कहानी शिक्षण की विधि क्या है? - kahaanee shikshan kee vidhi kya hai?

कहानी कथन विधि क्या है ? What is kahani kathan vidhi

मेरे प्रिय विद्यार्थियों कहानी कथन विधि शब्द को तो हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं लेकिन सच्चाई यही है की कहानी कथन विधि किसे कहते हैं? यह तथ्य हम में से अधिकांश लोग नहीं जानते हैं. तो दोस्तों बने रहिये हमारी वेबसाइट www.upboard.live पर हिंदी भाषा में कहानी कथन विधि का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर हम आज की पोस्ट में आपको कहानी कथन विधि और उसके प्रमुख लेखकों के बारे में बताएंगे हिंदी साहित्य में कहानी कथन विधि से संबंधित लेखकों के बारे में बताएंगे। इस पोस्ट में आपको जानकारी देंगे।

कहानी कथन विधि किसे कहते हैं? कहानी कथन विधि में क्या सावधानियां जरूरी हैं?

What is kahani kathan vidhi?

कहानी कथा विधि सामाजिक अध्ययन शिक्षण की एक महत्वपूर्ण (important) विधि है। इसके माध्यम से अध्यापक विद्यार्थियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। इस विधि के माध्यम से विद्यार्थियों के मन में कल्पना एवं कौतूहल जागृत होता है। यह विधि मनावैज्ञानिक विधि है, इसके माध्यम से बालकों में नैसर्गिक शक्तियों का विकास किया जाता है। इसके माध्यम से अध्यापक विद्यार्थियों के लिए पाठ्य वस्तु को सरल एवं रोचक बनाने में समर्थ होता है, अतः विद्यार्थियों को महापुरुषों समाज सुधारको, लेखको, संतो, अन्वेषको एवं वैज्ञानिकों की कहानियां सुनानी चाहिए।

कहानी कथन विधि के गुण (लाभ)

(Characteerstics of kahani kathan vidhi)


  •   कहानी मौखिक रूप से सुनने चाहिए। बीच-बीच में प्रश्न भी करते रहना चाहिए ताकि विद्यार्थी रुचि एवं ध्यान से सुने एवं ज्ञान प्राप्त करें।


  •   शांत वातावरण में विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति के अनुसार कहानी सुनानी चाहिए।


  •   अध्यापक को स्पष्ट तथा प्रभावशाली शैली में कहानी को सुनाना चाहिए।


  •    कहानी अर्थ पूर्ण तथा वास्तविक होनी चाहिए।


  •  अध्यापक को अभिनय कला का भी ज्ञान होना चाहिए।


  •  अध्यापक को विद्यार्थियों का सहयोग लेकर कहानी सुनना चाहिए।


  •   अध्यापक को कहानी सुनाने के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए।


  •   कहानी सुनाते समय विषय वस्तु को बोधगम्य बनाने के लिए सहायक सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।


  •   कहानी अधिक लंबी नहीं होना चाहिए तथा विषय से संबंधित होना चाहिए।

कहानी कथन विधि के दोष (कमियां)

(Detects of kahani kathan vidhi)

1 यह विधि बड़ी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है।

2 कहानी कथन शैली से रहित अध्यापक के माध्यम से इसका प्रयोग इसको अप्रभावी एवं हास्यपद बनाने में सहायक है।

3 कहानी की निष्क्रियता विद्यार्थियों निष्क्रिय श्रोता बनाती है।

4 कहानी में कल्पना की अधिकता रहती है इससे बच्चों में अविश्वसनीयता का भाव उत्पन्न करती है।

कहानी कथन विधि में सावधानियां

कहानी सुनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -

1 विद्यार्थियों की आयु के अनुसार कहानी का चयन करना चाहिए।

2 कहानी संक्षिप्त एवं सरल होनी चाहिए।

3 कहानी की विषय वस्तु पर उसका अधिकार होना चाहिए।

4 कहानी की भाषा शैली एवं विषय वस्तु विद्यार्थियों के मानसिक स्तर एवं रूचि के अनुसार होनी चाहिए।

5 कहानी कहने का ढंग रुचि कर स्वाभाविक तथा भावपूर्ण होना चाहिए।

6 कहानी रोचक एवं प्रभाव पूर्ण होना चाहिए कहानी उद्देश पूर्ण होना चाहिए।

कहानी कथन प्रविधि प्रारंभिक कक्षाओं के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है। प्रारंभिक कक्षाओं के विद्यार्थियों का मानसिक स्तर इतना कम विकसित होता है कि उन्हें शिक्षण की जो दूसरी प्रविधियां उसकी इतनी समझ विकसित नहीं करती जितनी की कहानी के माध्यम से होती है। यदि कहानियां उद्देश्य पूर्ण होती है तथा अध्यापक उनकी माध्यम से संबंधित तथ्यों को स्पष्ट करता है, तो यह अत्यधिक लाभकारी होता है।

कहानी शिक्षण की विधि क्या है? - kahaanee shikshan kee vidhi kya hai?
कहानी कथन विधि क्या है ?

किसी विषय के सूक्ष्म एवं जटिल आंशो के कहानी के माध्यम सुबोध बनाया जाता है। बालक जो ज्ञान कहानी के माध्यम से प्राप्त करता है, उसे आत्मसात करने में सहाजता एवं सरलता होती है। सामाजिक विज्ञान में यह विधि अत्यधिक प्रयोग की जाती है। ऊंची कक्षाओं में भी इस विधि का प्रयोग कर सकते हैं। जो अध्यापक अपने विषय के अच्छे ज्ञाता होते हैं, वह कहानी के रूप में विषय वस्तु को प्रस्तुत करने में समर्थ होते हैं। कहानी के माध्यम से जटिल अंशु को सरल रूप में प्रस्तुत कर के विद्यार्थियों को विषय वस्तु आसानी से समझ में आ सकती है।

Answer:  नाटक शिक्षण :

नाटक प्रदर्शन का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। प्राचीन संस्कृत साहित्य नाटकों से भरा पड़ा है। नाटकों की परंपरा राजपूत काल तक चलती रही, लेकिन मुगल काल में इस कला को अवश्य धक्का लगा। आंग्ल शासन काल में भारतीय पाश्चात्य-साहित्य के निकट आये तथा साथ ही संस्कृत साहित्य का पुनरुद्धार हुआ, जिसके कारण कई प्रभावशाली नाटकों की रचना हुई। बंगाल में बंकिमचंद्र एवं रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नाटक के क्षेत्र में विशेष योग दिया। हिन्दी में भी इस दिशा में पर्याप्त प्रगति हुई। संस्कृत के नाटकों का अनुवाद करने के अतिरिक्त मौलिक नाटकों की भी रचना की गई। जयशंकर प्रसाद के नाटक हिन्दी साहित्य में अपना विशेष स्थान रखते हैं।

नाटक की परिभाषा- नाट्याचार्य भरतमुनि के अनुसार-“किसी भी दशा के अनुकरण को नाटक कहते हैं।” नाटक की सबसे सुंदर परिभाषा अभिनव नाट्यशास्त्र' में विद्वान अभिनव भरत ने इन शब्दों में की है, “किसी प्रसिद्ध या कल्पित कथा के आधार पर, नाट्यकार द्वारा चित्र-रचना के अनुसार : नाट्यकार द्वारा प्रशिक्षित नट जब रंगमंच पर संगीत एवं अभिनय आदि के द्वारा रस पैदा करके दर्शकों का मनोविनोद करते हुए उन्हें उपदेश और मानसिक शांति प्रदान करते हैं, तब इस क्रिया को नाटक या रूपक कहते हैं।” इस तरह नाटक में हम निम्न मुख्य बातें पाते हैं-

(क) नाटक में अनुकरण तत्व की प्रधानता होती है।

(ख) नाटक गद्यात्मक एवं पद्यात्मक दोनों रूप का हो सकता है।

(ग) नाटक, काव्य की बजाय ज्यादा वास्तविकता लिए हुए है।

(घ) नाटक-रचना का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ सर्वसाधारण को कोई न कोई संदेश देना है।

नाटक शिक्षा के उद्देश्य :

(1) मानव-जीवन की विभिन्न परिस्थितियों एवं विभिन्न मानसिक अवस्था छात्रों को कराना।

(2) छात्रों को प्रभावशाली एवं शुद्ध वार्तालाप की शिक्षा प्रदान करना।

(3) मानव-स्वभाव का सम्यक् ज्ञान कराना।

(4) शुद्ध उच्चारण एवं भाव-प्रकाशन के अवसर प्राप्त करना।

(5) अभिनय कला में छात्रों को निपुण करना।

(6) छात्रों को अवसरानुकूल आचरण करने एवं अवसरानुकूल वार्तालाप करने की शिक्षा प्रदान करना।

(7) छात्रों को प्राचीन एवं आधुनिक संस्कृति का यथार्थ जीवन से परिचय कराना।

नाटक शिक्षण की प्रणालियाँ :

आजकल नाटक शिक्षण के लिए निम्न प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है-

(1) व्याख्या प्रणाली- व्याख्या प्रणाली में नाटक की भाषा, पात्र, चरित्र, शैली एवं कथोपकथन आदि व्याख्या स्पष्ट रूप से आती है। व्याख्या प्रश्नोत्तर प्रणाली के आधार पर की जाती है। ये प्रश्न मुख्य रूप से नाटक की भाषा, कथानक, पृष्ठभूमि तथा विचार-सौंदर्य आदि से संबंधित करके किये जाते हैं। इस तरह छात्र नाटक के गुण-दोषों से भली-भाँति परिचित हो जाते हैं। लेकिन यह प्रणाली प्रमुख रूप से उच्च कक्षाओं के लिए ही उपयुक्त है, प्राथमिक स्तर पर यह उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकती।

(2) प्रयोग प्रणाली- प्रयोग प्रणाली नाट्य शिक्षण की सर्वोत्तम प्रणाली है। इसमें नाटक को रंगमंच पर अभिनीत किया जाता है, इसी कारण प्रयोग प्रणाली को 'रंगमंच अभिनय प्रणाली' कहकर भी पुकारा जाता है। ‘रंगमंच अभिनय प्रणाली' में छात्र संपूर्ण नाटक को रंगमंच पर अभिनीत करते हैं। यह प्रणाली छात्रों पर अन्य प्रणालियों की अपेक्षा ज्यादा प्रभाव डालती है। ज्यादा व्ययपूर्ण होने के कारण भारत जैसे निर्धन देश में इसका प्रयोग सर्वव्यापी नहीं बनाया जा सकता है।

(3) कक्षाभिनय प्रणाली- कक्षाभिनय प्रणाली, प्रयोग प्रणाली का दूसरा रूप है अध्यापक कक्षा के छात्रों को नाटक के मुख्य पात्रों की भूमिका-प्रदान करता है जिन्हें कि छात्र कक्षा में ही अभिनीत करते हैं। छात्र भावपूर्ण ढंग से संवाद पढ़कर सुनाते हैं अथवा स्मृति के आधार पर कहते हैं। यह सत्य है कि इस प्रणाली में रंगमंच जैसी प्रभावशीलता पैदा नहीं की जा सकती, लेकिन सरलता एवं व्यावहारिकता की दृष्टि से यह बहुत उपयोगी है। इस प्रणाली का उपयोग अध्यापक चाहे जब सुविधानुसार कर सकता है। दूसरे, कक्षाभिनय प्रणाली में कक्षा का वातावरण सरल एवं क्रियाशील बनता है, तथा ज्यादा छात्रों को नाटक में भाग लेने का अवसर मिलता है।

(4) आदर्श नाट्य पाठ प्रणाली- इस प्रणाली में अध्यापक स्वयं संपूर्ण नाटक का भावपूर्ण मुद्रा में कायिक एवं वाचिक अभिनय करता है। वह कक्षा छात्रों के सम्मुख नाटक में हर पात्र के अनुसार ध्वनि को चढ़ाता-उतारता है एवं विभिन्न अंगों का संचालन करता है। नाटक में स्थित प्रत्येक रस तथा भाव उसके मुख पर प्रकट होता रहता है। यह विधि छात्रों में नाटक के प्रति रुचि पैदा करती है। परंतु इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें अध्यापक तो सक्रिय रहता है लेकिन संपूर्ण कक्षा निष्क्रिय श्रोता बनी बैठी रहती है। दूसरे, इस प्रणाली का प्रत्येक अध्यापक सरलतापूर्वक प्रयोग नहीं कर सकता।

कहानी-शिक्षण :

कहानी साहित्य की एक विधा है। वह साहित्य का सबसे ज्यादा मनोरंजक अंग है। उपदेश तथा मनोरंजन दोनों ही कहानी के प्रमुख प्रयोजन होते हैं। प्राचीन काल से ही दादा-दादी की कहानियाँ बच्चे सुनते चले आये हैं तथा सुनते रहते हैं। इनको सुनने से उनका मनोरंजन होता है तथा शिक्षा भी मिलती है।

साहित्य के अंग के रूप में कहानी की परिभाषा भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अलग-अलग प्रकार से दी है-

एच.जी. वेल्स- कहानी एक छोटी रचना है।

मुंशी प्रेमचंद- गल्प एक ऐसी रचना है, जिसमें जीवन के किसी एक भाग या एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य होता है। उसकी शैली, चरित्र तथा कथानक एक ही भाव को प्रकट करते हैं।

चार्ल्स वेरेट- कहानी एक लघु वर्णनात्मक गद्य रचना है, जिसमें वास्तविक जीवन को कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। कहानी का प्रमुख उद्देश्य मनोरंजन होता है।

कहानी के उदाहरण-

(1) पंच परमेश्वर-प्रेमचंद,

(2) सती सावित्री-बंधीधर श्रीवास्तव,

(3) ईदगाह-प्रेमचंद,

(4) रानी दुर्गावती-महावीरप्रसाद द्विवेदी,

(5) कर्तव्य परायणता-कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर',

(6) इब्राहीम गार्दी-वृंदावनलाल वर्मा।

उपरोक्त कहानियों को यदि लिया जाये तो पता चलेगा कि कहानी लेखक अपनी कहानी निम्न बातों को ध्यान में रखकर रचना करता है-

(1) किसी ऐतिहासिक तथ्य को आधार बनाकर आदर्श प्रस्तुत करता है।

(2) कुछ कहानियों में लेखक तत्कालीन समाज की मान्यताओं, प्रथाओं तथा समस्याओं का उल्लेख करता है। जैसे-ईदगाह में लेखक ने मुस्लिम समाज में ईद के दिन के उत्साह का वर्णन किया है। साथ ही यह दिखाया गया है कि अपनी दादी को प्रेम करने वाला बच्चा उस दिन जब सब बच्चे खिलौने, मिठाइयाँ आदि खरीदते हैं, हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदकर लाता है, क्योंकि उसके बिना दादी की उंगलियाँ तवे से जल जाती हैं।

(3) कुछ कहानीकार कहानी के रूप में नीति संबंधी उपदेश देना चाहते हैं। इस तरह हमारे सम्मुख कहानियों के तीन रूप प्रस्तुत होते हैं-

(अ) ऐतिहासिक,

(ब) सामाजिक,

(स) धार्मिक।

कहानी पढ़ाने और सुनाने के उद्देश्य :

हम बच्चों को क्यों कहानी सुनाते हैं या पाठ्यक्रम में क्यों कहानियाँ रखी जाती हैं। इसके निम्न उद्देश्य हैं-

(1) स्वस्थ मनोविनोद तथा मनोरंजन की शिक्षा देना।

(2) सुंदर उपदेश देना।

(3) बालकों को स्पष्ट तथा तर्क-संगत ढंग से विचार करना सिखाना।

(4) बालकों को अपनी कल्पना-शक्ति के प्रयोग के अवसर प्रदान करना।

(5) बालकों को संवेगों में प्रशिक्षित करना।

(6) बालकों में व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यवहार के आदर्श उपस्थित करना।

(7) बालकों की भाषा तथा शैली विषयक रुचि का परिष्कार करना।

(8) बालकों के हृदयगत भावों को क्रमबद्ध, तर्कपूर्ण, सुश्रृंखलित तथा स्पष्ट रूप से प्रकट करने का अवसर देना।

(9) बालकों के ज्ञान की वृद्धि करना।

(10) ज्ञान को सरल तथा रोचक रूप से पेश करना।

(11) छात्रों में भाषा तथा साहित्य के प्रति रुचि जागृत करना।

(12) बालकों का शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना।

कहानी मानव सभ्यता के आदिकाल से मनोविनोद का साधन रही है। कहानी कहने वाला श्रोता का मनोरंजन करना चाहता है।

लगभग 70% कहानियों के पीछे उद्देश्य निहित रहता है। उसमें नैतिकता के उद्देश्य की तरफ विशेष ध्यान दिया जाता है। कहानी ही एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा बालक के मस्तिष्क तथा मन के सुंदरतम स्थलों को स्पर्श किया जा सकता है।

बालकों को स्पष्ट तथा तर्कसंगत ढंग से सोचने के लिए कहानी प्रेरित करती है। उनके दिल से झिझक तथा संकोच दूर करती है। बालकों के बोलने में स्वाभाविकता आती है।

कहानी पाठ के प्रकार :

कहानी पाठ के संभाव्य रूप चार हैं, संभाव्य रूप का आशय है, वह रूप जिसमें कहानी पढ़ाई जा सकती है। किसी पाठ की कहानी को गहन अध्ययननिष्ठ पाठ के रूप में पढ़ा सकते हैं, तो दूसरे कहानी पाठ को द्रुत पाठ रूप से। किसी कहानी-पाठ को मौखिक रूप से सुना सकते हैं, तो दूसरे कहानी पाठ को रचना-पाठ का रूप दे सकते हैं। अगर कहानी के पात्रों के बीच संवाद की प्रधानता है तो वह पाठ संवाद-पाठ के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। इस प्रकार कहानी पाठ के संभाव्य रूप निम्नलिखित हैं-

(1) गहन अध्ययननिष्ठ कहानी पाठ।

(2) द्रुतपाठ।

(3) मौखिक पाठ।

(4) रचना पाठ।

(5) संवाद पाठ।

निम्न प्राथमिक कक्षाओं में कहानी शिक्षण का रूप मौखिक ही ज्यादा होता है, अतः कहानियाँ कक्षा में सुनाकर ही पढ़ाई जाती हैं। कुछ कहानियाँ संवाद पाठ के रूप में पढ़ाई जा सकती हैं पर उनमें संवादों की अधिकता होनी चाहिए।

कहानी-शिक्षण की प्रणालियाँ :

कहानी-शिक्षण की बालकों के स्तर के अनुरूप चार प्रणालियाँ हैं। कहानी-शिक्षण करवाते समय इनमें से किसी एक प्रणाली को, जो उस कक्षा के अनुरूप हो, का चयन किया जा सकता है। ये प्रणालियाँ मुख्यतः निम्न तरह हैं-

(क) मौखिक कहानी कथन प्रणाली- इस प्रणाली के अनुसार कहानी को मौखिक रूप से सुनाया जाता है। कहानी सुनाने की यह प्रणाली अति प्राचीन एवं स्वाभाविक है। बालक दादी तथा नानी से कहानी इसी प्रणाली से सुनते हैं।

छोटी कक्षाओं के लिए यह प्रणाली बहुत उपयुक्त है। बच्चों को छोटी-छोटी सरल कहानियाँ सुनना अच्छा लगता है। श्रवण शक्ति के विकास के लिए यह प्रणाली बहुत उपयुक्त है।

माध्यमिक एवं उच्च कक्षाओं में इस विधि को किसी अंश तक अपनाया जा सकता है। पाठ्यपुस्तक की कहानी को पढ़ाने से पहले संक्षेप में उसे सुनाया भी जा सकता है। लंबी कहानी, नाटक अथवा उपन्यास की कहानी को संक्षेप में बताया जा सकता है।

मौखिक कहानी कथन की कुछ सीमाएं भी हैं। घटनाप्रधान कहानी उत्सुकतावश सुनी जाती है। वर्णनप्रधान, भावप्रधान,मनोवैज्ञानिक कहानी का वर्णन मौखिक रूप से कर पाना कठिन काम है। ये कहानियाँ मुख्य रूप से पढ़ने के लिए ही लिखी जाती हैं। पाठ्यक्रम विस्तार की दृष्टि से सभी कहानियों को सुना पाना भी कठिन है।

(ख) चित्र प्रदर्शन प्रणाली- इस प्रणाली के अनुसार कहानी को विभिन्न चित्रों के माध्यम से दिखाया जाता है। चित्रों का क्रम कहानी के विकास के अनुसार रखा जाता है।

इस प्रणाली में निम्न विधियाँ अपनायी जा सकती हैं-

(1) पूर्वश्रुत कहानी के चित्र बालकों को दिखाये जायें तथा घटना प्रश्न पूछकर कहानी का विकास किया जाये।

पूर्व प्राथमिक तथा प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए यह विधि उपयुक्त है।

(2) नई कहानी को चित्रों के माध्यम से पढ़ाया जाये। बालकों से चित्र से संबंधित किया जाये। प्रश्न पूछे जायें तथा कहानी का विकास किया जाये -

यह विधि भी प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयुक्त है। इससे बालकों की कल्पनाशक्ति का विकास होता है एवं उन्हें मौखिक अभिव्यक्ति का भी अवसर मिलता है।

(3) स्वतंत्र चित्र दिखाकर भी कहानी का निर्माण हो सकता है। इन चित्रों में सामान्य घटनाओं को प्रदर्शित किया जाता है। चित्रों से संबद्ध कोई प्रसिद्ध कथा नहीं होती। चित्र जीवन की विभिन्न घटनाओं से इस तरह जुड़े होते हैं कि विद्यार्थी उन्हें देखकर कहानी का निर्माण कर सकते हैं।

यह विधि प्राथमिक कक्षाओं से लेकर उच्च कक्षाओं तक उपयोगी है। इससे कल्पना-शक्ति का विकास होता है। मौखिक अभिव्यक्ति का अवसर मिलता है। सृजनात्मक शक्ति का भी विकास होता है।

इस विधि को काम में लेते समय चित्रों का निर्माण स्थानीय वातावरण के अनुसार हो तो यह ज्यादा उपयोगी रहता है।

(ग) अधूरी कहानी-पूर्ति प्रणाली- इस प्रणाली के अनुसार अधूरी कहानी को पूर्ण करवाया जाता है। कहानी को पूरा करने के लिए निम्न विधियाँ अपनायी जाती हैं-

(1) कहानी का आरंभ दो-तीन वाक्यों या एक अनुच्छेद से कर दिया जाता है। पात्रों का चुनाव, घटनाक्रम, वातावरण का निर्माण, उद्देश्य आदि की बात विद्यार्थी पर छोड़ दी जाती है।

कहानी की यह प्रणाली उच्च कक्षाओं में बहुत उपयोगी रहती है। कहानी की पूर्ति लिखकर अथवा बोलकर की जाती है।

इस विधि से विद्यार्थी को आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है। अपनी कल्पनाशक्ति तथा सृजन क्षमता को प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है।

(2) कुहानी की सामान्य रूपरेखा देकर भी कहानी को पूर्ण करने को कहा जा सकता है।

इस कार्य को उच्च कक्षाओं के विद्यार्थी बड़ी रुचि से करते हैं।

(3) कहानी का सिर्फ शीर्षक मात्र देकर भी कहानी लिखवाई जा सकती है। इसमें विद्यार्थी को कहानी का पूरा ताना-बाना बुनने का अवसर मिलता है। यह कार्य भी उच्च कक्षाओं के विद्यार्थी ही कर सकते हैं। अभिव्यक्ति, कल्पना तथा सृजनशीलता के अवसर इस विधि में ज्यादा होते हैं।

(घ) वाचन-प्रणाली- वाचन प्रणाली के अनुसार विद्यार्थी पाठ्य-पुस्तक में दी गयी कहानी को वाचन विधि से सीखता है।

वाचन प्रणाली की निम्न विधियाँ हो सकती हैं-

(1) संपूर्ण कहानी को अध्यापक ही कक्षा में पढ़कर सुनाये।

(2) एक ही विद्यार्थी सारी कहानी को कक्षा में पढ़कर सुनाये।

(3) कई विद्यार्थी सारी कहानी को क्रमश: अंशत: पढ़-पढ़कर सुनायें।

(4) विद्यार्थी मौन रूप से कक्षा में कहानी को पढ़ें।

(5) अध्यापक कहानी का कुछ भाग विद्यार्थियों के सामने पढ़े एवं कठिन शब्दों का अर्थ बताते हुए शेष भाग को इसी विधि से पढ़ने को कहे।

(6) यदि कहानी संवाद के रूप में है तो कुछ विद्यार्थी कहानी के पात्र बनकर अपने-अपने अंश को पढ़ें। संवाद के अलावा शेष भाग को एक अन्य विद्यार्थी पढ़ता रहे।

(5) गहन अध्ययन प्रणाली- कहानी-शिक्षण की गहन अध्ययन प्रणाली से तात्पर्य है कि कहानी में आये कठिन शब्द, नये विचार, लोकोक्ति, मुहावरे आदि की समुचित व्याख्या करते हुए कहानी को पढ़ना। इस प्रणाली के अनुसार कहानी की घटनाओं मात्र को समझ लेना काफी नहीं।

कहानी के कथन, संदेश, उपदेश, निर्देश, कथाकार का दर्शन, उसका समसामयिक महत्व, अन्य कहानियों से तुलना एवं समीक्षा के अन्य पहलुओं पर विचार करना भी इसमें सम्मिलित है।

यह प्रणाली भावप्रधान, मनोवैज्ञानिक, विचारप्रधान, साहित्यिक आदि कहानियों के शिक्षण के लिए उपयुक्त रहती है। इस विधि से वही अध्यापक पढ़ा सकता है, जिसका इस क्षेत्र है में गहन अध्ययन हो।

कहानी विधि से आप क्या समझते हैं?

कहानी कहना एक श्रुति प्राचीन कला है जिसके द्वारा किसी विषय या घटना को मनोरंजन बनाकर छात्रों को उसका ज्ञान सरलता और सफलता से प्रदान किया जाता है। इसका उद्देश्य है-छात्रों में पाठ्य विषय के प्रति रुचि और उत्साह को जाग्रत करना ।

कहानी शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि कौन सी है?

कहानी शिक्षण विधि तथा सोपान :.
प्रस्तावना : सबसे पहले कक्षा में उचित वातावरण बनाकर कहानी कहने का माहौल बनाया जाता है। ... .
कहानी कथन/प्रस्तुतीकरण : प्रस्तावना के बाद इस सोपान में कहानी को मजेदार ढंग से सुनाया जाता है। ... .
कहानी सुनना/पुनरावृत्ति : इस सोपान में कहानी सुनाने वाला कहानी सुनने वाले से कहानी सुनता है।.

शिक्षण में कहानी विधि का क्या महत्व है?

कहानियाँ बच्चों को समूह में चुप्पी तोड़ने , समुदाय से सीखने , कहानी लिखने , कहानी की घटनाओं पर आधारित रचनात्मक चित्र बनाने और अर्थपूर्ण सीखने के अनुभव बनाने के लिए प्रेरित करती हैं। स्कूलों में यह महत्वपूर्ण विधा बच्चों के लिए उपयोगी शिक्षण उपकरण है। कहानी के उपयोग से विषयों में भी रोचकता आ जाती है।

कहानी शिक्षण का मुख्य उद्देश्य क्या है?

अनुभवी शिक्षक यह जानते हैं कि विद्यार्थी जब भाषा को किसी कहानी में सुनते हैं, तो उन्हें यह बहुत अच्छी तरह याद रहती है और वे इसका उपयोग करने की कोशिश भी करते हैं। कक्षा में नियमित रूप से कहानियाँ कहना और पढ़कर सुनाना एक अच्छा अभ्यास है क्योंकि इससे सीखने का अवसर भी मिलता है और यह मज़ेदार अनुभव भी होता है