गया जाने से पहले घर पर क्या करना चाहिए? - gaya jaane se pahale ghar par kya karana chaahie?

दस सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो गया। पूर्णिमा को पहला श्राद्ध हुआ। शनिवार को शुद्धि दिवस के रूप में जाना जाता है। इस दिन से तर्पण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है, जो अमावस्या तक यानी 16 दिनों तक चलेगी। इसी पुष्टि ज्योतिषाचार्य पंडित वागीश्वरी प्रसाद द्विवेदी ने की और बताया कि जो व्यक्ति गया में पिंडदान नहीं कर सकेंगे, वह अपने पितरों का घर पर ही एकोदिष्ट श्राद्ध कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि घरों में सामान्य रूप से पिंडदान किया जा सकता है। गया में पार्वण श्राद्ध होता है।

उन्होंने बताया कि इस विधि से हर पितर को एक पिंड दिया जाता है। घर पर एकोदिष्ट श्राद्ध पिता की तिथि पर किया जाता है, जबकि अन्य पितरों को तर्पण किया जाता है। पिता के ही पिंड में सभी पितर सहभागी हो जाते हैं। पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, धान्य की समृद्धि होती है। जो मृत आत्माओं का श्राद्ध नहीं करते, उनके पितर सदैव नाराज रहते हैं। देवी-देवताओं की आराधना के साथ ही स्वर्ग को प्राप्ति होने वाले पूर्वजों की भी श्रद्धा और भाव के साथ पूजा व तर्पण किया जाता है।

विद्वान डॉ. विवेकानंद तिवारी कहते हैं कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितरों के प्रसन्न होने पर ही देवी-देवता प्रसन्न रहते हैं। पितरों के लिए समर्पित श्राद्धपक्ष भादों पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है। परमपिता ब्रह्मा ने यह पक्ष पितरों के लिए ही बनाया है। जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधिनुसार श्राद्ध नहीं किया जाता है, उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। जो भी अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करते हैं, उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर जातकों के जीवन में धन और सेहत संबंधी कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितरों का तर्पण करने से उन्हें मृत्युलोक से स्वर्गलोक में स्थान मिलता है।

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पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व

डॉ. विवेकानंद बताते हैं कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। हालांकि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जा सकता है। लेकिन, पितृपक्ष के 15 या 16 दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण करने का अधिक महत्व माना जाता है। इन दिनों में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने के कुछ खास तिथियां भी होती हैं।

विधि

डॉ. विवेकानंद कहते हैं कि श्राद्ध पूरे विधि-विधान से करना चाहिए। मत्स्य पुराण के अनुसार, श्राद्ध की तिथि को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर सफेद वस्त्र धारण करें। दक्षिण दिशा में जल दें। पूरब की ओर मुख करके पितरों का मानसिक आह्वान करें। हाथ में तिल कुश लेकर बोलें कि आज मैं इस तिथि को अपने अमूक पितृ के निमित्त श्राद्ध कर रहा हूं। इसके बाद जल धरती पर छोड़ दें।

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किसकी श्राद्ध कब करें

- जिन लोगों के सगे-सबंधियों और परिवार के सदस्यों की मृत्यु जिस तिथि पर हुई है, पितृपक्ष में पड़ने वाली उस तिथि में उनका श्राद्ध करना चाहिए।

- जिस महिला की मृत्यु पति के रहते हो गई हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है।

- ऐसी स्त्री जो मृत्यु को तो प्राप्त हो चुकी किंतु उनकी तिथि नहीं पता हो तो उनका भी श्राद्ध मातृ नवमी को ही करने का विधान है।

- आत्महत्या, विष, दुर्घटना आदि से मृत्यु होने पर मृत पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।

- पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

- अगर किसी कारणवश अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना उचित है।

Pitru Paksha Rules: पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करने का विशेष महत्व बताया गया है। पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कई उपाय किए जाते हैं। पूर्णिमा तिथि के दिन पितृलोक से पितृगण धरती पर आते हैं। प्रतिपदा तिथि से जल अन्न ग्रहण करने लगते हैं जो उनके परिवार के लोग उन्हें अर्पित करते हैं। इस साल पितृपक्ष का आरंभ 11 सितंबर रविवार से होने जा रहा है। हिंदू धर्म में पितरों को देवताओं के सामान ही माना जाता है। उनके आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि और धन धान्य बना रहता है। पितृ पक्ष में आपको बहुत सी बातों का ख्याल रखना चाहिए वरना आपके पितृ आपसे नाराज हो जाते हैं जिससे लाइफ में कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं। इसी के साथ आइए जानते हैं पितृपक्ष के दौरान किन कामों को नहीं करना चाहिए। पितृपक्ष में न करें ये 8 काम
- पितृ पक्ष में तामसिक भोजन से परहेज करें। इस दौरान सात्विवक भोजन करें। मूंग की दाल का सेवन करें, क्योंकि यह शुद्ध माना जाता है। मसूर दाल इस दौरान नहीं खाना चाहिए। लहसुन प्याज और मांस, मछली, मदिरा से पूरी तरह परहेज रखें।
पितृ पक्ष में कभी भी द्वार पर कोई पशु या मांगने वाला आए तो उसे अन्न जल जरूर देना चाहिए। कहते हैं पितृपक्ष में पितर किसी रूप में भी आकर अन्न जल की इच्छा करते हैं। जो व्यक्ति इस समय द्वार पर आए जीवों को संतुष्ट करके विदा करते हैं उनके जीवन पितरों की कृपा से आनंद और सुख की बहार आ जाती है।

- पितृ पक्ष में माता पिता में से कोई एक अगर जीवित हों तो उन्हें जितना अधिक हो सके आदर और सम्मान दें। इनकी हर खुशी का ध्यान रखें। क्योंकि इस समय माता पिता में से जो परलोक गए हैं वह धरती पर आकर देखते हैं कि आप माता अथवा पिता जो जीवित हैं उनका कितना ख्याल रखते हैं। अगर उनके साथी को कष्ट होता है तो उनके मन को कष्ट पहुंचता है और वह शाप देकर, बिना अन्न जल प्राप्त किए लौट जाते हैं जिससे जीवन में एक के बाद एक कष्ट आने लगते हैं। तरक्की रुक जाती है।

- नियमित घर में जलाएं घूप दीप और सभी लोग प्यार से रहें। घर में कलह और अशांति का माहौल पितृपक्ष में बिल्कुल न बनने दें। ऐसे करने से पितृगण खुश होते हैं। जो लोग पितृपक्ष में पितरों को याद नहीं करते हैं और घर में अशांति बनाए रखते है उनके घर से लक्ष्मी चली जाती हैं। क्योंकि पितरों का शाप उनकी खुशियों को छीन लेता है।

- पितृ पक्ष के दौरान यह याद जरूर रखें कि आपके परिवार में जो लोग परलोक गए हैं वह वापस आकर 15 दिनों के लिए आपके बीच में हैं। इसलिए इस दौरान जो भी भोजन करें उनमें थोड़ा सा हिस्सा निकालकर पितरों का ध्यान करें। जो ग्रास या भोजन अपने पितरों को याद करके निकाला है वह गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ को खिला दें। पितरों का ध्यान किए बिना और पितरों के निमित्त अन्न निकाले बिना अन्न खाने वाला रोगी होता है और आर्थिक परेशानियों का सामना करता है।

- पितृ पक्ष में जो लोग पितरों को जल देते हैं उन्हें लंबी दूरी की यात्रा इस समय नहीं करनी चाहिए। जिस स्थान पर पितरों का तर्पण आरंभ किया है उसी स्थान पर पूरे पितृ पक्ष में रहकर पितरों को जल अन्न देना चाहिए। अगर आप यात्रा करते हैं तो पितरों को भी भटकना पड़ता है और उन्हें इससे कष्ट होता है। अगर आप किसी तीर्थस्थल में पितरों को जल अन्न दान करना चाहते हैं इसलिए यात्रा करना चाह रहे हैं तो पितरों से प्रार्थना करें कि और कहें कि हे पितरों मैं आपकी तृप्ति के लिए (आप जिस भी तीर्थ में जा रहे हो उसका नाम लें। जल और अन्न का दान करने जा रहा हूं इसलिए आप भी कृपा करके मेरे साथ चलें। इससे पितृ प्रसन्न होंगे और अन्न जल प्राप्त करके आशीर्वाद देंगे।

- पितरों की पूजा करते समय जब जल हथेली से जमीन पर गिराएं तो इसे अंगूठे की और तर्जनी के बीच से गिराएं। इसे हथेली में पितृ तीर्थ कहते हैं। इससे जल पितरों को प्राप्त होता है। सामने से अंजुली से जल गिराने पर जल देवताओं को प्राप्त होता है पितरों को नहीं। इसलिए देव और पितरों की पूजा में जल देने का अलग नियम है।

- पितरों को जल देते समय हथेली में दो चीजों का होना बहुत ही जरूरी है। एक कुश और दूसरा तिल। बिना तिल और कुश से जल देने से पितरों को संतुष्टि नहीं होती है। और वह अतृप्त होकर नाराज होते हैं। पितरों के नाराज होने पर जीवन में अशांति और कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं।

- सबसे जरूरी बात यह है कि पितृपक्ष में जिस दिन आपके पितरों की मृत्यु तिथि हो उस दिन अपनी क्षमता और व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण को भोजन कराएं। ब्राह्मणों की संख्या विषम रखें। 1, 3, 5, 7,11, 21 इस तरह। पितरों की मृत्यु तिथि पर जो लोग पितरों के नाम से ब्राह्मण भोजन नहीं करवाते या अन्न जल का दान नहीं करते हैं उन्हें अगले जन्म तक इसका दंड भोगना पड़ता है। ऐसे लोगों की कुंडली में अगले जन्म में पितृ दोष बनता है और असफलता इनका पीछा नहीं छोड़ता है।

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गया से आने के बाद क्या करना चाहिए?

शास्त्रानुसार गया में श्राद्ध करने के उपरांत भी अपने पितरों के निमित्त तर्पण व ब्राह्मण भोजन बंद नहीं करना चाहिए, केवल उनके निमित्त 'धूप' छोड़ना बंद करना चाहिएगया श्राद्ध के उपरांत ब्रह्मकपाली में श्राद्ध किया जाना चाहिए

गया जाने से पहले घर में क्या करना चाहिए?

भोजन व पिण्ड दान-- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है..
श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। ... .
श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है।.

गया जी कब जाना चाहिए?

गया जी कब जाना चाहिए? पुराणों के अनुसार पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। पितृ पक्ष पर गया जी में अपने पितरों का पिंड दान करते लोग।

गया जी क्यों जाते हैं?

कहा जाता है कि गया में भगवान राम और सीता ने पिता राजा दशरथ को पिंडदान किया था. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यदि इस स्थान पर पितृपक्ष में पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहाँ पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं.