अधिक कठोर ज्ञात पदार्थ होने के कारण केवल हीरा ही एक ऐसा पदार्थ है, जो अन्य पदार्थों को पीसने तथा काटने के लिए प्रयुक्त होता है। इसका उपयोग पृथ्वी की चट्टानी परतों को वेधित करने हेतु भी किया जाता है।

2. ग्रेफाइट Graphite: ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक होने के कारण शुष्क सेल तथा विद्युत आक में इलेक्ट्रोडों के रुप में उपयोग होता है। इसका उपयोग पेन्सिल तथा काले रंग का पेन्ट बनाने में भी होता है।

C-12 समस्थानिक की अर्ध-आयु 5770 वर्ष होती है, जिसका प्रयोग रेडियोएक्टिव डेटिंग में किया जाता है, जो पुरातत्व वस्तुओं की आयु जानने के प्रयोग में आता है।

कार्बन के उपयोग

  1. हीरा (Diamond): Gemstone, काटने में, पीसने में, पॉलिश में उद्योग में, Drilling में।
  2. ग्रेफाइट (Graphite): स्टील उद्योग, पेन्सिल, उच्च ताप क्रुसिबल, तत्वों के विद्युत अपघटन में प्रयोग किए जाने वाले विद्युत अपघट्य के रुप में।
  3. कोक (Coke): स्टील उद्योग में ईधन के रूप में
  4. कार्बन ब्लैक (Carbon Black): रबर उद्योग, स्याही में, पेंट तथा प्लास्टिक को निर्माण में।
  5. सक्रिय कार्बन: चीनी उद्योग में रंग हटाने में, रसायनों के शोधन में, उत्प्रेरक ईधन, अपचायक के रूप में।

कार्बन डाइऑक्साइड Carbon dioxide

कार्बन डाईऑक्साइड एक रंगहीन, गंधहीन गैस है। वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड आयतनानुसार 0.03 प्रतिशत पायी जाती है। इसका जलीय विलयन अम्लीय होता है। वायुमण्डलीय दाब पर यह -78°C ताप पर ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाती है, जिसे शुष्क बर्फ कहते है। शुष्क बर्फ का प्रयोग रेफ्रिजरेशन में किया जाता है। कार्बन डाईऑक्साइड उच्च दाब पर शीतल पेय पदार्थों के साथ बोतलों में भर दी जाती है। बोतल को खोलने पर यह झाग के रुप में निकलती है।

कार्बनिक यौगिक Organic Compounds

कार्बन के परमाणु काफी बड़ी संख्या में एक-दूसरे के साथ सहसंयोजी आबंध द्वारा जुड़े रहते हैं। यही कारण है कि कार्बन के यौगिकों की बहुत संख्या होती है। मीथेन (CH4), एथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8), ब्यूटेन (C4H10, ), पेन्टेन (C5H12), इथाइलीन (C2H4), एसीटिक अम्ल (CH3COOH) एथिल एल्कोहल (C2H5OH) इत्यादि कार्बन के यौगिक हैं और ये बहुत से रासायनिक उद्योगों में काम आते हैं। इसके अलावा दवाईयां, फाइबर, सिन्थेटिक कपास, प्लास्टिक, रबर, चमड़ा इत्यादि भी कार्बनिक यौगिक से बनाये जाते हैं।

मीथेन Methane

यह एक रंगहीन, गंधहीन, व स्वादहीन गैस है। यह अधिकतर दलदली क्षेत्रों में पायी जाती है, जिसके कारण इसे मार्स गैस भी कहते हैं। यह गैस जल में अल्प विलेय है परन्तु एल्कोहल में अधिक विलेय है। इसका उपयोग मेथिल ऐल्कोहल, फार्मल्डिहाइल व क्लोरोफार्म आदि के बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त काले रंग, मोटर टायर, छापे खाने की स्याही, पेंट, कार्बन छड़ें आदि बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके सूंघने पर व्यक्ति मूर्छित हो जाता है। यह ईधन, एल्कोहल आदि में विलेय है। एथिलीन, सल्फर मोनोक्लोराइड से क्रिया करके एक विषैला द्रव डाईक्लोरो एथिल डाइसल्फाइड, जिसे मस्टर्ड गैस भी कहते हैं, बनाती है। एथिलीन बहुलकीकरण की क्रिया द्वारा प्लास्टिक बनाती है। इस गैस का उपयोग मुख्य रुप से कच्चे फलों को पकाने में किया जाता है।

ऐसेटिलीन Acetylene

ऐसेटिलीन की खोज अमेरिकी वैज्ञानिक विल्सन ने की थी। इस गैस का उपयोग मुख्यत: कपूर बनाने, प्रकाश उत्पन्न करने, कृत्रिम रबर बनाने, वेलिंडग करने में, रेशमी कपड़े, एसीटिक अम्ल आदि बनाने में किया जाता है।

ईथर Ether

ईथर रंगहीन व सुगन्धित द्रव है। यह अत्यधिक वाष्पशील होता है। यह एल्कोहल में विलेय होता है। इसका प्रयोग निश्चेतक के रुप में, वसा, तेल आदि के विलायक के रुप में, ठण्डक पैदा करने के लिये, एल्कोहल बनाने आदि में किया जाता है। व्यावसायिक रुप में ईथर, एल्कोहल को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करके बनाया जाता है।

ऐथिल एल्कोहल Ethyl Alcohol

ऐथिल एल्कोहल एक रंगहीन द्रव है तथा अत्यधिक ज्वलनशील होता है। इसे पीने से शरीर में उत्तेजना उत्पन्न होती है, इसलिये इसे मादक द्रव के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। ऐथिल एल्कोहल फलों व स्टार्चयुक्त अनाजों जैसे- जौ आदि में पाया जाता है। औद्योगिक विधि में इसे किण्वन (Fermentation) विधि से बनाया जाता है। इसका प्रयोग शर्करा, सिरका व शराब बनाने में, मोटर व हवाई जहाज में ईंधन के रुप में, पारदर्शक साबुन बनाने में, इत्र व अन्य सुगन्धित पदार्थ बनाने में तथा विलायक के रुप में किया जाता है।

मेथिल एल्कोहल Methyl Alcohol

मेथिल एल्कोहल को सबसे पहले लकड़ी के भंजक आसवन के द्वारा बनाया गया था। यह लौंग के तेल व कई फलों में पाया जाता है। मेथिल एल्कोहल एक विषैला द्रव है व इसकी गन्ध शराब की तरह होती है। इसे पी लेने से व्यक्ति अंधा हो जाता है। आजकल देश के विभिन्न भागों में शराब पीने वालों की अधिकांश मृत्यु मेथिल एल्कोहल के ही कारण रही है। इसका उपयोग पेट्रोल के साथ मिलाकर ईंधन के रुप में, कृत्रिम रंग बनाने में, तथा वार्निश आदि के विलायक के रुप में किया जाता है।

ग्लूकोज Glucose

इसे अंगूर की शक्कर भी कहते हैं। यह अंगूरों, मीठे फलों व मूत्र में पाया जाता है। मधुमेह के रोगियों के मूत्र में इसकी मात्रा अधिक पायी जाती है। यह चाँदी, के लवण, अमोनियम सिल्वर नाइट्रेट के साथ मिलकर चाँदी की तरह सफेद पर्त बनाता है, जिसे चाँदी का दर्पण कहते है। इसका प्रयोग शराब बनाने में फलों को सुरक्षित रखने में, औषधि के रुप में तथा शक्तिवर्धक आदि के रुप में किया जाता है।

एथिलीन Ethylene

यह तेल के समान द्रव है, जो कि अत्यन्त विषैला होता है। एल्कोहल, ईथर आदि में यह विलेय परन्तु जल में अविलेय होता है। इसका उपयोग रबर बनाने में व विभिन्न प्रकार की औषधियों व रंगों आदि के बनाने में किया जाता है।

समावयवता 

कार्बन के परमाणु इतनी सुगमता से बंध बनाते हैं कि उनसे एक ही आण्विक सूत्र वाले प्राय: दो या दो-से-अधिक भिन्न यौगिक बनते हैं। ऐसे यौगिक को समावयवी कहते हैं तथा इस घटना को समावयवता कहते हैं।

बहुलक Polymer

बहुलक उच्च अणुभार वाले, बड़े आकर के अणु हैं, जिनका हमारी दिनचर्या में बहुत महत्त्व है। ये कई छोटे-छोटे अणुओं से मिलकर बनते है। रचनात्मक रुप से कई आण्विक श्रृंखलाएं अथवा Cross-Linked Network के रूप में व्यवस्थित रहते हैं। इसके बीच के बन्ध बहुलक बनाने में प्रयुक्त हुई अभिक्रिया के प्रकार पर निर्भर करते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण बहुलक
बहुलक उपयोग
पॉलिथीन (Polythene) विद्युतरोधक, पैकिंग घरेलू तथा प्रयोगशाला में
पॉलिस्टाइरीन (Polystyrene) विद्युतरोधक, पैकिंग पदार्थ, खिलौने तथा घरेलू वस्तुएँ
पॉलीविनाइल क्लोराइड(Polyvinylchloride) (PVC) रेनकोट, बैग, वाइनिल, फर्श, चमड़े के कपड़े
टेफ्लोन (Teflon) विद्युतरोधक,खाने के बर्तन
पॉलीएक्रिलोनइट्राइल (Polyacrylonitrile) (Orlon) संश्लेषित रेशे तथा संश्लेषित ऊन।
स्टाइरीन न्यूटाडाईन रबर (Styrene butadiene rubber) ऑटोमोबाइल टायर तथा चप्पल
नाइट्राइल रबर (Nitrile rubber) सील बनाने में, टैंक के अस्तर बनाने में
पॉलीईथल एक्राइलेट (Poly ethylacrylate) फिल्म बनाने, घर के पाइप तथा कपड़े बनाने में
टेरीलीन (Terylene) रेशे,बेल्ट, तार तथा टैन्ट बनाने में
ग्लिपटल (Glyptal) प्लास्टिक तथा पेंट में
नॉयलॉन-6 (Nylon-6) रेशे, प्लास्टिक, टायर, रस्सी
नॉयलॉन-66 (Nylon-66) ब्रश, संश्लेषित रेशे, पेराशूट, रस्सी तथा दरी
बेकेलाइट (Bakelite) गेयर, सुरक्षा पर्त तथा विद्युत उपकरण बनाने में
मैलामाइन फार्मल्डिहाइड रेसिन (Melamine Formaldehyde resin) प्लास्टिक की बर्तन बनाने में

बहुलकीकरण Polymerization

जब एक ही यौगिक के दो अथवा दो-से-अधिक अणु आपस में संयोग करके एक बड़ा अणु बनाते हैं, उसे बहुलक कहते हैं तथा यह क्रिया योगशील बहुलकीकरण कहलाती है। यदि यह अभिक्रिया संघनन में हो तो संघनन बहुलकीकरण होता है।

विस्फोटक Explosive

विस्फोटक ऐसे पदार्थ होते हैं, जिसके दहन से अत्यधिक ऊष्मा व तीव्र ध्वनि उत्पन्न होती है। उसे विस्फोटक कहते हैं। कुछ विस्फोटक निम्न हैं-

  1. टी.एन.टी. (T.N.T): T.N.T हल्का पीला क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है। यह टालूईन के साथ सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल, सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से बनाया जाता है। इसका सबसे अधिक उपयोग विस्फोटक के रुप में किया जाता है। इसका पूरा नाम ट्राईनाइट्रो-टालूईन (T.N.T) है।
  2. डायनामाइट (Dynamite): 1865 में अल्फ्रेड नोबेल ने डायनामाइट का आविष्कार किया था। आधुनिक डाइनामाइट में नाइट्रोग्सिरीन की जगह सोडियम नाइट्रेट का प्रयोग किया जाता है।
  3. आर.डी.एक्स. (R.D.X.): इसका पूरा नाम रिसर्च डेवलपमेंट एक्सप्लोजिव है। इस विस्फोटक को सं.रा. अमेरिका में साइक्लोनाइट, जर्मनी में हेक्सोजन तथा इटली में टी-4 के नाम से जाना जाता है। इसमें प्लास्टिक पदार्थ, जैसे – पॉलिब्यूटाइन, एक्रिलिक अम्ल, या पॉलियूरेथेन को मिला कर प्लास्टिक बान्डेड एक्सप्लोसिव बनाया जाता है।
  4. ट्राइनाइट्रो ग्लिसरीन (T.N.G): ट्राई नाइट्रो ग्लिसंरीन एक रंगहीन तैलीय द्रव है। यह डाइनामाइट बनाने के काम आता है।
  5. टाई-नाइट्रो फिनॉल (T.N.P): को पिकरिक अम्ल भी कहा जाता है। यह फिनाल व सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता है। यह हल्का पीला, क्रिस्टलीय ठोस होता है, जो अत्यधिक विस्फोटक होता है।

औषधियां Drugs

वे रोगों के इलाज में काम आती है। प्रारम्भ में पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं से प्राप्त की जाती थीं, लेकिन जैसे-जैसे रसायन विज्ञान का विस्तार होता गया, नये-नये तत्वों की खोज हुई तथा उनसे नई-नई औषधियां कृत्रिम विधि से तैयार की गई। रसायन विधि में अधिकतर औषधियां कार्बानिक पदार्थों से तैयार की जाती है। एसीटिक एनहाइट्राइड से एस्प्रिन, यूरिया से वेरानल, बेन्जोइक अम्ल से सैकरीन व क्लोरमिन, फिनाल से फेनेसिटिन, ऐस्पिरिन, सैलोल व सैलिसिलिक अम्ल आदि दवायें बनायी जाती हैं। कुछ प्रमुख औषधियों का वर्गीकरण निम्न है-

  1. एन्टीबायोटिक्स (Antibioties): एन्टीबायोटिक्स औषधियां अत्यन्त सूक्ष्म जीवाणुओं मोल्डस, फन्जाई आदि से बनायी जाती है। ये औषधियां अन्य दूसरे प्रकार के जीवाणुओं को मारती है व उनकी वृद्धि को रोकती हैं। अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1929 में पहली एन्टीबायोटिक औषधि, पेन्सिलीन का आविष्कार किया जिसके द्वारा विशेष प्रकार के बैक्टीरिया को नष्ट किया जाता सकता था। पेनिसिलीन, टेट्रासाइक्लिन, एन्टीबायोटिक औषधियां हैं।
  2. पूर्तिरोधी (Antiseptics): ये औषधियां सूक्ष्म जीवाणुओं को मारने व उनकी वृद्धि रोकने में सहायक होती है। ये रक्त को दूषित होने से रोकने व घाव आदि भरने में विशेष रुप से प्रयुक्त की जाती है। सिरके तथा सिडार तेल का प्रयोग घावों आदि के ठीक करने में प्राचीन काल से होता आ रहा है। आधुनिक एन्टीसेप्टिक औषधियां तैयार करने में सेमिलवीस, लिस्टर व कोच के नाम उल्लेखनीय है। आयोडीन, एथिल एल्कोहल, फिनॉल, हाइड्रोजन पराक्साइड आदि रोगाणु व कीटाणुनाशक के रुप में प्रयोग किये जाते हैं।
  3. एन्टीपायरेटिक्स (Antipyretics): एन्टीपायरेटिक्स का प्रयोग शरीर दर्द व बुखार उतारने में किया जाता है। एस्प्रिन, क्रोसिन, फिनेसिटिन, पायरोमिडीन आदि प्रमुख एन्टीपायरेटिक्स औषधियां हैं।
  4. निश्चेतक (Anaesthetic): संवेदना को कम करने के लिये प्रयुक्त किये जाते हैं। निश्चेतक का प्रयोग सबसे पहले विलियम मोर्टन ने 1846 में डाई एथिल ईथर के रुप में किया। इसको पश्चात् 1847 में जेम्स सेम्पसन ने क्लोरोफार्म को निश्चेतक को रुप में प्रयोग किया। क्लोरोफार्म, पेन्टोथल सोडियम, हेलोथेन, ईथरनाइट्रस आक्साइड, ट्राईक्लोरो एथिलीन, डायजीपाम आदि निश्चेतक के रुप में प्रयोग किये जाते हैं।
  5. सल्फा ड्रग्स ( Sulpha Drugs): सल्फा औषधियों में मुख्य रुप में सल्फर व नाइट्रोजन पायी जाती है। सबसे पहली सल्फा औषधि सल्फानिलमाइड, 1908 में बनायी गई थी। ये दवायें कुछ जीवाणुओं के प्रति अत्यन्त प्रभावी होती है। कुछ सल्फा औषधियों का प्रयोग पशुओं के लिये भी किया जाता है|

ईंधन Fuel

वे पदार्थ, जिन्हें जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की जाती है, उन पदार्थों को ईंधन कहते हैं। ईधनों का सबसे महत्वपूर्ण वर्गीकरण उनकी भौतिक अवस्था के आधार पर होता है। भौतिक अवस्था के आधार पर तीन प्रकार के ईधन होते हैं- ठोस ईंधन, द्रव, ईधन तथा गैसीय ईधन। इनके उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. ठोस ईधन Solid Fuel: लकड़ी, कोयला, कोक, चारकोल (काष्ठ कोयला या लकड़ी का कोयला) तथा पैराफिन वैक्स (मोम), ठोस ईंधन हैं।
  2. द्रव ईधन या तरल ईधन Liquid Fuel: कैरोसिन (मिट्टी का तेल), पेट्रोल, डीजल, ऐल्कोहल तथा द्रवित हाइड्रोजन, द्रव ईंधन हैं या तरल ईंधन हैं।
  3. गैसीय ईंधन Gaseous Fuel: प्राकृतिक गैस, तरल पेट्रोलियम गैस, कोल गैस, जल गैस, बायो गैस (गोबर गैस), ऐस्टिलीन तथा हाइड्रोजन गैस, गैसीय ईंधन हैं।

द्रवित पैट्रोलियम गैस Liquid Petroleum Gas

घरों में ईंधन के रुप में प्रयुक्त की जाने वाली द्रवित प्राकृतिक गैस को एल.पी.जी. कहते हैं। यह ब्यूटेन तथा प्रोपेन गैसों का मिश्रण होती है, जिसे उच्च दाब पर द्रवित कर सिलेण्डरों में भर लेते हैं। ईथाइल मरकपटन गैस में महक के लिए मिलाया जाता है।

गोबर गैस Dung Gas

गीले गोबर के सड़ने पर ज्वलनशील मीथेन गैस बनती है, जो वायु की उपस्थिति में सुगमता से जलती है। गोबर गैस संयंत्र में गोबर से गैस बनाने के पश्चात् शेष रहे पदार्थ (स्लरी) का उपयोग कार्बनिक खाद के रुप में किया जाता है।

प्रोड्यूसर गैस Producer gas

यह गैस लाल तप्त कोक पर वायु प्रवाहित करके बनाई जाती है। इसमें मुख्यत: कार्बन मोनोऑक्साइड ईधन का काम करती है।

रॉकेट ईंधन Rocket Fuel

रॉकेट में उपयोग किये जाने वाले ईंधन को नोदक कहते हैं। यह नोदक ऑक्सीडाइजर के संयोग से बनता है, जैसे- तरलीय ऑक्सीजन, सभी नोदकों को तीन वगों में रखा जाता है।

  1. तरलीय नोदक Liquid Propellant: अल्कोहल, तरलीय हाइड्रोजन, तरलीय अमोनिया, केरोसीन तेल, हाइड्राजीन और बोरोन के हाइड्राइड का उपयोग तरलीय नोदक से अधिक शक्ति प्रदान करता है और इसका नियन्त्रण, प्रवाह को नियंत्रित करके किया जाता है। मिथाइल नाइट्रेड, नाइट्रोमीथेन, हाइड्रोजन पेरोक्साइड आदि भी उपयोगी तरलीय नोदक हैं।
  2. ठोस नोदक Solid Propellant: ठोस ईंधन, जैसे-पॉली ब्यूटाडीन और एक्राइलिक अम्ल का उपयोग ऑक्सीडाइजर के साथ होता है। जैसे-एल्युमीनियम परक्लोरेट, नाइट्रेट या क्लोरेट उच्च दहन तापक्रम होने के कारण मैग्नीशियम या एल्युमीनियम को भी ठोस ईंधन के रुप में उपयोग किया जाता है। इस तरह के नोदक को संयुक्त नोदक भी कहा जाता है।
  3. मिश्रित नोदक Mixed Propellant: मिश्रित राकेट नोदक में ठोस ईंधन एवं तरलीय ऑक्सीडाइजर का उपयोग किया जाता है। इसमें N2O4 एक सामान्य संघटक है। विभिन्न राष्ट्रों द्वारा कुछ महत्वपूर्ण नोदक का उपयोग किया जाता है, जो इस प्रकार हैं- रुस द्वारा प्रोटोन (Proton) नोदक का उपयोग किया जाता है, जो कैरोसीन एवं तरलीय ऑक्सीजन से बना होता है। सैटर्न बूस्टर (अमेरिकन रॉकेट) में भी कैरोसीन एवं ऑक्सीजन के संयोग से बना ईंधन उपयोग किया जाता है। एस. एल.वी.-3 और ए.एस.एल.वी. नामक भारतीय रॉकेट द्वारा प्रथम अवस्था में ठोस नोदक का उपयोग किया गया और तृतीय अवस्था में तरलीय नोदक का उपयोग किया गया है।

प्रमुख हाइड्रोकार्बनों के उपयोग Uses of Major Hydrocarbons

एथिलीन अथवा इथेन (C2H4): यह मुख्य रूप से प्राकृतिक गैसों, कोल गैस तथा पेट्रोलियम के साथ निकलने वाली गैसों में पाई जाती है। यह हल्की मीठी गंध पाली गैस है। इस गैस को अधिक सूघने से मूर्छा आ जाती है। इसका उपयोग प्लास्टिक उद्योग में, मस्टर्ड गैस बनाने में, निश्चेतक के रूप में, हरे फलों को पकाने में तथा उसके संरक्षण में होता है।

एसीटिलीन अथवा एथीन (C2H2): यह अत्यधिक अभिक्रियाशील गैस है। आर्सीन तथा फॉस्फीन मिली होने के कारण इसकी गंध लहसुन जैसी होती है। इसका उपयोग ईंधन तथा प्रकाश के रूप में, कृत्रिम रबर (निओप्रीन) बनाने में, विषैली गैस ल्यूसाइट बनाने में, जो प्रथम विश्वयुद्ध में प्रयुक्त हुई थी, होता है। इसके अतिरिक्त ऑक्सी-एसिटलीन ज्वाला बनाने में, जो धातुओं को जोड़ने तथा काटने में प्रयुक्त होती है, फलों को पकाने में भी इसका उपयोग होती है।

पेट्रोलियम: पेट्रोलियम एक विशेष गंध युक्त भूरे-काले रंग का गाढ़ा तेल होता है। यह पृथ्वी के भीतर चट्टानों के नीचे पाया जाता है। यह एक प्राकृतिक ईंधन है। प्राकृतिक रूप में इसे कच्चा तेल या अपरिपक्व तेल (Crude Oil) भी कहते हैं। पृथ्वी के नीचे पाये जाने के कारण इसे खनिज तेल (Mineral Oil) भी कहते हैं। अपरिष्कृत पेट्रोलियम का इसी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। अत: इसके निरंतर प्रभाजी आसवन द्वारा औद्योगिक उपयोग के विभिन्न प्रभाज प्राप्त किये जाते हैं। यह प्रक्रिया परिष्करण (Refining) कहलाती है। प्रभाजी आसवन संप्राप्त प्रभाज निम्न हैं- ऐस्फाल्ट (डामर) पैराफिन मोम, स्नेहक तेल, ईंधन तेल, डीजल, करोसिन (मिट्टी का तेल), पेट्रोल तथा पेट्रोलियम गैस।

प्राकृतिक गैस: यह मुख्यतः मेथेन (CH4) होती है (95%)। इसमें मेथेन के साथ थोड़ी मात्रा में इथेन और प्रोपेन भी रहती है। प्राकृतिक गैस एक अच्छा ईधन है। यह धुआँ रहित ज्वाला के साथ जलती है, जिससे प्रदूषण नहीं होता। इसके जलने पर कोई विषैली गैस भी नहीं बनती है। CNG – Compressed Natural Gas का प्रयोग वाहनों में होता है।

द्रवित या तरल पैट्रोलियम गैस (Liquified Petroleum Gas L.P.G.): यह एथेन (C2H6) प्रोपेन, (C3H8) तथा ब्यूटेन (C4H10) का मिश्रण है। लेकिन इसका मुख्य अवयव, ब्यूटेन तथा आइसो ब्यूटेन है। इसका ऊष्मीय मूल्य काफी उच्च होता है। इसलिए यह एक अच्छा ईधन है, यह धुआँ रहित ज्वालों के साथ जलती है, तथा जलने पर इससे कोई विषैली गैस उत्पन्न नहीं होती। गैस के सिलिण्डर में गैस रिसाव का पता लगाने के लिए एक तीक्ष्ण गंध वाला पदार्थ एथिल मर्केप्टन (C2H5SH) मिला देते हैं। इसमें हाइड्रोजन सल्फाइड के समान गंध होती है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है। एल. पी. जी. वायु से मिलकर विस्फोटक मिश्रण बनाती है।

कोल गैस: इसमें 54% हाइड्रोजन, 35% मीथेन, 11% कार्बन मोनो ऑक्साइड, 5% हाइड्रोकार्बन एवं 3% कार्बन डाइऑक्साइड आदि गैसों का मिश्रण होता है। कोल गैस, कोयले के भंजक आसवन द्वारा बनाई जाती है। यह वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है।

प्रोड्यूसर गैस: यह मुख्यतः नाइट्रोजन व कार्बन मोनोओंक्साइड गैसों का मिश्रण है। इसमें 60% नाइट्रोजन, 30% कार्बन मोनो ऑक्साइड व शेष कार्बन डाइ ऑक्साइड व मीथेन गैस होती है। इसका उपयोग ईंधन तथा कांच व इस्पात बनाने में किया जाता है।

CO+N2

वाटर गैस: यह कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO) व हाइड्रोजन (H) गैसों का मिश्रण होती है। इससे बहुत अधिक ऊष्मा निकलती हैं। इसका प्रयोग अपचायक के रूप में ऐल्कोहल, हाइड्रोजन आदि के औद्योगिक निर्माण में होता है।

CO + H2

गैसोलीन: इससे हेक्सेन्स, हेप्टेन्स तथा ऑक्टेन्स उत्पन्न होते हैं। इसे पैट्रोल भी कहा जाता है। कार के उपयोग में लाये जाने वाले पैट्रोल की गुणवत्ता को उसके एण्टी नोक गुण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पैट्रोल सेम्पुल में एण्टीनॉक गुणों को उसके आक्टेन नंबर वैल्यू द्वारा ज्ञात किया है। किसी पैट्रोल सेंपल का ऑक्टेन नम्बर जितना अधिक होता है, उसका एन्टीनॉकिंग गुण उतना ही अधिक होगा तथा वह उतना ही अधिक उपयोगी होगा। आॉक्टेन नंबर का सबसे अधिक मान 100 होता है। ऑक्टेन नंबर बढ़ाने के लिए पेट्रोल में ट्रेटा एथाइल लैड (TEL) मिलाया जाता है।

ईधनों के ऊष्मीय मान: किसी ईंधन का ऊष्मीय मान इस कथन का मापक है, कि ईंधन कितना उपयोगी है। जिस ईंधन का ऊष्मीय मान अधिक होता है वह उतना ही अच्छा और उपयोगी होता है।

मेथिल ऐल्कोहल: यह बहुत विषैला होता है, इसको पीने से व्यक्ति अंधा या पागल हो सकता है, और अधिक पीने से मृत्यु हो जाती है। इसका उपयोग मेथिलित स्पिरिट (Methylated sprit) बनाने में होता है। मेथिल ऐल्कोहल युक्त एथिल ऐल्कोहल, मेथिलित स्पिरिट या विकृती (Methylated sprit) बनाने में होता है। मेथिल ऐल्कोहल युक्त एथिल ऐल्कोहल, मेथिलित स्पिरिट या विकृतीकृत स्प्रिट कहलाता है। मेथिल ऐल्कोहल और जल का मिश्रण आटोमोबाइल में रेडियेटर के लिए ऐन्टफ्रीज के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

ईंधन ऊष्मीय मान
लकड़ी 17 किलो जूल प्रति ग्राम
कोयला 25-33 किलो जूल प्रति ग्राम
चारकोल 33 किलो जूल प्रति ग्राम
गोबर के उपले 6-8 किलो जूल प्रति ग्राम
कैरोसिन 48 किलो जूल प्रति ग्राम
ऐल्कोहल 30 किलो जूल प्रति ग्राम
बायोगैस 35-40 किलो जूल प्रति ग्राम
मिथेन 55 किलो जूल प्रति ग्राम
एल.पी.जी. 55 किलो जूल प्रति ग्राम
हाइड्रोजन 150 किलो जूल प्रति ग्राम

एथिल ऐल्कोहल या एथेनॉल (C2H5OH): यह फलों, वनस्पतियों और सुगधित तेलों में पाया जाता है। यह सभी प्रकार की शराब (wines) का मुख्य अवयव है। अत: इसे स्पिरिट ऑफ वाइन भी कहते हैं। 100% एथिल ऐल्कोहल (निर्जल एथिल एल्कोहल) परिशुद्ध ऐल्कोहल (Absolute Alcohol) कहलाता है।

95.5% एथिल ऐल्कोहल और 4.4% जल का मिश्रण परिशोधित ऐल्कोहल (Rectified Spirit) कहलाता है।

पेट्रोल, औद्योगिक ऐल्कोहल (परिशोधित स्प्रिट) और बेंजीन का मिश्रण पावर ऐल्कोहल कहलाता है। इसका उपयोग मोटर ईधन में होता है।

फार्मिक अम्ल (मेथेनोइक अम्ल HCOOH): यह लाल चीटियों में तथा मधुमक्खी, बर्रे (wasps), बिच्छू आकद के डंक में तथा कुछ अन्य जीवों में पाया जाता है। चींटी, मधुमक्खी या बर्रे आदि के काटने या डंक मारने पर शरीर में खुजली, जलन व चिड़चिड़ापन फार्मिक अम्ल के कारण होता है।

प्रमुख विस्फोटक पदार्थ Main Explosives

विस्फोटक वे पदार्थ हैं जो ताप बढ़ने या थोड़ी चोट या झटका लगने से अपने विभिन्न अवयवों में प्रचण्ड विस्फोटक के साथ तीव्र अभिक्रिया करके गैसीय उत्पाद बनाते हैं।

  1. ट्राइनाइट्रो टॉलूईन (T.N.T): इसका पूरा नाम 2, 4, 6 ट्राई नाइट्रो टालूईन है। यह बम तथा हथगोलों को भरने के काम में आता है।
  2. ट्राइ नाइट्रोग्लिसरीन (T.N.G.): यह एक रंगहीन तैलीय द्रव है। यह सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल व सांद्र नाइट्रिक अम्ल की ग्लिसरीन के साथ क्रिया करके बनाया जाता है। इसे नोबल का तेल (Nobel’s oil) कहते हैं क्योंकि इसका आविष्कार ऐल्फ्रेड नोबेल ने किया था। यह डायनामाइट बनाने के काम आता है। धुआँ रहित चूर्ण बनाने में भी इसका उपयोग होता है।
  3. आर. डी. एक्स (R.D.X.): इस विस्फोटक को अमेरिका में साइक्लोनाइट, जर्मनी में होक्सोजन तथा इटली में टी-4 के नाम से जाना जाता है। इसमें प्लास्टिक पदार्थ जैसे पॉली ब्यूटाइन, एक्रिलिक अम्ल या पॉलीयूरेथेन को मिलाकर प्लास्टिक बान्डेड एक्स्प्लोसिव बनाया जाता है। यह एक प्रचंड विस्फोटक है।
  4. डायनामाइट: इसकी खोज 1867 में ऐल्फ्रेड नोबेल ने की थी। इसका मुख्य अवयव नाइट्रोग्लिसरीन है। यह चट्टानों व खानों को उड़ाने के काम में आता है।
  5. गन कॉटन: रूई अथवा लकड़ी के रेशों पर सांद्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया से गन कॉटन अथवा नाइट्रोसेलुलोस प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग पहाड़ों को तोड़ने तथा युद्ध में किया जाता है।
  6. पिक्रिक एसिड: यह TN.T. से अधिक विस्फोटक होता है। इसका प्रयोग बमों आदि में होता है।

साबुन तथा डिटर्जेट (अपमार्जक) Soap and Detergent

उच्च वसीय अम्लों के सोडियम तथा पौटेशियम लवण साबुन कहलाते हैं। कपड़ा धोने का साबुन घटिया किस्म के तेल या वसा से बनाये जाते हैं, जबकि नहाने के साबुन के लिए उच्च कोटि की वसा का प्रयोग होता है। कपड़ा धोने का साबुन प्राय: कठोर होता है क्योंकि इसे कास्टिक सोडा से बनाते हैं नहाने का साबुन मृदु होता है क्योंकि इसे कास्टिक पोटाश से बनाते हैं।

अपमार्जक Detergent

अपमार्जक एक विशेष प्रकार के कार्बनिक पदार्थ हैं जिनमें साबुन की तरह मैल साफ करने का गुण होता हैं साबुन का उपयोग केवल मृदु जल में किया जाता है, कठोर जल में नहीं, परंतु इसके विपरीत अपमार्जक मृदु तथा कठोर, दोनों प्रकार के जल में उपयोग किये जा सकते हैं। अपमार्जक कठोर जल में उपस्थित कैल्शियम और मैग्नीशियम आयनों के साथ जल में अविलेय लवण नहीं बनाते अर्थात् अवक्षेप नहीं देते हैं। अपमार्जक का जलीय विलयन उदासीन होता है, अतः अपमार्जक बिना किसी हानि के कोमल रेशों से बने वस्त्रों को साफ करने में प्रयुक्त किये जा सकते हैं। साबुन का विलयन जल-अपघटन के कारण क्षारीय होता है, जो कोमल वस्त्रों को धोने के लिए हानिकारक है।

कार्बन के उपयोग
कार्बन की अवस्था उपयोग
हीरा Gemstone, काटने में, पीसने में, पॉलिश में, उद्योग में, Drilling।
ग्रेफाइट स्टील उद्योग, पेन्सिल,उच्च ताप कुसिबल, तत्वों के विद्युत अपघटन में प्रयोग किए जाने वाले विद्युत अपघट्य के रुप में
कोक स्टील उद्योग, ईंधन।
कार्बन ब्लैक रबर उद्योग, स्याही में, पेंट तथा प्लास्टिक।
सक्रिय कार्बन चीनी उद्योग में रंग हटाने में, रसायनों के शोधन में, उत्प्रेरक ईधन, अपचायक।
पॉलीमर मोनोमर उपयोग
पॉलीथीन एथीलीन (сн2=cн2) थैलियां, ट्यूब, पैकिंग सामग्री बनाने में।
पी.वी.सी. विनाइल क्लोराइड (CH2=CH-CI) बरसाती, सीट कवर, पतली चादरें तथा बिजली के तार बनाने में।
पॉली स्टाइरीन स्टाइरीन (С6Н5–СН =СН2) रेडियो व टेलीविजन केबिनेट बनाने में तथा बोतलों की टोपियों को बनाने में।
टैफ्लॉन ट्रैटाफ्लुओरोएथिलीन (CF2=CF2) नॉनस्टिक कुकिंग बर्तन बनाने में।
पॉलीप्रोपाइलीन प्रोपाइलीन (СН3СН=СН2) ट्यूब बनाने में।
नॉयलॉन H2N (СН2), NН6 तथा НOOC (СН2), СООН वस्त्र उद्योग में
टेरेलीन OH-CH2-OH तथा C6H4 (COOH)4 वस्त्र बनाने में।

प्लास्टिक Plastic

वह प्रक्रिया, जिसमें एक ही प्रकार के एक से अधिक अणु आपस में जुड़कर कोई अधिक अणुभार वाला बड़ा अणु बनाते हैं, बहुलकीकरण (Polymerisation) कहलाती है। बहुलीकरण में भाग लेने वाले अणुओं को एकलक (Monomer) और उत्पाद को बहुलक (polymer) कहते हैं। बहुत से असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जैसे- एथिलीन, प्रोपलीन आदि बहुलीकरण की क्रिया के पश्चात् जो उच्च बहुलक बनाते हैं, उसे प्लास्टिक कहते हैं।

व्यवहारिक जीवन में रसायन

  1. नाइलोन को पैराशूट के कपड़े तथा पर्वतारोहण के लिए रस्सियां बनाने में प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह गीला होने पर या कम ताप पर सख्त नहीं होता।
  2. नाइलोन बहुत ही कम नमी का अवशोषण करता है। इस गुण को डिप ड्राई कहते हैं। इस कारण यह स्त्रियों की जुराबों तथा अन्य कई वस्तुओं के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।
  3. नाइलोन दांतों के ब्रुशों के बाल बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. उनके साथ नाइलोन मिलाकर अधिक टिकाऊ ऊनी वस्त्र बनाए जाते हैं।
  5. ऊन तथा रेयॉन का मिश्रण कालीन बनाने में प्रयोग किया जाता है।
  6. चिकित्सा के क्षेत्र में रेयॉन, लिंट या जाली बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह रुई की अपेक्षा शुद्ध रूप में प्राप्त किया जा सकता है तथा घावों पर इसकी जाली नहीं चिपकती।
  7. पॉली वाइनिल क्लोराइड (PVC) का उपयोग पतली चादरें, फिल्म, बरसाती, सीट कवर आदि बनाने में किया जाता है।
  8. बेकोलाइट का उपयोग रेडियो, टेलीविजन आदि को केस, बाल्टी आदि बनाने में उपयोग किया जाता है।

रबर Rubber

रबड़ अनेक आइसोप्रोटीन इकाइयों से बना योगात्मक बहुलक है। यह एक चिपचिपा पदार्थ है, जिसमें न्यून मात्रा में लचीलापन पाया जाता है। लचीलापन बढ़ाने के लिए प्राकृतिक रबड़ में सल्फर मिलाकर मिश्रण को गरम किया जाता है। यह प्रक्रिया वल्कनीकरण कहलाती है। इनका उपयोग टायर बनाने में किया जाता है।

कार्बन यौगिकों की संख्या इतनी अधिक क्यों है?

कार्बनिक यौगिकों की संख्या इतनी अधिक क्यों है ? उत्तर⇒क्योंकि कार्बन परमाणु अन्य परमाणुओं के साथ इलेक्ट्रॉनों को साझा कर यौगिक बनाते हैं। यही कारण है कि कार्बनिक यौगिकों की संख्या इतनी अधिक है।

कार्बन से बने अधिकतम यौगिक विद्युत के कुचालक क्यों होते हैं?

a) कार्बन यौगिक में सहसंयोजक बंधन है,इसलिए कोई मुक्त इलेक्ट्रॉन ना होने के कारण यह बिजली का संचालन करने में सक्षम नहीं हो सकते।

कार्बनिक यौगिकों का मुख्य स्रोत क्या है?

कार्बनिक यौगिक पौधे, जानवर, कोयला और पेट्रोलियम जैसे प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं

कार्बन के कितने यौगिक होते हैं?

कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक (organic compounds) कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है।