जयशंकर प्रसाद का उपनाम क्या था? - jayashankar prasaad ka upanaam kya tha?

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प्रमुख हिंदी कवियों के उपनाम (Hindi kaviyon ke upnaam)

मूल नामउपनाम\ लोकप्रिय नाम\छद्र्म नामजयशंकर प्रसादआधुनिक कविता के सुमेरु\ झारखंडी \कलाधरमैथिलीशरण गुप्तप्रथम राष्ट्रकविबालमुकुंद गुप्तशिव  शंभूसुमित्रानंदन पंतप्रकृति का सुकुमार कवि\ सुधाकर प्रिय\ नंदन जी\ नयन\ लक्ष्मण\ मुकुल\ एक निहत्था\ गुसाई दत्ता\ नंदिनी\ साईंदा

jaishankar prasad ka jeevan parichay । जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

  • जयशंकर प्रसाद का जन्म- माघ शुक्ल दसवीं को वि स. 1946 ,( 30 जनवरी 1889 ) हुआ था।
  • वाराणसी( उत्तर प्रदेश में)
  • पिता का नाम- देवी प्रसाद साहू
  • उपनाम- छायावाद का ब्रह्मा( जयशंकर प्रसाद)
  • निधन- 15 नवंबर 1937 को
  • हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की।
  • सर्वप्रथम छायावादी रचना-‘खोलो द्वार'( 1914) इंदु में प्रकाश।
  • ‘ करुणालय’- हिंदी के गीत नाटक का आरंभ करने वाली रचना।
  • ‘ इंदु’- जयशंकर प्रसाद द्वारा संपादित मासिक पत्रिका( साहित्य जगत में यही से पहचान मिली)।
  • काव्य रचना का आरंभ- बृज भाषा में।
  • प्रमुख काव्य रचनाएं- चित्र आधार, कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना, आंसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक, करुणालय, उर्वशी
  • प्रमुख नाटक- अजातशत्रु, स्कंद गुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी,जन्मेजय का नाम यज्ञ, राज्यश्री, कामना, एक घूंट
  • उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती(अपूर्ण )।

  • कंकाल- नागरिक सभ्यता का अंतर यथार्थ उद्घाटित किया जाता है।
  • तितली- ग्रामीण जीवन के सुधार के संगीत हैं।
  • इरावती- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया अधूरा उपन्यास जो रोमांस के कारण ऐतिहासिक रोमांस के उपन्यास में विशेष स्थान रखता है।
  • जय शंकर प्रसाद की कहानियां- कुल 72 कहानियां लिखी।
  • ‘ ग्राम’- शंकर प्रसाद की पहली कहानी( 1910) जो प्रकाशित हुई 1912 में’ इंदु’ पत्रिका में।
  • प्रमुख कहानी संग्रह- छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आधी , इंद्रजाल, पुरस्कार, गुंडा, सालवती , मधुआ , छोटा जादूगर।
  • प्रमुख निबंध- सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, प्राचीन आर्यवर्त और उसका प्रथम सम्राट(, ऐतिहासिक( और काव्य कला।
  • उन्होंने अलंकार का उपयोग भी अच्छी तरह किया है।
  • रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, संदेह , विरोधाभास आदि।
  • इतिहास, दर्शन, धर्मशास्त्र, और पुरातत्व के प्रकांड विद्वान थे ।
  • यह मूलतः सौंदर्य एवं प्रेम के कवि थे।
  • जय शिव के उपासक थे।
  • पुरस्कार-‘ कामायनी’पर मंगल प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • कामायनी- काव्य क्षेत्र में कीर्ति का मूलाधार, खड़ी बोली का अद्वितीय महा काव्य जिसमें मनु एवं श्रद्धा को आधार बनाकर रचना की गई है।
  • ‘ कामायनी’- सुमित्रानंदन पंत इसे हिंदी में ताजमहल के समान मानते हैं।
  • भाषा- संस्कृत निष्ठ हिंदी
  • इनकी कहानियों में राष्ट्रप्रेम की भावना का बढ़-चढ़कर वर्णन किया गया है।
  • हिंदी की सर्वश्रेष्ठ नाटककार माने जाते हैं।
  • नाटकों की संख्या- 13 ( 8 ऐतिहासिक, तीन पौराणिक,2 भावात्मक)।

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माता की मृत्यु के दो वर्ष बाद अनुज भी चल बसे। सत्रह वर्ष की अवस्था में उत्तरदायित्व का भार आ गया। स्वयं विवाह करना पड़ा। तीन विवाह किए। साहित्य साधना रात्रि में होती थी। जयशंकर प्रसाद की कविता का आरंभ ब्रजभाषा से हुआ।


जयशंकर प्रसाद जी ने तीन विवाह किए थे। प्रथम पत्नी का क्षय रोग से तथा द्वितीय का प्रसूति के समय देहावसान हो गया था। तीसरी पत्नी से इन्हें रत्न शंकर नामक पुत्रा की प्राप्ति हुई। जीवन के अन्तिम दिनों में जयशंकर प्रसाद जी उदर रोग से ग्रस्त हो गए थे तथा इसी रोग ने कार्तिक शुक्ला देवोत्थान एकादशी, विक्रम संवत् 1994 को इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति का देहावसान हो गया।


हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद जी की बहुमुखी देन है। उन्होंने उपन्यास, काव्य, नाटक, कहानी, निबंध, चम्पू आदि सभी विधाओं पर सशक्त रूप से लेख्नी चलाई है। लेकिन फिर भी उनकी अमर कीर्ति का आधार स्तंभ काव्य और नाटक ही हैं। इनके उज्ज्वल व्यक्तित्व के अनुसार इनका रचना संसार अत्यंत विस्तृत और बहुआयामी है। इन्होंने नौ वर्ष की अल्पायु में ही कलाधार उपनाम से ब्रजभाषा में रचना प्रारम्भ कर दी थी।

जयशंकर प्रसाद का व्यक्तित्व 

जयशंकर प्रसाद का व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था। वे मंझोले कद के थे। उनका वर्ण और गौर और मुख गोल था। उनकी हँसी बड़ी स्वाभाविक और मधुर थी। जवानी में वे ढाका की मलमल का कुरता और बढ़िया धाते ी पहनते थे। परन्तु बाद में खद्दर का उपयोग करने लगे थे। श्री रामनाथ ‘सुमन’ प्रसाद जी के निकट सम्पर्क में रहे। उन्होंने ‘प्रसाद’ जी के व्यक्तित्व के सम्बंध में लिखा है- ‘‘व्यक्ति की दृष्टि से जयशंकर प्रसाद एक उच्चकोटि के महापुरुष थे। वे कवि होने के कारण उदार व्यापारी होने के कारण व्यवहारशील, पुराण शास्त्र, संस्कृत.काव्य आदि के विशेष अध्ययन के कारण प्राचीनता की ओर झुके हुए, भारतीय आचारों एवं भारतीय सभ्यता के प्रति ममता रखने वाले तथा एक सीमा तक पाश्चात्य सभ्यता के गुणों के प्रशसंक थे।


भारत में प्राचीन इतिहास का अध्ययन जयशंकर प्रसाद का प्रिय विषय था। वे केवल ऐतिहासिक घटनाओं के बाह्य या तथ्यात्मक रूप से ही सन्तुष्ट होने वाले प्राणी नहीं थे, अपितु उन घटनाओं के भीतर प्रविष्ट होकर तत्त्व चिन्तन से उनके मर्म का उद्घाटन करने में लगे रहते थे। यही कारण है कि उनके ऐतिहासिक नाटक अन्तर्द्वन्द्व प्रधान है। उनके कथानकों का आधार सांस्कृतिक संघर्ष है। वे संस्कृति, सभ्यता, धर्म दर्शन और नीति के माध्यम से इतिहास का मूल्यांकन करते थे। उनका ऐतिहासिक और शास्त्रीय .ज्ञान असाधारण था। यह एक आश्चर्य की बात थी कि वे दार्शनिक चिन्तन और ऐतिहासिक अध्ययन मनन के लिए कम अवकाश निकाल पाते थे। 


उनकी दिनचर्या में अध्ययन और साहित्य.साधना का प्रथम और प्रमुख स्थान प्राप्त था। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साहित्य सर्जन में लीन हो जाना उनका अभ्यास ही हो गया था। जब अध्ययन और साहित्य सृजन हो जाता था, तब वे बेनिया बाग में टहलने के लिए निकल पड़ते थे। वहाँ भी साहित्यिक मित्रों के साथ वार्तालाप किया करते थे।

जयशंकर प्रसाद अन्तर्मुखी व्यक्ति थे। आत्म विज्ञापन करना वे अच्छा नहीं समझते थे। समारोह में जाना, सभापति बनना और भाषण देना उन्हें अच्छा नहीं लगता था। प्रात: काल के भ्रमण के बाद वे दो घण्टे तक अपने व्यवसाय की देखभाल करते, दोपहर को 12 बजे भोजन करके दो घण्टे नित्य विश्राम करते और तीन बजे पुन: अपने कारोबार की देख रेख करते तथा व्यावसायिक पत्रों का उत्तर लिखते थे। रात्रि के नौ बजे तक वे अपनी दूकान पर बैठे रहते और साहित्यक बन्धुओं के साथ विविध विषयों पर चर्चा करते थे। 

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं

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1. काव्य -जयशंकर प्रसाद जी काव्य और कविता-संग्रह हैं:- 

  1. कामायनी 
  2. आँसू 
  3. झरना 
  4. लहर 
  5. महाराणा का महत्त्व 
  6. प्रेम पथिक 
  7. कानन कुसुम 
  8. चित्राधार 
  9. करुणालय।

2. नाटक -जयशंकर प्रसाद के नाटक हैं- 

  1. राज्यश्री 
  2. विशाख 
  3. अजातशत्रु 
  4. जनमेजय का नाग यज्ञ 
  5. कामना 
  6. स्कन्दगुप्त 
  7. एक घूंट 
  8. चन्द्रगुप्त 
  9. ध्रुवस्वामिनी 
  10. कल्याणी-परिणय 
  11. सज्जन।

3. उपन्यास -जयशंकर प्रसाद जी के उपन्यास - 

  1. कंकाल
  2. तितली 
  3. इरावती (इसे वे पूरा नहीं कर पाए, क्योंकि इसके प्रणयन में संलग्न रहते हुए वे अकाल काल-कवलित हो गए।)
4.कहानी - जयशंकर प्रसाद जी के कहानी संग्रहों के नाम हैं-

  1. आकाशदीप 
  2. इन्द्रजाल
  3. प्रतिध्वनि 
  4. आँधी 
  5. छाया।

5. निबन्ध और आलोचना -जयशंकर प्रसाद ने यद्यपि किसी विशाल आलोचनात्मक granth की रचना नहीं की, तथापि उनके आलोचनात्मक निबन्ध ही उनकी गवेषणात्मक, प्रज्ञा, विश्लेषण, मनीषा और विचाराभिव्यक्ति के परिवाचक हैं। काव्य कला तथा अन्य निबन्ध में इनके आलोचनात्मक निबन्ध संग्रहीत हैं।


6. चम्पू -जयशंकर प्रसाद ने चम्पू काव्य की भी रचना की है। इनकी इस प्रकार की रचना का नाम है- उर्वशी। इसके साथ ही इन्होंनें एक काव्य कहानी भी लिखी है जो प्रेम राज्य के नाम से प्रसिद्ध है। 


जयशंकर प्रसाद जी की रचनाओं के उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि उन्होंने तत्कालीन युग में प्रचलित गद्य एवं पद्य साहित्य की समस्त विद्याओं में लिखा तथा साहित्य के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विशेषताएं 

‘प्रेम पथिक’ की रचना पहले ब्रजभाषा में की गई थी बाद में उसे खड़ी बोली में रूपांतरित कर दिया गया। ‘झरना’ के पूर्व की सभी रचनाएं द्विवेदी युग में लिखी गई थीं। जयशंकर प्रसाद की आरंभिक शैली संस्कृत गर्भित है। ‘झरना’ में कवि ने आंतरिक कल्पना द्वारा सूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त किया है। बाह्य सौंदर्य का चित्रण करते समय भी उन्होंने सूक्ष्म और मानसिक पक्ष को व्यक्त करने की ओर ध्यान दिया है। ‘आंसू’ का आरंभ कवि की विरह-वेदना से हुआ है। अंत में ‘आंसू’ को विश्व-कल्याण की भावना से संबंधित कर दिया है। अंत तक आते-आते कवि अपने व्यक्तिगत जीवन की निराशा और विषाद से ऊपर उठकर अपनी पीड़ा को करुणा का रूप देकर विश्व प्रेम में बदल देता है। ‘लहर’ गीत कला का सुंदर उदाहरण है। कल्पना की मनोरमता, भावुकता तथा भाषा शैली की प्रौढ़ता सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है। ‘कामायनी’ अंतिम कृति है। इसके द्वारा मानव सभ्यता दिखलाई गई है। 


संक्षिप्त कथानक में मानव जीवन के अनेक पक्षों को समन्वित करके मानव जीवन हेतु व्यापक आदर्श व्यवस्था का प्रयत्न किया है। पात्रों के चरित्रांकन में मनुष्य की अनुभूतियों, कामनाओं और आकांक्षाओं की अनेक रूपता वर्णित है। यह कामायनी की चेतना का मनोवैज्ञानिक पक्ष है। मनु श्रद्धा, इड़ा एवं मानव के द्वारा मानव मात्रा के मनोजगत के विविध पक्षों का चित्राण चिंता, आशा, वासना, ईर्ष्या, संघर्ष एवं आनंद आदि सर्गों में किया गया है। 

जयशंकर प्रसाद का मूल नाम क्या था?

जयशंकर प्रसाद
पूरा नाम
महाकवि जयशंकर प्रसाद
जन्म
30 जनवरी, 1889 ई.
जन्म भूमि
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु
15 नवम्बर, सन् 1937 (आयु- 48 वर्ष)
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जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है?

जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को हुआ था। जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है? जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कामायनी है।

जयशंकर प्रसाद की रचना कितनी है?

काव्य:- चित्राधार, कानन-कुसुम, करूणालय, महाराणा का महत्व, प्रेम-पथिक, झरना आँसू, लहर, कामायनी और प्रसाद-संगीत। नाटक:- प्रायश्चित्त, सज्जन, कल्याणी-परिणय, अजात-शत्रु, विशाख, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कन्दगुप्त, एक-घूँट, ध्रुवस्वामिनी।

जयशंकर प्रसाद के श्रेष्ठ भ्राता का क्या नाम था?

पिता की मृत्यु के दो-तीन वर्षों के भीतर ही प्रसाद की माता का भी देहान्त हो गया और सबसे दुर्भाग्य का दिन तब आया, जब उनके ज्येष्ठ भ्राता शम्भूरतन चल बसे.