प्रेम क्या है गीता के अनुसार? - prem kya hai geeta ke anusaar?

प्रेम क्या है गीता के अनुसार? - prem kya hai geeta ke anusaar?

"हर धर्म प्रेम सिखाता हैं" यह बात आप लोग ने बहुत बार सुना होगा और कहा भी होगा सबसे! लेकिन आप ने कभी भी ये सोचा की, ये बात सच है या नहीं? इससे पहले ये तो जान लो प्रमे क्या है, प्रेम की परिभाषा क्या है? अस्तु, नारद जी ने प्रेम की परिभाषा किया, उन्होंने कहाँ नारद भक्ति सूत्र ५१ "प्रेम का सुरुअप अनिर्बाचिनम है।" अर्थात प्रेम के पास शब्द नहीं जा सकता। वेद तैत्तिरीयोपनिषद २.४.१, २.९.१ "इंद्री मन बुद्धि उस प्रेम के पास नहीं जा सकती।" तुलसीदस जी कहते है "कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम।" अर्थात जैसे कामी को स्त्री प्रिय लगती है और लोभी को जैसे धन प्यारा लगता है, ऐसा कुछ प्रेम होता है। इस बात को इस प्रकार समझो, एक आम का कीड़ा से एक नीम का कीड़ा पूछता है की "भाई! ये मीठा किस होता है ।

आम का कीड़ा "तुमने कभी रसगुल्ला, आम खाया है क्या?" नीम का कीड़ा "नहीं मैं तो नीम का कीड़ा हूँ, नीम के सिवा मैंने कुछ खाया ही नहीं अपनी जिंदगी में।" आम का कीड़ा "तो फिर तुम नहीं समझ सकते की मीठा क्या हैं"

"जो अपने सुख के लिए हो वो प्रेम नहीं" एक छोटी सी परिभाषा। वेद कहता है, "इस संसार में कोई भी किसी के सुख के लिए कर्म नहीं कर सकता, सोच नहीं सकता।" बृहदारण्यकोपनिषद् ४.५ "अरे, यह निश्चय है कि पति की प्रीति के -पति-सुख के मतलब के लिये पति प्रिय नहीं होता, अपने ही प्रयोजन के लिये पति प्रिय होता है; स्त्री के मतलब के लिये स्त्री प्रिया नहीं होती, अपने ही मतलब के लिये स्त्री प्रिया हुआ करती है।" इसी प्रकार पुत्र, वित्त, पशु, ब्राह्मण, क्षत्रिय, आदि सभी कुछ उनके मतलब के लिये नहीं, अपने मतलब के लिये-अपने सुख के लिये ही प्रिय हुआ करते हैं। वस्तुतः जगत में हमारा व्यवहार-व्यापार, आकर्षण, प्रेम, स्नेह, सेवा-सभी कुछ आत्मसुखकामना, सीमित स्वार्थपरता, आत्मेन्द्रिय-सुखेच्छा से ही प्रेरित होते हैं।

अतएव यह बात तो पाकी की कोई किसी के सुख के लिए कर्म नहीं करता क्यों की वेद किहता है। वेद के बात को कुछ इस प्रकार समझने की कोशिश करो। हर व्यक्ति की एक ❛कामना❜ है, वो ❛कामना❜ जब तक कोई व्यक्ति पूरा करता है, तब तक हम उसके साथ रहते हैं। या यू कहे कि जब तक अपना सुख मिलता है, उस व्यक्ति से तो तब तक उस व्यक्ति के पास रहना चाहते है। जब सुख नहीं मिलता तो भाड़ में गई माँ , बाप , बेटा, बेटी, पत्नी, दोस्त, आदि। या यू कहे कि जब तक अपना स्वार्थ सिद्ध होता हैं उस व्यक्ति से, तो तब तक उस व्यक्ति के पास रहना चाहते हैं। जैसे, संसार में एक पुत्र अगर सही-सही आचरण नहीं करता पिता के प्रति, तो पिता उसे घर से निकल देता है। अतएव जब स्वार्थी सिद्ध नहीं हूँआ तो भाड़ में गई माँ , बाप , बेटा, बेटी, पत्नी, दोस्त, आदि। संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के साथ रहना नहीं पसंद करता जो उसे दुःख देता हो। वह केवल ऐसे ही व्यक्ति के साथ रहना पसंद करता है जो उसे सुख देता हो।

माँ! बाप! आप लोग सोचते हैं कि "ये स्वार्थी नहीं है" परन्तु ऐसा नहीं हैं। जब तक आप माँ बाप के अनुसार आप चलते गये तब तक उनका स्वार्थी सिद्ध होता हैं। कैसा स्वार्थ? उन्होंने अपने आप को शरीर मन लिया हैं। इसलिए वो मान-सम्मान, पैसा, इज्जत यह सारी बातें मान रखा है। अगर आप इनमे से एक भी काम नहीं कर पाए तो, उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा, तो आप उनके लिए नालायक हो जायेंगे। जैसे एक बेटा बाबा या संत या कोई भी ऐसा कार्य जिसके लिए माँ बाप को छोड़ना अथवा त्यागना पड़े तो वो(माँ बाप) नहीं त्यागने देंगे।क्योंकी उन्होंने अपना स्वार्थ आपमें मान रखा हैं। आप चले जाये गए तो उनका स्वार्थ सिद्ध कैसे होगा। ठीक इसी प्रकार हम भी माँ बाप दोस्त आदि से ऐसे ही स्वार्थी सिद्धि करते है।

अतएव, हम लोग अपने माँ से बाप से बेटे से बेटी से पति से प्यार करते है ये सब अज्ञान के कारण है। ये सब स्वार्थ सिद्धि का खेल हैं। सब अपने स्वार्थ सिद्ध करना चाहते है। इसलिए आप से प्यार करने का नाटक करते हैं। चाहे वहाँ आपकी प्रेमिका, प्रेमी, माँ, बाप, बेटा, बेटी, पत्नी, दोस्त, आदि की क्यों न हो।

तो "हर धर्म प्रेम सिखाता है." लेकिन! उस पतित पवन, नित्य निरंजन,जग सुख कारण, सत्य सनातन से।ध्यान दो "से" प्रेम करने को सिखाता है। वेदों पुराणों में शरीफ उस सच्चिदानंद से ही एकमात्र प्रेम करने को कहाँ गया है। संसार में शरीफ "ड्यूटी" कर्तव्य निभाने को कहा है, और कर्तव्य (ड्यूटी) कैसे करे? हम कर्तव्य (ड्यूटी) ऐसे करे की ❛नामापराध❜ न हो। ❛नामापराध❜ मतलब न प्रेम हो न तो खार व द्वेष हो। यह ध्यान रहे की इस संसार में "किसी भी वस्तु, जीव, इंसान, कर्म से" न तो प्रेम हो न तो खार व द्वेष हो।

Prem kya hai gita ke anusar : हेलो दोस्तों नमस्कार आज हम इस आर्टिकल में बात करेंगे कि प्रेम क्या है गीता के अनुसार क्योंकि गीता विश्व का एकमात्र ऐसा ग्रंथ माना जाता है जो मानव को जीने का सही तरीका सिखाता है साथ में गीता एक ऐसी पुस्तक है.

प्रेम क्या है गीता के अनुसार? - prem kya hai geeta ke anusaar?

जो हम लोगों को प्रेम का सही अर्थ सिखाती है और इसे गीता के लेखक महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज जी हैं और उन्होंने जब यह गीता लिखना प्रारंभ किया तब उन्होंने कहा कि प्रेम ही जीवन का सबसे बड़ा आधार है.

इसी के साथ उन्होंने कहा कि जिस जीवन में प्रेम शांतिहै वह जीवन सुखमय और सबसे अच्छा जीवन है ऐसे में अगर आप जानना चाहते हैं कि गीता के अनुसार प्रेम क्या है तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं क्योंकि आज हम इस आर्टिकल में बताएंगे गीता के अनुसार प्रेम क्या है.

ऐसे में अगर आप इसकी पूर्णता जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को शुरू से लेकर अंत तक पढ़ ले तो आपको प्रेम क्या है गीता के अनुसार इसकी जानकारी प्राप्त हो जाएगी तो दोस्तों आइए हम बिना देर किए शुरू करते हैं कि गीता के अनुसार प्रेम किसे कहा गया है.

प्रेम क्या है गीता के अनुसार | Prem kya hai gita ke anusar

गीता के लेखक महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जीने कहा है कि प्रेम वह है जो थोड़े में संतुष्टि प्राप्त करें अगर जीवन में प्रेम नहीं है तो बहुत कुछ होने पर भी व्यक्ति के पास कुछ नहीं रहता है इसके अलावा भी उन्होंने प्रेम के विषय में बहुत कुछ कहा.

जो हम आपको इस आर्टिकल में एक सीरियल वाइज से बताएंगे ऐसे में इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए आप इस आर्टिकल को ध्यान पूर्वक जरूर पढ़ें.

1. गीता के अनुसार प्रेम को जीवन का आधार माना गया है

अगर बात की जाए कि गीता के अनुसार प्रेम क्या है तो गीता के अनुसार प्रेम को जीवन का आधार माना गया है अगर जीवन में प्रेम नहीं है तो जीवन जीने का कोई अस्तित्व नहीं है इसी के साथ में गीता में यह भी कहा गया है.

प्रेम क्या है गीता के अनुसार? - prem kya hai geeta ke anusaar?

कि जिस जीवन में प्रेम है वह जीवन शांतिपूर्ण है और जिस जीवन में प्रेम नहीं है उस जीवन में सब कुछ होते हुए भी कुछ भी नहीं होता है इसलिए प्रेम को ही गीता के अनुसार जीवन का सबसे बड़ा आधार बताया गया है.

2. गीता के अनुसार मनुष्य के जीवन को चार भागों में बांटा गया

गीता के अनुसार मनुष्य के जीवन को चार भागों में बांटा गया है पहली आत्मा, दूसरी बुद्धि, तीसरा मन ,चौथा बाहरी ढांचा,.

1. आत्मा

गीता के अनुसार आत्मा को बताया गया है कि आत्मा के बिना कोई भी कर्म नहीं किया जा सकता है उन्होंने कहा कि आत्मा के द्वारा ऐसी शिक्षा प्राप्त करने चाहिए जो चरित्र का निर्माण करें और जब चरित्र निर्माण होगा तो बुद्धि का विकास अपने आप होगा.

प्रेम क्या है गीता के अनुसार? - prem kya hai geeta ke anusaar?

इसके अलावा गीता में यह भी बताया गया है कि आत्मा व्यक्ति को यह एहसास दिलाती है कि वह इस दुनिया में कितना खास और किस कार्य के लिए बनाया गया है जिसके चलते वह इस दुनिया में सही गलत और अपने आप को पवित्र अपवित्र बना सकता है.

2. बुद्धि

गीता के अनुसार बताया गया है कि बुद्धि मनुष्य को निर्णय लेने के लिए प्रदान की गई है ताकि वह समझ सके कि हमें किस समय किस प्रकार का निर्णय लेना है तथा किस प्रकार से सबसे स्नेह पूर्वक रहना है ताकि हर इंसान प्रेम का मतलब समझ सके और प्रेम पाकर प्रेम प्रदान कर सके.

3. मन

गीता के अनुसार बताया गया है कि व्यक्ति का मन विचार करने के लिए प्रदान किया गया है ताकि व्यक्ति अपने आप में विचार कर सके कि हमारे लिए क्या उचित है और हम जो करते हैं वह किसके लिए उचित है किसके लिए नहीं इसी के साथ में वह अपने पथ पर अकेले चल सके इसीलिए व्यक्ति को सचेत मन प्रदान किया गया है.

4. शरीर का बाहरी ढांचा

गीता के अनुसार व्यक्ति के बाहरी ढांचे से व्यक्ति अपनी पहचान बनाता है कि वह क्या है कैसा है इसके चलते वह अपने कर्मों से अपनी अलग पहचान बना सकता है लेकिन लोगों के सामने पहचान बनाने के लिए शरीर का बारी ढांचा प्रदान किया गया है.

3. गीता के अनुसार प्रेम में शांति प्रदान करने वाला होता है

गीता के लेखक महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा है की प्रेम मनुष्य के जीवन में शांति लाता है तथा उसे जीने के लिए उत्साहित करता है इसी के साथ में उन्होंने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति के जीवन में प्रेम नहीं है.

प्रेम क्या है गीता के अनुसार? - prem kya hai geeta ke anusaar?

उस व्यक्ति के जीवन में सब कुछ होते हुए भी वह कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाता है बाद में उन्होंने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति के जीवन में प्रेम देने वाला कोई नहीं है उसके पास चाहे जितने भी खास व्यक्ति हो जाए उसका जीवन निरर्थक माना जाता है इसीलिए गीता के अनुसार प्रेम को शांति का रूप माना गया है.

4. सबको बराबर समझना

गीता के अनुसार प्रेम उसे कहा गया है जिसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव ना हो चाहे वह मनुष्य हो या कोई जानवर हो या कोई पंछी हो सब को एक समान समझना चाहिए इसी को प्रेम कहा गया है.

प्रेम क्या है गीता के अनुसार? - prem kya hai geeta ke anusaar?

इसी के साथ में गीता में यह भी बताया गया है कि प्रेम वह होता है जहां पर थोड़ा कम खाना मिले लेकिन शांति मिले तो उसे प्रेम बताया गया है.

5. गीता के अनुसार प्रेम वह है जिसमें कोई स्वार्थ ना हो

गीता के अनुसार बताया गया है कि प्रेम वह है जिसमें किसी भी प्रकार का स्वार्थ ना हो क्योंकि आज के दौर में जितने भी रिश्ते हैं उनमें किसी न किसी प्रकार का स्वाद छुपा होता है जिसके वजह से उसे प्रेम नहीं कहा जाएगा प्रेम वह होता है.

प्रेम क्या है गीता के अनुसार? - prem kya hai geeta ke anusaar?

जिसमें ना तो कुछ पाने की आशा होती है ना तो कुछ खोने का डर होता है प्रेम में बस हमें प्रेम के बदले प्रेम ही चाहिए होता है इसलिए गीता के अनुसार बताया गया है कि प्रेम वह होता है जिसमें किसी भी प्रकार का स्वार्थ ना हो.

निष्कर्ष

तो दोस्तों अब आप लोग जान गए होंगे कि गीता के अनुसार प्रेम किसे कहा गया है क्योंकि हमने इस आर्टिकल में आपको यह जानकारी प्रदान की है कि गीता के अनुसार प्रेम किसे कहा गया है तो दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारे द्वारा बताई गई जानकारी पसंद आई होगी.

भगवत गीता के अनुसार प्यार क्या है?

उन्होंने कहा कि प्रेम ही जीवन का आधार है। जिस के जीवन में प्रेम है उस के जीवन में शांति है। प्रेम में ही शांति निहित है। प्रेम है तो थोड़े में संतुष्टि है।

गीता के अनुसार मन क्या है?

मन को 11वीं इन्द्रिय माना जाता है, जो ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के बीच नियामक का काम करता है। ये इन्द्रियां और मन हमारे ज्ञान और कर्म के साधन मात्र न होकर इस संसार को भोगने के भी साधन हैं। संसार का सुख भोगने में मन विचार और कल्पना के द्वारा भी सहायता करता है। मनुष्य का मन संसार की सबसे अशांत चीज है।

सत्य क्या है गीता के अनुसार?

सत्य वस्तु का तीनों कालों में अभाव नहीं है, उसे मिटाया नहीं जा सकता है। असत् का अस्तित्व नहीं है, उसे रोका नहीं जा सकता है। आत्मा सत्य है भूतादिकों के शरीर नाशवान हैं।

गीता के अनुसार सबसे चंचल क्या है?

गीता में श्रीकृष्ण के अनुसार, एक व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई नहीं जान सकता। इसलिए स्वयं का आंकलन करना भी बेहद आवश्यक है। जो मनुष्य अपने गुणों और कमियों को जान लेता है वह अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके हर काम में सफलता प्राप्त कर सकता है। मन को बड़ा चंचल माना गया है।

गीता के अनुसार मोह क्या है?

मोह जब सफल होता है तो दुख मिलता है और जब असफल होता है तब भी दुख ही मिलता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब को मोह त्याग देता है तो उसे मेरी कृपा मिल जाती है। मोह रहित व्यक्ति परम आनंद प्राप्त करता है। इसीलिए मोह का त्याग करना चाहिए और जो हमारे पास है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।