हमारे पास प्रश्न है जीवाणु द्वारा होने वाले किन्हीं दो रोगों के नाम बताइए तथा इन्हें किसी एक रोग का वर्णन कीजिए हमें जीवाणुओं द्वारा होने वाले किन्हीं दो रोगों के नाम बताना है तथा इनमें से किसी एक रोग का वर्णन करना है तो सो सबसे पहले बात कर लेते हैं जीवाणु द्वारा होने वाले दो रोगों के बारे में तो दोस्तों जो जीवाणुओं वाला रोग जीवाणु द्वारा रोग होते हैं उन्हें पहला है है जो हमें दो नाम बताना है जो कि वाइब्रियो कॉलरी नामक जीवाणु से होता है किसके द्वारा दोस्तों वाइब्रियो कॉलेज वाइब्रियो कॉलरी द्वारा होता है और दोस्तों दूसरा जो है वह है कि Show एक है जाओगे दोस्तों एक टीवी हो गया दोस्तों बात करें टीवी की तो टीवी जो है माय ओ माय को सोनी माइकोबैक्टेरियम माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस और दोस्तों माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस मायावती यम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु से होता है भाई हमें दोस्त से बात करते हैं टीवी कि हमें एक रोग का वर्णन करना है टीवी की बात करते हैं ट्यूबरकुलोसिस है क्या दोस्तों से पूरा नाम ट्यूबरकुलोसिस से बात करें दोस्तों टीवी की तो एक ऐसी बीमारी है टीवी जो फेफड़ों जो फेफड़ों और व्यक्ति के फेफड़ों और फैक्टरी के श्वसन तंत्र को से सुनो और व्यक्ति के स्वसन तंत्र को प्रभावित प्रभावित करती है फेफड़ों स्वसन तंत्र को प्रभावित करती है तो उसको बात करेंगे दोस्तों यह बीमारी जो है इलाज और रोकथाम योग्य है लेकिन अपने संचारी रोग के कारण अपने संचारी रोग के कारण अपने संचारी रूप के कारण यह रोग और विश्व में विश्व स्तर पर विश्व स्तर पर दूसरा घातक रोग रहा है 200 बात करें टीवी के लक्षण की टीवी का क्या लक्षण है किन लक्षणों से पता चलता है दोस्तों की मनुष्य को टीवी हो गई वह टीवी से ग्रसित है भूख ना लगना वजन कम होना तो सोचने वजन बहुत ज्यादा कम हो जाता है वजन गिरता चला जाता है और आगे बात करें दोस्तों तो रात को पसीना आना रात को पसीना आना सदस्य टीवी के लक्षण है थकान और 3 हफ्ते से ज्यादा की खांसी 3 हफ्ते से अधिक समय तक से अधिक समय तक अगर खासी है दोस्तों तो चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए श्री अच्छी सलाह की जरूरत है टीवी हो सकती है 200 बात करें आगे लक्षणों की तुमने बात कर ली इससे बचाव के तरीकों की प्रीवेंशन क्या है दोस्तों से दोस्तों संक्रमित व्यक्ति से दूरी बना कर रहे हैं संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाकर रहना चाहिए क्योंकि दोस्तों यह संचारित रूफ इसका इसको विश्व स्तर का की दूसरी सबसे घातक बीमारी बना चुका है ठीक है दोस्तों और बात करें तो मांस का प्रयोग करें अगर आपको पास जाना भी पड़े दोस्तों समास का प्रयोग करें ताकि इसके जीवाणु आपके शरीर में ना प्रवेश कर पाए हाथ मिलाने से बचें रिश्वत संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने गले मिलने गले मिलने इन सब से दोस्तों बचना चाहिए नहीं करना चाहिए नहीं तो इस यह इसका संचार आपके भी शरीर में हो जाएगा तो यह तो सब कुछ बचा बचाव के उपाय और यह टीवी के लक्षण ट्यूबरकुलोसिस के और दोस्तों होता क्या है किससे होता है और जीवाणु द्वारा होने वाली होने वाले दो रोगों धन्यवाद
जीवाणु (Bacteria) सूक्ष्म जीव हैं जो प्रायः एककोशिकीय होते हैं। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं और प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। इनका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़ आदि के आकार की हो सकती है। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय, गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में[1], जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। सम्पूर्ण पृथ्वी पर जीवाणुओं की कुल संख्या अनुमानतः लगभग ५x१०३० होगी [2] जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है।[3] ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है।[4] जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं।[5] हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा , मियादी बुखार, निमोनिया , तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि। केवल क्षय रोग से ही प्रतिवर्ष लगभग २० लाख लोग मरते हैं, जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं।[6] विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि कार्यों में प्रतिजैविक का उपयोग होता है, इसलिए जीवाणुओं में इन प्रतिजैविक दवाओं के प्रति
प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्र में जीवाणुओं की किण्वन क्रिया द्वारा दही, पनीर इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा
जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होता है।[7] पहले जीवाणुओं को पौधा माना जाता था परंतु अब उनका वर्गीकरण प्रोकैरियोट्स के रूप में होता है। दूसरे जन्तु कोशिकों तथा यूकैरियोट्स की भांति जीवाणु कोष में पूर्ण विकसित केन्द्रक का सर्वथा अभाव होता है जबकि दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग यदा कदा ही पाए जाते है। पारंपरिक रूप से जीवाणु शब्द का प्रयोग सभी सजीवों के लिए होता था, परंतु यह वैज्ञानिक वर्गीकरण १९९० में हुई एक खोज के बाद बदल गया जिसमें पता चला कि प्रोकैरियोटिक सजीव वास्तव में दो भिन्न समूह के जीवों से बने हैं जिनका क्रम विकास एक ही पूर्वज से हुआ। इन दो प्रकार के जीवों को जीवाणु एवं आर्किया कहा जाता है।[8] इतिहासजीवाणुओं को सबसे पहले १६७६ ई. में डच वैज्ञानिक एण्टनी वाँन ल्यूवोनहूक ने एकल लेंस वाले सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा था जिसे उसने स्वयं बनाया था। [9] परन्तु उस समय उसने इन्हें जंतुक (animalcule) समझा था। अपने अवलोकनों की पुष्टि के लिए उसने रायल सोसाइटी को कई पत्र लिखे।[10][11][12] १६८३ ई. में ल्यूवेनहॉक ने जीवाणु का चित्रण कर अपने मत की पुष्टि की। १८६४ ई. में फ्रांसनिवासी लूई पाश्चर तथा १८९० ई. में कोच ने यह मत व्यक्त किया कि इन जीवाणुओं से रोग फैलते हैं।[13] पाश्चर ने १९८९ में प्रयोगों द्वारा यह दिखाया कि किण्वन की रासायनिक क्रिया सूक्ष्म जीवों द्वारा होती है। कोच सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र में युगपुरूष माने जाते हैं, इन्होंने हैजा, ऐन्थ्रेक्स तथा क्षय रोगों पर गहन अध्ययन किया। अंततः कोच ने यह सिद्ध कर दिया कि कई रोग सूक्ष्म जीवों के कारण होते हैं। इसके लिए १९०५ ई. में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[14] कोच न रोगों एवं उनके कारक जीवों का पता लगाने के लिए कुछ परिकल्पनाएं की थी जो आज भी इस्तेमाल होती हैं।[15] १९वीं शताब्दी तक सभी जान गए थे कि जीवाणु कई रोगों के कारक हैं, फिर भी किसी प्रभावी प्रतिजैविक की खोज नहीं हो सकी।[16] सबसे पहले प्रतिजैविक का आविष्कार १९१० में पॉल एहरिच ने किया जिससे सिफलिस रोग की चिकित्सा सम्भव हो सकी।[17] इसके लिए १९०८ ई. में उन्हें चिकित्साशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इन्होंने जीवाणुओं को अभिरंजित करने की कारगर विधियां खोज निकाली, जिनके आधार पर ग्राम स्टेन की रचना संभव हुई।[18] उत्पत्ति एवं क्रमविकासआधुनिक जीवाणुओं के पूर्वज वे एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव थे, जिनकी उत्पत्ति ४० करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जीवन के आरम्भ के समय हुई। इसके बाद लगभग ३० करोड़ वर्ष तक पृथ्वी पर जीवन के नाम पर सूक्ष्मजीव ही थे। इनमें जीवाणु तथा आर्किया मुख्य थे।[19][20] स्ट्रोमेटोलाइट्स जैसे जीवाणुओं के जीवाश्म पाये गए हैं परन्तु इनकी अस्पष्ट बाह्य संरचना के कारण जीवाणुओं को समझने में इनसे कोई खास मदद नहीं मिली। वर्गीकरणजीवाणुओं का वर्गीकरण आकृति के अनुसार किया जाता है। उदाहरण- 1. दण्डाणु (बैसिलाइ) – दंड जैसे, 2. गोलाणु (कोक्काई)- बिन्दु जैसे, 3. सर्पिलाणु (स्पिरिलाइ) – लहरदार आदि। मानव के विभिन्न अंगों को प्रभावित करने वाले जीवाणुबैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण तथा उससे सम्बन्धित जीवाणु-प्रजाति इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
जीवाणु से कौन से दो रोग होते हैं?अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा , मियादी बुखार, निमोनिया , तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि।
बैक्टीरिया से होने वाले रोग कौन कौन हैं?बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस बैक्टीरिया से होने वाली इस बीमारी में हमारे ब्रेन और रीढ़ की हड्डी को ढंकने वाली एक परत मेनिनजिस में सूजन आ जाती है। ... . निमोनिया निमोनिया फेफड़ों का इन्फेक्शन है। ... . टीबी या तपेदिक Tuberculosis या टीबी भी बैक्टीरिया की वजह से होने वाला संक्रामक रोग है। ... . कॉलेरा. विषाणु से होने वाला रोग कौन सा है?जीवाणुभोजी विषाणु एक लाभप्रद विषाणु है, यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवी, इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं।
जीवाणु के कौन कौन से प्रकार होते हैं?जीवाणु (Bacteria) सूक्ष्म जीव हैं जो प्रायः एककोशिकीय होते हैं। ... वर्गीकरण दण्डाणु (बैसिलाइ) – दंड जैसे, गोलाणु (कोक्काई)- बिन्दु जैसे, सर्पिलाणु (स्पिरिलाइ) – लहरदार आदि।
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