अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है ? आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध क्या होंगे ? उदाहरण सहित बताइये। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है जो प्रजातंत्र को सफल और उपयोगी बनाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक को भाषण देने तथा अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। कोई भी नागरिक बोलकर या लिखकर अपने विचार प्रकट कर सकता है। उसे लिखने, कार्य करने, चित्रकारी करने, बोलने की आजादी होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतिबंधित नहीं होनी चाहिए। यह चर्चा के लिए एक अच्छा प्रसंग है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध: वैसे तो भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, किन्तु साथ ही उस पर कुछ समुचित प्रतिबंध भी लगाए गए है जो कि समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक है। जैसे: अपमानजनक शब्द अथवा लेखा-दूषण और मानहानि, न्यायालय का अपमान करने के कारण, सदाचार एवं नैतिकता के आधार तथा राज्य की सुरक्षा के आधार पर। इसे निम्नलिखित दिए गए उदाहरणों द्वारा भी समझा जा सकता हैं:
नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की क्या भूमिका है ? नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रखने में राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती हैं :
स्वतंत्रता से क्या आशय है ? क्या व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता में कोई संबंध है। स्वतंत्रता शब्द को अंग्रेजी भाषा में लिबर्टी (Liberty) कहते हैं। लिबर्टी शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'लिबर' (Liber) से निकला है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'बंधनों का अभाव' अर्थात् पूर्ण स्वतंत्रता अथवा किसी प्रकार के बंधनों का न होना। इस प्रकार स्वतंत्रता का अर्थ हुआ कि व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और उस पर कोई बंधन नहीं होना चाहिए। परन्तु स्वतंत्रता का यह अर्थ ग़लत हैं। इसका वास्तविक अर्थ यह है कि व्यक्ति पर अन्यायपूर्ण तथा अनुचित प्रतिबंध नहीं होने चाहिए परन्तु उसे उन अवसरों की भी प्राप्ति होनी चाहिए जो उसके विकास में सहायक हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता में गहरा सम्बन्ध हैं। राष्ट्र व्यक्तियों का समहू होता है जो एक व्यक्ति के समान ही होता हैं। एक राष्ट्र जिसकी सरकार बाहरी प्रतिबंधों से मुक्त होती हैं, केवल वो ही सरकार अपने व्यक्तियों को स्वतंत्रता प्रदान कर सकती है। दूसरी तरफ, एक राष्ट्र केवल तभी स्वतंत्र होता है जब इसे अपने सिद्धांतों में से 'स्वतंत्रता' एक के रूप में प्राप्त होती है जो उसके लोगों को प्रदान की जाती है। राष्ट्रीय भी जीवित जीव की तरह कार्य करता है और व्यक्ति पर नियंत्रण रखता है। देश की हानि उसके देशवासियों की हानि होती है। राष्ट्र की स्वतंत्रता व्यक्ति की रचनाशीलता, संवेदनशीलता और क्षमताओं के भरपूर विकास को बढ़ावा देती है। यह विकास खेल, विज्ञान, कला, संगीत या अन्वेषण जैसे किसी भी क्षेत्र में हो सकता है। अत: हम कह सकते हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता तभी सम्भव हैं, जब राष्ट्र स्वतंत्र हो। इस स्वतंत्रता के कारण ही व्यक्ति अपने विवेक और निर्णय की शक्ति का प्रयोग कर पाते हैं। स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में क्या अंतर है ? स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में अंतर निम्नलिखित हैं:
सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है? क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं ? सामाजिक प्रतिबंधों से आशय सामाजिक बंधन एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सकारात्मक नियंत्रण से है। यह नियंत्रण कानून, रिति-रिवाज़, धर्म तथा न्यायिक निर्णयों के आधार पर लागू किए जाते हैं, ताकि समाज में सुख-शांति मौजूद रहें।यह बात सही है कि सभी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक नहीं है उदाहरण के लिए स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रतिबंध नहीं होनी चाहिए। स्वतंत्रता से मुक्ति के वास्तविक अनुभव के लिए सामाजिक और कानूनी बंधन आवश्यक है। हमे कुछ प्रतिबंधों की तो जरूरत है, अन्यथा समाज अव्यवस्था की गर्त में पहुँच जाएगा:
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