जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अन्तर क्या है श्रम विभाजन और जाति प्रथा के आधार पर उत्तर दीजिए? - jaati aur shram vibhaajan mein buniyaadee antar kya hai shram vibhaajan aur jaati pratha ke aadhaar par uttar deejie?

श्रम-विभाजन और जाति प्रथा (अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न)

जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अन्तर क्या है श्रम विभाजन और जाति प्रथा के आधार पर उत्तर दीजिए? - jaati aur shram vibhaajan mein buniyaadee antar kya hai shram vibhaajan aur jaati pratha ke aadhaar par uttar deejie?

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प्रश्न 1.आंबेडकर की कल्पना का समाज कैसा होगा?

उत्तर-

आंबेडकर का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता व भाईचारे पर आधारित होगा। सभी को विकास के समान अवसर मिलेंगे तथा जातिगत भेदभाव का नामोनिशान नहीं होगा। सामाज में कार्य करने वाले को सम्मान मिलेगा।

प्रश्न 2:मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर होती है?

उत्तर-

मनुष्य की क्षमता निम्नलिखित बातों पर निर्भर होती है -

1. जाति-प्रथा का श्रम-विभाजन अस्वाभाविक है।

2. शारीरिक वंश परंपरा के आधार पर।

3. सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात सामाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की शिक्षा, ज्ञानार्जन आदि के लाभ पर।

4. मनुष्य के अपने प्रयत्न पर।

प्रश्न 3:लेखक ने जाति-प्रथा की किन किन बुराइयों का वर्णन किया है।

लेखक ने जाति-प्रथा की निम्नलिखित बुराइयों का वर्णन किया है -

1. यह श्रमिक-विभाजन भी करती है।

2. यह श्रमिकों में ऊँच-नीच का स्तर तय करती है।

3. यह जन्म के आधार पर पेशा तय करती है।

4. यह मनुष्य को सदैव एक व्यवसाय में बांध देती है भले ही वह पेशा अनुपयुक्त व अपर्याप्त हो।

5.यह संकट के समय पेशा बदलने की अनुमति नहीं देती. चाहे व्यक्ति भूखा मर जाए।

प्रश्न 4:लेखक की दृष्टि में लोकतंत्र क्या है?

लेखक की दृष्टि में लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है। वस्तुतः यह सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति और समाज के समिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। इसमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो।

प्रश्न 5:आर्थिक विकास के लिए जाति-प्रथा कैसे बाधक है?

उत्तर-

भारत में जाति-प्रथा के कारण व्यक्ति को जन्म के आधार पर मिला पेशा ही अपनाना पड़ता है। उसे विकास के समान अवसर नहीं मिलते। जबरदस्ती थोपे गए पेशे में उनकी अरूचि हो जाती है और ये काम को टालने या कामचोरी करने लगते हैं। वे एकाग्रता से कार्य नहीं करते। इस प्रवृत्ति से आर्थिक हानि होती है और उद्योगों का विकास नहीं होता।

प्रश्न 6:डॉ आंबेडकर समता को कैसी वस्तु मानते हैं तथा क्यों?

उत्तर-

डॉ. आंबेडकर समता को कल्पना की वस्तु मानते हैं। उनका मानना है कि हर व्यक्ति समान नहीं होता। वह जन्म से ही सामाजिक स्तर के हिसाब से तथा अपने प्रयत्नों के कारण भिन्न और असमान होता है। पूर्ण समता एक काल्पनिक स्थिति है, परंतु हर व्यक्ति को अपनी समता को विकसित करने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए।

प्रश्न 7:जाति और श्रम-विभाजन में बुनियादी अंतर क्या है? 'श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा' के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर-

जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अंतर यह है कि-

1. जाति-विभाजन, श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन करती है।

2. सभ्य समाज में श्रम-विभाजन आवश्यक है परंतु श्रमिकों के वर्गों में विभाजन आवश्यक नहीं है।

3. जाति विभाजन में पेशा चुनने की छूट नहीं होती जबकि श्रम विभाजन में ऐसी छूट हो सकती है।

4. जाति-प्रथा विपरीत परिस्थितियों में भी रोजगार बदलने का अवसर नहीं देती, जबकि श्रम-विभाजन में व्यक्ति ऐसा कर सकता है।

जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अन्तर क्या है श्रम विभाजन और जाति प्रथा के आधार पर उत्तर दीजिए?

(क) जाति प्रथा श्रम का ही विभाजन नहीं करती बल्कि यह श्रमिक को भी बाँट देती है। आंबेडकर जी के अनुसार एक सभ्य समाज में इस प्रकार का विभाजन सही नहीं है। इसे मान्य नहीं कहा जा सकता। (ख) जाति प्रथा में श्रम का जो विभाजन किया गया है, वह व्यक्ति की रुचि को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है।

श्रम विभाजन और जाति प्रथा में क्या अंतर है?

सभ्य समाज में श्रम-विभाजन आवश्यक है परंतु श्रमिकों के वर्गों में विभाजन आवश्यक नहीं है। जाति-विभाजन में श्रम-विभाजन या पेशा चुनने की छूट नहीं होती जबकि श्रम-विभाजन में ऐसी छूट हो सकती है। जाति-प्रथा विपरीत परिस्थितियों में भी रोजगार बदलने का अवसर नहीं देती, जबकि श्रम-विभाजन में व्यक्ति ऐसा कर सकता है।

जाति प्रथा को श्रम विभाजन का आधार क्यों नहीं माना जा सकता पाठ के आधार पर लिखिए?

वस्तुतः जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन नहीं माना जा सकता क्योंकि श्रम-विभाजन मनुष्य की रुचि पर होता है, जबकि जाति-प्रथा मनुष्य पर जन्मना पेशा थोप देती है। मनुष्य की रुचि-अरुचि इसमें कोई मायने नहीं रखती। ऐसी हालत में व्यक्ति अपना काम टालू ढंग से करता है, न कुशलता आती है न श्रेष्ठ उत्पादन होता है।

श्रम विभाजन का मतलब क्या होता है?

जब किसी बड़े कार्य को छोटे-छोटे तर्कसंगत टुकड़ों में बाँटककर हर भाग को करने के लिये अलग-अलग लोग निर्धारित किये जाते हैं तो इसे श्रम विभाजन (Division of labour) या विशिष्टीकरण (specialization) कहते हैं। श्रम विभाजन बड़े कार्य को दक्षता पूर्वक करने में सहायक होता है।