गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

गालिब पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘गालिब गैर नहीं हैं, अपनों से अपने हैं, के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहता है?’
उत्तर-
प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख कवि त्रिलोचन ने उर्दू के महान शायर ‘मिर्जा गालिब’ की गैर नहीं अपनों से अपने कहा है। कवि के अनुसार गालिब हिन्दी साहित्य के लेखकों से अलग नहीं है। गालिब अन्य हिन्दी कवि और साहित्यकारों के समान ही जीवन-दर्शन, सामाजिक दर्शन तथा प्रकृति के रहस्यों को जनहित में उद्घाटित करने का कार्य अपने शायरों के माध्यम से किया है। शायरी के हल्केपन से दूर गालिब और कथ्य का सारगर्भित चित्रण बड़े ही सहज, स्वाभाविक और ठेठपन में किया है जो कल्याणकारी और शिक्षाप्रद है। वस्तुत: गालिब ने जनहित में लेखक कार्य कर हिन्दी जनता के होताय कवि होने का गौरव प्राप्त कर लिया है।

प्रश्न 2.
‘नवीन आँखों में जो नवीन सपने हैं’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
प्रगतिशील काव्य धारा के कवि त्रिलोचन ने मिर्जा गालिब के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का चित्रण ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट में किया है। कवि के अनुसार आधुनिक भारत के नौनिहालों के सपने जिसमें एक स्वावलम्बी- स्वाभिमानी और शक्ति सम्पन्न भारत के उज्जवल भविष्य का जो सपना है वही सपना गालिब को भी थी। गालिब ने अपनी शायरी के माध्यम से जीवन के जटिल गाँठ को खोलकर भविष्य निर्माण के लिए आवश्यक क्रिया-कलापों के लिए सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत किया है। नवीन भारत के नौनिहालों के नवीन सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने अक्षर की महिमा का दिग्दर्शन ही कराया है। अपनी भाषा और लक्ष्य में एकरूपता के कारण ही गालिब की बोली ही आज हमारी बोली बन गई है।

प्रश्न 3.
‘सुख की आँखों ने दुःख देखा और ठिठोली की’ में किन दुखों की ओर संकेत है?
उत्तर-
पतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी भारत की सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन में व्याप्त दुखों का वर्णन गालिब की रचनाओं में उल्लेखित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के सुख को देखनेवाली आँखें, भारत की दारुण-दशा से व्यथित है। मिर्जा गालिब के ‘अंटी में दाम’ नहीं है वे साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। अपने जीवन की कठिनाइयों भरे मार्ग से उतना दुःख नहीं है, वे तो जीवन का साधक कवि है जिसकी आँखों में एक सबल, सजग, सुशिक्षित, स्वावलम्बी तथा सर्वशक्तिसम्पन्न भारत का सपना है। उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन के दुःखों से ठिठोली करने की आदत-सी पड़ गई है।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 4.
गालिब ने अक्षर से अक्षर की महिमा किस प्रकार जोड़ी?
उत्तर-
कविवर त्रिलोचन ने उर्दू के महान शायर मिर्जा गालिब के शायरों का भारतीय साहित्य, भारतीय जीवन तथा भारतीय दर्शन पर गहरा और व्यापक छाप को सहज ही परिलक्षित किया है। गालिब का व्यक्तित्व सहज, सादगीपूर्ण तथा शिक्षाप्रद था। उनकी रचनाओं में हिन्दी, उर्दू तथा फारसी का घालमेल है। गालिब ने जो कुछ लिखा है वह जीवन के सत्य के अत्यन्त करीब है। अन्य उर्दू शायरों की भाँति उनकी शायरी में फूहड़पन और हल्केपन का समावेश न होकर तथ्य और कथ्य पर आधारित है। उनकी रचनाओं में नैसर्गिक रूप से भारतीय परम्परा सहज ही दृष्टिगोचर होता है।

उनकी भाषा की सशक्ता सार एवं चित्रण दुनिया के लिए एक दुर्लभ उदाहरण है। शब्द से शब्द जोड़कर उसकी महिमा को व्यापक अर्थ में जनहित में उद्घाटित करनेवाले कवियों के श्रेणी में गालिब प्रतिष्ठित हैं। कवि के रूप में उन्होंने हिन्दी, उर्दू तथा फारसी शब्दों के समायोजन कर व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। महान उर्दू शायर गालिब के शब्द .का समुचित आधार बनाकर तथा शब्द से शब्द को जोड़कर तथ्य और कथ्य को सहजता से पाठक के सामने प्रस्तुत करने में महारत हासिल था।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-“अपना कहने को क्या था, धान-धान नहीं था, सत्य बोलता था, जब-जब मुँह खोल रहे थे।”
उत्तर-
प्रस्तुत व्याख्येन पंक्तियाँ प्रगतिवाद काव्यधारा के प्रमुख कवि त्रिलोचन द्वारा विरचित ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट से ली गई है। इस कविता में कवि ने उर्दू के महान शायर मिर्जा गालिब के व्यक्त्वि एवं कृतित्व को निखारने-सँवारने तथा गहराई से अनुशीलन किया है। गालिब की जिन्दगी का चित्रण करते हुए कवि कहता है कि भले ही गालिब के पास धन-धान नहीं था, अपना कहने के लिए कुछ भी नहीं था; परन्तु उन्होंने अपनी सत्यनिष्ठा के संबल को कभी नहीं छोड़ा।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

गालिब की शायरी सत्य और समयानुरूप थी, जहाँ से मानव-जीवन के तार सहज ही झंकृत होते हैं। उन्होंने जब भी मुँह खोला अर्थात् रचना की वह सत्य पर आधारित भारतीय जनजीवन का सारगर्भित तत्व थे। गालिब सरलता, सादगी तथा सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण वे हिन्दी साहित्य के करीब उनकी रचना पहुँच सकी और हिन्दी कवि ने उन्हें ‘अपनों से अपना’ कहा है।

प्रश्न 6.
इस रचना के आधार पर गालिब के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभर कर सामने आती है।
उत्तर-
प्रस्तुत सॉनेट ‘गालिब’ त्रिलोचन की गालिब के प्रति श्रद्धा और निष्ठा का दर्पण है। मिर्जा गालिब उर्दू के महान शायर थे जिन्होंने उर्दू शायरी के माध्यम से अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व का महान छाप भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर छोड़ी। मिर्जा गालिब सरल, सहज एवं सादगी के प्रतिमूर्ति थे। धनहीन होने के बाबजूद गालिब ने सत्यनिष्ठा से कभी मुँह नहीं मोड़ा। गालिब ने अपनी रचनाओं को जनहित में उद्घाटित कर एक नवीन चेतना, नवीन आशा एवं नवीन ध्येय से जन-मानस को जोड़ने का प्रयास किया है।

उन्होंने अपनी गरीबी से ठिठोली करते हुए निराले अंदाज में जीवन-पथ पर संघर्षरत होकर भावी भविष्य के लिए नवीन सपने संजोने का कार्य किया था। उनकी रचनाओं में भारतीय अस्मिता, भारतीय संस्कृति तथा भारतीय समाज का स्पष्ट छाप सहज ही प्रतिबिंबित होता है। उन्होंने सत्य पर आधारित भारतीय जीवन-दर्शन को दर्शाया है। वे पुरोधा शायर के रूप में अक्षर से अक्षर की महिमा को जोड़ने का कार्य किया था।

उनकी शायरी में पकृति तथा मानव-जीवन-संघर्षों में जूझते भारतीय समाज के अद्भुत चित्र प्रतिबिम्बत है। जीवन को प्रतिकूल दशाओं में भी परम्परागत नैतिकता का मूल्यबोध के सहारे आगे बढ़ते रहने की कला का गालिब दुर्लभ और अद्वितीय उदाहरण थे। गालिब को भारतीय जनमानस अक्षर में अक्षर की महिमा जोड़ने वाला जीवन का साधक कवि के रूप में चिरस्मृत करता रहेगा।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 7.
‘गालिब होकर रहे’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
प्रगतिशील काव्यधारा के पुरोधा कवि त्रिलोचन में ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट में उर्दू के महान शायर मिर्जा गालिब के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला है। मिर्जा गालिब युग-पुरुष थे, जिन्होंने समाज की कुरीतियों पर ठोकर मारे, परन्तु उनका सामाजिक जीवन कैसा था; इसका वर्णन त्रिलोचन ने यथार्थ रूप में किया है। सामाजिक अन्धविश्वास तथा जड़ता से दु:खी गालिब को स्वयं की दीनता नजर नहीं आई। गालिब ने आधुनिक जीवन के नवीन सपने देखे। गालिब ने जीवन की जटिल गाँठ को जनहित में उद्घाटित कर मानवता की अकूत सेवा की।

भारतीय संस्कृति जोड़ने वाले साधक कवि थे, जिन्होंने अपनी सत्यनिष्ठा पर आधारित रचनाओं से भारतीय मानस को उद्वेलित एवं झंकृत किया। अपनी सरलता, सादगी तथा भारतीय जीवन दर्शन के उद्घोषक कवि के रूप में गालिब हिन्दी जनता का जातीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। गालिब ने हिन्दी और उर्दू के बीच महासेतु बनकर इनके बीच की दूरी को पाटने का सार्थक प्रयास किया है।

गालिब के करिश्माई व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रभावित कवि गालिब के समान अपने जीवन और चरित्र का निर्माण करने हेतु प्रेरित किया है ताकि महान उर्दू शायर के समान भारत का प्रत्येक नागरिक सत्य, निष्ठा और कर्तव्य-परायणता का मेरुदण्ड बन सके। इस प्रकार गालिब का सम्पूर्ण व्यक्तित्व शिक्षाप्रद और अनुकरणीय है।

प्रश्न 8.
अपना कहने को क्या था, धन-धान नहीं था। सत्य बोलत था, जब-जब मुँह खोल रहे थे। [B.M.2009 (A)]
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्य-पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित प्रयोगधर्मी कवि त्रिलोचन रचित ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट से उद्धत है। कवि ने उर्दू के महान शायर और शख्सियत मिर्जा गालिब की आर्थिक स्थिति, पारिवारिक स्थिति और आत्मिक स्थिति तीनों का सूत्रवत चित्रण किया है। गालिब जी ने जो लिखा है वह जीवन का कटु सत्य है।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

गालिब के जीवन में निजी कहलाने वाला कुछ नहीं था। जीवन में धन आया भी तो ठहरा नहीं। कोई चल-अचल संपत्ति उनके पास नहीं थी। एक विचित्र बात थी कि जब-जब उनका मुँह खुलता, वे मुंह को खोलते, मुँह से सिर्फ सत्य ही बाहर आता। सत्य तो कटु था। बेधक था, मारक था। सत्य से व्यष्टि से लेकर समाष्टि दूर भागते थे। सत्य का मार्ग अपनाकर हम स्वयं और सृष्टि का कल्याण करने में सक्षम हैं।

सचमुच सत्यवादी वही है जो संबंधों से असंबद्ध हो। कवि ने गालिब के व्यक्तित्व की वह झलक दिखलाई है जो कम शब्दों में अपनी बात बेजोड़ ढंग से रखते हैं।

प्रश्न 9.
हमको उनसे है वफा की उम्मीद। जो नहीं जानते वफा क्या है। गालिब अपने फन के समुच गालिब थे। व्यारघ्या करें। [B.M.2009(A)]]
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिवाद काव्यधारा के प्रमुख कवि त्रिलोचन द्वारा विरचित गालिब शीर्षक सॉनेट से ली गई हैं।

कवि त्रिलोचन ने जो फारसी के अजीम शायर मिर्जा असद उल्लाह खाँ, ‘गालिब’ का शब्द चित्र अपने सॉनेट में प्रस्तुत किया है। उसके अनुसार मिलन सार हमदर्द, हरदिल अजीज इंसान थे। उन्होंने हमारी बोली को तराशा, हमारी जुदा-जुबानों को एक जगह लाने का गंगा-यमुना के पानी को एक करने जैसा कार्य किया। जिसका परिणाम है कि आज हिन्दी में उर्दू, फारसी, अरबी के शब्द के धुल-मिल गए हैं।

गालिब स्पष्ट करते हैं कि हमने उन लोगों से बफाई और मुहब्बत की उम्मीद की है जो वफा से परिचित ही नहीं है। शायर के मनोभाव को परखने वाले जौहरी का अभाव है। दुनियाँ वालों से उनकी जो उम्मीदें थीं वे साकार नहीं हो पाईं। एक तरह से उनका दर्द ही इन पंक्तियों में उभरकर सामने आया है।

गालिब भाषा की बात

प्रश्न 1.
प्रस्तुत सॉनेट में त्रिलोचन ने कई मुहावरों का प्रयोग किया है। जैसे-अपनों से अपना, अंटी में दाम न होना आदि। पाठ के आधार पर ऐसे मुहावरों की सूची बनाएँ और उनका वाक्य में प्रयोग करें।
उत्तर-
कवि त्रिलोचन रचित ‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट में निम्नलिखित मुहावरे आये हैं अपनों से अपने-तुमसे क्या छिपाना, तुम तो अपनों से अपने हो। गाँठ जटिल-भागने में नहीं बहादुरी जीवन की जटिल गाँठ खोलने में है। दाम नहीं अंटी में-रिलायंस कम्पनी तुम खरीदगे? अंटी में दाम भी है या नहीं?

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

साँस-साँस पर तोलना-किस शब्द का क्या प्रभाव होगा बोलने से पहले साँस-साँस पर तौल लेना चाहिए।

अपना कहने को क्या-अपना कहने को क्या, तुम मेरी छोड़ो अपनी जरूरत कहो। मुँह खोलना- कीमत मुँह खोलने की भी होती है। गालिब होकर रहे-जीवन से हार कर नहीं, जीवन को गालिब होकर आनंद उठाओ।

प्रश्न 2.
महिमा, गरिमा शब्दों की तरह ‘इमा’ प्रत्यय लगाकर आठ अन्य शब्द बनाएं।
उत्तर-
पूर्णिमा, अरुणिमा, कालिमा, लालिमा, रक्तिमा, गरिमा, लघिया, महिमा।

प्रश्न 3.
‘धन-धान’ में कौन-सा समास है?
उत्तर-
धन-धान में द्वन्द्व समास है।

प्रश्न 4.
‘सत्य बोलता था जब-जब मुंह खोल रहे थे’-इस वाक्य में कर्ता कौन है।
उत्तर-
इस वाक्य में कर्ता ‘सत्य’ है जो बोलने का कार्य कर रहा है।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 5.
‘बेशक’ में ‘बे’ उपसर्ग है। ‘बे’ उपसर्ग लगाकर सात शब्द बनाएँ।
उत्तर-
बेकार, बेलगाम, बेमरौवत, बेमजा, बेसहारा, बेलौस और बेसुरा।

प्रश्न 6.
‘अक्षर’ शब्द के प्रयोग में श्लेष अलंकार है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
एक ही शब्द के विभिन्न सन्दर्भो में जब अलग-अलग अर्थ (भले ही निरर्थक हो) मिलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। यहाँ अक्षर का पहला अर्थ वर्ण, दूसरा अर्थ भाषा (वाणी) और तीसरा अर्थ सर्वशक्तिमान कालपुरुष, जन्म-जरामरण से रहित ईश्वर, ब्रह्म परमेश्वर और अल्लाह है।

प्रश्न 7.
त्रिलोचन की काव्य भाषा में एक सादगी और सरलता दिखलाई पड़ती है चौड़ी गहरी नदी जैसी बताई जाती है। इस सॉनेट की सादगी और सरलता को आधार बनाकर उनकी काव्य भाषा पर एक टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
त्रिलोचन प्रगतिवादी आन्दोलन के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। प्रगतिवाद की विशेषताओं में एक यह भी है कि सरल बोधगम्य शब्दों, बिम्बों के माध्यम से कवि अपनी बात रखता है किन्तु उसकी मारक क्षमता कहीं अधिक बढ़ी होती है। त्रिलोचन को प्रेमचंद, निराला और नागार्जुन जैसे वास्तविक संघर्षपूर्ण संसार मिला, जिसे देखने, जीने भोगने और उसमें कलात्मक सुधार करने का अवसर मिला।

संघर्षों से दो-दो हाथ करते रहने वालों की काव्य भाषा में सादगी और सरलता ही आयेगी। ‘गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-“छुद्र नदि भरि चलि तोराई” अर्थात् जिन नदियें का पेटी उथला होता है, वे ही अधिक उफनती है। सौभाग्य से त्रिलोचन का वस्तु संसार जितना विस्तृत है उतना ही अनुभव सम्पृक्त भी है।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

वे सॉनेट भले लिखते हों किन्तु सॉनेट रूपी गागर में वे सागर भर देते हैं। वह भी अपने आस-पास के प्रचलित शब्दों से लोकोक्तियों और मुहावरों के भरोसे। क्योंकि उन्हें यह सत्य पता है कि मुहावरे और लोकोक्तियों के पीछे कितने कड़े कटु अनुभव, मानस वृत्तियों का कितना लम्बा इतिवृत्त संबली के रूप में खड़ा है।

गालिब शीर्षक सॉनेट में भी यही सादगी और सरलता दृष्टिगोचर होती है। बोली गाँठ, ठिठोली-बहलाया, दाम, अंटी, साँस-तोल धान जैसे शब्दों के बदले त्रिलोचन शब्द कोश में अर्थ ढूँढने पर बाध्य कर देने वाले शब्दों का भी प्रयोग कर सकते थे किन्तु तब, गालिब का व्यक्तित्व इतना सहज नहीं होता। वे भी केशव की तरह कठिन काव्य के “प्रेत” की तरह दीखते। कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने भी लिखा है-

“जैसा मैं कहता हूँ, वैसा तू लिख फिर भी मुझसे बड़ा तू दीख”

कवि का बड़प्पन इसी में है कि यह बारीक-से-बारीक बात जेहन में उतार दे बिना किसी ताम-झाम के। अलंकार यदि स्वाभाविक रूप से आ जाएँ तो ठोक वरना अतिरिक्त श्रम न करे। तुम मिल जाए तो ठीक। किन्तु तुक के लिए बेतुक अर्थहीन वर्ष.-विन्यास से बचे। हम समझते है कि आधुनिक होकर भी, उच्च शिक्षा प्राप्त करके भी त्रिलोचन आपादमस्तक सादगी की पूतिमूर्ति हैं और इसी के प्रक्षेप इनके सॉनेट हैं।

प्रश्न 8.
‘महिमा’ संज्ञा है या विशेषण? वाक्य में प्रयोग कर स्पष्ट करें।
उत्तर-
महिमा भाववाचक संज्ञा पद है, जिसका अर्थ है-बड़ाई, महातम, महात्म्य, गौरव आदि। उदाहरण-भगवान श्रीकृष्ण की महिमा अपरम्पार है। भगवान श्रीराम की महिमा जगजाहिर है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

गालिब दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सॉनेट के विषय में जानकारी दें।
उत्तर-
सॉनेट अंग्रेजी साहित्य का काव्यरूप है। हिन्दी में इसके लिए चतुर्दश पदी शब्द का प्रयोग होता है। इस काव्य रूप के विषय में निम्न बातें ध्यातव्य हैं।

  1. इसमें चौदह पंक्तियाँ होती है, कम या अधिक नहीं।
  2. दो-दो पंक्तियों का युग्म या जोड़ा होता हैं जिसे कप्लेट (Couplet) कहते हैं। ऐसे सात कप्लेट से एक सॉनेट बनता है।
  3. अंतिम कप्लेट में सॉनेट की विषयवस्तु से सम्बन्धित कोई महत्त्वपूर्ण तथ्य संदेश के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 2.
शेर और गजल किसे कहते हैं?
उत्तर-
शेर और गजल दोनों उर्दू शायरी से सम्बन्धित काव्य रूप हैं। शेर में दो पंक्तियाँ होती हैं। इसका शाब्दिक अर्थ होता है एक लड़ी में पिरोना। गद्य को जब पद्य का रूप दिया जाता है तो वह बोध हो जाता है। इसमें दो चरण या पंक्तियाँ या मिसरे होते हैं।

गजल-इसका अर्थ होता है प्रेमिका से बातचीत। यह ऐसा काव्य रूप है जिसमें पाँच से ग्यारह शेर अर्थात् दस से बाईस पंक्तियाँ होती हैं। कुछ लोग इसमें सात से चौदह मिसरे या पंक्तियाँ मानते हैं। इसमें हर शेर दूसरे से स्वतंत्र होता है। उसका मजमून या विषय अलग-अलग होता है। दोनों पंक्तियों का एक प्रकार का तुक होता है। इसमें प्रेमिका के रूप, रंग, अदा तथा खूबियों का अधिकतर बढ़ा चढ़ा और प्रभावशाली वर्णन होता है। वास्तव में गजल में हुश्न और इश्क का वर्णन गजल गोई के दिलों की आवाज को प्रकट करता है।

गालिब उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गालिब का व्यक्तित्व कैसा था?
उत्तर-
त्रिलोचन के अनुसार गालिब का व्यक्तित्व दबंग था। वें वक्ता थे। वे दु:खों और कठिनाइयों से संघर्ष करते रहे। उन्हें दुनिया से कोई काम नहीं था, लेकिन वे दुनिया को अपनी अनुभवी आँखों से सदा तौलते रहे। वे मनमौजी स्वभाव के मस्त व्यक्ति थे। उनकी आँखों में सदैव नये सपने पलते थे जिन्हें वे अपनी रचनाओं में व्यक्त करते थे।

प्रश्न 2.
गालिब का कवि-कर्म का संक्षेप में विवेचन करें।
उत्तर-
शायरी के क्षेत्र में गालिब सदा कुछ नया और दूसरे शायरों से कुछ अलग कहने के अग्रणी थे। उनकी रचनाओं में जीवन की जटिल गाँठे खोलने का प्रयत्न है। इसी कारण उनकी अभिव्यक्ति में हल्कापन नहीं है उनकी भाषा भी सहज और सम्प्रेषणीय है, इसलिए वह प्रभाव उत्पन्न करती है। वे जीवन के अनुभवों के कवि हैं। अत: उनकी रचनाओं में सत्य मुखर और बेलौस होकर बोलता है। दूसरे शब्दों में, वे सत्यम् के कवि हैं।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

गालिब अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गालिब का जीवन कैसा था?
उत्तर-
कवि त्रिलोचन के अनुसार गालिब गरीब थे। उनके पास घर नहीं था। उनकी जेब में पैसे नहीं थे। परिवार के नाम पर अपना कहने के लिए भी कोई नहीं था। उन्होंने सुख की आँखों से दुख को देखा था।

प्रश्न 2.
गालिब गैर क्यों नहीं लगते हैं?।
उत्तर-
गालिब दो कारणों से गैर नहीं लगते हैं। प्रथम उनकी भाषा हमारी आज की भाषा की तरह आधुनिक है। द्वितीय, उनके सपने वे ही हैं जो आज की नयी पीढ़ी के नये सपने हैं।

प्रश्न 3.
गालिब द्वारा ‘दुनिया जोतने’ से कवि का क्या तात्पर्य है?।
उत्तर-
दुनिया जोतने से कवि का तात्पर्य यह है कि गालिब की रचनाओं में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के यथार्थ अनुभवों का भंडार है।

प्रश्न 4.
‘गालिब ने जब भी मुँह खोला सत्य कहा’ का तात्पर्य क्या है?
उत्तर-
गालिब ने अपनी रचनाओं में जो भी लिखा है वे सभी बिना किसी लाग लपेट के सत्य की तल्ख अभिव्यक्ति हैं।

प्रश्न 5.
नवीन आँखों के नवीन सपने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
कवि का तात्पर्य है कि गालिब ने जो कुछ लिखा है वह आज की नयी पीढ़ी की भावनाओं से पूर्णत: मेल खाता है।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 6.
सुख की आँखों से दुःख देखा और ठिठोली की-इसका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गालिब गरीबी के बीच रहकर भी मस्त जीवन जीते रहे। दु:खों की कभी परवाह नहीं की। यही कारण है कि गजल के दृष्टिकोण से गालिब का अद्वितीय स्थान है।

प्रश्न 7.
गालिब शीर्षक कविता में कवि के द्वारा किस शायर का परिचय दिया गया है?
उत्तर-
गालिब शीर्षक कविता में कवि त्रिलोचन ने मिर्जा गालिब का परिचय दिया है।

प्रश्न 8.
गालिब कैसी प्रकृति के व्यक्ति थे?
उत्तर-
शायर गालिब आजाद प्रकृति के व्यक्ति थे।

प्रश्न 9.
असदुल्लाह खाँ किनका नाम था?
उत्तर-
असदुल्लाह खाँ प्रसिद्ध शायर और गजलगो मिर्चा गालिब नाम था।

गालिब वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएं

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 1.
गालिब कविता के कवि हैं?
(क) मैथिलीशरण गुप्त
(ख) दिनकर
(ग) त्रिलोचन
(घ) मीरा
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 2.
गालिब का जन्म कब हुआ था?
(क) 1971 ई०
(ख) 1885 ई०
(घ) 1910 ई०
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
गालिब का जन्म स्थान था
(क) मध्य प्रदेश
(ख) दिल्ली
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) हिमाचल प्रदेश
उत्तर-
(ग)

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 4.
कवि का मूल नाम था
(क) जगदेव सिंह
(ख) वासुदेव सिंह
(घ) नटवर सिंह
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 5.
गालिब की कृतियाँ हैं
(क) दिगंत
(ख) शब्द
(ग) फूल नाम एक है
(घ) अमोला
उत्तर-
(क)

प्रश्न 6.
गालिब की गद्य रचनाएँ हैं
(क) देशकाल
(ख) रोजनामचा
(ग) काव्य और अर्थबोध
(घ) मुक्ति बोध की कविताएँ
उत्तर-
(ग)

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 7.
त्रिलोचन की रचना है
(क) काव्य
(ख) सौनेट
(ग) गद्य लेखन
(घ) कहानी-संग्रह
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 8.
त्रिलोचन हैं
(क) लेखक
(ख) काहनीकार
(ग) कवि
(घ) फकीर
उत्तर-
(ग)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
त्रिलोचन …………….. काव्यधारा के प्रमुख कवि हैं।
उत्तर-
प्रगतिवाद या प्रगतिशील।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 2.
त्रिलोचन हिन्दी कविता में …………… के तो पर्याय ही माने जाते हैं।
उत्तर-
सॉनेट।

प्रश्न 3.
त्रिलोचन ने मुख्य रूप से ……………. अपनी कविता का विषय बनाया है।
उत्तर-
ग्रामीण जीवन और किसानों-श्रमिकों की संस्कृति को।

प्रश्न 4.
त्रिलोचन ने संस्कृत, हिन्दी, उर्दू आदि भषाओं का …………….. किया है।
उत्तर-
अनुशीलन तथा आत्मसात।

प्रश्न 5.
अपने बाद की कविता पर त्रिलोचन का ……………. उनके विशेष महत्व का प्रमाण है।
उत्तर-
रचनात्मक प्रभाव।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

प्रश्न 6.
प्रस्तुत सॉनेट उनके प्रसिद्ध संकलन ……………… में संकलित है।
उत्तर-
दिगंत।

गालिब कवि परिचय – त्रिलोचन (1917)

प्रश्न-
कवि त्रिलोचन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
कवि त्रिलोचन का प्रगतिशील कविताओं के कवियों में प्रभावपूर्ण स्थान है। इनका मूल नाम वासुदेव सिंह था। इनका जन्म सन् 1917 में चिरानी पट्टी जिला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इन्होंने अनेक काव्य-रचनाएँ लिखीं। काव्य के साथ-साथ गद्य के क्षेत्र में भी इनकी लेखनी की प्रवीणता कुछ कम नहीं रही। साहित्य के अनुपम रचनाओं के लिए इन्हें साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इन्हें गाँधी पुरस्कार से नवाजा गया। श्लाका सम्मान भी इनकी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

काव्य-रचनाएँ-धरती, शब्द, अरधान, चैती, मेरा घर, तुम्हें सौंपता हूँ, गुलाब और बुलबुल, ताप के मथ हुए दिन, उस जनपद का कवि हूँ, दिगंत अमाला आदि।

गद्य रचनाएँ-रोजनामचा, देशकाल, काव्य और अर्थ बोध, मुक्ति बोध की कविताएँ। हिन्दी के अनेक कोशों के निर्माण में त्रिलोचन जी ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

काव्यगत विशेषताएँ-त्रिलोचन जी बहुभाषी विज्ञ शास्त्री भी माने जाते हैं। इनके द्वारा रचित साहित्य में इनका अनेक भाषाओं का ज्ञान स्पष्ट झलकता है। इस ज्ञान से इनकी रचनाओं में

पर हावी नहीं होता। इनकी रचनाओं की भाषा छायावादी कल्पनाशीलता से दूर ग्राम्य जीवन की माटी से जुड़ी यथार्थ की भाषा है। हिन्दी में सॉनेट (अंग्रेजी छंद) को स्थापित करने का श्रेय भी त्रिलोचन जी को जाता है। सामान्य बोलचाल की भाषा को यह कवि पाठक के सम्मुख इस प्रकार से नए स्वरूप में प्रस्तुत करता है कि वह उसे अपने ही आस-पास के वातावरण की जान पड़ती है। इनकी भाषा हृदय को छू लेने वाली है। भाषा सरल और बोधगम्य है। वस्तुतः आधुनिक प्रगतिशील हिन्दी कवियों में त्रिलोचनजी का प्रभावपूर्ण स्थान है।

गालिब कविता का सारांश

प्रश्न-
कवि त्रिलोचन द्वारा लिखित सॉनेट ‘गालिब’ का सारांश लिखें।
उत्तर-
प्रस्तुत सॉनेट प्रसिद्ध कवि त्रिलोचन द्वारा रचित ‘गालिब’ एक प्रसिद्ध सॉनेट है। यहाँ का अंकन ऐसी सरलता और सादगी से किया गया है कि उनकी शबीह में नैसर्गिक अपनाने के साथ पूरी परम्परा का अक्सर दृश्य दिखाई पड़ता है।

एक कवि दूसरे कवि पर लिखे और वह भी सहृदयता के साथ पूरी तरह नतमस्तक होकर तो जरूर कोई बात होगी। और जब बात गालिब की हो तो वकौल गालिब-

“कुछ तो पठिए कि लोग कहते हैं।”
आज गालिब “गजल सरा” न हुआ।”

उसी गालिब पर चुष्पदी छंद विद्या के धुरंधर कवि त्रिलोचन ने सॉनेट रचा। इस सॉनेट के अनुसार गालिब, गैर नहीं है, विजातीय नहीं, बेगाने नहीं। वे किसी रक्त संबंधी की तरह ही स्वजन प्रिय है, प्रेमास्पद हैं क्योंकि उनकी सोच संकीर्ण नहीं है। गालिब ने फारसी के बाद उर्दू और उर्दू के साथ हिन्दी को मजबूती प्रदान की, अर्थवत्ता प्रदान की। आज जो हर किसी की आँखों मे चमकीले सपने तैरते हैं, वे गालिब के देखे गये तरक्की पसंद सपनों के ही हिस्से हैं। गालिब ने जीव-जगत के संबंध के रहस्य को, गांठ को खोलने का काम किया। वह भी नपी-तुली भाषा-शैली में कही भी उनकी भाषा में भटकाव, हल्कापन नहीं है। बचपन सुख से बीता पर व्यक्तिगत कारणों से (शराब और जुए की लत) वे बाकी जिन्दगी दुःख में काटी। खोखली ढिढोलियों के द्वारा ही मन बहलाया।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

“मुफ्त की ‘मय’ पीते है कि जाहिद
रंग लाएगी फाका मस्ती भी मेरी एक दिन”

पैसे का अभाव रहा फिर भी दुनिया से कोई ऐसा वास्ता नहीं रखा कि शर्मसार होना पड़े। हाँ गालिब मन मसोस कर दुनिया की दोरंगी नीति, चाल-ढाल को बड़े गौर से देखते रहे। उनके पास उनका अपना कहलाने वाला भी कोई नहीं था, कुछ भी नहीं था। फिर भी उनके पास अजीब-सी थाती थी। जब कभी कुछ बोलते, कहने के लिए मुँह खुलता तो लगता जैसे सत्य बोल रहे हैं। गालिब अपनी शर्तों पर जीते रहे और अपनी तरीके से कूच किया। किन्तु जो कर गये, जो छोड़कर गये, जो हमें दे गये, वह अमूल्य है, अतुल्य है। गालिब ने अलग-अलग भाषाओं के बीच भावात्मक रिश्ता कायम किया। अलग-अलग धर्म सम्प्रदायों के बीच “परमब्रह्म अनल हक” की एकरूपता का प्रतिपादन किया।

कवि त्रिलोचन ने भी अत्यन्त नपे-तुले ढंग से गालिब की जीवन रेखाओं को उभारा है। उनके व्यक्तित्व और अवदान दोनों को रेखांकित किया है। कविता में यमक, वीप्सा, अनुप्रास जैसे अलंकारों के साथ मुहावरों और लोकोक्तियों में भी अपनी जगह बनायी है।

गालिब कठिन शब्दों का अर्थ

गालिब-शक्तिशाली, जबर्दस्त, विजेता। गैर-पराया। ठिठोली-मजाक, दिल्लगी। अंटी-बटुवा, जेब। अक्षर-जिसका क्षरण न हो, जो नष्ट न हो। बेशक-निस्संदेह।

गालिब काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. गालिब गैर नहीं ……………….. गालिब के सपने हैं।
व्याख्या-
‘गालिब’ शीर्षक सॉनेट की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि त्रिलोचन कहना चाहते हैं कि मात्र भाषा और धर्म की भिन्नता के कारण गालिब को भिन्न नहीं माना जा सकता। वे हमारे समानधर्मा हैं। वे जिस प्रकार की भाषा में अपने भावों का व्यक्त करते हैं वही हमारी भी भाषा है। उनकी रचनाओं में जो व्यक्त हुआ है वही हमारी आज की नयी पीढ़ी के सपने हैं। यहाँ बोली. का साधारण अर्थ नहीं है। यहाँ बोली से तात्पर्य कहने के ढंग और भाषा से है। सारांशत: कवि कहना चाहता है कि आधुनिक भाव-विचार का जो स्वरूप है वही गालिब में भी प्राप्त है। अत: वे हमारे समान धर्मा हैं, हमारे अपने हैं, अपने धर्म के लोगों और अपनी भाषा अर्थात् हिन्दी में लिखने वाले लोगों की तुलना में वे हमें ज्यादा अपने अनुभव होते हैं।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

2. गालिब ने खोली गाँठ ………………. नाम नहीं था।
व्याख्या-
‘गालिब’ शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में त्रिलोचन जी ने गालिब की कविताओं की विशेषता बतलाई है। उनके अनुसार गालिब की कविताओं में जीवन की जटिलता को अंकित करने और उसका रहस्य समझाने की चेष्टा है। उसमें कही गयी बात अर्थात् तथ्य और बोली अर्थात् कहने का ढंग और कहने के लिए अपनायी गई शैली दोनों तुली हुई है अर्थात् सटीक है। अर्थात् कथ्य को इस तरह तोलकर कहा गया है कि सीधे प्रभाव उत्पन्न करती है। उसमें ऊपरी तौर पर सरलता लगती है, लेकिन कथ्य और भाषा दोनों प्रभावशाली होने के कारण हलकापन नहीं है। अभिप्राय यह है कि गालिब की कविता में बात वजनदार ढंग से कही गयी है।

3. सुख की आँखों ने दुःख देखा …………….. धन-धान नहीं था।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियों में गालिब के विषय में त्रिलोचन बताना चाहते हैं कि उन्होंने पहले सुख के दिन देखे। फिर दुर्दिन ने घेरा तो उन्हीं सुख देखने वाली आँखों से दुःख देखना पड़ा। तब लापरवाही और मस्ती के सहारे उन्होंने दुख के साथ ठिठोली की। इस तरह दु:ख के साथ ठिठोली कर यानी उसे हल्केपन से लेकर हँसी-मजाक में उसके प्रभाव को नकार कर गालिब ने अपना जी बहलाया।

उनके पास पैसे नहीं थे। दुनिया से कोई मतलब नहीं था लेकिन सतत् हर साँस वे संसार के लोगों, व्यवहारों को तौल रहे थे। उनके पास धन-धान तो नहीं ही था अपना कहने के लिए भी कोई नहीं था। इसलिए वे बेखौफ होकर सत्य को अपनी शायरी में अभिव्यक्त करते रहे। जब मुँह खोला अर्थात् जब कविता लिखी तो जीवन के सत्य को ही वाणी दी, न समझौता किया, न चापलूसी की। कवि के कहने का आशय यह है कि समय के प्रभाव और दुःखों की मार से गालिब विचलित नहीं हुए तथा सदा सच को वाणी दी।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

4. गालिब हो कर रहे ………………. महिमा जोड़ी।
व्याख्या-
त्रिलोचन रचित ‘गालिब’ कविता से प्रस्तुत पंक्तियाँ ली गयी है। यह उस सॉनेट की अंतिम पंक्तियाँ हैं जिनसे गालिब की कविता के प्रभाव को सूझ–रूप में उपस्थित किया गया है। प्रथम पंक्ति में कवि ने यह बताया है कि गालिब ने परिस्थितियों से जूझकर अपनी साहित्यिक पहचान बनायी और सारी दुनिया को जीतकर रख दिया। अर्थात् जीवन के विविध क्षेत्रों के जटिल और गंभीर समस्या की व्याख्या अपने काव्य माध्यम से की। अत: उनकी कविता जीवन के सच की व्याख्या है।

दूसरी पंक्ति में यह कहा गया है कि वे कवि थे। कवि जो मनीषी होता है, द्रष्टा और स्रष्टा होता है। अक्षर जोड़ना अर्थात् कविता लिखना उनका कार्य था। उन्होंने इस अक्षर-कर्म के स्रष्टा होता है। अक्षर जोड़ना अर्थात् कविता लिखना उनका कार्य था। उन्होंने इस अक्षर-कर्म के सहारे अक्षरत्व अर्थात् अमरत्व प्राप्त किया। कवि की दृष्टि में वे एक अनश्वर कवि हैं, उनकी कृतियाँ समय के साथ और चमकदार और प्रासंगिक होती गयी। अत: अक्षर-साधन से उनको वह महिमा मिली है जो उन्हें अक्षर अर्थात् अनश्वर, अक्षर बनाती है।

गालिब कैसे प्रकृति के कवि थे? - gaalib kaise prakrti ke kavi the?

गालिब कैसे प्रकृति के थे?

ग़ालिब का एक मशहूर शेर है--"क़ासिद (हरकारा) के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ/मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में." ग़ालिब को दुनिया शायर के तौर पर जानती और मानती है, लेकिन उनकी चिट्ठियाँ उनके वक़्त का बेहतरीन खाका खींचती हैं जिनसे ज़्यादातर लोग अनजान ही हैं.

गालिब की मृत्यु कब हुई थी?

15 फ़रवरी 1869मिर्ज़ा ग़ालिब / मृत्यु तारीखnull

मिर्जा गालिब का मकबरा कहां है?

Mazar-e-Ghalibमिर्ज़ा ग़ालिब / दफ़नाने की जगहnull

अपना कहने को क्या था धन धन नहीं था सत्य बोलता था जब जब मुँह खोल रहे थे?

रामायण कथा | पाप का विनाश - रावण अंत - YouTube.